गुरुवार, 19 अप्रैल 2012

औषधीय पादपों की खेती / कल्पना डिण्डोर











जनजाति काश्तकारों की सेहत सँवार रही है
औषधीय पादपों की खेती
राजस्थान के जनजाति बहुल क्षेत्रों के किसान आर्थिक एवं सामाजिक विकास के लिए जिन नवीन योजनाओं को अपनाने लगे हैं उनमें खेती-बाड़ी से जुड़ी योजनाएं अहम् हैं।
जनजाति क्षेत्रों के किसानों के लिए अत्याधुनिक एवं वैज्ञानिक तरीकों से होने वाली खेती के लाभ ज्यादा महत्वपूर्ण है और यही वजह है कि परम्परागत खेती की रूढ़ियों से घिरे किसान नए जमाने के अनुसार खेती-बाड़ी में रमे हुए आधुनिक कृषि विकास के स्वप्नों को साकार करने में भागीदारी निभा रहे हैं।
इस वजह से इनकी आर्थिक हैसियत में सुधार आया है और इसका परिवेश पर अच्छा असर नज़र भी आने लगा है। इन्हीं योजनाओं में राष्ट्रीय औषधीय पादप मिशन भी एक है जिसके प्रति आदिवासी अंचलों के किसानों में रुझान देखा जा रहा है।
परंपरागत ज्ञान में माहिर हैं आदिवासी
आदिवासी क्षेत्रों में जंगलों के बाहुल्य की स्थिति आदिकाल से रही है और इस वजह से आदिवासियों में जड़ी-बूटियों और औषधीय पादपों के प्रति लगाव तथा इनकी जानकारी आरंभ से रही है। ये धरतीपुत्र इन औषधीय पादपों की सहायता से ही मामूली बीमारियों के उपचार में माहिर रहे हैं।
इस दृष्टि से औषधीय पादपों के प्रति इनका ज्ञान और अनुभव वे महत्वपूर्ण कारक हैं जिनकी वजह से औषधीय पादपों के संरक्षण एवं विकास तथा व्यापक पैमाने पर पल्लवन में इनकी दिली अभिरुचि जागृत हुई है। निश्चित रूप से इसका फायदा सरकार की इस अभिनव और बहुद्देशीय योजना को प्राप्त होगा।
भारत सरकार द्वारा राज्य में वर्ष 2010-11 से राष्ट्रीय औषधीय पादप मिशन लागू किया गया है। यह शत-प्रतिशत केन्द्रीय प्रवर्तित योजना है। इसका मुख्य उद्देश्य आयुष उद्योग को लगातार कच्चे माल की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिये औषधीय पौधों का कृषिकरण करना है।
इससे जंगलों के विनाश को रोका जाकर राज्य में कृषि विविधिकरण एवं निर्यात को बढ़ावा दिया जा सकेगा एवं प्रति इकाई अधिकतम आमदनी प्राप्त की जा सकेगी।
राष्ट्रीय औषधीय पादप मिशन के अन्तर्गत औषधीय पौधों की नर्सरी एवं खेती से लेकर उनके मूल्य संवर्धन, भण्डारण, प्रसंस्करण एवं विपणन की ढांचागत सुविधाओं के विकास के लिये वित्तीय सहायता उपलब्ध कराये जाने का प्रावधान है।
अनुकूल है बांसवाड़ा जिले की आबोहवा
राजस्थान के दक्षिणी भाग का बांसवाड़ा जिला कृषि प्रधान है जहाँ राष्ट्रीय बागवानी मिशन, राष्ट्रीय सूक्ष्म सिंचाई मिशन, राष्ट्रीय औषधीय पादप मिशन तथा अन्य कार्यक्रमों का जिले के प्रगतिशील एवं रुचिशील किसान भरपूर लाभ उठा रहे हैं। कई विभागीय योजनाओं के तहत किसानों को अनुदान सुविधा भी दी जा रही है। कृषि विभाग के अधिकारी एवं विषय विशेषज्ञ कृषकों को तकनीकि मार्गदर्शन देने का कार्य करते हैं।
इन्हीं की प्रेरणा से जिले में राष्ट्रीय औषधीय पादप में कृषकों की रुचि बढ़ने लगी है। यहाँ कि जलवायु इसके लिए काफी मात्रा में उपयोगी पाई गई है। इस योजना के अन्तर्गत औषधीय बगीचों को लगाने के लिए विभाग द्वारा अनुदान की राशि भी दी जा रही है।
औषधीय पौधों के बगीचों की स्थापना
राष्ट्रीय औषधीय पादप मिशन के अन्तर्गत कृषि जलवायुवीय परिस्थितियों के अनुसार चयनित औषधीय फसलों के बगीचों की स्थापना के लिए अनुदान/सहायता उपलब्ध कराये जाने का प्रावधान है। इसके लिये परियोजना प्रस्तावों की स्वीकृति ‘पहले आओ- पहले पाओ’ के आधार पर की जाती है एवं कृषि समूह के परियोजना प्रस्तावों को प्राथमिकता दी जाती है।
 अनुदान का प्रबन्ध
औषधीय बगीचों की स्थापना पर इकाई लागत के आधार पर अनुदान की गणना की जाकर फसलवार अनुदान/सहायता देने का प्रावधान रखा गया है। जिसमें गिलोय के लिए सांकेतिक लागत 27500 व अनुदान राशि 5500 रुपये, सतावरी के लिए सांकेतिक लागत 62500 व अनुदान राशि 12 हजार 500, कालमेध के लिए सांकेतिक लागत 25000 व अनुदान राशि 5000 रुपये, ब्राह्मी के लिए सांकेतिक लागत 40000 व अनुदान राशि 8000 रुपये, मुलैठी के लिए सांकेतिक लागत 1 लाख व अनुदान राशि 50000 रुपये, कलिहारी के लिए के लिए सांकेतिक लागत 1 लाख 37500 व अनुदान राशि 68750 रुपये तथा सर्पगंधा के लिए सांकेतिक लागत 62500 व अनुदान राशि 31250 रुपये देने का प्रावधान रखा गया है।

