प्रस्तुति-- संत शरण, रीना शरण
विंध्याचल का दृश्य, यह मालवा की दक्षिणी सीमा को निर्धारित करता है। इससे इस क्षेत्र की कई नदियां निकली हैं।
भारत के अन्य राज्यों की भाँति मालवा की भी राजनीतिक सीमाएं राजनीतिक गतिविधियों व प्रशासनिक कारणों से परिवर्तित होती रही है।
अनेक ऐतिहासिक साक्ष्यों एवं भौगोलिक स्थिति के आधार पर प्राचीन मालवा के भौगोलिक विस्तार के संदर्भ में विभिन्न विद्वानों के अलग- अलग मत हैं। व्यापक अर्थ में यह उत्तर में ग्वालियर की दक्षिणी सीमा से लेकर दक्षिण में नर्मदा घाटी के उत्तरी तट से संलग्न महान विंध्य क्षेत्रों तक तथा पूर्व में विदिशा से लेकर राजपूताना की सीमा के मध्य फैले हुए भू- भाग का प्रतिनिधित्व करता है। इस प्रकार स्थूल रुप से यह पश्चिम में मेही नदी से लेकर पूर्व में धसान नदी तक तथा दक्षिण में निर्माड़ तथा सतपुड़ा तक फैली हुई है। दिनेश चंद्र सरकार के अनुसार "मालवा', जो आकर- दशार्ण तथा अवन्ति प्रदेश का द्योतक है -- पश्चिम में अरावली पर्वतमाला, दक्षिण में विंध्य श्रेणी, पूर्व में बुंदेलखण्ड और उत्तर- पूर्व में गंगा- घाट से घिरा हुआ प्रदेश था, जिसमें मध्य भारत के आधुनिक इंदौर, धार, ग्वालियर, भोपाल, रतलाम, गुना तथा सागर जिले के कुछ भाग सम्मिलित थे। डी. सी. गांगुली का मत है कि ""मालवा प्रदेश पूर्व में भिलसा (विदिशा) से लेकर पश्चिम में मेही नदी तक तथा उत्तर में कोटा राज्य से लेकर दक्षिण में ताप्ती नदी तक फैला हुआ था।
बी. पी. सिन्हा के अनुसार ""मालवा प्रदेश पश्चिम में चंबल नदी से लेकर पूर्व में एरण तक, दक्षिण में विंध्य श्रेणी से लेकर उत्तर में चंबल के उत्तरी मोड़ तक विस्तृत था। मैलकम द्वारा मालवा की सीमा उत्तर दक्षिण में विंध्याचल से मुकुन्दरा तक तथा पूर्व से पश्चिम में नर्मदा से निमाड़ तक बतलाई गयी है। ओ. एच. के स्पेट के अनुसार ""मालवा प्रदेश त्रिभुजाकार में विंध्य श्रेणी पर आधारित है, जो उत्तर- पश्चिम में अरावली पर्वत से तथा पूर्व में बुंदेलखण्ड से घिरा हुआ है। कैलाश चंद्र जैन का मत है कि ""मालवा प्रदेश के अंतर्गत संपूर्ण पश्चिमी मध्य प्रदेश का विस्तृत भू- भाग आता है, जो दक्षिण में विंध्य श्रेणी, पूर्व में सागर- दमाई पठार और बुंदेलखण्ड, उत्तर में गुना- शिवपुरी क्षेत्र और राजस्थान तथा पश्चिम में गुजरात और अरावली पर्वतमाला से घिरा हुआ है।
वर्त्तमान में यह लगभग ४७,७६० वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है तथा इसके अंतर्गत धार, झबुआ, रतलाम, देवास, इंदौर, उज्जैन, मंदसौर, सेहौर, शाहपुर, रामसेन, राजगढ़ तथा विदिशा जिले आते हैं।
प्राकृतिक रुप से मालवा क्षेत्र उच्चभूमि माना जा सकता है, जिसकी समतल भूमि थोड़ा झुकाव लिये हुए है। अंदर का अधिकांश भाग खुला है। काली मिट्टी की परत होने के कारण भूमि उपजाऊ है। छोटे पठार, जंगल व जल के प्राकृतिक स्रोत मिल जाते हैं।
मालवा के चार भाग
