शुक्रवार, 24 मार्च 2023

भोपाल रियासत

 भोपाल देश की इकलौती रियासत थी जिसे सौ साल से ज्यादा चार बेगमों  कुदसिया बेगम,सिकंदर बेगम, शाहजहां बेगम और सुलतान जहां बेगम ने चलाया,


भारत के संदर्भ में भोपाल रियासत वह पहला उदाहरण है जहां ‘बेगम’ ने शासन की बांगडोर अपने हाथ में सम्हाली थी। बात है 1819 ईस्वी की, जब भोपाल में पहली महिला शासक कुदेसिया बेगम ने तख्त सँभाला। उन्हें गौहर महल के नाम से भी जाना जाता है। कुदसिया बेगम की नज़र मुहम्मद खान नाम के एक सामंतवर्ग के व्यक्ति से शादी की,नजर मुहम्मद एक अफगान मूल के सैनिक थे लेकिन तरक्की करते हुए बहुत छोटी उम्र में भोपाल रियासत को हथिया लिया। 11 नवंबर 1819 का वह दुर्भाग्यपूर्ण दिन था, जब यह शाही परिवार शिकार करने के लिए अपने पड़ोसी इस्लामनगर गया। तब, कुदसिया बेगम के छोटे भाई, आठ साल के फौजदार मुहम्मद ने नज़र मुहम्मद की बेल्ट से एक पिस्तौल खींची और उसके साथ खेलना शुरू कर दिया। एक भयंकर दुर्घटना में, छोटे लड़के ने भोपाल के नवाब की हत्या कर दी। भोपाल पर तीन साल और पांच महीने तक शासन करने के बाद 28 साल की आयु में उनका निधन हो गया

बहुत बार भोपाल घिरा रहा सेना से लेकिन जीत नहीं पाए,तस्वीर में कुदसिया बेगम हैं जिन्होंने 1819 से 1837 तक भोपाल रियासत को संभाला,

भोपाल कई बार काफी समय तक मराठा या अन्य राजाओं की सेना से घिरा रहता था न कोई आ सकता था न जा सकता था,

आवश्यकता ही अविष्कार की जननी है,

भोपाली लोगों ने सुख्खड़ और टुकड़े की रेसिपी इजाद कर ली,शिकार के गोश्त को सुखा लेते थे,उसको लंबे समय तक खा सकते थे,सुख्खड़ उसी तरह के गोश्त की रेसिपी है जो अब गुम हो गई है,टुकड़े भी बासी रोटी के टुकड़ों को थोड़े गोश्त के साथ सालन की तरह बनाते थे जो अपने आप में पूर्ण भोजन होता था,

ये चारों बेगम भवन निर्माण और स्थापत्य कला में रुचि रखती थी,नारी को शिक्षा की हिमायती थी,सिर्फ सर ढंक कर उस समय भी आदमियों के बीच जाती थी,निडर बहादुर थी,अंग्रेज भी संभल कर बात करते थे,

इसलिए जलन के मारे उधर के मर्दों को गलत बोलते थे, कुत्सित मजाक उड़ाया करते थे,

इसको नपुंसक क्रोध या भड़ास निकालना कहते हैं,

चरित्र हनन,

वैसे अकबर बीरबल का भी ऐसा ही है,बीरबल बेहतरीन रण नीति बनाते थे,बेहतरीन कूटनीतिज्ञ थे इसलिए अकबर बीरबल की बात गौर से सुनते थे,एक उत्कृष्ट Negotiator थे,

कई मुस्लिम दरबारियों के ये बात अच्छी नहीं लगती थी,वो सोचते थे बादशाह को मुस्लिम विद्वानों की बात सुननी चाहिए,लेकिन अकबर बीरबल की बात इसलिए सुनते थे क्योंकि बीरबल बुद्धिमान थे,कई राज्यों के साथ संधि करवाने में उनकी बड़ी भूमिका होती थी,

इसलिए बीरबल के पीठ पीछे ईर्ष्यावश उनका मजाक उड़ाते थे,आज बीरबल को लोग एक मसखरा समझते हैं जबकि इस बात का हकीकत से कोई लेना देना नहीं,

बीरबल सेनापति भी थे,दस हजार सेना के साथ अफगानिस्तान जा रहे थे वहीं अफगानियों ने घेर कर मार दिया,कुछ ही लोग जिंदा बचे,

अकबर ने दो दिन खाना नहीं खाया,


इतिहास अलग होता है लेकिन एक गलत मान्यता बनते बनते जन सामान्य में सच बन जाती है,


- Amitabh Shukla