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ताजमहल تاج محل |
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ताजमहल का दक्षिणी दृश्य
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स्थान: | आगरा, भारत |
निर्देशांक: | 27.174799°N 78.042111°E |
समुद्र सतह से ऊंचाई: | १७१ मी. (५६१ फ़ीट) |
निर्माण: | १६३२-१६५३[तथ्य वांछित] |
वास्तुकार: | उस्ताद अहमद लाहौरी |
वास्तु शैली(याँ): | मुगल |
पर्यटक: | ३० लाख से अधिक (२००३) |
यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल | |
प्रकार: | सांस्कृतिक |
मापदंड: | i |
निर्दिष्ट: | १९८३ (७वां सत्र) |
संदर्भ सं: | २५२ |
राष्ट्र: | भारत |
क्षेत्र: | एशिया-प्रशांत |
यह लेख ताजमहल इमारत के बारे में है। अन्य प्रयोग हेतु, ताजमहल (बहुविकल्पी) देखें।
ताजमहल (उर्दू: تاج محل) भारत के आगरा शहर में स्थित एक विश्व धरोहर मक़बरा है। इसका निर्माण मुग़ल सम्राट शाहजहाँ ने, अपनी पत्नी मुमताज़ महल की याद में करवाया था।[1] ताजमहल मुग़ल वास्तुकला का उत्कृष्ट नमूना है। इसकी वास्तु शैली फ़ारसी, तुर्क, भारतीय और इस्लामी वास्तुकला के घटकों का अनोखा सम्मिलन है। सन् १९८३ में, ताजमहल युनेस्को विश्व धरोहर स्थल बना। इसके साथ ही इसे विश्व धरोहर के सर्वत्र प्रशंसा पाने वाली, अत्युत्तम मानवी कृतियों में से एक बताया गया। ताजमहल को भारत की इस्लामी कला
का रत्न भी घोषित किया गया है। साधारणतया देखे गये संगमर्मर की सिल्लियों
की बडी- बडी पर्तो से ढंक कर बनाई गई इमारतों की तरह न बनाकर इसका श्वेत गुम्बद एवं टाइल आकार में संगमर्मर से[2]
ढंका है। केन्द्र में बना मकबरा अपनी वास्तु श्रेष्ठता में सौन्दर्य के
संयोजन का परिचय देते हैं। ताजमहल इमारत समूह की संरचना की खास बात है, कि
यह पूर्णतया सममितीय है। इसका निर्माण सन् १६४८ के लगभग पूर्ण हुआ था।[1] उस्ताद अहमद लाहौरी को प्रायः इसका प्रधान रूपांकनकर्ता माना जाता है।[3]अनुक्रम
वास्तु कला
मुख्य लेख : ताजमहल के मूल एवं वास्तु
मक़बरा
मूल - आधार
इसका मूल-आधार एक विशाल बहु-कक्षीय संरचना है। यह प्रधान कक्ष घनाकार है, जिसका प्रत्येक किनारा 55 मीटर है (देखें: तल मानचित्र, दांये)। लम्बे किनारों पर एक भारी-भरकम पिश्ताक, या मेहराबाकार छत वाले कक्ष द्वार हैं। यह ऊपर बने मेहराब वाले छज्जे से सम्मिलित है।मुख्य मेहराब
मुख्य मेहराब के दोनों ओर,एक के ऊपर दूसरा शैलीमें, दोनों ओर दो-दो अतिरिक्त पिश्ताक़ बने हैं। इसी शैली में, कक्ष के चारों किनारों पर दो-दो पिश्ताक (एक के ऊपर दूसरा) बने हैं। यह रचना इमारत के प्रत्येक ओर पूर्णतया सममितीय है, जो कि इस इमारत को वर्ग के बजाय अष्टकोण बनाती है, परंतु कोने के चारों भुजाएं बाकी चार किनारों से काफी छोटी होने के कारण, इसे वर्गाकार कहना ही उचित होगा। मकबरे के चारों ओर चार मीनारें मूल आधार चौकी के चारों कोनों में, इमारत के दृश्य को एक चौखटे में बांधती प्रतीत होती हैं। मुख्य कक्ष में मुमताज महल एवं शाहजहाँ की नकली कब्रें हैं। ये खूब अलंकृत हैं, एवं इनकी असल निचले तल पर स्थित है।गुम्बद
मकबरे पर सर्वोच्च शोभायमान संगमर्मर का गुम्बद (देखें बांये), इसका सर्वाधिक शानदार भाग है। इसकी ऊँचाई लगभग इमारत के आधार के बराबर, 35 मीटर है और यह एक 7 मीटर ऊँचे बेलनाकार आधार पर स्थित है। यह अपने आकारानुसार प्रायः प्याज-आकार (अमरूद आकार भी कहा जाता है) का गुम्बद भी कहलाता है। इसका शिखर एक उलटे रखे कमल से अलंकृत है। यह गुम्बद के किनारों को शिखर पर सम्मिलन देता है।छतरियाँ
गुम्बद के आकार को इसके चार किनारों पर स्थित चार छोटी गुम्बदाकारी छतरियों (देखें दायें) से और बल मिलता है। छतरियों के गुम्बद, मुख्य गुम्बद के आकार की प्रतिलिपियाँ ही हैं, केवल नाप का फर्क है। इनके स्तम्भाकार आधार, छत पर आंतरिक प्रकाश की व्यवस्था हेतु खुले हैं। संगमर्मर के ऊँचे सुसज्जित गुलदस्ते, गुम्बद की ऊँचाई को और बल देते हैं। मुख्य गुम्बद के साथ-साथ ही छतरियों एवं गुलदस्तों पर भी कमलाकार शिखर शोभा देता है। गुम्बद एवं छतरियों के शिखर पर परंपरागत फारसी एवं हिंदू वास्तु कला का प्रसिद्ध घटक एक धात्विक कलश किरीटरूप में शोभायमान है।किरीट कलश
मुख्य गुम्बद के किरीट पर कलश है (देखें दायें)। यह शिखर कलश आरंभिक 1800ई० तक स्वर्ण का था और अब यह कांसे का बना है। यह किरीट-कलश फारसी एवं हिंन्दू वास्तु कला के घटकों का एकीकृत संयोजन है। यह हिन्दू मन्दिरों के शिखर पर भी पाया जाता है। इस कलश पर चंद्रमा बना है, जिसकी नोक स्वर्ग की ओर इशारा करती हैं। अपने नियोजन के कारण चन्द्रमा एवं कलश की नोक मिलकर एक त्रिशूल का आकार बनाती हैं, जो कि हिन्दू भगवान शिव का चिह्न है।[4]मीनारें
बाहरी अलंकरण
ताजमहल में पाई जाने वाले सुलेखन फ्लोरिड थुलुठ लिपि के हैं। ये फारसी लिपिक अमानत खां द्वारा सृजित हैं। यह सुलेख जैस्पर को श्वेत संगमर्मर के फलकों में जड़ कर किया गया है। संगमर्मर के सेनोटैफ पर किया गया कार्य अतीव नाजु़क, कोमल एवं महीन है। ऊँचाई का ध्यान रखा गया है। ऊँचे फलकों पर उसी अनुपात में बडा़ लेखन किया गया है, जिससे कि नीचे से देखने पर टेढा़पन ना प्रतीत हो। पूरे क्षेत्र में कु़रान की आयतें, अलंकरण हेतु प्रयोग हुईं हैं। हाल ही में हुए शोधों से ज्ञात हुआ है, कि अमानत खाँ ने ही उन आयतों का चुनाव भी किया था।[5][6]
प्रयुक्त सूरा
यहाँ का पाठ्य क़ुरआन में वर्णित, अंतिम निर्णय के विषय में है, एवं इसमें निम्न सूरा की आयतें सम्मिलित हैं :
--सूरा 91 - सूर्य,
--सूरा 112 - विश्वास की शुद्धता,
--सूरा 89 - उषा,
--सूरा 93 - प्रातः प्रकाश,
--सूरा 95 - अंजीर,
--सूरा 94 - सांत्वना,
--सूरा 36 - या सिन,
--सूरा 81 - फोल्डिंग अप,
--सूरा 82 - टूट कर बिखरना,
--सूरा 84 - टुकडे़ होना,
--सूरा 98 - साक्ष्य,
--सूरा 67 - रियासत,
--सूरा 48 - विजय,
--सूरा 77 - वो जो आगे भेजे गए एवं
--सूरा 39 - भीड़
जैसे ही कोई ताजमहल के द्वार से प्रविष्ट होता है, सुलेख है--सूरा 112 - विश्वास की शुद्धता,
--सूरा 89 - उषा,
--सूरा 93 - प्रातः प्रकाश,
--सूरा 95 - अंजीर,
--सूरा 94 - सांत्वना,
--सूरा 36 - या सिन,
--सूरा 81 - फोल्डिंग अप,
--सूरा 82 - टूट कर बिखरना,
--सूरा 84 - टुकडे़ होना,
--सूरा 98 - साक्ष्य,
--सूरा 67 - रियासत,
--सूरा 48 - विजय,
--सूरा 77 - वो जो आगे भेजे गए एवं
--सूरा 39 - भीड़
“ | हे आत्मा ! तू ईश्वर के पास विश्राम कर। ईश्वर के पास शांति के साथ रहे तथा उसकी परम शांति तुझ पर बरसे। | „ |
आंतरिक अलंकरण
मुस्लिम परंपरा के अनुसार कब्र की विस्तृत सज्जा मना है। इसलिये शाहजहाँ एवं मुमताज महल के पार्थिव शरीर इसके नीचे तुलनात्मक रूप से साधारण, असली कब्रों में, में दफ्न हैं, जिनके मुख दांए एवं मक्का की ओर हैं। मुमताज महल की कब्र आंतरिक कक्ष के मध्य में स्थित है, जिसका आयताकार संगमर्मर आधार 1.5 मीटर चौडा एवं 2.5 मीटर लम्बा है। आधार एवं ऊपर का शृंगारदान रूप, दोनों ही बहुमूल्य पत्थरों एवं रत्नों से जडे. हैं। इस पर किया गया सुलेखन मुमताज की पहचान एवं प्रशंसा में है। इसके ढक्कन पर एक उठा हुआ आयताकार लोज़ैन्ज (र्होम्बस) बना है, जो कि एक लेखन पट्ट का आभास है। शाहजहाँ की कब्र मुमताज की कब्र के दक्षिण ओर है। यह पूरे क्षेत्र में, एकमात्र दृश्य असम्मितीय घटक है। यह असम्मिती शायद इसलिये है, कि शाहजहाँ की कब्र यहाँ बननी निर्धारित नहीं थी। यह मकबरा मुमताज के लिये मात्र बना था। यह कब्र मुमताज की कब्र से बडी है, परंतु वही घटक दर्शाती है: एक वृहततर आधार, जिसपर बना कुछ बडा श्रंगारदान, वही लैपिडरी एवं सुलेखन, जो कि उनकी पहचान देता है। तहखाने में बनी मुमताज महल की असली कब्र पर अल्लाह के निन्यानवे नाम खुदे हैं जिनमें से कुछ हैं "ओ नीतिवान, ओ भव्य, ओ राजसी, ओ अनुपम, ओ अपूर्व, ओ अनन्त, ओ अनन्त, ओ तेजस्वी... " आदि। शाहजहां की कब्र पर खुदा है;
"उसने हिजरी के 1076 साल में रज्जब के महीने की छब्बीसवीं तिथि को इस संसार से नित्यता के प्रांगण की यात्रा की।"
चार बाग
साथी इमारतें
मुख्य द्वार (दरवाज़ा) भी एक स्मारक स्वरूप है। यह भी संगमर्मर एवं लाल बलुआ पत्थर से निर्मित है। यह आरम्भिक मुगल बादशाहों के वास्तुकला का स्मारक है। इसका मेहराब ताजमहल के मेहराब की प्रति है। इसके पिश्ताक मेहराबों पर सुलेखन से अलंकरण किया गया है। इसमें बास रिलीफ एवं पीट्रा ड्यूरा पच्चीकारी से पुष्पाकृति आदि प्रयुक्त हैं। मेहराबी छत एवं दीवारों पर यहाँ की अन्य इमारतों जैसे ज्यामितीय नमूने बनाए गए हैं।
निर्माण
आधारशिला एवं मकबरे को निर्मित होने में बारह साल लगे। शेष इमारतों एवं भागों को अगले दस वर्षों में पूर्ण किया गया। इनमें पहले मीनारें, फिर मस्जिद, फिर जवाब एवं अंत में मुख्य द्वार बने। क्योंकि यह समूह, कई अवस्थाओं में बना, इसलिये इसकी निर्माण-समाप्ति तिथि में कई भिन्नताएं हैं। यह इसलिये है, क्योंकि पूर्णता के कई पृथक मत हैं। उदाहरणतः मुख्य मकबरा 1643 में पूर्ण हुआ था, किंतु शेष समूह इमारतें बनती रहीं। इसी प्रकार इसकी निर्माण कीमत में भी भिन्नताएं हैं, क्योंकि इसकी कीमत तय करने में समय के अंतराल से काफी फर्क आ गया है। फिर भी कुल मूल्य लगभग 3 अरब 20 करोड़ रुपए, उस समयानुसार आंका गया है; जो कि वर्तमान में खरबों डॉलर से भी अधिक हो सकता है, यदि वर्तमान मुद्रा में बदला जाए।[16]
ताजमहल को सम्पूर्ण भारत एवं एशिया से लाई गई सामग्री से निर्मित किया गया था। 1,000 से अधिक हाथी निर्माण के दौरान यातायात हेतु प्रयोग हुए थे। पराभासी श्वेत संगमर्मर को राजस्थान से लाया गया था, जैस्पर को पंजाब से, हरिताश्म या जेड एवं स्फटिक या क्रिस्टल को चीन से। तिब्बत से फीरोजा़, अफगानिस्तान से लैपिज़ लजू़ली, श्रीलंका से नीलम एवं अरबिया से इंद्रगोप या (कार्नेलियन) लाए गए थे। कुल मिला कर अठ्ठाइस प्रकार के बहुमूल्य पत्थर एवं रत्न श्वेत संगमर्मर में जडे. गए थे।
--मुख्य गुम्बद का अभिकल्पक इस्माइल (ए.का.इस्माइल खाँ),[17], जो कि ऑट्टोमन साम्राज्य का प्रमुख गोलार्ध एवं गुम्बद अभिकल्पक थे।
--फारस के उस्ताद ईसा एवं ईसा मुहम्मद एफेंदी (दोनों ईरान से), जो कि ऑट्टोमन साम्राज्य के कोचा मिमार सिनान आगा द्वारा प्रशिक्षित किये गये थे, इनका बार बार यहाँ के मूर अभिकल्पना में उल्लेख आता है।[18][19] परंतु इस दावे के पीछे बहुत कम साक्ष्य हैं।
--बेनारुस, फारस (ईरान) से 'पुरु' को पर्यवेक्षण वास्तुकार नियुक्त किया गया[20]
--का़जि़म खान, लाहौर का निवासी, ने ठोस सुवर्ण कलश निर्मित किया।
--चिरंजी लाल, दिल्ली का एक लैपिडरी, प्रधान शिलपी, एवं पच्चीकारक घोषित किया गया था।
--अमानत खाँ, जो कि शिराज़, ईरान से था, मुख्य सुलेखना कर्त्ता था। उसका नाम मुख्य द्वार के सुलेखन के अंत में खुदा[21]
--मुहम्मद हनीफ, राज मिस्त्रियों का पर्यवेक्षक था, साथ ही मीर अब्दुल करीम एवं मुकर्इमत खां, शिराज़, ईरान से; इनके हाथिओं में प्रतिदिन का वित्त एवं प्रबंधन था।
इतिहास
पर्यटन
सुरक्षा कारणों से[26] केवल पाँच वस्तुएं - पारदर्शी बोतलों में पानी, छोटे वीडियो कैमरा, स्थिर कैमरा, मोबाइल फोन एवं छोटे महिला बटुए - ताजमहल में ले जाने की अनुमति है।
प्रचलित कथाएँ
इस इमारत का निर्माण सदा से प्रशंसा एवं विस्मय का विषय रहा है। इसने धर्म, संस्कृति एवं भूगोल की सीमाओं को पारकर के लोगों के दिलों से वैयक्तिक एवं भावनात्मक प्रतिक्रिया कराई है, जो कि अनेक विद्याभिमानियों द्वारा किए गए मूल्यांकनों से ज्ञात होता है। यहाँ कुछ ताजमहल से जुडी़ प्रचलित कथाएं दी गईं हैं:-[27]--ऐसा भी कहा जाता है, कि शाहजहाँ ने उन कारीगरों के अंगच्छेदन आदि करा दिये थे, या मरवा दिया था, जिन्होंने ताजमहल का निर्माण कराया था। परंतु इसके पूर्ण साक्ष्य उपलब्ध नहीं हैं। कुछ लोगों का कहना है, कि ताजमहल के निर्माण से जुडे़ लोगों से यह करारनामा लिखवा लिया गया था, कि वे ऐसे रूप का कोई भी दूसरी इमारत नहीं बनाएंगे। ऐसे ही दावे कई प्रसिद्ध इमारतों के बारे में भी किए जाते रहे हैं।[31]
--इस तथ्य के भी कोई साक्ष्य नहीं हैं, कि लॉर्ड विलियम बैन्टिक, भारत के गवर्नर जनरल ने 1830 के दशक में, ताजमहल को ध्वंस कर के उसका संगमर्मर नीलाम करने की योजना बनाई थी। बैन्टिक के जीवनी लेखक, जॉन रॉस्सोली ने कहा है, कि एक कथा उडी़ थी, जब बैन्टिक ने निधि बढाने हेतु आगरा के किले का फालतू संगमर्मर नीलाम किया था।[32]
--सन 2000 में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय श्री पुरुषोत्तम नागेश ओक द्वारा दाखिल अर्जी रद्द कर दी थी, जिसमें यह कहा गया था, कि एक हिंदु राजा ने ताजमहल बनवाया था।[31][33] श्री ओक ने साक्ष्य सहित, यह दावा किया था, कि ताजमहल का उद्गम (मूल इमारत), एवं साथ ही देश की अनेकों एतिहासिक इमारतें, जो आज मुस्लिम सुल्तानों द्वारा निर्मित बताई जाती हैं, असल में उनसे पहले भी यहाँ मौजूद थीं। फलतः यह मूल इमारतें हिंदु राजाओं द्वारा निर्मित हैं। एवं इनका उद्गम हिंदु है।[34]
--एक और बहुचर्चित कथा, जो कि काव्यात्मक है, के अनुसार मॉनसून की प्रथम वर्षा में पानी की बूंदें इनकी कब्र पर गिरतीं हैं। जैसा कि गुरुदेव रविन्द्रनाथ टैगोर के इस मकबरे के वर्णन से प्रेरित है, "एक अश्रु मोती ... समय के गाल पर"। एक अन्य मिथक के अनुसार, यदि शिखर के कलश की छाया को पीटें, तो पानी/ वर्षा आती है। आज तक अधिकारी यहाँ इसकी छाया के इर्द गिर्द टूटी चूडि़यों के टुकडे़ पाते हैं। .[35]
विवाद : ताज महल एक हिन्दू इमारत
इतिहासकार पुरुषोत्तम नागेश ओक द्वारा दाखिल अर्ज़ी के अनुसार ताज महल एक हिन्दू इमारत (शिव-मंदिर) है। ओक महोदय की बात स्वीकार न करने का सबसे बडा कारण यह है कि लिखित इतिहास के तमाम उपलब्ध स्रोतों के अनुसार ताजमहल एक मुस्लिम बादशाह शाहजहाँ द्वारा बनवाने की बात समाने आती है, किन्तु इस बात को भूलना न होगा कि भारतीय परतंत्रता के युग में इतिहास को छति पहुँची है।इन्हें भी देखें
प्रतिकृतियाँ
चीन के शेनज़ेन शहर के पश्चिमी भाग में स्थित विंडो ऑफ़ द वर्ल्ड थीम पार्क में ताजमहल की प्रतिकृति बनी है। इसके अलावा ताजमहल से प्रेरित होकर बनी विश्व की अन्य इमारतों में ताजमहल बांग्लादेश, औरंगाबाद, महाराष्ट्र में बीबी का मकबरा, अटलांटिक सिटी, न्यू जर्सी स्थित ट्रम्प ताजमहल और मिल्वाउकी, विस्कज़िन स्थित ट्रिपोली श्राइन टेम्पल हैं। वैसे ब्रिटिश कालीन भारत में ही अंग्रेज़ों ने तत्कालीन राजधानी कलकत्ता में इंग्लैण्ड की तत्कालीन महारानी विक्टोरिया के सम्मान में विक्टोरिया मेमोरियल स्मारक भी बनाया था, जो ताजमहल से काफ़ी हद तक प्रेरित है, किन्तु गोथिक स्थापत्यकला में ढला है।-
कोलकाता स्थित विक्टोरिया मेमोरियल स्मारक
टिप्पणी
- Koch, p.240
सन्दर्भ
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बाह्य सूत्र
विकिमीडिया कॉमन्स पर ताज महल से सम्बन्धित मीडिया है। |
- मुखपृष्ठ विकियात्रा से ताजमहल हेतु यात्रा गाइड।
- ताजमहल का इंटरनेट पर वर्चुअल टूर
- ताजमहल या तेजोमहालय - एक समीक्षा
- भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण वर्णन
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