मंगलवार, 29 जून 2021

शंगरी ला घाटी का रहस्य*

 *क्या आप जानते हैं भारत की इस रहस्यमयी जगह के बारे में*?


*प्रस्तुति -: कृष्ण मेहता*


आज हम एक ऐसी जगह के बारे में बात करेंगे जहाँ हर चीज गायब हो जाती है। वैसे तो दुनिया में कई ऐसे स्थान है जहाँ वायु शुन्य है मतलब हवा है ही नहीं हमारे देश में भी एक ऐसा स्थान है जहाँ न सिर्फ हवा शुन्य है बल्कि जो भू हीनता के प्रभाव क्षेत्र में आता है। 

यहाँ एक बात जान लेते हैं की भू हीनता के प्रभाव क्षेत्र में आने वाले स्थान धरती के वायुमंडल के चौथे आयाम से प्रभावित होते हैं इसलिए ये इस तरह के स्थान बन जाते हैं जो की तीसरी आयाम वाली धरती की किसी भी वस्तु से संपर्क तोड़ देते हैं, यानी कोई भी इन्सान अगर किसी ऐसी जगह के संपर्क में जाता है तो वह पृथ्वी से गायब हो जाता है चौथे आयाम के बारे में आगे पढ़े।

शंगरीला घाटी ऐसी ही एक जगह है जहाँ कोई वस्तु उसके संपर्क में आने पर गायब हो जाती है। यह घाटी तिब्बत और अरुणांचल प्रदेश की सीमा पर स्थित है यदि आप इस स्थान को देखना चाहते हैं तो इसे आप बिना किसी तकनीक के नहीं देख सकते यह घाटी चौथे आयाम (Fourth dimension) से प्रभावित होने के कारण रहस्यमयी बनी हुई है।

बहुत से लोगो यह भी कहते हैं की इस जगह का संपर्क अंतरिक्ष में किसी दूसरी दुनिया से भी है यदि आप इस घाटी के बारे में और अधिक  जानना चाहते हैं तो आपको एक प्राचीन किताब काल विज्ञान पढनी होगी यह किताब आज भी तिब्बत के तवांग मठ के पुस्तकालय में मौजूद है और यह तिब्बती भाषा में लिखी गयी है। 


इस किताब में लिखा है कि इस तीन आयाम वाली (third dimension) की दुनिया की हर वस्तु देश, समय और नियति में बंधी हुई है यानी हर वस्तु एक निश्चित स्थान, समय और नियमो के हिसाब से काम करती है लेकिन शंगरी ला घाटी में समय नगण्य है यानी वहां समय ना के बराबर है हम इसे सरल शब्दों में ऐसे समझ सकते हैं की हमारे यहाँ के सैकड़ो साल और वह का एक second।

शंगरी ला घाटी में प्राण,मन और विचारो की शक्ति एक विशिष्ट सीमा तक बढ़ जाती है अगर इस धरती पर आध्यात्मिक नियंत्रण केंद्र है तो वह शंगरी ला घाटी ही है अगर इस शंगरी ला घाटी में कोई वस्तु या प्राणी अनजाने में चला जाता है तो third dimension वाले इस जगत की दृष्टि में उसकी सत्ता गायब हो जाती है। 

सरल शब्दों में कहे तो जब तक वह वहां से वापस आयेगा तब तक यहाँ न जाने कितनी सदियाँ बीत गयी होंगी लेकिन शंगरी ला घाटी मे उसका अस्तित्व बना रहता है और यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता की भविष्य में कब उसका अस्तित्व प्रकट हो या न हो यानी कि वहाँ जाने के बाद वह वापस आयेगा या नहीं कुछ कहा नहीं जा सकता क्योंकि जब तक वह वापस आयेगा तब तक यहाँ सदिया बीत चुकी होंगी।

शंगरी ला घाटी में जाने के बाद किसी इन्सान की आयु बहुत धीमी गति से बढती है मान लीजिये किसी इंसान ने इस घाटी में 20 साल की उम्र में प्रवेश किया तो उसका शरीर लम्बे समय तक जवान ही बना रहेगा शंगरी ला एक आम इंसान के लिए अनजान जगह हो सकती है।

 लेकिन उच्च स्तरीय अध्यात्मिक क्षेत्र से जुड़ा व्यक्ति इस जगह से अनजान नहीं रह सकता फिर वह व्यक्ति चाहे योग से या तंत्र से या किसी अन्य तरह के आध्यात्म क्षेत्र से जुड़ा हो, हाँ लेकिन उस इंसान की साधना उच्च अवश्य  होनी चाहिए।

शंगरी ला घाटी सिर्फ भारत का ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के आध्यात्म जगत का नियंत्रण और पथ प्रदर्शक क्षेत्र है साथ ही इसको आम इंसान की दृष्टि से देखा भी नहीं जा सकता जब तक वहां रहने वाले सिद्ध न चाहें  तब तक इस घाटी को न तो कोई देख सकता है और न ही वहां जा सकता है जो लोग इस घाटी से परिचित हैं।

 उनका कहना है कि प्रसिद्ध योगी श्यामाचरण लाहिड़ी के गुरु अवतारी बाबा, जिन्होंने आदि शंकराचार्य को भी दीक्षा दी थी शंगरी ला घाटी के किसी सिद्ध आश्रम में अभी भी निवास कर रहे हैं जो कभी आकाश मार्ग से चलकर अपने शिष्यों को दर्शन भी देते हैं ।

यहाँ पर तीन साधना के केंद्र प्रसिद्ध हैं।

ज्ञान गंज मठ, सिद्ध विज्ञान आश्रम, योग सिद्ध आश्रम।

इन तीनो साधना केंद्रों पर आपको ऐसे अनेक योगी मिल जायेंगे जो जन्म मृत्यु के अधीन नही है। ऐसी बहुत सी घटनाएं हैं जो यह साबित करती हैं कि मरने के बाद सब कुछ समाप्त नहीं होता बल्कि किसी न किसी रूप में अस्तित्व बचा रहता है इसे योग की भाषा में सूक्ष्म शरीर कहा जाता है। 

मृत्यु के पश्चात आत्मा सूक्ष्म शरीर में वास करती है सामान्यतः यह सूक्ष्म शरीर अल्प विकसित होते हैं व अधिक कुछ कर पाने में असमर्थ होते हैं।  

योगी लोग अपने जीवित रहते सूक्ष्म शरीर को विकसित कर लेते हैं जिससे यह बहुत कुछ करने में समर्थ हो जाते हैं। यहाँ की दुर्गम पर्वत श्रृंखला में ऐसी ही सूक्ष्म शरीरधारी आत्माओ का निवास स्थान है जो अपने स्थूल शरीर को छोड़कर सूक्ष्म शरीर में विद्यमान हैं यह अपने सूक्ष्म शरीर से विचरण करते हैं लेकिन कभी कभी स्थूल शरीर भी धारण कर लेते हैं।

भारत की रहस्यमयी घटनाये योगी साधकों का क्या कहना है। शंगरी ला घाटी में प्रवेश करने वाले एक योगी साधक के अनुभव के अनुसार उस स्थान पर न तो सूरज  की रौशनी है और न चाँद की चांदनी वातावरण में एक दूधिया प्रकाश फैला हुआ है। 

कहा से आ रहा है इसका कुछ पता नहीं है। यह घाटी एक महान योगी की इच्छाशक्ति की वशीभूत है। इस घाटी के बारे में कहा जाता है की यहाँ कोई सामान्य साधक जा नहीं सकता और उच्च साधक भी अपनी इच्छा से इसे नहीं देख सकता।

समय समय पर कई पर्यटको, सैनिको, खोजकर्ताओं और लेखको ने अपने लेखों के द्वारा इस जगह के बारे में लिखा है। उन लोगो के अनुसार यह एक ऐसी दुनिया है जो रहस्य जादू और रोमांस से भरपूर है कई सारी किदवंतिया इस जगह के बारे में प्रचलित हैं। मगर इस जगह को पूरी तरह से समझने में हर इंसान नाकाम है।

*🌹

सोमवार, 28 जून 2021

दानवीर_भामाशाह_जैन (#ओसवाल)

दानवीर_भामाशाह_जैन

 (#ओसवाल२८जून१५४७)

 #४७४वीं_जयंती पर कोटि कोटि नमन🙏🙏


#वीर_भामाशाह #वीर_शिरोमणि_महाराणा_प्रताप के मित्र और प्रधान (#प्रधानमंत्री) थे..उनके पिता भारमल कावड़िया रणथंभौर के किलेदार थे..भामाशाह एक वीर योद्धा थे ..और उन्होंने अपने मित्र महाराणा प्रताप के साथ कई लड़ाइयाँ लड़ीं..उन्होंने मालवा.. मालपुरा और अन्य स्थानों जैसे मुगल क्षेत्रों में अभियानों का नेतृत्व किया.. अपनी खुद की बचत..चित्तौड़ के अतीत के छिपे हुए खजाने और मालवा की लूट से प्राप्त राशि से उन्होंने  महाराणा प्रताप को २५ लाख और २0,000 सोने के सिक्के भेंट किये.. चुलिया नामक जगह पर जिस से महाराणा प्रताप को आगे के मुगल साम्राज्य से लड़ने के संसाधन मिले...!!


जय राष्ट्रभक्त दानवीर भामाशाह जैन को कोटि कोटि नमन

                    साभार 

         Mahaveer S. Mewar

Rajputana-History & Culture

शुक्रवार, 18 जून 2021

खान पान के मुहवरे

 *हिंदी का थोडा़ आनंद लीजिए* ....

