मंगलवार, 9 नवंबर 2021

जूनागढ़ का भारत में विलय

 आज ही जूनागढ़ का भारत में हुआ विलय, पाकिस्तान भागकर पछताए थे रियासत के नवाब


जब बंटवारे के बाद जब सरदार वल्लभ भाई पटेल  500 से ज्यादा रियासतों का विलय कर रहे थे. तब जूनागढ़  के नवाब पाकिस्तान  में विलय के आमादा था. लेकिन उनके राज्य में हिंदू  आबादी ज्यादा थी, जो चाहती थी कि जूनागढ़ का विलय भारत में हो. जूनागढ़ के नवाब ने कई चालें चलीं. हर चाल उलटी पड़ी.  बाद में वो जिन्ना  से एक समझौता करके पाकिस्तान भाग गया. हालांकि कुछ ही सालों बाद पाकिस्तान में उसकी स्थिति खराब हो गई.  अब उसके वंशज वहां खराब हालात में रह रहे हैं.

जूनागढ़ के इन नवाब का नाम था नवाब मोहम्मत महाबत खानजी तृतीय रसूल खानजी. पाकिस्तान में अब नवाब के परिवारवालों को गुजारे के लिए महीने का जो पैसा मिलता है, वो चपरासी के वेतन से भी कम होता है.


जूनागढ़ के बारे में कहा जाता है कि वो आजादी से पहले हैदराबाद के बाद सबसे समृद्ध राज्य था


हालांकि नवाब के परिवार के लोग पाकिस्तानी मीडिया में ये बताने की कोशिश करते हैं कि पाकिस्तान के लिए उन्होंने कितनी बड़ी कुर्बानी दी लेकिन इस मुल्क ने उन्हें हाशिए पर फेंक दिया. हालांकि वो अब भी जूनागढ़ के भारत में विलय के मामले को विवादास्पद बनाने की कोशिश में लगे रहते हैं लेकिन अब किसी की दिलचस्पी इसमें बची नहीं है.


लाचार नवाब के बेटे ने क्या कहा


पाकिस्तान के कराची शहर में नवाब महाबत खान के जो तीसरे वंशज रह रहे हैं, उनका नाम है नवाब मुहम्मद जहांगीर खान. कुछ समय पहले उन्होंने पाकिस्तान में कहा कि अगर उन्हें पता होता कि पाकिस्तान जाने के बाद उनका मान सम्मान खत्म हो जाएगा तो वे कभी भारत छा़ेड़कर नहीं आते.

पाकिस्तान से प्रकाशित एक अखबार को दिए इंटरव्यू में नवाब मुहम्मद जहांगीर ने नाराजगी जाहिर की कि आजादी के बाद बंटवारे के समय मोहम्मद अली जिन्ना के साथ हुए समझौते के तहत ही उनका परिवार पाकिस्तान आया था.

जूनागढ़ उस समय हैदराबाद के बाद दूसरे नंबर का सबसे धनवान राज्य था. नवाब अपनी संपत्ति जूनागढ़ में छोड़कर पाकिस्तान चले आए थे. यहां तक कि उन्होंने जूनागढ़ की संपत्ति के बदले में पाकिस्तान में संपत्ति भी नहीं मांगी, तब भी पाकिस्तान में उन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया गया.


आजादी से पहले जूनागढ़ के नवाब का पूरा कुनबा


अब किसी गिनती में नहीं है परिवार 

अब नवाब के परिवार का हाल ये है कि मौजूदा पाकिस्तान सरकार उन्हें अन्य राज परिवारों के समान न तो मान-सम्मान देती है और ना ही किसी गिनती में गिनती है. खटास इस बात की भी है कि अपने जिस वजीर के उकसावे में आकर वो पाकिस्तान से भागे, उस वजीर भुट्टो का परिवार पाकिस्तान का मुख्य राजनीतिक परिवार बन गया.


जिन्ना ने दिखाए थे सपने


जूनागढ़ में नवाब मुहम्मद महाबत खान और दीवान शाह नवाज भुट्टो की मंशा हिन्दू बहुसंख्यक आबादी के बावजूद पाकिस्तान में विलय की थी. मोहम्मद अली जिन्ना ने उन्हें पाकिस्तान में विलय के लिए बड़े बड़े सपने दिखाए थे.


जिन्ना ने वादा किया और फिर भूल गए


जिन्ना पेपर्स के अनुसार जूनागढ़ के दीवान और जुल्फिकार अली भुट्टो के पिता शाह नवाज ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाकत अली खान को 19 अगस्त को पत्र लिखा, हम जूनागढ़ के पाकिस्तान में जाने के लिए औपचारिक स्वीकृति का इंतजार कर रहे हैं. खुशी होगी कि अगर आप इसे जल्दी से जल्दी अमलीजामा पहना सकें (पृष्ठ 548). इस मामले में देरी होते देख उन्होंने चार सितंबर को जिन्ना को फिर दिल्ली में उनके वादे को याद दिलाते हुए पत्र लिखा कि पाकिस्तान नहीं चाहेगा कि जूनागढ़ उससे छिटके

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पाक ने कर दी थी घोषणा


जिन्ना ने जवाब दिया, कल हम कैबिनेट मीटिंग में इस बारे में विचार विमर्श करेंगे. तय नीति बनाएंगे. पाकिस्तान ने आठ सिंतबर को पाकिस्तान-जूनागढ़ समझौते की घोषणा की, जिसमें ये कहा गया था कि जूनागढ़ के शासक पाकिस्तान में विलय को तैयार हैं.

नेहरू ने विरोध करते हुए 12 सितंबर को लियाकत अली खान को पत्र लिखा. उन्होंने कहा कि चूंकि जूनागढ़ की 80 फीसदी आबादी हिंदू है. इस बारे में रायशुमारी में उनकी राय नहीं ली गई. लिहाजा ये मामला जूनागढ़ के लोगों की सहमति के बगैर नहीं उठाया जा सकता. भारत सरकार जूनागढ़ के पाकिस्तान में विलय को सहमति नहीं देगी. विलय का कोई संवैधानिक आधार नहीं बनता. ये मामला जूनागढ़ और भारत के बीच बनता है.


तब भारतीय फौजें तुरंत जूनागढ़ पहुंचीं


इसके बाद भी 15 सितंबर 1947 को जूनागढ़ ने पाकिस्तान के साथ विलय को औपचारिक तौर पर स्वीकार कर लिया.  इसके बाद भारतीय फौजों की वहां रवानगी शुरू हुई. भुट्टो की समझ में आ गया कि खतरा है. उन्होंने 16 सितंबर को लियाकत से मदद मांगते हुए कहा, कम से कम हमें ये तो बताइए कि आप हमें किस तरह की मदद दे रहे हैं.हमें किस तरह से कार्रवाई करनी चाहिए.


माउंटबेटन का जवाब


एचवी हडसन की किताब 'द ग्रेट डिवाइड' के अनुसार, गर्वनर जनरल माउंटबेटन ने किंग को रिपोर्ट दी. उन्होंने लिखा, जूनागढ़ के मामले पर विचार के लिए शाम को एक कैबिनेट मीटिंग में विचार किया जाएगा. हालांकि सैन्य कार्रवाई ही एकमात्र जवाब है. जिन्ना ने भारतीय फौजों की हलचल की शिकायत माउंटबेटन से की. माउंटबेटन ने जो जवाब दिया, उसका सार यही था कि पाकिस्तान जो कर रहा है, वो भारत सरकार के साथ उसके समझौते का उल्लंघन है.


जूनागढ़ की जनता की राय


जूनागढ़ की 80 आबादी के इस विलय पर जो रायशुमारी हुई थी, उसमें 80 फीसदी जनता भारत के साथ जाने को तैयार थी. पाकिस्तान निरुत्तर हो गया. 25 सितंबर को जूनागढ़ मुक्त करा लिया गया. पुस्तक "सरदार लेटर्स" के अनुसार, बंबई में उस दिन स्वतंत्र जूनागढ़ की अस्थाई सरकार गठित की गई. वीपी मेनन की पुस्तक "इंटीग्रेशन आफ इंडिया इनस्टेड" के अनुसार, हालात और दबाव के आगे भुट्टो टूटते जा रहे थे. पाकिस्तान की ओर से कोई खास पहल होती नहीं दिख रही थी.


09 नवंबर को भारतीय फौजों का कब्जा


09 नवंबर को भारतीय फौजें जूनागढ़ में प्रवेश कर गईं और उन्हें जूनागढ़ पर कब्जा कर लिया. इस तरह जूनागढ़ आजाद हो गया. हालांकि, पुख्ता मुहर 20 फरवरी 1948 को लगी, जब वहां भारत सरकार ने जनमत संग्रह कराया. कुल 2,01, 457 वोटरों में 1,90,870 ने वोट डाले. पाकिस्तान के पक्ष में केवल 91 वोट पड़े. फिर 20 जनवरी 1949 को औपचारिक तौर पर जूनागढ़ का सौराष्ट्र और भारत में विलय हो गया.

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