मंगलवार, 16 नवंबर 2021

भारतीय इतिहास क़ो नकारने की कोशिश

 भारत में 3990 जातियों के पास अलग अलग समय में अलग अलग हिस्से में राज्य रहे हैं।

जिन्हें इतिहास नहीं पता, केवल ईसाई पैम्फलेट पता है।

उनकी बात का कोई वजन नहीं है।


ऐतिहासिक तथ्यों और अभिलेखों के आधार पर भारत में इन मुख्य जातियों के पास  अलग-अलग समय अलग-अलग इलाकों में राज्य थे:- केवट, कैवर्त,नाई ,कुर्मी, अहीर ,आभीर, गूजर ,जाट,थारू,खर, संथाल ,बैगा, गोंड,मिजो, माईती,सेन, पाल, भर, वोक्कालिगा, पटेल, वल्लाल, गौड़ा, नायडू, रेड्डी, खंडाइत, खत्री, भील ,खरवार, उरांव,मुंडा,कोल, नगा, खासी,ब्राह्मण ,कायस्थ,भूमिहार, मराठा,  चंद्रवंशी क्षत्रिय, सूर्य वंशी क्षत्रिय ,हूण,शक, कुषाण,पुलिंद,आंध्र, कदंब, काकतीय, परिहार ,चोल,चालुक्य, यादव, पाण्ड्य, सिख, सातवाहन, लोहार, सुनार,तोमर, प्रतिहार, , गुहिलोत,कलचुरि, भोज, परमार, मीणा, पड़िहार, राष्ट्रकूट, चौहान, डोभवाल,गोठवाल, महर, महार, खोड़ा, भाट, खेतपाल, देस पाल, गहड़वाल, सोलंकी, चंदेल, भट्ट,कट्ठी,डाबी, डोडा, सेंगर, बड़ गूजर, दाहिया, बैस,दाहिमा, बल्हारा, राठौर,अग्रवाल,आदि आदि।इनकी अनेक अनेक शाखाएँ अलग अलग नाम से प्रसिद्ध हुई।


अंग्रेजी प्रभाव में इतिहासकारों ने बिलकुल उलटा इतिहास लिखा है जिसका प्रचार वोट लोलुप नेता कर रहे हैं। एक उदाहरण देखिये - गत 10,000 वर्षों में यादव कभी भी कम प्रभावशाली नहीं रहे हैं।  महाभारत के समय 5 मुख्य यादवगण थे तथा कौरव, पाण्डव दोनों पक्ष उनकी सहायता मांग रहे थे। यादव नेता भगवान् कृष्ण के वंशज होने का भी गर्व करते हैं किन्तु राजनीति तथा अन्य लाभ के लिए दलित बन जाते हैं। अभी गांवों में सबसे शक्तिशाली वर्ग यादवों का ही है जिनके पास अधिकांश कृषि भूमि है। अन्य दलित जातियां भी अपने शक्तिशाली पूर्वजों तथा राजाओं पर गर्व करते हैं किन्तु आरक्षण के लिए दलित बन जाते हैं। 


कुछ समूह अफ्रीका से खान मजदूर बन कर आये थे जिनको अंग्रेजों ने यहाँ बसाया, यहाँ से भी गिरमिटिया मजदूर अन्य देशों में बसाए गये। गुलाम या दास प्रथा कभी नहीं थी, उसे अंग्रेजो ने थोपा। 


19वीं सदी ईसवी के आरंभ में भारत में लगभग 600 छोटी बड़ी रियासतें थी जिनमें से 12 रियासतों में ब्राह्मण का और 260  में क्षत्रिय कही जाने वाली विभिन्न जातियों का राज्य था। शेष में से तीन सौ से अधिक रियासतों में तथाकथित पिछड़ी जातियों का और वनवासियों का राज्य था। दिल्ली पंजाब में सिखों जाटों गुर्जरों के राज्य थे। उत्तर प्रदेश ,बिहार और मध्य प्रदेश में जगह-जगह कुर्मियों, अहीरों, तेलियों, नाइयों तथा अन्य पिछड़ी जातियों की रियासतें थी। मराठों का राज्य तो था ही। गुजरात में पटेलों का आधिपत्य था।


