शनिवार, 28 जून 2014

50 हजार पेड़ लगाने वाले प्रोफेसर





प्रस्तुति---दीपाली / नीतिन, रांची

केरल में एक रिटायर्ड प्रोफेसर ने दुनिया भर के लिए मिसाल कायम की है. उन्होंने सड़क किनारे और खाली पड़ी जमीन पर लगभग पचास हजार पौधे लगाए हैं. स्थानीय लोग सीपी रॉय को ट्री मैन कहते हैं.
रॉय कट्टप्पना के एमईएस कॉलेज में अंग्रेजी के प्रोफेसर रहे हैं और उन्हें शुरू से ही प्रकृति से बहुत लगाव रहा है. बड़े पैमाने पर पौधे लगाने की उनकी कोशिश से बंजर और खाली पड़ी जमीन पर अब हरियाली लहरा रही है. कट्टप्पना, कोट्टयम, चंगानसेरी और एट्टुमनूर-पाल बाईपास पर बहुत से घने छायादार पेड़ उनकी कोशिशों का नतीजा हैं. उन्होंने 15 साल में लगभग 50 हजार पेड़ लगाए हैं.
रॉय कहते हैं कि उनका मकसद लोगों को पेड़ लगाने और पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रोत्साहित करना है ताकि आने वाली पीढ़ियों को स्वच्छ आबोहवा मिल सके. इस मकसद को हासिल करने के लिए उन्होंने ग्रीन लीफ नाम से एक संगठन भी बनाया है. यह संगठन राज्य को हरियाली चादर का रूप देने के लिए काम कर रहा है.
रॉय कहते हैं, "हम व्यस्त सड़कों पर पौधे लगाते हैं. हम ऐसे पौधों को चुनते हैं जो घने छायादार होते हैं और तेजी के साथ बढ़ते हैं. ग्रीन लीफ का सदस्य बनने के लिए किसी तरह की फीस नहीं ली जाती. हां, अगर कोई इसका सदस्य बनना चाहता है तो उसे एक पौधा जरूर लगाना होगा." इस संगठन का सदस्य बने रहने के लिए हर साल एक पौधा लगाना जरूरी है.
वृक्षारोपण प्रोफेसर रॉय की जिंदगी का अहम हिस्सा बन गया है. वह किसी के घर भी जाते हैं तो तोहफे के तौर पर पांच पौधे ले जाते हैं. उन्हें स्थानीय लोगों का भी खूब समर्थन मिलता है. वह इसी सर्मथन को अपनी ताकत बताते हैं. उन्होंने स्थानीय लोग ट्री मैन कहते हैं.
रिपोर्टः एजेंसियां/ए कुमार
संपादनः एमजी

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उंगली उंगली में खूबसूरती

खूबसूरती जांचने के लिए चेहरे की ओर देखा जाता है, कुछ लोग कहीं और भी देखते होंगे, लेकिन अब पता चला है कि महिलाओं को वे पुरुष खुबसूरत लगते हैं, जिनकी अंगूठी वाली उंगली तर्जनी से लंबी होती है.

