विष्णु प्रसाद चतुर्वेदी
सामान्यतः यह समझा जाता है कि वैज्ञानिक सदैव सारपूर्ण विषयों पर ही अनुसंधान करते हैं मगर स्थिति इससे भिन्न है। कई वैज्ञानिक अनुसंधान हेतु ऐसे बेतुके विषय चुनते हैं जो पहले आपको हँसाते है और फिर सोचने को मजबूर करते हैं। विज्ञान में विनोद की बहार छेड़ने वाले ऐसे अनुसंधानकर्ताओं में से कुछ को प्रतिवर्ष आईजी नोबेल पुरस्कार देकर सम्मानित किया जाता है। अति उत्सुकता से प्रतीक्षित 2014 के आईजी नोबेल पुरस्कारों का वितरण 18 सितम्बर को अमेरिका में हार्वर्ड विश्वविद्यालय केम्ब्रिज के सेण्डर सभागार में समारोह पूर्वक किया गया है। इस वर्ष के आयोजन का मुख्य विषय भोजन रखा गया था। समारोह में ‘साइंस ह्यूमर' कुक बुक का विमोचन भी किया गया। कुक बुक में आईजी नोबेल विजेताओं, वास्तविक नोबेल विजेताओं तथा आयोजकों द्वारा बनाए जायकेदार व्यंजनों को बनाने की श्रेष्ठ विधियां दिए जाने का दावा किया गया है।
आईजी रोमन लिपि में लिखे इग्नोबल
शब्द के प्रथम दो अक्षर हैं। इग्नोबल शब्द अर्थ अधम या नीचकुल में उत्पन्न
होना है। आईजी नोबेल पुरस्कार से सम्मानित अनुसंधानों के विषय सुनकर आप भले
ही छीः छीः करने लगे मगर विस्तार से जानने पर आप इनके महत्व को नकार नहीं
पाएगे। ये भी सामान्य वैज्ञानिक अनुसंधान ही होते हैं मगर लीक से कुछ हटकर।
इन अनुसंधानों से आने वाली विनोद की भीनी-भीनी गंध इन्हें सामान्य से
विषिष्ट बना देती है। इन अनुसंधानों का उद्देश्य भी मानवीय ज्ञान को बढ़ाना
ही होता है तथा इनके संपादन में वैज्ञानिक विधि का पूर्ण पालन किया जाता
है।
आईजी नोबेल पुरस्कारों की सम्पूर्ण व्यवस्था, वैज्ञानिक विनोद पत्रिका, ‘एनल्स ऑफ इम्प्रोबेबल रिसर्च' (Annals of Improbable Research)
द्वारा की जाती है। कई अन्य कई संस्थाएं भी इस आयोजन में सहयोग करती है।
आयोजन परम्परागत रूप से अमेरिका के हावर्ड विश्वविद्यालय के सैण्डर्स थिएटर
में होता है। आईजी नोबेल पुरस्कार विजेताओं के भाषण मेसाच्यूट्स
प्रौद्यौगिकी संस्थान के सभागार में आयोजित होते हैं। 1991 से प्रारम्भ हुई
आईजी नोबेल पुरस्कार परम्परा की यह 24 वीं पुनरावृति थी। इस बार भी 10
आईजी नोबेल पुरस्कार दिए गए हैं-
1. भौतिकी का पुरस्कार:
केले के छिलके पर आपका पैर
कभी न कभी जरूर गिरा होगा। ऐसी स्थिति में आपने अधिक अधिक से केले को
छिलके को उठा कर कचरे के डिब्बे में डाल दिया होगा, मगर सब आप या मुझ जैसे
सरल नहीं होते। जापानी वैज्ञानिक कियोशी मबुची, केन्सेइ तनाका, डाइची उचिजीमा तथा रीना साकाई
का पैर केले के छिलके पर गिरा या नहीं यह मैं नहीं जानता मगर अपने
अनुसंधान के आधार पर वे आपको बतला सकते हैं कि केले के छिलके, सेव व
टेंगेरीन के छिलके की तुलना में, अधिक फिसलन भरे होते हैं।
इन
वैज्ञानिकों ने बहुत श्रम व साधन खर्च कर जूते के तले और केले के छिलके के
मध्य तथा केले के छिलके और फर्श बीच उपस्थित घर्षण बलों की गणना की है।
इनके कार्य की गम्भीरता का अन्दाज इस बात से लगाया जा सकता है कि 60 बार
मापने पर वे यह जानकारी जुटा पाए हैं। अनुसंधानकर्ताओं के अनुसार केले के
छिलके की चिकनाई का कारण एक प्रकार की शर्करा होती है। इस अस्वाभाविक विषय
पर रोचक अनुसंधान करने पर इन्हें 2014 के भौतिकी के आईजी नोबेल पुरस्कार से
सम्मानित किया गया है।
2. तन्त्रिका विज्ञान:
अनियमित
आकृतियों में परिचित चेहरों को देखना मानव मन की कमजोरी रही है। इसी कारण
किसी को चांद पर चर्खा कातती बुढिया तो किसी को टोस्ट में जिसस क्राइस्ट
दिखाई देता है। विज्ञान की भाषा में इस स्थिति को फेश पैरेइडोलिया
(Face pareidolia) कहते हैं। चीन व कनाड़ा के वैज्ञानिकों जिआंगांग लियु,
जुन ली, लिंग ली, जीई टिआन तथा कांग ली ने फेस पैरेइडोलिया का कारण जानने
का प्रयास किया है। इन वैज्ञानिकों ने स्वयं-सेवकों को पूर्णतः अनियमित
आकृतियां यह कहकर दिखाई गई कि इनमें से 50 प्रतिषत पर विभन्न चेहरें बने
हुए है, आप उन चेहरों को पहचानिए। 37 प्रतिशत स्वयं-सेवकों ने उन अनियमित
आकृतियों में विभिन्न परिचित चहरों को देखने का दावा किया।
अनियमित आकृतियां दिखाने के साथ
ही स्वयं-सेवकों के मस्तिष्क की जाँच भी की गई। जाँच से पता चला कि
आकृतियां देखते समय व्यक्ति के मस्तिष्क का वह भाग सक्रिय हुआ था जिसका
सम्बंध चेहरों की पहचान करने से होता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि
अनियमित आकृतियां में किसी परिचित चेहरे को देखने में कुछ भी गलत नहीं है।
जब आप किसी वस्तु या चित्र को देखने के बहुत उत्सुक होते हैं तो ‘फेस
पैरेइडोलिया, पहचानने की गति को बढ़ा देता है और थोड़ी सी समानता दिखते ही
मस्तिष्क में पूरा चित्र स्वतः ही उभर जाता है। जादू का खेल दिखाने वाले इस कमजोरी का लाभ उठा कर लोगों को वह दिखा देते हैं जो वास्तव में होता नहीं है। इसी अनुसंधान को तन्त्रिका विज्ञान का आईजी नोबेल पुरस्कार दिया गया है।
3. मनोविज्ञान:
सुबह जल्दी उठने के लाभ बताते कई अनुसंधान हुए हैं मगर ब्रिटेन के एमी जोनेस, पीटर के जोनासव, तथा मीन्ना लायोन्स ने सुबह देरी से उठने वाले पर अनुसंधान कर, इस वर्ष का आईजी नोबेल पुरस्कार प्राप्त किया है। इस दल ने यह ज्ञात किया कि सुबह देरी से उठने वाले लोग, जल्दी उठने वालों की तुलना में अधिक आत्म प्रशंसक दक्षता से कार्य करने वाले तथा मनोविकृत होते हैं। जोनेस
का कहना है कि इन लक्षणों युक्त व्यक्ति सफल होने पर अपनी मन पसन्द नौकरी
पाते हैं तथा नौकरी के उच्चतम स्तर पर पहुँचते हैं। इनका वैवाहिक जीवन भी
प्रसन्नता भरा होता हैं। असफलता की स्थिति में ये जेल में जीवन बीताते हैं।
पुरस्कार की घोषणा पर एमी जोनेस को बहुत आश्चर्य हुआ। जोनेस ने आईजी नोबेल
पुरस्कार के विषय में पहले नहीं सुन रखा था।
4. सार्वजनिक स्वास्थ्य:
सार्वजनिक
स्वास्थ्य के आईजी नोबेल पुरस्कार के समाचार पढ़ कर कुत्ते पालने वाले यह
दावा कर सकते हैं कि उनका मानसिक स्वास्थ्य बिल्ली पालने वालों से बेहतर
होता हैं। मिशिगन विश्वविद्यालय के मेडीकल स्कूल के जारोस्लेव फ्लेग्र, जैन हाव्लीकेक, जित्का हानुसोवा लिंडोवा, डेविड हानाउर, नरेन रामकृष्णन तथा लिसा सेयफ्राइड ने अपने अनुसंधान में पाया गया कि बिल्ली काटने के 750 रोगियों में 41 प्रतिशत अवसाद के शिकार होते हैं। सामान्यतः अवसाद रोगियों का प्रतिशत 9 पाया गया है। कुत्ता काटे लोगों में भी 29 प्रतिशत ही अवसाद ग्रसित होते हैं। सामान्यतया
कोई भी अनुसंधान किसी प्रश्न का हल ढ़ूढ़ता है मगर इनके अनुसंधान ने एक
नया प्रश्न खड़ा किया है कि बिल्ली पालने से अवसाद होता है या अवसाद ग्रस्त
लोग बिल्ली पालते हैं, आप बिल्ली पालने से पहले तीन बार सोचलें, बिल्ली
पालने का परिणाम अवसाद हो सकता है।
5. जीव विज्ञान:
जर्मनी व चेक गणतन्त्र के वैज्ञानिकों ने हायनेक बुर्डा के नेतृत्व में अनुसंधान कर पता लगाया है कि मल-मूत्र विसर्जित करते समय कुत्ते अपने शरीर को उत्तर दक्षिण चुम्बकीय अक्ष की बल रेखाओं के समान्तर रखते हैं।
37 किस्मों के 70 कुत्तों की मल-मूत्र विसर्जन की शारीरिक स्थितियों का
सर्तकता पूर्वक अध्ययन करने पर यह तथ्य सामने आया है। निरन्तर दो वर्ष तक
किए अध्ययन से कई नए प्रश्न उत्पन्न हो गए है। एक प्रश्न यह है कि कुत्ते
ऐसा करते क्यों हैं? इस अनुसंधान ने वैज्ञानिकों को यह सोचने पर मजबूर किया
है कि चुम्बकीय तूफान जानवरों के मस्तिष्क को किस प्रकार प्रभावित करता
है?