625 रियासतों के विवरण तो अंग्रेजों ने स्वयं छापे हैं। सरल सन्दर्भ के लिए देखें मध्यप्रदेश हिंदी ग्रंथ अकादमी भोपाल से छपी हमारी पुस्तक 'भारत, हजार वर्षो की पराधीनता:एक औपनिवेशिक भ्रमजाल'


साथ ही साहित्य संगम, नया 100 लूकरगंज प्रयाग से छपी 'कभी भी पराधीन नहीं रहा है भारत' का परिशिष्ट।

✍🏻रामेश्वर मिश्रा पंकज


18वी शताब्दी तक गोंड जनजाति के पास भोपाल का राज था जिसकी अंतिम रानी कमलापति थी। 


यानि 18वीं शताब्दी तक देश में आदिवासी समाज में गिने जाने वाली जातियों से राजा-रानी होते थे। फिर इसके बाद अंग्रेजों का राज आ गया। 


तो इन जनजातियों को ब्राह्मणवाद ने गुलाम कब बनाया पं नेहरू के राज में? 


आप इतिहास खोद कर देखिए इस देश में शायद ही कोई जाति-जनजाति ऐसी नहीं मिलेगी जिसके पास अपने राजा न हो। राजस्थान में मीणा समाज के किले राजा सब रहे हैं। 


प्रजापति समाज के पास राजा दक्ष प्रजापति से लेकर

कमलापति से लेकर रानी आहिल्यबाई होल्कर तक

भारतीय समाज में तो इन जातियों को नेतृत्व करने का मौका मिलता रहा है। 


हां ईसाई बनते ही ये पीटर पॉल बन जाते हैं, और पाकिस्तान में अदिवासी समाज कितना अपना वजूद को बनाए रख पाया है ये रिसर्च का विषय है


रानी कमलापति भोपाल की अंतिम रानी थी जिनकी प्रजा में ब्राह्मण-राजपूत सब रहे ही होंगे

लेकिन गोंड जाति आदिवासी है जिन्हे हिन्दू हीन मानते हैं

कोई लॉजिक है इस बात का???

✍🏻अविनाश त्रिपाठी


"माना कि हम अंग्रेज़ों के दुश्मन थे लेकिन ऐसा क्या गुनाह किया था हमारे पुरखों ने कि जब 15 अगस्त 1947 को भारत को आज़ादी मिली तो हमें क्यों आज़ाद नहीं किया गया? जी हां, अंग्रेज़ों के काले क़ानून (क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट 1871) से मुक्ति मिली तो पूरे पांच वर्ष सोलह दिन बाद 31 अगस्त 1952 को जब अंतरराष्ट्रीय दबाव के चलते (मानव को एक प्रजाति मानने के बजाय अलग-अलग प्रजाति की अवधारणा ख़ारिज किए जाने के कारण) क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट समाप्त कर दिया गया.

बता दें कि पाकिस्तान में क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट 1948 में ही बेअसर कर दिया गया था. जबकि भारत सरकार ने 31 अगस्त 1952 को मजबूरी में क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट समाप्त ज़रूर किया किन्तु बड़ी युक्तिपूर्वक इसके स्थान पर हैबिचुअल ऑफेंडर्स एक्ट लागू कर दिया इसका अर्थ यह हुआ कि जो ब्रिटिश विद्रोही समुदाय 1952 तक जन्मजात अपराधी माने जाते थे, वे अब आदतन अपराधी माने जाने लगे."


ये उद्गार विमुक्त जन अधिकार संगठन के एक कार्यकर्ता का है।


हमने से शायद बहुत कम होंगे जो "विमुक्त" शब्द से परिचित होंगे... और संभवतः क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट 1871 के बारे में भी।

यहाँ ज्यादा हम डिटेल में नहीं बताएंगे, आप स्वयं इसका अध्ययन करिये।


देश आजाद हो गया 1947 में ही... लेकिन क्या आज़ाद हुए हम ?? 

इससे सम्बंधित आप सैकड़ों आर्टिकल पढ़े होंगे.. और उन आर्टिकलों के अपने रिफ्रेंसेस भी हैं .. और इस आज़ादी की कड़ी में जो सबसे ज्यादा बात होती है वो इन्हीं विमुक्त याने पूर्व क्रिमिनल ट्राइब्स की बात होती है..!! विमुक्त माने क्या ?? किस चीज से विमुक्त ??

तो विमुक्त वे जो अंग्रेजों के शासन काल के दौरान जन्मजात क्रिमिनल याने अपराधी थे वे अब विमुक्त हैं... इनके साथ ऐसे सलूक किये गए कि कोई ठिकाना नहीं। आज़ाद भारत होने के पाँच साल बाद तक भी इन्हें क्रिमिनल ही समझते रहे... और जब इस एक्ट को निरस्त किया गया तो इन्हें 'विमुक्त' नाम धरा दिया गया.. याने क्रिमिनल से विमुक्त। लेकिन ये विमुक्त क्रिमिनल का ही पर्याय बन के रह गया।


31 अगस्त 1952 को क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट को निरस्त किया। उसके स्थान पर 1959 में एक नया कानून "आदतन अपराधी कानून" के नाम से जोड़ दिया गया। मतलब आज़ाद भारत में विमुक्त के साथ साथ आदतन अपराधी का लेवल रह ही गया।

अंग्रेजों के वक़्त करीबन 500 जातियां/जनजातियां इस एक्ट के अंतर्गत थी.. और 1952 में निरस्त के बाद इन्हें अनुसूचित जाति/जनजाति में शामिल होना था लेकिन ये अब तक भी अधिकांशतः नहीं हुए हैं।

"आदतन अपराधी कानून" को हटाने के लिए अब भी विरोध प्रदर्शन होते हैं। क्योंकि इसमें वही शामिल होते हैं जो अंग्रेजों के वक़्त भी थे।


अब यहाँ सबसे इंपोर्टेंट बात बता रहे... इसको जरा ध्यान से पढ़िये

"आपराधिक जनजाति अधिनियम,1871 से पीड़ित उन जनजातियों पर इस कानून के खौफ का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इससे प्रभावित जनजातियाँ 31 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस का जश्न मनाती हैं क्योंकि 31 अगस्त, 1952 को ही इस अधिनियम को निरस्त किया गया था|"


अब आप क्या बोलेंगे ??

क्योंकि इनकी संख्या कम नहीं है... मुसलमानों के संख्या के बराबर हैं ये। इनको आप लेशन सिखाएंगे ?? इनको आज़ादी का इतिहास पढ़ाएंगे ?? आप तंज कसेंगे कि हम अपने बच्चों को कौन सा तारीख बताएंगे आज़ादी का ?? 31 अगस्त या 15 अगस्त ?? नहीं नहीं मिम्स बनाओ न आप जम के बनाओ, बनाओगे न ??

इंडियन मेन लैंड में पाँचवी शेड्यूल को ले के आंदोलन होते रहते हैं.. अभी तो बहुत ही तीव्र हो रहा है.. हमारे ही झारखंड और छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश में ऐसे भीड़ में कितने जन आगे आये और बोले कि हम नहीं मनाएंगे आज़ादी का जश्न, हम नहीं मानते कि हम 15 अगस्त को आज़ाद हुए .. कोई झंडा नहीं फहरेगा स्कूल में.. डॉट डॉट डॉट.. बाकायदा कहीं-कहीं मास्टरों को पीट दिया गया था। तब ये तंज कसने वाले प्राणी सब किधर थे ?? इनका साफ कहना है कि जिस दिन पाँचवीं अनुसूची लागू होगी उसी दिन हम स्वतंत्र होंगे। और ये जो बोलते हैं न वही आज आज़ादी को ले के तंज कसते नजर आ रहे हैं क्योंकि इनका निशाना कंगना थोड़े न है, निशाना तो मोदिया है। सिंपल।


जब विमुक्त जनजातियां 31 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस मनाती है और एक स्वतंत्रता दिवस अभियो लाइन में है तो किसी के स्वतंत्रता का वर्ष बताने पे तिलमिला क्यों रहे हो ??? उनके भी अपने रेफ्रेंस हैं और पॉइंट्स हैं। उन पॉइंट्स पे बात करो न।

बाकी अपनी-अपनी पिपहरी बजाते रहो।

✍🏻गंगवा, खोपोली से।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें