गुरुवार, 21 मई 2015

सिक्किम – धरती पर छोटा सा सुन्दर स्वर्ग




इस चिट्ठी  में, हमारी सिक्किम और कालिम्पॉङ यात्रा का वर्णन है।
सिक्किम राज्य भारत के उत्तर पूर्व में है। यह हमारे साथ १९७५ में जुड़ा।
सिक्किम भारत का दूसरा सबसे छोटा प्रदेश है। गोवा (Goa) इससे छोटा प्रदेश है सिक्किम क्षेत्रफल ७ हजार वर्ग किलोमीटर है। इसकी जनसंख्या सारे राज्यों से कम, केवल ५,४०,००० है। इसके पश्चिम में नेपाल, उत्तर में तिब्बत, पूरब में भूटान, और दक्षिण में पश्चिम बंगाल का दार्जिलिंग जिला है। सिक्किम में चार जिले हैं – उत्तर, पूरव, दक्षिण, और पश्चिम।
सिक्किम घूमते समय, हमें पर्यटन विभाग के द्वारा जगह, जगह पर सिक्किम के बारे में कुछ जुमले लिखे दिखे। कहीं लिखा हुआ था – ‘छोटा और सुन्दर’ (Small & beautiful) तो कहीं लिखा हुआ था ‘छोटा मगर सुन्दर’ (Small but beautiful), इन दोनो में मुझे तो ‘छोटा मगर सुन्दर’ जुमला ज्यादा भाया।

सिक्किम पहाडियों और पेड़ों से हरा भरा सुंदर जगह है। यहां अलग अलग सभ्यता और संस्कृति के लोग रहते हैं।  लिम्बू (Limbu), लेपचा (Lepcha), और भूटिया (Bhutia) यहां के मूल निवासी हैं। नेपाली और और तिब्बती भी यहां बस गये हैं।
यहां पर हम लोगों ने सिक्किम के ऊपर एक पॉकेट गाइड ली। यह गाइड माइलस्टोंस (Millstones) के द्वारा प्रकाशित है। यह सिक्किम के बारे में अच्छी सूचना देती है। आप कभी सिक्किम जाने की सोचें तो इस पुस्तक को पढ़ लें। हालांकि इसमे बताई गई हर जगह में देखने के लिए न तो समय है और शायद न ही जरूरत।

गैंगटॉक कैसे पहुंचें

गैगंटॉक सिक्किम की राजधानी है। यहां पहुंचने के दो तरीके है।
  • हवाई जहाज से बागडोगरा फिर कार या हेलीकाप्टर से गैंगटॉक
  • रेल से जलपाईगुड़ी तक फिर कार से गैंगटॉक
हरा-भरा सिक्किम
हम लोग बागडोगरा तक इण्डियन एयरलाइंस के हवाई जहाज से आये। हवाई जहाज में चढ़ते समय, हमें हाथ, एवं मुँह साफ करने के लिए रूमाल तो मिला पर टॉफी नहीं मिली। मैनें परिचायिकाओं से पूछा,
‘टॉफियां कहाँ है?’
उन्होंने बताया,
‘प्रबंध समिति ने टॉफियां न बाटनें का निर्णय लिया है।’
मेरे विचार से यह निर्णय ठीक नही है। इसमें ज्यादा पैसा खर्च नही होता पर लोग प्रसन्न रहते है। हम लोग ज्यादा टाफियां जेब में रख लेते थे और बाद में आराम से खाते रहते थे। लगता है कि यह अब नही हो सकेगा, इसके लिए किसी दूसरी एयर लाइन्स से उड़ान भरनी पड़ेगी।
परिचारिकायें नीली और नारंगी रंग साड़ियां पहने थी। मैने पूछा कि क्या कोई नियम है कि कौन किस रंग की साड़ी पहनेगा। उसने बताया कि कोई नियम नहीं है पर उन्हें उन दो में से, किसी एक रंग की साड़ी पहनना होता है। जिसे जो रंग पसंद है वह उस रंग की साड़ी पहन सकती है।
नदियों और झरनों से भरपूर – सिक्किम
परिचारिकायें, हवाई जहाज पर जबान -तोड़ अंग्रेजी में बात कर रही थीं। उतरते समय भी उन्होंने अंग्रेजी में धन्यवाद और विदा ली। मेरे हिन्दी में कहे ‘नमस्ते’ पर जरा शर्मिदगी से भरी मुस्कराहट अवश्य दी।
बागडोगरा एयर पोर्ट से गैगंटॉक लगभग १२५ किलोमीटर है पर पहाड़ी रास्ते के कारण लगभग ४ घण्टें लगते है। हम लोगों ने बागडोगरा हवाई अड्डे से गैगंटॉक के लिये टैक्सी पकड़ी। हमारा टैक्सी ड्राइवर मजेदार व्यक्ति था। वह रास्ते भर बात करता रहा।

टिस्ता नदी (सिक्किम) पर बांध बने अथवा नहीं

हम लोगो ने बागडोगरा हवाई अड्डे से, गैगंटॉक के लिये, टैक्सी ली। रास्ता टिस्ता (teesta) नदी के बगल से चलता है। कभी नदी नीचे हो जाती थी तो कभी हम लोगों के साथ। हम लोगों ने रास्ते में एक रेस्ट्राँ में चाय पी । वहाँ पर बहुत से लोग बेड़ा विहार (Rafting) रैफ्टिंग कर रहे थे। वहां इसके अतिरिक्त कुछ और नही थी । इसलिए मैंने पूछा
‘यहां कौन लोग बेड़ा विहार करते हैं।’
होटल के मालिक ने बताया
‘गैंगटॉक या कलिगंपॉङ जाते समय अथवा लौटते समय, पर्यटक यहां बेड़ा विहार करते है।’
वहां कपड़े बदलने की सुविधा है। लौटते समय, कुछ लोग वहां पर रात को भी रूकते हैं और दिन में निकल कर हवाई जहाज या ट्रेन पकड़ते हैं।
रास्ते में टिस्ता (teesta) नदी पर बांध बनता दिखाई पड़ा। टैक्सी ड्राइवर ने बताया कि टिस्ता नदी पर कई बांध बन रहे हैं दो पश्चिमी बंगाल में है और कुछ सिक्किम में है। यह डैम अलग-अलग शक्ति की बिजली पैदा करेगें। हम लोग पांच बजे गैगंटॉक पहुंच गये।
गैंगटॉक पहुंच कर कुछ देर आराम किया फिर बाजार घूमने गये। रास्ते में, एक जगह कुछ लोग डेरा जमा रखा था। वे लोग उत्तर सिक्किम में टिस्ता नदी पर बन रहे बांध का विरोध कर रहे थे। मैने उनसे बात की। उन्होनें बताया,
‘हमारे गांव के अधिकतर लोग अनपढ़ है और लोग खेती करते हैं। जब डैम बनेगा तो हमारा गांव डूब जायेगा और हम लोग बेघर हो जायेगें। सरकार विस्थापित लोगों को नौकरी देने की बात कर रही है पर यह नौकरी केवल चपरासी की होगी।’
उनका यह भी कहना था,
‘यह डैम कञ्चनजङ्घा राष्ट्रीय उधान (Khangchendzonga National Park) में है और कानूनन नही बनाया जा सकता है।’
यह लोग अंगेजी मे बात कर रहे थे मैने पूछा की
‘आप लोग अंगेजी में बात कर रहे है । आप तो पढ़े लिखे लगते है।’
उन्होनें कहा कि गांव में उनके जैसे बहुत कम लोग है। मैंने उनसे उनके आंदोलेन के बारे में लिखित सूचना मांगी तब उन्होने कहा कि वह तो नहीं है पर वे लोग चिट्ठा लिखते है। मेरे विचार में वह लोग स्वयं चिट्ठा नही लिखते है पर उनके लिए कोई और लिखता है। क्योंकि जब मैने उनसे पूछा कि वह मुफ्त चिट्ठा लिखने देने की बेबसाइट पर है या उन्होनें कोई डोमेन लिया है। वे इसका ठीक से उत्तर नही दे पाये।
मुझे बाद में पता चला कि उनका चिट्ठा ब्लॉगर पर है और उसका नाम ani sikkim runcha…. है।
अनशन पर बैठे, उन लोगों का  चित्र उनके चिट्ठे से है।
बांध बनाया जाय अथवा नहीं का निर्णय – अक्सर विवाद में आ जाता है। नर्बदा परियोजना, टेहरी बांध, इसके जीते जागते उद्धाहरण हैं। जल विद्युत-घर के कारण, पर्यावरण का भी नुकसान होता है लेकिन यह थर्मल विद्युत-घर और नाभिकीय-विद्युत घर के मुकाबले, बहुत कम है। बांध के द्वारा पानी का संरक्षण ठीक से किया जा सकता है, बिजली पैदा की जा सकती है। यदि यह न हो तो विकास ही रुक जाये।
बांध बनाने में सबसे बड़ी मुश्किल पुनर्वास की है। इसमें न केवल भ्रष्टाचार है पर कुछ लोग भावनाओं को उभार कर ब्लैक मेल भी करते हैं। मैं नहीं जानता कि टिस्ता नदी पर बन रहे डैम के लिये क्या बात सही है।