कोमा से बाहर लाएगी स्कैनिंग तकनीक







प्रस्तुति-- स्वामी शरण दीपा शरण

हाल ही में फॉर्मूला वन स्टार मिषाएल शूमाखर छह महीने के कोमा से बाहर निकले. वैज्ञानिकों ने एक ऐसी तकनीक ढूंढ निकाली है जिससे कोमा में सो रहे मरीज के दिमाग की हरकतों को समझ उनकी हालत में सुधार का ठीक अंदाजा लग सकेगा.
दुनिया के सबसे सफल फॉर्मूला वन रेसर 45 साल के शूमाखर को कृत्रिम रूप से कोमा में रखा गया था. एक स्की दुर्घटना में सिर पर गंभीर चोट लगने के बाद डॉक्टरों ने उन्हें कोमा की स्थिति में रखने का फैसला लिया. मगर ऐसे कई लोग हैं जिनकी कोमा में जाने के बाद वापस होश में आने की संभावना का अंदाजा भी नहीं लग पाता. बेल्जियम के रिसर्चरों ने स्कैनिंग की एक ऐसी तकनीक विकसित की है जिसमें दिमाग की नसों में इंजेक्ट किए गए कुछ खास अणुओं के दिमाग की स्थिति को समझा जा सकेगा. स्कैन में दिमाग के सक्रिय हिस्से प्रकाशित नजर आएंगे. इन्हें देख कर पता चलेगा कि मरीज के कोमाटोज स्थिति से बाहर निकलने की कितनी संभावना है.
लंबे समय तक निष्क्रिय रहने के बावजूद अपने किसी परिवारजन को लाइफ सपोर्ट से हटवा लेने का फैसला लेना किसी के लिए भी आसान नहीं होता. विशेषज्ञ बताते हैं कि कोमा में आ चुके करीब 40 फीसदी मरीजों की हालत का आज भी सही तरह से पता नहीं चल पाता है. ऐसे में पुख्ता आंकड़े और टेस्ट इन परिवारों की काफी मदद कर सकते हैं. इस नई स्कैनिंग तकनीक के विकास पर काम करने वाले लीग यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल के कोमा साइंस ग्रुप के निदेशक स्टीवन लॉरीज बताते हैं, "हमारी कोशिश है कि नई तकनीक और ब्रेन स्कैन के इस्तेमाल से हम सीधे तौर पर जान पाएं कि दिमाग में क्या चल रहा है." लॉरीज बताते हैं कि उनके सेंटर पर आने वाले करीब एक तिहाई मामलों में मरीजों का डायग्नोसिस गलत हुआ होता है, इसीलिए दिमाग की सक्रियता को पकड़ने वाली तकनीक की सख्त जरूरत है.
इस नई रिसर्च में दो तकनीकों पर खास ध्यान दिया गया. पहली है फंक्शनल एमआरआई टेस्टिंग, जिसमें डॉक्टर मरीज से बोलकर कुछ शारीरिक गतिविधियां करवाने की कोशिश करते हैं. अगर मरीज निष्क्रिय रहता है तो डॉक्टर अगले चरण में उसके मस्तिष्क की जांच करना चाहते हैं. ऐसा संभव होता है कि कोई मरीज कोमाटोज ना हो, बल्कि केवल पैरालिसिस यानि लकवे का शिकार हो. दूसरा टेस्ट है पीईटी स्कैन. इसमें मरीज के दिमाग में एक खास तरह का द्रव्य इंजेक्ट किया जाता है. लॉरीज बताते हैं, "रेडियोएक्टिव गुणों वाले ग्लूकोज को दिमाग में डालने का मतलब है ढेर सारी ऊर्जा शरीर में जाना. अगर कोई मरीज कोमाटोज है तो इसके बाद भी वह निष्क्रिय रहता है या फिर बहुत कम गतिविधि दिखाता है." लॉरीज कहते हैं कि जिस मरीज के दिमाग में थोड़ी बहुत सक्रियता भी दिखाई देती है, उनकी एक साल के बाद फिर से जांच करके सही स्थिति का पता लगाया जा सकता है.
पहली बार रिसर्चर दिमाग के अंदर इतनी गहराई तक झांक पाए हैं और चिकित्सा के क्षेत्र में बेल्जियम की इस रिसर्च से बड़ी उम्मीदें जगी है. फिलहाल इसे करीब सौ लोगों पर ही परखा गया है जिसे और ज्यादा लोगों पर टेस्ट करने की जरूरत है. अभी तकनीक महंगी है, लेकिन न्यूरोसाइंटिस्ट आशा कर रहे हैं कि इसे आने वाले समय में सस्ता भी बनाया जा सकेगा. सिर की गहरी चोटों से अपने होश गंवा बैठे लोगों के लिए नई तकनीक किसी वरदान से कम साबित नहीं होगी.
रिपोर्टः रिचर्ड मूरी/आरआर
संपादनः ईशा भाटिया

