प्रस्तुति- राकेश रागिनी
संथाल जनजाति झारखंड के ज्यादातर हिस्सों तथा पश्चिम बंगाल, उड़ीसा और असम के कुछ जिलों में रहने वाली भारत की प्राचीनतम जनजातियों में से एक है।
ये भारत के प्रमुख आदिवासी समूह है। इनका निवास स्थान मुख्यतः झारखंड प्रदेश है। झारखंड से बाहर ये बंगाल, बिहार, उड़ीसा, मध्य प्रदेश, असम, मे रहते है। संथाल प्रायः नाटे कद के होता है। इनकी नाक चौड़ी तथा चिपटी होती है। इनका संबंध प्रोटो आस्ट्रेलायड से है।
संथालों के समाज मे मुख्य व्यक्ति इनका सरदार होता है। मदिरापान तथा नृत्य इनके दैनिक जीवन का अंग है। अन्य आदिवासी समुहों की तरह इनमें भी जादू टोना प्रचलित है। संथालो की अन्य विषेशता इनके सुन्दर ढंग के मकान हैं जिनमें खिडकीयां नहीं होती हैं। संथाल हिन्दू परंपरा के अंतर्गत ढाकुर जी की उपासना करतें हैं साथ ही ये सरना धर्म का पालन करते हैं।
इनकी भाषा संथाली और लिपि ओल्चिकी है। इनके सात मूल गोत्र हैं ; मरांडी, सोरेन, हासंदा, किस्कू, तुडू, मुरमु, तथा हेम्ब्रम। ये सोहराइ तथा सकरात नामक पर्व मनाते हैं। इनके विवाह को 'बापला' कहा जता है।
उनकी अद्वितीय विरासत की परंपरा और आश्चर्यजनक परिष्कृत जीवन शैली है। सबसे उल्लेखनीय हैं उनके लोकसंगीत, गीत और नृत्य हैं। संथाली भाषा व्यापक रूप से बोली जाती है। दान करने की संरचना प्रचुर मात्रा में है। उनकी स्वयं की मान्यता प्राप्त लिपि 'अल्चीकी' है, जो वनवासी समुदाय के लिये अद्वितीय है।
संथाल के सांस्कृतिक शोध दैनिक कार्य में परिलक्षित होते है- जैसे डिजाइन, निर्माण, रंग संयोजन और अपने घर की सफाई व्यवस्था में है|दीवारों पर आरेखण, चित्र और अपने आंगन की स्वच्छता कई आधुनिक शहरी घर के लिए शर्म की बात होगी।
संथाल के सहज परिष्कार भी स्पष्ट रूप से उनके परिवार के पैटर्न -- पितृसत्तात्मक, पति पत्नी के साथ मजबूत संबंधों को दर्शाता है| विवाह अनुष्ठानों में पूरा समुदाय आनन्द के साथ भाग लेते हैं। लड़का और लड़की का जन्म आनंद का अवसर हैं | संथाल मृत्यु के शोक अन्त्येष्टि संस्कार को अति गंभीरता से मनाया जाता है। धार्मिक विश्वासों और अभ्यास को हिंदू और ईसाई धर्मों से लेकर माना जाता है। इनमें प्रमुख देवता हैं- 'सिंह बोंगा', 'मोरंग बुरु' और 'जाहेर युग'। पूजा अनुष्ठान में बलिदानों का इस्तेमाल किया जाता है |
संथालों के समाज मे मुख्य व्यक्ति इनका सरदार होता है। मदिरापान तथा नृत्य इनके दैनिक जीवन का अंग है। अन्य आदिवासी समुहों की तरह इनमें भी जादू टोना प्रचलित है। संथालो की अन्य विषेशता इनके सुन्दर ढंग के मकान हैं जिनमें खिडकीयां नहीं होती हैं। संथाल हिन्दू परंपरा के अंतर्गत ढाकुर जी की उपासना करतें हैं साथ ही ये सरना धर्म का पालन करते हैं।
इनकी भाषा संथाली और लिपि ओल्चिकी है। इनके सात मूल गोत्र हैं ; मरांडी, सोरेन, हासंदा, किस्कू, तुडू, मुरमु, तथा हेम्ब्रम। ये सोहराइ तथा सकरात नामक पर्व मनाते हैं। इनके विवाह को 'बापला' कहा जता है।
उनकी अद्वितीय विरासत की परंपरा और आश्चर्यजनक परिष्कृत जीवन शैली है। सबसे उल्लेखनीय हैं उनके लोकसंगीत, गीत और नृत्य हैं। संथाली भाषा व्यापक रूप से बोली जाती है। दान करने की संरचना प्रचुर मात्रा में है। उनकी स्वयं की मान्यता प्राप्त लिपि 'अल्चीकी' है, जो वनवासी समुदाय के लिये अद्वितीय है।
संथाल के सांस्कृतिक शोध दैनिक कार्य में परिलक्षित होते है- जैसे डिजाइन, निर्माण, रंग संयोजन और अपने घर की सफाई व्यवस्था में है|दीवारों पर आरेखण, चित्र और अपने आंगन की स्वच्छता कई आधुनिक शहरी घर के लिए शर्म की बात होगी।
संथाल के सहज परिष्कार भी स्पष्ट रूप से उनके परिवार के पैटर्न -- पितृसत्तात्मक, पति पत्नी के साथ मजबूत संबंधों को दर्शाता है| विवाह अनुष्ठानों में पूरा समुदाय आनन्द के साथ भाग लेते हैं। लड़का और लड़की का जन्म आनंद का अवसर हैं | संथाल मृत्यु के शोक अन्त्येष्टि संस्कार को अति गंभीरता से मनाया जाता है। धार्मिक विश्वासों और अभ्यास को हिंदू और ईसाई धर्मों से लेकर माना जाता है। इनमें प्रमुख देवता हैं- 'सिंह बोंगा', 'मोरंग बुरु' और 'जाहेर युग'। पूजा अनुष्ठान में बलिदानों का इस्तेमाल किया जाता है |
यह भी देखें
- संथाली भाषा
- संथाल विद्रोह
- झारखंड
बाहरी कड़ियाँ
- मिटने के कगार पर गौरवशाली परम्परा (भारतीय पक्ष)
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