गुरुवार, 30 सितंबर 2021

शिक्षा नीति में शामिल हो अनुवाद की अहमियत ::: अनेजा

 

* राजधानी कॉलेज में मनाया गया अंतरराष्ट्रीय अनुवाद दिवस*_



 अंतर्राष्ट्रीय अनुवाद दिवस के अवसर पर “राष्ट्रीय चेतना और अनुवाद” विषय पर दिल्ली विश्वविद्यालय के राजा गार्डन स्थित  राजधानी महाविद्यालय के अंग्रेजी साहित्य परिषद द्वारा एक दिवसीय राष्ट्रीय सेमीनार का अयोजन किया गया| इसमें दस से अधिक विश्वविद्यालयों से जुड़े चयनित प्राध्यापकों, विद्वानों व अनुवादकों ने अनुवाद से जुड़े अपने शोध-पत्र प्रस्तुत किए| संगोष्ठी के उदघाटन सत्र में मुख्य अतिथि के तौर पर दिल्ली विश्वविद्यालय के अंग्रेजी विभाग में प्रोफ़ेसर अनिल कुमार अनेजा ने कहा कि राष्ट्रीय चेतना में अनुवाद की बहुत बड़ी भूमिका है| यही कारण है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति में अनुवाद को बहुत महत्व दिया गया है| आनुवाद से जुड़ा विषय राष्ट्रीय शिक्षा नीति का एक मजबूत आधारस्तंभ है| उन्होंने महाविद्यालयों में अनुवाद प्रकोष्ठ स्थापित किए जाने का भी आवाह्न किया|


बीजवक्ता के रूप में बोल रहे जी एल ए विश्वविद्यालय मथुरा के अंग्रेजी विभाग से विभागाध्यक्ष प्रोफ़ेसर पंचानन मोहंती ने अनुवाद को मानवीय सभ्यता और संस्कृति के विकास में एक आवश्यक कारक मानते हुए पश्चिमी सभ्यता ही नहीं भारतीय सभ्यता के भी सतत पुष्पन-पल्लवन के लिए आवश्यक बताया| राष्ट्रीय चेतना और अनुवाद के सहसंबंध विषय पर उनके द्वारा भारत के औपनिवेशिककाल से लेकर आज के समय के अनेक उदाहरण प्रस्तुत किए| सत्र की अध्यक्षता महाविद्यालय के प्राचार्य प्रोफ़ेसर राजेश गिरि ने की| उन्होने कहा की शैक्षणिक संस्थानों की अनुवाद विषय की बहुत ही महत्ता है। ज्ञान विज्ञान के हर क्षेत्र में अनुवाद आज बहुत हद तक अध्ययन अध्यापन अनुवाद द्वारा ही संभव हो रहा है। इस दौरान महाविद्यालय की प्रोफेसर वर्षा गुप्ता व संगोष्ठी के संयोजक डॉ वेद मित्र शुक्ल ने भी अपने विचार रखे|



संगोष्ठी के एक अन्य महत्वपूर्ण सत्र में महाविद्यालयी कक्षाओं में अनुवाद की भूमिका को लेकर गहन चिंतन-मनन किया गया| इस दौरान अध्यक्ष के रूप में डॉ बरुन मिश्र और मुख्य वक्ता के रूप में बनारस हिंदु विश्वविद्यालय से डॉ उमेश कुमार, दिल्ली विश्वविद्यालय के दीनदयाल उपाध्याय कोलेज से डॉ ललित कुमार और राजधानी महाविद्यालय से शफीकुल आलम उपस्थित रहे| विभिन्न सत्रों की अध्यक्षता और संयोजक की भूमिका में डॉ रचना सेठी, डॉ दिव्या बाजपेयी झा, डॉ युमी कपाई, डॉ अनुभा अनुश्री, डॉ शेफाली राठोर, डॉ अदिति शर्मा, नेहा राणा, डॉ सच्चिदानन्द झा आदि विद्वान प्राध्यापक़गण मौजूद रहे| एक दिवसीय संगोष्ठी का संचालन महाविद्यालय के विद्यार्थी स्तुति व महिमा द्वारा किया गया| इस दौरान अर्चित, सक्षम, शुभम, पूजा, कामदेव अविनाशी, हर्षिता पाठक, याशिका, ईशा रानी, ध्रुव मल्होत्रा, आशुतोष राज आदि की विशेष सहभागिता रही|  


                 

बुधवार, 29 सितंबर 2021

ब्राह्मण_और_जनेऊ(यज्ञोपवीत / कृष्णा सिंह )

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पिछले दिनों मैं हनुमान जी के मंदिर में गया था जहाँ पर मैंने एक ब्राह्मण को देखा, जो एक जनेऊ हनुमान जी के लिए ले आये थे | संयोग से मैं उनके ठीक पीछे लाइन में खड़ा था, मेंने सुना वो पुजारी से कह रहे थे कि वह स्वयं का काता (बनाया) हुआ जनेऊ हनुमान जी को पहनाना चाहते हैं, पुजारी ने जनेऊ तो ले लिया पर पहनाया नहीं | जब ब्राह्मण ने पुन: आग्रह किया तो पुजारी बोले यह तो हनुमान जी का श्रृंगार है इसके लिए बड़े पुजारी (महन्थ) जी से अनुमति लेनी होगी, आप थोड़ी देर प्रतीक्षा करें वो आते ही होगें | मैं उन लोगों की बातें गौर से सुन रहा था, जिज्ञासा वश मैं भी महन्थ जी के आगमन की प्रतीक्षा करने लगा।


थोड़ी देर बाद जब महन्थ जी आए तो पुजारी ने उस ब्राह्मण के आग्रह के बारे में बताया तो महन्थ जी ने ब्राह्मण की ओर देख कर कहा कि देखिए हनुमान जी ने जनेऊ तो पहले से ही पहना हुआ है और यह फूलमाला तो है नहीं कि एक साथ कई पहना दी जाए | आप चाहें तो यह जनेऊ हनुमान जी को चढ़ाकर प्रसाद रूप में ले लीजिए |


 इस पर उस ब्राह्मण ने बड़ी ही विनम्रता से कहा कि मैं देख रहा हूँ कि भगवान ने पहले से ही जनेऊ धारण कर रखा है परन्तु कल रात्रि में चन्द्रग्रहण लगा था और वैदिक नियमानुसार प्रत्येक जनेऊ धारण करने वाले को ग्रहणकाल के उपरांत पुराना बदलकर नया जनेऊ धारण कर लेना चाहिए बस यही सोच कर सुबह सुबह मैं हनुमान जी की सेवा में यह ले आया था प्रभु को यह प्रिय भी बहुत है | हनुमान चालीसा में भी लिखा है कि - "हाथ बज्र और ध्वजा विराजे, कांधे मूज जनेऊ साजे"।


 अब महन्थ जी थोड़ी सोचनीय मुद्रा में बोले कि हम लोग बाजार का जनेऊ नहीं लेते हनुमान जी के लिए शुद्ध जनेऊ बनवाते हैं, आपके जनेऊ की क्या शुद्धता है | इस पर वह ब्राह्मण बोले कि प्रथम तो यह कि ये कच्चे सूत से बना है, इसकी लम्बाई 96 चउवा (अंगुल) है, पहले तीन धागे को तकली पर चढ़ाने के बाद तकली की सहायता से नौ धागे तेहरे गये हैं, इस प्रकार 27 धागे का एक त्रिसुत है जो कि पूरा एक ही धागा है कहीं से भी खंडित नहीं है, इसमें प्रवर तथा गोत्रानुसार प्रवर बन्धन है तथा अन्त में ब्रह्मगांठ लगा कर इसे पूर्ण रूप से शुद्ध बनाकर हल्दी से रंगा गया है और यह सब मेंने स्वयं अपने हाथ से गायत्री मंत्र जपते हुए किया है |


ब्राह्मण देव की जनेऊ निर्माण की इस व्याख्या से मैं तो स्तब्ध रह गया मन ही मन उन्हें प्रणाम किया, मेंने देखा कि अब महन्त जी ने उनसे संस्कृत भाषा में कुछ पूछने लगे, उन लोगों का सवाल - जबाब तो मेरे समझ में नहीं आया पर महन्त जी को देख कर लग रहा था कि वे ब्राह्मण के जबाब से पूर्णतया सन्तुष्ट हैं अब वे उन्हें अपने साथ लेकर हनुमान जी के पास पहुँचे जहाँ मन्त्रोच्चारण कर महन्त व अन्य 3 पुजारियों के सहयोग से हनुमान जी को ब्राह्मण देव ने जनेऊ पहनाया तत्पश्चात पुराना जनेऊ उतार कर उन्होंने बहते जल में विसर्जन करने के लिए अपने पास रख लिया |


 मंदिर तो मैं अक्सर आता हूँ पर आज की इस घटना ने मन पर गहरी छाप छोड़ दी, मेंने सोचा कि मैं भी तो ब्राह्मण हूं और नियमानुसार मुझे भी जनेऊ बदलना चाहिए, उस ब्राह्मण के पीछे-पीछे मैं भी मंदिर से बाहर आया उन्हें रोककर प्रणाम करने के बाद अपना परिचय दिया और कहा कि मुझे भी एक जोड़ी शुद्ध जनेऊ की आवश्यकता है, तो उन्होंने असमर्थता व्यक्त करते हुए कहा कि इस तो वह बस हनुमान जी के लिए ही ले आये थे हां यदि आप चाहें तो मेरे घर कभी भी आ जाइएगा घर पर जनेऊ बनाकर मैं रखता हूँ जो लोग जानते हैं वो आकर ले जाते हैं | मेंने उनसे उनके घर का पता लिया और प्रणाम कर वहां से चला आया।


शाम को उनके घर पहुंचा तो देखा कि वह अपने दरवाजे पर तखत पर बैठे एक व्यक्ति से बात कर रहे हैं , गाड़ी से उतरकर मैं उनके पास पहुंचा मुझे देखते ही वो खड़े हो गए, और मुझसे बैठने का आग्रह किया अभिवादन के बाद मैं बैठ गया, बातों बातों में पता चला कि वह अन्य व्यक्ति भी पास का रहने वाला ब्राह्मण है तथा उनसे जनेऊ लेने आया है | ब्राह्मण अपने घर के अन्दर गए इसी बीच उनकी दो बेटियाँ जो क्रमश: 12 वर्ष व 8 वर्ष की रही होंगी एक के हाथ में एक लोटा पानी तथा दूसरी के हाथ में एक कटोरी में गुड़ तथा दो गिलास था, हम लोगों के सामने गुड़ व पानी रखा गया, मेरे पास बैठे व्यक्ति ने दोनों गिलास में पानी डाला फिर गुड़ का एक टुकड़ा उठा कर खाया और पानी पी लिया तथा गुड़ की कटोरी मेरी ओर खिसका दी, पर मेंने पानी नहीं पिया 


इतनी देर में ब्राह्मण अपने घर से बाहर आए और एक जोड़ी जनेऊ उस व्यक्ति को दिए, जो पहले से बैठा था उसने जनेऊ लिया और 21 रुपए ब्राह्मण को देकर चला गया | मैं अभी वहीं रुका रहा इस ब्राह्मण के बारे में और अधिक जानने का कौतुहल मेरे मन में था, उनसे बात-चीत में पता चला कि वह संस्कृत से स्नातक हैं नौकरी मिली नहीं और पूँजी ना होने के कारण कोई व्यवसाय भी नहीं कर पाए, घर में बृद्ध मां पत्नी दो बेटियाँ तथा एक छोटा बेटा है, एक गाय भी है | वे बृद्ध मां और गौ-सेवा करते हैं दूध से थोड़ी सी आय हो जाती है और जनेऊ बनाना उन्होंने अपने पिता व दादा जी से सीखा है यह भी उनके गुजर-बसर में सहायक है | 


इसी बीच उनकी बड़ी बेटी पानी का लोटा वापस ले जाने के लिए आई किन्तु अभी भी मेरी गिलास में पानी भरा था उसने मेरी ओर देखा लगा कि उसकी आँखें मुझसे पूछ रही हों कि मेंने पानी क्यों नहीं पिया, मेंने अपनी नजरें उधर से हटा लीं, वह पानी का लोटा गिलास वहीं छोड़ कर चली गयी शायद उसे उम्मीद थी की मैं बाद में पानी पी लूंगा | 


अब तक मैं इस परिवार के बारे में काफी है तक जान चुका था और मेरे मन में दया के भाव भी आ रहे थे | खैर ब्राह्मण ने मुझे एक जोड़ी जनेऊ दिया, तथा कागज पर एक मंत्र लिख कर दिया और कहा कि जनेऊ पहनते समय इस मंत्र का उच्चारण अवश्य करूं -- |


मैंने सोच समझ कर 500 रुपए का नोट ब्राह्मण की ओर बढ़ाया तथा जेब और पर्स में एक का सिक्का तलाशने लगा, मैं जानता था कि 500 रुपए एक जोड़ी जनेऊ के लिए बहुत अधिक है पर मैंने सोचा कि इसी बहाने इनकी थोड़ी मदद हो जाएगी | ब्राह्मण हाथ जोड़ कर मुझसे बोले कि सर 500 सौ का फुटकर तो मेरे पास नहीं है, मेंने कहा अरे फुटकर की आवश्यकता नहीं है आप पूरा ही रख लीजिए तो उन्हें कहा नहीं बस मुझे मेरी मेहनत भर का 21 रूपए दे दीजिए, मुझे उनकी यह बात अच्छी लगी कि गरीब होने के बावजूद वो लालची नहीं हैं, पर मेंने भी पांच सौ ही देने के लिए सोच लिया था इसलिए मैंने कहा कि फुटकर तो मेरे पास भी नहीं है, आप संकोच मत करिए पूरा रख लीजिए आपके काम आएगा | उन्होंने कहा अरे नहीं मैं संकोच नहीं कर रहा आप इसे वापस रखिए जब कभी आपसे दुबारा मुलाकात होगी तब 21रू. दे दीजिएगा | 


इस ब्राह्मण ने तो मेरी आँखें नम कर दीं उन्होंने कहा कि शुद्ध जनेऊ की एक जोड़ी पर 13-14 रुपए की लागत आती है 7-8 रुपए अपनी मेहनत का जोड़कर वह 21 रू. लेते हैं कोई-कोई एक का सिक्का न होने की बात कह कर बीस रुपए ही देता है | मेरे साथ भी यही समस्या थी मेरे पास 21रू. फुटकर नहीं थे, मेंने पांच सौ का नोट वापस रखा और सौ रुपए का एक नोट उन्हें पकड़ाते हुए बड़ी ही विनम्रता से उनसे रख लेने को कहा तो इस बार वह मेरा आग्रह नहीं टाल पाए और 100 रूपए रख लिए और मुझसे एक मिनट रुकने को कहकर घर के अन्दर गए, बाहर आकर और चार जोड़ी जनेऊ मुझे देते हुए बोले मेंने आपकी बात मानकर सौ रू. रख लिए अब मेरी बात मान कर यह चार जोड़ी जनेऊ और रख लीजिए ताकी मेरे मन पर भी कोई भार ना रहे |


मेंने मन ही मन उनके स्वाभिमान को प्रणाम किया साथ ही उनसे पूछा कि इतना जनेऊ लेकर मैं क्या करूंगा तो वो बोले कि मकर संक्रांति, पितृ विसर्जन, चन्द्र और सूर्य ग्रहण, घर पर किसी हवन पूजन संकल्प परिवार में शिशु जन्म के सूतक आदि अवसरों पर जनेऊ बदलने का विधान है, इसके अलावा आप अपने सगे सम्बन्धियों रिस्तेदारों व अपने ब्राह्मण मित्रों को उपहार भी दे सकते हैं जिससे हमारी ब्राह्मण संस्कृति व परम्परा मजबूत हो साथ ही साथ जब आप मंदिर जांए तो विशेष रूप से गणेश जी, शंकर जी व हनूमान जी को जनेऊ जरूर चढ़ाएं...


उनकी बातें सुनकर वह पांच जोड़ी जनेऊ मेंने अपने पास रख लिया और खड़ा हुआ तथा वापसी के लिए बिदा मांगी, तो उन्होंने कहा कि आप हमारे अतिथि हैं पहली बार घर आए हैं हम आपको खाली हाथ कैसे जाने दो सकते हैं इतना कह कर उनहोंने अपनी बिटिया को आवाज लगाई वह बाहर निकाली तो ब्राह्मण देव ने उससे इशारे में कुछ कहा तो वह उनका इशारा समझकर जल्दी से अन्दर गयी और एक बड़ा सा डंडा लेकर बाहर निकली, डंडा देखकर मेरे समझ में नहीं आया कि मेरी कैसी बिदायी होने वाली है | 


अब डंडा उसके हाथ से ब्राह्मण देव ने अपने हाथों में ले लिया और मेरी ओर देख कर मुस्कराए जबाब में मेंने भी मुस्कराने का प्रयास किया | वह डंडा लेकर आगे बढ़े तो मैं थोड़ा पीछे हट गया उनकी बिटिया उनके पीछे पीछे चल रह थी मेंने देखा कि दरवाजे की दूसरी तरफ दो पपीते के पेड़ लगे थे डंडे की सहायता से उन्होंने एक पका हुआ पपीता तोड़ा उनकी बिटिया वह पपीता उठा कर अन्दर ले गयी और पानी से धोकर एक कागज में लपेट कर मेरे पास ले आयी और अपने नन्हें नन्हा हाथों से मेरी ओर बढ़ा दिया उसका निश्छल अपनापन देख मेरी आँखें भर आईं।


मैं अपनी भीग चुकी आंखों को उससे छिपाता हुआ दूसरी ओर देखने लगा तभी मेरी नजर पानी के उस लोटे और गिलास पर पड़ी जो अब भी वहीं रखा था इस छोटी सी बच्ची का अपनापन देख मुझे अपने पानी न पीने पर ग्लानि होने लगी, मैंने झट से एक टुकड़ा गुड़ उठाकर मुँह में रखा और पूरी गिलास का पानी एक ही साँस में पी गया, बिटिया से पूछा कि क्या एक गिलास पानी और मिलेगा वह नन्ही परी फुदकता हुई लोटा उठाकर ले गयी और पानी भर लाई, फिर उस पानी को मेरी गिलास में डालने लगी और उसके होंठों पर तैर रही मुस्कराहट जैसे मेरा धन्यवाद कर रही हो , मैं अपनी नजरें उससे छुपा रहा था पानी का गिलास उठाया और गर्दन ऊंची कर के वह अमृत पीने लगा पर अपराधबोध से दबा जा रहा था।


अब बिना किसी से कुछ बोले पपीता गाड़ी की दूसरी सीट पर रखा, और घर के लिए चल पड़ा, घर पहुंचने पर हाथ में पपीता देख कर मेरी पत्नी ने पूछा कि यह कहां से ले आए तो बस मैं उससे इतना ही कह पाया कि एक ब्राह्मण के घर गया था तो उन्होंने खाली हाथ आने ही नहीं दिया

प्राचीन इराक और भारत

 

१. प्राचीन भारत-इराक भारतवर्ष का भाग था। भारत वर्ष का ३ अर्थों में प्रयोग हुआ है-

(१) लोक पद्म- उत्तरी गोलार्द्ध के नकशे के ४ भागों में एक। इनको भू-पद्म के ४ दल कहा गया है-

(विष्णु पुराण २/२)-भद्राश्वं पूर्वतो मेरोः केतुमालं च पश्चिमे। वर्षे द्वे तु मुनिश्रेष्ठ तयोर्मध्यमिलावृतः।२४।

भारताः केतुमालाश्च भद्राश्वाः कुरवस्तथा। पत्राणि लोकपद्मस्य मर्यादाशैलबाह्यतः।४०।

यहां भारत-दल का अर्थ है विषुवत रेखा से उत्तरी ध्रुव तक, उज्जैन (७५०४३’ पूर्व) के दोनों तरफ ४५-४५ अंश पूर्व-पश्चिम। इसके पश्चिम में इसी प्रकार केतुमाल, पूर्व में भद्राश्व तथा विपरीत दिशा में (उत्तर) कुरु, ९०-९० अंश देशान्तर में हैं। महाभारत, भीष्मपर्व (९/५-९) के अनुसार यह इन्द्र (१७५०० ईपू), पृथु (१७,१०० ईपू), वैवस्वत मनु (१३९०२ ईपू), इक्ष्वाकु तथा उनके वंशजों का क्षेत्र रहा है। 

विषुव से उत्तर ध्रुव तक इन्द्र के ३ लोक थे-भूलोक हिमालय तक, भुवः मंगोलिया तक, उसके बाद ध्रुव तक स्वः लोक।

३ कुरु थे। विषुव रेखा पर शून्य देशान्तर पर लंका था (लक्कादीव का दक्षिन भाग) इसके डूबने पर उज्जैन को शूण्य देशान्तर कहा गया था। कुरुक्षेत्र प्रायः इस रेखा पर था। इस रेखा पर सबसे उत्तर का नगर उत्तर कुरु था। यहां से देशान्तर अंश गिनती आरम्भ होती है अतः इसे ॐ नगर कहा गया (सिबिर या साइबेरिया की राजधानी ओम्स्क)। कुरुक्षेत्र की विपरीत दिशा में कुरु देश था (मेक्सिको, अमेरिका का पश्चिम भाग)। 

मान्धाता (७५०० ईपू) का प्रभुत्व पूरी पृथ्वी पर था, अतः उनके राज्य में सदा किसी स्थान पर सूर्य का उदय और अन्य किसी स्थान पर अस्त होता रहता था। विष्णु पुराण, अंश ४, अध्याय, २-

तदस्तु मान्धाता चक्रवर्ती सप्तद्वीपां महीं बुभुजे॥६३॥तत्रायं श्लोकः॥६५॥

यावत् सूर्य उदेत्यस्तं यावच्च प्रतितिष्ठति। सर्वं तद्यौवनाश्वस्य मान्धातुः क्षेत्रमुच्यते॥६५॥

इसकी नकल कर अंग्रेजों ने कहा कि ब्रिटिश राज्य में सूर्य का अस्त नहीं होता।

(२) भारत वर्ष- हिमालय को पूर्व पश्चिम में समुद्र तक फैलाया जाय तो उसके दक्षिण समुद्र तक भारतवर्ष था जिसके ९ खण्ड थे। यहां द्वीप या महाद्वीप का अर्थ केवल समुद्र से घिरा क्षेत्र नहीं है, यह पर्वत, नदी या मरुस्थल द्वारा प्राकृतिक विभाजन भी है। मत्स्य पुराण, अध्याय ११४-

अथाहं वर्णयिष्यामि वर्षेऽस्मिन् भारते प्रजाः। भरणच्च प्रजानां वै मनुर्भरत उच्यते।५।

निरुक्तवचनाच्चैव वर्षं तद् भारतं स्मृतम्। यतः स्वर्गश्च मोक्षश्च मध्यमश्चापि हि स्मृतः।६।

न खल्वन्यत्र मर्त्यानां भूमौकर्मविधिः स्मृतः। भारतस्यास्य वर्षस्य नव भेदान् निबोधत।७।

इन्द्रद्वीपः कशेरुश्च ताम्रपर्णो गभस्तिमान्। नागद्वीपस्तथा सौम्यो गन्धर्वस्त्वथ वारुणः।८।

अयं तु नवमस्तेषं द्वीपः सागरसंवृतः। योजनानां सहस्रं तु द्वीपोऽयं दक्षिणोत्तरः।९।

आयतस्तुकुमारीतो गङायाः प्रवहावधिः।तिर्यगूर्ध्वं तु विस्तीर्णः सहस्राणि दशैव तु।१०।

यस्त्वयं मानवो द्वीपस्तिर्यग् यामः प्रकीर्तितः। य एनं जयते कृत्स्नं स सम्राडिति कीर्तितः।१५।