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विकासशील देश: बीमारी से ज्यादा प्रदूषण से मौत





प्रस्तुति-- जमील अहमद / विनय बिंदास

विकासशील देशों में बीमारी नहीं, बल्कि प्रदूषण सबसे बड़ा हत्यारा है. हर साल इस कारण 84 लाख लोगों की मौत हो रही है.
यह संख्या मलेरिया से होने वाली मौतों से तीन गुणा और एचआईवी एड्स के कारण होने वाली मौतों से करीब 14 गुणा अधिक है. हालांकि प्रदूषण को वैश्विक समुदाय से थोड़ा ही महत्व मिलता है. प्योर अर्थ ब्लैकस्मिथ इंस्टीट्यूट ने इस विश्लेषण को तैयार किया है. यह स्वास्थ्य और प्रदूषण (जीएएचपी) पर विश्वव्यापी गठबंधन का हिस्सा है. जीएएचपी द्विपक्षीय, बहुपक्षीय और अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों, राष्ट्रीय सरकारों, शिक्षाविदों और समाज की सहयोगी संस्था है. इंस्टीट्यूट के अध्यक्ष रिचर्ड फुलर के मुताबिक, "वायु और जल प्रदूषण के साथ टॉक्सिक साइटें विकासशील देशों की स्वास्थ्य प्रणाली पर भारी बोझ थोपती हैं." फुलर ने समाचार एजेंसी आईपीएस को बताया कि वायु और रासायनिक प्रदूषण इन क्षत्रों में तेजी से बढ़ रहा है. और जब लोगों के स्वास्थ्य पर होने वाले कुल प्रभाव पर ध्यान देना शुरु किया जाएगा, तब तक भयानक परिणाम सामने होंगे.
भविष्य की सोचें
फुलर का कहना है कि इस तरह के भयानक भविष्य को पूरी तरह से रोका जा सकता है. विकसित देशों ने काफी हद तक अपने प्रदूषण की समस्याओं को हल कर लिया है. वे कहते हैं बाकी की दुनिया को सहायता चाहिए, लेकिन प्रदूषण टिकाऊ विकास लक्ष्य (एसडीजी) के मौजूदा मसौदा के रडार पर नहीं है. एसडीजी अगले 15 वर्षों के लिए विकास सहायता के लिए संयुक्त राष्ट्र की नई योजना है. उम्मीद है कि इन लक्ष्यों के सितंबर 2015 में घोषणा होने के बाद अंतरराष्ट्रीय समुदाय, सहायता एजेंसियां और दानदाता सहायता के लिए एक साथ खड़े होंगे.
फुलर कहते हैं, "प्रदूषण को कभी कभी अदृश्य हत्यारा कहा जाता है. इसके प्रभाव को ट्रैक करना मुश्किल है क्योंकि स्वास्थ्य के आंकड़े बीमारी को मापते हैं, ना कि प्रदूषण को." फुलर का कहना है कि परिणामस्वरूप प्रदूषण अक्सर एक छोटे मुद्दे के तौर पर प्रचारित किया जाता है, "वास्तव में अब इस पर गंभीर कार्रवाई की जरूरत है."
जीएएचपी के विश्लेषण में विश्व स्वास्थ्य संगठन और दूसरे अन्य डाटा को एकीकृत कर यह निर्धारित किया गया है कि 74 लाख लोगों की मौत की वजह वायु और जल से होने वाले प्रदूषण स्रोत हैं. गरीब देशों में दस लाख अतिरिक्त और मौतें छोटे और मध्यम आकार के उत्पादकों के औद्योगिक कचरे और जहरीले रसायन, वायु, जल, मिट्टी और भोजन में मिलने के कारण हुई.
ब्लैकस्मिथ इंस्टीट्यूट के तकनीकी सलाहकार और न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय में पर्यावरणीय स्वास्थ्य के प्रोफेसर जैक कैरावानोस के मुताबिक इन देशों में संक्रामक रोग और ध्रुमपान के मुकाबले, पर्यावरण प्रदूषण का स्वास्थ्य पर ज्यादा बुरा प्रभाव है.
एए/आईबी (आईपीएस)

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भारत में गूगल का सस्ता स्मार्टफोन




प्रस्तुति- स्वामी शरण / मेहर स्वरूप

गूगल ने घोषणा की है कि जल्द ही वह बाजार में एक बेहद सस्ता स्मार्टफोन उतारेगा. एंड्रॉयड वन नाम के इस कार्यक्रम के तहत नए फोन में स्मार्टफोन की खूबियां मौजूद होंगी और दाम बेहद कम होगा. फोन इस साल भारतीय बाजार में होगा.
इस फोन की कीमत 100 डॉलर यानि केवल 6,000 रुपये के अंदर होगी. एंड्रॉयड पर आधारित इस फोन की स्क्रीन बड़ी, पांच इंच से थोड़ी कम होगी. फोन में एफएम, दो सिम और एसडी कार्ड जैसी सुविधाएं भी होंगी. बाजार में स्मार्टफोन की बढ़ रही मांग को देखते हुए गूगल ने यह अहम घोषणा की है. कंपनी का कहना है कि उनका मकसद है भारत के कोने कोने तक इंटरनेट की सुविधा पहुंचाना.
गूगल के वरिष्ठ उपनिदेशक सुंदर पिचाई ने बताया कि गूगल इसे सारी दुनिया की बाजारों में लाने की तैयारी में है, लेकिन इसकी शुरुआत भारत से इस साल के अंत तक होगी. सैन फ्रांसिस्को में हुई सालाना दो दिवसीय डेवलपर कॉन्फ्रेंस में कंपनी ने यह घोषणा की. साथ ही दावा किया कि इस समय दुनिया भर में करीब एक अरब लोग एंड्रॉयड फोन इस्तेमाल कर रहे हैं.
उन्होंने बताया कि गूगल पहले से ही भारत में कई ऐसी योजनाओं पर काम कर रहा है जिनसे लोगों को स्मार्टफोन पर सस्ता इंटरनेट मुहैया कराया जा सकेगा. गूगल एंड्रॉयड वन को माइक्रोमैक्स, कार्बन और स्पाइस के साथ मिलकर बनाएगी. पचाई ने कहा, "अरबों लोग हैं जिनके पास स्मार्टफोन रखने की सुविधा नहीं है. हम इसे बदलना चाहते हैं."
आईटी रिसर्च कंपनी गार्टनर के निदेशक ब्रायन ब्लाउ भी मानते हैं कि कम कीमत वाले उत्पादों के बढ़ रहे बाजार को देखते हुए गूगल को ऐसा कुछ करने की जरूरत है. उन्होंने कहा, "हालांकि इस क्षेत्र में जगह बनाना मुश्किल होगा, अरबों लोगों को इंटरनेट पर लाना लंबा रास्ता तय करने जैसा है."
इस बारे में पिचाई ने कहा, "हम इस बात के कयास लगाते आ रहे हैं कि कैसा होगा अगर हर किसी के पास इंटरनेट की सुविधा और दुनिया भर की जानकारी होगी. अब यह देखने का समय आ गया है."
स्मार्टफोन बनाने वाली कंपनियों के लिए विकासशील देशों की खास अहमियत है. हैंडसेट बनाने वाली कंपनियों के लिए एंड्रॉयड सॉफ्टवेयर के मुफ्त होने से भी गूगल को फायदा मिला है. एंड्रॉयड सस्ते फोनों पर भी लोगों के बीच खासा लोकप्रिय हो चुका है.
एसएफ/आईबी (एएफपी)

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साइकिल सवार अफगान महिलाओं की बेबाकी






