बुधवार, 16 जून 2021

मेरठ से पहले विद्रोह हरियाणा में हुआ- प्रो. पुनिया

आजादी का अमृत महोत्स संगोष्ठी में हरियाणा का योगदान 



मेरठ से पहले विद्रोह हरियाणा में हुआ- प्रो. पुनिया



महू (इंदौर). भारतीय स्वाधीनता संग्राम में हरियाणा का योगदान अप्रतिम रहा है. 1857 का पहला विद्रोह के लिए मेरठ का उल्लेख मिलता है जबकि मेरठ के पहले अंबाला में प्रथम विद्रोह हुआ था. इस विद्रोह में 50 अंग्रेजों को बंदी बना लिया गया था. यह बात प्रो. महासिंह पुनिया, निदेशक युवा एवं सांस्कृतिक प्रभाग कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय ने कही. प्रो. पुनिया आजादी के अमृत महोत्सव के तीसरे व्याख्यान में ‘प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में हरियाणा के योगदान विषय पर बोल रहे थे.’ यह आयोजन डॉ. बीआर अम्बेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय, हेरिटेज सोसायटी पटना एवं युवा एवं सांस्कृतिक प्रभाग कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय हरियाणा के संयुक्त तत्वावधान में किया गया था. प्रो. पुनिया ने कहा कि हरियाणा का गठन 1966 में हुआ है लेकिन भारतीय स्वाधीनता संग्राम के समय रियासतों में बसा हरियाणा का योगदान अमिट और अमूल्य है. उन्होंने 12 बड़ी लड़ाईयों का तथ्याों के साथ विवरण देकर बताया कि किस तरह अंग्रेजों को हरियाणा के लोगों ने परेशान कर दिया था. प्रो. पुनिया ने कहा कि इतिहास को पुन: लिखने की आवश्यकता है जिसका कार्य आरंभ कर दिया गया है. मधुबन में हरियाणा का पहला संग्रहालय बनाया गया है जहां 1857 के समय के दस्तावेज को रखा गया है. चार सौ करोड़ की लागत से शहीद स्मारक का निर्माण किया जा रहा है जहां स्वाधीनता संग्राम के विविध पहलुओं को संजोया जाएगा. कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय में भी स्थापित संग्रहालय की जानकारी दी. 

प्रो. पुनिया ने बताया कि अंग्रेजों की एक बड़ी परेशानी का कारण था कि हरियाणा हावी हो गया था तो दिल्ली की सत्ता पर खतरा हो सकता है. इसी डर में अंंग्रेजों ने बेरहमी से स्वाधीनता सेनानियों को दबाने की कोशिश की. आम आदमी में डर पैदा हो इसलिए पेड़ों पर, हवेलियों के दरवाजे पर सरेआम फांसी दी जाती थी. उन्होंने रोहणात का उल्लेख करते हुए कहा कि जिस तरह हम जलियांवाला बाग का स्मरण करते हैं, उसी तरह रोहणात के एक कुएं में स्वाधीनता सेनानियों को मारकर भर दिया गया था. एक अन्य घटना कउल्लेख करते हुए प्रो. पुनिया ने बताया कि सडक़ पर सेनानियोंं को रोडरोलर से कुचल दिया गया. पूरी सडक़ खून से रंग गई थी. आज उस सडक़ को लाल सडक़ के नाम से जानते हैं.  

कार्यक्रम की शुरुआत हेरीटेज सोसाईटी के महानिदेशक डा. अनंताशुतोश द्विवेदी के स्वागत भाषण से हुई. डा द्विवेदी ने  भारतीय स्वतन्त्रता आंदोलन के गुमनाम योद्धाओं के नामों  को बताने तथा  वैसे समस्त जीवित नायकों के बारे  में जानकारी उपलब्ध कराने  का निवेदन देश-दुनिया से देख रहे दर्शकों से किये.

कार्यक्रम अध्यक्ष प्रो. नीरू मिश्रा ने अमृत महोत्सव एवं विश्वविद्यालय के बारे में विस्तार से जानकारी दी. प्रो. मिश्र ने कहा कि राज्यपाल श्रीमती आनंदी बेन के मार्गदर्शन एवं कुलपति प्रो. आशा शुक्ला के अथक मेहनत से यह सब संभव हो पा रहा है. उन्होंने इस आयोजन के लिए हेरिटेज सोसायटी पटना एवं महानिदेशक श्री द्विवेदी के प्रति आभार व्यक्त किया. कार्यक्रम का संचालन श्री भरत भाटी ने किया. अकादमिक का संयोजन योगिक साइंस विभाग के शिक्षक श्री अजय दुबे ने किया. कार्यक्रम का संयोजन डीन प्रो. डीके वर्मा के मार्गदर्शन में हुआ और रजिस्ट्रार श्री अजय वर्मा एवं तथा  हेरीटेज सोसाईटी के समस्त  पदाधिकारियों एवं  शोधार्थियों  का  योगदान रहा. संगोष्ठी में विश्वविद्यालय के नेक कंसलटेंट एवं मीडिया प्रमुख डॉ. सुरेन्द्र पाठक तथा मीडिया प्रभारी मनोज कुमार ने संगोष्ठी में उपस्थित रहे.

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