इनमें इन्द्रद्वीप इरावती नदी क्षेत्र है, जहां का ऐरावत इन्द्र का हाथी था( वायु पुराण, ३७/२५)। नागद्वीप अण्डमान निकोबार से सुमात्रा तक था। पश्चिम इण्डोनेसिया सेलेबीज तथा पूर्व भाग गभस्तिमान था। गभस्तिमान की एक नदी गभस्ति (न्यूगिनी में) को शक द्वीप ) आस्ट्रेलिया में भी कहा गया है। ताम्रपर्ण तमिलनाडु की ताम्रपर्णी नदी के निकट का सिंहल-लंका द्वीप थे। सौम्य तिब्बत भाग था। गान्धर्व द्वीप अफगानिस्तान, किर्गिज आदि थे। ईरान-ईराक को मैत्रावरुण कहा गया है। मित्र भाग ईरान तथा उसके उत्तर पश्चिम का कामभोज भाग भी था। वारुण द्वीप इराक-अरब था। इसकी पश्चिमी सीमा पर यम थे (यमन, अम्मान, मृत सागर)।

(३) कुमारिका खण्ड-वर्तमान भारत (नेपाल, बंगलादेश, पाकिस्तान सहित) कुमारिका खण्ड था जो अधोमुख त्रिकोण है, गंगा स्रोत तक उत्तर में चौड़ा होता गया है। अधोमुख त्रिकोण को शक्ति त्रिकोण कहते हैं। शक्ति का मूल स्वरूप कुमारी होने से यह कुमारिका खण्ड था। इसके दक्षिण अण्टार्कटिक (अनन्त द्वीप) तक का समुद्र भी कुमारिका खण्ड था जिसका वर्णन तमिल महाकाव्य शिलप्पाधिकारम् में है। 

उत्तर से देखने पर हिमालय अर्ध चन्द्राकार दीखता है जिसके केन्द्र में कैलास शिव का स्थान हैं। अतः शिव के सिर पर अर्ध चन्द्र रहता है जो अरब में भी आजकल पूजा जाता है। अतः ३ कारणों से चीन के लोग इसे इन्दु कहते थे (आज भी कहते हैं)। अर्ध चन्द्र (इन्दु) रूप हिमालय, चन्द्र की तरह शीतल, चन्द्र की तरह ज्ञान प्रकाश विश्व को देने वाला। हुएन्सांग की भारत यात्रा वर्णन में कहा है कि ग्रीक लोग इन्दु का उच्चारण इण्डे करते हैं, जिससे इण्डिया हुआ है। 

विश्व का भरण पोषण करने के कारण यहां के मनु (अग्नि, अग्रि = अग्रवाल) या शासक को भरत तथा इस देश को भारत कहते थे (मत्स्य पुराण, ११४/५-६)। 

हिमालय द्वारा यह विभाजित होने से हिमवत् वर्ष या अरबी में हिमयार (अल बिरूनि-प्राचीन देशों की काल गणना) कहते थे। 

विश्व सभ्यता की नाभि या केन्द्र होने से यह अजनाभ वर्ष था। जम्बूद्वीप के राजा आग्नीध्र के पुत्र को नाभि कहा गया है जिनको भारत का राज्य मिला। विष्णु पुराण, खण्ड २, अध्याय १-

जम्बूद्वीपेश्वरो यस्तु आग्नीध्रो मुनिसत्तम॥१५॥

पित्रा दत्तं हिमाह्वं तु वर्षं नाभेस्तु दक्षिणम्॥१८॥

हिमाह्वयं तु वै वर्षं नाभेरासीन्महात्मनः। तस्यर्षभॊऽभवत् पुत्रो मेरुदेव्यां महाद्युतिः॥२७॥

ततश्च भारतं वर्षमेतल्लोकेषु गीयते। भरताय यतः पित्रा दत्तं प्रातिष्ठिता वनम्॥३२॥

भारत मुख्यतः २ भागों में विभाजित था-सिन्धु से पूर्व वियतनाम, इण्डोनेसिया तक इन्द्र प्रभुत्व तथा सिन्धु से पश्चिम वरुण प्रभुत्व। विक्रमादित्य की मृत्यु के बाद उसका राज्य १८ खण्डों में बंट गया और चीन, कामरूप, शक, बाह्लीक, तातार, रोमन, खुरज (कुर्द्द) ने आक्रमण किया। विक्रमादित्य के पौत्र शालिवाहन ने उनको सिन्धु के पश्चिम खदेड़ कर उसे भारत की सीमा माना। शालिवाहन राज्य सिन्धुस्थान कहा गया। विक्रमादित्य का प्रभुत्व अरब तक था। भविष्य पुराण, प्रतिसर्ग पर्व, खण्ड ३, अध्याय २-

 विक्रमादित्य पौत्रश्च पितृराज्यं गृहीतवान्। जित्वा शकान् दुराधर्षान् चीन तैत्तिरि देशजान्॥१८॥

बाह्लीकान् कामरूपांश्च रोमजान् खुरजान् शठान्। तेषां कोषान् गृहीत्वा च दण्डयोग्यानकारयत्॥१९॥

स्थापिता तेन मर्य्यादा म्लेच्छार्य्याणां पृथक् पृथक्। सिन्धुस्थानमिति ज्ञेयं राष्ट्रमार्यस्य चोत्तमम्॥२०॥

म्लेच्छानां परं सिन्धोः कृतं तेन महात्मना। 

२. इराक का वैदिक उल्लेख-

वरुण की प्रजा को यादस (एक असुर जाति) कहते थे-यादसांपतिः अप्-पतिः (अमरकोष, १/१/५६)। यादस का ताज हुआ, ये अभी ताजिकिस्तान में बसे हैं। यहां प्रचलित ज्योतिष शास्त्र ताजिक था जो अभी केवल भारत में प्रचलित है। पश्चिम भाग में अप्-पति के नाम पर सम्मान के लिए अप्पा साहब या आप कहते हैं।

शिल्प शास्त्र के अनुसार विष्णु ने नगरों का निर्माण किया जिनको उरु कहते थे। बाद में वरुण ने इराक में भी वैसा ही उरु नगर बनाया। ऊर नगर इराक का सबसे पुराना नगर कहा जाता है, जहां के अब्राहम थे (बाइबिल जेनेसिस. अध्याय ११, १५, १६, १७, २१, २५)। 

शं नो विष्णुरुरुक्रमः (ऋग्वेद, १/९०/१)

उरुं हि राजा वरुण श्चकार (ऋग्वेद, १/२४/८)। 

उरु नगर की गोल रचना है जिसका केन्द्र भाग सबसे ऊंचा होगा तथा परिधि की तरफ जल का निकास होगा। उरु नगर दक्षिण भारत के पर्वतीय भागों में हैं-चित्तूर, नेल्लोर, बंगलूरु, मंगलूरु, तंजाउर आदि। ऊरु का विशिष्ट श्रीनगर है जो श्रीयन्त्र के ९ चक्रों जैसा होगा। अष्टा चक्रा नवद्वारा देवानां पूरयोध्या (अथर्व, १०/२/३१)। यह मनुष्य शरीर, आकाश के विश्व तथा नगर के लिए भी है। श्रीयन्त्र के केन्द्रीय विन्दु के बाहर ८ चक्रों में नगर का निर्माण होता था, जो अयोध्या का स्वरूप थे। भारत मे ३ प्रसिद्ध नगर इस प्रकार के बने-कश्मीर, गढ़वाल के श्रीनगर, विजयनगर की राजधानी श्रीविद्यानगर। श्रीविद्यानगर का प्रारूप विद्यारण्य स्वामी ने बनाया था। इसका विजयनगर नाम बदलने पर कहा कि यह नगर ५०० वर्षों में नष्ट हो जायेगा। समतल भाग के लिये इन्द्र चौकोर पुर बनवाये जिनमें परस्पर लम्ब सड़कें थीं। चीन की राजधानी बीजिंग इसी प्रकार की थी। पर्वतीय भागों में मेरु नगर भी बने जो चौकोर पिरामिड की तरह थे, जैसे अजयमेरु। नदी के दोनों तरफ नगर बनाने पर वह वर्गाकार होता था जिसका कर्ण नदी थी और उसकी दिशा में जल निष्कासन होता था। इसे वज्र-नगर (ताश के डायमण्ड चिह्न की तरह) कहते थे।

वरुण की पूजा कर राजा हरिश्चन्द्र ने यशस्वी तथा दीर्घजीवी पुत्र का वरदान पाया। पुनः उसके बलिदान के लिए वरुण ने कहा। मार कर बलि देना दीर्घजीवी पुत्र के वर के विपरीत था। अतः यहां बलिदान का अर्थ था कि पहले स्वयं की उन्नति और उसके बाद देश की उन्नति के लिए अपना बलिदान करना। यहां बलिदान आत्महत्या नहीं है, अपनी पूरी शक्ति तथा साधन लगाना है। ऋक्, १/२४ सूक्त में शुनःशेप की कथा है, उसी में वरूण के ऊर नगर का भी उल्लेख है। उर के अब्राहम को भी वरदान में दीर्घजीवी इस्माइल पुत्र मिला था जिसका पुनर्जन्म पैगम्बर मुहम्मद को कहा जाता है। इस्माइल की बलि के बदले भेड़ या बकरे की बलि देना मूल कथा के विपरीत है। बकरीद का मूल अर्थ है गौ की पूजा। बकर = गौ, ईद = पूजा (ऋक्, १/१/१ में ईळे)।

३. महाभारत युग-

हरिवंश पुराण, विष्णु पर्व अध्याय ९१-९७ में इसकी विस्तृत कथा है। वहां वज्र-नगर का राजा वज्रनाभ असुर था। वज्र नगर अभी बसरा है, जो दजला नदी के किनारे है (प्राचीन सप्त गंगा में एक)। 

ब्रह्माण्ड पुराण (१/२/१८)-ततो विसृज्यमानायाः स्रोतस्तत् सप्तधा गतम्। तिस्रः प्राचीमभिमुखं प्रतीचीं तिस्र एव तु॥३९॥

नद्याः स्रोतस्तु गंगायाः प्रत्यपद्यत सप्तधा। नलिनी ह्लादिनी चैव पावनी चैव प्राच्यगाः॥४०॥

सीता चक्षुश्च सिन्धुश्च प्रतीचीं दिशमास्थिताः। सप्तमी त्वन्वगात्तासां दक्षिणेन भगीरथम्॥४१॥ 

पश्चिम की सीता-चक्षु के बीच ईराक था अतः अंग्रेजों ने इसे मेसोपोटामिया (दो नदियों के बीच का क्षेत्र) कहा।

वज्रनाभ की पुत्री प्रभावती से भगवान् कृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न ने विवाह कर असुरों को पराजित किया। प्रद्युम्न, उनके भाई गद, साम्ब तथा इन्द्र पुत्र जयन्त के पुत्रों के बीच ४ भागों में विभाजित हुआ। पराजित हो कर असुर लोग षट्-नगर चले गये। यह षट्-कोण रहा होगा। अभी इसका नाम शट-अल-अरब है।

४. मध्य युग-अरब में इस्लाम का प्रभुत्व होने पर उनके प्रमुख खलीफा की राजधानी बगदाद बनी जिसे पश्चिमी भगदत्त का नगर कहा गया। पूर्वी भगदत्त चीन तथा असम का राजा था। दोनों का उल्लेख महाभारत, सभा पर्व में है। अध्याय १४ में उनको पश्चिम दिशा में यवनाधिपति तथा मुर और नरकदेश का शासन करने वाला कहा है-

मुरं च नरकं चैव शास्ति यो यवनाधिपः। अपर्यन्त बलो राजा प्रतीच्यां वरुणो यथा॥१४॥

भगदत्तो महाराज वृद्धस्तव पितुः सखा। स वाचा प्रणतस्तस्य कर्मणा च विशेषतः॥१५॥

सभा पर्व, अध्याय २६ में भारत के पूर्वी भाग के राजा तथा चीन और समीपवर्ती द्वीपों का भी अधिपति और इन्द्र का मित्र कहा गया है-

शाकलद्वीपवासाश्च सप्तद्वीपेषु ये नृपाः। अर्जुनस्य च सैन्यैस्तैर्विग्रहस्तुमुलोऽभवत्॥६॥

स तानपि महेष्वासान् विजिग्ये भरतर्षभ। तैरेव सहितः सर्वैः प्राग्ज्योतिषमुपाद्रवत्॥७॥

तत्र राजा महानासीद् भगदत्तो विशाम्पते। तेनासीत् सुमहद् युद्धं पाण्डवस्य महात्मनः॥८॥

स किरातैश्च चीनैश्च वृतः प्राग्ज्योतिषोऽभवत्। अन्यैश्च बहुभिर्योधैः सागरानूपवासिभिः॥९॥

खलीफा का भगदत्त (बगदाद) पर शासन होने के बाद भी बगदाद विश्वविद्यालय में संस्कृत की पढ़ाई जारी रही। ६२२ ई. में हिजरी सन् आरम्भ होने पर उसकी गणना का आधार ईपू का ब्राह्म-स्फुट-सिद्धान्त (६२ ईपू, चाप शक ५५०, जो ६१२ ईपू से आरम्भ था) था। शालिवाहन शक ७८ से गणना करने पर इसका समय ६२८ ई होगा जो हिजरी आरम्भ होने के ६ वर्ष बाद का होगा। ब्राह्म-स्फुट-सिद्धान्त का प्रयोग होने के कारण खलीफा अल मन्सूर ने इसका अरबी में अनुवाद कराया। नाम का अनुवाद हुआ अल-जबर (ब्रह्म) उल मुकाबला (स्फुट सिद्धान्त) इससे अलजबरा शब्द बना, जो इस पुस्तक का गणित भाग है।

ईराक के राजाओं के मन्त्री अग्निहोत्री ब्राह्मण ही होते थे जिनका अरबी में बरमक नाम हो गया। यह उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा प्रकाशित मुस्तफा खान मद्दाह के उर्दू-हिन्दी कोष में बरमक शब्द के अर्थ में दिया है। बगदाद में अभी तक संस्कृत शिक्षा चल रही है। सद्दाम हुसेन की मृत्यु के बाद यह बन्द हुआ था।

✍🏻अरुण उपाध्याय

मंगलवार, 28 सितंबर 2021

प्राचीन इराक और भारत / ✍🏻अरुण उपाध्याय

 १. प्राचीन भारत-इराक भारतवर्ष का भाग था। भारत वर्ष का ३ अर्थों में प्रयोग हुआ है-

(१) लोक पद्म- उत्तरी गोलार्द्ध के नकशे के ४ भागों में एक। इनको भू-पद्म के ४ दल कहा गया है-

(विष्णु पुराण २/२)-भद्राश्वं पूर्वतो मेरोः केतुमालं च पश्चिमे। वर्षे द्वे तु मुनिश्रेष्ठ तयोर्मध्यमिलावृतः।२४।

भारताः केतुमालाश्च भद्राश्वाः कुरवस्तथा। पत्राणि लोकपद्मस्य मर्यादाशैलबाह्यतः।४०।

यहां भारत-दल का अर्थ है विषुवत रेखा से उत्तरी ध्रुव तक, उज्जैन (७५०४३’ पूर्व) के दोनों तरफ ४५-४५ अंश पूर्व-पश्चिम। इसके पश्चिम में इसी प्रकार केतुमाल, पूर्व में भद्राश्व तथा विपरीत दिशा में (उत्तर) कुरु, ९०-९० अंश देशान्तर में हैं। महाभारत, भीष्मपर्व (९/५-९) के अनुसार यह इन्द्र (१७५०० ईपू), पृथु (१७,१०० ईपू), वैवस्वत मनु (१३९०२ ईपू), इक्ष्वाकु तथा उनके वंशजों का क्षेत्र रहा है। 

विषुव से उत्तर ध्रुव तक इन्द्र के ३ लोक थे-भूलोक हिमालय तक, भुवः मंगोलिया तक, उसके बाद ध्रुव तक स्वः लोक।

३ कुरु थे। विषुव रेखा पर शून्य देशान्तर पर लंका था (लक्कादीव का दक्षिन भाग) इसके डूबने पर उज्जैन को शूण्य देशान्तर कहा गया था। कुरुक्षेत्र प्रायः इस रेखा पर था। इस रेखा पर सबसे उत्तर का नगर उत्तर कुरु था। यहां से देशान्तर अंश गिनती आरम्भ होती है अतः इसे ॐ नगर कहा गया (सिबिर या साइबेरिया की राजधानी ओम्स्क)। कुरुक्षेत्र की विपरीत दिशा में कुरु देश था (मेक्सिको, अमेरिका का पश्चिम भाग)। 

मान्धाता (७५०० ईपू) का प्रभुत्व पूरी पृथ्वी पर था, अतः उनके राज्य में सदा किसी स्थान पर सूर्य का उदय और अन्य किसी स्थान पर अस्त होता रहता था। विष्णु पुराण, अंश ४, अध्याय, २-

तदस्तु मान्धाता चक्रवर्ती सप्तद्वीपां महीं बुभुजे॥६३॥तत्रायं श्लोकः॥६५॥

यावत् सूर्य उदेत्यस्तं यावच्च प्रतितिष्ठति। सर्वं तद्यौवनाश्वस्य मान्धातुः क्षेत्रमुच्यते॥६५॥

इसकी नकल कर अंग्रेजों ने कहा कि ब्रिटिश राज्य में सूर्य का अस्त नहीं होता।

(२) भारत वर्ष- हिमालय को पूर्व पश्चिम में समुद्र तक फैलाया जाय तो उसके दक्षिण समुद्र तक भारतवर्ष था जिसके ९ खण्ड थे। यहां द्वीप या महाद्वीप का अर्थ केवल समुद्र से घिरा क्षेत्र नहीं है, यह पर्वत, नदी या मरुस्थल द्वारा प्राकृतिक विभाजन भी है। मत्स्य पुराण, अध्याय ११४-

अथाहं वर्णयिष्यामि वर्षेऽस्मिन् भारते प्रजाः। भरणच्च प्रजानां वै मनुर्भरत उच्यते।५।

निरुक्तवचनाच्चैव वर्षं तद् भारतं स्मृतम्। यतः स्वर्गश्च मोक्षश्च मध्यमश्चापि हि स्मृतः।६।

न खल्वन्यत्र मर्त्यानां भूमौकर्मविधिः स्मृतः। भारतस्यास्य वर्षस्य नव भेदान् निबोधत।७।

इन्द्रद्वीपः कशेरुश्च ताम्रपर्णो गभस्तिमान्। नागद्वीपस्तथा सौम्यो गन्धर्वस्त्वथ वारुणः।८।

अयं तु नवमस्तेषं द्वीपः सागरसंवृतः। योजनानां सहस्रं तु द्वीपोऽयं दक्षिणोत्तरः।९।

आयतस्तुकुमारीतो गङायाः प्रवहावधिः।तिर्यगूर्ध्वं तु विस्तीर्णः सहस्राणि दशैव तु।१०।

यस्त्वयं मानवो द्वीपस्तिर्यग् यामः प्रकीर्तितः। य एनं जयते कृत्स्नं स सम्राडिति कीर्तितः।१५।

इनमें इन्द्रद्वीप इरावती नदी क्षेत्र है, जहां का ऐरावत इन्द्र का हाथी था( वायु पुराण, ३७/२५)। नागद्वीप अण्डमान निकोबार से सुमात्रा तक था। पश्चिम इण्डोनेसिया सेलेबीज तथा पूर्व भाग गभस्तिमान था। गभस्तिमान की एक नदी गभस्ति (न्यूगिनी में) को शक द्वीप ) आस्ट्रेलिया में भी कहा गया है। ताम्रपर्ण तमिलनाडु की ताम्रपर्णी नदी के निकट का सिंहल-लंका द्वीप थे। सौम्य तिब्बत भाग था। गान्धर्व द्वीप अफगानिस्तान, किर्गिज आदि थे। ईरान-ईराक को मैत्रावरुण कहा गया है। मित्र भाग ईरान तथा उसके उत्तर पश्चिम का कामभोज भाग भी था। वारुण द्वीप इराक-अरब था। इसकी पश्चिमी सीमा पर यम थे (यमन, अम्मान, मृत सागर)।

(३) कुमारिका खण्ड-वर्तमान भारत (नेपाल, बंगलादेश, पाकिस्तान सहित) कुमारिका खण्ड था जो अधोमुख त्रिकोण है, गंगा स्रोत तक उत्तर में चौड़ा होता गया है। अधोमुख त्रिकोण को शक्ति त्रिकोण कहते हैं। शक्ति का मूल स्वरूप कुमारी होने से यह कुमारिका खण्ड था। इसके दक्षिण अण्टार्कटिक (अनन्त द्वीप) तक का समुद्र भी कुमारिका खण्ड था जिसका वर्णन तमिल महाकाव्य शिलप्पाधिकारम् में है। 

उत्तर से देखने पर हिमालय अर्ध चन्द्राकार दीखता है जिसके केन्द्र में कैलास शिव का स्थान हैं। अतः शिव के सिर पर अर्ध चन्द्र रहता है जो अरब में भी आजकल पूजा जाता है। अतः ३ कारणों से चीन के लोग इसे इन्दु कहते थे (आज भी कहते हैं)। अर्ध चन्द्र (इन्दु) रूप हिमालय, चन्द्र की तरह शीतल, चन्द्र की तरह ज्ञान प्रकाश विश्व को देने वाला। हुएन्सांग की भारत यात्रा वर्णन में कहा है कि ग्रीक लोग इन्दु का उच्चारण इण्डे करते हैं, जिससे इण्डिया हुआ है। 

विश्व का भरण पोषण करने के कारण यहां के मनु (अग्नि, अग्रि = अग्रवाल) या शासक को भरत तथा इस देश को भारत कहते थे (मत्स्य पुराण, ११४/५-६)। 

हिमालय द्वारा यह विभाजित होने से हिमवत् वर्ष या अरबी में हिमयार (अल बिरूनि-प्राचीन देशों की काल गणना) कहते थे। 

विश्व सभ्यता की नाभि या केन्द्र होने से यह अजनाभ वर्ष था। जम्बूद्वीप के राजा आग्नीध्र के पुत्र को नाभि कहा गया है जिनको भारत का राज्य मिला। विष्णु पुराण, खण्ड २, अध्याय १-

जम्बूद्वीपेश्वरो यस्तु आग्नीध्रो मुनिसत्तम॥१५॥

पित्रा दत्तं हिमाह्वं तु वर्षं नाभेस्तु दक्षिणम्॥१८॥

हिमाह्वयं तु वै वर्षं नाभेरासीन्महात्मनः। तस्यर्षभॊऽभवत् पुत्रो मेरुदेव्यां महाद्युतिः॥२७॥

ततश्च भारतं वर्षमेतल्लोकेषु गीयते। भरताय यतः पित्रा दत्तं प्रातिष्ठिता वनम्॥३२॥

भारत मुख्यतः २ भागों में विभाजित था-सिन्धु से पूर्व वियतनाम, इण्डोनेसिया तक इन्द्र प्रभुत्व तथा सिन्धु से पश्चिम वरुण प्रभुत्व। विक्रमादित्य की मृत्यु के बाद उसका राज्य १८ खण्डों में बंट गया और चीन, कामरूप, शक, बाह्लीक, तातार, रोमन, खुरज (कुर्द्द) ने आक्रमण किया। विक्रमादित्य के पौत्र शालिवाहन ने उनको सिन्धु के पश्चिम खदेड़ कर उसे भारत की सीमा माना। शालिवाहन राज्य सिन्धुस्थान कहा गया। विक्रमादित्य का प्रभुत्व अरब तक था। भविष्य पुराण, प्रतिसर्ग पर्व, खण्ड ३, अध्याय २-

 विक्रमादित्य पौत्रश्च पितृराज्यं गृहीतवान्। जित्वा शकान् दुराधर्षान् चीन तैत्तिरि देशजान्॥१८॥