*मुुस्कुराइए*

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*हिंदी के मुहावरे, बड़े ही बावरे हैं,*

*खाने पीने की चीज़ों से भरे हैं...*

*कहीं पर फल हैं तो कहीं आटा-दालें हैं,*

*कहीं पर मिठाई है, कहीं पर मसाले हैं ,*


*चलो, फलों से ही शुरू कर लेते हैं,*

*एक-एक कर सबके मज़े लेते हैं...*


*आम के आम और गुठलियों के भी दाम मिलते हैं,*

*कभी अंगूर खट्टे हैं,*

*कभी खरबूजे, खरबूजे को देख कर रंग बदलते हैं,*

*कहीं दाल में काला है,*

*तो कहीं किसी की दाल ही नहीं गलती है,*

*कोई डेढ़ चावल की खिचड़ी पकाता है,*

*तो कोई लोहे के चने चबाता है,*

*कोई घर बैठा रोटियां तोड़ता है,*

*कोई दाल भात में मसूरचंद बन जाता है,*

*मुफलिसी में जब आटा गीला होता है,*

*तो आटे दाल का भाव मालूम पड़ जाता है,*

*सफलता के लिए कई पापड़ बेलने पड़ते हैं,*

*आटे में नमक तो चल जाता है,*

*पर गेंहू के साथ, घुन भी पिस जाता है,*

*अपना हाल तो बेहाल है, ये मुंह और मसूर की दाल है,*

*गुड़ खाते हैं और गुलगुले से परहेज करते हैं,*

*और कभी गुड़ का गोबर कर बैठते हैं,*

*कभी तिल का ताड़, कभी राई का पहाड़ बनता है,*

*कभी ऊँट के मुंह में जीरा है,*

*कभी कोई जले पर नमक छिड़कता है,*

*किसी के दांत दूध के हैं,*

*तो कई दूध के धुले हैं,*

*कोई जामुन के रंग सी चमड़ी पा के रोई है,*

*तो किसी की चमड़ी जैसे मैदे की लोई है,*

*किसी को छटी का दूध याद आ जाता है,*

*दूध का जला छाछ को भी फूंक फूंक पीता है,*

*और दूध का दूध और पानी का पानी हो जाता है,*

*शादी बूरे के लड्डू हैं, जिसने खाए वो भी पछताए,*

*और जिसने नहीं खाए, वो भी पछताते हैं,*

*पर शादी की बात सुन, मन में लड्डू फूटते है,*

*और शादी के बाद, दोनों हाथों में लड्डू आते हैं,*

*कोई जलेबी की तरह सीधा है, कोई टेढ़ी खीर है,*

*किसी के मुंह में घी शक्कर है,* *सबकी अपनी अपनी तकदीर है...*

*कभी कोई चाय-पानी करवाता है,*

*कोई मक्खन लगाता है*

*और जब छप्पर फाड़ कर कुछ मिलता है,*

*तो सभी के मुंह में पानी आ जाता है,*

*भाई साहब अब कुछ भी हो,*

*घी तो खिचड़ी में ही जाता है, जितने मुंह है, उतनी बातें हैं,*

*सब अपनी-अपनी बीन बजाते हैं,*

*पर नक्कारखाने में तूती की आवाज कौन सुनता है, सभी बहरे है, बावरें है ये सब हिंदी के मुहावरें हैं...*


*ये गज़ब मुहावरे नहीं बुजुर्गों के अनुभवों की खान हैं...*

*सच पूछो तो हिन्दी भाषा की जान हैं..!!*

💐💐💐

गुरुवार, 17 जून 2021

सेवा परमो धर्म :"

 "बात साल 1978 की है, 

जब जर्मनी की एक युवती भारत घूमने आई थी, उसके पिता भारत में जर्मनी के राजदूत थे। 

युवती का नाम फ्रेडरिक इरीना ब्रूनिंग था, 

जो देश के कई हिस्सों को घूमते हुए कृष्ण की धरती मथुरा वृंदावन पहुंच गई...


जहां  उसकी दुनियां बदल गई, 

नाम बदल गया, धर्म बदल गया, 

अब वो सुदेवी दासी के नाम से जानी जाती हैं। उनका एक और नाम भी है- 

‘‘हजार बछड़ों की मां।“ 


मथुरा में  गोवर्धन परिक्रमा करते हए 

राधा कुंड से कौन्हाई गाँव की तरफ 

आगे बढ़ने पर गाय-बछड़ों के 

रंभाने की आवाज आती है। 

यहां पर धुंधले अक्षरों में -

"सुरभि गौसेवा निकेतन" लिखा है। 


ये वही जगह है जहां इस  वक्त करीब 

2500 गाय और बछड़े रखे गए हैं। 

देश की दूसरी गोशालाओं से अलग 

यहां की गाय ज्यादातर विकलांग, 

चोटिल, अंधी, घायल और बेहद बीमार हैं। 

इस गोशाला  की संचालक सुदेवी दासी हैं। 


सुदेसी दासी 40 साल पहले 

टूरिस्ट वीजा पर भारत घूमने आईं थीं, 

फिर मथुरा में एक घायल गाय को देखकर 

वो उसे बचाने में जुट गईं। 

इसके बाद गोसेवा उनके जीवन का 

अभिन्न अंग हो गया। 

वो पिछले चार दशकों में 

हजारों गायों को नया जीवन दे चुकी हैं।

   

धर्म क्या है, यह इनसे जानिए...

आप लोगों ने पैसों के पीछे भागने वाले 

फिल्मी सितारों, नेताओं, 

खेल सेलिब्रिटी को शेयर करके 

बहुत फेमस किया। 

आइए सब मिलकर इनको भी प्रसिद्ध करते हैं! और इन्हें इनका उचित सम्मान दिलाते हैं !


🙏🙏 जय श्री राधे🙏🙏

🙏🙏जय श्री राधे कृष्णा🙏🙏

बुधवार, 16 जून 2021

मेरठ से पहले विद्रोह हरियाणा में हुआ- प्रो. पुनिया

आजादी का अमृत महोत्स संगोष्ठी में हरियाणा का योगदान 



मेरठ से पहले विद्रोह हरियाणा में हुआ- प्रो. पुनिया



महू (इंदौर). भारतीय स्वाधीनता संग्राम में हरियाणा का योगदान अप्रतिम रहा है. 1857 का पहला विद्रोह के लिए मेरठ का उल्लेख मिलता है जबकि मेरठ के पहले अंबाला में प्रथम विद्रोह हुआ था. इस विद्रोह में 50 अंग्रेजों को बंदी बना लिया गया था. यह बात प्रो. महासिंह पुनिया, निदेशक युवा एवं सांस्कृतिक प्रभाग कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय ने कही. प्रो. पुनिया आजादी के अमृत महोत्सव के तीसरे व्याख्यान में ‘प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में हरियाणा के योगदान विषय पर बोल रहे थे.’ यह आयोजन डॉ. बीआर अम्बेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय, हेरिटेज सोसायटी पटना एवं युवा एवं सांस्कृतिक प्रभाग कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय हरियाणा के संयुक्त तत्वावधान में किया गया था. प्रो. पुनिया ने कहा कि हरियाणा का गठन 1966 में हुआ है लेकिन भारतीय स्वाधीनता संग्राम के समय रियासतों में बसा हरियाणा का योगदान अमिट और अमूल्य है. उन्होंने 12 बड़ी लड़ाईयों का तथ्याों के साथ विवरण देकर बताया कि किस तरह अंग्रेजों को हरियाणा के लोगों ने परेशान कर दिया था. प्रो. पुनिया ने कहा कि इतिहास को पुन: लिखने की आवश्यकता है जिसका कार्य आरंभ कर दिया गया है. मधुबन में हरियाणा का पहला संग्रहालय बनाया गया है जहां 1857 के समय के दस्तावेज को रखा गया है. चार सौ करोड़ की लागत से शहीद स्मारक का निर्माण किया जा रहा है जहां स्वाधीनता संग्राम के विविध पहलुओं को संजोया जाएगा. कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय में भी स्थापित संग्रहालय की जानकारी दी. 

प्रो. पुनिया ने बताया कि अंग्रेजों की एक बड़ी परेशानी का कारण था कि हरियाणा हावी हो गया था तो दिल्ली की सत्ता पर खतरा हो सकता है. इसी डर में अंंग्रेजों ने बेरहमी से स्वाधीनता सेनानियों को दबाने की कोशिश की. आम आदमी में डर पैदा हो इसलिए पेड़ों पर, हवेलियों के दरवाजे पर सरेआम फांसी दी जाती थी. उन्होंने रोहणात का उल्लेख करते हुए कहा कि जिस तरह हम जलियांवाला बाग का स्मरण करते हैं, उसी तरह रोहणात के एक कुएं में स्वाधीनता सेनानियों को मारकर भर दिया गया था. एक अन्य घटना कउल्लेख करते हुए प्रो. पुनिया ने बताया कि सडक़ पर सेनानियोंं को रोडरोलर से कुचल दिया गया. पूरी सडक़ खून से रंग गई थी. आज उस सडक़ को लाल सडक़ के नाम से जानते हैं.  

कार्यक्रम की शुरुआत हेरीटेज सोसाईटी के महानिदेशक डा. अनंताशुतोश द्विवेदी के स्वागत भाषण से हुई. डा द्विवेदी ने  भारतीय स्वतन्त्रता आंदोलन के गुमनाम योद्धाओं के नामों  को बताने तथा  वैसे समस्त जीवित नायकों के बारे  में जानकारी उपलब्ध कराने  का निवेदन देश-दुनिया से देख रहे दर्शकों से किये.

कार्यक्रम अध्यक्ष प्रो. नीरू मिश्रा ने अमृत महोत्सव एवं विश्वविद्यालय के बारे में विस्तार से जानकारी दी. प्रो. मिश्र ने कहा कि राज्यपाल श्रीमती आनंदी बेन के मार्गदर्शन एवं कुलपति प्रो. आशा शुक्ला के अथक मेहनत से यह सब संभव हो पा रहा है. उन्होंने इस आयोजन के लिए हेरिटेज सोसायटी पटना एवं महानिदेशक श्री द्विवेदी के प्रति आभार व्यक्त किया. कार्यक्रम का संचालन श्री भरत भाटी ने किया. अकादमिक का संयोजन योगिक साइंस विभाग के शिक्षक श्री अजय दुबे ने किया. कार्यक्रम का संयोजन डीन प्रो. डीके वर्मा के मार्गदर्शन में हुआ और रजिस्ट्रार श्री अजय वर्मा एवं तथा  हेरीटेज सोसाईटी के समस्त  पदाधिकारियों एवं  शोधार्थियों  का  योगदान रहा. संगोष्ठी में विश्वविद्यालय के नेक कंसलटेंट एवं मीडिया प्रमुख डॉ. सुरेन्द्र पाठक तथा मीडिया प्रभारी मनोज कुमार ने संगोष्ठी में उपस्थित रहे.

वेदों की श्रम व्यवस्था / सुबोध कुमार

 सबसे पहले डॉ त्रिभुवन सिंह जी का ये स्वानुभव पढ़िये, मेरे पोस्टों में आप इसे पहले भी पढ़ चुके होंगे, लेकिन मुझे जो कहना है इस प्रसंग से उसमें कुछ सहायता मिल सकती है - 


आज से कई वर्ष पूर्व मैं प्रतापगढ़ के चिलबिला बाजार से सिल और लोढ़ा खरीदने के लिए सड़क के किनारे बने झुग्गी झोपड़ियों के सामने रुका।

एक व्यक्ति छेनी से एक सिल ( पत्थर) पर घन मार मार कर छोटे छोटे छेद या गड्ढा बना रहा था। मैने उससे सिल लोढ़ा खरीदने के बाद पूँछा कि भाई #कौन_जात हो ?