नाथुला पास – भारत चीन सीमा

नाथुला पास पर भारत चीन की सीमा है। रास्ते में कुछ अन्य दर्शनीय जगहें हैं पर सबसे दूर नथुला पास है। टैक्सी ड्राइवर की सलाह थी कि हम सबसे पहले दूर की जगह को देख लें और लौटते समय अन्य जगहों को देख लेगें। बचपन में परीक्षा देते समय उल्टी बात रहती है कि पहले आसान सवाल का जवाब लिखो फिर कठिन सवाल का।
नथुला पास जाने के लिए परमिट की जरूरत पड़ती है। इसे अलग-अलग चेक पोस्ट पर दिखाना पड़ता है। एक चेक पोस्ट पर जब हम पास दिखाने के लिए रूके तब मुझे शंका निवारण की आवश्यक्ता पड़ी। वहां पर एक सार्वजानिक शौचालय था। यहां शंका निवारण के लिए २ रूपया देना पड़ता है। मुझे अपनी बर्लिन यात्रा की याद आयी जहां इसी के लिए ५० सेन्ट (लगभग ३० रूपये) देने पड़े थे। इस जगह जाकर मुझे आश्चर्य हुआ क्योंकि मैने इतना साफ सार्वजानिक शौचालय नहीं देखा था। मुझे इस बात से कुछ प्रसन्नता भी हुई।
मैंने शौचालय की देख रेख करने वाले व्यक्ति से, उसकी तारीफ की तो वह नहीं समझ पाया। टैक्सी ड्राइवर ने उस व्यक्ति को उसकी भाषा में यह समझाया तो उसने मुस्कुरा कर तारीफ स्वीकार की।
नथुला पास पर एक यादगार चिन्ह बना हुआ है। यह मार्च २००२ में बनाया गया था। यहां पर गार्ड ने मुझे बताया कि यह १९६२ में भारत -चीन लड़ाई और बाद के अन्य हादसों में शहीद हुए भारतीय सैनिकों के यादगार में बनाया गया है। इसके ऊपर कुछ ऊपर चढ़ने पर एक जगह पत्थर जड़ा हुआ है जिसमे लिखा हुआ है कि जवाहर लाल नेहरू १ सितम्बर १९५८ को यहां आये थे।
भारत की सीमा पर सबसे ध्यान देने की बात यह थी कि वहां पर सैकड़ो हिन्दुस्तानी पर्यटक थे पर चीन की तरफ एक भी पर्यटक नहीं था। वहां पर केवल चीनी सैनिक थे। मैंने चीनी सैनिकों से हाथ भी मिलाया।
यहां से चीन में बनी रोड भी दिखाई पड़ती है और चीन में बनी रोड और अपने देश में बनी रोड में जमीन आसमान का अंतर दिखायी पड़ता है। जहां पर चीन की तरफ बनी हुई रोड एक बहुत ही सुन्दर, बेहतरीन और चौड़ी है जिसमें दो गाड़ी असानी से आ-जा सकती हैं। वहीं भारत की तरफ बनी रोड सकरी और कई जगह टूटी फूटी थी। सकरी होने के कारण जब आर्मी की ट्रकें आमने -सामने आ जाती थी तो लम्बा जाम फंस जाता था जिसे हटाने में काफी समय लगता था। नथुला पास से लौटते समय पानी भी बरसने लगा जिसके कारण रोड पर जगह जगह नाले से बन गये और पानी इक्टठा हो गया।
अपने देश और चीन की रोड देखकर मुझे शर्म लगी। मैंने वहाँ पर एक गार्ड से पूछा कि ऎसा क्यों है। उसने मुस्कुरा कर कहा,
‘हमारी तरफ तो पर्यटकों की भीड़ है। यह लोग, यहाँ पर आकर न केवल समय बर्बाद करते हैं पर उनके आवागमन से रोड भी खराब होत है। चीन की तरफ देखिये, उधर एक भी पर्यटक नही हैं। वे लोग इन सब बातों में समय बर्बाद नहीं करते। भीड़ कम होने के कारण उनकी सड़के भी कम खराब होती है और उनके रख रखाव में आसानी पड़ती है।’
मुझे लगा कि यदि कभी फिर भारत-चीन से युद्व हुआ (जिसकी सम्भावना सें इंकार नही किया जा सकता) तब इन सड़कों की भूमिका महत्वपूर्ण रहेगी।
मेरे विचार से यह जगह पर्यटकों के जाने के लिए कुछ समय तक के लिए बंद कर देनी चाहिये ताकि कि हम रास्ते को कम से कम की चीन की तरफ की के रास्ते बराबर बना सकें और विवाद या लड़ाई के समय उनसे पीछें न रहें। लेकिन रास्ता शायद यह बंद करना सम्भव न हो क्योंकि सिक्किम में पैसा कमाने का सबसे बड़ा साधन पर्यटन है और सिक्किम का पर्यटन विभाग नथुला पास घूमने को विज्ञापित करती है कि आप वहां जाएं और देखें कि हमारे देश के सैनिक किस तरह से सीमाओं की रक्षा कर रही है। इसी कारण वहाँ पर भारतीय पर्यटकों की भीड रहती है। इससे लोगों को व्यापार का साधन मिल रहा है। यदि वहां पर्यटकों का जाना रोका जायेगा व्यापार करने के तरीके में कमी आयेगी।

क्या ईसा मसीह सिल्क रूट से भारत आये थे

सिल्क रूट क्या है?
पुराने समय में चीन भारत और पश्चिमी देशों के बीच रेश्म का व्यापार हुआ करता था। यह कई रास्तों से जाता था। इन्हें ‘सिल्क रूट’ कहा जाता था। इसमें एक रास्ता नथुला पास होकर जाया करता था। १९६२ में, भारत – चीन युद्व के बाद यह रास्ता बंद कर दिया। यह पुन: ६ जुलाई २००६ में खोला गया। इस रास्ते से पुनः व्यापार हो रहा है। हमें वहां चीन के कई ट्रक मिले जिसमें चीन से समान भारत आया था।

नथुला पास जाने पर ५० रुपये में आप को सर्टिफिकेट मिल सकता है कि आप नथुला पास गये थे। यह कोई भी बनवा सकता है। आपको केवल पैसे देने पड़ते हैं आप जो नाम चाहें वह दे सकते हैं। देखिये अब तो आपको विश्वास हो गया न कि मैं भी वहां गया था। यह सर्टिफिकेट एक सुन्दर से फोल्डर के अन्दर रख कर मिलता है।
इस फोल्डर के अन्दर के हिस्से में सिल्क रूट का नक्शा बना है और इसके बारे में सूचना लिखी है।
क्या ईसा मसीह ही सेंट ईसा (Saint Issa) थे और भारत आये थे?
निकोलस नोतोविच (Nicolas Notovitch) एक रूसी अन्वेषक था। उसने कुछ साल भारत में बिताये। बाद में, उन्होने फ्रेंच भाषा में ‘द अननोन लाइफ ऑफ जीज़स क्राइस्ट’ (The unknown life of Jesus Christ) नामक पुस्तक लिखी है।
निकोलस नोतोवच का चित्र विकिपीडिया से
निकोलस के मुताबिक यह पुस्तक हेमिस बौद्घ आश्रम (Hemis Monastery) में रखी पुस्तक (The life of saint Issa) पर आधारित है। उस समय हेमिस बौद्घ आश्रम लद्दाक के उस भाग में था जो कि भारत का हिस्सा था। हांलाकि इस समय यह जगह तिब्बत का हिस्सा है। यह आश्रम इसी तरह के सिल्क रूट पर था।
यह रहस्य की बात है कि ईसा मसीह ने १३ साल से ३० साल तक क्या किया। इस पुस्तक के आधार पर निकोला का कहना है कि,
  • इन सालों में ईसा मसीह सिल्क रूट के द्वारा भारत आये थे
  • उन्होंने यहां में बौद्घ धर्म पढ़ने में बिताया,
  • उसके बाद बौद्घ धर्म से प्रेरित होकर धर्म की शिक्षा दी।
मुझे धर्म के बारे में कम ज्ञान है में नहीं जानता कि बौद्घ धर्म और इसाई धर्म में संबंध है अथवा नहीं। मैं इतिहास का भी अच्छा जानकार नहीं हूं। मैं नहीं कह सकता कि,
  • यह कहानी सच है अथवा नहीं?
  • ईसा मसीह वास्तव भारत आए थे अथवा नहीं?
  • ईसा मसीह ने बौद्घ धर्म की शिक्षा ली थी अथवा नहीं?
  • ईसाई धर्म बौद्घ धर्म से प्रेरित है अथवा नहीं?
पर मैं इतना अवश्य जानता हूं कि इस पुस्तक के बारे में विवाद है और इस तरह के विवाद का संतोषजनक जवाब दे पाना मुश्किल है।

मंदाकिनी झरना – ‘राम तेरी गंगा मैली’ फिल्म वाला

हम लोग, नथुला पास से लौटते समय, बाबा हर भजन सिंह मंदिर भी गये। यह वास्तव में समाधि है। बाबा हर भजन सिंह पंजाब रेजीमेंट में थे। ४ अक्टूबर १९६८ को जब वे एक खच्चर (mule) को लेकर आ रहे थे तो उनका पैर फिसल गया जिसके कारण वह एक झरने में गिर पड़े और उनकी मृत्यु हो गई। ऎसा कहा जाता है कि कुछ दिनों बाद वह अपने एक सहयोगी के सपने में आये और कहा कि उनके नाम से एक समाधि बना दी जाए। यहां उन्हीं की समाधि बनी है।
यहां आने पर मुझे बताया गया कि यदि आप २ दिन यानी रविवार और मंगलवार को मांस न खाये तो पवित्र पानी पी सकते हैं पर प्रसाद लेने मे या टीका लगवाने में कोई भी इस तरह की बाधा नहीं थी । मैं सिक्किम का खाना, खाना चाहता था जिसमें मांस भी शामिल था। इसीलिए मैने पानी नहीं लिया पर माथे पर तिलक लगवाया और प्रसाद लिया।
लौटते समय हम लोग टोम्गो (Tsomgo) झील पर भी रूके। टोम्गो सिक्किमी भाषा का शब्द है और नेपाली में इसे छंगू झील कहा जाता है। ज्यादातर लोग इसको छंगू झील ही कहते है। यह ३७८० मीटर (१२,४०० फीट) की ऊंचाई पर है और गैंगटॉक से ३५ किलोमीटर की दूरी पर है। इस झील की परधि लगभग एक किलोमीटर है।
इस झील के पास बहुत सारे याक (Yak) थे । कई लोग उस पर चढ़कर सवारी कर रहे थे। वहां पर लोगों ने बताया की याक का दूध होता है और इस दूध की पनीर बनती है। जब मैने उसके दूध को पीने की या उससे बनी पनीर खाने की इच्छा की तो वह मुझे नहीं मिल पाया।
यहां पर हम लोगों ने दिन का भोजन लिया। भोजन में इस्क्यूस (iskuss) की रसेदार सब्जी और चावल था। उन्होनें बताया कि यह सब्जी कुछ लौकी और कोहड़ा जैसे होती है। भूख बहुत जोरों से लगी थी। सब कुछ स्वादिष्ट लगा।

लौटते समय हमें कई झरने मिले पर हम लोग एक खास झरने पर रूके। हमारे टैक्सी ड्राइवर ने इसका नाम मंदाकिनी झरना बताया। वहां मंदाकिनी ‘राम तेरी गंगा मैली’ फिल्म की हिरोइन है। उस फिल्म में वह इस झरने में नहाती है। इसलिए यह मंदाकिनी झरने के नाम से प्रसिद्व है। यहां पर एक बोर्ड लगा था। जिस पर इसका नाम Kyongnosla falls लिखा था। टैक्सी ड्राइवर के मुताबिक यह बोर्ड दो साल पहले पर्यटन विभाग ने लगाया है।
मैंने ‘राम तेरी गंगा मैली’ फिल्म नहीं देखी है। मैं नहीं जानता कि यह सही अथवा नहीं। हो सकता है कि वहां के टैक्सी ड्राईवर पर्यटक को आकर्षित करने के लिये यह बात कहते हों। पर यदि यह सही है तो इसे मंदाकिनी झरने के नाम से पुकारा जाए और कुछ ‘राम तेरी गंगा मैली’ फिल्म के साथ जोड़ा जाए तो कुछ ज्यादा लोग आकर्षित होंगे।