6. कला:
विज्ञान व कला दो अलग विषय माने गए है मगर इस विज्ञान पुरस्कार ने कला के महत्व को प्रतिपादित किया है। वैज्ञानिक मरिना डी टोमास्को, माइकेल सारडारो तथा पाओलो लिविआ
ने जाना है कि सुन्दर चित्र देखते समय व्यक्ति को लेजर किरणों से कम तकलीफ
अनुभव होती जबकि भद्दा चित्र देखते समय उतनी ही लेजर किरणे अधिक कष्ट
उत्पन्न करती है। अपने अध्ययन हेतु अनुसंधानकर्ताओं ने शक्तिशाली लेजर
किरणों का उपयोग किया था।
7. अर्थशास्त्र:
कई
बार आईजी नोबेल पुरस्कार का उपयोग किसी देश या संस्था के कार्य पर व्यंग्य
करने के हेतु भी किया जाता है। यूरोपियन यूनियन ने सदस्य देशों को
राष्ट्रीय आमदनी बढ़ाने के आदेश दिए हैं। उस आदेश की अनुपालना में इटली के
राष्ट्रीय सांख्यकी संस्थान ने इटली सरकार को सुझाव दिया है कि यदि
वेश्यावृति, अनैनिक दवा व्यापार, स्मग्लिग जैसे गैर कानूनी तरिकों से
प्राप्त धन को भी राष्ट्रीय आय में जोड़ दिया जावे तो देश की राष्ट्रीय
आमदनी बिना प्रयास के तुरन्त बढ़ जाएगी। आय बढ़ाने के इस सफल नुक्से को ढ़ूढ़ने हेतु सम्पूर्ण इटली सरकार को आईजी नोबेल पुरस्कार 2014 से सम्मानित (अपमानित किया गया है)।
8. मेडीसिन:
मेडीसिन
का आईजी नोबेल पुरस्कार अमेरिका व भारत के वैज्ञानिकों को अनियंत्रित
नक्सीर रोकने हेतु नमक में सूखे सूअर मांस का उपयोग करने पर दिया गया है। डा. सोनल सारैया
तथा उनके साथी चिकित्साशास्त्र के सभी नुक्से काम में लेने के बाद भी एक
रोगी का नक्सीर नहीं रोक पाए थे। मरता क्या नहीं करता की तर्ज पर उन
चिकित्साशास्त्रियों ने आदिवासियों द्वारा अपनाए जाने वाले नुक्से का उपयोग
करने से परहेज नहीं किया। आधुनिक चिकित्सा फेल और परम्परागत उपाय पास हो
गया।
डा. सोनल सारैया का कहना है कि
सामान्य नक्सीर के मामले में सूखे सूअर मांस का उपयोग नहीं किया जा सकता।
अनियंत्रित नक्सीर के उस रोगी को एक विषेष रोग ग्लान्जमान थ्रोम्बास्थेनिया
था। उस कारण चिकित्साशास्त्र के सभी उपाय असफल हो गए थे। मजबूरी में
प्राचीन उपचार को अपनाना पड़ा था।
डा. सोनल सारैया सफलता के कारण को लेकर स्पष्ट नहीं हैं। उनका कहना कि सम्भवतः सूखे सूअर मांस में रक्तस़्त्राव रोकने वाला कोई कारक उपस्थित होगा या फिर नमक के कारण सफलता मिली होगी। एक बात तय है कि इस अनुसंधान सिद्ध कर दिया कि चिकित्सा के आदिम नुक्से भी अचूक हो सकते हैं।
डा. सोनल सारैया सफलता के कारण को लेकर स्पष्ट नहीं हैं। उनका कहना कि सम्भवतः सूखे सूअर मांस में रक्तस़्त्राव रोकने वाला कोई कारक उपस्थित होगा या फिर नमक के कारण सफलता मिली होगी। एक बात तय है कि इस अनुसंधान सिद्ध कर दिया कि चिकित्सा के आदिम नुक्से भी अचूक हो सकते हैं।
9. ध्रुवीय विज्ञान:
एइजिल रेइमेरस तथा इफ्टेस्टोल
को रेण्डीयर के व्यवहार की जाँच के लिए इस वर्ष का आईजी नोबेल पुरस्कार
दिया गया है। इन वैज्ञानिकों ने पता किया है कि रेण्डीयर का व्यवहार
ध्रुवीय भालू तथा सामान्य मनुष्य के प्रति अलग अलग होता है। प्रयोग में