उसने बताया - साहब राजशिल्पी ।


मैने पूँछा कि सनातन वाला नहीं बताओ - सनातन सिस्टम खत्म हो गया है। सरकारी कास्ट बताओ। 

उसने बताया कि साहब - SC। 

वही आज दलित कहलाते हैं। 


मुस्लिम आक्रमण के बाद राजशिल्पी - राजगीर और राजमिस्त्री हो गया। 


ईसाइयन के जाते जाते वह सड़क किनारे वाला SC बन

 गया। 

1972 में वही दलित बन गया।


उसी के पूर्वजों की गौरवशाली परंपरा में बनीं अद्भुत शिल्प देखिये । 


धरम पाल जी ने भारत पर ब्रिटिश शासन के कारण हुए करोड़ो बेरोजगारों का वर्णन करते हुए, उनके बारे में भी लिखा जो कुछ ऐसे  भारतीय थे, जो सरकारी नौकरियों या अन्य कारणों से भौतिक रूप से अन्य भारतीयों की तुलना में अच्छी स्थिति में थे।

"प्रत्येक जिले में 200-400 ऐसे परिवार जिनका स्वयम् अपने उस समुदाय से भी कुछ लेना देना नही था, जिसकी सेवा करने के लिए उंनको वह नौकरी मिली थी। 

उन्होंने पूर्णतया पाश्चात्य जीवन पद्धति अपना लिया था।

1830 में वाइसराय बेंटिक उन सम्पन्न बंगाल के हिन्दू परिवारों के इस दृष्टिकोण और परिवर्तन से बहुत प्रसन्न था कि उन्होंने ब्राम्हणो को अन्नदान और मंदिरों में दान देना बंद कर दिया था।

बच्चों को भी समाज से दूर होस्टल में शिंक्षा दिलवाकर उनका विकास इस तरह से किय्या गया कि वे लोकल निवासियों से मिलना जुलना नागवार और असुविधाजनक लगता था। उनकी जिंदगी वास्तव बांझ और ऊसर है। 

(आज भी) यह वही लोग हैं जो पावर और सत्ता की ताकत अपने हाँथ में रखते हैं, लेकिन - उंनको कुछ भ्रांतिपूर्ण विचारों का प्रतिनिधि भर ही माना जा सकता है या जिनकी उपस्थिति जन सामान्य में एक भय का संचार पैदा करती है - स्वतंत्रता के बाद भी यह इससे कोई अन्य गहरा अर्थ नही पैदा कर पाए हैं। उन इलीट अधिकारियों के पक्ष में यह कहा जा सकता है कि उनकी जीवन पद्धति, जिन भद्दे घरों में वह रहते हैं, जितनी भी वैध या अवैध धन का उन्होंने संचय कर रखा है, किसी भी तरह वे किसी तरह के ईर्ष्या की पात्रता नही रखते। यहां तक कि प्रायः उसमे बहुधा harassed ( प्रताड़ित) और पथेटिक दिखते हैं, जो उस समाज की दया के पात्र हैं जो हमारी तरह अकिंचन और अव्यवस्थित नही था"।


यह लेखक का दृष्टिकोण उस वर्ग के बारे में आज से 50 वर्ष पूर्व था। 

आज हममें से बहुधा अनेक लोग उस स्थिति में होंगे जिनके बारे में लेखक ने लिखा है। 

✍🏻त्रिभुवन सिंह


ऋग्वेद 1.29 के अनुसार वैदिक शिक्षा पद्धति में कोई भी  व्यक्ति शिल्प शिक्षा विहीन नहीं  रहता था । जर्मनी की शिक्षा पद्धति में यह व्यवस्था आश्वस्त करती है कि कोई भी जर्मन नागरिक साधन इहीन और दरिद्र नहीं रहता , जैसा वैदिक काल में भारत देश में था । 

 

ऋषि: आजीर्गति: शुन: शेप: सकृत्रिम: विश्वामित्र: देवरात: = संसार के भोग विलास के कृत्रिम साधनों के अनुभवों के आधार पर विश्व के मित्र के समान देवताओं के मार्ग दर्शन कराने वाले ऋषि। 

देवता:- इंद्र: 

छंद: पंक्ति: 

ध्रुव पंक्ति; आ तू न॑ इन्द्र शंसय॒ गोष्वश्वे॑षु शु॒भ्रिषु॑ स॒हस्रे॑षु तुवीमघ

Veterinary & skill development, education 

1.यच्चि॒द्धि स॑त्य सोमपा अनाश॒स्ताइ॑व॒ स्मसि॑।

आ तू न॑ इन्द्र शंसय॒ गोष्वश्वे॑षु शु॒भ्रिषु॑ स॒हस्रे॑षु तुवीमघ॥RV1.29.1॥

1. राष्ट्र में उपयुक्त धन, भौतिक, आर्थिक साधनों, और शिक्षकों की व्यवस्था से गौ अश्वादि लाभकारी पशुओं के सम्वर्द्धन, उनके पालन और अन्य शिल्प इत्यादि के बारे में विस्तृत प्रशिक्षण की व्यवस्था करो । ऋ1.29.1

स्त्रियों का गोपालन में योगदान 

2. शिप्रि॑न् वाजानां पते॒ शची॑व॒स्तव॑ दं॒सना॑।

आ तू न॑ इन्द्र शंसय॒ गोष्वश्वे॑षु शु॒भ्रिषु॑ स॒हस्रे॑षु तुवीमघ॥ RV1.29.2॥

2.  [शिप्रिन्‌] ज्ञान से युक्त स्त्री [शचीव: तव] तुम अत्यंत कार्यकुशल [वाजानाम्‌ पते] बड़ी बड़ी कठिन समस्याओं से निपटने के लिए [दंसना] शिक्षा का उपदेश दे कर, गौ अश्वादि लाभकारी पशुओं के सम्वर्द्धन, उनके पालन और अन्य शिल्प इत्यादि के बारे में विस्तृत प्रशिक्षण की व्यवस्था करो ।( गौ इत्यादि पशुओं के प्रजनन के समय स्त्री जाति का दायित्व अधिक वांछित माना  जाता है और तर्क सिद्ध भी है । )ऋ1.29.2

शूद्रों का योगदान 

3. नि ष्वा॑पया मिथू॒दृशा॑ स॒स्तामबु॑ध्यमाने।

आ तू न॑ इन्द्र शंसय॒ गोष्वश्वे॑षु शु॒भ्रिषु॑ स॒हस्रे॑षु तुवीमघ॥ RV1.29.3॥

3.[मिथूदृशा] विषयासक्त और[अबुध्यमाने] अपने ज्ञान को न बढ़ाने वाले [सस्ता] आलसी सोते रहने वाले जन अर्थात- शूद्र वृत्ति के जनों को गौ अश्वादि लाभकारी पशुओं के सम्वर्द्धन, उनके पालन और अन्य शिल्प इत्यादि के बारे में विस्तृत प्रशिक्षण की व्यवस्था करो । ऋ1.29.3

क्षत्रिय वृत्ति वालों का प्रशिक्षण

4. स॒सन्तु॒ त्या अरा॑तयो॒ बोध॑न्तु शूर रा॒तयः॑।

आ तू न॑ इन्द्र शंसय॒ गोष्वश्वे॑षु शु॒भ्रिषु॑ स॒हस्रे॑षु तुवीमघ॥ RV1.29.4॥

4.[अरातय: ससन्तु] समाजसेवा के लिए दान न देने की वृत्ति का विनाश होता है| [बोधन्तु शूर रातय:] उपयुक्त दान आदि धार्मिक कार्यों की पहचान से बाधाओं, सामाजिक शत्रुओं को नष्ट  करने की क्षमता उत्पन्न होती है |  गुण युक्त गौओं और अश्वों से निश्चित ही [गोषु] सत्य भाषण और शास्त्र और शिल्प विद्या की शिक्षा सहित वाक आदि इंद्रियों तथा [अश्वेषु] ऊर्जा और वेग से युक्त चारों ओर से अच्छे उत्तम सहस्रों साधनों से अनेक प्रकार की  प्रशंसनीय विद्या और धन से सम्पन्नता  प्राप्त होती है । ऋ1.29.4 

गर्दभ के समान कटु व्यर्थ शब्द बोलने वालों का प्रशिक्षण 

5. समि॑न्द्र गर्द॒भं मृ॑ण नु॒वन्तं॑ पा॒पया॑मु॒या।

आ तू न॑ इन्द्र शंसय॒ गोष्वश्वे॑षु शु॒भ्रिषु॑ स॒हस्रे॑षु तुवीमघ॥ RV1.29.5॥

5.[ गर्दभम्‌ अमूया] गर्दभ के समान कटु और व्यर्थ वचन बोलने वालों को [पापया नुवन्तम्‌] पापाचरण करने से सुधार कर , गौ अश्वादि लाभकारी पशुओं के सम्वर्द्धन, उनके पालन और अन्य शिल्प इत्यादि के बारे में विस्तृत प्रशिक्षण की व्यवस्था करो । ऋ1.29.5

जीवन में लक्ष्यहीन जनों का प्रशिक्षण 

6. पता॑ति कुण्डृ॒णाच्या॑ दू॒रं वातो॒ वना॒दधि॑।

आ तू न॑ इन्द्र शंसय॒ गोष्वश्वे॑षु शु॒भ्रिषु॑ स॒हस्रे॑षु तुवीमघ॥ RV1.29.6॥

6.[ कुन्डृणाच्य:] लक्ष्यहीन कुटिल गति से [पताति वात: वनात्‌] वनों से चलते हुए वायु के समान आचरण वाले जनों को भी गौ अश्वादि लाभकारी पशुओं के सम्वर्द्धन, उनके पालन और अन्य शिल्प इत्यादि के बारे में विस्तृत प्रशिक्षण की व्यवस्था करो । ऋ1.29.6

7.  सर्वं॑ परिक्रोशं ज॑हि ज॒म्भया॑ कृकदा॒श्व॑म्। 

आ तू न॑ इन्द्र शंसय॒ गोष्वश्वे॑षु शु॒भ्रिषु॑ स॒हस्रे॑षु तुवीमघ॥ RV1.29.7॥

7. [ सर्वं॑] सब को [परिक्रोशं कृकदा॒श्व॑म्] सब प्रकार से रुला कष्ट देने वाले [ज॑हि ज॒म्भया॑] जो हैं उन के ऐसे आचरण को नष्ट करके गौ अश्वादि लाभकारी पशुओं के सम्वर्द्धन, उनके पालन और अन्य शिल्प इत्यादि के बारे में विस्तृत प्रशिक्षण की व्यवस्था करो । ऋ1.29.7