प्राकृतिक बनावट के आधार पर संपूर्ण मालवा क्षेत्र को चार भागों में बाँटा जा सकता है --- उत्तर- पूर्वी पठार क्षेत्र (दशार्ण क्षेत्र)
- केंद्रीय पठार क्षेत्र
- उत्तर- पश्चिमी पठार क्षेत्र तथा
- नर्मदा की घाटी (निमाड़ की समतल भूमि)
उत्तर-पूर्वी पठार क्षेत्र (दशार्ण क्षेत्र)
इस क्षेत्र के अंतर्गत विदिशा तथा उसके आस- पास का क्षेत्र आता है, जिसका प्राचीन नाम आकर व दशार्ण था। मध्य मालवा पठार का संकीर्ण विस्तार यह क्षेत्र पूरब, उत्तर तथा दक्षिण की ओर से विंध्याचल की पर्वतश्रेणियों से घिरा हुआ है। पूरब की तरफ स्थित गंगा के उपजाऊ समतल मैदान को छूता हुआ, यह क्षेत्र एक समय समृद्धशाली व संपन्न था।केन्द्रीय पठार क्षेत्र
यह क्षेत्र दक्षिण में विंध्य श्रेणी, पूर्व में भोपाल से चंदेरी तक विस्तृत विंध्य श्रेणी की एक शाखा से, पश्चिम में अमक्षेरा से चित्तौड़ तक विस्तृत उसी पर्वत की शाखा से तथा उत्तर में चित्तौड़ से चंदेरी तक विस्तृत मुकुंदवाड़ा श्रेणी से घिरा हुआ है। इसमें आधुनिक मध्य प्रदेश के राजगढ़, शाजपुर, देवास, इंदौर, रतलाम् और धार जिले सम्मलित थे।उत्तर-पश्चिमी पठार क्षेत्र
मेवाड़ को छूता हुआ यह क्षेत्र के अंतर्गत वर्तमान का संपूर्ण मंदसौर व रतलाम जिला का कुछ हिस्सा आता है। इस क्षेत्र के पहाड़ी व उबर - खाबर होने के कारण सैन्य- जीवन से जुड़े गतिविधियों का अत्यधिक विकास हुआ। मालव व औलिकर राजाओं ने, जिन्होंने इस क्षेत्र पर शासन किया, अपने वीरतापूर्ण कृत्यों के लिए जाने जाते हैं। पत्थरों की प्रचुर उपलब्धि के कारण यहाँ के ज्यादातर भवन पत्थरों के ही बने। दशपुर (मंदसौर) इस क्षेत्र का महत्वपूर्ण नगर था।नर्मदा की घाटी (निमाड़ की समतल भूमि)
प्राचीन काल में यह क्षेत्र "अनुप' क्षेत्र के रुप से प्रसिद्ध यह क्षेत्र उत्तर में विंध्य व दक्षिण में सतपुरा से घिरी नर्मदा की निम्न संकीर्ण घाटी है। विंध्य की तरह यह चौड़ी होती गई है। पूरा क्षेत्र समतल व उपजाऊ है। नर्मदा के निकट होने के कारण संपूर्ण भाग में दूर तक सिंचाई की सुविधा है। लकड़ियों में सागौन बहुतायक में मिलता है। लेकिन यहाँ की जलवायु उत्तर के पठारी भागों की तरह सहज नहीं है। नर्मदा के किनारे स्थित नगर महिष्मती (महेश्वर) मध्यभारत का सबसे प्राचीन नगर माना जाता है।प्रमुख स्थान एवं नगर
उपरोक्त भौगोलिक क्षेत्रों के अंतर्गत आने वाले मुख्य नगरों अन्य स्थानों का विवरण इस प्रकार है --(क) उत्तर-पूर्वी मालवा पठारी क्षेत्र (दशार्ण क्षेत्र)
१. विदिशा (भिलसा) २. बेसनगर ३. उदयगिरि ४. उदयपुर ५. ग्यारसपुर ६. बादोह- पठारी(ख) मध्य पठारी क्षेत्र
१. उज्जैन २. धार ३. मांडू ४.रतलाम(ग) उत्तर- पश्चिमी मालवा पठारी क्षेत्र (मंदसौर जिला)
१. मंदसौर (दशपुर) २. खोर ३. धमनार(घ) नर्मदा की घाटी (निमाड़ की समतल भूमि)
१. बाघ २. महेश्वर ३. ऊँन ४. नेमावरसंदर्भिका
देश मालवा गहन गंभीर डग डग रोटी पग पग नीर - अमीर खुसरोइंदौर (मध्यप्रदेश) की यादे!!
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