बड़े काम की छोटी बातें / डॉ. दीपक आचार्य








मानव जीवन योगमाया, भाग्यफल और कर्मयोग की त्रिवेणी पर आधारित है। रोजमर्रा की जिन्दगी के कामों के साथ ही हर व्यक्ति की पसंद और ध्येय अलग-अलग होते हैं जिनको पाने के लिए वह दिन-रात चिंतन करता है और उसी दिशा में उद्यम करता चला जाता है।
प्राचीन काल से समस्याओं के निराकरण और कामनाओं की पूर्त्ति के लिए मानव कुछ न कुछ ऐसे उपायों का सहारा लेता रहा है जो उसके आत्मबल में अभिवृद्धि करने के साथ ही आशाओं का संचार करते हुए लक्ष्य में सफलता पाने के लायक वातावरण और उत्सुकता का संचार कर देते हैं।
इन्हीं सकारात्मक ऊर्जाओं की बदौलत व्यक्ति के वांछित कार्य पूरे होने सहज हो जाते हैं। ये उपाय भी ऐसे होते हैं जिनके लिए अतिरिक्त समय, श्रम और ऊर्जा खर्च नहीं करनी पड़ती और लाभ भी शीघ्र प्राप्त होने लगता है।

बचें आलस्य से
आलस्य आता हो तो रोजाना सूर्योदय से पूर्व उठें और स्नान कर लें। सप्ताह में एक बार पलंग या खाट को खड़ा कर अच्छी तरह झाड़ दें। बेड़शीट/चद्दर रोजाना बदल दें और बिस्तर झाडें। बासी खान-पान को पूरी तरह छोड़ दें। घर का कचरा निकालने के बाद घर से बाहर जाकर बाँयी तरफ झाडू को जोर से तीन बार झटक दें, जब भी वस्त्र पहनें, पहले जोर से झाड़ दें, इससे आलस्य समाप्त होने लगता है। रात को खाना न खायें। ज्यादा देर कपड़े भिगोये न रखें।
ऐसे करें वस्त्रों का परित्याग
अपने किसी भी वस्त्र का परित्याग करना हो तो फेंकने से पूर्व उसे नाक के पास अथवा दूर रख कर सूंघने की भावना करें तथा अपने हाथों से चीर कर ही उसे फेंके। इसी प्रकार अपना कोई पुराना कपड़ा देना अथवा दान करना हो तो अपने हाथ से ही सामने वाले के हाथ में दें/ दान करें, किसी तीसरे माध्यम से नहीं। अच्छा हो यदि उसे देकर एक बार पहन लेने को कहें। इससे अपने द्वारा परित्यक्त वस्त्रों से अपने पर होने वाले दुष्प्रभावों से अच्छी तरह बच सकते हैं।
 यों धारण करें नवीन वस्त्र
इसी प्रकार नए कपड़े पहनने से पूर्व एक बार धो लें या सूरज को दिखा दें तथा जिस तरफ की साँस चल रही हो उस तरफ से साँस अंदर भरते हुए ’¬ जीवं रक्ष’ मंत्र का उच्चारण करते हुए कपड़े धारण करें। इससे ये परिधान जब तक रहेंगे आपके लिए सुरक्षा कवच का काम करेंगे।
अन्न पर पाँव न रखें
कहीं भी किसी भी प्रकार के अनाज/धान आदि पर पांव न चले व रखें अर्थात पाँव न रखें। इससे जीवन में कभी भी अन्न छोड़ने या भूखों मरने की नौबत का सामना करना पड़ सकता है। यदि इन पर से होकर गुजरने की मजबूरी ही हो तो वहीं से जो भी अनाज/ धान/खाद्यान्न आदि जो भी हो, एक मुट्ठी में भर लें व मुट्ठी को अपने सर से छूआ कर वापस वहीं डाल दें फिर आगे बढ़ें।
 अनिष्टकारी बरतनों को हटाएँ
घर में काम आने वाले स्टील या अन्य धातु के किसी भी बर्तन की किनारी टूट जाए और धोते समय हाथ में लगने या इसकी रगड़ से बार-बार हथेली की अंगुलियों पर चीरा लग जाने का खतरा हो तो ऐसे बर्तन को किनारा कर दें अन्यथा यह आपको किनारा कर सकता है। ऐसे बरतन कभी भी जानलेवा हो सकते हैं। इसी प्रकार बजने वाली आधारहीन थालियांे का भोजन दोष पूर्ण है। इसलिए इन्हें रसोई से बाहर कर दें।
 पूजा में शुद्ध चावल ही लें
भगवान को शुद्ध चावल ही चढ़ायें। जिन चावलों के भण्डार में कीड़ों से बचाने के लिए दवाइयां डाली जाती हैं, उनका उपयोग भगवान के लिए न करें। इससे चावल दूषित हो जाते हैं व भगवान स्वीकार नहीं करते। इसी प्रकार अन्य सामग्री भी अच्छे किस्म की हो।
 जो खाएं पीएं अभिमंत्रित करें
आप जो भी भोजन, पानी आदि ग्रहण करें। सेवन करने से पूर्व अपने ईष्ट का स्मरण कर ईष्ट देव या देवी के मंत्र से अभिमंत्रित कर लें। इससे इनकी शक्ति कई गुना बढ़ जाती है। इसी प्रकार बीमारी की अवस्था में भी ईष्ट मंत्र या महामृत्युन्जय मंत्र अथवा भेषज मंत्र ‘ ऊँ अनन्ताय नमः, ऊँ अच्युताय नमः ऊँ गोविन्दाय नमः’ से अभिमंत्रित कर के दवाई ग्रहण करें। इससे दवाई की ताकत बढ़ जाती है और स्वास्थ्य में सुधार की रफ्तार तेज हो जाती है। हर शुक्रवार को भुने हुए चने और मखाणे (खाणदारिया) बच्चांे में बाँटने से ऐश्वर्य प्राप्त होता है।
 दिमाग ठण्डा रखें
अपने दिमाग को सदैव शांत एवं ठण्डा रखने के लिए नहाने के उपरान्त तथा सोने से पूर्व सर के सबसे ऊपरी हिस्से कपाल के मध्य में शुद्ध घी अथवा तेल की मालिश करें। इससे मध्य कपाल मुलायम रहता है और इसका दिव्य लाभ प्राप्त होने के साथ ही शरीर भी स्वस्थ रहता है।
 कर्ज से बचें
तकिये पर कभी नहीं बैठना चाहिए। इससे बैठने वाला व्यक्ति कर्जदार हो जाता है। जो लोग तकिये पर बैठने के आदी होते हैं उन पर कर्ज का बोझ लगातार बढ़ता जाता है।
ऐसे नष्ट करें कागजों को
उपयोग समाप्त हो जाने के बाद अपने किसी भी प्रकार के पत्रों/दस्तावेजों/कागजों को नष्ट करने से पहले फाड़कर इनके छोटे-छोटे टुकड़ें कर लें। इसके बाद ही इन्हें कूड़ादान/कचरा पात्र के हवालें करें। कभी भी पूरे कागज को मसल कर नहीं बल्कि टुकड़े-टुकड़े कर फेंके। इससे इन कागजों का नकारात्मक प्रभाव समाप्त हो जाएगा। कागजों को जलाकर नष्ट करना हो, तब भी इन्हें साबुत न जलाएं बल्कि कम से कम दो-चार टुकड़ें कर लें, फिर आग के हवाले करें।
 यज्ञोपवीत से न बाँधे चाभी
कई जनेऊधारी लोग यज्ञोपवीत को मात्र धागा समझने की भारी भूल करते हुए इसमें चाभियाँ बाँध लेते हैं। यह किसी अपराध से कम नहीं है। यज्ञोपवीत के धागों में देवताओं का निवास होता है। इसकी ग्रंथि में ब्रह्मा, विष्णु एवं रूद्र तथा इसके तन्तुओं में प्रणव, अग्नि, सर्प, सोम, पितृ, प्रजापति, अनिल, सूर्य, विश्वानादि देवताओं का निवास होता है। यज्ञोपवीत के महत्त्व से नासमझ ऐसे लोगों का ज्ञान चक्षु खोलना हम सभी का कर्त्तव्य है।


स्पर्श का प्रभाव देखें
जब किसी बीमारी से ग्रस्त हों और परम्परागत आयुर्वेदिक औषधि ले रहे हों तो औषधि का प्रभाव बढ़ाने के लिए यह भी कर सकते हैं। औषधि से संबंधित घटक से जुड़े पौधे की पत्ती अपने बूट में रख कर बूट पहन लें। इससे आपके तलवों को स्पर्श करती हुई पत्ती फायदा देगी। सर्दी-जुकाम हो तो गर्म तासीर वाली पत्ती अथवा गर्मी हो तो ठण्ढी तासीर वाली पत्ती का इस्तेमाल करें। पत्तियों का संबंध ग्रहों से भी होता है। बीमारी निवारण या कार्य सिद्धि के लिए अपनी राशि या नक्षत्र से संबंधित पेड़ की पत्ती अथवा जड़ को अपनी जेब में रखें या भुजा/गले में बाँध लें। इससे बीमारी का निवारण होने के साथ ही कार्य संपादन में सफलता मिलने में आसानी रहती है। ख़ासकर अपामार्ग की जड़ अपने साथ रखने से हर प्रकार के काम जल्द ही सिद्ध होते हैं।

झाडू का सही इस्तेमाल करें
झाडू भले ही कचरा निकालने के काम में आता है मगर इसे पवित्र माना गया है। झाडू को घर के बाहर या छत पर न रखें, इससे चोरों का भय बना रहता है। घर में झाडू ऐसी जगह रखें जहां किसी की निगाह न पड़े। झाडू को पांव न लगाएं, न ही किसी पर झाडू से वार करें। मासिक धर्म वाली महिलाएं झाडू को हाथ न लगाएं। यह ध्यान रखें कि झाडू गाय न खाए, इससे लक्ष्मी चली जाती है। किसी भी प्रकार के पशुओं पर भी झाडू से प्रहार न करें। किसी को भी झाडू न दिखायें, इससे अपयश के भागी होते हैं और अपना पुण्य सामने वाला ले लेता है।