गुरुवार, 19 जनवरी 2012

बाबरनामा


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An image of Rhino hunt from Baburnama

A scene from the Baburnama.
बाबरनामा (चागताई/फ़ारसी: بابر نامہ;´, शाब्दिक अर्थ: "बाबर की आत्मकथा") भारत में मुगल साम्राज्य की स्थापना करने वाले शासक मुहम्मद जहिरुद्दीन बाबर की आत्मकथा है| आमतौर से बाबरनामा कहे जाने वाले किताब का मूल शीर्षक 'तुजुक-ए-बाबरी' है| मात्र तेरह् वर्ष की अल्पवय में बाबर ने सत्ता के लिए संघर्ष शुरु किया था। अपनी आत्मकथा में उसने समरकंद (उज्बेकिस्तान) से काबुल (अफगानिस्तान) और फिर दिल्ली (हिन्दुस्तान) तक किए गए सत्ता-संघर्ष को बेहतरीन ढंग से बयान किया है। यह पुस्तक न सिर्फ उसके अनुभवों का दर्पण है बल्कि तत्कालीन समाज के बारे में एक दस्तावेज है। 'तुजुक-ए-बाबरी' में बाबर ने अपनी अद्भुत साहित्यिक क्षमता, प्रकृति प्रेम और रुचि का परिचय दिया है जिसे पढकर ही जाना जा सकता है। किताब से यह पता चलता है कि हालात ने बाबर को भले ही लड़ाका बना दिया हो लेकिन उसके अंदर भी एक सुरुचिपूर्ण कलाप्रेमी शख्सियत थी।
  • आत्मकथा: बाबरनामा को मुख्यत: तीन हिस्सों में बांटा जा सकता है। पहला दौर 1494 में फरगाना के राजा बनने से लेकर 1503 तक का है। इस दौरान उसे अपना पैत्रिक राज्य गंवाना पड़ा। दूसरा दौर 1504 में काबुल का शासक बनने से लेकर 1525 तक का दौर है। अप्रैल, 1526 में दिल्ली का बादशाह बनने के बाद से लेकर सितंबर,1529 तक भारत के पूर्वी हिस्सों में सत्ता का विस्तार आत्मकथा का अंतिम दौर है। बाबरनामा की पांडुलिपि में 1508 ई से लेकर 1519 तक का विवरण उपलब्ध नहीं है। बाबरनामा में दर्शाए गए प्रत्येक चित्र की खासियत यह है कि हरेक चित्र के बीच में, कभी उपर, कभी नीचे या कहें कैनवस के खाली पड़े हिस्सों में जहां जगह खाली बच रही हो, वहां फारसी में तस्वीर के बारे में जानकारी लिखी है। बाबर ने अपनी किताब में कहा है कि सन 1504 ई में बर्फीले तूफान के बीच अपने तीन सौ साथियों के साथ मातृभूमि फरगाना से चलकर हिन्दूकुश पर्वत को पार करते हुए उसने काबुल में प्रवेश किया और खुद को वहां का शासक घोषित कर दिया। सन् 1511 ई तक उसके राय की सीमाएं ताशकंद से काबुल और गजनी तक फैल गई थीं जिसके तहत समरकंद, गोखारा, हिसार, कुंदुज और फरगना शामिल थे। चारों तरफ पहाड़ों से घिरे काबुल के फलों की उसने बड़ी तारीफ की है जिसमें अंगूर, अनार, खुमानी, सेब, नाशपाती, बेर, आलूबुखारा, अंजीर और अखरोट जैसे फलों का विवरण है। बाबर ने अपनी किताब में अफगानिस्तान की गर्म घाटी में पैदा होने वाले गन्ने, संतरे और गलगल के बारे में भी लिखा है। संस्मरण में हिन्दुस्तान की ओर से लाए जाने वाले पशुओं, गुलामों और वस्त्रों के अलावा तरह तरह के मसालों और शक्कर का भी जिक्र किया गया है। [1]
  • अनुवादः बाबर ने अपनी जीवनी मातृभाषा चागताई (तुर्की भाषा का पुराना स्वरुप) में लिखी थी। बाद में बाबर के पोते अकबर ने तुजुक-ए-बाबरी का फारसी भाषा में अब्दुर्रहीम खान-ए-खानां द्वारा हिजरी 998 (1589-90 ई) में अनुवाद कराकर किताब को चित्रों से सजाया|[2] अकबर ने ईरान के दो मशहूर कलाकारों मीर सच्चीद अली और अब्द-अस-समद को हिंदुस्तान आने का निमंत्रण भेजा। इन दोनों कलाकारों ने स्थानीय चित्रकारों की मदद से बाबरनामा के अद्भुत चित्र बनवाए। 145 चित्रों वाला बाबरनामा 1598 ई में बना। बाबरनामा के चित्रों से मुगलकालीन कला की शुरुआती झलक मिलती है। कहा जाता है कि दौलत, भवानी, मंसूर, सूरदास, मिस्कीन, फारुख़ चोला और शंकर जैसे 47 कलाकारों की मदद से पांच सचित्र बाबरनामा तैयार किए गए। इनमें से एक प्रति नई दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय में मौजूद है जबकि बाकी चार प्रति ब्रिटिश म्यूजियम लंदन, स्टेट म्यूजियम ऑफ ईस्टर्न कल्चर, मास्को और लंदन के ही विक्टोरियल और अल्बर्ट म्यूजियम में रखे हुए हैं। नई दिल्ली में राष्ट्रीय संग्रहालय में रखी गई बाबरनामा की सचित्र पोथी में कुल 378 पन्ने है और इनमें से 122 पन्नों पर 144 चित्र हैं। [3]

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