प्रस्तुति- दिनेश कुमार सिन्हा / अम्मी शरण

अफगानिस्तान में किसी महिला को साइकिल पर सवार देखना लोगों के लिए अजीब बात है. ट्रैकसूट, जर्सी और हेल्मेट में जब वे दस लड़कियां निकलती हैं तो टेढ़ी नजरें और भद्दी बातें उन्हें घेरे रहती हैं. लेकिन उनके हौसले बुलंद हैं.
अफगानिस्तान में कट्टरपंथ के साए में महिलाओं के खुले तौर तरीकों और आजाद ख्याली के लिए कोई जगह नहीं. लेकिन महिलाओं और पुरुषों के बीच अंतर करने वाली रूढ़िवादिता को इन दिनों अफगानिस्तान की दस महिलाओं की राष्ट्रीय साइक्लिंग टीम चुनौती दे रही है. वे 2020 ओलंपिक में हिस्सा लेने के लिए खुद को तैयार कर रही हैं. उनका एक और मकसद है, अफगानिस्तान में साइकिलों पर और भी लड़कियों को सवार देखना.
राजनीति से नहीं लेना देना
टीम की सहायक कोच 26 वर्षीय मारिया सिद्दिकी कहती हैं, "हमारे लिए साइकिल आजादी की निशानी है." उनके मुताबिक साइकिल के जरिए वे किसी तरह की राजनीति का हिस्सा नहीं बनना चाहती है. उन्होंने कहा, "हम साइकिल इसलिए चलाते हैं क्योंकि हम चलाना चाहते हैं. अगर हमारे भाई साइकिल चला सकते हैं तो हम क्यों नहीं."
साइक्लिंग के लिए उपयुक्त ट्रैकसूट, जर्सी और हेल्मेट लगाकर जब मारिया और उनकी साथी ट्रोनिंग के लिए काबुल से पगमान की पहाड़ियों की तरफ बढ़ती हैं, तो तरह तरह की तीखी आवाजें कान में पड़ती हैं. कोई उन्हें वेश्या कहता है तो कोई घर वापस जाने की सलाह दोता है. इसी बीच कोई तीसरा कहता है कि वे घर की बदनामी कराने पर तुली हुई हैं.
नफरत भरी नजरों से लोग रास्ते भर उन्हें घूरते रहते हैं. लेकिन वे लोगों के तल्ख रवैये की परवाह नहीं करतीं, क्योंकि समाज का एक छोटा सा तबका ऐसा भी है जो उनका समर्थन करता है.
ख्वाबों के पंख
एक साइकिल सवार की मां ऊपर से नीचे तक काले रंग के हिजाब में लिपटी वहां लड़कियों का मनोबल बढ़ाने पहुंची हैं. अपने परिवार में वह अकेली हैं जो ताली बजाकर उनका हौसला बढ़ाती हैं. 20 साल की यूनिवर्सिटी छात्रा फिरोजा की मां मारिया रसूली कहती हैं, "मेरी बेटी मेरे सपने पूरे कर रही है. मेरे माता पिता ने मुझे कभी साइकिल नहीं चलाने दी. मैं अपनी बेटी के साथ वह नहीं होने दूंगी." उन्होंने बताया कि उन्होंने और उनके पति ने पड़ोसियों और रिश्तेदारों से यह बात छुपाकर रखी, क्योंकि "वे कभी नहीं समझेंगे."
अफगानिस्तान में अमेरिकी नेतृत्व में नाटो फौजों के आने के बाद से कट्टरपंथी तालिबानियों के प्रभाव को बहुत हद तक कम किया जा सका है. इसके बाद से महिलाओं ने कई अहम क्षेत्रों में जगह बनाई है, इनमें देश की राजनीति भी शामिल है. अफगानिस्तान में न्यायिक क्षेत्र में भी कई महिलाएं आगे आई हैं. पहली बार देश में उपराष्ट्रपति के पद की दावेदारी एक महिला उम्मीदवार ने भी की.
एसएफ/ओएसजे (एएफपी)

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