: बुंदेलखंड केन बेतवा नदी गठजोड़ परियोजना
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मरती नदियां मिटते लोग
केन बेतवा लिंक परियोजना को आगे बढाने तथा विस्तृत परियोजना
रिपोर्ट तैयार करने के लिये परियोजना को हाथ में लेने हेतु म0प्र0 तथा उ0प्र0
राज्यों
व केन्द्र सरकार के बीच इस पर 25 अगस्त 2005 को अंतिम रूप दिया गया। जिस पर म0प्र0
व उ0प्र0 के सी0एम0 बाबूलाल गौड़ व मुलायम सिंह यादव ने संयुक्त रूप से हस्ताक्षर
किये थे। इस परियोजना के सामाजिक आर्थिक एवं कृषि आधारित मुद्दो पर सर्वेक्षण की
जिम्मेदारी केन्द्र सरकार ने एन0डब्लू0डी0ए0 राष्ट्रीय नदी विकास अभिकरण,
एन0सी0ए0इ0आर0 (नेशनल काउसिंल फार एप्लायड इकानामिक रिसर्च) को सौपी थी। यह
सर्वेक्षण परियोजना के लिये पूर्व संभावित परिस्थितियों के प्रभाव के अध्ययन पर
आधारित था। बांधो - नदियों एवं लोगो का दक्षिण एशिया नेटवर्क (सेन्ड्रप) में एक
विश्लेष्णात्मक अध्ययन बुंदेलखंड के इस लिंक से होने वाले पर्यावरणीय हालातो के
मद्दे नजर किया था। अध्ययन करने के बाद जो तथ्य निकल कर सामने आये उसकी रिपोर्ट पर
सेन्ड्रप ने इसे भविष्यगामी जल त्रासदी एवं पानी का युद्ध करार दिया है।
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बंदेलखंड के उ0प्र0 और म0प्र0 में प्रस्तावित केन बेतवा नदी
गठजोड परियोजना प्रतिवेदन के आधार पर इस लिंक से प्रभावित होने वाले आदिवासी
बाहुल्य छतरपुर जनपद के बिजावर तहसील से आने वाले किसनगढ क्षेत्र के दस गांव है। इस
बात का खुलासा एन0सी0ए0ई0आर0 ने अपनी रिपोर्ट में किया है। जब कि सेन्ड्रप का
अध्ययन इस लिंक से 19 गांव के विस्थापन की बात करता है। दोनो ही
रिर्पोटों में
प्रभावित गांव की कितनी जनसंख्या विस्थापित होगी इसकी पुख्ता जानकारी किसी ऐजेन्सी
के पास नही है। राष्ट्रीय जल विकास अभिकरण ने बीते वर्ष इंडिया एलाइव टीम को
आर0टी0आई0 में जो जानकारियां दी है उनके मुताबिक प्रभावित क्षेत्र में आने वाले जिन
किसानों के नाम भूमि नही है और जो भूमि का उपयोग कर अपना आजीविका संवर्धन कर रहे है
उन परिवारों को मुवावजा राशि नेशनल रिहैबलीटेशन एवं रिसिटिलमेंट पाॅलिसी 2007 व
आई0आर0एम0पी0 2002 के बाबत अलग अलग दिया जाना है। इसमें भी बी0पी0एल0, लघु सीमांत
किसान, मध्यम किसान के लिये गांव और जनसंख्या व भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार
मुवावजे का प्राविधान रखा गया है एसा आर0टी0आई0 के जवाब मे लिखा है। गौरतलब है कि
प्रस्तावित बांध परियोजना में 6 बांध में से एक ही गे्रटर गगंऊ बांध को ध्यान मे
रखकर रिपोर्ट तैयार की गयी है। 212 किमी0 लम्बी कंकरीट युक्त नहर इस लिंक के द्वारा
केन नदी का पानी जो बुंदेलखंड के झांसी जिले के बरूआसागर अपस्ट्रीम मे म0प्र0 के
टीकमगढ जिले में बेतवा नदी पर प्रस्तावित एक अन्य बांध में डाला जाना है। जानकार
बताते है कि इस बांध के बायें किनारे पर 2 विद्युत परियोजना 30 व 20 मेगावाट की
बनायी जानी है। इसके अलावा इस लिंक की कुल अनुमानित लागत वर्ष 1989-90 में 1.99 अरब
रू0 आंकी गयी थी जब कि परियोजनापूर्ण प्राक्कलित लागत वर्ष 2008 के अनुसार 7,614.63
करोड रू0 अनुमानित की गयी है। परियोजना क्षेत्र में संरक्षित वन क्षेत्र पन्ना
टाइगर नेशनल रिजर्व पार्क का दक्षिणी हिस्सा भी इस लिंक की सीमा में आता है। डूब
क्षेत्र में आने वाले दस गांव में चार गांव पहले ही वन विभाग विस्थापित करा चुका
है।
केन बेतवा लिंक में विस्थापित होने वाले दस गांव में से ज्यादातर बराना और श्यामरी
नदी की तलहटी में बसते है। विस्थापित होने वाले गांव में टीम ने साहपुरा, सुकवाहा,
कूटी, बसुधा का दौरा किया। जब कि विस्थापित होने वाले दस गांवो में से साहपुरा,
सुकवाहा, दौधन, वसुधा, पलकोहा, भोरकुआं, गुघरी , खरियानी, कूपी व मैनारी है। टीम ने
जिन तीन गांवो का भ्रमण किया है वहां कि रहवासी अपनी मिट्टी को छोडकर नही जाना चाहते
है। कूपी गांव के प्रधान मिथला कुरेड़िया बताती है कि मेरे गांव में 250 घर सोर
आदीवासियों के है। सोर आदिवासी भले ही कृषि जमीन से संपन्न नही है। मगर फिर भी उनमे
अपने पूर्वजो की संस्कृति से विस्थापित होने का डर है। मिथला कुरेडिया की आस पास के
क्षेत्र मे फैली चाक (खडिया) की खदानें है। इसी गांव के राजू सोर ने बताया कि कूपी
में 27 फुट पर पानी है। यदि इतनी गहराई पर पानी नही निकला तो पत्थर ही निकलता है।
यहां सोर बिरादरी की श्रम शक्ति दिल्ली व फरीदाबाद पलायन कर चुकी है। इसी गांव के
मनसुख अहीरवार बताते है कि 17 साल पहले वर्ष 1995 में भीषण बाढ में मेरी चार एकड़
कृषि भूमि तबाह हो गयी थी जिसका मुवावजा आज तक म0प्र0 सरकार ने नही दिया है। मनसुख
का लडका सुर्रा दिल्ली में बीते पांच वर्षो से परिवार का पेट पालने के लिये मजदूरी
करता है। उसका यह भी तर्क है कि मनरेगा में बुजुर्गो को काम क्यों नही मिलता ? गांव
के प्रधान 100 रू0 की मजदूरी देते है जब कि 1 अप्रैल 2012 से 133 रू0 मजदूरी हो गयी
है। हालात देखकर यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि कूपी के बासिंदे केन बेतवा नदी
गठजोड़ परियोजना से बेहद आहत है। वसुधा गांव में ज्यादातर कांेदर जाति के आदीवासी
रहते है। साहपुरा के रतीराम यादव का कहना है कि हमारे गांव के कुछ एक परिवारों को
बाढ के समय 9000 रू0 मुवावजा मिला था। और पूर्व मुख्य मंत्री दिग्विजय सिंह ने बाढ
प्रभावित क्षेत्रों का दौरा किया था लेकिन उसके बाद से इन गांवों में आज तक कोई नही
आया।
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By : - आशीष सागर
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