वैज्ञानिकों ने एक व्यक्ति को पहले सामान्य मानवी रूप में तथा बाद में
ध्रुवीय भालू के रूप में रेण्डीयर की और भेजा। प्रयोग में पाया गया कि
व्यक्ति को गहरे रंग के मानवीय कपड़े पहने देखने की तुलना में ध्रुवीय भालू
के रूप में देखने पर रेण्डीयर दुगनी दूरी से ही छलांगे मारने लगता है।
10. पोषण:
2014 के पोषण के आईजी नोबेल पुरस्कार के विषय को जानकर आप अवश्य छीः छीः करने लगेगे। वैज्ञानिकों के इस दल ने बच्चों के मल से निकाले गए जीवाणुओं का उपयोग खा़द्य पदार्थों को पौष्टिक एवं स्वादिष्ट बनाने के लिए किया है।
अनाज से फर्मेन्टेड भौज्य पदार्थ बनाने में जीवाणुओं का प्रयोग
प्राचीनकाल से होता रहा है। स्पेन के वैज्ञानिकों ने बताया है कि
प्रोबायोटिक जीवाणुओं का उपयोग फर्मेन्टेड डिब्बा बंद मांसाहारी व्यजंन
बनाने में भी किया जा सकता है। जिन लोगो को दुग्ध उत्पाद का उपयोग वर्जित
होता है वे भी इनका लाभ उठा सकते हैं। लेक्टिक अम्ल जीवाणु आन्त्र के
अम्लीय वातावरण में भी जीवित रह सकते हैं। पुरुस्कृत वैज्ञानिकों राक्यूएल रुबिनो, अन्ना जोफ्रे, बेलेन मार्टिन, टेरेसा अयमेरिक तथा मारगारिटा गरिर्गा ने प्रोबायोटिक उत्पादन में प्रारम्भक की भूमिका निभाने वाले जीवाणुओं के लक्षणों को सूचिबद्ध किया है ।
विजेताओं को अपना सहमति भाषण
प्रस्तुत करने हेतु 60 सैकण्ड का समय दिया गया था। इससे अधिक समय लेने वाले
वैज्ञानिकों को टोकने हेतु आठ वर्ष की लड़की मिस स्वीटी पू मंच पर सजगता
से उपस्थित थी। किसी वैज्ञानिक द्वारा अधिक समय लगाने पर मिस स्वीटी पू
चिल्ला कर कहती है बन्द करो, बन्द करो में बोर हो गई हूँ। अनुपस्थित रहने
वाले विजेताओं ने विडियो में स्वीकृति भेजी। मंच पर कागज के हवाई जाहज
फेंकने के दो निर्धारित सत्र भी हुए।
समारोह में वक्ता के रूप में रोब रहीनेहार्ट व डॉक्टर योशिरो नाकामात्सु उपसित थे। रोब रहीनेहार्ट ऑल इन वन फूड-सोयलेन्ट
बना कर प्रसिद्धि प्राप्त कर चुके हैं। डॉक्टर योशिरो नाकामात्स एक
प्रतिभाशाली जापानी आविष्कारक हैं तथा अब तक 3000 पेटेन्ट प्राप्त कर चुके
हैं। डॉक्टर योशिरो को वर्ष 2005 में आईजी नोबेल पुरस्कार इस कारण प्रदान
किया गया था कि उन्होने 34 वर्ष के जीवन में किए गए प्रत्येक भोजन का फोटो
सहेज कर रखा था।
ऑपेरा गायकों के सानिध्य में होने
वाला यह समारोह विज्ञान जगत की अद्भुत वार्षिक घटना होती है। कुछ लोग आईजी
नोबेल पुरस्कारों को वास्तविक नोबल पुरस्कारो की पैरोड़ी कहते है मगर ऐसा
कहना उचित नहीं है। इन पुरस्कारों के लिए चुने गए अनुसंधान का वैज्ञानिक
महत्व वास्तविक नोबल पुरस्कार प्राप्त करने वाले अनुसंधानों के जैसा ही
होता है। इनके विषय आम सोच के दायरे से कुछ अलग होते हैं। कार्यक्रम
मनोरंजक बनाए रखने के कई अन्य प्रबन्ध भी किए गए थे। कार्यक्रम का प्रारम्भ
परम्परागत 'स्वागत है, स्वागत है', व अन्त 'अलविदा, अलविदा' गीत से हुआ।
............
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें