रविवार, 22 जनवरी 2012

भूगोल


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पृथ्वी का मानचित्र
प्राकृतिक विज्ञानों के निष्कर्षों के बीच कार्य-कारण संबंध स्थापित करते हुए पृथ्वीतल की विभिन्नताओं का मानवीय दृष्टिकोण से अध्ययन ही भूगोल (Geography) का सार तत्व है। पृथ्वी की सतह पर जो स्थान विशेष हैं उनकी समताओं तथा विषमताओं का कारण और उनका स्पष्टीकरण भूगोल का निजी क्षेत्र है। भूगोल शब्द दो शब्दों भू यानि पृथ्वी और गोल से मिलकर बना है।
भूगोल एक ओर अन्य श्रृंखलाबद्ध विज्ञानों से प्राप्त ज्ञान का उपयोग उस सीमा तक करता है जहाँ तक वह घटनाओं और विश्लेषणों की समीक्षा तथा उनके संबंधों के यथासंभव समुचित समन्वय करने में सहायक होता है। दूसरी ओर अन्य विज्ञानों से प्राप्त जिस ज्ञान का उपयोग भूगोल करता है, उसमें अनेक व्युत्पत्तिक धारणाएँ एवं निर्धारित वर्गीकरण होते हैं। यदि ये धारणाएँ और वर्गीकरण भौगोलिक उद्देश्यों के लिये उपयोगी न हों, तो भूगोल को निजी व्युत्पत्तिक धारणाएँ तथा वर्गीकरण की प्रणाली विकसित करनी होती है।
अत: भूगोल मानवीय ज्ञान की वृद्धि में तीन प्रकार से सहायक होता है:
(क) विज्ञानों से प्राप्त तथ्यों का विवेचन करके मानवीय वासस्थान के रूप में पृथ्वी का अध्ययन करता है।
(ख) अन्य विज्ञानों के द्वारा विकसित धारणाओं में अंतर्निहित तथ्य की परीक्षा का अवसर देता है, क्योंकि भूगोल उन धारणाओं का स्थान विशेष पर प्रयोग कर सकता है।
(ग) यह सार्वजनिक अथवा निजी नीतियों के निर्धारण में अपनी विशिष्ट पृष्टभूमि प्रदान करता है, जिसके आधार पर समस्याओं का सप्ष्टीकरण सुविधाजनक हो जाता है।
सर्वप्रथम प्राचीन यूनानी विद्वान इरैटोस्थनिज़ ने भूगोल को धरातल के एक विशिष्टविज्ञान के रुप में मान्यता दी । इसके बाद हिरोडोटस तथा रोमन विद्वान स्ट्रैबो तथा क्लाडियस टॉलमी ने भूगोल को सुनिश्चित स्वरुप प्रदान किया । इस प्रकार भूगोल में 'कहां' 'कैसे 'कब' 'क्यों' व 'कितनें' प्रश्नों की उचित वयाख्या की जाती हैं ।

अनुक्रम

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[संपादित करें] परिभाषा

  1. "भूगोल पृथ्वी कि झलक को स्वर्ग में देखने वाला आभामय विज्ञान हैं" -क्लाडियस टॉलमी
  2. "भूगोल एक एसा स्वतंत्र विषय है, किसका उद्देश्य लोगों को इस विश्व का, आकाशीय पिण्डो का, स्थल, माहासागर, जीन-जन्तुओं, वनस्पतियों , फलों तथा भूधरातल के क्षेत्रों मे देखी जाने वाली प्रत्येक अन्य वस्तु का ज्ञान प्र्रप्त कराना हैं" - स्ट्रैबो

[संपादित करें] अंग तथा शाखाएँ

भूगोल के दो प्रधान अंग है : श्रृंखलाबद्ध भूगोल तथा प्रादेशिक भूगोल। पृथ्वी के किसी स्थानविशेष पर श्रृंखलाबद्ध भूगोल की शाखाओं के समन्वय को केंद्रित करने का प्रतिफल प्रादेशिक भूगोल है।
भूगोल एक प्रगतिशील विज्ञान है। प्रत्येक देश में विशेषज्ञ अपने अपने क्षेत्रों का विकास कर रहे हैं। फलत: इसकी निम्नलिखित अनेक शाखाएँ तथा उपशाखाएँ हो गई है :
भौतिक भूगोल -- इसके भिन्न भिन्न शास्त्रीय अंग स्थलाकृति, हिम-क्रिया-विज्ञान, तटीय स्थल रचना, भूस्पंदनशास्त्र, समुद्र विज्ञान, वायु विज्ञान, मृत्तिका विज्ञान, जीव विज्ञान, चिकित्सा या भैषजिक भूगोल तथा पुरालिपि शास्त्र हैं।
आर्थिक भूगोल-- इसकी शाखाएँ कृषि, उद्योग, खनिज, शक्ति तथा भंडार भूगोल और भू उपभोग, व्यावसायिक, परिवहन एवं यातायात भूगोल हैं। अर्थिक संरचना संबंधी योजना भी भूगोल की शाखा है।
मानव भूगोल -- इसके प्रधान अंग वातावरण, जनसंख्या, आवासीय भूगोल, ग्रामीण एवं शहरी अध्ययन के भूगोल हैं।
प्रादेशिक भूगोल -- इसके दो मुख्य क्षेत्र हैं प्रधान तथा सूक्ष्म प्रादेशिक भूगोल।
राजनीतिक भूगोल -- इसके अंग भूराजनीतिक शास्त्र, अंतरराष्ट्रीय, राष्ट्रीय, औपनिवेशिक भूगोल, शीत युद्ध का भूगोल, सामरिक एवं सैनिक भूगोल हैं।
ऐतिहासिक भूगोल --प्राचीन, मध्यकालीन, आधुनिक वैदिक, पौराणिक, इंजील संबंधी तथा अरबी भूगोल भी इसके अंग है।
रचनात्मक भूगोल-- इसके भिन्न भिन्न अंग रचना मिति, सर्वेक्षण आकृति-अंकन, चित्रांकन, आलोकचित्र, कलामिति (फोटोग्रामेटरी) तथा स्थाननामाध्ययन हैं।
इसके अतिरिक्त भूगोल के अन्य खंड भी विकसित हो रहे हैं जैसे ग्रंथ विज्ञानीय, दार्शनिक, मनोवैज्ञानिक, गणित शास्त्रीय, ज्योतिष शास्त्रीय एवं भ्रमण भूगोल तथा स्थाननामाध्ययन हैं।

[संपादित करें] इतिहास

[संपादित करें] प्राचीन धारणाएँ

सृष्टि तथा मानव की उत्पत्ति से भूगोल का संबंध है। भौगोलिक धारणाओं की उत्पत्ति मनुष्य के शब्दों में वर्तमान थी जो तदुपरांत वाक्यों में लिखी गई है। वैदिक काल में भूगोल वैदिक रचनाओं के रूप में मिलता है। ब्रह्मांड, पृथ्वी, वायु, जल, अग्नि, अकाश, सूर्य, नक्षत्र तथा राशियों का विवरण वेदों, पुराणों और अन्य ग्रंथों में दिया ही गया है किंतु इतस्तत: उन ग्रंथों में सांस्कृतिक तथा मानव भूगोल की छाया मिलती है। भारत में अन्य शास्त्रों के साथ साथ ज्योतिष, ज्यामिति तथा खगोल भूगोल का भी विकास हुआ था जिनकी झलक प्राचीन खंडहरों या अवशेष ग्रंथों में मिलती है। महाकाव्य काल में सामरिक, सांस्कृतिक एवं वायु परिवहन भूगोल के विकास के संकेत हैं।
यूनान के दार्शनिकों ने भूगोल के सिद्धांतों की चर्चा की थी। ईसा के 900 वर्ष होमर ने बतलाया था कि पृथ्वी चौड़े थाल के समान और ऑसनस नदी से घिरी हुई है। मिलेटस के थेल्स ने सर्वप्रथम बतलाया कि पृथ्वी मंडलाकार है। पाइथैगोरियन संप्रदाय के दार्शनिकों ने मंडलाकार पृथ्वी के सिद्धांत को मान लिया था क्योंकि मंडलाकार पृथ्वी ही मनुष्य के समुचित वासस्थान के योग हैं पारमेनाइड्स (450 ईसा पूर्व) ने पृथ्वी की जलवायु की समांतर कटिबंधों की ओर संकेत किया था यह भी बतलाया था कि उष्णकटिबंध गरमी के कारण तथा शीत कटिबंध शीत के कारण वासस्थान के योग्य नहीं है, किंतु दो माध्यमिक समशीतोष्ण कटिबंध आवासीय हैं।
एच0 एफ0 टॉजर ने हेकाटियस (500 ईसा पूर्व) को भूगोल का पिता माना था जिसने स्थल भाग को सागरों से घिरा हुआ माना तथा दो महादेशों का ज्ञान दिया।
अरस्तु (Aristotle) (384-322 ईसा पूर्व) वैज्ञानिक भूगोल का जन्मदाता था। उसके अनुसार मंडलाकार पृथ्वी के तीन कारण थे (क) पदार्थो का उभय केंद्र की ओर गिरना, (ख) ग्रहण में मंडल ही चंद्रमा पर गोलाकार छाया प्रतिबिंबित कर सकता है तथा (ग) उत्तर से दक्षिण चलने पर क्षितिज का स्थानांतरण और नयी नयी नक्षत्र राशियों का उदय होना। अरस्तु ने ही पहले पहल समशीतोष्ण कटिबंध की सीमा क्रांतिमंडल से घ्रुव वृत्त तक निश्चित की थी।
इरैटोस्थनीज (250 ईसा पूर्व) ने भूगोल (ज्योग्राफी) शब्द का पहले-पहल उपयोग किया था तथा ग्लोब का मापन किया था। यह सत्य है कि अरस्तू को डेल्टा निर्माण, तट अपक्षरण तथा पौधों और जानवरों का प्राकृतिक वातावरण पर निर्भरता का ज्ञान था। इन्होंने अक्षांश और ऋतु के साथ जलवायु के अंतर के सिद्धांत तथा समुद्र और नदियों में जल प्रवाह की धारणा का भी संकेत किया था। इनका यह भी विमर्श था कि जनजाति के लक्षण में अंतर जलवायु में विभिन्नता के कारण है और राजनीतिक समुदाय रचना स्थान विशेष के कारण होता है, जैसे समुद्रतट या प्राकृतिक प्रभावशाली क्षेत्र में।
रोमन भूगोलवेत्ताओं का भी प्रारंभिक ज्ञान देने में हाथ रहा है। स्ट्राबो (50 ईसा पूर्व -14 ई) ने भूमध्य सागर के निकटस्थ परिभ्रमन के अधार पर भूगोल की रचना की। पोंपोनियस मेला (40 ई) ने बतलाया कि दक्षिणी समशीतोष्ण कटिबंध में अवासीय स्थान है जिसे इन्होंने एंटीकथोंस (Antichthones) विशेषण दिया। 150 ई0 में क्लाउडियस टोलेमियस ने ग्रीस की भौगोलिक धारणाओं के आधार पर अपनी रचना की। अरब भूगोल तथा आधुनिक समय में इस विज्ञान का प्रारंभ क्लाउडियस की विचारधारा पर ही निर्धारित है। टोलमी ने किसी स्थान के अक्षांश और देशांतर का निर्णय किया तथा स्थल या समुद्र की दूरी में सुधार किया तथा इसकी स्थिति ऐटलैंटिक महासागर से पृथक निर्णीत की।
फोनेशियंस (1000 ईसा पूर्व) को, जिन्हें "आदिकाल के पादचारी" कहते हैं, स्थान तथा उपज की प्रादेशिक विभिन्नताओं का ज्ञान था। होमर के ओडेसी (800 ईसा पूर्व) से यह विदित है कि प्राचीन संसार में सुदूर स्थानों में कहीं आबादी अधिक और कहीं कम क्यों थी।

[संपादित करें] मध्यकालीन धारणाएँ

ईसाई जगत् में भौगोलिक धारणाएँ जाग्रतावस्था में नहीं थीं किंतु मुस्लिम जगत् में ये जाग्रतावस्था में थीं। भौगोलिक विचारों का अरब के लोगो ने यूरोपवासियों से अधिक विस्तार किया। नवीं से चौदहवीं शताब्दी तक पूर्वी संसार में व्यापारियों और पर्यटकों ने अनेक देशों का सविस्तार वर्णन किया। टोलमी (815 ई) के भूगोल की अरब के लोगों को जानकारी थी। अरबी ज्योतिषशास्त्रीयों ने मैसापोटामिया के मैदान के एक अंश के बीच की दूरी मापी और उसके आधार पर पृथ्वी के विस्तार का निर्णय किया। आबू जफ़र मुहम्मद बिन मूशा ने टोलमी के आदर्श पर भौगोलिक ग्रंथ लिखा जिसका अब कोई चिन्ह नहीं मिलता। गणित एवं ज्योतिष में प्रवीण अरब विद्वानों ने मक्का की स्थिति के अनुसार शुद्ध अक्षांशो का निर्णय किया। ब्बूशीडाश क्क्ड्क्कॉशूऊआओऊ ळाईओफ़ूफ़ीओआओई

[संपादित करें] आधुनिक धारणाएँ

पंद्रहवीं शताब्दी के अंत तथा सोलहवीं शती के प्रारंभ में मैगेलैन तथा ड्रेक ने ऐटलैंटिक तथा प्रशांत महासागरों के स्थलों क पता लगाया तथ संसार का परिभ्रमण किया। स्पेन, पुर्तगाल, हॉलैंड के समन्वेषकों (explorers) ने संसार के नए स्थलों को खोजा। नवीन संसार की सीमा निश्चित की गई। 16वीं और 17वीं शताब्दियों में विस्तार, स्थिति, पर्वतो तथा नदी प्रणालियों के ज्ञान की सूची बढ़ती गई जिनका श्रृंखलाबद्ध रूप मानचित्रकारों ने दिया। इस क्षेत्र में मर्केटर का नाम विशेष उल्लेखनीय है। मर्केटर प्रक्षेपण तथा अन्य प्रक्षणों के विकास के साथ भूगोल का प्रसार हुआ।
बरनार्ड भरेन (भरेनियस) ने 1630 ई0 में ऐम्सटरडैम में 'ज्योग्रफिया जेनरलिस' (Geographia Generalis) ग्रंथ लिखा 28 वर्ष की अवस्था में इस जर्मन डाक्टर लेखक की मृत्यु सन् 1650 में हुई। इस ग्रंथ में संसार के मनुष्यों के श्रृखंलाबद्ध दिगंतर का सर्वप्रथम विश्लेषण किया गया।
18वीं शताब्दी में भूगोल के सिद्धांतों का विकास हुआ। इस शताब्दी के भूगोलवेत्ताओं में इमानुअल कांट की धारणा सराहनीय है। कांट ने भूगोल के पाँच खंड किए :
  • (1) गणितीय भूगोल-सौर परिवार में पृथ्वी की स्थिति तथा इसका रूप, अकार, गति का वर्णन;
  • (2) नैतिक भूगोल -- मानवजाति के आवासीय क्षेत्र पर निर्धारित रीति रिवाज तथा लक्षण का वर्णन;
  • (3) राजनीतिक भूगोल -- संगठित शासनानुसार विभाजन;
  • (4) वाणिज्य भूगोल (Mercantile Geography)-- देश के बचे हुए उपज के व्यापार का भूगोल; तथा
  • (5) धार्मिक भूगोल (Theological Geography) धर्मो के वितरण का भूगोल।
कांट के अनुसार भौतिक भूगोल के दो खंड है (क) सामान्य पृथ्वी, जलवायु और स्थल, (ख) विशिष्ट मानवजाति, जंतु, वनस्पति तथा खनिज।
उन्नीसवीं शताब्दी भूगोल का अभ्युदय काल है तो बीसवीं विस्तार एवं विशिष्टता का । अलेक्जैंडर फॉन या वॉन हंबोल्ट (1769-1856) तथा कार्ल रिटर (1779-1859) प्रकृति और मनुष्य की एकता को समझाने में संलग्न थे। यह दोनों का उभयक्षेत्र था। एक ओर हंबोल्ट की खोज स्थलक्षेत्र तथा संकलन में भौतिक भूगोल की ओर केंद्रित थी तो दूसरी ओर रिटर मानव भूगोल के क्षेत्र में शिष्टता रखते थे। दोनो भूगोलज्ञों ने आधुनिक भूगोल का वैज्ञानिक तथा दार्शनिक आधारों पर विकास किया। दोनों की खोज पर्यटन अनुभव पर आधारित थी। दोनों विशिष्ट एवं प्रभावशाली लेखक थें किंतु दोनों में विषयांतर होने के कारण ध्येय और शैली विभिन्न थी। हंबोल्ट ने 1793 ई में कॉसमॉस (Cosmos) और रिटर ने अर्डकुंडे (Erdkunde) ग्रंथों की रचना की। अर्डकुंडे 21 भागों में था। वातावरण के सिद्धांत की उत्पत्ति पृथ्वी के अद्वितीय तथ्य मानव आवास की पहेली सुलझाने में हुई है। मनुष्य वातावरण का दास है या वातावरण मनुष्य को मॉन्टेसकीऊ (1748) तथा हरडर (1784-1791) का संकल्पवादी सिद्धांत, सर चार्ल्स लाइल (1830-32) का विकासवाद विचार, चार्ल्स डारविन का ओरिजन ऑव स्पीशीज (Origin of Species, 1859) के सारतत्व हांबोल्ट की रचना में निहित है। मनुष्य के सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक जीवन में प्राकृतिक वातावरण की प्रधानता है किंतु किसी भी लेखक ने विश्वास नहीं किया कि प्रकृति के अधिनायकत्व में मनुष्य सर्वोपरि रहा।
रेटजेल (1844-1904) की रचना मानव भूगोल (Anthropogeographe) अपने क्षेत्र में असाधारण है। कुमारी सेंपुल (1863-1932) की रचनाओं जैसे "भौगोलिक वातावरण के प्रभाव" "अमरीकी इतिहास तथा उसकी भौगोलिक स्थिति" तथा "भूमध्यसागरीय प्रदेश का भूगोल" से ऐतिहासिक तथा खौगोलिक तथ्यों का पूर्ण ज्ञान होता है। इल्सवर्थ हटिंगटन (1876-1947) के "भूगोल का सिद्धांत एवं दर्शन", "पीपुल्स ऑव एशिया", "प्रिन्सिपुल ऑव ह्यूमैन ज्यॉग्रफी", "मेन्सप्रिंग्स ऑव सिविलाइजेशन" में मिलते हैं।
मिडा डी ला ब्लासी (1845-1918) तथा जीन ब्रूनहेज (1869-1930) ने मानव भूगोल की रचना की। भूगोल की विभिन्न शाखाओं के अध्ययन में आज सैकड़ों भूगोलवेत्ता संसार के विभिन्न भागों में लगे हुए हैं।

[संपादित करें] प्राकृतिक भूगोल

• भू-आकृति विज्ञान
• जलवायु विज्ञान
• महासागरीय विज्ञान
• पारिस्थितिकी विज्ञान
• दूर-संवेदन विज्ञान
• मानचित्र विज्ञान

[संपादित करें] भौतिक भूगोल

  • भू-आकृति (स्थलाकृति) विज्ञान
पृथ्वी पर ७ महाद्वीप हैं: एशिया, यूरोप, अफ्रीका, उत्तरी अमरीका, दक्षिण अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, अंटार्कटिका । पृथ्वी पर 4 महासागर हैं: अटलांटिक महासागर, अंध महासागर,हिंद महासागर, प्रशान्त महासागर |
  • स्थलाकृति विज्ञान
शैल - (1) आग्नेय शैल (2) कायांतरित शैल (3) अवसादी शैल |

[संपादित करें] महासागरीय विज्ञान

[संपादित करें] जलवायु-विज्ञान

वायुमण्डल, ऋतु, तापमान, गर्मी, उष्णता, क्षय ऊष्मा आर्द्रता |

[संपादित करें] मानव भूगोल

[संपादित करें] मानचित्र कला

  • मानचित्र
  • नकशा बनाना
  • नाप, कम्पास
  • दिक्सूचक
  • मापन, पैमाइश करना
  • आकाशी मानचित्र
  • समोच्च रेखी
  • भू- वैज्ञानिक मानचित्र
  • आधार मानचित्र
  • समोच्च नक्शा
  • कार्नो प्रतिचित्र
  • बिट प्रतिचित्र प्रोटोकॉल
  • खंड प्रतिचित्र सारणी
  • नक्शानवीसी

[संपादित करें] सर्वेक्षण

  • प्रत्याशा सर्वेक्षण
  • आर्थिक सर्वेक्षण
  • खेत प्रबंध सर्वेक्षण
  • भूमिगत जल सर्वेक्षण
  • जल सर्वेक्षण
  • प्रायोगिक सर्वेक्षण
  • ग्राम सर्वेक्षण

[संपादित करें] यह भी देखें

[संपादित करें] बाहरी कड़ियाँ

  • भूगोल (गूगल पुस्तक ; लेखक - यश पाल सिंह)
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