गुरुवार, 31 मार्च 2022

सम्वत्सर के वर्षो का नाम

 पिछले लेख में इस बात की चर्चा थी कि भारतीय परंपरा में वर्षों का निरूपण संख्या के साथ साथ नाम से भी होता है, और न सिर्फ निरूपण होता है अपितु  व्यवहारिक प्रयोग भी होता है। संकल्प मंत्र - जिसका प्रयोग प्रत्येक धार्मिक अनुष्ठान से पहले किया जाता है उसमें वर्ष की संख्या नहीं वर्ष का नाम लिया जाता है। बहुत से मित्रों का निवेदन है कि इन वर्षों के नाम भी बताए जाएं। इसीलिए आज की पोस्ट सम्वत्सर के वर्षों के नामों की चर्चा से प्रारंभ करते हैं । वर्षों के नाम और उनकी बोधक संख्या इस प्रकार है - 


बार्हस्पत्य वर्ष को फल की दृष्टि से ५-५ वर्ष के १२ युगों में बांटा गया है। अन्य विभाजन है २०-२० वर्षों के ३ खण्ड-ब्रह्मा, विष्णु, रुद्र विंशतिका।

ब्रह्मा-१. प्रभव, २. विभव, ३ शुक्ल, ४. प्रमोद, ५. प्रजापति, ६. अङ्गिरा, ७. श्रीमुख, ८. भाव, ९. युवा, १०. धाता, ११. ईश्वर, १२. बहुधान्य, १३. प्रमाथी, १४. विक्रम, १५. वृष, १६. चित्रभानु, १७. सुभानु, १८. तारण, १९. पार्थिव, २०. व्यय। विष्णु-२१. सर्वजित्, २२. सर्वधारी, २३. विरोही, २४. विकृत, २५. खर, २६. नन्दन, २७. विजय, २८. जय, २९. मन्मथ, ३०. दुर्मुख, ३१. हेमलम्ब, ३२. विलम्ब, ३३. विकारी, ३४. शर्वरी, ३५. प्लव, ३६. शुभकृत्, ३७. शोभन, ३८.  क्रोधी, ३९. विश्वावसु, ४०. पराभव, रुद्र-४१. प्लवङ्ग, ४२. कीलक, ४३. सौम्य, ४४. साधारण, ४५. विरोधकृत्, ४६. परिधावी, ४७. प्रमादी, ४८. आनन्द, ४९. राक्षस, ५०. अनल, ५१. पिङ्गल, ५२. कालयुक्त, ५३. सिद्धार्थ, ५४. रौद्र, ५५. दुर्मति, ५६. दुन्दुभि, ५७. रुधिरोद्गारी, ५८. रक्ताक्ष, ५९. क्रोधन, ६०. क्षय।  


कभी ५ वर्ष का एक युग होता था, ६० महीनों का (वेदाङ्ग ज्यौतिष)। जब आप शताब्दियों की परास में कालचक्र का प्रेक्षण करना चाहते हैं तो बड़ी इकाई की भी आवश्यकता पड़ती है। जितनी बड़ी संख्या, त्रुटि की सम्भावना उतनी ही अल्प। 

धरा के १२ माह १२ आदित्यों से जोड़ कर देखे जाते थे, सूर्य नमस्कार मन्त्रों का ध्यान करें। सूर्य के आभासी वार्षिक पथ को १२ आदित्यों में बाँट कर देखा जाता। यह पाया गया कि गुरु ग्रह लगभग एक वर्ष में एक आदित्य की दूरी पूरी करता है। अर्थात् १२ वर्षों में पूरा चक्र। अर्थात् यदि एक पृथ्वी वर्ष को महामास मानें तो महावर्ष हुआ १२ पृथ्वी वर्ष और ऐसे ५ महावर्षों का हुआ एक महायुग (कलि, द्वापर आदि को इसमें न लायें, यह भिन्न बीज वाला गणित है।) १२×५ = ६० वर्षों के संवत्सर चक्र का यही रहस्य है। सबको भिन्न भिन्न नाम दिये गये और एक चक्र पूरा होने पर पुन: उन्हीं नामों का दूसरा चक्र आरम्भ होता। लेखा जोखा व गणना हेतु बड़ी परास मिल गयी। 

किन्तु प्रकृति व पूर्णाङ्क में बैर है। गुरु एक आदित्य से दूसरे के घर  ~३६५.२५ दिनों में न जा कर ~३६१.०३ दिनों में ही पहुँच जाते हैं। आप जानते ही हैं कि चान्द्रवर्ष अर्थात चन्द्रकलाओं वाले २९.५ दिनों के १२ मासों का वर्ष मात्र ३५४ दिनों का होता है तथा लगभग प्रत्येक ८ वर्ष में ३ मलमास लगा कर उसे सौरवर्ष के निकट लाया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप प्रत्येक १९वें वर्ष सौर दिनांक व चान्द्रमास तिथि सम्पाती हो जाते हैं। 

अर्थात् जो हमारा सौर-चान्द्र समन्वित वर्ष है, उसे लम्बी परास में सौर वर्ष माना जा सकता है। 

अब देखिये कि किसी वर्ष प्रतिपदा को आपका वर्ष और बार्हस्पत्य संवत्सर एक साथ आरम्भ हुये, परन्तु बार्हस्पत्य संवत्सर का अन्त वर्षान्त से ४.२३ दिन पहले ही हो गया। अगले वर्ष यह अन्तर हो जायेगा २×४.२३ दिन, उसके अगले वर्ष ३×४.२३ दिन... इसी प्रकार यह अन्तर बढ़ता जायेगा और लगभग ८५ या ८६ वर्षों पश्चात ऐसा होगा कि पीछे घटता नया संवत्सर नये वर्ष का स्पर्श ही नहीं कर पायेगा। ऐसा होने पर उसका लोप माना जाता है क्योकि नववर्ष लगने पर उससे आगे वाले संवत्सर का क्रम आ जाता है। चक्र ऐसे ही चलता रहता है।

एक अपर बात। 

६० संवत्सरों को २०-२० कर ब्रह्मा, विष्णु व रुद्र की ३ 'बीसियों' में बाँटा गया है। प्लवङ्ग से ही रुद्र की बीसी चल रही है (विक्रम २०७१, 2014-15 CE) से। रुद्र की बीसी को सामान्यतया ज्योतिषी विनाशी ही बताते हैं किन्तु संहार से निर्माण भी जुड़ा है। केन्द्र में दशक पश्चात हुये सत्ता परिवर्तन को देखें। विष्णु की बीसी में तो वेटिकनी मौनी राज था। उससे तो अच्छा ही है। 

दक्षिण भारत ने लगभग १२०० वर्ष पूर्व आर्यसिद्धान्त को अपनाया और बार्हस्पत्य संवत्सर चक्र से लोप प्रक्रिया का त्याग कर दिया। परिणामत: उनके संवत्सर नाम की संगति उत्तर के सूर्यसिद्धान्तीय पद्धति से नहीं बैठती।


यह भी है कि यदि वह आरम्भ बिन्दु जब बार्हस्पत्य संवत्सर एवं सौर-चांद्र वर्ष सम्पाती माने गये किसी पद्धति में भिन्न हुआ तो उसमें लोप हुआ संवत्सर आनन्द से भिन्न होगा।  


पुनश्च:


१९ वर्षीय सम्पात की बात की न! १९×५ = ९५ वर्षों का एक अन्य युग वैदिक याज्ञिक परम्परा में प्रयुक्त होता था। श्येनवेदी अर्थात पंख पसारे गरुळ की आकृति वाली महावेदी जोकि संवत्सर चक्र की रेखागणितीय प्रारूप होती, उसमें ९५ की संख्या भी मह्त्वपूर्ण थी। अपने आप में बहुत रोचक है जिसका सैद्धान्तिक ज्यौतिष से कोई सम्बन्ध नहीं।

✍🏻सनातन कालयात्री श्री गिरिजेश राव


दो प्रकार के बार्हस्पत्य संवत्सर हैं। दक्षिण भारत में पितामह सिद्धान्त के अनुसार सौर वर्ष को ही बार्हस्पत्य संवत्सर मानते हैं। उत्तर भारत में सूर्य सिद्धान्त के अनुसार बृहस्पति की मध्यम गति से एक राशि में चलने का समय बार्हस्पत्य संवत्सर मानते हैं। यह प्रायः ३६१ दिन ४ घण्टे का होता है, या ८५ सौर वर्ष में ८६ बार्हस्पत्य संवत्सर होते हैं। यदि वर्ष आरम्भ के संवत्सर को ही पूरे वर्ष माना जाए तो ८५ सौर वर्ष में एक क्षय संवत्सर होगा।

नव वर्ष आरम्भ-वर्ष गणना की भारत में २ पद्धति हैं। दिनों की क्रमागत गणना के अनुसार दिन (सूर्योदय से आगामी सूर्योदय) तथा सौर मास-वर्ष की गणना को शक कहते हैं। इसमें प्रत्येक सूर्योदय में (या मध्यरात्रि, सूर्यास्त, मध्याह्न) में १ दिन बदल जाता है, अतः गणना में सुविधा होती है। १-१ की गणना कुश द्वारा होती है, हर भाषा में १ का चिह्न कुश है। उनको मिलाने से वह शक्तिशाली होता है अतः उसे शक कहते हैं। 

पूजा या अन्य पर्व (सौर संक्रान्ति को छोड़ कर) चान्द्र तिथि के अनुसार होते हैं क्यों कि यह मन का कारक है-चन्द्रमा मनसो जातः (पुरुष सूक्त)। तिथि निर्णय के लिये शक दिनों के अनुसार तिथि की गणना होती है। १२ चान्द्र मास का वर्ष प्रायः ३५४ दिन का होता है, अतः ३० या ३१ मासों के बाद १ अधिक मास जोड़ते हैं, जिस मास में सूर्य की संक्रान्ति (राशि परिवर्तन नहीं होता है। यह दीर्घ काल में सौर मास वर्ष के अनुसार चलता है, या इसके अनुसार समाज चलता है, अतः इसे सम्वत्सर (सम्+ वत्+ सरति) कहते हैं। 

बार्हस्पत्य संवत्सर २ प्रकार का होता है। गुरु (बृहस्पति) ग्रह १२ वर्ष में सूर्य की १ परिक्रमा करता है। मध्यम गुरु १ राशि जितने समय में पार करता है वह ३६१.०२६७२१ दिन (सूर्य सिद्धान्त, अध्याय १४) का गुरु वर्ष कहा जाता है।  यह सौर वर्ष से ४.२३२ दिन छोटा है। अतः ८५+ ६५/२११ सौर वर्ष में ८६ + ६५/२११ बार्हस्पत्य वर्ष होते हैं। दक्षिण भारत में पैतामह सिद्धान्त के अनुसार सौर वर्ष को ही गुरु वर्ष कहा गया है। रामदीन पण्डित द्वारा संग्रहीत-बृहद्दैवज्ञरञ्जनम्, अध्याय ४


अतः कलि आरम्भ (१७-२-३१०२ ई.पू. उज्जैन मध्य रात्रि) के समय । उसके ६ मास ११ दिन (१८८ दिन बाद, २९.५ दिन का चान्द्र मास) २५-८-३१०२ ई.पू. को जय संवत्सर आरम्भ हुआ तो परीक्षित को राज्य दे कर पाण्डव अभ्युदय के लिये हिमालय गये। इस दिन से युधिष्ठिर जयाभ्युदय शक आरम्भ हुआ। दक्षिण भारत के पितामह सिद्धान्त के अनुसार कलि आरम्भ से प्रमाथी (१३वां) संवत्सर आरम्भ हुआ। इसके १२ वर्ष पूर्व से प्रभव वर्ष का चक्र आरम्भ हुआ था। अतः मेक्सिको के मय पञ्चाङ्ग का आरम्भ १२ वर्ष पूर्व ३११४ ई.पू. से हुआ था। दोनों प्रकार के बार्हस्पत्य वर्ष चक्र ५१०० (८५x ६०) वर्ष में मिल जाते हैं अतः मय पञ्चाङ्ग ५१०० वर्ष का था। 

 अधिकांश पञ्चाङ्ग निर्माता विक्रम संवत् तथा बार्हस्पत्य संवत्सर का अन्तर भूल गये हैं । गणना की कठिनाई के कारण अधिकतर पञ्चाङ्ग पूरे वर्ष यही संवत्सर मान लेते हैं तथा सङ्कल्प में भी यही पढ़ा जाता है। प्रमादी (४७ वां) है, इसे भूल से प्रमाथी लिख देते हैं जो १३ वां है।

✍🏻अरुण उपाध्याय


वर्ष २०७९ में संवत्सर नल है या अनल

विवेचन

आचार्य चन्द्रशेखर शास्त्री 


इस वर्ष 2079 मे संवत्सर का नाम "नल" या "अनल"

इस वर्ष संवत्सर के नाम पर विवाद चल रहा है नल या अन्य विभिन्न पंचांगकारो ने अपने ज्ञानानुसार अथवा फलित  ग्रंथानुसार संवत्सर का नाम निरूपित किया है।

इस तारतम्य प्राचीन ग्रंथो का अवलोकन करने पर पाया जो निम्नानुसार दर्शाया गया है।

संवत्सर का नाम नल

यह सर्वप्रथम सूर्य सिद्धांत मध्यमाधिकार, मांसाहारी, ज्योतिष सार ओर ज्योतिष रत्न  इनका संस्कृत श्लोक दर्शाता है कि "राक्षसोनल:" जिसके अनुसार नल नाम संवत्सर अनल दृष्टिगत होता है।

नारद संहिता, मुहुर्त गणपति, बाल बोध, ज्योतिष समुच्चय, भारतीय काल मीमांसा आदि ग्रंथो मे अनर्गल लिखा है। इसके संस्कृत श्लोक मे "राक्षसों यदि इस संस्कृत शब्द का अन्वय एवं संधि विच्छेद करे तो अनल नाम ही आता है।

इतने ग्रंथो का अवलोकन करने के बाद मात्र यह समझ आया कि इसमे भी विरोधाभास ही है।

लेकिन इतना अध्ययन करने के उपरांत भी मै किसी निष्कर्ष पर नही पहुंच सका कि संवत्सर का नाम इस वर्ष नल रहेगा या अनल रहेगा। कर्मकांडी ब्राह्मण किस नाम का उच्चारण करे या अगर दैनिक  पूजा संकल्प मे किस नाम का उच्चारण करे। 

विद्वानो से मार्गदर्शन की अपेक्षा के साथ।

आदरणीय आचार्य सुनील शर्मा जी की पोस्ट


हमारा प्रत्युत्तर

यह अनल नामक संवत्सर है। जो राक्षस के बाद आता है। जो विद्वान इसका अर्थ नल कर रहे हैं, वे हिंदी अर्थ में विकृत अनुवाद के कारण कर रहे हैं। वास्तव में यह अनल है। २८ वें श्लोक में स्पष्ट है - राक्षसोSनल:।


 यह समस्या वस्तुत: ज्योतिष की नहीं, व्याकरण की है। पाणिनीनीय सूत्रों के अनुसार ह्रस्व अकारांत शब्द के बाद विसर्ग हो तो विसर्ग का ओ हो जाता है।  राक्षस को राक्षसो हुआ है, क्योंकि उसके आगे ह्रस्व अकार उपस्थित है। 

इसकी सूत्र व्याख्या है 

विसर्ग (:) के बाद स्वर या व्यंजन आने पर विसर्ग में जो विकार होता है उसे विसर्ग-संधि कहते हैं। जैसे- मनः + अनुकूल = मनोनुकूल

व्याकरण की भाषा में इसे इस प्रकार कहेंगे।-


अतोरोरप्लुतादप्लुते।। 

सूत्र 1/1/1 अष्टाध्यायी सूत्रपाठः (पाणिनिनीय प्राच्या व्याकरण)

यदि विसर्ग से पहले व बाद में दोनों स्थानों पर ह्रस्व ‘अ’ आ जाए तो विसर्ग ‘ओ’ में परिवर्तित हो जाता है तथा बाद वाले ‘अ’ के स्थान पर ह्रस्व अ (ऽ) आ जाता है।

उदाहरण के लिए

कः + अपि = कोऽपि

सः + अपि = सोऽपि

सः + अहम् = सोऽहम्

देवः + अस्ति = देवोऽस्ति

नरः + अवदत् = नरोऽवदत्

छात्रः + अयम् = छात्रोऽयम्

इस प्रकार यह अनल नामक संवत्सर है। इसमें कोई संदेह नहीं है। जो कुछ ग्रंथों में नल नाम प्रकाशित हुआ है, वह भाषा विज्ञान की दृष्टि से अशुद्ध है। इसलिए शुद्ध शब्द केवल अनल है।

✍🏻आचार्य चंद्रशेखर शास्त्री

श्री पीतांबरा विद्यापीठ सीकरीतीर्थ

सोमवार, 28 मार्च 2022

प्राचीन भारतमें विनोद क्रीडा का विनोद

प्रस्तुति - अखौरी प्रमोद 


क्रीडा शव्द क्रीडृँ विहा॒रे अर्थ में मनोरञ्जन क्रिया वोध कराता है । शव्दरत्नावली में क्रीडा का अर्थ परिहास माना गया है । मेदिनीकोष में क्रीडा का अर्थ अवज्ञानम् कहा गया है । यह अवज्ञाकृत परिहास का वोध कराता है । क्रीडा में मनोरञ्जन के लिये प्रतिद्वन्दी को पराभूत करने का इच्छा रहता है – प्रतिशोध का नहीँ । प्रतिशोध के इच्छा रहने से वह द्वन्द वन जाता है – क्रीडा नहीँ । प्राचीन भारतमें क्रीडा विनोद के 20 विभाग किये जाते थे । यहाँ सोमदेव के मत से यह विभाग दर्शाया गया है ।


1. भूधर क्रीडा । (उपवन विधि) ।

2. वन क्रीडा ।

3. आन्दोलन क्रीडा । (झुला झुलना) ।

4. सेचन  (सेवन) क्रीडा । (प्रासाद मध्यस्थ जलक्रीडा) ।

5. तोय क्रीडा ।

6. शाद्वल क्रीडा । (शरत् ऋतु में वन विहार) ।

7. वालुका क्रीडा ।

8. ज्योत्स्ना क्रीडा ।

9. सस्य क्रीडा ।

10. मदिरापान क्रीडा ।

11. प्रहेलिका क्रीडा ।

12. चतुरङ्ग क्रीडा ।

13. पाशक क्रीडा ।

14. वराटिका क्रीडा ।

15. फणिदा क्रीडा । (हस्तलाघव क्रिया) । 

16. फञ्जिका क्रीडा । (एक क्रीडा जो कृष्ण भगवान खेला करते थे) ।

17. तिमिर क्रीडा । (वन्द गृहमें लुका छिपि) ।

18. वीर क्रीडा । (तान्त्रिक सिद्धि लाभ के लिये क्रिया) ।

✍🏻बसुदेव मिश्रा


गाथा गेंद की... खेलते हुए सुनियेगा


बॉल हमारी बहुत जानी पहचानी है। बॉल यानी गोल, गोल यानी बॉल। दादी-दादा खेले। माता-पिता खेले। हम खेले और हमारे बाद बेटी-बेटे। बॉल सबकी प्रिय से भी प्रिय है। कई खेलों का आधार है बॉल। यदि बॉल है तो खेल है, बस हाथ में आ जाए तो खेलने की तरकीब हम ढूंढ ही लेते हैं। बाॅल पकड़ी जाती है। फेंकी जाती है। उछाली और झेली जाती है। धकेली तथा चलाई भी जाती है... इस बाॅल ने हर सभ्‍यता और संस्‍कृति में अपनी मौजूदगी दिखाई है, चाहे माया जैसी सभ्‍यता ही क्‍यों न हो, जिसकी तस्‍वीर मिली है। अन्‍यत्र उत्‍खननों में साबुत बॉलें मिली हैं....। नाम तो है इसका गेंद या गेंदू मगर संस्‍कृत में कन्‍दुक कहा जाता है। यह 'क' हमारे मुखलाघव के लिए 'ग' में बदल गया है, वैसे ही जैसे प्रकट को प्रगट बोलने में सहुलियत होती है, कुछ नियमों के तहत प्राक् भी प्राग् हाे जाता है..।


नींबू, नारियल, कपित्‍थ या कबिती और बेल जैसे किसी फल को देखकर बॉल का निर्माण किया गया होगा। बात गेंद की हो रही है। उत्‍खननों, खासकर हड़प्‍पाकालीन कानमेर-गुजरात याद आता है जहां बजने वाले गेंद भी मिले हैं..। कहीं दौड़ लगवाने वाली होने से इसका नाम दाेड़ी या दड़ी पड़ गया तो कहीं डोट या पीटने वाली होने से डोट कहलाई...।


यो तो बालकों को यह बहुत रुचिकर लगती है। हरिवंश में श्रीकृष्‍ण के कंदुक खेल पर तो कई श्‍लोक मिल जाते है, उसको खोजने की आड़ में कालिया नाथ लिया गया...। नारियों ने भी गेंदों की कई क्रीड़ाएं दिखाई हैं तभी तो 'मूंछों पर नींबू ठहराने' जैसी कहावत की तरह 'कूर्पर (कोहनी) पर कंदुक दिखाना' जैसी कहावत भी रही होगी। क्‍यों नहीं, कुषाणकालीन एक वेदिका स्‍तंभ पर एेसा मोटिफ भी है, जिसमें नायिका अपनी कोहनी पर कंदुक को लिए कौतुक रच रही है। 


मृच्‍छकटिकं के रचयिता शूद्रक जैसे रचनाकार को यह खेल इतना भाया कि अपने एक भाण में उन्‍होंने विट के मुंह से इसकी प्रशंसा करवाई कि इस खेल में शरीर की कई क्रियाएं संपन्‍न होती हैं। इन अंग संचालनों में नत, उन्‍नत, आवर्तन, उत्‍पतन, अपसर्पण, प्रधावन वगैरह वगैरह। विट स्‍वयं इन संचालनों को पसंद करता था। उसने सखी-सहेलियों के साथ प्रियंगुयष्टिका नामक एक नायिका की कंदुक क्रीड़ा का वर्णन करते हुए सौ बार गेंद उछालने पर जीतकर खिताब लेने का संदर्भ दिया है... गुप्‍तकाल की यह दास्‍तान है। अनेकानेक मंदिरों में यह क्रीड़ा अनेकत्र देखी जा सकती है। ऐसी नायिकाओं को 'कंदुकक्रीड़ाकर्त्री' के रूप में शिल्‍पशास्‍त्रों में जाना गया है। 

है न नन्‍हीं सी गेंद की गौरवशाली गाथा...।


 वीटा क्रीड़ा जिसे आजकल गुल्ली-डंडे का खेल कहते हैं। इसका वर्णन 'महाभारत' के आदिपर्व (131/17)मे आया है

गुल्ली डंडा :

काष्ठयुग का खेल। 

वीटा = कनिका अंगुल कम अंगूठे तक का प्रमाण, ये हमारे यहां कहते है। इसी प्रमाण की गुल्ली होती है...


 गिल्ली : उत्तोलक व गणन खेल

#गिच_पिच

गिल्ली-डंडा का खेल ! 

पहले टेल ! 

फिर पेल ! 

फिर नेल ! 

और, फिर मेल। 

संक्रान्ति आती है और खेलों का उत्सव हो जाता है। कहीं पतंग तो कहीं सितोलिया, कहीं मार दड़ी तो कहीं गिल्ली और डंडा। गिल्ली को गुल्ली भी कहते हैं। यह बलिस्त प्रमाण लकड़ी का पर्याय है और कोश में संकलित है।


यूं तो महाभारत में इस गिल्ली-डंडा का "वीटा" नाम से विवरण है लेकिन प्रमाण गिल्ली को शुंगकाल तक ले जाते हैं। बड़ा सच ये भी है कि यह उस काल का खेल है जबकि मानव धातु का प्रयोग करना नहीं सीखा था और लकड़ी का बहुत से क्रिया व्यापार में उपयोग करता था। शालभंजन (डालभांग), शाखकाष्ठ (डाल कामड़ी) जैसे कई खेल है न!


गिल्ली यानी डंडे का टुकड़ा, उसका तीसरा प्रमाण (1: 3)। डंड यानी एक हाथ = 24 अंगुल। कुछ छोटी भी हो सकती है। मगर, तृतीयांश होने पर पीटे जाने पर उछलती अच्छी है। डाट-पाट में उछलती गिल्ली कहां तक पहुंचाई गई, उस आधार पर खेल स्थल से दंड प्रमाण भूमि का अनुमान लगाया जाता है। यह प्रमाण भूमि ही दूसरे पक्ष को अपनी बारी में खेलकर उतारनी पड़ती है।

गिल्ली खेलने के अपने अपने तरीके हैं : 


1. छालण गिल्ली :

इस में गिच पर रखकर दंड से उछाला जाता है। गिच, जिसे गप्पी भी कहा जाता है, गिल्ली के बराबर जमीन पर किया गया छेद है जिस पर आड़ी रखकर गिल्ली को दंडे से इतना जोर से उछाला जाता है कि वह फर्लांग भर दूर जा गिरे। उछलने से पहले खिलाड़ी दूसरे पक्ष वालों से बोलता है : रेडो। यानी सावधान ! कोई खिलाड़ी अगर गिरती गिल्ली को झेल ले तो उछालने वाला खेल से बाहर हो जाता है।


2. अलट गिल्ली

छोटे बच्चे पहले अनुसार ही गिल्ली को गिच से उछालते हैं और या तो उसे झेलने की कोशिश करते या गिरी गिल्ली को गिच पर रखे डंडे तक फेंकते है। यदि डंडे को अलट (छू) जाए तो उछालने वाला बाहर और नहीं छूए तो वह पदाएगा। 

वह बारी बारी डंडे से गिल्ली को उछालकर उसे विपरीत दिशा में पहुंचाता है। जहां कहीं वह चूक जाता है, वहीं से गिच तक दंड प्रमाण को मांगा जाता है...।

गिल्ली चल्ली पल्ली मार।

पल्ली मार, टल्ली मार।

दिल्ली द्वार, हरिद्वार...। 

गिल्ली को लेकर दोबारा गिच के पिच पर पहुंचाने के लिए दूसरे पक्ष का एक खिलाड़ी एक ही टांग पर कूदता हुआ बढ़ता है। यह 'पदाना' है। सजा से कम नहीं, मगर बात मजे की है और इस मजे ने ही गिल्ली डंडा को मजेदार बना रखा है।

है न गिल्ली : गप्पी और गिच-पिच का खेल ! 

हां, तो उठाइये डंडा और उछालिए गिल्ली ... :)

जय-जय।

बालमन रंजक क्रीडनक

#toy_n_toy

बच्चों के लिये माँ के बाद सबसे बड़ा आकर्षण होते हैं खिलौने। खेलकं, खेलां, खिलूने या रमकड़े। टॉय या क्रीड़नक। दुनिया की हर भाषा में खिलौने की पहचान के लिए कोई न कोई शब्द है यानी कि हर सभ्यता और संस्कृति में खिलूने, रमकड़े रहे हैं। माँ ने हर युग में शिशु रंजन के लिए खिलौने दिए। अपने से चिपके रहने की बजाय शिशु का ध्यान खिलौने की आड़ में बांटा और उसकी कल्पना को पंख दिए।


उत्खनन में प्रायः दो ढाई हज़ार वर्ष पुराने, जबकि मौर्यों से लेकर शुंग-कुषाण काल रहा, के खिलौने खास तौर पर मिलते हैं। इस काल में खिलौने बने भी बहुत और अनूठे भी रहे। आपात काल होने पर भी लोग खिलौने खरीद लेते थे, शायद बच्चों की संख्या ज्यादा हो। हारिति का आख्यान बताता है कि वह सौ संतान वाली थी और उसे एक भी बच्चे का खो जाना नागवार गुजरता था। 


उस काल में राजा को भी यह अनुमति थी कि वह अपने गुजारे के लिए खिलौने बनाये और बेचे। अर्थशास्त्र और महाभाष्य में ये सन्दर्भ है और महाभारत इसकी पुष्टि करता है कि व्यक्ति अपने और पराये जिस भी शिशु से लगाव रखता हो, उसके लिए खिलौने लेकर जाये।

इसी काल को प्रगट करने वाला महान आयुर्वेदिक ग्रन्थ है : चरक संहिता। चरक ने शिशु रंजन पर बड़ा ध्यान दिया और कहा है कि तब अथर्वेदीय विधियां बताकर पंडित लोग बच्चों के लिए मणियां और औषध की सलाह देते थे। 


खिलौने बनाने और उनका प्रयोग करने के क्रम में यह निर्देश था : क्रीडनकानि खलु कुमारस्य विचित्राणि...। 


1. खिलौने चित्र विचित्र, अनेक तरह के हों,

2. खिलौने आवाज़ करने वाले हों,

3. सुन्दर लगने वाले और हल्के हों

4. धारदार फलक, जानलेवा न हों

5. मुँह में धुसने वाले न हों,

6. भयावह नहीं लगने चाहिए।


है न आवश्यक बात। आज खिलौनों का बाजार लाखों, करोडों का है और बच्चों के लिए महंगे से महंगे खिलौने मिलते हैं मगर अब चरक की अपेक्षा वाले खिलौने कहाँ! वैसे बच्चे भी नहीं। हम इमली के बीज के खेल से लेकर कंचे, लट्टू, चकरी, झुंझने, झूमर, गाड़ी, हाथी घोड़े, गाय बकरी और बिल्ली से खुश हो जाते लेकिन अब वह बात नहीं, जब निरामय, निरोग शिशु के साथ निर्भय, निष्कंटक, निरूपद्रव, निस्तेज किंतु निराले खिलौने बनाये, मंगवाये, लाये, सजाये, धजाये जाते थे...।

आप भी तो अपने खिलौने की बात बताएं 😊

जय जय।


गेंदनृत्य : कितना ज्ञात


मनोकामना पूर्ति के लिए नृत्य करने की परम्परा उतनी ही  पुरानी है जितना शैलाश्रयों में मानव का निवास। यह किसी वस्तु की प्राप्ति पर उल्लास का उत्सवी अवसर भी होता है और मनौती का भाव भी, जैसा कि संस्कृत कवियों ने सायास माना है। ऐसा ही एक नृत्य है : कंदुक नृत्य अर्थात् गेंद नाच। 


इस नृत्य के विषय में हमें कोई जानकारी नहीं है लेकिन सर्कस में गेंद घूमाने वाली बालाएं तो याद आती ही हैं जो संतुलन से गेंद के कौतुक दिखाकर दर्शकों की पलकें नहीं गिरने देती, खुद भी पलकों के धनुष तानकर थिरकती हैं!  कोणार्क और कोल्हापुर से लेकर मेवाड़ के नागदा और मध्य भारत के खजुराहो तक मन्दिरों के जंघा भागों पर अलस कन्याओं के साथ कंदुक धारिणियों की मूर्तियां मिलती हैं, लेकिन क्यों? गेंद कभी कन्याओं का खेल रहा और खेल ही नहीं, नृत्य भी रहा। लंबे समय से नाम भी रखें जाते हैं : गेंदकुंवर, गेंदीबाई आदि।


कवि दंडी के वर्णन के लिए जिन्होंने पूरा ग्रंथ पढ़ा है, वे जान सकते हैं कि गेंद का खेल क्या है? कैसे होता है? कहां-कहां होता है और उसके पीछे का मनोगत क्या होता है? प्रत्येक कृतिका नक्षत्र में कंदुक नृत्य होता था और विंध्यवासिनी देवी के मन्दिर में होता था। ऐसे आयोजन को "कंदुकोत्सव" के नाम से जाना जाता था। 


इस नृत्य में गेंद को संचालित करने के स्तर, विराम और सोपानों की बड़ी शब्दावली काम आती थी जिसे जानकर कौतुक होता है : हस्तक्रीडनक, अमंदेन, अतिशयेन, प्रसृता, उन्नीय, चटुल्या, भ्रमरमालय, स्तबकमिव, अपतन्त, गगनतल। गति के लिए जो शब्द आए हैं, वे हैं : मध्य, विलंबित, द्रुतलय, मृदुमृदु, प्रहरान्ती आदि लगभग बीस शब्द। 


दंडी ने कन्दुक के खेल, नृत्य के लिए किसी शास्त्रीय नियमावली का भी उल्लेख किया है : कन्दुकतन्त्र। उसमें आए चूर्णक्रिया, दशपद चंक्रमण, निश्चल, निर्दयप्रहार, मंगलिक भ्रमण, पंचावर्त प्रहार जैसे दर्जनों शब्द लिखे हैं। कौन जानता है उन सबका यथा रूप आशय? मैं तो बस पढ़कर ही चकित हूं...

✍🏻डॉ श्री कृष्ण जुगनू

मंगलवार, 22 मार्च 2022

वास्तव ऋषि मुनि ही थे वैज्ञानिक.

         जानिए उनके  दिव्य आविष्कार


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भारत की धरती को ऋषि, मुनि, सिद्ध और देवताओं की भूमि के नाम से पुकारा जाता है। यह कई तरह के विलक्षण ज्ञान व चमत्कारों से पटी पड़ी है। सनातन धर्म वेदों को मानता है। प्राचीन ऋषि-मुनियों ने घोर तप, कर्म, उपासना, संयम के जरिए वेदों में छिपे इस गूढ़ ज्ञान व विज्ञान को ही जानकर हजारों साल पहले कुदरत से जुड़े कई रहस्य उजागर करने के साथ कई आविष्कार किये व युक्तियां बताई। ऐसे विलक्षण ज्ञान के आगे आधुनिक विज्ञान भी नतमस्तक होता है।


कई ऋषि-मुनियों ने तो वेदों की मंत्र-शक्ति को कठोर योग व तपोबल से साधकर ऐसे अद्भुत कारनामों को अंजाम दिया कि बड़े-बड़े राजवंश व महाबली राजाओं को भी झुकना पड़ा।

 

★ भास्कराचार्य :- आधुनिक युग में धरती की गुरुत्वाकर्षण शक्ति (पदार्थों को अपनी ओर खींचने की शक्ति) की खोज का श्रेय न्यूटन को दिया जाता है। किंतु बहुत कम लोग जानते हैं कि गुरुत्वाकर्षण का रहस्य न्यूटन से भी कई सदियों पहले भास्कराचार्यजी ने उजागर किया। भास्कराचार्यजी ने अपने ‘सिद्धांतशिरोमणि’ ग्रंथ में पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के बारे में लिखा है कि ‘पृथ्वी आकाशीय पदार्थों को विशिष्ट शक्ति से अपनी ओर खींचती है। इस वजह से आसमानी पदार्थ पृथ्वी पर गिरता है'।

★ आचार्य कणाद :- कणाद परमाणु की अवधारणा के जनक माने जाते हैं। आधुनिक दौर में अणु विज्ञानी जॉन डाल्टन के भी हजारों साल पहले महर्षि कणाद ने यह रहस्य उजागर किया कि द्रव्य के परमाणु होते हैं।


उनके अनासक्त जीवन के बारे में यह रोचक मान्यता भी है कि किसी काम से बाहर जाते तो घर लौटते वक्त रास्तों में पड़ी चीजों या अन्न के कणों को बटोरकर अपना जीवनयापन करते थे। इसीलिए उनका नाम कणाद भी प्रसिद्ध हुआ।

 

★ ऋषि विश्वामित्र :- ऋषि बनने से पहले विश्वामित्र क्षत्रिय थे। ऋषि वशिष्ठ से कामधेनु गाय को पाने के लिए हुए युद्ध में मिली हार के बाद तपस्वी हो गए। विश्वामित्र ने भगवान शिव से अस्त्र विद्या पाई। इसी कड़ी में माना जाता है कि आज के युग में प्रचलित प्रक्षेपास्त्र या मिसाइल प्रणाली हजारों साल पहले विश्वामित्र ने ही खोजी थी।

ऋषि विश्वामित्र ही ब्रह्म गायत्री मंत्र के दृष्टा माने जाते हैं। विश्वामित्र का अप्सरा मेनका पर मोहित होकर तपस्या भंग करना भी प्रसिद्ध है। शरीर सहित त्रिशंकु को स्वर्ग भेजने का चमत्कार भी विश्वामित्र ने तपोबल से कर दिखाया।

 

★ ऋषि भारद्वाज :- आधुनिक विज्ञान के मुताबिक राइट बंधुओं ने वायुयान का आविष्कार किया। वहीं हिंदू धर्म की मान्यताओं के मुताबिक कई सदियों पहले ही ऋषि भारद्वाज ने विमानशास्त्र के जरिए वायुयान को गायब रने के असाधारण विचार से लेकर, एक ग्रह से दूसरे ग्रह व एक दुनिया से दूसरी दुनिया में ले जाने के रहस्य उजागर किए। इस तरह ऋषि भारद्वाज को वायुयान का आविष्कारक भी माना जाता है।

 

★ गर्ग मुनि :- गर्ग मुनि नक्षत्रों के खोजकर्ता माने जाते हैं। यानी सितारों की दुनिया के जानकार।

ये गर्गमुनि ही थे, जिन्होंने श्रीकृष्ण एवं अर्जुन के बारे में नक्षत्र विज्ञान के आधार पर जो कुछ भी बताया, वह पूरी तरह सही साबित हुआ।  कौरव-पांडवों के बीच महाभारत युद्ध विनाशक रहा। इसके पीछे वजह यह थी कि युद्ध के पहले पक्ष में तिथि क्षय होने के तेरहवें दिन अमावस थी। इसके दूसरे पक्ष में भी तिथि क्षय थी। पूर्णिमा चौदहवें दिन आ गई और उसी दिन चंद्रग्रहण था। तिथि-नक्षत्रों की यही स्थिति व नतीजे गर्ग मुनिजी ने पहले बता दिए थे।

 

★ महर्षि सुश्रुत :- ये शल्यचिकित्सा विज्ञान यानी सर्जरी के जनक व दुनिया के पहले शल्यचिकित्सक (सर्जन) माने जाते हैं। वे शल्यकर्म या आपरेशन में दक्ष थे। महर्षि सुश्रुत द्वारा लिखी गई ‘सुश्रुतसंहिता’ ग्रंथ में शल्य चिकित्सा के बारे में कई अहम ज्ञान विस्तार से बताया है। इनमें सुई, चाकू व चिमटे जैसे तकरीबन 125 से भी ज्यादा शल्यचिकित्सा में जरूरी औजारों के नाम और 300 तरह की शल्यक्रियाओं व उसके पहले की जाने वाली तैयारियों, जैसे उपकरण उबालना आदि के बारे में पूरी जानकारी बताई गई है। जबकि आधुनिक विज्ञान ने शल्य क्रिया की खोज तकरीबन चार सदी पहले ही की है। माना जाता है कि महर्षि सुश्रुत मोतियाबिंद, पथरी, हड्डी टूटना जैसे पीड़ाओं के उपचार के लिए शल्यकर्म यानी आपरेशन करने में माहिर थे। यही नहीं वे त्वचा बदलने की शल्यचिकित्सा भी करते थे।

 

★ आचार्य चरक :- ‘चरकसंहिता’ जैसा महत्वपूर्ण आयुर्वेद ग्रंथ रचने वाले आचार्य चरक आयुर्वेद विशेषज्ञ व ‘त्वचा चिकित्सक’ भी बताए गए हैं। आचार्य चरक ने शरीरविज्ञान, गर्भविज्ञान, औषधि विज्ञान के बारे में गहन खोज की। आज के दौर में सबसे ज्यादा होने वाली बीमारियों जैसे डायबिटीज, हृदय रोग व क्षय रोग के निदान व उपचार की जानकारी बरसों पहले ही उजागर कर दी।

 

★ पतंजलि :- आधुनिक दौर में जानलेवा बीमारियों में एक कैंसर या कर्करोग का आज उपचार संभव है। किंतु कई सदियों पहले ही ऋषि पतंजलि ने कैंसर को भी रोकने वाला योगशास्त्र रचकर बताया कि योग से कैंसर का भी उपचार संभव है।

 

★ बौद्धयन :- भारतीय त्रिकोणमितिज्ञ के रूप में जाने जाते हैं। कई सदियों पहले ही तरह-तरह के आकार-प्रकार की यज्ञवेदियां बनाने की त्रिकोणमितिय रचना-पद्धति बौद्धयन ने खोजी। दो समकोण समभुज चौकोर के क्षेत्रफलों का योग करने पर जो संख्या आएगी, उतने क्षेत्रफल का ‘समकोण’ समभुज चौकोन बनाना और उस आकृति का उसके क्षेत्रफल के समान के वृत्त में बदलना, इस तरह के कई मुश्किल सवालों का जवाब बौद्धयन ने आसान बनाया।

 

★ महर्षि दधीचि :- महातपोबलि और शिव भक्त ऋषि थे। संसार के लिए कल्याण व त्याग की भावना रख वृत्तासुर का नाश करने के लिए अपनी अस्थियों का दान कर महर्षि दधीचि पूजनीय व स्मरणीय हैं।

 

इस संबंध में पौराणिक कथा है कि एक बार देवराज इंद्र की सभा में देवगुरु बृहस्पति आए। अहंकार से चूर इंद्र गुरु बृहस्पति के सम्मान में उठकर खड़े नहीं हुए। बृहस्पति ने इसे अपना अपमान समझा और देवताओं को छोड़कर चले गए। देवताओं को विश्वरूप को अपना गुरु बनाकर काम चलाना पड़ा, किंतु विश्वरूप देवताओं से छिपाकर असुरों को भी यज्ञ-भाग दे देता था। इंद्र ने उस पर आवेशित होकर उसका सिर काट दिया। विश्वरूप, त्वष्टा ऋषि का पुत्र था। उन्होंने क्रोधित होकर इंद्र को मारने के लिए महाबली वृत्रासुर पैदा किया। वृत्रासुर के भय से इंद्र अपना सिंहासन छोड़कर देवताओं के साथ इधर-उधर भटकने लगे।

 

ब्रह्मादेव ने वृत्तासुर को मारने के लिए अस्थियों का वज्र बनाने का उपाय बताकर देवराज इंद्र को तपोबली महर्षि दधीचि के पास उनकी हड्डियां मांगने के लिये भेजा। उन्होंने महर्षि से प्रार्थना करते हुए तीनों लोकों की भलाई के लिए उनकी अस्थियां दान में मांगी। महर्षि दधीचि ने संसार के कल्याण के लिए अपना शरीर दान कर दिया। महर्षि दधीचि की हड्डियों से वज्र बना और वृत्रासुर मारा गया। इस तरह एक महान ऋषि के अतुलनीय त्याग से देवराज इंद्र बचे और तीनों लोक सुखी हो गए।

 

★ महर्षि अगस्त्य :- वैदिक मान्यता के मुताबिक मित्र और वरुण देवताओं का दिव्य तेज यज्ञ कलश में मिलने से उसी कलश के बीच से तेजस्वी महर्षि अगस्त्य प्रकट हुए। महर्षि अगस्त्य घोर तपस्वी ऋषि थे। उनकेi तपोबल से जुड़ी पौराणिक कथा है कि एक बार जब समुद्री राक्षसों से प्रताड़ित होकर देवता महर्षि अगस्त्य के पास सहायता के लिए पहुंचे तो महर्षि ने देवताओं के दुःख को दूर करने के लिए समुद्र का सारा जल पी लिया। इससे सारे राक्षसों का अंत हुआ।

 

★ कपिल मुनि :- भगवान विष्णु के 24 अवतारों में से एक अवतार माने जाते हैं। इनके पिता कर्दम ऋषि थे। इनकी माता देवहूती ने विष्णु के समान पुत्र की चाहत की। इसलिए भगवान विष्णु खुद उनके गर्भ से पैदा हुए। कपिल मुनि ‘सांख्य दर्शन’ के प्रवर्तक माने जाते हैं। इससे जुड़ा प्रसंग है कि जब उनके पिता कर्दम संन्यासी बन जंगल में जाने लगे तो देवहूती ने खुद अकेले रह जाने की स्थिति पर दुःख जताया। इस पर ऋषि कर्दम देवहूती को इस बारे में पुत्र से ज्ञान मिलने की बात कही। वक्त आने पर कपिल मुनि ने जो ज्ञान माता को दिया, वही ‘सांख्य दर्शन’ कहलाता है।

इसी तरह पावन गंगा के स्वर्ग से धरती पर उतरने के पीछे भी कपिल मुनि का शाप भी संसार के लिए कल्याणकारी बना। इससे जुड़ा प्रसंग है कि भगवान राम के पूर्वज राजा सगर के द्वारा किए गए यज्ञ का घोड़ा इंद्र ने चुराकर कपिल मुनि के आश्रम के करीब छोड़ दिया। तब घोड़े को खोजते हुआ वहां पहुंचे राजा सगर के साठ हजार पुत्रों ने कपिल मुनि पर चोरी का आरोप लगाया। इससे कुपित होकर मुनि ने राजा सगर के सभी पुत्रों को शाप देकर भस्म कर दिया। बाद के कालों में राजा सगर के वंशज भगीरथ ने घोर तपस्या कर स्वर्ग से गंगा को जमीन पर उतारा और पूर्वजों को शापमुक्त किया।

 

★ शौनक ऋषि :- वैदिक आचार्य और ऋषि शौनक ने गुरु-शिष्य परंपरा व संस्कारों को इतना फैलाया कि उन्हें दस हजार शिष्यों वाले गुरुकुल का कुलपति होने का गौरव मिला। शिष्यों की यह तादाद कई आधुनिक विश्वविद्यालयों की तुलना में भी कहीं ज्यादा थी।

 

★ ऋषि वशिष्ठ :- वशिष्ठ ऋषि राजा दशरथ के कुलगुरु थे। दशरथ के चारों पुत्रों राम, लक्ष्मण, भरत व शत्रुघ्न ने इनसे ही शिक्षा पाई। देवप्राणी व मनचाहा वर देने वाली कामधेनु गाय वशिष्ठ ऋषि के पास ही थी।

 

★ कण्व ऋषि :- प्राचीन ऋषियों-मुनियों में कण्व का नाम प्रमुख है। इनके आश्रम में ही राजा दुष्यंत की पत्नी शकुंतला और उनके पुत्र भरत का पालन-पोषण हुआ था। माना जाता है कि उसके नाम पर देश का नाम भारत हुआ। सोमयज्ञ परंपरा भी कण्व की देन मानी जाती है। (स्त्रोत : हिन्दू जन जागृति)

 

विश्व में जितनी भी खोजे हुई हैं वो हमारे ऋषि-मुनियों ने ध्यान की गहराई में जाकर खोजी हैं जिनकी आज के वैज्ञानिक कल्पना भी नही कर सकते हैं।

 

आज ऋषि-मुनियों की परम्परा अनुसार साधु-संत चला रहे हैं । उनको राष्ट्र विरोधी तत्वों द्वारा षडयंत्र के तहत बदनाम किया जा रहा है और जेल भिजवाया जा रहा है । अतः देशवासी षडयंत्र को समझें और उसका विरोध करें ।

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रविवार, 20 मार्च 2022

माने दीवाली, नाग दीवाली और होली एक ही वार में पड़ती हैं।

 पञ्चाङ्ग गणित का एक सूत्र है कि नाग फाग दिवाली होती एक ही वारी । 

माने दीवाली, नाग दीवाली और होली  एक ही वार  में पड़ती हैं।


फाल्गुने पूर्णिमायां तु होलिकापूजनं मतम् ।। -७६ ।।


संचयं सर्वकाष्ठानामुपलानां च कारयेत् ।।

तत्राग्निं विधिवद्ध्रुत्वा रक्षोघ्नैर्मंत्रविस्तरैः ।। -७७ ।।


"असृक्पाभयसंत्रस्तैः कृता त्वं होलि बालिशैः ।।

अतस्त्वां पूजयिष्यामि भूते भूतिप्रदा भव"।। -७८ ।।


इति मंत्रेण सन्दीप्य काष्ठादिक्षेपणैस्ततः ।।

परिक्रम्योत्सवः कार्य्यो गीतवादित्रनिःस्वनैः ।। -७९ ।।


संवत्सरस्य दाहोऽयं कामदाहो मतांतरे ।।

इति जानीहि विप्रेंद्र लोके स्थितिरनेकधा ।। -८१ ।

(श्रीबृहन्नारदीयपुराणे पूर्वभागे बृहदुपाख्याने चतुर्थपादे द्वादशमासस्थितपौर्णमास्य मावास्याव्रतकथनं नाम चतुर्विंशत्यधिकशतमोऽध्यायः ।)


हुलि  है। 

हुलि होमेऽदने ।


रूप कितने ही हो जायें 

हुलि होली होरी ...


    होलाका प्राच्याभिमानिभिरनुष्ठीयते होलाका च वसन्तोत्सवविशेषः हुलीतिप्रसिद्धः ।


बर्मा/म्याँमार में Tagu माह में Thingyang उत्सव मनाया जाता है, नववर्षागमन जलक्रीड़ा के साथ।

✍🏻अत्रि विक्रमार्क अन्तर्वेदी 


होली-(क) शब्द का अर्थ- इसका मूल रूप हुलहुली (शुभ अवसर की ध्वनि) है जो ऋ-ऋ-लृ का लगातार उच्चारण है। आकाश के ५ मण्डल हैं, जिनमें पूर्ण विश्व तथा ब्रह्माण्ड हमारे अनुभव से परे है। इन मण्डलों के देवता हैं-स्वयम्भू -ब्रह्मा, परमेष्ठी या ब्रह्माण्ड-विष्णु, सौर मण्डल-इन्द्र, चान्द्र मण्डल (चन्द्र कक्षा का गोल)-सोम, पृथ्वी-अग्नि।

स ऐक्षत प्रजापतिः (स्वयम्भूः) इमं वा आत्मनः प्रतिमामसृक्षि। आत्मनो ह्येतं प्रतिमामसृजत। ता वा एताः प्रजापतेरधि देवता असृज्यन्त-(१) अग्निः (तद् गर्भितो भूपिण्डश्च), (२) इन्द्रः (तद् गर्भितः सूर्यश्च), सोमः (तद् गर्भितः चन्द्रश्च), (४) परमेष्ठी प्राजापत्यः (स्वायम्भुवः)-शतपथ ब्राह्मण (११/६/१/१२-१३)

स्वयम्भू -शतपथ बाह्मण (६/१/१/८), परमेष्ठी-वारि वा अप् रूप-शतपथ बाह्मण (६/१/१/९-१०), सूर्य त्रयी विद्या (श्रुतेः त्रीणि पदाः)-शतपथ बाह्मण (११/६/१/१), भूमण्डल भूपिण्डः-शतपथ बाह्मण (६/१/२/१), भूक्षेत्र-शतपथ बाह्मण (६/१/२/३), चन्द्र मण्डल-शतपथ बाह्मण (६/१/२/४)

 सूर्य, चन्द्र, पृथ्वी का अनुभव होता है, जो शिव के ३ नेत्र हैं। इनके चिह्न ५ मूल स्वर हैं-अ, इ, उ, ऋ, लृ। शिव के ३ नेत्रों का स्मरण ही होली है। 

अग्निर्मूर्धा चक्षुषी चन्द्र सूर्यौ दिशः श्रोत्रे वाग्विवृताश्च वेदाः। (मुण्डक उपनिषद्, २/१/४)   

चन्द्रार्क वैश्वानर लोचनाय, तस्मै वकाराय नमः शिवाय (शिव पञ्चाक्षर स्तोत्र)

विजय के लिये उलुलय (होली) का उच्चारण होता है-

उद्धर्षतां मघवन् वाजिनान्युद वीराणां जयतामेतु घोषः। 

पृथग् घोषा उलुलयः एतुमन्त उदीरताम्। (अथर्व, ३/१९/६)

(ख) अग्नि का पुनः ज्वलन-सम्वत्सर रूपी अग्नि वर्ष के अन्त में खर्च हो जाती है, अतः उसे पुनः जलाते हैं, जो सम्वत्-दहन है-

अग्निर्जागार तमृचः कामयन्ते, अग्निर्जागार तमु सामानि यन्ति।

अग्निर्जागार तमयं सोम आह-तवाहमस्मि सख्ये न्योकाः। (ऋक्, ५/४४/१५)

यह फाल्गुन मास में फाल्गुन नक्षत्र (पूर्णिमा को) होता है, इस नक्षत्र का देवता इन्द्र है-

फाल्गुनीष्वग्नीऽआदधीत। एता वा इन्द्रनक्षत्रं यत् फाल्गुन्यः। अप्यस्य प्रतिनाम्न्यः। (शतपथ ब्राह्मण, २/१/२/१२)

मुखं वा एतत् सम्वत्सररूपयत् फाल्गुनी पौर्णमासी। (शतपथ ब्राह्मण, ६/२/२/१८)

सम्वत्सर ही अग्नि है जो ऋतुओं को धारण करता है-

सम्वत्सरः-एषोऽग्निः। स ऋतव्याभिः संहितः। सम्वत्सरमेवैतत्-ऋतुभिः-सन्तनोति, सन्दधाति। ता वै नाना समानोदर्काः। ऋतवो वाऽअसृज्यन्त। ते सृष्टा नानैवासन्। तेऽब्रुवन्-न वाऽइत्थं सन्तः शक्ष्यामः प्रजनयितुम्। रूपैः समायामेति। ते एकैकमृतुं रूपैः समायन्। तस्मादेकैकस्मिन्-ऋतौ सर्वेषां ऋतूनां रूपम्। (शतपथ ब्राह्मण ८/७/१/३,४)

जिस ऋतु में अग्नि फिर से बसती है वह वसन्त है-

यस्मिन् काले अग्निकणाः पार्थिवपदार्थेषु निवसन्तो भवन्ति, स कालः वसन्तः।

फल्गु = खाली, फांका। वर्ष अग्नि से खाली हो जाता है, अतः यह फाल्गुन मास है। अंग्रेजी में भी होली (Holy = शिव = शुभ) या हौलो (hollow = खाली) होता है। वर्ष इस समय पूर्ण होता है अतः इसका अर्थ पूर्ण भी है। अग्नि जलने पर पुनः विविध (विचित्र) सृष्टि होती है, अतः प्रथम मास चैत्र है। आत्मा शरीर से गमन करती है उसे गय-प्राण कहते हैं। उसके बाद शरीर खाली (फल्गु) हो जाता है, अतः गया श्राद्ध फल्गु तट पर होता है।

(ग) कामना-काम (कामना) से ही सृष्टि होती है, अतः इससे वर्ष का आरम्भ करते हैं-

कामस्तदग्रे समवर्तताधि मनसो रेतः प्रथमं यदासीत्। 

सतो बन्धुमसति निरविन्दन् हृदि प्रतीष्या कवयो मनीषा॥ (ऋक् १०/१२९/४)

इस ऋतु में सौर किरण रूपी मधु से फल-फूल उत्पन्न होते हैं, अतः वसन्त को मधुमास भी कहते हैं-

(यजु ३७/१३) प्राणो वै मधु। (शतपथ ब्राह्मण १४/१/३/३०) = प्राण ही मधु है।

(यजु ११/३८) रसो वै मधु। (शतपथ ब्राह्मण ६/४/३/२, ७/५/१/४) = रस ही मधु है।

अपो देवा मधुमतीरगृम्भणन्नित्यपो देवा रसवतीरगृह्णन्नित्येवैतदाह। (शतपथ ब्राह्मण ५/३/४/३) 

= अप् (ब्रह्माण्ड) के देव सूर्य से मधु पाते हैं।

ओषधि (जो प्रति वर्ष फलने के बाद नष्ट होते हैं) का रस मधु है-ओषधीनां वाऽएष परमो रसो यन्मधु। (शतपथ ब्राह्मण २/५/४/१८) परमं वा एतदन्नाद्यं यन्मधु। (ताण्ड्य महाब्राह्मण १३/११/१७)

सर्वं वाऽइदं मधु यदिदं किं च। (शतपथ ब्राह्मण ३/७/१/११, १४/१/३/१३)

हम हर रूप में मधु की कामना करते हैं-

मधु वाता ऋतायते, मधु क्षरन्ति सिन्धवः। माध्वीर्नः सन्त्वोषधीः॥६॥

मधुनक्तमुतोषसो, मधुमत् पार्थिवं रजः। मधु द्यौरस्तु नः पिता॥७॥

मधुमान्नो वनस्पति- र्मधुमाँ अस्तु सूर्यः। माध्वीर्गावो भवन्तु नः॥८॥ (ऋक् १/९०)  

= मौसमी हवा (वाता ऋता) मधु दे, नदियां मधु बहायें, हमारी ओषधि मधु भरी हों। रात्रि तथा उषा मधु दें, पृथ्वी, आकाश मधु से भरे हों। वनस्पति, सूर्य, गायें मधु दें।

मधुमतीरोषधीर्द्याव आपो मधुमन्नो अन्तरिक्षम्। 

क्षेत्रस्य पतिर्मधुमन्नो अस्त्वरिष्यन्तो अन्वेनं चरेम॥ (ऋक् ४/५७/३)

= ओषधि, आकाश, जल, अन्तरिक्ष, किसान-सभी मधु युक्त हों।

(घ) दोल-पूर्णिमा-वर्ष का चक्र दोलन (झूला) है जिसमें सूर्य-चन्द्र रूपी २ बच्चे खेल रहे हैं, जिस दिन यह दोल पूर्ण होता है वह दोल-पूर्णिमा है-

यास्ते पूषन् नावो अन्तः समुद्रे हिरण्मयीरन्तरिक्षे चरन्ति।

ताभिर्यासि दूत्यां सूर्य्यस्य कामेन कृतश्रव इच्छमानः॥ (ऋक्, ६/५८/३)

पूर्वापरं चरतो माययैतै शिशू क्रीडन्तौ परि यन्तो अध्वरम् (सम्वत्सरम्) ।

विश्वान्यन्यो भुवनाभिचष्ट ऋतूरन्यो विदधज्जायते पुनः॥ (ऋक् १०/८५/१८)

कृष्ण (Blackhole) से आकर्षित हो लोक (galaxy) वर्तमान है, उस अमृत लोक से सूर्य उत्पन्न होता है जिसका तेज पृथ्वी के मर्त्य जीवों का पालन करता है। वह रथ पर घूम कर लोकों का निरीक्षण करता है-

आकृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्यं च।

हिरण्ययेन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन्। (ऋक्, १/३५/२, यजु, ३३/४३)

(ङ) विषुव संक्रान्ति-होली के समय सूर्य उत्तरायण गति में विषुव को पार करता है। इस दिन सभी स्थानों पर दिन-रात बराबर होते हैं। दिन रात्रि का अन्तर, या इस रेखा का अक्षांश शून्य (विषुव) है, अतः इसे विषुव रेखा कहते हैं। इसको पार करना संक्रान्ति है जिससे नया वर्ष होली के बाद शुरु होगा।

✍🏻अरुण उपाध्याय


"होली / होला " का प्राचीन इतिहास - पुरातात्विक, ऐतिहासिक, साहित्यिक और ज्योतिष पक्ष


Forgotten Ancient History of Holi/Hola - Archaeological, Literary, Historical & Astronomical Aspects


होली भारत के मस्ती भरे त्यौहारों मे प्रथम स्थान पर आता है, जितनी रंगमस्ती इस त्योहार से जुडी है, उतना ही महान इस त्योहार का इतिहास भी है, बसंत ऋतु के फ़ाल्गुन महीने मे जब अर्जुन और पलाश वृक्ष फ़ूलों से लद जाते है, और कृषि पारायण भारत मे जब किसान की फसलें पक कर तैयार हो जाती है, किसान को खुश होने का अवकाश देने हेतु, तब ही फ़ाल्गुन की पूर्णिमा को होली मनाई जाती रही है, वसंत ऋतु मे पडने के कारण होली को वसंत उत्सव, मदन उत्सव आदि साहित्यिक नामों से भी जाना जाता है


होली वैदिक युग का दुर्लभ त्योहार है, सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि होली मनाने का सिलसिला जो वैदिक काल से शुरू हुआ, आज तक लगातार चलता ही जा रहा है, कभी रुका नही, हम सभी होलिका की पौराणिक कहानी जानते है, किन्तु उपलब्ध वैदिक साहित्य हमे इस मनोरंजक त्योहार के इतिहासिक संदर्भ की पर्याप्त जानकारी प्रदान करते है, और इन ऐतिहासिक तथ्यो के आधार पर कम से होली मनाने की परंपरा कम से कम ३५०० वर्ष पुरानी साबित होती है. होली के ऐतिहसिक पक्ष के स्त्रोत हमे - काठक गृह सुत्र, लौगाक्षी गृह सूत्र ( सभी ह्मारे पास उपलब्ध है) में होली के उद्धरणों से प्राप्त होते है, गृह सुत्रो का समय भी १००० से १२०० वर्ष ईषा पूर्व का है, हालांकि लोकमान्य तिलक एवं एक जर्मन विद्वान जकोबी ने नव विवाहित युगल द्वारा संध्या समय वशिष्ठ एवं अरुन्धति नक्षत्र दर्शन की गृह सूत्र प्रथा के आधार पर ज्य़ोतिषीय गणना कर के गृह सूत्रों का समय २३०० से २५०० वर्ष ईषा पूर्व निर्धारित किया है


अन्य मह्त्वपूर्ण स्त्रोतो मे गरूण पुराण, भविष्य पुराण तथा जैमिनी के पूर्व मीमांसा में भी होली के संदर्भ मिल जाते हैं



प्राचीनतम पुरातात्विक साक्ष्य


सौभाग्य से होलीकोत्सव का प्राचीनतम मौर्यकालीन (२५० - ३०० वर्ष ईसा पूर्व ) पुरातात्विक अभिलेख, विन्ध्य पर्वत माला के अन्तर्गत कैमूर की छोटी - छोटी पहाडियों के मध्य बसे हुये रामगढ जो कि छ्त्तीसगढ के अम्बिकापुर जिलॆ मे आता है, से प्राप्त हो गया है, कहने का अर्थ यह कि होली त्योहार मनाने का सिल्सिला अनवरत चालू है


ऐतिहासिक साक्ष्यों मे राजा हर्ष की रत्नावली (लगभग ६०० ईसवी) मे एवं दन्डिन की दश कुमार चरित (लगभग ८०० ईसवी) मे भी होलीकोत्सव का उल्लेख है.


होली नव वर्ष का त्य़ोहार है


भाषाविज्ञान के अनुसार "होली" शब्द "होला" शब्द से व्युत्पन्न है, जो कि पूर्णिमा के पश्चात भोर के ४ बजे की प्रथम होरा का समय है, स्प्ष्ट है कि "होला" से भी आशय पूर्णता के बाद प्रगति की ओर बढते हुए प्रथम उल्लास  होता है, ऋग्वेद से संबंधित ऐतरेय ब्राह्मण मे उदीच्य लोगो का उल्लेख है, ये उदीच्य लोग अपने स्थान को "होला" कहते रहे है, वर्तमान के गुजरात प्रदेश के पाटन क्षेत्र मे उदीच्य लोग बहुतायत से प्राप्त होते है, शब्दिक साम्य के आधार पर यदि कहे तो हो सकता है कि पाटन क्षेत्र मे होली की शुरुआत होई रही होगी, किन्तु अलग से कोई साक्ष्य प्राप्त नही होता है.


शतपथ ब्राह्मण ( ६.२.२.१८ ) मे कहा गया है कि, संवत्सर की प्रथम रात्रि फ़ाल्गुन मास की पूर्णिमा होती है, तात्पर्य यह कि, वैदिक संवत्सर होली से शुरु होता रहा है और होली नये वर्ष को मनाने का त्योहार हौ, इतना विशाल और रंगीन नया वर्ष शायद ही कही और, किसी और सभ्यता मे मनाया जाता रहा हो 


!! एषा ह संवत्सरस्य प्रथमरात्रिर्फ़ाल्गुनपूर्णमासी !! 

शतपथ ब्राह्मण ( ६.२.२.१८ )


ऐसे ही कथन हमे तांड्य महाब्राह्मण, गोपथ ब्राह्मण एवं तैत्तिरीय ब्राह्मण मे प्राप्त होते है, 


ज्योतिषीय गणना के आधार पर तो होली कम से कम २७,००० वर्ष पुराना त्योहार प्रतीत होता है, ज्योतिषीय गणना का आधार पुरा प्राचीन काल मे होली के समय होने वाला वसन्त संपात (Spring Equinox) है, जो कि पूर्व भाद्रपद नक्षत्र मे पडता था, जबकि आजकल वसन्त संपात उत्तर भाद्रपद नक्षत्र पर पडता है, तो प्रति वर्ष २० मिनट के हिसब से पिछ्ड्ते हुये अयनांश की गडना करने पर प्राचीन पूर्व भाद्रपद से आज के पूर्व भाद्रपद तक तक २६००० वर्ष हो जाते है, तथा इसके बाद ९७० वर्ष  उत्तर भाद्रपद के लिये और जोडने पर, लगभ्ग २७००० वर्षो की ऐतिहासिकता ज्ञात होती है.


यहा एक प्रश्न उठता है कि जब होली से चैत्र का नया महीना एवं साथ ही नया वर्ष भी शुरु हो जाता है, तब पंचागों मे १५ दिनो के बाद, चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष से ही नया वर्ष क्य़ो मान्य किया गया है, बहुत अनुसंधान करने के पश्चात ज्ञात हुआ कि १५ दिनो का यह अंतर दो तरह की भारतीय महीनों की प्रथा के मध्य सामंजस्य स्थापित करने के लिये ऋषियो द्वारा किया गया है, भारत मे पूर्णमान्त अर्थात पूर्णिमा से पूर्णिमा पर समाप्त होने वाली एक पद्दधति एवं अमान्त अर्थात अमावस्या से अमावस्या पर समाप्त होने वाली दूसरी पद्दधति वैदिक काल से ही चलती रही है एवं दोनो ही पद्दधतियों के मध्या विवाद भी शुरू से ही रहा है, समस्या देखते हुये, संभवतः ऋषियों ने १५ दिनो के बाद शुरु होने वाले अमान्त चैत्र आधारित नव वर्ष एवं पूर्णिमान्त महीने के रूप में नवीन महीने के द्वारा विवाद का सर्वमान्य हल निकाल दिया होगा।

✍🏻ललित मिश्रा

शुक्रवार, 11 मार्च 2022

कुछ जरूरी फार्मूला और जानकारी

 [ आपसे निवेदन है की ये मैसेज सभी छात्रो तक पहुँचाऐ

1. (α+в)²= α²+2αв+в²

2. (α+в)²= (α-в)²+4αв

3. (α-в)²= α²-2αв+в²

4. (α-в)²= (α+в)²-4αв

5. α² + в²= (α+в)² - 2αв.

6. α² + в²= (α-в)² + 2αв.

7. α²-в² =(α + в)(α - в)

8. 2(α² + в²) = (α+ в)² + (α - в)²

9. 4αв = (α + в)² -(α-в)²

10. αв ={(α+в)/2}²-{(α-в)/2}²

11. (α + в + ¢)² = α² + в² + ¢² + 2(αв + в¢ + ¢α)

12. (α + в)³ = α³ + 3α²в + 3αв² + в³

13. (α + в)³ = α³ + в³ + 3αв(α + в)

14. (α-в)³=α³-3α²в+3αв²-в³

15. α³ + в³ = (α + в) (α² -αв + в²)

16. α³ + в³ = (α+ в)³ -3αв(α+ в)

17. α³ -в³ = (α -в) (α² + αв + в²)

18. α³ -в³ = (α-в)³ + 3αв(α-в)

ѕιη0° =0

ѕιη30° = 1/2

ѕιη45° = 1/√2

ѕιη60° = √3/2

ѕιη90° = 1

¢σѕ ιѕ σρρσѕιтє σƒ ѕιη

тαη0° = 0

тαη30° = 1/√3

тαη45° = 1

тαη60° = √3

тαη90° = ∞

¢σт ιѕ σρρσѕιтє σƒ тαη

ѕє¢0° = 1

ѕє¢30° = 2/√3

ѕє¢45° = √2

ѕє¢60° = 2

ѕє¢90° = ∞

¢σѕє¢ ιѕ σρρσѕιтє σƒ ѕє¢

2ѕιηα¢σѕв=ѕιη(α+в)+ѕιη(α-в)

2¢σѕαѕιηв=ѕιη(α+в)-ѕιη(α-в)

2¢σѕα¢σѕв=¢σѕ(α+в)+¢σѕ(α-в)

2ѕιηαѕιηв=¢σѕ(α-в)-¢σѕ(α+в)

ѕιη(α+в)=ѕιηα ¢σѕв+ ¢σѕα ѕιηв.

» ¢σѕ(α+в)=¢σѕα ¢σѕв - ѕιηα ѕιηв.

» ѕιη(α-в)=ѕιηα¢σѕв-¢σѕαѕιηв.

» ¢σѕ(α-в)=¢σѕα¢σѕв+ѕιηαѕιηв.

» тαη(α+в)= (тαηα + тαηв)/ (1−тαηαтαηв)

» тαη(α−в)= (тαηα − тαηв) / (1+ тαηαтαηв)

» ¢σт(α+в)= (¢σтα¢σтв −1) / (¢σтα + ¢σтв)

» ¢σт(α−в)= (¢σтα¢σтв + 1) / (¢σтв− ¢σтα)

» ѕιη(α+в)=ѕιηα ¢σѕв+ ¢σѕα ѕιηв.

» ¢σѕ(α+в)=¢σѕα ¢σѕв +ѕιηα ѕιηв.

» ѕιη(α-в)=ѕιηα¢σѕв-¢σѕαѕιηв.

» ¢σѕ(α-в)=¢σѕα¢σѕв+ѕιηαѕιηв.

» тαη(α+в)= (тαηα + тαηв)/ (1−тαηαтαηв)

» тαη(α−в)= (тαηα − тαηв) / (1+ тαηαтαηв)

» ¢σт(α+в)= (¢σтα¢σтв −1) / (¢σтα + ¢σтв)

» ¢σт(α−в)= (¢σтα¢σтв + 1) / (¢σтв− ¢σтα)

α/ѕιηα = в/ѕιηв = ¢/ѕιη¢ = 2я

» α = в ¢σѕ¢ + ¢ ¢σѕв

» в = α ¢σѕ¢ + ¢ ¢σѕα

» ¢ = α ¢σѕв + в ¢σѕα

» ¢σѕα = (в² + ¢²− α²) / 2в¢

» ¢σѕв = (¢² + α²− в²) / 2¢α

» ¢σѕ¢ = (α² + в²− ¢²) / 2¢α

» Δ = αв¢/4я

» ѕιηΘ = 0 тнєη,Θ = ηΠ

» ѕιηΘ = 1 тнєη,Θ = (4η + 1)Π/2

» ѕιηΘ =−1 тнєη,Θ = (4η− 1)Π/2

» ѕιηΘ = ѕιηα тнєη,Θ = ηΠ (−1)^ηα


1. ѕιη2α = 2ѕιηα¢σѕα

2. ¢σѕ2α = ¢σѕ²α − ѕιη²α

3. ¢σѕ2α = 2¢σѕ²α − 1

4. ¢σѕ2α = 1 − ѕιη²α

5. 2ѕιη²α = 1 − ¢σѕ2α

6. 1 + ѕιη2α = (ѕιηα + ¢σѕα)²

7. 1 − ѕιη2α = (ѕιηα − ¢σѕα)²

8. тαη2α = 2тαηα / (1 − тαη²α)

9. ѕιη2α = 2тαηα / (1 + тαη²α)

10. ¢σѕ2α = (1 − тαη²α) / (1 + тαη²α)

11. 4ѕιη³α = 3ѕιηα − ѕιη3α

12. 4¢σѕ³α = 3¢σѕα + ¢σѕ3α


» ѕιη²Θ+¢σѕ²Θ=1

» ѕє¢²Θ-тαη²Θ=1

» ¢σѕє¢²Θ-¢σт²Θ=1

» ѕιηΘ=1/¢σѕє¢Θ

» ¢σѕє¢Θ=1/ѕιηΘ

» ¢σѕΘ=1/ѕє¢Θ

» ѕє¢Θ=1/¢σѕΘ

» тαηΘ=1/¢σтΘ

» ¢σтΘ=1/тαηΘ

» тαηΘ=ѕιηΘ/¢σѕΘ


"महत्वपूर्ण"..


9th,10th,11th,12th, गणित विषय के सारे फॉर्मूले है..

कृपया करके सभी बच्चों के parents को जरूर share करें और बच्चों को दिखाने को कहें।


धन्यवाद

साथियों बहुत महत्वपूर्ण जानकारी है उम्मीद करता हूं आखिर तक पढकर आगे पोस्ट करोगे.

» B. A. — Bachelor of Arts.

» M. A. — Master of Arts. »B.tech - Bachelor of Technology

» B. Sc. — Bachelor of Science

» M. Sc. — Master of Science

» B. Sc. Ag. — Bachelor of Science in Agriculture

» M. Sc. Ag. — Master of Science in Agriculture

» M. B. B. S. — Bachelor of Medicine and Bachelor of Surgery

» B.A.M.S- Bachelor of Ayurved Medicine and surgery

» M. D. — Doctor of Medicine

» M. S. — Master of Surgery

» Ph. D. / D. Phil. — Doctor of Philosophy (Arts & Science)

» D. Litt./Lit. — Doctor of Literature / Doctor of Letters

» D. Sc. — Doctor of Science

» B. Com. — Bachelor of Commerce

» M. Com. — Master of Commerce

» Dr. — Doctor

» B. P. — Blood Pressure

» Mr. — Mister

» Mrs. — Mistress

» M.S. — miss (used for female married & unmarried)

» Miss — used before unmarried girls)

» M. P. — Member of Parliament

» M. L. A. — Member of Legislative Assembly

» M. L. C. — Member of Legislative Council

» P. M. — Prime Minister

» C. M. — Chief Minister

» C-in-C — Commander-In-Chief

» L. D. C. — Lower Division Clerk

» U. D. C. — Upper Division Clerk

» Lt. Gov. — Lieutenant Governor

» D. M. — District Magistrate

» V. I. P. — Very Important  Person

» I. T. O. — Income Tax Officer

» C. I. D. — Criminal Investigation Department

» C/o — Care of

» S/o — Son of

» C. B. I. — Central Bureau of Investigation

» G. P. O. — General Post Office

» H. Q. — Head Quarters

» E. O. E. — Errors and Omissions Excepted

» Kg. — Kilogram

» KW. — Kilowatts

Gm. — Gram

Km. — Kilometer

Ltd. — Limited

M. P. H. — Miles Per Hour

KM. P. H. — Kilometre Per Hour

P. T. O. — Please Turn Over

P. W. D. — Public Works Department

C. P. W. D. — Central Public Works Department

U. S. A. — United States of America

U. K. — United Kingdom (England)

U. P. — Uttar Pradesh

M. P. — Madhya Pradesh

H. P. — Himachal Pradesh

U. N. O. — United Nations Organization

W. H. O. — World Health Organization

B. B. C. — British Broadcasting Corporation

B. C. — Before Christ

A. C. — Air Conditioned

I. G. — Inspector General (of Police)

D. I. G. — Deputy Inspector General (of Police)

S. S. P. — Senior Superintendent of Police

D. S. P. — Deputy Superintendent of Police

S. D. M. — Sub-Divisional Magistrate

S. M. — Station Master

A. S. M. — Assistant Station Master

V. C. — Vice-Chancellor

A. G. — Accountant General

C. R. — Confidential Report

I. A. S. — Indian Administrative Service

I. P. S. — Indian Police Service

I. F. S. — Indian Foreign Service or Indian Forest Service

I. R. S. — Indian Revenue Service

P. C. S. — Provincial Civil Service

M. E. S. — Military Engineering Service


☀Full Form Of Some technical Words

» VIRUS - Vital Information Resource Under Seized.

» 3G -3rd Generation.

» GSM - Global System for Mobile Communication.

» CDMA - Code Division Multiple Access.

» UMTS - Universal Mobile Telecommunication System.

» SIM - Subscriber Identity Module .

» AVI = Audio Video Interleave

» RTS = Real Time Streaming

» SIS = Symbian

OS Installer File

» AMR = Adaptive Multi-Rate Codec

» JAD = Java Application Descriptor

» JAR = Java Archive

» JAD = Java Application Descriptor

» 3GPP = 3rd Generation Partnership Project

» 3GP = 3rd Generation Project

» MP3 = MPEG player-3

» MP4 = MPEG-4 video file

» AAC = Advanced Audio Coding

» GIF= Graphic Interchangeable Format

» JPEG = Joint Photographic Expert Group

» BMP = Bitmap

» SWF = Shock Wave Flash

» WMV = Windows Media Video

» WMA = Windows Media Audio

» WAV = Waveform Audio

» PNG = Portable Network Graphics

» DOC =Document (Microsoft Corporation)

» PDF = Portable Document Format

» M3G = Mobile 3D Graphics

» M4A = MPEG-4 Audio File

» NTH = Nokia Theme (series 40)

» THM = Themes (Sony Ericsson)

» MMF =Synthetic Music Mobile Application File

» NRT = Nokia Ringtone

» XMF = Extensible Music File

» WBMP = Wireless Bitmap Image

» DVX = DivX Video

» HTML = Hyper Text Markup Language

» WML =Wireless Markup Language

» CD -Compact Disk.

» DVD - Digital Versatile Disk.

» CRT - Cathode Ray Tube.

» DAT - Digital Audio Tape.

» DOS - Disk Operating System.

» GUI -Graphical

User Interface.

» HTTP - Hyper Text Transfer Protocol.

» IP - Internet Protocol.

» ISP - Internet Service Provider.

» TCP - Transmission Control Protocol.

» UPS - Uninterruptible Power Supply.

» HSDPA -High Speed Downlink Packet Access.

» EDGE - Enhanced Data Rate for Evolution.

» GSM- [Global System for Mobile Communication]

» VHF - Very High Frequency.

» UHF - Ultra HighFrequency.

» GPRS - General Packet Radio Service.

» WAP - Wireless Application Protocol.

» TCP - Transmission Control Protocol.

» ARPANET - Advanced Research Project Agency Network.

» IBM - International Business Machines.

» HP -  Packard.

» AM/FM - / Frequency Modulation


☝Whatsapp keme pahli baar....kaam ka msg.........

Here are Toll Free numbers in India

.....very very useful...!!!!

☀Airlines

Indian Airlines - 1800 180 1407

Jet Airways - 1800 225 522

Spice Jet - 1800 180 3333

Air India - 1800 227 722

Kingfisher -1800 180 0101

☀Banks

ABN AMRO - 1800 112 224

Canara Bank - 1800 446 000

Citibank - 1800 442 265

Corporation Bank - 1800 443 555

Development Credit Bank - 1800

225 769

HDFC Bank - 1800 227 227

ICICI Bank - 1800 333 499

ICICI Bank NRI -1800 224 848

IDBI Bank -1800 116 999

Indian Bank -1800 425 1400

ING Vysya -1800 449 900

Kotak Mahindra Bank - 

*✨* *✨*

.  ✍

किसी के जीवन में आपके वजह से बहुत बड़ा काम हो जाये l

फिजूल का संदेश तो रोजना भेजते हो लेकिन एक दिन अच्छा भेजो आपको बहुत सुकून मिलेगा।

✊✊🙏🙏🙏🙏🙏* . आक्सीजन—O₂

2. नाइट्रोजन—N₂

3. हाइड्रोजन—H₂

4. कार्बन डाइऑक्साइड—CO₂

5. कार्बन मोनोआक्साइड—CO

6. सल्फर डाइऑक्साइड—SO₂

7. नाइट्रोजन डाइऑक्साइड—NO₂

8. नाइट्रोजन मोनोऑक्साइड (नाइट्रिक ऑक्साइड) — NO

9. डाईनाइट्रोजन ऑक्साइड (नाइट्रस ऑक्साइड) — N₂O

10. क्लोरीन — Cl₂

11. हाइड्रोजन क्लोराइड—HCl

12. अमोनिया — NH₃

अम्ल

13. हाइड्रोक्लोरिक एसिड — HCl

14. सल्फ्यूरिक एसिड — H₂SO₄

15. नाइट्रिक एसिड — HNO₃

16. फॉस्फोरिक एसिड — H₃PO₄

17. कार्बोनिक एसिड — H₂CO₃

क्षार

18. सोडियम हाइड्राक्साइड—NaOH

19. पोटेशियम हाइड्राक्साइड—KOH

20. कैल्शियम हाइड्राक्साइड—Ca(OH)₂

लवण

21. सोडियम क्लोराइड—NaCl

22. कार्बोनेट सोडियम—Na₂CO₃

23. कैल्शियम कार्बोनेट — CaCO₃

24. कैल्शियम सल्फेट — CaSO₄

25. अमोनियम सल्फेट — (NH₄)₂SO₄

26. नाइट्रेट पोटेशियम—KNO₃

आम रसायनों के व्यावसायिक एवं रासायनिक नाम

व्यावसायिक नाम — IAPUC नाम — अणु सूत्र

27. चाक — कैल्सियम कार्बोनेट — CaCO₃

28. अंगूर का सत — ग्लूकोज — C6H₁₂O6

एल्कोहल — एथिल 29. एल्कोहल — C₂H5OH

30. कास्टिक पोटाश — पोटेशियम हाईड्राक्साईड — KOH

31. खाने का सोडा — सोडियम बाईकार्बोनेट — NaHCO₃

32. चूना — कैल्सियम आक्साईड — CaO

33. जिप्सम — कैल्सियम सल्फेट — CaSO₄.2H₂O

34. टी.एन.टी. — ट्राई नाईट्रो टालीन — C6H₂CH₃(NO₂)₃

35. धोने का सोडा — सोडियम कार्बोनेट — Na₂CO₃

36. नीला थोथा — कॉपर सल्फेट — CuSO₄

37. नौसादर — अमोनियम क्लोराईड — NH₄Cl

38. फिटकरी — पोटैसियम एलुमिनियम सल्फेट — K₂SO₄Al₂(SO₄)₃.24H₂O

39. बुझा चूना — कैल्सियम हाईड्राक्साईड — Ca(OH)₂

40. मंड — स्टार्च — C6H10O5

41. लाफिंग गैस — नाइट्रस आक्साईड — N₂O

42. लाल दवा — पोटैसियम परमैगनेट — KMnO₄

43. लाल सिंदूर — लैड परआक्साईड — Pb₃O₄

44. शुष्क बर्फ — ठोस कार्बन-डाई-आक्साईड — CO₂

45. शोरा — पोटैसियम नाइट्रेट — KNO₃

46. सिरका — एसिटिक एसिड का तनु घोल — CH₃COOH

47. सुहागा — बोरेक्स — Na₂B₄O7.10H₂O

48. स्प्रिट — मैथिल एल्कोहल — CH₃OH

49. स्लेट — सिलिका एलुमिनियम आक्साईड — Al₂O₃2SiO₂.2H₂O

50.हरा कसीस — फैरिक सल्फेट — Fe₂(SO₄)

 Prajapati: *[फल/फुल/सब्जी आदि का वैज्ञानिक नाम]*


1.मनुष्य---होमो सैपियंस

2.मेढक---राना टिग्रिना

3.बिल्ली---फेलिस डोमेस्टिका

4.कुत्ता---कैनिस फैमिलियर्स

5.गाय---बॉस इंडिकस

6.भैँस---बुबालस बुबालिस

7.बैल---बॉस प्रिमिजिनियस टारस

8.बकरी---केप्टा हिटमस

9.भेँड़---ओवीज अराइज

10.सुअर---सुसस्फ्रोका डोमेस्टिका

11.शेर---पैँथरा लियो

12.बाघ---पैँथरा टाइग्रिस

13.चीता---पैँथरा पार्डुस

14.भालू---उर्सुस मैटिटिमस कार्नीवेरा

15.खरगोश---ऑरिक्टोलेगस कुनिकुलस

16.हिरण---सर्वस एलाफस

17.ऊँट---कैमेलस डोमेडेरियस

18.लोमडी---कैनीडे

19.लंगुर---होमिनोडिया

20.बारहसिँघा---रुसर्वस डूवासेली

21.मक्खी---मस्का डोमेस्टिका

22.आम---मैग्नीफेरा इंडिका

23.धान---औरिजया सैटिवाट

24.गेहूँ---ट्रिक्टिकम एस्टिवियम

25.मटर---पिसम सेटिवियम

26.सरसोँ---ब्रेसिका कम्पेस्टरीज

27.मोर---पावो क्रिस्टेसस

28.हाथी---एफिलास इंडिका

29.डॉल्फिन---प्लाटेनिस्टा गैँकेटिका

30.कमल---नेलंबो न्यूसिफेरा गार्टन

31.बरगद---फाइकस बेँधालेँसिस

32.घोड़ा---ईक्वस कैबेलस

33.गन्ना---सुगरेन्स औफिसीनेरम

34.प्याज---ऑलियम सिपिया

35.कपास---गैसीपीयम

36.मुंगफली---एरैकिस 

37.कॉफी---कॉफिया अरेबिका

38.चाय---थिया साइनेनिसस

39.अंगुर---विटियस

40.हल्दी---कुरकुमा लोँगा

41.मक्का---जिया मेज

42.टमाटर---लाइकोप्रेसिकन एस्कुलेँटम

43.नारियल---कोको न्यूसीफेरा

44.सेब---मेलस प्यूमिया/डोमेस्टिका

45.नाशपाती---पाइरस क्यूमिनिस

46.केसर---क्रोकस सैटिवियस

47.काजू---एनाकार्डियम अरोमैटिकम

48.गाजर---डाकस कैरोटा

49.अदरक---जिँजिबर ऑफिसिनेल

50.फुलगोभी---ब्रासिका औलिरेशिया

51.लहसून---एलियम सेराइवन

52.बाँस---बेँबुसा स्पे

53.बाजरा---पेनिसिटम अमेरीकोनम

54.लालमिर्च---कैप्सियम एनुअम

55.कालीमिर्च---पाइपर नाइग्रम

56बादाम---प्रुनस अरमेनिका 

57.इलायची---इलिटेरिया कोर्डेमोमम

58.केला---म्यूजा पेराडिसिएका

59.मुली---रेफेनस  


तरंग चलती हैं, तो वे अपने साथ ले जाती हैं

Ans : - -ऊर्जा

2.: - सूर्य ग्रहण के समय सूर्य का कौन-सा भाग दिखाई देता है?

Ans : - किरीट

3.: - कपड़ों से जंग के धब्बे हटाने के लिये प्रयोग किया 


Ans : - -ऑक्ज़ैलिक अम्ल

4.: - गन्ने में ‘लाल सड़न रोग’ किसके कारण उत्पन्न होता है?

Ans : - कवकों द्वारा

5.: - टेलीविजन का आविष्कार किसने किया था?

Ans : - जे. एल. बेयर्ड

6.: - किस प्रकार के ऊतक शरीर के सुरक्षा कवच का कार्य करते हैं?

Ans : - एपिथीलियम ऊतक

7.: - मनुष्य ने सर्वप्रथम किस जन्तु को अपना पालतू बनाया?

Ans : - कुत्ता

8.: - किस वैज्ञानिक ने सर्वप्रथम बर्फ़ के दो टुकड़ों को आपस में घिसकर पिघला दिया?

Ans : - डेवी

9: - हीरा चमकदार क्यों दिखाई देता है?

Ans : - सामूहिक आंतरिक परावर्तन के कारण

10.: - ‘गोबर गैस’ में मुख्य रूप से क्या पाया जाता है।

Ans : - मिथेन

11.: - निम्न में से कौन-सा आहार मानव शरीर में नये ऊतकों की वृद्धि के लिए पोषक तत्व प्रदान करता है?

Ans : - पनीर

12.: - निम्न में से कौन एक उड़ने वाली छिपकली है?

Ans : - ड्रेको

13.: - अंगूर में कौन-सा अम्ल पाया जाता है?

Ans : - टार्टरिक अम्ल

14.: - कैंसर सम्बन्धी रोगों का अध्ययन कहलाता है

Ans : - oncology

15.: - घोंसला बनाने वाला एकमात्र साँप कौन-सा है?

Ans : - किंग कोबरा

16.: - भारत में पायी जाने वाली सबसे बड़ी मछली कौन-सी है?

Ans : - ह्वेल शार्क

17.: - दालें किसका एक अच्छा स्रोत होती हैं?

Ans : - प्रोटीन

18.: - देशी घी में से सुगन्ध क्यों आती है?

Ans : - डाइएसिटिल के कारण

19.: - इन्द्रधनुष में किस रंग का विक्षेपण अधिक होता है?

Ans : - लाल रंग

20.: - सूर्य की किरण में कितने रंग होते हैं?

Ans : - 7

21.: - ‘टाइपराइटर’ (टंकण मशीन) के आविष्कारक कौन हैं?

Ans : - शोल्स

22.: - सिरका को लैटिन भाषा में क्या कहा जाता है।

Ans : - ऐसीटम

23.: - दूध की शुद्धता का मापन किस यन्त्र से किया जाता है?

Ans : - लैक्टोमीटर

24.: - पृथ्वी पर सबसे अधिक मात्रा में पाया जाने वाला धातु तत्त्व कौन-सा है?

Ans : - ऐलुमिनियम

25.: - मोती मुख्य रूप से किस पदार्थ का बना होता है?

Ans : - कैल्सियम कार्बोनेट

26.: - मानव शरीर में सबसे अधिक मात्रा में कौन-सा तत्व पाया जाता है?

Ans : - ऑक्सीजन

27.: - आम का वानस्पतिक नाम क्या है?

Ans : - मेंगीफ़ेरा इण्डिका

28.: - कॉफी पाउडर के साथ मिलाया जाने वाला ‘चिकोरी चूर्ण’ प्राप्त होता है

Ans : - -जड़ों से

29.: - ‘विटामिन-सी’ का सबसे अच्छा स्त्रोत क्या है?

Ans : - आंवला

30.: - सबसे अधिक तीव्रता की ध्वनि कौन उत्पन्न करता है?

Ans : - बाघ

31.: - मानव शरीर में सबसे लम्बी कोशिका कौन-सी होती है?

Ans : - तंत्रिका कोशिका

32.: - दाँत मुख्य रूप से किस पदार्थ के बने होते हैं?

Ans : - डेंटाइन के

33.: - किस जंतु की आकृति पैर की चप्पल के समान होती है?

Ans : - पैरामीशियम

34.: - निम्न में से किस पदार्थ में प्रोटीन नहीं पाया जाता है?

Ans : - चावल

35.: - मानव का मस्तिष्क लगभग कितने ग्राम का होता है?

Ans : - 1350

36.: - रक्त में पायी जाने वाली धातु है

Ans : - -लोहा

37.: - मांसपेशियों में किस अम्ल के एकत्रित होने से थकावट आती है?

Ans : - लैक्टिक अम्ल

38.: - किण्वन का उदाहरण है

Ans : - -दूध का खट्टा होना,खाने की ब्रेड का बनना,गीले आटे का खट्टा होना

39.: - केंचुए की कितनी आँखें होती हैं?

Ans : - एक भी नहीं

40.: - गाजर किस विटामिन का समृद्ध स्रोत है?

Ans : - विटामिन A

[  भौतिक राशि Physical quantities अन्य भौतिक राशियों से संबंध* 


1. क्षेत्रफल Area लंबाई × चौड़ाई


2. आयतन Volume लंबाई× चौड़ाई×ऊंचाई


3. द्रव्यमान घनत्व Density द्रव्यमान/आय

4. आवृत्ति Frequency 1/आवर्तकाल


5. वेग Velocity विस्थापन/समय


6. चाल Speed दूरी/समय


7. त्वरण Acceleration वेग/समय


8. बल Force द्रव्यमान × त्वरण


9. आवेग Impulse बल × समय


10. कार्य Work बल × दूरी


11. ऊर्जा Energy बल × दूरी


12. शक्ति Power कार्य/समय


13. संवेग Momentum द्रव्यमान × वेग


14. दाब Pressure बल/क्षेत्रफल


15. प्रतिबल Stress बल/क्षेत्रफल


16. विकृति Strain विमा में परिवर्तन/मूल विमा


17. प्रत्यास्थता गुणांक Coefficient of elasticity प्रतिबल/विकृति


18. पृष्ठ तनाव Surface tension बल/लंबाई


19. पृष्ठ ऊर्जा Surface energy ऊर्जा/क्षेत्रफल


20. वेग प्रवणता Velocity gradient वेग/दूरी


21. दाब प्रवणता Pressure gradient दाब/दूरी


22. श्यानता गुणांक Coefficient of viscosity बल/(क्षेत्रफल× वेग प्रवणता)


23. कोण Angel चाप/त्रिज्या


24. त्रिकोणमितीय अनुपात Trigonometric ratio लंबाई/लंबाई


25. कोणीय वेग Angular velocity कोण/समय


26. कोणीय त्वरण Angular acelleration कोणीय वेग/समय


27. कोणीय संवेग Angular momentum जड़त्व आघूर्ण × कोणीय वेग


28. जड़त्व आघूर्ण Moment of inertia द्रव्यमान× (परिभ्रमण त्रिज्या)2


29. बल आघूर्ण Torque बल × दूरी


30. कोणीय आवृत्ति Angular frequency 2π × आवृत्ति


31. गुरुत्वीय सार्वत्रिक नियतांक Universal constant of gravity बल× (दूरी)2/(द्रव्यमान)2


32. प्लांक नियतांक Plank’s constant ऊर्जा/आवृत्ति


33. विशिष्ट उष्मा Specific heat उष्मीय ऊर्जा/(द्रव्यमान× ताप)


34. उष्मा धारिता Heat capacity ऊष्मीय ऊर्जा/ताप


35. बोल्टजमान नियतांक Boltzmann’s constant ऊर्जा/ताप


36. स्टीफन नियतांक Stefan’s constant (ऊर्जा/क्षेत्रफल× समय)/(ताप)4


37. गैस नियतांक Gas constant (दाब× आयतन)/(मोल× ताप )


38. आवेश Charge विद्युत धारा × समय


39. विभवातंर Potential difference कार्य/आवेश


40. प्रतिरोध Resistance विभवांतर/विद्युत धारा


41. धारिता Capacity आवेश/विभवांतर


42. विद्युत क्षेत्र Electric field वैद्युत बल/आवेश


43. चुम्बकीय क्षेत्र Magnetic field बल/(विद्युत धारा× लंबाई)


44. चुम्बकीय फ्लक्स Magnetic flux चुम्बकीय क्षेत्र × लंबाई


45. प्रेरकत्व Inductance चुम्बकीय फ्लक्स/विद्युत धारा


46. वीन नियतांक Wein’s constant तरंगदैर्ध्य ×ताप


47. चालकता Conductivity 1/प्रतिरोध


48. एंट्रॅापी Entropy ऊष्मीय ऊर्जा / ताप


49. गुप्त उष्मा Latent heat उष्मीय ऊर्जा / द्रव्यमान


50. तापीय प्रसार गुणांक Coefficient of thermal expansion विमा में परिवर्तन / (मूल विमा × ताप )


nbsp51. आयतन प्रत्यास्थता गुणांक Bulk modulus ( आयतन × दाब में परिवर्तन )/आयतन में परिवर्तन


52. वैद्युत प्रतिरोधकता Electric resistance ( प्रतिरोध × क्षेत्रफल )/ लंबाई


53. वैद्युत द्विध्रुव आघूर्ण Electric dipole moment बल आघूर्ण / विद्युत क्षेत्र


54. चुम्बकीय द्विध्रुव आघूर्ण Magnetic dipole moment बल आघूर्ण / चुम्बकीय क्षेत्र


55. चुम्बकीय क्षेत्र प्रबलता चुम्बकीय आघूर्ण / आयतन


56. अपवर्तनांक Refractive index निर्वात में प्रकाश की चाल/माध्यम में प्रकाश की चाल


57. तरंग संख्या Wave number 2π / तरंगदैर्ध्य


58. विकिरण शक्ति Radiant power उत्सर्जित ऊर्जा / समय


59. विकिरण तीव्रता Radiant intensity विकिरण शक्ति / घन कोण


60. हबल नियतांक Hubble constant पश्च सरण चाल /दूरी

[09/10, 10:54 pm] Rameshwar Prajapati: जीव विज्ञान के प्रश्न- 

1.: - मांसपेशियों में किस अम्ल के एकत्रित होने से थकावट आती है?

Ans : - लैक्टिक अम्ल

2.: - अंगूर में कौन-सा अम्ल पाया जाता है?

Ans : - टार्टरिक अम्ल

3.: - कैंसर सम्बन्धी रोगों का अध्ययन कहलाता है

Ans : - -ऑरगेनोलॉजी

4.: - मानव शरीर में सबसे लम्बी कोशिका कौन-सी होती है?

Ans : - तंत्रिका कोशिका

5.: - दाँत मुख्य रूप से किस पदार्थ के बने होते हैं?

Ans : - डेंटाइन के

6.: - किस जंतु की आकृति पैर की चप्पल के समान होती है?

Ans : - पैरामीशियम

7.: - केंचुए की कितनी आँखें होती हैं?

Ans : - एक भी नहीं

8.: - गाजर किस विटामिन का समृद्ध स्रोत है?

Ans : - विटामिन A

9.: - निम्न में से किस पदार्थ में प्रोटीन नहीं पाया जाता है?

Ans : - चावल

10.: - मानव का मस्तिष्क लगभग कितने ग्राम का होता है?

Ans : - 1350

11.: - रक्त में पायी जाने वाली धातु है

Ans : - -लोहा

12.: - किण्वन का उदाहरण है

Ans : - -दूध का खट्टा होना,खाने की ब्रेड का बनना,गीले आटे का खट्टा होना

13.: - निम्न में से कौन-सा आहार मानव शरीर में नये ऊतकों की वृद्धि के लिए पोषक तत्व प्रदान करता है?

Ans : - पनीर

14.: - निम्न में से कौन एक उड़ने वाली छिपकली है?

Ans : - ड्रेको

15.: - घोंसला बनाने वाला एकमात्र साँप कौन-सा है?

Ans : - किंग कोबरा

16.: - भारत में पायी जाने वाली सबसे बड़ी मछली कौन-सी है?

Ans : - ह्वेल शार्क

17.: - दालें किसका एक अच्छा स्रोत होती हैं?

Ans : - प्रोटीन

18.: - देशी घी में से सुगन्ध क्यों आती है?

Ans : - डाइएसिटिल के कारण

19.: - इन्द्रधनुष में किस रंग का विक्षेपण अधिक होता है?

Ans : - लाल रंग

20.: - टेलीविजन का आविष्कार किसने किया था?

Ans : - जे. एल. बेयर्ड

21: - हीरा चमकदार क्यों दिखाई देता है?

Ans : - सामूहिक आंतरिक परावर्तन के कारण

22.: - ‘गोबर गैस’ में मुख्य रूप से क्या पाया जाता है।

Ans : - मिथेन

23.: - दूध की शुद्धता का मापन किस यन्त्र से किया जाता है?

Ans : - लैक्टोमीटर

24.: - पृथ्वी पर सबसे अधिक मात्रा में पाया जाने वाला धातु तत्त्व कौन-सा है?

Ans : - ऐलुमिनियम

25.: - मोती मुख्य रूप से किस पदार्थ का बना होता है?

Ans : - कैल्सियम कार्बोनेट

26.: - मानव शरीर में सबसे अधिक मात्रा में कौन-सा तत्व पाया जाता है?

Ans : - ऑक्सीजन

27.: - किस प्रकार के ऊतक शरीर के सुरक्षा कवच का कार्य करते हैं?

Ans : - एपिथीलियम ऊतक

28.: - मनुष्य ने सर्वप्रथम किस जन्तु को अपना पालतू बनाया?

Ans : - कुत्ता

29.: - किस वैज्ञानिक ने सर्वप्रथम बर्फ़ के दो टुकड़ों को आपस में घिसकर पिघला दिया?

Ans : - डेवी

30.: - सबसे अधिक तीव्रता की ध्वनि कौन उत्पन्न करता है?

Ans : - बाघ

31.: - जब ध्वनि तरंग चलती हैं, तो वे अपने साथ ले जाती हैं

Ans : - -ऊर्जा

32.: - सूर्य ग्रहण के समय सूर्य का कौन-सा भाग दिखाई देता है?

Ans : - किरीट

33.: - सूर्य की किरण में कितने रंग होते हैं?

Ans : - 7

34.: - ‘टाइपराइटर’ (टंकण मशीन) के आविष्कारक कौन हैं?

Ans : - शोल्स

35.: - सिरका को लैटिन भाषा में क्या कहा जाता है।

Ans : - ऐसीटम

36.: - कपड़ों से जंग के धब्बे हटाने के लिये प्रयोग किया जाता है

Ans : - -ऑक्ज़ैलिक अम्ल

37.: - गन्ने में ‘लाल सड़न रोग’ किसके कारण उत्पन्न होता है?

Ans : - कवकों द्वारा

38.: - आम का वानस्पतिक नाम क्या है?

Ans : - मेंगीफ़ेरा इण्डिका

39.: - कॉफी पाउडर के साथ मिलाया जाने वाला ‘चिकोरी चूर्ण’ प्राप्त होता है

Ans : - -जड़ों से

40.: - ‘विटामिन-सी’ का सबसे अच्छा स्त्रोत क्या है?

Ans : - आंवला

  ☄भारतीय संविधान - प्रश्नोत्तर☄



प्रश्‍न 1- भारतीय संविधान सभा की प्रथम बैठक कब हुई । 

उत्‍तर - 9 दिसम्‍बर 1946 । 

प्रश्‍न 2- स‍ंविधान सभा का स्‍थाई अध्‍यक्ष कौन था । 

उत्‍तर - डॉ. राजेंन्‍द्र प्रसाद । 

प्रश्‍न 3- संविधान सभा का अस्‍थाई अध्‍यक्ष कौन था । 

उत्‍तर - डॉ. सच्चिदानंद सिन्‍हा । 

प्रश्‍न 4- संविधान सभा की प्रारूप समिति के अध्‍यक्ष कौन थे । 

उत्‍तर - डॉ. भीमराव अम्‍बेडकर । 

प्रश्‍न 5- संविधान सभा का औपचारिक रूप से प्रतिपादन किसने किया । 

उत्‍तर - एम. एन. राय । 

प्रश्‍न 6- भारत में संविधान सभा गठित करने का आधार क्‍या था । 

उत्‍तर - कैबिनेट मिशन योजना (1946) । 

प्रश्‍न 7- संविधान के गठन की मांग सर्वप्रथम 1895 में किस व्‍यक्ति ने की । 

उत्‍तर - बाल गंगाधर तिलक । 

प्रश्‍न 8- संविधान सभा में देशी रियासतों के कितने प्रतिनिधि थे । 

उत्‍तर - 70 । 

प्रश्‍न 9- संविधान सभा में किस देशी रियासत के प्रतिनिधि ने भाग नही लिया । 

उत्‍तर - हैदराबाद । 

प्रश्‍न 10- बी. आर. अम्‍बेडकर कहॉं के संविधान सभा में निर्वाचित हुए । 

उत्‍तर - बंगाल से । 

प्रश्‍न 11- संविधान सभा का संवैधानिक सलाहकार किसे नियुक्‍त किया गया था । 

उत्‍तर - बी. एन. राव । 

प्रश्‍न 12- संविधान सभा की प्रारूप समिति का गठन कब हुआ । 

उत्‍तर - 29 अगस्‍त 1947 । 

प्रश्‍न 13- संविधान की प्रारूप समिति के समक्ष प्रस्‍तावना का प्रस्‍ताव किसने रखा । 

उत्‍तर - जवाहर लाल नेहरू । 

प्रश्‍न 14- संविधान सभा की रचना हेतु संविधान का विचार सर्वप्रथम किसने प्रस्‍तुत किया । 

उत्‍तर - स्‍वराज पार्टी ने 1924 में । 

प्रश्‍न 15- संविधान सभा में भारत के संविधान को कब स्‍वीकृत किया । 

उत्‍तर - 26 नवम्‍बर 1946 । 

प्रश्‍न 16- संविधान को बनाने में कितना समय लगा । 

उत्‍तर - 2 वर्ष 11 माह 18 दिन । 

प्रश्‍न 17- स‍ंविधान में कितने अनुच्‍छेद है। 

उत्‍तर - 444 । 

प्रश्‍न 18- संविधान में कितने अध्‍याय है।

उत्‍तर - 22 । 

प्रश्‍न 19- भारतीय सभा में कितनी अनुसूचियॉ है। 

उत्‍तर - 12 । 

प्रश्‍न 20- संविधान सभा का चुनाव किस आधार पर हुआ । 

उत्‍तर - वर्गीय मताधिकार पर ।

गुरुवार, 10 मार्च 2022

कायस्थ गाथा-/ अंबष्ट कायस्थ*

 

————————

- भारत पर आक्रमण के पूर्व सिकंदर ने सीमावर्ती राजा आंबि को सूचित किया की या तो वह समर्पण करे या युद्ध। निज स्वार्थ में आम्बि ने समर्पण करना तय किया, लेकिन उसके बहादुर सत्रपों को यह स्वीकार नहीं हुआ।


 *उन बहादुर सत्रपों में पोरू के बारे में आप सब जानते हैं। मगर आम्बि के अंबष्ट सत्रप के युद्ध की कहानी आपमें से अधिकतर लोग नहीं जानते हैं। उन्होंने भी पोरू की तरह समर्पण स्वीकार नहीं किया।*


 सिकन्दर के साथ अंबष्ट बड़े बहादुरी से लड़ कर भी पराज़ित हुए। पर इस युद्ध में सिकन्दर घायल हो गया था। क्षुब्ध हो उसने अंबष्टों को आमूल नाश करने का आदेश अपनी सेना को दिया। संकट के इस विकराल घड़ी में जाति ने हथियार छोड़ आस पास के जन जीवन में विलुप्त होने का निश्चय किया। चेनाब नदी के मुहाने से वह महाकाल यानि उज्जैन की ओर रवाना हो गए। 


*अंबष्ट-सिकंदर युद्ध को दो महत्वपूर्ण व्यक्तियों ने नज़दीक से देखा था। एक था सिकंदर का निज इतिहासकार, डीयोदोरस। दूसरा सिकंदर के युद्ध के तरीक़े को समझने के लिए छद्मवेश में उसकी सेना में छिपा चंद्रगुप्त, जिसने घनानंद को सत्ता से हटाने के बाद बहादुर अंबाष्टों को अपनी राजधानी में बसनें के लिए आमंत्रित किया।*


चंद्रगुप्त के आमंत्रण पर वह अंबष्ट मगध गए, नदी के किनारे किनारे वाले रास्ते से। राजगृह के १०० कोस के अंदर फैले गाँव में चंद्रगुप्त ने उन्हें बसाया।उनका ख़ासघर इन गाँव के नाम पर पड़ा। 


बिहार में अमबस्ठ कायस्थ- 

मगध क्षेत्र में अम्बस्थों का  उपनाम/खासघर और मूल गांव निम्नानुसार है:


1. कोचगवें-- कोचगवां/कोचगांव

2.  डेढ़गवें-- डेढ़गवां

3. हरगवें-- हरगवां

4.  तेतरवें-- तेतरवां

5.  परबतिआर--परबती, ब्लाक काशीचक, जिला नवादा, बिहार

6.  मलदहिआर-- मलदह

7.  घोरसवें-- घोरसवां

8.  निमीआर-- निमी

9.  दत्तकुलिआर--  कुल

10. नन्दकुलिआर-- ननन्द कुल

11. गिरियार-- गिरियक/प्राचीन नाम गिरिया

12. मैजोरवार-- मैजरा

13. राजगृहार--राजगृह/राजगीर

14.  बिरनवें--बिरनवां, ब्लाक चंडी,जिला नालन्दा बिहार

15.  समैयार--समै

16.  मंजौरवार/मंजरवार--मंजौर

17.  मलतियार-- मलती

18.  बरदिहार-- बागी बरडिहा

19.  लोहरवें-- लोहरवां

20.  बडगवें-- बडगवा

21.  ओन्दवार-- ओन्दा

22. लोहरे-- ल़ोहरपुरा

23. मंजरवें-- मंजरवां

24. संदवार-- संदवा

25. जमुआर-- जमुआवां, ब्लाक वज़ीरगंज जिला गया बिहार

26. कसरे-- गांव कसर, ब्लाक अरियारी, जिला शेखपुरा बिहार

27. बरगवें-- बरगवां

28. गोरौरिआर/गौरियार-- गोरौर

29. कतरवार-- कतरपुर

30. पुरिआर-- पुरी

31. कटरिआर/कटरियार-- कटारी

32. कत्रीआर/कत्रीयार-- कत्री

33. बिलवार-- बिलारी

34. बरहरिआर-- बरहरि 

35. पचवरे-- पचवारा

36. बिशोखिआर-- बिजोखरि

37. बरिआर-- बरिआ कलान/खुर्द

38. चंडगवें-- चंडी

39.  बेढनवें-- बेढ़ना

40.  रुखीआर-- रुखी/पंचरुखी/कोशी रुखी

41. ओदन्तिआर (ओखन्डिआर?)-- ओदन्तपुरी (बिहारशरीफ)

42.  कुमारपटने-- कुम्हरार, पटना

43.  प्रभुपटने-- नौजरघाट, पटना सिटी

44.  नागपटने-- नागला,फतुहा

45.  करपटने-- पटना सैटेलाइट गांव

46.  पानपटने-- पटना सैटेलाइट गांव

47.  नेपटने-- पटना सैटेलाइट गांव


नवादा जिले में पडने वाले अन्य मूल गांव और उपनाम/खासघर

48. पचगवें-- पचगांव

49. बिसियत-- बिसियैत 

50. नरहटिआर-- नरहट

51. गेहिलवार-- गेहलौर

52. अत्रियार/त्रियार-- अत्रि 

53. मनवंश रतनमन--सौर(?)

54. सनोखरे/सोनखरे-- सनोखरा

55. कथोटवार-- कथोकारी


पटना (P) और अम्बा-कुटुम्बा (A) मध्य अम्बस्थों का मूल गांव और उपनाम/खासघर

56. मंदीलवार-- मंदील

57. भरथुआर-- भरथुआ

58. दराद-- दरार

59. सकरदिहार-- सकरडीह 

60.  महथा-- महथा

61. इंतहार/इतेहयार/ईतेहवार--इतवां (Itwan) हसपुरा


कुटुम्बा तहसील औरंगाबाद जिला अन्तर्गत सोन नदी के किनारे और उसके पास अम्बस्थ का मूल गांव और उपनाम/खासघर

62. धुंधुआर-- धुंधुआ

63. कसौटिआर--कसौटी तथा

64. जयपुरियार-- जयपुर


गया शहर के सैटेलाइट गांव जो अम्बस्थों का मूल गांव और उपनाम/खासघर

65. सनौटिआर-- सनौट/सोनौट

66. काकन्दवार-- चाकन्द

67. गयावर-- गया का सैटेलाइट गांव

68. गयादत्त-- गया का सैटेलाइट गांव

69. गयासेन-- गया का सैटेलाइट गांव

70. गजरे गयासेन-- गया का सैटेलाइट गांव


गया (चाकन्द-मानपुर) तथा अम्बा-कुटुम्बा (औरंगाबाद) के मध्य गांव जो अम्बस्थों का मूल गांव और उपनाम/खासघर

71. परैवार/परैयार-- परैया-खुर्द

72. कस्तुआर/कस्थुआर-- कस्ठा


पुराना गया जिला के अन्तर्गत पडने वाले मूलगांव तथा उपनाम/खासघर

73. त्रियार/तेरियार आदि-- अत्रि, गया जिला

74. दफ्थुआर/दफ्थुआर-- दब्थु (दफ्थु) हुलासगंज जहानाबाद 


अन्य खासघर का नाम जिससे इंगित होने वाले मूल गांव की पहचान अभी तक नहीं हो सकी है


01.  बेदसेन 

02. डुमरवें/डुमरसेन (डुमरे), ब्लॉक बिहारशरीफ, नालन्दा

03. बरतिआर, 

04. चारगवें

05. चखैआर/चखैयार, 

06. जरुहार

07. जमैयार,

08. जोरीहार, 

09. बेदसेन

10.  सरिआर, मूलगांव सरे, ब्लाक अस्थवां जिला नालन्दा

11. नहसेन,

12. लखैयार

13. रियार 

14. गजरे सेन, 

15. गजरे पानसेन, 

16. जेवार--जिआर (Jiar) ब्लॉक अस्थवां (नालन्दा)

17. शंखेरमन/संखेरमन, Manshankhre

18ए.शाण्डिल्यवार