सात राजकुमारियां, जिन्होंने प्रकृति से शादी कर ली

हम लोगों ने गैंगटॉक से युमथांग घाटी (Yumthang valley), युमसंगडॉन्ग (Yumesondong) घूमने का २ दिन १ रात का पैकेज लिया। हमें गुरूडोंगमर (Gurudongmar) झील के बारे में नहीं मालूम था। इसी लिए वह वाला पैकेज नहीं लिया। इसे घूमने के लिए ३ दिन और २ रात का पैकेज लेना पड़ता था।
हम सुबह गैंगटॉक से निकले। हमारा रात का पड़ाव लाचुन्ग (Lachung) में था। यह २६२४ मीटर (८६१० फीट) की ऊंचाई पर है। रात में यहीं रुकना था और अगले दिन सुबह युमथांग घाटी और युमसंगडॉन्ग जाने का प्रोग्राम था।
सिक्किम झीलों और झरनों का प्रदेश है नथुला पास जाते समय हम लोगों को बहुत सी झीलें मिली थी जिसमे सबसे महत्वपूर्ण छंगू झील थी। लाचुंग आते समय हमको बहुत सारे झरने मिले। सबसे पहला महत्वपूर्ण झरना सात बहने (seven sisters) पड़ा।
सात बहने झरने में पानी पहाडी से सात चरणों मे नीचे रास्ते तक गिरता है। इसलिए इसे सात बहने कहा गया है। वहां पर इसके बारे में कथा भी बतायी गयी। राजा की ७ राजकुमारियां थीं। उन्हें प्रकृति से प्रेम था और वे इसी झरने के रूप में हमेशा प्रकृति की हो गयीं । इसलिए इसका नाम सात बहने पड़ा।
सिक्किम भाषा में छू शब्द का अर्थ है, पानी। वहां झरने, नंदियां हैं इसलिए अक्सर जगहों, झरनो के नाम में छू शब्द जोड़ दिया जाता है।
रास्ते में हम लोगों को छूंगथंग (Chungthang) नामक जगह मिली। यहाँ पर भी टिस्ता और लाचुंग नदी का सगंम है। यहां नदी पर डैम बन रहा है। पानी रोका जायगा और सुरंग के द्वारा के मंगन के पास ले जाया जायगा। जहां पर बिजली घर में १२०० मेगावाट बिजली पैदा होगी।
रास्ते में हमें कई लडके, लडकियां बच्चे स्कूल जाते और लौटते समय मिले। मैने कुछ लड़कियों से बात की।
यह लड़कियां फुटंग स्कूल में पढ़ रही थी। उनके स्कूल में दो मीटिंग होती है। वे दूसरी मीटिंग में पढने जा रही थी। उन्होंने बताया,
‘हमारा स्कूल अंग्रेजी मीडियम स्कूल है । इसमे सिक्किमी भाषा पढ़ायी जाती है पर हिन्दी नही पढ़ायी जाती है।’
उन्होंने अपनी कापी में सिक्किम भाषा में लिखा लेख भी दिखाया। मुझे वह देवनागरी में लगा। मेरे पूछने पर कि यदि वे हिन्दी नहीं पढ़ती है तो हिन्दी में कैसे बात कर पा रही हैं। उन्होंने कहा,
‘थोरा-थोरा हिन्दी आती है।’
रास्ते में एक और झरना मिला। मैने इसका नाम पूछा तो ड्राइवर ने बताया की यह अमिताभ बच्चन झरना है। यदि आप इसे देखेगें तो समझ जायेगें है कि हमारा टैक्सी ड्राइवर इसे अमिताभ बच्चन झरना क्यों कह रहा था।
यहाँ पर बड़ी इलायची भी पैदा होती है, जिसका पेड़ भी हम लोगों ने रास्ते में देखा।

तारीफ करूं क्या उसकी, जिसने तुझे बनाया

लाचुंग से सुबह हम लोग युमसंगडॉन्ग (Yumesondong) और युमथांग घाटी (Yumthang valley) देखने के लिए निकले। युमसंगडॉन्ग ज्यादा दूर है। इसलिए पहले उसे देखने की सोची। सुबह भाग्य हमारे साथ नही था। हल्की-हल्की बूंदा-बांदी हो रही थी और बादल छाये हुये थे। इसलिए रास्ते में न तो कुछ ठीक से देख पाये और न ही चित्र ले पाये। मुझे कुछ दुख भी लग रहा था कि इतनी दूर आने के बाद लगता था कि सब व्यर्थ ही रहेगा।
युमसंगडॉन्ग में हम लोग जीरो प्वांइट तक गए। इसे जीरो प्वाइंट इसलिये कहा जाता है क्योंकि यहां रोड समाप्त हो जाती है। यह लगभग ४६६३ मीटर १५३०० फीट की ऊँचाई पर है हम लोग जब पहुंचे तो बूंदा बादीं बन्द हो गयी थी पर बादल थे। लेकिन बहुत जल्दी ही भाग्य ने हमारा साथ दिया और धूप निकल आयी। हम लोग वहां करीब एक घण्टा रहे और पूरे समय मौसम सुहावना रहा। मुझे लगा कि शायद भगवान भी हम लोगों का साथ देना चाहते है। यहाँ पर बहुत सी जगह बर्फ जमी हुई थी। बहुत सारे पर्यटक थे और बर्फ में खेल रहे थे।
इस जगह की खूबसूरती कुछ अलग कस्म की है और इसे बयान कर पाना मुश्किल है। इसके लिये मेरी जबान पर अंग्रेजी का शब्द – raw beauty आता है। मैं नहीं जानता कि इसे हिन्दी में क्या कहा जाय। मुझे तो बस यही गाना याद आता था।
‘तारीफ करूं क्या उसकी,
जिसने तुझे बनाया
यह चांद सा रोशन चेहरा
झुल्फ़ों का रंग सुनहरा।
यह झील सी नीली आंखें,
कोई राज है इसमें गहरा।’
यहां एक बात मुझे अच्छी नही लगी कि चारों तरफ बिसलेरी, शराब की बोतलें, रैपर इधर उधर पड़े हुए थे। यदि इन रैपरों की गंदगी नही हटायी गई तो बहुत जल्दी ही यह बेहतरीन जगह एक कूड़ेखाने में बदल जायेगा। सिक्किम में सबसे ज्यादा पैसा पर्यटन से आता है। मेरे विचार से सरकार को कुछ कदम अति शीघ्र उठाने चाहिए:
  • इन जगहों पर तीन तरह के कूड़ा फेकने की व्यवस्था होनी चाहिए एक में शीशा, दूसरे में प्लास्टिक एवं तीसरे में कागज। इन्हें सप्ताह में दो बार उठाया जाना चाहिए अन्यथा बहुत शीघ्र ही यह जगह घूमने के लायक नही रह जायेगी।
  • सार्वजनिक शौचालय भी होने चाहिए जिसको पैसा देकर प्रयोग किया जा सकता है। युमसंगडॉन्ग में न कोई पेड़ है, न ही कोई आड़। पुरूष तो जहां चाहे वहां शंका निवारण कर ले पर महिलाओं को अवश्य परेशानी होती होगी।
यहां पर दो अस्थायी दुकाने थी। दोनों में शराब और चाय मिल रही थीं। एक दुकान को एक जाकिन नामक महिला चला रही थी। उसने कुछ देर तक मुझसे बात की लेकिन बाद में रूठ गयी और बात करने से मना कर दिया क्योंकि मैंने उसके दुकान से चाय नहीं पी। मैने चाय इसलिए नहीं पी क्योंकि उसमे चीनी बहुत मिली हुई थी और मीठी थी और मैं चीनी नहीं के बराबर लेता हूं। वह युमसंगडॉन्ग जैसी जगह चाय की दुकान लगा कर चाय और शराब बेच रही थी। यह साहस का काम है – शायद महिला सशक्तिकरण यही है। मैं बिना चाय पिये उसे पैसे दे कर, न खुद को, न ही उसको शर्मिंदा करना चाहता था। शायद मुझसे गलती हो गयी – मीठी ही सही, मुझे चाय पी लेनी चाहिये थी।

फूलों के रंग से … लिखी … पाती

युमसंगडॉन्ग से वापसी पर, हमें युमथांग घाटी और गर्म पानी का झरना देखना था। युमथांग घाटी फूलों की घाटी है।
यहाँ पर जाने के लिए सबसे अच्छा समय अप्रैल का होता है। हम लोग वहां मई के अन्त में पहुंचे थे। इस समय तक अधिकतर फूल समाप्त हो चुके थे लेकिन युमथांग घाटी युमसंगडॉन्ग और, के बीच तरह -तरह के लाल, नारंगी, बैगनी, पीले और सफेद रंग के फूल थे। इन रंगों में भी, कुछ गहरे थे तो कुछ हल्के और बहुत सुन्दर लग रहे थे।
रास्ते मे एक जगह ड्राइवर ने गाड़ी रोकी और एक सफेद फूल तोड़कर लाया। उसकी महक बहुत अच्छी थी। उसने बताया, इसे फले मेहतो कहते हैं और कालिम्पॉङ में इस फूल से अगरबत्ती बनायी जाती है।
वापस लौटते समय, हम लोगों के सामने से एक जानवर भी गुजरा जो काले रंग का था तथा उसकी पीठ सफेद रंग की थी। यह ऊदबिलाव जैसा था और ड्राइवर के मुताबिक माल-सापटो है। मैं नहीं समझ पाया कि यह क्या है और इसका अंग्रेजी में क्या नाम है।
रास्ते में पत्थरों पर नारंगी/ लाल रंग था। मुझे पहले लगा कि इन्हे रंगा गया है पर एक जगह मैंने उन्हें छू कर देखा तो लगा कि यह प्राकृतिक है। लगता है कि उनमें आयरन है जो कि आक्सीजन के साथ प्रक्रिया करने के कारण इस रंग के हो गए हैं। मंगल ग्रह भी, इसी कारण लाल रंग का दिखायी पड़ता है और सेब काटने के बाद रंग बदल देता है।
रास्ते मे चीड़ के पेड़ भी थे । इन पेड़ो में डाल समाप्त होने की जगह लाल व पीला/ धानी रंग का फूल सा दिखाई पड़ रहा था। ऎसा लगता था कि बड़े दिन पर क्रिस्मस का पेड़ सजा हुआ है। मैंने एक जगह पास जाकर देखा तो पता चला कि यह फूल नहीं है पर नयी पत्तियां निकल रही है।
युमथांग घाटी लाचुन नदी पर है और यह एक सुन्दर सी जगह है । हम लोगो नें सुबह नाश्ता नहीं किया था, अपने साथ ले गये थे। यहीं पर नाश्ता किया और चाय पी।
युमथांग घाटी के पास ही गर्म पानी का झरना है। लोगो ने बताया कि इसमे नहाने से त्वचा की बीमारियां ठीक हो जाती है। इस पानी में सल्फर मिला हुआ है।
गर्म पानी के झरने पर पहुंच कर मुझे अपने स्कूल कि रसायन शास्त्र के प्रयोगशाला की याद आयी क्योंकि वहां पर कुछ उसी तरह की गन्ध आ रही थी। मैंने पानी से कुल्ला भी किया तो उसका स्वाद अजीब सा था। यह पानी में सल्फर मिले होने के कारण था। पानी बहुत गर्म था। वहां कुछ समय रह कर हम लोग वापस होटल चले आए और सामान बांधकर वापस गैंगटॉक चल दिए।
इसी रास्ते में हमारी मुलाकात एक ऐसे शख्स से हुई जिस तरह के शख्स मुझे शर्मिन्दा करते हैं और मैंने एक चिट्ठी ‘क्या आप इस शख्स को जानते हैं?‘ शीर्षक से लिखी।

मस्का नहीं, मस्कारा कैसे लगायें और मस्का पायें

हम लोगों को दो दिन गैंगटॉक में रहना था और यह समय हमने यहीं की जगहों को घूमने में बिताया। पहले दिन हम लोगों ने गणेशटोक गये। यहां पर गणेशजी का मंदिर है और वहाँ से शहर का नजारा दिखाई पड़ता है। यहां से दृश्य साफ तरीके से नहीं दिखाई पड़ रहा था क्योंकि बादल छाये हुए थे और हल्का-हल्का पानी बरस रहा था। गणेशटोक के बगल में ही चिड़ियाघर है। पानी बरसने के कारण हम वहां न जाकर, फूलों की प्रर्दशनी देखने चले गये ।
यह फूलों स्थायी प्रर्दशनी है। क्योंकि बहुत से पेड़ जमीन पर लगे हुए है और कुछ गुलदस्ते भी जगह-जगह पर रखे हुए हैं। पानी बरस रहा था यह ऊपर से ढ़की है इसलिए इसके अन्दर बहुत से लोग थे। यहाँ जगह -जगह फोटो सेशन चल रहा था लोग तरह-तरह के पोज़ (Pose) देकर फोटो खिंचवा रहे थे।
यहां पर मेरी मुलाकात मनोज से हुई जो कि अपनी महिला मित्र (या शायद उस की पत्नी हो) के साथ, सिल्लीगुड़ी से घूमने आये थे। इन लोगों के व्यवहार से लगता था कि शायद ये दोनों मित्र है और शादी शुदा नही है। मैने जब इनसे पोज़ देकर चित्र खीचने की बात की तो युवती शर्मा गई। मुझे उनसे यह पूछना ठीक नही लगा कि क्या वे शादी शुदा हैं।
वहाँ से निकलकर, हम लोग नमग्याल तिब्बतोलोजी संस्थान (Namgyal Institute of tibbtology) देखने गये। इस संस्थान में तिब्बती सभ्यता एवं भाषा पर शोध होता है। यह तीन मंजिले भवन में है।
  • पहली मंजिल संग्रहालय पर संग्रहालय है;
  • दूसरी मंजिल पर पुस्तकालय है; और
  • तीसरी मंजिल पर चित्र प्रर्दशनी लगी हुई थी।
संगहालय में गौतम बुद्व और बौध धर्म से जुड़े लोगों की मूर्तियां लगी हैं। वहां प्रार्थना की पुस्तकें और कुछ अन्य वस्तुएं रखी हुई थीं जिसमें लिखा था कि यह तांत्रिक विद्या में प्रयोग की जाती हैं। मुझे नही मालूम था कि बौध धर्म में भी कुछ तांत्रिक विद्या का प्रयोग होता है मैंने वहाँ के गार्ड से पूछा,
‘क्या बौध धर्म मे भी तांत्रिक विद्या होती है’?
उसने कहा मुझे नहीं मालूम पर उसने बगल में बैठी एक लड़की की तरफ इशारा कर उससे पूछने को कहा।
युवती ने अपना नाम पासंग बताया । उसने बताया,
‘मैं वाणिज्य (commerce) में स्नातक हूं। मेरे पिता इसी सस्थान में शोधकर्ता थे और मैं इस समय संग्रहालय की इंचार्ज हूं।’
उसके मुताबिक वह सारा सामान सब बौद्ध धर्म की पूजा में प्रयोग किया जाता है।
पासंग गुलाबी रंग की बख्खू ड्रेस पहने हुई थी। उसकी पलकें भी हल्के गुलाबी रंग की थी। वह प्यारी सी गोल मटोल बिटिया लग रही थी। मैंने पूछा,
‘पलको का गुलाबी रंग प्राकृतिक है अथवा फैशन।’
उसने बताया कि यह फैशन है।
हम लोग दूसरी मंजिल पर पुस्तकालय देखने चले गये। जाते समय मेरे व मेरी पत्नी के बीच बात शर्त लगी। मेरे विचार से मस्कारा (mascara) लगाये हुई थी पर मेरी पत्नी के विचार से उसने आई लाइनर (eye-liner) लगाये हुई थी । मैंने लौटकर पासंग अपनी शर्तें के बारे में बताया। वह मुस्करा कर बोली,
‘आप अपनी पत्नी से ज्यादा महिलाओं के फैशन के बारे में नहीं जानते हैं। आप यह शर्त हार गये है।’
मुझे नहीं मालुम था कि मस्कारा भौंहों में लगाया जाता है और आई लाइनर पलकों में। मेरा हारना लाजमी था। शुभा स्वयं फैशन नहीं करती पर उसे इन बातों के बारे में मुझसे ज्यादा ज्ञान है।
जीवन में सुन्दर लगना, न स्वयं को उत्साहित करता है पर दूसरों को भी अच्छा लगता है।
देखिये कैसे मस्कारा लगायें।

सिक्किम में, क्या लड़कियां की संख्या, लड़कों से ज्यादा हैं?

हम लोग गैंगटॉक  में वहीं का खाना खाना चाहते थे। इसके  लिए  हमें तिब्बत होटल में खाने के लिये  सुझाव दिया गया था। इस होटल में स्नो लायन (Snow Lion) नाम का रेस्ट्रां   है। यहां वेटर ने हमें शाकाहरी खाना के लिए Vegetarian  chetse Detse और  Vegetarian Phing she rice  खाने की सलाह दी। इसमें सब्जी उबाल कर बनायी गयी थी और मसाला बहुत कम था। हमें यह खाना पसन्द आया।  हमने अगले दिन पुन: वहां खाना खाने गये और मांसाहारी खाना खाया।
सिक्किम का चिड़िया घर
गैंगटॉक में तारगाड़ी  (Rope way) भी है। यह तारगाड़ी  गुलमर्ग के बराबर तो अच्छी नहीं है पर तारगाड़ी पर चढ़ने का एक अलग मजा है। यह  बहुत ऊंची  है और इसमें गैंगटॉक शहर दिखाई पडता है। हम लोग इस पर घूमने के बाद चिड़ियाघर  देखने  गये।
मुन्ने को जानवर बहुत पंसद है। इसलिए हम जहां भी जाते थे वहां चिड़ियाधर या राष्ट्रीय उद्यान अवश्य जाते थे। मैंने कई जगह के चिड़ियाघर देखें है पर  गैंगटॉक तरह का चिड़ियाघर नहीं देखा है। इसमे  जानवर तो  कम  हैं लेकिन  यह है,   अजूबा। सच पूछिए तो यह चिड़ियाघर नहीं,  जंगल है जंगल – जंगलो के बीच, उसी में जानवरों का रहने का स्थान।  यहां पर मुझे, मालुम नहीं क्यों, जुरैसिक पार्क (Jurassic Park) फिल्म की याद आयी।
यहां हमने  कुछ ऎसे जानवर देखे जो वास्तव में कभी नहीं देखे। इनमें स्नो लेपर्ड    (Snow leopard) लाल पांडा (Red panda),  हिमालयन पाम सिवेट (Himalayan palm civet) टाइगर बिल्ली, तिब्बती भेड़िया (Tibetan wolf)  शामिल है।
चिड़ियाघर  के  बीच छोटी सी दुकान जगह है, जहां पर चाय व कोल्ड ड्रिंक आदि ले सकते है ।  इस दुकान को दो बहने चलाती  हैं। बड़ी बहन का नाम मीना कुमारी प्रधान है । हमनें वहीं बैठकर  चाय पी। गैंगटॉक मे कुछ लड़किया या महिलाएं देखने को ज्यादा मिलती है और दुकानो को वही चलाती  है। हमनें पूछा कि ऎसा क्यों है तो उसने बताया,
‘यहाँ पर पति और पत्नी दोनों काम करते हैं। मेरे पति  ए०जी०आफिस में काम करते हैं और मैं इस दुकान को अपनी बहन की सहायता से चलाती हूं  मैं कुछ पैसा कमाना चाहती हूं। ताकि अपने बच्चों को पढने के लिए  कलकत्ता भेज सकूं।’
मेरे दूसरे सवाल पर कि क्या सिक्किम में महिलाएं ज्यादा हैं?  उसने कहा,
‘यह  सच है क्योंकि यहाँ पर ४ लड़कियां है तो केवल एक लड़का है।’
मैं नहीं समझता हूं कि  लड़कियों और लड़को में इतना अन्तर हो सकता है। मैं हमेशा यही समझता हूं कि लड़की और लड़के के पैदा होने की संभावना बराबर है। मैंने कुछ समय पहले इसी सिद्धान्त पर एक सवाल पूछा था। यदि आपने इसे नहीं देखा हो और कुछ दिमागी कसरत करना चाहें तो यहां देखें और इसका जवाब यहां है।
मुन्ना जीव संबन्धी क्रियाओं  को, गणित द्वारा समझने का काम करता है। उसका कहना है कि,
‘महिलाओं में एक्स-एक्स क्रोमोसोम होता है और पुरूषो में एक्स -वाई क्रोमोसोम होता है। और वाई क्रोमोसोम, एक्स क्रोमोसोम से छोट होता है और तेज चलता है इसलिये इससे गर्भाधान होने की संभावना ज्यादा होती है पर पुरूषों का गर्भपात ज्यादा होता इसलिये पैदा होने वाले बच्चों में लड़के और लड़कियो की संख्या लगभग बराबर रहती है।’
मालुम नहीं कौन ठीक है – मैं या मुन्ना। ऐसे यह रिपोर्ट कुछ ऐसा ही कहती है।

क्या नेपाली लड़कियों के लिये कुछ भी मुश्किल नहीं है?

हम लोग दूसरे दिन भी गैंगटॉक घूमने निकले। रास्ते में जगह जगह कुछ कमरे से बने हुए दिखाई पड़ते थे। इनमें ड्रम रखे हुए थे जो कि पानी के बहाव से घूम रहे थे। हमारे ड्राइवर ने बताया कि इसे माने (यानी मंदिर) कहते है। सिक्किम में बौद्घ धर्म का जोर है और इसमें बौद्घ धर्म से सम्बन्धित पवित्र पुस्तके रखी रहती है और ड्रम के बाहर बौद्घ धर्म के मंत्र लिखे हुए हैं पानी के बहाव से घूमते रहते हैं। बौद्घ आश्रम में भी इस तरह के गोले होते हैं जिसे लोग हाथ से घुमाते रहते है। यह उसी तरह की बात है जिस तरह से हिन्दू धर्म के लोग रोज सुबह उठकर राम नाम की माला जपते हैं। सिक्किम में इस तरह के मंदिर मरने के बाद मृतक की याद में बनाये जाते हैं।

सबसे पहले, हम लोग सुबह ताशी व्यू पाइंट (Tashi view point) देखने गये। यह युमथांग घाटी के रास्तें में पड़ता है पर घाटी जाते समय हम लोग यहां नही रूके थे क्योंकि उस समय यहां मौसम एकदम साफ नहीं था और हम लोग चाहते थे कि जिस दन मौसम साफ रहे उस दिन वहां जाएं। मौसम आखिरी दिन तक साफ नहीं हुआ इसलिए हम लोग आखिरी दिन वहां गए। कञ्चनजङ्घा रेंज तो नहीं दिखाई पड़ी पर यहां पर सरकारी दुकान है जिसमें यादगार रखने के लिए समान (souvenir) मिलता है यह बहुत अच्छे हैं और इनके दाम भी वाज़िब हैं। यदि आप सिक्किम जांए और इस तरह की वस्तुयें खरीदने की बात हो तो यहीं से खरीदें।
बन झकरी झरना (Ban Jhakri falls) सुन्दर जगह है। यहां पर एक झरना और पार्क बना हुआ है।
इस पार्क में सूर्य की ऊर्जा से चलने वाली बत्तियां लगी हुई हैं और ऊर्जा के बारे में बताने की चेष्टा की गई है। एक कमरे के अन्दर ऊर्जा से सम्बन्धित कुछ बातें लिखी है। यहां इस तरह के खेल भी हैं जो बताते हैं कि एक तरह की ऊर्जा दूसरी तरह की ऊर्जा में कैसे परिवर्तित हो सकती है।
यहां एक ड्रम है जब बच्चे इसके अंदर चलते हैं तो यह घुमाता है। घूमने से ऊर्जा उत्पन होती है जिसे संगीत बजाने वाला वाद्य चलता है। यहां एक फिसलने वाली स्लाईड है। फिसलने के कारण बिजली की एक बत्ती जलती है।
यहां पर मुझे लड़कियों की टोली मिली। वे अपने गुट में नाच वा गा रहीं थी। मुझे लगा कि वह स्कूल की लड़कियां है पर उन्होंने बताया,
‘हम नेपाली हैं और एक फिल्म की शूटिंग के लिये आये हैं। नेपाली लड़कियों के लिये कुछ भी मुश्किल नहीं है।’
मैंने कहा कि वे क्या मुझे सिक्कमी भाषा में कोई गाना सुना सकती हैं। इस पर वे शर्मा गयीं क्योंकि उन्हें सिक्कमी भाषा नहीं आती थी लेकिन उन्होंने मुझे एक नेपाली और एक हिन्दी गाना भी सुनाया।
उद्यान देखने के बाद, हम रकें (Ranke) बौद्घ आश्रम गये । यह बहुत ही सुन्दर जगह है । यहां मेरी मुलाकात एक लामा से हुई। उसका नाम कर्मा नेक्से था। उसने बताया
‘मेरी आयु १६ वर्ष है। मैं ७ वर्ष पहले यहां आया था। यहां बौद्घ धर्म की शिक्षा ग्रहण करता हूं।’
मेरे कहने पर उसने एक बौद्घ पूजा का मंत्र भी सुनाया।
हम लोग रूमटेक (Rumtek) बौद्घ आश्रम भी गये। यह आश्रम रकां आश्रम के जितना सुन्दर तो नहीं है पर यह सबसे महत्वपूर्ण आश्रम है।
रूमटेक आश्रम मे हर तरफ इन्डो- तिब्बत फोर्स लगी हुई थी यहां चित्र लेने पर मनाही थी। मुझे कुछ आश्चर्य हुआ। मैंने एक जवान से पूछा कि ऎसा क्यों है। उसके मुताबिक लामा के दो गुट है जिनमें आपस में लड़ाई रहती है। इसलिए सुरक्षा की दृष्टि से तैनात है। उसके अनुसार इस आश्रम में न केवल सोने की मूर्तियां है पर बौद्घ धर्म से संबधित कुछ ऎसी चीजें है जो कि वे अमूल्य है। यदि उन्हें कुछ हो गया तो बौध धर्म की धरोहर ही समाप्त हो जायेगी। इसलिए वे लोग उसकी सुरक्षा के लिए लगे हुए हैं।