भारतवर्ष में केवल 10 प्रतिशत ही श्रमिक ही संगठित क्षेत्र में काम कर रहे हैं। लेकिन श्रमिक संघों के प्रभाव से इन मात्र 10 प्रतिशत श्रमिकों ने भारत वर्ष की आर्थिक नस पकड़ रखी है। इन श्रमिक संघों के नेतृत्व में श्रमिकों के हितों की सुरक्षा के नाम पर श्रमिकों द्वारा हड़ताल, काम रोको, अनुशासनहीनता और हिंसा तोडफ़ोड़ का व्यवहार न्यायोचित बताया जाता है। राजनीतिक दल भी अपने स्वार्थ के लिए श्रमिक संघों को हिंसा-तोडफ़ोड़ के लिए प्रेरित करते हैं।


हमें यह जान कर आश्चर्य हो सकता है कि सारी दुनिया में श्रमिक संगठनों का जन्मदाता अमेरिका का पूंजीवाद है। पूंजीवाद में सर्वप्रथम सब उत्पादों कृषि,पशुपालन, उद्योगों का केंद्रीयकरण आरम्भ किया गया। एडम स्मिथ अपनी पुस्तक वेल्थ ऑफ नेशन में एक फैक्ट्री का उदाहरण देते हैं जिसमें उत्पाद की प्रक्रिया को अनेक छोटी-छोटी प्रक्रियाओं में तोड़ दिया गया है। प्रत्येक उत्पादक केवल अपने उत्पाद की प्रक्रिया के बारे में जानता है। इस प्रकार फैक्ट्री मालिक उत्पाद पर अपना वर्चस्व बनाता है। लेकिन कामगार के लिए इस प्रकार काम करना बहुत उबाऊ और तनावपूर्ण होता है। वहां के इन्हीं उद्योगपतियों द्वारा अपने स्वार्थ में किए गए श्रमिकों के शोषण और दुव्र्यवहार की प्रतिक्रिया ने श्रमिक संघों को जन्म दिया। हमारे देश के वामपंथी जो अपने को श्रमिकों का सर्वश्रेष्ठ हितैषी होने का दावा करते हैं, वे तो केवल अमेरिका की पूंजीवादी असमाजिक व्यवस्था से उत्पन्न परिस्थितियों के प्रतिक्रियावाद का ही भारतवर्ष की पुण्यभूमि में प्रसार कर रहे हैं, जो न देश के और न श्रमिकों के हित में है।


भारतवर्ष की प्राचीन सनातन परम्परा का आदर्श तो विश्व में समाजवाद का सर्वोच्च कीर्तिमान स्थापित करता है। व्यक्ति की उन्नति और समृद्धि को उसकी आर्थिक संपन्नता, दिखावटी भोगवादी जीवन शैली से नहीं मापा जाता। एक स्वस्थ मानसिकता, स्वस्थ शरीर, सादा जीवन, सब से बांट कर जीना भारतीय आदर्श माना जाता था। धनवान सरल तरीके से रहें। गांधी जी इसे स्वेच्छा से स्वीकार की गई गऱीबी कहते थे। यही भारतीय संस्कृति का आदर्श है।


भारतीय आदर्श सांस्कृतिक परम्परा के अनुसार एक व्यक्ति केवल अपने निकट परिवार के लोगों से ही नहीं, बल्कि पूरे समाज, सब जीव जन्तुओं और प्राकृतिक तत्वों के साथ एक जीवित संबंध के अनुभव से प्रेरित है। पूंजीवाद की भोगवादी भव्य जीवनशैली, धन के अभद्र प्रदर्शन से समाज में ईष्र्या से अव्यवस्था और हिंसा को जन्म देते हैं। अमीरों द्वारा खुद पर ही केवल अपने धन को खर्च करना पश्चिमी उपभोक्तावादी संस्कृति है। भारतीय आदर्श ईशा वास्यमिदँ सर्वं यत्किञ्च जगत्यं जगत के अनुसार तो मनुष्य अपने को केवल धन का संरक्षक समझें और अपनी आर्थिक समृद्धि को समाज के साथ साझा ,बांट कर, दान वृत्ति से जीना चाहिए। यही कारण है कि भारतीय समाज में प्राचीन काल से अपने धन को परमेश्वर की कृपा समझने की परम्परा रही है। वेदों ने इसी भाव को समाज में विकसित करने पर जोर दिया है। वेद के कई सूक्तों में इस प्रकार के निर्देश पाए जाते हैं। ऋग्वेद के प्रथम अध्याय का पाँचवाँ सूक्त इस पर ही केंद्रित है। यही सूक्त थोड़े परिवर्तन के साथ अथर्ववेद में भी आया है।


आओ, आप सब प्रशंसनीय गुणयुक्त कार्य करने में प्रवीण विद्वानों से मित्रभाव से सब मिल कर परस्पर स्नेहपूर्वक शिल्प विद्या को सिद्ध करने में, एकत्रित हों, इंद्र के गुणों का उपदेश करें और सुनें कि जिससे वह अच्छी रीति से सिद्ध की हुई शिल्प विद्या सब को प्रकट हो जाए और उससे तुम सब लोग के सभी प्रकार के सुख प्राप्त हों। ऋ. 1.5.1; अथर्व. 20.68.11

आकाश से लेकर पृथिवी तक के सब असंख्य पदार्थों के साधक अत्यंत उत्तम वरण करने योग्य सद्गुणों को रचने में समर्थ, परन्तु दुष्ट स्वभाव वाले जीवों के कर्मों के भोग के निमित्त और जीवमात्र को सुख दु:ख देने वाले पदार्थों के भौतिक गुणों का उपदेश करो। और जो सब प्रकार की विद्या से प्राप्त होने योग्य पदार्थों के निमित्त कार्य हैं, उन को उक्त विद्याओं से सब के उपकार के लिए यथायोग्य युक्त करो। ऋ. 1.5.2, अथर्व. 20.68.12


सब पदार्थ विद्याओं के ज्ञान के उपयोग से निश्चय ही सुख प्रदान करने के लिए उत्तम समृद्धि के धन अन्न और आवागमन के साधन प्राप्त होते हैं। ऋ. 1.5.3, अथर्व. 20.69.1

भौतिक पदार्थों और उनकी प्रक्रियाओं के सम्भावित दुष्परिणामों के रोकथाम के लिए सुरक्षा के साधनों का प्रचार करो। ऋ. 1.5.4 , अथर्व. 20.69.2

अनुसंधान के ज्ञान से उत्पन्न हो कर सुख समृद्धि के साधनों की नदियां बह चलती हैं। ऋ. 1.5.5, अथर्व. 20.69.3

संसार के पदार्थों के सुख को ग्रहण करने ले लिए विद्या आदि उत्तम ज्ञान से प्रेरित हो कर श्रेष्ठ अत्युत्तम कर्म करने वाले पूज्य जनों का अनुसरण करो। ऋ. 1.5.6, अथर्व. 20.69.4

जीवन को सुखदायी बनाने के लिए तुझमें उत्तम व्याख्यान से ज्ञान तथा प्रशिक्षण से अतितीक्ष्ण बुद्धि और कर्मठ प्रवृत्ति जागृत हो। ऋ. 1.5.7 , अथर्व. 20.69.5

उन्नति के लिए उत्तम ज्ञान और उपदेश की शिक्षा द्वारा तुम सैंकड़ों काम करने का यश प्राप्त करो। ऋ. 1.5.8, अथर्व. 20.69.6

संसार का समस्त भौतिक ज्ञान प्राप्त करके प्रकृति की असंख्य उपलब्धियों को सबके साथ बांट कर ग्रहण करो। ऋ. 1.5.9 , अथर्व. 20.69.7

राग, द्वेष, भेदभाव तथा स्वार्थ से प्रेरित हम अपनी वाणी और व्यवहार से किसी भी जीवधारी का शोषण और अहित न करें। ऋ. 1.5.10, अथर्व. 20.69.8


कौशल विकास

वेदों का आदेश है कि प्रत्येक व्यक्ति अपने कौशल को बढ़ाए। ऐश्वर्य की वृद्धि के लिए समाज का विभिन्न प्रकार के कार्यों के ज्ञान का सामथ्र्य बढ़ाया जाए और प्राकृतिक प्रतिभाओं का विकास हो। इस पर ऋग्वेद के नौवें अध्याय के 112वें सूक्त में काफी विवेचन मिलता है। वहाँ यह भी बताया गया है कि प्रत्येक व्यक्ति की प्रवृत्ति और रूचि भिन्न-भिन्न होती है, इसलिए उन्हें उनकी रूचि और प्रवृत्ति के अनुसार ही काम मिलना और करना चाहिए।


सभी मनुष्य भिन्न भिन्न प्रकृति के होते हैं। कोई शिल्पकार वस्तुओं के स्वरूप को सुधारने वाला बनना चाहता है; तो कोई वैद्य – भिषक बन कर प्राणियों के स्वास्थ्य मे सुधार लाना चाहता है; तो अन्य ज्ञान का विस्तार कर के समाज में दिव्यता की उपलब्धियों के लिए शिक्षा यज्ञादि अनुष्ठान कराना चाहता है। इन सब प्रकार की वृत्तियों के विकास के अवसर उपलब्ध कराने चाहिएं। ऐश्वर्य की वृद्धि के लिए समाज का विभिन्न प्रकार के कार्यों के ज्ञान का सामथ्र्य बढ़ाओ। ऋ. 9.112.1


भिन्न भिन्न जड़ी बूटियों, भिन्न भिन्न प्राणियों के अवयवों से अनेक ओषधियां प्राप्त होती हैं। इनके उपयोग के प्रशिक्षण तथा अनुसंधान के साधन उत्पन्न करो। खनिज पदार्थों इत्यादि से ज्ञान कौशल द्वारा धनोपार्जन सम्भव होता है। इन विषयों पर प्रशिक्षण अनुसंधान के साधन उपलब्ध कराओ। ऐश्वर्य की वृद्धि के लिए समाज का विभिन्न प्रकार के कार्यों के ज्ञान का सामथ्र्य बढ़ाओ। ऋ. 9.112.2


मैं संगीतज्ञ हूं, मेरे पिता वैद्य हैं, मेरी माता अनाज को पीसती है. हम सब इस समाज के पोषण में एक गौ की भांति अपना अपनाअपना योगदान करते हैं। ऋ. 9.112.3

साधारण व्यक्ति एक घोड़े की भान्ति एक संवेदनशील स्वामी की सेवा में अपना भार वहन करने में सन्तुष्ट है। अन्य व्यक्ति मित्र मंडली में बैठ कर हंसी मज़ाक में सुख पाता है। कोई अन्य व्यक्ति अधिक कामुक है और स्त्री सुख की अधिक इच्छा करता है।। ऐश्वर्य की वृद्धि के लिए सभी लोगों में समाज के विभिन्न प्रकार के कार्यों के ज्ञान का सामथ्र्य बढ़ाओ। ऋ. 9.112.4


वेद और सामाजिक दायित्व

ज्ञान-विज्ञान से समृद्धि आती है, परंतु यदि वह समृद्धि सुखदायक न हो तो, व्यर्थ ही है। इसलिए वेदों का स्पष्ट निर्देश है कि ज्ञान-विज्ञान और कौशल के विकास से हम समृद्धि तो प्राप्त करें परंतु उसे केवल अपने भोग के लिए प्रयोग न करें। उसका उपयोग अपने सामाजिक दायित्वों को पूरा करने में करें। आज शासन सीएसआर के द्वारा देश के व्यवसायी वर्ग को सामाजिक दायित्वों का निर्वहन करने के लिए बाध्य कर रहा है। वेद इसे बाध्यता नहीं, प्रेरणा द्वारा करवाने की बात कहते हैं। वे यह भी बताते हैं कि यदि हम अपने सामाजिक दायित्वों का निर्वहन नहीं करते हैं, तो समाज में न केवल अनाचार और हिंसा फैलती है, बल्कि उसके कारण हमारा जीवन भी अशांत हो जाता है। ऋग्वेद के दसवें अध्याय का 1155वाँ सूक्त इस बारे में निम्न निर्देश देता है।


स्वार्थ और दान न देने की वृत्ति को सदैव के लिए त्याग दो। कंजूस और स्वार्थी जनों को समाज में दरिद्रता से उत्पन्न गिरावट, कष्ट, दुर्दशा दिखाई नहीं देते। परंतु समाज के एक अंग की दुर्दशा और भुखमरी आक्रोश बन कर महामारी का रूप धारण कर के पूरे समाज को नष्ट करने की शक्ति बन जाती है और पूरे समाज को ले डूबती है। ऋ 10-155-1

अदानशीलता समाज में प्रतिभा विद्वत्ता की भ्रूणहत्या करने वाली सिद्ध होती है। तेजस्वी धर्मानुसार अन्न और धन की व्यवस्था करने वाले राजा, परमेश्वर इस दान विरोधिनी संवेदना विहीन वृत्ति का कठोरता से नाश करें। ऋ 10-155-2


ऐसे स्वार्थी प्रजाजन इस संसार रूपी समुद्र में बिना किसी लक्ष्य के जल पर बहते काठ जैसे हैं। उस तत्व का सदुपयोग करके समाज के संकट को दूर करो। ऋ10-155-3

यह अलक्ष्मी एक लोहे के दाने छर्रे दागने वाली तोप जैसी है जो अनेक जनों को हिंसित करती है। इसके चलते शूरवीर जनों के सब प्रयास जल के बुलबुलों के समान नष्ट हो जाते हैं। ऋ10-155-4


समाज में अभावग्रस्त, दरिद्रता की आपदा से निपटने के लिए समस्त देवताओं द्वारा गौ को वापस ला कर, यज्ञाग्नि के द्वारा भिन्न भिन्न स्थानों पर स्थापित किया गया। गोपालन से प्राप्त पौष्टिकता और जैविक अन्न से प्राप्त समृद्धि को कौन पराभूत कर सकता है। ऋ 10-155-5


पूंजीवादी समाज में केवल अमीरी और अभद्र अमीर जीवन शैली के प्रदर्शन को ही आदर्श माना जाता है। भारतीय परम्परा में अपने स्वामी को एक कर्मचारी, भृत्य, सेवक अपने और अपने परिवार के दैनिक जीवन में दु:ख, सुख, प्रगति के लिए एक अभिभावक के रूप में देखता है। एम्पलॉयर शब्द का हिंदी में कोई पर्यायवाची नहीं है। वेदों के इन निर्देशों का यदि देश का व्यवसायी वर्ग पालन करेगा, तो निश्चित है कि उनका विकास तो होगा ही, समाज भी समृद्ध, सुखी और प्रगतिशील बनेगा।

✍🏻आलेख: सुबोध कुमार,

साभार - भारतीय धरोहर

बालक का बलिदान

 एक बार महाराणा प्रताप पुंगा की पहाड़ी बस्ती में रुके हुए थे । बस्ती के भील बारी-बारी से प्रतिदिन राणा प्रताप के लिए भोजन पहुँचाया करते थे।


इसी कड़ी में आज दुद्धा की बारी थी। लेकिन उसके घर में अन्न का दाना भी नहीं था।


 दुद्धा की मांँ पड़ोस से आटा मांँगकर ले आई और रोटियाँ बनाकर दुद्धा को देते हुए बोली,

 "ले! यह पोटली महाराणा को दे आ ।"


दुद्धा ने खुशी-खुशी पोटली उठाई और पहाड़ी पर दौड़ते-भागते रास्ता नापने लगा । 


घेराबंदी किए बैठे अकबर के सैनिकों को दुद्धा को देखकर शंका हुई।


एक ने आवाज लगाकर पूछा:


"क्यों रे ! इतनी जल्दी-जल्दी कहाँ भागा जा रहा है ?"


दुद्धा ने बिना कोई जवाब दिये, अपनी चाल बढ़ा दी।  मुगल सैनिक उसे पकड़ने के लिये उसके पीछे भागने लगा, लेकिन उस चपल-चंचल बालक का पीछा वह जिरह-बख्तर में कसा सैनिक नहीं कर पा रहा था । 


दौड़ते-दौड़ते वह एक चट्टान से टकराया और गिर पड़ा, इस क्रोध में उसने अपनी तलवार चला दी । 


तलवार के वार से बालक की नन्हीं कलाई कटकर गिर गई । खून फूट कर बह निकला, लेकिन उस बालक का जिगर देखिये, नीचे गिर पड़ी रोटी की पोटली उसने दूसरे हाथ से उठाई और फिर सरपट दौड़ने लगा. बस, उसे तो एक ही धुन थी - कैसे भी करके राणा तक रोटियाँ पहुँचानी हैं। 


रक्त बहुत बह चुका था , अब दुद्धा की आँखों के आगे अँधेरा छाने लगा।


उसने चाल और तेज कर दी, जंगल की झाड़ियों में गायब हो गया ।  सैनिक हक्के-बक्के रह गये कि कौन था यह बालक?


जिस गुफा में राणा परिवार समेत थे, वहांँ पहुंँचकर दुद्धा चकराकर गिर पड़ा।

उसने एक बार और शक्ति बटोरी और आवाज लगा दी --


"राणाजी !"

आवाज सुनकर महाराणा बाहर आये, एक कटी कलाई और एक हाथ में रोटी की पोटली लिये खून से लथपथ 12 साल का बालक युद्धभूमि के किसी भैरव से कम नहीं लग रहा था । 


राणा ने उसका सिर गोद में ले लिया और पानी के छींटे मारकर होश में ले आए , टूटे शब्दों में दुद्धा ने इतना ही कहा-


"राणाजी ! ...ये... रोटियाँ... मांँ ने.. भेजी हैं ।"


फौलादी प्रण और तन वाले राणा की आंँखों से शोक का झरना फूट पड़ा। वह बस इतना ही कह सके, 


"बेटा, तुम्हें इतने बड़े संकट में पड़ने की कहा जरूरत थी ? "


वीर दुद्धा ने कहा - "अन्नदाता!.... आप तो पूरे परिवार के साथ... संकट में हैं .... माँ कहती है आप चाहते तो अकबर से समझौता कर आराम से रह सकते थे..... पर आपने धर्म और संस्कृति रक्षा के लिये... कितना बड़ा.... त्याग किया उसके आगे मेरा त्याग तो कुछ नही है..... ।"

 

इतना कह कर वीरगति को प्राप्त हो गया दुद्धा । 


राणा जी की आँखों मेंं आंँसू थे ।  मन में कहने लगे ....

"धन्य है तेरी देशभक्ति, तू अमर रहेगा, मेरे बालक। तू अमर रहेगा।"


अरावली की चट्टानों पर वीरता की यह कहानी आज भी देशभक्ति का उदाहरण बनकर बिखरी हुई है।


क्षत्रिय होना गर्व है ।

मंगलवार, 15 जून 2021

बटुकभैरव मंत्र, कवच व प्रयोग,..🌹🌹

 😇 में हनुमानजी के अलावा भैरव ही एकमात्र ऐसे देव हैं जिनकी पूजा तुरंत फल देती है। अगर सच्चे मन से उनकी पूजा की जाए तो वो अपने भक्तों की इच्छा पूरी करने में क्षण भर भी देर नहीं करते हैं।


विशेष तौर पर यदि भैरवाष्टमी या अष्टमी के दिन तंत्र प्रयोग किए जाए या भगवान कालभैरव के मंत्रों का प्रयोग किया जाए तो निश्चित ही हर इच्छा पूरी होती है।

पुराणों में वर्णित कथाओं के अनुसार एक बार भगवान विष्णु और भगवान ब्रह्मा के बीच विवाद छिड़ गया कि उनमे से श्रेष्ठ कौन है? यह विवाद इतना अधिक बढ़ गया कि सभी देवता घबरा गए. उन्हें डर था कि दोनों देवताओं के बीच युद्ध ना छिड़ जाए और प्रलय ना आ जाए. सभी देवता घबराकर भगवन शिव के पास चल गए और उनसे समाधान ढूंढऩे का निवेदन किया. जिसके बाद भगवान शंकर ने एक सभा का आयोजन किया जिसमें भगवान शिव ने सभी ज्ञानी, ऋषि-मुनि, सिद्ध संत आदि और साथ में विष्णु और ब्रह्मा जी को भी आमंत्रित किया.

इस सभा में निर्णय लिया गया कि सभी देवताओं में भगवान शिव श्रेष्ठ है. इस निर्णय को सभी देवताओं समेत भगवान विष्णु ने भी स्वीकार कर लिया. ब्रह्मा ने इस फैसले को मानने से इनकार कर दिया. वे भरी सभा में भगवान शिव का अपमान करने लगे. भगवान शंकर इस तरह से अपना अपमान सह ना सके और उन्होंने रौद्र रूप धारण कर लिया.


भगवान शंकर प्रलय के रूप में नजर आने लगे और उनका रौद्र रूप देखकर तीनों लोक भयभीत हो गए. भगवान शिव के इसी रूद्र रूप से भगवान भैरव प्रकट हुए. वह श्वान (कुत्ते) पर सवार थे, उनके हाथ में एक दंड था और इसी कारण से भगवान शंकर को ‘दंडाधिपति भी कहा गया है. पुराणों के अनुसार भैरव जी का रूप अत्यंत भयंकर था. उन्होंने ब्रह्म देव के पांचवें सिर को काट दिया तब ब्रह्म देव को अपनी गलती का एहसास हुआ.


 भैरव की पूजा से मिलते हैं ये लाभ नारदपुराण के अनुसार भैरव की पूजा करने से मनुष्य की हर मनोकामना पूर्ण होती है। यदि मनुष्य किसी पुराने रोग से पीडि़त है तो वह रोग, दुख और तकलीफ भी दूर हो जाएगी।

यही नहीं यदि जीवन में शनि और राहु की बाधाएं आ रही हैं तो वह भी इनकी कृपा से दूर होगी। इनकी पूजा करने से डर से लडऩे की हिम्मत भी मिलती है। भैरवाष्टमी या कालाष्टमी के दिन पूजा उपासना द्वारा सभी शत्रुओं और पापी शक्तियों का नाश होता है और सभी प्रकार के पाप, ताप एवं कष्ट दूर हो जाते हैं.  भैरव देव जी के राजस, तामस एवं सात्विक तीनों प्रकार के साधना तंत्र प्राप्त होते हैं. भैरव साधना स्तंभन, वशीकरण, उच्चाटन और सम्मोहन जैसी तांत्रिक क्रियाओं के दुष्प्रभाव को नष्ट करने के लिए कि जाती है. इनकी साधना करने से सभी प्रकार की तांत्रिक क्रियाओं के प्रभाव नष्ट हो जाते हैं भैरव आराधना से शत्रु से मुक्ति, संकट, कोर्ट-कचहरी के मुकदमों में विजय प्राप्त होती है, व्यक्ति में साहस का संचार होता है. इनकी आराधना से ही शनि का प्रकोप शांत होता है, रविवार और मंगलवार के दिन इनकी पूजा बहुत फलदायी है. भैरव साधना और आराधना से पूर्व अनैतिक कृत्य आदि से दूर रहना चाहिए पवित्र होकर ही सात्विक आराधना की जाती है तभी फलदायक होती है. भैरव तंत्र में भैरव पद या भैरवी पद प्राप्त करने के लिए भगवान शिव ने देवी के समक्ष अनेक विधियों का उल्लेख किया जिनके माध्यम से उक्त अवस्था को प्राप्त हुआ जा सकता है. भैरव जी शिव और दुर्गा के भक्त हैं व इनका चरित्र बहुत ही सौम्य, सात्विक और साहसिक माना गया है न की डर उत्पन्न करने वाला इनका कार्य है सुरक्षा करना और कमजोरों को साहस देना व समाज को सही मार्ग देना. 


1)-लोहबान, गूगल, कपूर, तुलसी, नीम, सरसों के पत्ते मिक्स करके सुबह-शाम घर में धूनी दें।


2)-भैरू जी के मंदिर में इमरती व मदिरा का भोग लगाएं।


3)-भैरू मंदिर में उड़द व सिद्ध एकाक्षी श्रीफल भैरू बाबा के समक्ष मन्नत मांग कर चढ़ाएं।


4)-काले कुत्ते को इमरती खिलाएं व कच्चा दूध पिलाएं।


5)-शुभ कामों में बार-बार बाधा आती हो या विलम्ब होता हो तो रविवार के दिन भैरों जी के मंदिर में सिंदूर का चोला चढ़ाएं और बटुक भैरव स्तोत्र का एक पाठ करें।


6)-महाकाल भैरव मंदिर में चढ़ाए गए काले धागे को गले या बाजू में बांधने से भूत-प्रेत और जादू-टोने का असर नहीं होता।वो मत्रित्र होना चाहिये


7)-रोली, सिन्दूर, रक्तचन्दन का चूर्ण, लाल फूल, गुड़, उड़द का बड़ा, धान का लावा, ईख का रस, तिल का तेल, लोहबान, लाल वस्त्र, भुना केला, सरसों का तेल भैरव जी की प्रिय वस्तुएं हैं। इन्हें भैरव जी पर अर्पित करने से मुंह मांगा फल प्राप्त किया जा सकता है।


8)-प्रतिदिन भैरव मंदिर की आठ बार प्रदक्षिणा करने से पापों का नाश होता है।


9)-भगवान भैरव का वाहन कुत्ता है इसलिए कुत्ते की भी पूजा की जाती है। कहते हैं कि अगर कुत्ता काले रंग का हो तो पूजा का माहात्म्य और बढ़ जाता है। कुछ भक्त तो उसे प्रसन्न करने के लिए दूध पिलाते हैं और मिठाई खिलाते हैं।


सभी प्रकार की तंत्र बाधाओं के लिए ये प्रयोग है,.🌹🌹


अमावस्या, कृष्ण पक्ष मे अष्टमी/ त्रयोदशी/चतुर्दशी  या सावन माह की किसी भी रात्रि करें|

अपने सामने एक सूखा नारियल , एक कपूर की डली , 11 लौंग 11 इलायची, 1 डली लोबान या धुप रखें |

सरसों के तेल का दीपक जलाएं |

हाथ में नारियल लेकर अपनी मनोकामना बोलें | नारियल सामने रखें |

दक्षिण दिशा कीओर देखकर इस मन्त्र का 108 बार जाप करें |

अगले दिन जल प्रवाह करें । 


|| ॐ भ्रां भ्रीं भ्रूं भ्रः | ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रः |ख्रां ख्रीं ख्रूं ख्रः|घ्रां घ्रीं घ्रूं घ्र: | म्रां म्रीं म्रूं म्र: | म्रों म्रों म्रों म्रों | क्लों   क्लों क्लों क्लों |श्रों श्रों श्रों श्रों | ज्रों ज्रों  ज्रों ज्रों | हूँ हूँ हूँ हूँ| हूँ हूँ हूँ हूँ | फट | सर्वतो रक्ष रक्ष रक्ष रक्ष भैरव नाथ हूँ फट ||


श्री बटुक भैरव मंत्र,....🌹🌹🌹🌹


 ""ऊं ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरूकुरू बटुकाय ह्रीं""


बटुक भैरव कवच .......🌹🌹🌹🌹


ॐ सहस्त्रारे महाचक्रे कर्पूरधवले गुरुः ।


पातु मां बटुको देवो भैरवः सर्वकर्मसु ॥


पूर्वस्यामसितांगो मां दिशि रक्षतु सर्वदा ।


आग्नेयां च रुरुः पातु दक्षिणे चण्ड भैरवः ॥


नैॠत्यां क्रोधनः पातु उन्मत्तः पातु पश्चिमे ।


वायव्यां मां कपाली च नित्यं पायात् सुरेश्वरः ॥


भीषणो भैरवः पातु उत्तरास्यां तु सर्वदा ।


संहार भैरवः पायादीशान्यां च महेश्वरः ॥


ऊर्ध्वं पातु विधाता च पाताले नन्दको विभुः ।


सद्योजातस्तु मां पायात् सर्वतो देवसेवितः ॥


रामदेवो वनान्ते च वने घोरस्तथावतु ।


जले तत्पुरुषः पातु स्थले ईशान एव च ॥


डाकिनी पुत्रकः पातु पुत्रान् में सर्वतः प्रभुः ।


हाकिनी पुत्रकः पातु दारास्तु लाकिनी सुतः ॥


पातु शाकिनिका पुत्रः सैन्यं वै कालभैरवः ।


मालिनी पुत्रकः पातु पशूनश्वान् गंजास्तथा ॥


महाकालोऽवतु क्षेत्रं श्रियं मे सर्वतो गिरा ।


वाद्यम् वाद्यप्रियः पातु भैरवो नित्यसम्पदा ॥

                 ।।सम्पूर्ण।।


बाबा भैरवनाथ आपकी मनोकामना पूरी करें,..🌹🌹


,.🙏🙏..🌹🌹..जय श्री महाकाल..🌹🌹..🙏🙏


✍️ अखिलेश शिवहरे। 🙏

सोमवार, 14 जून 2021

रामायण के रोचक अनुपम तथ्य

 🏹रामचरित मानस के कुछ रोचक तथ्य🏹



1:~लंका में राम जी = 111 दिन रहे।

2:~लंका में सीताजी = 435 दिन रहीं।

3:~मानस में श्लोक संख्या = 27 है।

4:~मानस में चोपाई संख्या = 4608 है।

5:~मानस में दोहा संख्या = 1074 है।

6:~मानस में सोरठा संख्या = 207 है।

7:~मानस में छन्द संख्या = 86 है।


8:~सुग्रीव में बल था = 10000 हाथियों का।

9:~सीता रानी बनीं = 33वर्ष की उम्र में।

10:~मानस रचना के समय तुलसीदास की उम्र = 77 वर्ष थी।

11:~पुष्पक विमान की चाल = 400 मील/घण्टा थी।

12:~रामादल व रावण दल का युद्ध = 87 दिन चला।

13:~राम रावण युद्ध = 32 दिन चला।

14:~सेतु निर्माण = 5 दिन में हुआ।


15:~नलनील के पिता = विश्वकर्मा जी हैं।

16:~त्रिजटा के पिता = विभीषण हैं।


17:~विश्वामित्र राम को ले गए =10 दिन के लिए।

18:~राम ने रावण को सबसे पहले मारा था = 6 वर्ष की उम्र में।

19:~रावण को जिन्दा किया = सुखेन बेद ने नाभि में अमृत रखकर।


श्री राम के दादा परदादा का नाम क्या था?

नहीं तो जानिये-

1 - ब्रह्मा जी से मरीचि हुए,

2 - मरीचि के पुत्र कश्यप हुए,

3 - कश्यप के पुत्र विवस्वान थे,

4 - विवस्वान के वैवस्वत मनु हुए.वैवस्वत मनु के समय जल प्रलय हुआ था,

5 - वैवस्वतमनु के दस पुत्रों में से एक का नाम इक्ष्वाकु था, इक्ष्वाकु ने अयोध्या को अपनी राजधानी बनाया और इस प्रकार इक्ष्वाकु कुलकी स्थापना की |

6 - इक्ष्वाकु के पुत्र कुक्षि हुए,

7 - कुक्षि के पुत्र का नाम विकुक्षि था,

8 - विकुक्षि के पुत्र बाण हुए,

9 - बाण के पुत्र अनरण्य हुए,

10- अनरण्य से पृथु हुए,

11- पृथु से त्रिशंकु का जन्म हुआ,

12- त्रिशंकु के पुत्र धुंधुमार हुए,

13- धुन्धुमार के पुत्र का नाम युवनाश्व था,

14- युवनाश्व के पुत्र मान्धाता हुए,

15- मान्धाता से सुसन्धि का जन्म हुआ,

16- सुसन्धि के दो पुत्र हुए- ध्रुवसन्धि एवं प्रसेनजित,

17- ध्रुवसन्धि के पुत्र भरत हुए,

18- भरत के पुत्र असित हुए,

19- असित के पुत्र सगर हुए,

20- सगर के पुत्र का नाम असमंज था,

21- असमंज के पुत्र अंशुमान हुए,

22- अंशुमान के पुत्र दिलीप हुए,

23- दिलीप के पुत्र भगीरथ हुए, भागीरथ ने ही गंगा को पृथ्वी पर उतारा था.भागीरथ के पुत्र ककुत्स्थ थे |

24- ककुत्स्थ के पुत्र रघु हुए, रघु के अत्यंत तेजस्वी और पराक्रमी नरेश होने के कारण उनके बाद इस वंश का नाम रघुवंश हो गया, तब से श्री राम के कुल को रघु कुल भी कहा जाता है |

25- रघु के पुत्र प्रवृद्ध हुए,

26- प्रवृद्ध के पुत्र शंखण थे,

27- शंखण के पुत्र सुदर्शन हुए,

28- सुदर्शन के पुत्र का नाम अग्निवर्ण था,

29- अग्निवर्ण के पुत्र शीघ्रग हुए,

30- शीघ्रग के पुत्र मरु हुए,

31- मरु के पुत्र प्रशुश्रुक थे,

32- प्रशुश्रुक के पुत्र अम्बरीष हुए,

33- अम्बरीष के पुत्र का नाम नहुष था,

34- नहुष के पुत्र ययाति हुए,

35- ययाति के पुत्र नाभाग हुए,

36- नाभाग के पुत्र का नाम अज था,

37- अज के पुत्र दशरथ हुए,

38- दशरथ के चार पुत्र राम, भरत, लक्ष्मण तथा शत्रुघ्न हुए |

इस प्रकार ब्रह्मा की उन्चालिसवी (39) पीढ़ी में श्रीराम का जन्म हुआ | शेयर करे ताकि हर हिंदू इस जानकारी को जाने..।


यह जानकारी  महीनों के परिश्रम केबाद आपके सम्मुख प्रस्तुत है । 

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 #राम_चरित_मानस

शनिवार, 12 जून 2021

मानवाधिकार पर एक जरूरी किताब

 #अंतर्राष्ट्रीय_मानवाधिकार_दिवस के मौके पर एक जरूरी किताब 


🛑 #लहू_बोलता_भी_है_••••••••••


🔥 जंगे- आजादी-ए-हिन्द के मुस्लिम किरदार ~ सैय्यद शाहनवाज़ अहमद क़ादरी एवं कृष्ण कल्कि

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🔥 जंगे आज़ादी के इतिहास के साथ लगातार छेड़खानी की जाती रही है और अब तो समूचे इतिहास को ही तोड़ने मरोड़ने की कवायद तेजी पर है। क्या इस हकीकत को भी कभी मिटाया जा सकता है कि जंगे-आजादी मे हिन्दुस्तान का सारा आम अवाम शामिल था, वो हिन्दू हो मुसलमान, सिख हो या दूसरे अन्य लोग। आजादी का आन्दोलन किसी जाति, धर्म या खास वर्ग की बपौती नही रहा। हाँ इतिहास लेखन में एक खास तबके को लगातार नजरअंदाज करने की कोशिश की जाती रही है। उसी साजिश को बेनकाब करने के लिए सैय्यद शाहनवाज अहमद कादरी और कृष्ण कल्कि जैसे ईमानदार लेखकों ने 10-15 वर्षों की मेहनत के बाद जो खोज की है, वह इस किताब की शक्ल में एक जिंदा दस्तावेज है। अपने मुल्क की आजादी के असल इतिहास को जानने की जरूरत महसूस करने वाले हर शख्स को यह किताब जरूर पढ़ना चाहिए •••••।

● सर कटा दिया मगर ऐसा नही किया, 

हमने ज़मीरो- ज़र्फ़ का सौदा नही किया।


● इस किताब के शुरुआती पन्नों में #हिन्दी_के_खजान-ए-कुतुब_में_एक_बेशकीमती_इज़ाफ़ा शीर्षक से "पेश लफ़्ज" मे राज्य सभा के पूर्व सांसद #मौलाना_ओबैदुल्लाह_खान_आजमी उपरोक्त शेर के साथ कहते हैं कि ~ "यह किताब सन् 1857 से 1947 तक के जद्दोजहदे-आज़ादी-ए-हिन्द के सियासी ज़ायजे पर मुशतमिल है।••• "आज मुल्क का माहौल किसी से छुपा नहीं है। मुल्क की आजादी की जंग में जो फिरकापरस्त तंजीमें अंग्रेजों की मदद पेशो-पेश थीं, वह आज जब बरसरे- इक़तदार हुईं, तो उन्होंने मुल्क आजाद कराने वाले लाखों सरफ़रोश मुस्लिम मुजाहिद्दीन की कुर्बानियों को भुलाकर उनकी कुर्बानियों के औराक इतिहास को किताबों से हटाने की मुन्नज़म साजिशें शुरू कर दीं हैं और इस झूठ को सच मे बदलने के लिए मीडिया का सहारा लिया जा रहा है। मीडिया के जरिए मुसलमानों को मुल्क का गद्दार बताने की कोशिशें सरेआम की जा रहीं हैं। ऐसे माहौल का जवाब जुबानदराजी जुबानदराजी से नही दिया जा सकता है। इसका जवाब इस किताब में तहकीकात और हवालों के दस्तावेजी बुनियाद पर देते हुए क़ादरी साहब ने जंगे-आज़ादी के शहीदाने- वतन की एक ऐसी मीनार खड़ी कर दी है, जिसके मुकाबिल अब तक की पेश की गयी फेहरिस्तें बौनी साबित होंगी।

कातिल ने एहतियात से पोछे थे अपने हाथ,

उसको खबर न थी कि लहू बोलता भी है॥


📚 #यह_किताब_क्यों ~ लेखक #शाहनवाज_क़ादरी का बयान ••••


🔥 यह किताब लिखने की जरूरत इसलिए पड़ी कि अब अगर मुल्क की जंगे-आजादी की सच्चाई महफूज नहीं की गयी, तो आने वाली नस्लें हमे भी माफ नहीं करेंगी, क्योंकि मरकज़ी हुकूमत का निजाम नये हाथों में जाने के बाद से ही मुल्क की मीडिया के जरिए गैर- मामूली सवालों को देशभक्ति से जोड़कर एक खास तबके (मुसलमानों) को निशाना बनाया जा रहा है और दूसरी तरफ अकसरियती फिरके के नौजवानों के जेहन में नफरत का बीज बोया जा रहा है। इन हालात के असर सड़को पर दिखने भी लगे हैं ••••• ऐसे हालात में यह अंदाजा लगा लेना कोई मुश्किल नहीं है कि इसके पीछे जंगे-आजादी मे अपना सब कुछ कुर्बान कर देने वाले मुसलमानों की कुर्बानियों को तवारीख के सफों से मिटाकर कोई नयी फ्रब्रिकेटेड तवारीख लिखे जाने की तैयारी पूरी हो चुकी है। ••• मुझे यहाँ यह लिखने मे कोई शर्म नहीं महसूस हो रही है कि मुस्लिम राइटर भी इससे बरी नही हैं। ••••••••

♨️  मौजूदा दौर में जो लोग हुकूमत में हैं, उनकी इस मुल्क की आजादी के लिए चली सैकड़ों साल की जंग में कोई हिस्सेदारी नहीं है। इसके अलावा जो सियासी जमात करीब 70 साल में से अकेले 58 साल तक हुकूमत मे रही उसकी हिस्सेदारी व कुर्बानी तो है, लेकिन यह कहना भी सही नहीं है कि पूरी जंगे आजादी उसकी ही देन है। उसकी हिस्सेदारी सन 1885 के बाद शुरू होती है, जो सन 1945 तक आते-आते बहुमत की ताकत पर आंदोलन को जबरदस्ती हाईजैक कर लेती है और मुल्क आजाद होने के बाद इतिहास की किताबों में विरुदावली लिखवाई जाती है। 

● इसी मुल्क के कई सूबों में इमरजेंसी के दौरान साल या 2 साल की सजा पाए लोगों को ताउम्र गुजारा भत्ता दिया जा रहा है, लेकिन अफसोस कि सन 1857 के नायक बहादुर शाह जफर की तीसरी पीढ़ी कोलकाता व मुंबई की झोपड़पट्टी में आज भी जिंदगी गुजारने पर मजबूर है और उसकी फिक्र किसी को नहीं है। 

● •••••• दुनिया का नंगा सच है कि जिस किसी ने भी तवारीख मिटाने की कोशिश की वह खुद मिट गया, लेकिन तवारीख को किसी के भी छल कपट या जोर जुल्म से नहीं मिटाया जा सका ••••• इसलिए मैंने इस किताब में सिर्फ उन्हीं आंदोलनों पर रोशनी डाली है, जिसे या तो मुसलमानों ने चलाया या जिनमें उनकी बड़ी हिस्सेदारी रही है और सिर्फ आजादी के नजरअंदाज किए गए मुजाहिदों का ही जिक्र किया है।

⛳ आज वंदेमातरम् पर इतराने वाली जिस संस्था को राष्ट्रभक्त होने का घमंड है, उसी संस्था के लोगों ने सन् 1925 से 1947 तक वंदेमातरम् का नारा क्यों नहीं लगाया ? क्या अंग्रेजों से संस्था को कोई डर था या अंग्रेजों की वफादारी इसकी वजह थी ? 15 अगस्त सन 1947 को जब देश राष्ट्रीय झंडे का सम्मान कर रहा था, तब इस संस्था के लोगों ने राष्ट्रीय झंडे को पैरों तले रौंद कर क्या आग के वाले नहीं किया था ? क्या इस राष्ट्र भक्त संस्था के लोगों के जरिए महात्मा गांधी का कत्ल नहीं किया गया ? नौजवान नस्ल को इन सवालों का जवाब राष्ट्र भक्ति का दावा करने वालों से पूछना चाहिए कि 100 साल तक चली जंगे आजादी में देश भक्तों का दावा करने वालों, उनके पुरखे या उनकी तंजीमों की क्या हिस्सेदारी रही है ? और अगर नहीं, तो राष्ट्रभक्ति का सर्टिफिकेट देने का काम तुरंत बंद कर देना चाहिए। अगर आज की युवा पीढ़ी ने ऐसा नहीं किया, तो इस देश की मिट्टी उन्हें भी माफ नहीं करेगी। मगर अफसोस कि उन्ही लोगों के जरिए नौजवान नस्ल को आज यह बताने की नाकाम साजिश हो रही है कि इस मुल्क हिंदुस्तान में मुसलमानों का कुछ भी नहीं है। ••••• ऐसे माहौल में यह बताने की सख्त जरूरत है कि मुल्क की आजादी में वह मुस्लिम मुजाहिदीन की कुर्बानियां ही थीं, जिन्होंने अंग्रेजों को सन 1857 के बाद भी किसी पल चैन से हुकूमत नहीं करने दिया। 

● आज जरूरत है कि मुल्क की आजादी के इतिहास को हर भाषा में छपवा कर नौजवान नस्ल और आने वाली नस्ल को आगाह व खबरदार किया जाए कि यह मुल्क सब का है, किसी एक धर्म, जाति, पार्टी का नहीं है। नई नस्ल को मालूम होना चाहिए कि मादरे वतन के लिए लाखों मुस्लिम मुजाहिदीन ने किस तरह अपनी जान की बाजी लगाई और आज का हिंदुस्तान उन्हीं सरफरोश मुजाहिदीन और शहीदों की विशाल कुर्बानियों का फल है। 

●● इस किताब के जरिए मेरी यह कोशिश है कि हमारा मुल्क कौमी एकजहती, भाई चारे, मेल मिलाप और मुल्क में रहने वालों के तमाम मजाहिब का एहतराम करते हुए आगे बढ़े और तरक्की करे, जिसके ख्वाब हमारे शहीदाने वतन ने देखे थे। 


● दुआ करो कि सलामत रहे मेरी हिम्मत, 

यह एक चिराग कई आंधियों पर भारी है॥

🔥 #मुस्लिम_हिस्सेदारी_को_नजरअंदाज_करने_की_जेहनियत शीर्षक में 

इस किताब को लिखने की मंशा बताते हुए लेखक #कृष्ण_कल्कि का "कहना यह है कि ~~~ "तवारीख का सच गवाह है और इस किताब का हर सफा इस बाबत सबूत भी पेश करता है कि जंगे आजादी के दौरान मुसलमानों ने शुरू से लेकर आखिर तक बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया था। उनकी तब की आबादी के लिहाज से उनकी यह हिस्सेदारी मुल्क की दीगर कौमों की बनिस्बत सबसे ज्यादा थी, लेकिन तवारीख की किसी भी किताब में न तो उनकी हिस्सेदारी को माकूल जगह दी गई और न जान पर खेल जाने वाले उनके मुजाहिदीन को ही वैसी तादाद में तवज्जो दी गई।

● ऐसे मे यह किताब उनके लिए मशाल का काम करेगी, जिसकी रोशनी में वह जंगे आजादी की दीवार का वह बड़ा हिस्सा देख पायेंगे, जिस पर लिखी कुर्बानियों की इबारतों में उनके अजदाद का लहू भी शामिल है। वैसे तो यह किताब हर किसी के लिए है-  जो जंगे आजादी में सरफरोशी की हद तक शामिल रहे मुस्लिम किरदारों के बारे में जानना चाहे, ~~ लेकिन खासकर यह हर उस मुसलमान के लिए है, जो आजाद हिंदुस्तान में अपने वजूद और अपनी पहचान को बनाए- बचाए रखना चाहता हो~~। •••• यह किताब हर उस हिंदुस्तानी को आगाह करने के लिए भी खास है कि वह खुद देख सके कि सियासत- ज़दा ज़ेहनियत किस कदर सच को छुपाती या नजरअंदाज करती और कर सकती है ••••••।"

● #केप_टाउन ( दक्षिण अफ्रीका ) की #दल्लास_यूनिवर्सिटी के #मौलाना_अफरोज़_क़ादरी ने बड़े खुले लफ्जों मे कहा है कि ~ "तारीख के गलियारों का ज़रा एक फेरा लगाकर देखें, आप इस हकीकत को मानने पर मजबूर हो जाएँगे कि हिन्दुस्तान में फिरंगियों के खिलाफ पूरी दीदा- दिलेरी के साथ जिहाद का अगर फतवा दिया, तो मुसलमानों ने दिया और उस फतवे के बाद ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ जंगे-आजादी का आग़ाज किया, तो मुसलमानों ने किया; उनके खिलाफ असकरी जंग लड़ी, तो मुसलमानों ने लड़ी; तोपों के दहानों से बाँधकर उड़ाए गये, तो वे भी मुसलमान। फांसी के तख्तों पर ~ इन्कलाब- जिंदाबाद ~ का नारा बोलने वाले भी मुसलमान और बेचारगां जज़ीरे- अण्डमान को आबाद किया, तो वो भी मुसलमानों ने किया। •••••• एक मुहतात कोई 21000 उलमा- ए- इस्लाम और 5 लाख से ज्यादा मुस्लिम मुजाहिद्दीन ने अपनी कीमती जानों का नजराना पेश करके इस हिन्दुस्तान जन्नत- निशान को दौलते- आज़ादी से मालामाल किया था।••••• दुआ-गो हूँ कि क़ादरी साहब की यह किताब क़बूलियत और पज़ीराई हासिल करे••••।

●  #इतिहास_के_अन्याय_को_दुरुस्त_करना_समय_की_माँग" शीर्षक से प्रसिद्ध समाजवादी चिंतक #रघु_ठाकुर बताते हैं कि ~ " इतिहास मे जाति और धर्म के नाम पर काफी पक्षपात हुआ है। ••••• घोषित रूप से फ़िरकापरस्त जमातें तो पहचान ली जातीं हैं, परन्तु धर्मनिरपेक्षता का मुखौटा पहने छिपी हुई फ़िरकापरस्त ताकतें व लोग आमतौर पर पहचान मे नहीं आते।

● आंध्र प्रदेश के जाने-माने इतिहास लेखक #सैय्यद_नसीर_अहमद डंके की चोट पर कहते हैं कि ~ " मौजूदा दौर में वो लोग देशभक्ति की बात कर रहे हैं, जिनका जंगे-आजादी मे कहीं दूर दूर तक नामो-निशान तक नहीं था। क़ादरी साहब ने अपने रिसर्च के जरिए हवालों व वाक़यात की पुख्ता बुनियाद पर ऐसे नाम निहाद दावेदारों को बेनकाब करने का तवारीखी कारनामा अंजाम दिया है।•••••"

🔥  #जंगे_आज़ादी_के_गद्दारों_का_माकूल_जवाब ~ #लहू_बोलता_भी_है ~ शीर्षक में प्रो राजकुमार जैन की नजर बयान करती है कि ~ सवाल उठाया जा सकता है कि इन्होंने अपने पुरखों में मुसलमानों को ही क्यों चुना ? क्या  हिंदुओं और अन्य मजहबों के क्रांतिकारियों को ये अपना पुरखा नहीं मानते ? जिस तरह खूंखार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा जैसी जमाते मुसलमानों को वतन का गद्दार सिद्ध करने पर तुली हैं, तो कादरी क्या करते ? इसका जवाब देना इनकी मजबूरी थी। इन्होंने अपनी कलम से आजादी की जंग के गद्दारों को माकूल जवाब दिया है। आजादी के लिए लड़े गए जंग में महात्मा गाँधी के बाद खान अब्दुल गफ्फार खान की कुर्बानी के सामने कौन ठहर सकता है ? ••••• किताब में दिए इन 1233 इन्क्लाबियों पुरखों को ढूंढने और उनके कारनामों को जानने के लिए कितनी मुश्किलों का सामना कादरी भाई को करना पड़ा होगा, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है ? मुझे फख्र और पक्का यकीन है कि यह अपनी इस मुहिम को जारी रखते हुए इतिहास के गुमनाम शहीदों को खिराजे-अकीदत पेश करके समाजवादी रहवर अपने उस्ताद राज नारायण जी को सच्ची श्रद्धांजलि पेश करते रहेंगे।"

♨️ इस किताब में हजारों शहीदों का जिक्र हवालों के साथ दिया गया है और जंगे आजादी के हर उन पहलुओं पर रोशनी डाली गई है, जिसे आज की नौजवान नस्लें या तो जानतीं नहीं हैं या उन्हें वह दिखाया गया है, जो हकीकत से दूर है। नौजवान नस्लें इसे पढ़ें और नाम निहाद देशभक्ति का दावा करने वालों से पूछें कि जंगे आजादी की तवारीख में वो या उनकी जहनियत के पुरखे कहाँ थे ? और अगर नहीं थे, तो अब देशभक्ति का सार्टिफिकेट बांटने का काम बंद कर मुल्क में अमनो-अमान का माहौल पैदा करें। ( किताब का एक अंश )

● #कुर्बानियों_का_सिला~~~~~•

मुख़तलिफ जरायों और हवालों से जुटाए गये सबूतों के आधार पर किताब में बताया गया है कि ~ 

1~ सन 1857 से 1947 तक कुल 2 लाख 77 हजार मुसलमानों की गिरफ्तारी हुई थी। 

2 ~ सन 1857 की पहली जंगे-आजादी मे मुस्लिम मुजाहिद्दीन की सज़ा-ए-मौत और उम्र कैद की कुल तादाद तकरीबन 1 लाख थी।

3 ~ सन 1857 के दिसंबर तक दो जगहों पर अंग्रेजी फौज की गोलीबारी मे 2780 मुस्लिम मुजाहिद्दीन कैद थे।

● #जानें_और_खुद_फैसला_करें~~• 

"जिनकी कुर्बानियों की बदौलत हमारा मुल्क आजाद हुआ, हमारी सरकार उनके प्रति कितनी संवेदनशील है ~ जानें और खुद फैसला करें ~ 10 जून 2015 / 24 नवम्बर 2015 तथा 04 फरवरी 2016 को आर टी आई के जरिए भारत सरकार के गृह मंत्रालय से भारत के स्वतंत्रता संग्राम में सन 1857 से 1947 तक हिस्सा लेने वाले स्वतंत्रता सेनानियों की सूची माँगी गयी। गृह मंत्रालय का जवाब था कि ~ ऐसी कोई सूचना सरकारी अभिलेखों में नहीं है ( No such information is available in NZ sec )। बाद में संस्कृति मंत्रालय और मानव संसाधन विकास मंत्रालय से भी यही जवाब मिले। 

● इस तरह की तमाम हकीकत जानने के लिए इस किताब को जरूर पढें ~ ( अब उर्दू में भी ) कीमत केवल ₹ 600/ है। किताब पाने के लिए पता है ~ 36 कैन्ट रोड, कन्धारी लेन, लखनऊ 226001

+91 522 2627786 / 9415027807