बाह्लीकान् कामरूपांश्च रोमजान् खुरजान् शठान्। तेषां कोषान् गृहीत्वा च दण्डयोग्यानकारयत्॥१९॥

स्थापिता तेन मर्य्यादा म्लेच्छार्य्याणां पृथक् पृथक्। सिन्धुस्थानमिति ज्ञेयं राष्ट्रमार्यस्य चोत्तमम्॥२०॥

म्लेच्छानां परं सिन्धोः कृतं तेन महात्मना। 

२. इराक का वैदिक उल्लेख-

वरुण की प्रजा को यादस (एक असुर जाति) कहते थे-यादसांपतिः अप्-पतिः (अमरकोष, १/१/५६)। यादस का ताज हुआ, ये अभी ताजिकिस्तान में बसे हैं। यहां प्रचलित ज्योतिष शास्त्र ताजिक था जो अभी केवल भारत में प्रचलित है। पश्चिम भाग में अप्-पति के नाम पर सम्मान के लिए अप्पा साहब या आप कहते हैं।

शिल्प शास्त्र के अनुसार विष्णु ने नगरों का निर्माण किया जिनको उरु कहते थे। बाद में वरुण ने इराक में भी वैसा ही उरु नगर बनाया। ऊर नगर इराक का सबसे पुराना नगर कहा जाता है, जहां के अब्राहम थे (बाइबिल जेनेसिस. अध्याय ११, १५, १६, १७, २१, २५)। 

शं नो विष्णुरुरुक्रमः (ऋग्वेद, १/९०/१)

उरुं हि राजा वरुण श्चकार (ऋग्वेद, १/२४/८)। 

उरु नगर की गोल रचना है जिसका केन्द्र भाग सबसे ऊंचा होगा तथा परिधि की तरफ जल का निकास होगा। उरु नगर दक्षिण भारत के पर्वतीय भागों में हैं-चित्तूर, नेल्लोर, बंगलूरु, मंगलूरु, तंजाउर आदि। ऊरु का विशिष्ट श्रीनगर है जो श्रीयन्त्र के ९ चक्रों जैसा होगा। अष्टा चक्रा नवद्वारा देवानां पूरयोध्या (अथर्व, १०/२/३१)। यह मनुष्य शरीर, आकाश के विश्व तथा नगर के लिए भी है। श्रीयन्त्र के केन्द्रीय विन्दु के बाहर ८ चक्रों में नगर का निर्माण होता था, जो अयोध्या का स्वरूप थे। भारत मे ३ प्रसिद्ध नगर इस प्रकार के बने-कश्मीर, गढ़वाल के श्रीनगर, विजयनगर की राजधानी श्रीविद्यानगर। श्रीविद्यानगर का प्रारूप विद्यारण्य स्वामी ने बनाया था। इसका विजयनगर नाम बदलने पर कहा कि यह नगर ५०० वर्षों में नष्ट हो जायेगा। समतल भाग के लिये इन्द्र चौकोर पुर बनवाये जिनमें परस्पर लम्ब सड़कें थीं। चीन की राजधानी बीजिंग इसी प्रकार की थी। पर्वतीय भागों में मेरु नगर भी बने जो चौकोर पिरामिड की तरह थे, जैसे अजयमेरु। नदी के दोनों तरफ नगर बनाने पर वह वर्गाकार होता था जिसका कर्ण नदी थी और उसकी दिशा में जल निष्कासन होता था। इसे वज्र-नगर (ताश के डायमण्ड चिह्न की तरह) कहते थे।

वरुण की पूजा कर राजा हरिश्चन्द्र ने यशस्वी तथा दीर्घजीवी पुत्र का वरदान पाया। पुनः उसके बलिदान के लिए वरुण ने कहा। मार कर बलि देना दीर्घजीवी पुत्र के वर के विपरीत था। अतः यहां बलिदान का अर्थ था कि पहले स्वयं की उन्नति और उसके बाद देश की उन्नति के लिए अपना बलिदान करना। यहां बलिदान आत्महत्या नहीं है, अपनी पूरी शक्ति तथा साधन लगाना है। ऋक्, १/२४ सूक्त में शुनःशेप की कथा है, उसी में वरूण के ऊर नगर का भी उल्लेख है। उर के अब्राहम को भी वरदान में दीर्घजीवी इस्माइल पुत्र मिला था जिसका पुनर्जन्म पैगम्बर मुहम्मद को कहा जाता है। इस्माइल की बलि के बदले भेड़ या बकरे की बलि देना मूल कथा के विपरीत है। बकरीद का मूल अर्थ है गौ की पूजा। बकर = गौ, ईद = पूजा (ऋक्, १/१/१ में ईळे)।

३. महाभारत युग-

हरिवंश पुराण, विष्णु पर्व अध्याय ९१-९७ में इसकी विस्तृत कथा है। वहां वज्र-नगर का राजा वज्रनाभ असुर था। वज्र नगर अभी बसरा है, जो दजला नदी के किनारे है (प्राचीन सप्त गंगा में एक)। 

ब्रह्माण्ड पुराण (१/२/१८)-ततो विसृज्यमानायाः स्रोतस्तत् सप्तधा गतम्। तिस्रः प्राचीमभिमुखं प्रतीचीं तिस्र एव तु॥३९॥

नद्याः स्रोतस्तु गंगायाः प्रत्यपद्यत सप्तधा। नलिनी ह्लादिनी चैव पावनी चैव प्राच्यगाः॥४०॥

सीता चक्षुश्च सिन्धुश्च प्रतीचीं दिशमास्थिताः। सप्तमी त्वन्वगात्तासां दक्षिणेन भगीरथम्॥४१॥ 

पश्चिम की सीता-चक्षु के बीच ईराक था अतः अंग्रेजों ने इसे मेसोपोटामिया (दो नदियों के बीच का क्षेत्र) कहा।

वज्रनाभ की पुत्री प्रभावती से भगवान् कृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न ने विवाह कर असुरों को पराजित किया। प्रद्युम्न, उनके भाई गद, साम्ब तथा इन्द्र पुत्र जयन्त के पुत्रों के बीच ४ भागों में विभाजित हुआ। पराजित हो कर असुर लोग षट्-नगर चले गये। यह षट्-कोण रहा होगा। अभी इसका नाम शट-अल-अरब है।

४. मध्य युग-अरब में इस्लाम का प्रभुत्व होने पर उनके प्रमुख खलीफा की राजधानी बगदाद बनी जिसे पश्चिमी भगदत्त का नगर कहा गया। पूर्वी भगदत्त चीन तथा असम का राजा था। दोनों का उल्लेख महाभारत, सभा पर्व में है। अध्याय १४ में उनको पश्चिम दिशा में यवनाधिपति तथा मुर और नरकदेश का शासन करने वाला कहा है-

मुरं च नरकं चैव शास्ति यो यवनाधिपः। अपर्यन्त बलो राजा प्रतीच्यां वरुणो यथा॥१४॥

भगदत्तो महाराज वृद्धस्तव पितुः सखा। स वाचा प्रणतस्तस्य कर्मणा च विशेषतः॥१५॥

सभा पर्व, अध्याय २६ में भारत के पूर्वी भाग के राजा तथा चीन और समीपवर्ती द्वीपों का भी अधिपति और इन्द्र का मित्र कहा गया है-

शाकलद्वीपवासाश्च सप्तद्वीपेषु ये नृपाः। अर्जुनस्य च सैन्यैस्तैर्विग्रहस्तुमुलोऽभवत्॥६॥

स तानपि महेष्वासान् विजिग्ये भरतर्षभ। तैरेव सहितः सर्वैः प्राग्ज्योतिषमुपाद्रवत्॥७॥

तत्र राजा महानासीद् भगदत्तो विशाम्पते। तेनासीत् सुमहद् युद्धं पाण्डवस्य महात्मनः॥८॥

स किरातैश्च चीनैश्च वृतः प्राग्ज्योतिषोऽभवत्। अन्यैश्च बहुभिर्योधैः सागरानूपवासिभिः॥९॥

खलीफा का भगदत्त (बगदाद) पर शासन होने के बाद भी बगदाद विश्वविद्यालय में संस्कृत की पढ़ाई जारी रही। ६२२ ई. में हिजरी सन् आरम्भ होने पर उसकी गणना का आधार ईपू का ब्राह्म-स्फुट-सिद्धान्त (६२ ईपू, चाप शक ५५०, जो ६१२ ईपू से आरम्भ था) था। शालिवाहन शक ७८ से गणना करने पर इसका समय ६२८ ई होगा जो हिजरी आरम्भ होने के ६ वर्ष बाद का होगा। ब्राह्म-स्फुट-सिद्धान्त का प्रयोग होने के कारण खलीफा अल मन्सूर ने इसका अरबी में अनुवाद कराया। नाम का अनुवाद हुआ अल-जबर (ब्रह्म) उल मुकाबला (स्फुट सिद्धान्त) इससे अलजबरा शब्द बना, जो इस पुस्तक का गणित भाग है।

ईराक के राजाओं के मन्त्री अग्निहोत्री ब्राह्मण ही होते थे जिनका अरबी में बरमक नाम हो गया। यह उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा प्रकाशित मुस्तफा खान मद्दाह के उर्दू-हिन्दी कोष में बरमक शब्द के अर्थ में दिया है। बगदाद में अभी तक संस्कृत शिक्षा चल रही है। सद्दाम हुसेन की मृत्यु के बाद यह बन्द हुआ था।

✍🏻अरुण उपाध्याय

सोमवार, 27 सितंबर 2021

भारत स्काउट एवं गाइड

 



भारत स्काउट एवं गाइड प्रार्थना

दया कर दान भक्ति का हमें परमात्मा देना,
दया करना हमारी आत्मा में शुद्धता देना .
हमारे ध्यान में आओ ,प्रभु आँखों में बस जाओ,
अँधेरे दिल में आकर के ,परम ज्योति जगा देना.
बहा दो प्रेम की गंगा,दिलो में प्रेम का सागर,
हमे आपस में मिलजुलकर प्रभु रहना सिखा देना.
हमारा कर्म हो सेवा,हमारा धर्म हो सेवा,
सदा ईमान हो सेवा व सेवकचर बना देना.
वतन के वास्ते जीना,वतन के वास्ते मरना,
वतन पर जां फ़िदा करना प्रभु हमको सिखा देना.
दया कर दान भक्ति का हमें परमात्मा देना,
दया करना हमारी आत्मा में शुद्धता देना.

(प्रार्थना में लगने वाला समय – 90 सेकण्ड)
प्रार्थना के रचियता – श्री वीर देव वीर

स्काउट एवं गाइड झंडा गीत

भारत स्काउट गाइड झंडा ऊँचा सदा रहेगा,
ऊँचा सदा रहेगा झंडा ऊँचा सदा रहेगा.
नीला रंग गगन सा विस्तृत भात्र भाव फैलाता,
त्रिदल कमल नित तीन प्रतिज्ञाओं की याद दिलाता.
और चक्र कहता है प्रतिपल आगे कदम बढेगा,
ऊँचा सदा रहेगा झंडा ऊँचा सदा रहेगा.
भारत स्काउट गाइड झंडा ऊँचा सदा रहेगा.

(झंडा गीत में लगने वाला समय – 45 सेकण्ड)
भारत स्काउट एवं गाइड झंडा गीत के रचियता -श्री दयाशंकर भट्ट

भारत स्काउट एवं गाइड का इतिहास History of Scout and Guide

क्या आपको पता है स्काउट एवं गाइड आंदोलन वर्ष 1908 में ब्रिटेन में सर बेडेन पॉवेल द्वारा आरम्भ किया गया? धीरे-धीरे यह आंदोलन हर एक सुसंगठित राष्ट्र में फैलने लगा, जिसमे भारत भी शामिल था। 

भारत स्काउट एवं गाइड की शुरुआत वर्ष 1909 में हुई, तथा आगे चलकर भारत वर्ष 1938 में स्काउट आंदोलन के विश्व संगठन का सदस्य भी बना। वर्ष 1911 में भारत में गाइडिंग की शुरुआत हुई, तथा 1928 में स्थापित गर्ल गाइड्स तथा गर्ल स्काउट्स के विश्व संगठन में भारत ने एक संस्थापक सदस्य की भूमिका निभाई। 

भारतवासियों के लिए स्काउटिंग की शुरूआत न्यायाधीश विवियन बोस, पंडित मदन मोहन मालवीय, पंडित हृदयनाथ कुंजरू, गिरिजा शंकर बाजपेई, एनी बेसेंट तथा जॉर्ज अरुंडाले के प्रयासों से वर्ष 1913 में हुई। 

भारत में ‘भारत स्काउट एवं गाइड (बी.एस.जी.)’ राष्ट्रीय स्काउटिंग एवं गाइडिंग संगठन है। इसकी स्थापना 7 नवम्बर, 1950 को स्वतंत्र भारत में जवाहरलाल नेहरूमौलाना अबुल कलाम आज़ाद तथा मंगल दास पकवासा के द्वारा की गई।

इसमें ब्रिटिश भारत में मौजूद सभी स्काउट एवं गाइड संगठनों को सम्मिलित किया गया। इसका मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है। इसके एक वर्ष पश्चात् 15 अगस्त, 1951 को आल इंडिया गर्ल गाइड्स एसोसिएशन को भी भारत स्काउट्स एंड गाइड्स संगठन में शामिल कर लिया गया।

विश्व स्काउट संगठन में वर्ष 1947 से 1949 तक अपने अहम योगदान के लिए विवियन बोस जी को विशेष तौर पर याद किया जाता है। वर्ष 1969 में विश्व स्काउटिंग में अद्वितीय सेवा के लिए श्रीमती लक्ष्मी मजूमदार को विश्व स्काउटिंग द्वारा ‘ब्रॉन्ज़-वोल्फ’ सम्मान से सम्मानित किया गया था।

भारत स्काउट एवं गाइड क्या है? What is Scout and Guide in Hindi?

स्काउट्स एवं गाइड्स एक स्वयंसेवी, गैर-राजनीतिक, शैक्षिक आंदोलन है, जो हर एक नव जवान को मानवता की सेवा करने का मौका प्रदान करता है, बिना किसी भी तरह के रंग, मूल अथवा जाति भेद के।

भारत स्काउट एवं गाइड अपने लक्ष्यों, सिद्धांतों एवं विधियों के आधार पर कार्य करताज है, जिन्हें इसके संस्थापक लार्ड बेडेन पॉवेल द्वारा 1907 में बनाया गया था।

भारत स्काउट एवं गाइड का उद्देश्य Aim of Scout and Guide in Hindi

स्काउट एवं गाइड का उद्देश्य नवयुवकों की पूर्ण शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, सामाजिक तथा आध्यात्मिक क्षमताओं का विकास करना है, जिससे कि वे एक ज़िम्मेदार नागरिक के रूप में अपनी क्षमताओं के द्वारा स्थानीय, राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर योगदान कर सकें।

भारत स्काउट एवं गाइड निम्न कुछ प्रमुख सिद्धांतों पर आधारित है –

  1. ईश्वर के प्रति कर्तव्य:- आध्यात्मिक नियमों का पालन करना, अपने धर्म के प्रति निष्ठावान रहना तथा अपने ईश्वर द्वारा प्रदत्त कर्तव्यों एवं ज़िम्मेदारियों को स्वीकार करना।
  2. अन्य लोगों के प्रति कर्तव्य:- अपने राष्ट्र के प्रति निष्ठावान रहते हुए, स्थानीय, राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय शांति, समझ एवं आपसी सहयोग की प्रोत्साहित करना।
  3. स्वयं के प्रति कर्तव्य:- स्वयं के विकास की ज़िम्मेदारी को निभाना।

स्काउट एवं गाइड की विधियां Methods

भारत स्काउट एवं गाइड पद्धति प्रगतिशील स्वयं शिक्षा प्रणाली है, यद्यपि –

  • यह एक वचन तथा कानून भी है।
  • यह कर के सीखने में विश्वास रखता है।
  • किसी वयस्क के नेतृत्व में छोटे समूहों की सदस्यता।
  • प्रतिभागियों की रूचि के अनुसार विभिन्न प्रगतिशील एवं प्रेरणादायक कार्यक्रमों का आयोजन।

स्काउट एवं गाइड के नियम Laws of Scout and Guide

भारत स्काउट एवं गाइड के कुछ मुख्य कानून व नियम –

  • स्काउट / गाइड विश्वसनीय होता/होती है।
  • स्काउट/गाइड वफादार होता/होती है।
  • स्काउट/गाइड सबका/सबकी मित्र ओर प्रत्येक दुसरे स्काउट /गाइड का/की भाई/बहिन होता/होती है।
  • स्काउट/गाइड विनम्र होता/होती है।
  • स्काउट/ गाइड पशु पक्षीयो का मित्र ओर प्रकृति – प्रेमी होता/होती है।
  • स्काउट/गाइड अनुशासनशील होता/होती है ओर सार्वजनिक सम्पत्ति की रक्षा करने में सहायता करता / करती है ।
  • स्काउट/ गाइड साहसी होता/होती है ।
  • स्काउट/गाइड मितव्ययी होता/होती है।
  • स्काउट/गाइड मन,वचन,और कर्म से शुद्ध होता/होती है ।

भारत स्काउट एवं गाइड मोटो(सिद्धांत): “बी प्रिपेयर्ड (तैयार रहो)”

भारत स्काउट एवं गाइड के वचन

“अपने सम्मान को साक्षी बनाकर, मैं यह वचन देता हूँ कि मैं अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास करूंगा,
अपने ईश्वर तथा राष्ट्र के प्रति कर्तव्य निभाने में,
अन्य व्यक्तियों की सहायता करने में तथा,
स्काउट नियमों का पालन करने में।”

भारत स्काउट एवं गाइड का ध्वज Flag of Scout and Guide

स्काउट के ध्वज में प्रतीक के रूप में चक्र है जिसमे 24 तीलियाँ है। इसे अशोक चक्र कहा जाता है, क्योंकि यह चक्र सारनाथ स्थित अशोक स्तंभ से लिया गया है। ध्वज के पार्श्व पर भगवा तथा हरा रंग होता है।

आमतौर पर “स्काउट्स एंड गाइड्स” शब्द में बालक तथा बालिकाओं दोनों को ही सम्मिलित किया जाता है। इसके अलावा इन्हें ” कब्स एंड बुलबुल” तथा ” रोवर्स एंड रेंजर्स” भी कहा जाता है। 

स्काउट एवं गाइड से कैसे जुड़ें? How Join Scouts and Guides?

स्काउट एवं गाइड ज्वाइन करने के लिए निम्न दो तरीके हैं-

  • अगर आप किसी विद्यालय में शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं, तो आपको अपने विद्यालय के ऑफिस में सीधे जाकर उनसे कहना होगा कि आप भारत स्काउट एवं गाइड ज्वाइन करने के इच्छुक हैं तथा इसमें आपको शामिल किया जाये।
  • और अगर आप किसी विद्यालय में नही हैं, तो इसे ज्वाइन करने के लिए स्काउट्स के रेलवे डिवीज़न में जाकर उन्हें इस बारे में सूचित करना होगा। जिसके बाद वो आपको इसमें शामिल करने पर विचार- विमर्श तथा वार्ता करेंगे।
  • इसके अलावा एक सबसे अहम बात जो आपको पता होनी चाहिए कि आप भारत स्काउट एवं गाइड क्यों ज्वाइन करने के इच्छुक हैं? तथा हर वर्ष के अंत तक वे ऐसे कौन- कौन से लक्ष्य होंगे, जिन्हें आप हर हाल में पूरा करना चाहते हैं, एकल रूप से, तथा एक समूह के तौर पर??

भारत स्काउट एवं गाइड सर्टिफिकेट आपके करियर में क्या भूमिका निभा सकते हैं? How can scout and guide certificate help you with your career?

भारत स्काउट एवं गाइड में राष्ट्रपति तथा राज्य पुरस्कार सर्टिफिकेट से सीधे तौर पर जॉब की प्राप्ति नही हो सकती। परंतु ये सर्टिफिकेट आपके बायोडाटा के साथ संलग्न होने पर आपके जॉब पाने की सम्भावना को, बिना सर्टिफिकेट वाले लोगों से, कहीं अधिक बढ़ा देते हैं।

इंटरव्यू के वक़्त स्काउट गाइड प्रशिक्षण में मिले अनुभव आपको अपने प्रतिद्वंदियों से हमेशा दो कदम आगे रखते हैं। इसके अलावा भारतीय रेलवे में जॉब के लिए स्काउट्स/गाइड्स आरक्षण का भी प्रावधान है।

कुल मिलाकर आपको अपनी स्काउट/गाइड में मिले उपलब्धियों पर गर्व होना चाहिए। ये अनुभव प्रत्यक्ष रूप में तो न सही, परंतु अप्रत्यक्ष रूप में आपके आगामी जीवन में बहुत अहम भूमिका निभाते हैं। राष्ट्रपति तथा राज्यपाल द्वारा हस्ताक्षरित तथा स्टाम्पड सर्टिफिकेट बहुत अधिक महत्ता रखते हैं।

आशा करते हैं आपको भारत स्काउट एवं गाइड की पूरी जानकारी Scout and Guide full detail in Hindi आपको पसंद आई होगी।

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स्काउट गाइड का इतिहास

 

स्काउट एवं गाइड आंदोलन वर्ष 1908 में ब्रिटेन में सर बेडेन पॉवेल द्वारा आरम्भ किया गया। धीरे-धीरे यह आंदोलन हर एक सुसंगठित राष्ट्र में फैलने लगाजिसमे भारत भी शामिल था। 

भारत में स्काउटिंग की शुरुआत वर्ष 1909 में हुईतथा आगे चलकर भारत वर्ष 1938 में स्काउट आंदोलन के विश्व संगठन का सदस्य भी बना। वर्ष 1911 में भारत में गाइडिंग की शुरुआत हुईतथा 1928 में स्थापित गर्ल गाइड्स तथा गर्ल स्काउट्स के विश्व संगठन में भारत ने एक संस्थापक सदस्य की भूमिका निभाई। 
भारतवासियों के लिए स्काउटिंग की शुरूआत न्यायाधीश विवियन बोसपंडित मदन मोहन मालवीयपंडित हृदयनाथ कुंजरूगिरिजा शंकर बाजपेईएनी बेसेंट तथा जॉर्ज अरुंडाले के प्रयासों से वर्ष 1913 में हुई। 
भारत में भारत स्काउट्स एंड गाइड्स (बी.एस.जी.)’ राष्ट्रीय स्काउटिंग एवं गाइडिंग संगठन है। इसकी स्थापना नवम्बर, 1950 को स्वतंत्र भारत में जवाहरलाल नेहरूमौलाना अबुल कलाम आज़ाद तथा मंगल दास पकवासा के द्वारा की गई।
इसमें ब्रिटिश भारत में मौजूद सभी स्काउट एवं गाइड संगठनों को सम्मिलित किया गया। इसका मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है। इसके एक वर्ष पश्चात् 15 अगस्त, 1951 को आल इंडिया गर्ल गाइड्स एसोसिएशन को भी भारत स्काउट्स एंड गाइड्स संगठन में शामिल कर लिया गया।
विश्व स्काउट संगठन में वर्ष 1947 से 1949 तक अपने अहम योगदान के लिए विवियन बोस जी को विशेष तौर पर याद किया जाता है। वर्ष 1969 में विश्व स्काउटिंग में अद्वितीय सेवा के लिए श्रीमती लक्ष्मी मजूमदार को विश्व स्काउटिंग द्वारा ब्रॉन्ज़-वोल्फ’ सम्मान से सम्मानित किया गया था।
















 यह पुरुषों और लड़कों का एक जियो था कि वह 1901 में दक्षिण अफ्रीका से इंग्लैंड लौटे, सम्मान के साथ और अपने विस्मय को पता लगाने के लिए, कि उनकी व्यक्तिगत लोकप्रियता ने सेना के पुरुषों के लिए उनकी पुस्तक को लोकप्रियता दी थी - एम्स टू स्काउटिंग । यह लड़कों के स्कूलों में पाठ्यपुस्तक के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा था।
                                    
                                                   बी.पी. इसमें एक बड़ी चुनौती देखी गई। उन्होंने महसूस किया कि यहाँ इस देश के लड़कों को मजबूत मासिक धर्म में मदद करने का उनका अवसर था। यदि स्काउटिंग प्रथाओं पर पुरुषों के लिए एक किताब लड़कों को दिखाई दे सकती है और उन्हें प्रेरित कर सकती है, तो खुद लड़कों के लिए लिखी गई किताब कितनी अधिक होगी! उन्होंने भारत और अफ्रीका में ज़ूलस और अन्य बर्बर जातियों के बीच अपने अनुभवों को अपनाने का काम किया। उन्होंने पुस्तकों के एक विशेष पुस्तकालय को इकट्ठा किया और सभी उम्र के लड़कों के प्रशिक्षण को पढ़ा - स्पार्टन लड़कों से, दुर्घटना ब्रिटिश, रेड इंडियंस से हमारे अपने दिन तक।
                                    
                                     धीमी गति से और सावधानी से बी.पी. स्काउटिंग विचार विकसित किया। वह यह सुनिश्चित करना चाहता था कि यह काम करेगा, इसलिए 1907 की गर्मियों में वह बीस लड़कों के एक समूह को अपने साथ इंग्लिश चैनल के ब्रोवेसा द्वीप ले गया, जहां पहले बॉय स्काउट शिविर में दुनिया ने कभी देखा था। शिविर एक बड़ी सफलता थी। और फिर, 1908 के शुरुआती महीनों में, उन्होंने छह पाक्षिक भागों में खरीदा, खुद से सचित्र, प्रशिक्षण के लिए उनकी हैंडबुक, स्काउटिंग फॉर बॉयज़ ----- बिना सपने देखे कि यह किताब गति में सेट हो जाएगी, एक आंदोलन जो करने के लिए था पूरी दुनिया के लड़कपन को प्रभावित करते हैं।
                                   
                                                       लड़कों के लिए स्काउटिंग शायद ही किताब की दुकान में दिखाई देने लगी थी और स्काउट गश्ती और ट्रूप्स से पहले न्यूज़स्टैंड पर बस-इंग्लैंड में ही नहीं, बल्कि कई अन्य देशों में शुरू हुआ था।


खुद की देखभाल करना सीखें


            सच तो यह है कि सभ्य देश में लाए गए पुरुषों के पास खुद को वल्द या मैदानों में या पीछे के मैदानों में देखने के बाद कोई भी ट्रनिंग नहीं है। नतीजा यह है कि जब वे जंगली देश में जाते हैं तो वे लंबे समय तक पूरी तरह से असहाय हो जाते हैं और बहुत कठिनाई और परेशानी से गुजरते हैं जो अगर सीखा नहीं, तो लड़कों को शिविर में खुद की देखभाल करने के लिए, वे बहुत सारे हैं "tenderfoots"।

            उन्हें कभी भी एक प्रकाश को या अपने स्वयं के भोजन को पकाने के लिए नहीं पड़ा है - जो हमेशा उनके लिए किया गया है। घर पर जब वे पानी चाहते थे, तो उन्हें केवल टैब की ओर मुड़ना पड़ा- इसलिए उन्हें इस बात का कोई अंदाजा नहीं था कि घास, या झाड़ी को देखते हुए, या रेत पर खरोंच होने तक मरुस्थल में पानी खोजने के बारे में कैसे पता लगाया जाए। नमी के संकेत। यदि वे अपना रास्ता खो देते हैं, या समय नहीं जानते हैं, तो उन्हें केवल किसी और से पूछना होगा। उनके पास हमेशा रहने के लिए घर और उन्हें लेटने के लिए बिस्तर थे। उन्हें कभी भी अपने लिए नहीं बनाना पड़ता था, न ही अपने जूते या कपड़ों को बनाने या मरम्मत करने के लिए।

            यही कारण है कि "टेंडरफुट" अक्सर शिविर में एक कठिन समय होता है। लेकिन स्काउट के लिए शिविर में रहना जो जानता है कि खेल एक साधारण मामला है। वह जानता है कि एक हजार छोटे तरीकों से खुद को सहज कैसे बनाया जा सकता है, और फिर जब वह सभ्यता में वापस आता है, तो वह इसके विपरीत देखने के लिए अधिक आनंद लेता है।



            और यहाँ घटना, शहर में, वह साधारण नश्वर की तुलना में अपने लिए बहुत कुछ कर सकता है, जिसने वास्तव में कभी भी अपनी इच्छा के लिए प्रदान करना नहीं सीखा है। जिस व्यक्ति को स्काउट शिविर में काम करना होता है, वह बहुत सी चीजों को देखता है, क्योंकि जब वह स्काउट शिविर में काम करता है तो वह पाता है कि जब वह सभ्यता में आता है तो वह आसानी से रोजगार प्राप्त करने में सक्षम होता है, क्योंकि वह है किसी भी तरह के काम के लिए तैयार हो सकते हैं।

Scouting in Born
                
                                           It was a geo of men and boys that he returned to England from South Africa in 1901, to be showered with honors and to discover, to his amazement, that his personal popularity had given popularity to his book for army men --  Aims to Scouting. It was being used as a textbook in boy’s schools.
                                    
                                                   B.P. saw a great challenge in this. He realized that here was his opportunity to help the boys  of this country to grow into strong menhood. If a book for men on scouting practices could appear to boys and inspire them, how much more would a book written for the boys themselves! He set to work adapting his experiences in India and in Africa among the Zulus and other savage tribes. He gathered a special library of books and read of the training of boys through all ages—from the Spartan boys, the accident British, the Red Indians, to our own day.
                                    
                                     Slow and carefully B.P. developed the Scouting idea. He wanted to be sure that it would work, so in the summer of 1907 he took a group of twenty boys with him to Brownsea Island in the English Channel for the first Boy Scout camp the world had ever seen. The camp was a great success. And then, in the early months of 1908, he bought out in six fortnightly parts, illustrated by himself, his handbook for training, Scouting for Boys ----- without dreaming that this book would set in motion, a Movement which was to affect boyhood of the entire world.
                                   
                                                       Scouting for Boys had hardly started to appear in the book shop and on the newsstands before Scout patrols and Troops began to spring up- not just in England, but in numerous other countries.

Learn to Look after yourself

            The truth is that men brought up in a civilized country have no tranining whatever in looking after themselves out on the veldt or plains, or in the backwoods. The consequence is that when they go into wild country they are for a long time perfectly helpless and go through a lot of hardship and trouble which not occur if they learned, while boys, to look after themselves in camp, They are just a lot of “tenderfoots”.
            They have never had to light a fore or to cook their own food- that has always been done for them. At home when they wanted water, they merely had to turn to the tab- therefore they had no idea of how to set about finding water in a desert place by looking at the grass, or bush, or by scratching at the sand till they found signs of dampness. If they losts their way, or did not know the time, they merely had to ask somebody else. They had always had houses to shelter them and beds to lie in.  They had never had to make them for themselves, nor to make or repair their own boots or clothing.
            That is why “ tenderfoot” often has a tough time in camp. But living in camp for a Scout who knows the game is a simple matter. He knows how to make himself comfortable in a thousand small ways, and then when he does come back to civilization, he enjoys it all the more for having seen the contrast.


            And event here, in the city, he can do very much more for himself than the ordinary mortal, who has never really learned to provide for his own wants. The man who has to turn his hand to many things, as the Scout does in camp finds that when he to many things as the Scout does in camp finds that when he comes into civilization he is more easily able to obtain employment, because he is ready for whatever kind of work may turn up.



















सेना में स्काउट शब्द का अर्थ होता है गुप्तचर आज भी सेना में स्काउट होते हैं। स्काउटिंग को सेना के सीमित क्षेत्र से खींचकर जनसाधारण के बालक- बालिकाओं तक लाने का एक मात्र श्रेय लार्ड बेडेन पावेल को है। जिन्हें बाद में बी.पी. के नाम से भी सम्बोधित किया जाने लगा था। लार्ड पावेल जिनका पूरा नाम राबर्ट स्टिफेन्सन स्मिथ बेडेन पावेल थाका जन्म 22 फरवरी, 1857 को लन्दन में रेवरेण्ड प्रोफेसर हरबर्ट जार्ज बेडेन पावेल के घर हुआ था। बी.पी. अभी तीन वर्ष के ही थे कि इनके पिता का स्वर्गवास हो गया। इनकी माताश्री श्रीमती हेनरेटा ग्रेस स्मिथ ने अत्यंत कुशलता एवं साहस से परिवार की देखभाल की।

    सन् 1900 में दक्षिण अफ्रीका में बोर युद्ध के समय इन्हें छोटे- छोटे बालकों की असीम शक्तिअदम्य साहसकर्तव्यपरायणताकार्यनिष्ठा आदि गुणों का परिचय मिला। इससे लार्ड पावेल को विश्वास हो गया कि बालक युद्ध एवं शान्तिकालदोनों मेंसंसार को कितना लाभ पहुँचा सकते हैं।

    बालकों में छिपी असीम शक्ति और उनके प्रति अपने विश्वास को रचनात्मक रुप देने के लिए बी.पी. ने सन् 1907 में ब्राउन सी नामक टापू पर मात्र बीस बालकों के साथ अपना प्रथम शिविर लगाया। इसकी सफलता से प्रेरित होकर बेडेन पावेल ने इस दिशा में और अधिक उत्साह से काम करना शुरु कर दिया।








स्काउट शब्द का अर्थ है गुप्तचर या अग्रगामी ।सेना में एक ऐसी कड़ी काम करती है जो फौज के आगे-आगे चलकर अपनी सेना का मार्गदर्शन करती है।
तथा शत्रु सेना क गुप्त भेदों की जानकारी प्राप्त कर अपने अधिकारियों को देती है। उन्हें ही वहां स्काउट कहते हैं।
सार्वजनिक जीवन में स्काउटिंग 'सेवा' का पर्याय बन
चुकी है। आज यह आंदोलन विश्व स्तर पर समाज सेवी
संस्था के रूप में अपनी पहचान बना चुका है।
स्काउटिंग के संस्थापक लार्ड बेडन पावल थे।उनका
जन्म 22 फरवरी 1857 को इंग्लैंड में हुआ।वे सन् 1876 में सैनिक परीक्षा में सफल हाकर एक फौजी अफसर (सब लेफ्टिनेंट)बनकर भारत में आए। भारत में उन्होनें स्काउटिंग के अनेक प्रयोग किए और इसके आधार पर ‘एड्स टू स्काउटिंग'" नामक पुस्तक लिखी ।
सन् 1899-1900 में दक्षिण अफ्रीका के बोअर युद्ध
में बोअर जाति के दमन का काम एडवर्ड सिसिल व बेडन पावल को सौंपा गया। अंग्रेजों के पास वहां सेना बहुत कम थी। एडवर्ड सिसिल ने मेफकिंग नगर के कुछ लड़कों को प्राथमिक सहायता ,शत्रु का भेद निकालना,संदेश भेजना,सुरक्षा आदि की ट्रेनिंग देकर विभिन्न कार्यों में लगा दिया और प्रशिक्षित सैनिकों को लड़ने के लिये मोर्चे पर भेज दिया। इस योजना से अंग्रेज विजयी हुए। इस घटना से बेडन पावल बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने सोचा यदि यही प्रशिक्षण शांतिकाल में बालकों को दिया जाये तो हमारे
बालक अधिक जागरूक, साहसी, स्वस्थ व कर्तव्य परायण बन सकते हैं।
           इसी योजना को व्यावहारिक रूप देने के लिये
बेडन पावल ने 20 बालकों को लेकर प्रथम प्रायोगिक
शिविर 29 जुलाई से 9 अगस्त 1907 तक ब्राउन-सी द्वीप ( इंग्लैंड ) में आयोजित किया। इस शिविर के अनुभवों व कैम्प फायर की कहानियों को पहले जनवरी से मार्च 1908 तक छ: पाक्षिक भागों में, फिर 1 मई 1908 को 'स्काउटिंग फॉर बॉयज' के रूप में प्रकाशित किया गया। इसके बाद यह स्काउट आंदोलन विश्व के कोने-कोने में फैलने लगा। भारत में सन 1909 में कैप्टन बेकर ने अंग्रेज बच्चों के लिए बैंगलोर में स्काउट दल खोला। इसमें केवल अंग्रेज व एंग्लोइण्डियन बच्चे ही भाग ले सकते थे। 1915-16 में श्रीमती एनीबेसेन्ट एवं डॉ. अरूणडे के प्रयासों से मद्रास में इंडियन बॉयज स्काउटएसोसिएशन की स्थापना हुई।
               भारतीय बच्चों के लिए भारत में सर्वप्रथम 1913 में श्री राम बाजपेयी ने शाहजहाँपुर (उ.प्र.) में एक स्काउट दल खोला। सन् 1918 में पं. मदन मोहन मालवीय के सुझाव व सहयोग से श्रीराम बाजपेयी व डॉ. हृदयनाथ कुंज ने प्रयाग,इलाहाबाद) में ‘सेवा समिति ब्वाय स्काउट एसोसिएशन' की स्थापना की।
भारत में कई स्काउट व गाइड संगठन अलग -अलग काम करते रहे। आजादी के बाद 7 नवम्बर 1950
को ‘हिन्दुस्तान स्काउट एसोसियेशन' और 'द ब्वाय
स्काउट एसोसियेशन' मिलकर एक हो गये। इस नए
संगठन का नाम ''भारतस्काउट्स एवं गाइड्स' ' रखा
गया। गर्ल गाइड एसोसिएशन इण्डिया अब भी अलग ही काम कर रही थी। 15 अगस्त 1951 को यह संस्था भी भारत स्काउट्स एवं गाइड्स में ही मिल गई। भारत में अब केवल यही संस्था केन्द्रीय व राज्य सरकारों द्वारा
मान्य है।
भारत का स्काउट विभाग अन्तर्राष्ट्रीय स्काउट-संघ (WOSM, जेनेवा (स्विटजरलैण्ड) व गाइड विभाग
विश्व गर्ल गाइड तथा गर्ल्स स्काउट संघ (WAGGGS), लन्दन से सम्बद्ध है। अमेरिका में गाइड को गर्ल स्काउट कहते हैं।
        भारत स्काउट्स एवं गाइड्स का राष्ट्रीय मुख्यालय
16, महात्मा गांधी मार्गइन्द्रप्रस्थ इस्टेट नई दिल्ली में स्थित है। प्रत्येक राज्य की राजधानियों में स्काउट-गाइड के राज्य मुख्यालय बनाये गये हैं।
परिभाषा, उद्देश्य व सिद्धान्त-
(अ) परिभाषा- भारत स्काउट्स एवं गाइड्स
नवयुवकों के लिए एक स्वयं सेवी,गैर सरकारी,शैक्षणिक
आन्दोलन है जो किसी मूलजाति और वंश के भेदभाव से मुक्त प्रत्येक व्यक्ति के लिए खुला है। यह 1907 में संस्थापक लार्ड बेडन पावल द्वारा संकल्पित किये गये लक्ष्य,सिद्धान्त तथा पद्धति के अनुरूप है।
(ब ) उद्देश्य आन्दोलन का उद्देश्य नवयुवकों के विकास में इस तरह योगदान करना है, जिससे उनको पूर्ण शारीरिक, बौद्धिक, सामाजिक तथा आध्यात्मिक अन्त
शक्तियों की प्राप्ति हो, ताकि वे व्यक्तिगत रूप से,जिम्मेदार नागरिकों के रूप में तथा स्थानीय, राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय समुदायों के सदस्यों के रूप में उपयोगी सिद्ध हो सकें।
( स)सिद्धान्त - स्काउट एवं गाइड आन्दोलन
निम्न सिद्धान्तों पर आधारित है:
ईश्वर के प्रति कर्तव्य
                आध्यात्मिक सिद्धान्तों के प्रति दृढ़ता ईश्वर
के प्रति आस्था,इन्हें अभिव्यक्त करने वाले धर्म के प्रति
वफादारी तथा इनसे उत्पन्न कर्त्तव्यों को स्वीकार करना।
नोट: 'ईश्वर' शब्द के स्थान पर इच्छानुसार 'धर्म' शब्द
का प्रयोग किया जा सकता है।
दूसरों के प्रति कर्त्तव्य:
               स्थानीयराष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर शांति, समझ और सहयोग की भावना से समन्वय रखते हुए अपने देश के प्रति वफादारी।
                  अपने साथियों की गरिमा तथा विश्व प्रकृति
की अखंडता के प्रति अभिज्ञान सम्मान के साथ तथा













सेना में ‘स्काउट’ शब्द का अर्थ होता है ‘गुप्तचर’। आज भी सेना में स्काउट होते हैं। स्काउटिंग को सेना के सीमित क्षेत्र से खींचकर जनसाधारण के बालक- बालिकाओं तक लाने का एक मात्र श्रेय लार्ड बेडेन पावेल को है। जिन्हें बाद में बी.पी. के नाम से भी सम्बोधित किया जाने लगा था। लार्ड पावेल जिनका पूरा नाम राबर्ट स्टिफेन्सन स्मिथ बेडेन पावेल था, का जन्म 22 फरवरी, 1857 को लन्दन में रेवरेण्ड प्रोफेसर हरबर्ट जार्ज बेडेन पावेल के घर हुआ था। बी.पी. अभी तीन वर्ष के ही थे कि इनके पिता का स्वर्गवास हो गया। इनकी माताश्री श्रीमती हेनरेटा ग्रेस स्मिथ ने अत्यंत कुशलता एवं साहस से परिवार की देखभाल की। 
    सन् 1900 में दक्षिण अफ्रीका में ‘बोर युद्ध’ के समय इन्हें छोटे- छोटे बालकों की असीम शक्ति, अदम्य साहस, कर्तव्यपरायणता, कार्यनिष्ठा आदि गुणों का परिचय मिला। इससे लार्ड पावेल को विश्वास हो गया कि बालक युद्ध एवं शान्तिकाल, दोनों में, संसार को कितना लाभ पहुँचा सकते हैं। 
    बालकों में छिपी असीम शक्ति और उनके प्रति अपने विश्वास को रचनात्मक रुप देने के लिए बी.पी. ने सन् 1907 में ‘ब्राउन सी’ नामक टापू पर मात्र बीस बालकों के साथ अपना प्रथम शिविर लगाया। इसकी सफलता से प्रेरित होकर बेडेन पावेल ने इस दिशा में और अधिक उत्साह से काम करना शुरु कर दिया। 
भारत में स्काउटिंग- गाइडिंग 
   लार्ड बेडेन पावेल की पुस्तक ‘स्काउटिंग फॉर ब्वॉयज’ का प्रभाव विश्व के अन्य देशों के साथ- साथ भारत पर भी पड़ा। जिसके फलस्वरुप भारत में भी स्काउटिंग शुरु करने का प्रयास किया जाने लगा। सन् 1910 में भारत में स्काउटिंग के आरम्भ होने पर इसमें केवल अंग्रेज तथा एंग्लो इण्डियन बच्चों को ही प्रवेश दिया जाता था। सन् 1913 में पं. श्रीराम वाजपेयी ने शाहजहाँपुर में भारतीय बचचों के लिए स्काउटों का एक स्वतंत्र दल खोला। सन् 1913 के उपरान्त एक के बाद एक दल खुलने लगे। सन् 1916 में पूना में लड़कियों को भी पहली बार गर्ल स्काउट (गाइड) बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। 
सन् 1916 में ही डाँ. एनीबेसेंट ने मद्रास में ‘इण्डियन  ब्वॉयज स्काउट एसोसिएशन’ की नींव रखी। सन् 1917 में पण्डित मदन मोहन मालवीय ने पं.हृदयनाथ कुँजरू और पं. श्रीराम वाजपेयी के सहयोग से इलाहाबाद में ‘अखिल भारतीय सेवा समिति  ब्वॉयज स्काउट एसोसिएशन’ की स्थापना कर दी। सन् 1920 तक तो भारत में स्काउटिंग के कई स्वतंत्र संगठन बन चुके थे। 
स्काउटिंग गाइडिंग की उत्पत्ति जन्मदाता रॉबर्ट स्टीफेंस स्मिथ बेडेन पावेल अंग्रेजी सेना के अधिकारी थे पहले कल से लेकर फौज में विभिन्न पदों पर कार्य करते हुए अपनी फौज के साथ रहकर युद्ध में भाग लेकर जो कुछ देखा अनुभव किया उसी से प्रेरित होकर स्काउटिंग का प्रारंभ किया स्काउटिंग के प्रारंभ होने की प्रमुख घटनाएं बेडेन पावेल बाल्यकाल में भाइयों के साथ पूरी बनाकर बारी जीवन नोखा चलाना समुद्र में तैरना शिविर लगाना खाना बनाना ऐसे साहसिक कार्य करते थे इस टोली के नायक उनके बड़े भाई थे बिल्कुल चार्टरहाउस की गोद में स्थित था कार्य ना होना अवकाश के छोड़ो में जंगल में घुसकर पक्षियों का पकड़ने का प्रयत्न करना मूल्यों का अध्ययन करना सांस रोककर जमीन पर लेट कर उनका पीछा करने कार्य करते थे जो युद्ध में सहायक हुए सेना में अफसर के रूप में भारतीय अफ्रिका आदि देशों में वहां के रहने वाले लोगों के खान-पान रहन-सहन रीति-रिवाज विभिन्न कमरों की व्यवस्था उनके नियमों को जानने का अवसर लार्ड बेडेन पावेल को प्राप्त हुआ नाइट जो एक तरह के स्काउट होते थे उनकी भी नियमावली व कार्यकलापों को देखा 1899 में दक्षिण अफ्रीका में अंग्रेजों के अधीन था उस पर एक कबीला हमला कर दिया अंग्रेज सैनिक का हमलावर ज्यादा और साहसी थे उसमें मुकाबला करने की युक्ति स्काउटिंग का उत्पत्ति युद्ध के ऊपर के बालकों को इकट्ठा कर वर्दी पहना कर दिए गए जिन्हें दिनेश आज स्काउट सीखते हैं संदेश भेजना गुप्त चर का कार्य घायलों की देखभाल मरहम पट्टी अधिकारी जो मूर्ति पर जाकर ना हो सके बालकों के जो साहस लग्न का बीपी पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ा और उनके मन में विचार आया क्यों न स्वाबलंबन सद्भावना साहस प्रशिक्षण देकर कुशल नागरिक बनाया जाए और इसे मूर्त रूप दिया जाए या फिर 907 की घटना है लंदन में 19 जुलाई 9 अगस्त 1960 तक अंग्रेज बच्चों का पहला प्रयोगात्मक शिविर लगाकर स्काउटिंग की शुरुआत की 1908 में बच्चों हेतु स्काउटिंग फॉर बॉयज का प्रकाशन हुआ 24 दिसंबर उन्नीस सौ नौ को क्रिस्टल पैलेस लंदन में भौजी स्काउट की रैली का आयोजन हुआ जिसमें 11000 स्काउट एकत्र हुए और उसी समय उस कार्यक्रम को देखकर साथ लड़कियां खाकी वर्दी में मार्च करती खड़ी हो गई इससे आयोजक चकित हुआ लार्ड बेडेन पावेल ने पूछने पर लीडर ने उत्तर दिया हम गर्ल्स स्काउट है और इनकी लगन को देखकर भी पीने लड़कियों है तो एक साथ था कल गाइड खोला 1910 में लार्ड बेडेन की बहन मिस अग्निस बेडेन पावेल की सहायता से लड़कियों के पहले