क्या आपको मालुम है कि सबसे अच्छा वक्तिगत कैक्टस का बगीचा कहां है?

कालिम्पॉङ (Kalimpong) सिक्किम में नहीं है। यह पश्चिम बंगाल का हिस्सा है। यह गैंगटॉक जाने के रास्ते के पास में ही है। इसीलिये हम लोगों ने वहां भी जाने का प्रोग्राम बनाया।

हम लोग सुबह गैंगटॉक से सिलीगुड़ी के लिये  कालिम्पॉङ (kalimpong) के लिये चले।  दिन में कालिगंपॉड घूमना था और शाम तक सिलीगुड़ी पहुंचना था जहां हमें रात गुजारनी थी। हमें बताया गया था कि कालिम्पॉङ  में दो जगह देखने के लिए हैं इसलिए हम लोग रात में कालिम्पॉङ नहीं रूके।

कालिम्पॉङ में सबसे पहले हम लोग देवला हिल (Deolo hill) व्यूप्वाइंट गये। यह बहुत ही सुन्दर सी जगह है, पार्क है और इसमें एक गेस्ट हाऊस भी है। जिसमें आप ठहर सकते है। हालांकि कोहरे के कारण दृश्य अच्छा नहीं था। कञ्चनजङ्घा रेंज  तो दिखायी नहीं पड़ी पर  डैनी डेंज़ोंग्पा (Danny Denzongpa) फिल्म एक्टर की शराब बनाने की फैक्टरी को देख सके।
दूसरी जगह जो हम लोगों को देखनी थी , वह एक प्राइवेट जगह है लेकिन उसमें बहुत सुन्दर कैक्टस हैं। इस जगह को देखने के लिए  पहले कोई टिकट नहीं था।  लेकिन इसके मालिक ने आने वालों की संख्या देखते हुए पांच रूपया का टिकट लगा दिया। उनके मुताबिक प्रतिदिन, लगभग २५० लोग कैक्टस को देखने आते है। यहां पर तरह तरह के कैक्टस हैं। कैक्टस के पेड़ो में  नारंगी, बैगनी, लाल और सफेद रंग के फूल भी लगे थे। यहां लोगो ने बताया  कि मालकिन ने बताया कि वहां पर एक रेस्ट हाउस भी है जिसमें ६ कमरे हैं। दो बिस्तर के कमरे का ५५०/-रू०  और तीन बिस्तर के कमरे का ७५०/-रू० किराया है।

यह चित्र बगीचे की वेबसाइट से है और उन्हीं के सौजन्य से है।
यह लोग Pineview Nursery नाम से अपनी वेबसाइट भी चलाते हैं जहां से इनके बारे में विस्तार से जानकारी मिल सकती है।

यहां से घाटी में लगे चीड़ के पेड़ो का दृश्य बहुत सुन्दर दिखायी पड़ता है इसी लिये इसका नाम उन्होंने Pineview Nursery  रखा है।
हम लोगों ने दिन का खाना, ज्योति रेस्ट्राँ में खाया और सिल्लीगुड़ी के लिये चल दिए। अगले दिन हमें, बागडोगरा से, वापसी के लिये हवाई जहाज पकड़ना था।

क्या लोग हिन्दी में भी ब्लॉग लिख रहे हैं?

हम लोग सिल्लीगुड़ी शाम को पहुंच गये। जिस जगह हम लोग ठहरे थे उस जगह का नाम चंपा साड़ी बताया गया। थोड़ी देर बाद मैने वहां पर साइबर कैफे ढूंढना शुरू किया। यहां पर सब्जी मंडी है और केवल एक साइबर कैफे। साइबर कैफे के काउंटर पर युवती बैठी थी। वहां ५-६ कंप्यूटर रखे हुए थे।वे सारे विंडोज़ पर थे। मैंने उससे पूछा कि क्या कोई लिनेक्स पर है। उसका जवाब सवाल में था,
‘यह लिनेक्स क्या होता है?’
उसे नहीं मालुम था कि लिनेक्स भी ऑपरेटिंग सिस्टम होता है। मैंने उसे ओपेन सोर्स पर छोटा सा भाषण दिया। मालुम नहीं कितना समझ में आया पर कम से कम एक और को कुछ तो ओपेन सोर्स के बारे पता चला।
वहां सबसे अच्छी बात यह थी कि फायरफॉक्स वेब ब्रॉउज़र था। इसीलिए मुझे काम करने में मुश्किल नहीं हुई। मैंने अपनी ईमेल चेक की। कुछ का जवाब भेजा। वहां पर २०रू० प्रति घंटा पैसा लिया जाता था और मुझे ३० देने पड़े क्योंकि मैं लगभग १.३० घंटा अन्तरजाल पर था।
उनके कम्पूटर में पुराना फायरफॉक्स था। मैंने उस युवती से कहा कि उसमें नया फायरफॉक्स डाल ले क्योकिं इसमें हिन्दी की मात्रायें ठीक प्रकार से नहीं दिखाई पड़ती हैं। उस युवती ने मुझसे पूछा,
‘क्या लोग हिन्दी में भी ब्लॉग लिखते हैं?’
मैंने कहा हां बहुत सारे लोग हिन्दी में कर रहे है और यह तो बंगाली में भी लिखा जा सकता है।
अगले दिन हम लोग बागडोगरा हवाई अड्डा पहले पहुंच गये थे। यहां से ही हमें हवाई जहाज पकड़ना था। यहां काफी पर्यटक आते हैं। इसलिये इसे बढ़िया बनाया गया है। मैंने इसका एक चक्कर लिया। एक जगह तरह-तरह की चाय की पत्ती बिक रही थी। इस दुकान पर patent शब्द लिखा था। मैंने दुकानदार से कहा,
‘पेटेंट तो कानून का शब्द है क्या कोई चाय पेटेंट करा रखी है।’
उसने जवाब दिया,
‘नहीं, वर्तनी गलत हो गयी है। यह शब्द patient है। मैं एक तरह की चाय की पत्ती बेचता हूं जो कि डायबटीस् के बिमारों के लिये उत्तम है।’
मैंने सबसे अच्छी चाय का दाम पूछा तो एक छोटे से पैकेट ९०० रूपये बताया। इस पैकट के द्वारा केवल १० कप चाय बन सकती थी यानि एक कप चाय में केवल चाय की पत्ती का दाम ९० रूपये – बाप रे बाप।
मैंने उससे सस्ती चाय का पैकेट (१० लोगों के लिये) १२० रूपये का लिया। हमारे हवाई जहाज का समय हो चुका था और हम वापस उड़ लिये।

सिक्किम में ट्रैफिक नियमों का पालन

सिक्किम में ट्रैफिक नियमों का पालन भारत में किसी अन्य राज्य से बेहतर है। अक्सर कारों  की लम्बी लाइने दिखायी पड़ती हैं। बगल का रास्ता, जो दूसरी तरफ से आने वाली कारों के लिये होता है, खाली ही रहता है। ऎसा नहीं दिखाई पड़ा कि कारें लाइन को तोड़ कर खाली रास्ते पर चलीं जायें जैसा कि अन्य जगहों पर होता है। यहां भी ट्रैफिक जैम होता है पर वह इसलिये क्योंकि रास्ते सकरे हैं और आर्मी के बहुत सारे ट्रक बड़े होते हैं। ट्रैफिक जैम, कारों की लाईन तोड़ने के कारण नहीं होता।

सिक्किम में पहाड़ी क्षेत्रों में घूमते हुए हमें कई रोचक से जुमले भी लिखे हुए मिले कि पहाड़ी रास्ते पर कैसे यात्रा की जाए।
  • If driving is marriage, then speed is divorce
  • Mountains are pleasure, if you drive at leisure.
  • Gentle on my curves.
  • On my curves, watch your nerves.
  • Road is hilly, don’t  be sills.
हालांकि  मुझे वहां के लोगों को पहाड़ पर गाड़ी चलाने के दो मूलभूत नियमों की समझ कम लगी।
  • Don’t overtake on a turning मोड़ पर किसी गाड़ी से आगे मत जाओ।
  • Give was to upcoming traffic ऊपर जाने वाली गाड़ियों को पहले जाने दो।
मुझे, यह जुमले कहीं भी लिखे हुए भी नहीं दिखे। हमें अक्सर इन नियमों की याद अपने ट्रैक्सी चालक दिलानी पड़ती थी।

सिक्किम में संस्कृति और पहनावा

सिक्किम के शहरी इलाके में सारे भारत के लोग आ कर बस गये हैं। लेकिन,  यहां मुख्यतः लिम्बू, लेपचास्, भूटिया, नेपाली, और तिब्बती लोग  हैं। यह अपनी संस्कृति और पहनावे को आज तक निर्वाह कर रहे हैं।
भूटिया महिलाओं के पहनावे को खो (kho) या बख्खू (Bakhu) कहतें हैं। बहुत सारे स्कूलों में लड़किया की यही ड्रेस है।
सिक्किम के पारंपरिक पहनावे देखने में बहुत प्यारे लगते हैं। इस विडियो में इसके कुछ झलकियां देखिये।

सिक्किम में महिलाओं का सशक्तिकरण

सिक्किम में सबसे मुख्य बात जो मुझको दिखाई पडी वह यह है कि यहां पर काफी लड़कियां – काम करती हुई, घूमती हुई, या स्कूल जाती हुई-दिखाई पड़ीं। मुझे ऎसा लगा कि यहां पर महिलाओं की संख्या पुरूषों की संख्या से ज्यादा है। वहां के लोगों का भी यही कहना था। हालांकि मैं यह नहीं कह सकता कि यह बात अधिकारिक रूप से यह सच है कि नहीं ।
वहां पर मैने बहुत सी महिलाओं और लड़कियों से बात भी की। उनसे बात करने पर मुझको लगा की जैसे उनमें अन्य जगह की महिलाओं से ज्यादा आत्म विश्वास है। यह शायद मातृ प्रधान (matriarchal) समाज का प्रभाव हो।
यहाँ पर मुझे कहीं भी महिलाओं के साथ छेड़-छाड़  होते नहीं दिखी, जैसा की अपने देश में, अन्य जगह होता है। यहाँ के लोग यह भी बताया कि आप किसी महिला के साथ छेड़-छाड़  करेगें तो सर कलम हो सकता है।
कुछ लोगों ने यह भी कहा कि यहां पर अन्य राज्यों से ज्यादा ऎड्स है। ऎड्स के कई पोस्टर भी लगे दिखाई पड़े। मैं नहीं कह सकता कि यह बात सच है अथवा नही। वहां पर रहने वाले मेरे एक मित्र के अनुसार,
‘जब समाज में इतना खुलापन हो तो अक्सर सीमायें टूट जाती हैं। इस हालत में ऎड्स का बढ़ना स्वाभाविक है।’
मैं नहीं जानता कि कि सिक्किम में ऎड्स, भारत के अन्य राज्यों से अधिक है अथवा नहीं, पर यदि कोई मुझसे पूछें कि कौन सा समाज बेहतर है तो मैं यह अवश्य कहना चाहूँगा, यह समाज- जहाँ पर महिलाओं को ज्यादा स्वतन्त्रता है, जहाँ की महिलायें ज्यादा आत्मविश्वासी है- वह भारत के अन्य समाज से बेहतर है।
इस चिट्ठी में मैंने लिखा जो मुझे सिक्किम में अनुभव हुआ। लोगों के विचारों में भिन्नता हो सकती है पर मेरी मंशा किसी की भावनाओं को आहत करने की नहीं है।
इस यात्रा के दौरान मुझे ‘कश्मीर की कली’ फिल्म का गाना
‘तारीफ करू क्या उसकी, जिसने तुम्हें बनाया’ की याद आयी।
चलते चलते इसे भी सुनिये।

उन्मुक्त की पुस्तकों के बारे में यहां पढ़ें।
यह यात्रा विवरण मेरे उन्मुक्त चिट्ठे पर कड़ियों में प्रकाशित हो चुका है। यदि इसे आप कड़ियों में पढ़ना चाहें तो नीचे चटका लगा कर जा सकते हैं।
सिक्किम – छोटा मगर सुन्दर।। गैंगटॉक कैसे पहुंचें।। टिस्ता नदी (सिक्किम) पर बांध बने अथवा नहीं।। नाथुला पास – भारत चीन सीमा।। क्या ईसा मसीह सिल्क रूट से भारत आये थे।। मंदाकिनी झरना – ‘राम तेरी गंगा मैली’ फिल्म वाला।। सात राजकुमारियां, जिन्होंने प्रकृति से शादी कर ली।। तारीफ करूं क्या उसकी जिसने तुझे बनाया।। फूलों के रंग से … लिखी … पाती।। मस्का नहीं, मस्कारा कैसे लगायें और मस्का पायें।। सिक्किम में, क्या लड़कियां की संख्या, लड़कों से ज्यादा हैं?।। क्या नेपाली लड़कियों के लिये कुछ भी मुश्किल नहीं है?।। क्या आपको मालुम है कि सबसे अच्छा वक्तिगत कैक्टस का बगीचा कहां है?।। क्या लोग हिन्दी में भी ब्लॉग लिख रहे हैं?।। सिक्किम में ट्रैफिक नियमों का पालन।। सिक्किम में महिलाओं का सशक्तिकरण।।

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