रविवार, 21 मार्च 2021

38 साल की उम्र में हुआ था मीना कुमारी का निधन

 आखिर क्यों #मीना_कुमारी की मौत पर नरगिस दत्त ने कहा था- 'मौत मुबारक हो', 



कुछ क्रिटिक्स ने तो मीना कुमारी को एक ऐसी एक्ट्रेस का तमगा दे दिया था, जिसकी तुलना किसी दूसरी अभिनेत्री से नहीं की जा सकती। मीना कुमारी ने अपने 33 साल के करियर में कुल 92 फिल्मों में काम किया था। उनके नाम और भी कई फिल्में हो सकती थीं, लेकिन उनकी निजी जिंदगी उनकी सफलता के आड़े आने लगी थी। आखिरकार, 31 मार्च 1972 को मीना कुमारी ने मात्र 38 साल की उम्र में इस दुनिया को अलविदा कह दिया था। कोमा में जाने के दो दिनों बाद ही मीना कुमारी का निधन हो गया था। उन दिनों अभिनेत्री नरगिस दत्त मीना कुमारी की बहुत अच्छी दोस्त हुआ करती थीं। कहा जाता है कि जब वे अपनी दोस्त मीना कुमारी के अंतिम संस्कार में पहुंची थीं, तब उनके मुंह से निकला था, “मीना कुमारी, मौत मुबारक हो!”। 


एक दिन उन्होंने मीना कुमारी को गार्डन में जोर-जोर से हांफते हुए देखा था, तब जाकर उन्हें उनकी बीमारी का पता चला था। इससे पहले नरगिस जानती तक नहीं थीं कि मीना कुमारी की तबीयत ठीक नहीं है। हालांकि, नरगिस दत्त को यह तो पता था कि उनकी निजी जिंदगी में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा था। उन्होंने कई बार मीना कुमारी के कमरे से चीखने-चिल्लाने की आवाजें सुनी थी।


  इस बारे में बताते हुए नरगिस दत्त ने लिखा था, “मैंने एक रात मीना कुमारी को गार्डन में हांफते हुए देखा। मैंने उनसे कहा कि आप आराम क्यों नहीं करतीं, आप बहुत थकी हुई दिख रही हैं”। इस पर मीना कुमारी कहती हैं, “बाजी, आराम करना मेरी किस्मत में नहीं है। मैं बस अब सीधे एक बार आराम करूंगी”। इसी रात मैंने मीना कुमारी के कमरे से मारपीट की आवाज़ सुनी। अगले दिन मैंने देखा कि उनकी आंखें सूजी हुई थीं। मैंने कमल अमरोही के सेक्रेटरी बकार से बात की और उनसे कहा कि आखिर वे लोग मीना को मारना क्यों चाहते हैं? मीना ने आप लोगों के लिए बहुत कुछ किया है। आगे वह आपके लिए कब तक करती रहेगी?”। सेक्रेटरी ने कहा, “जब सही समय आएगा, हम उन्हें आराम करने देंगे”।


इस आर्टिकल में नरगिस ने खुलासा किया था कि इस वाकये के बाद मीना कुमारी ने कमल अमरोही को तलाक दे दिया था, लेकिन इसके बाद वे शराब की लत में बुरी तरह डूब गई थीं। उन्हें शराब की लत इतनी ज्यादा हो गई थी कि इस वजह से उन्हें अस्पताल में भी भर्ती करना पड़ा था। वाकये को याद करते हुए नरगिस दत्त ने अपने आर्टिकल में लिखा था, “उस वाकये के बाद मैंने सुना कि वे कमल अमरोही का घर छोड़कर चली गई हैं। उनका बकार के साथ बड़ा झगड़ा हुआ था, जिसके बाद वे अपने पति कमल अमरोही के घर कभी नहीं गईं। बहुत जल्दी ही वे शराब की आदी हो गई थीं और ज्यादा शराब पीने से उनका लीवर कमजोर हो गया था। जब मैं नर्सिंग होम में उनसे मिलने पहुंची थीं तब मैंने कहा था कि अब वे आजाद हैं, लेकिन ऐसी आजादी का क्या फायदा जब आप खुद को मारने पर तुली हैं”.  


इस पर मीना ने कहा था, “बाजी, मेरे सहने की एक क्षमता है। कमल साहब के सेक्रेटरी की हिम्मत कैसे हुई कि उसने मुझ पर हाथ उठाया? जब मैंने कमल साहब से इसकी शिकायत की तो उन्होंने क्या किया, कुछ भी नहीं। अब मैंने सोच लिया है कि अब मैं उनके पास वापस कभी नहीं जाउंगी”। नरगिस ने अपने आर्टिकल में आगे लिखा था, “मीना कुमारी की तबीयत इतनी नाजुक थी कि डॉक्टर ने उन्हें ये तक कह दिया था कि अगर वे शराब को हाथ लगाती हैं तो उनकी जान तक जा सकती है। इसके बाद उन्होंने कुछ समय के लिए शराब पीना बंद कर दिया था और कुछ वक्त के लिए ठीक भी हो गई थीं। हालांकि, अभी भी उनकी सेहत चिंता का विषय थी। आखिरकार, उनकी आखिरी फिल्म ‘पाकीजा’ की रिलीज़ के बाद उन्हें एक बार फिर अस्पताल में भर्ती करना पड़ा, जहां कोमा में दो दिन रहने के बाद उनकी मृत्यु हो गई”। उस दिन को याद करते हुए नरगिस दत्त ने लिखा था, “वह कहा करती थीं- अकेला रहना ही मेरी किस्मत है। मुझे खुद पर दया नहीं आती और न ही तुम्हें आनी चाहिए”।

सुल्तान चौरसिया

 विरले #सांगी प. #सुल्तान #चौरासिया


संक्षिप्त जीवन परिचय:-

गंधर्व कवि प. लख्मीचंद की आँखों का तारा व उनके सांगीत बेड़े में उम्रभर #आहुति देने वाले सांग-#सम्राट *पं. सुल्तान* का जन्म 1918 ई0 को गांव- #रोहद, जिला- झज्जर (हरियाणा) के एक मध्यम वर्गीय 'चौरासिया #ब्राह्मण’ परिवार मे हुआ। इनके पिता का नाम पं. जोखिराम शर्मा व माता का नाम हंसकौर था और वे #कस्तूरी #देवी के साथ गाँव #सरूरपुर कलां, बागपत-उ.प. मे #वैवाहिक बंधन मे बंधे थे। #पंडित #सुल्तान #शैक्षिक तौर पर बिल्कुल ही अनपढ़ थे, परन्तु गीत-संगीत की लालसा तो उनमे बचपन से ही थी क्यूंकि वे अन्य लोगो की तरह #मित्र-दोस्तों के साथ चलते-फिरते #भजनों-गीतों की पंक्तियों को गुन-गुनाते रहते थे। उसके बाद बाल्यकाल पूर्ण होते-होते, उन्हें कर्णरस एवं गीत श्रवण की ऐसी ललक लगी कि अपने गाँव से भी वे #कोसों-मीलों दूर जाकर #सांगी-#भजनियों के #काव्य सार को अपने अन्दर समाहित करते रहे। फिर किशोरावस्था के दिनों मे पंडित सुल्तान जी के जीवन मे एक नए संगीत अध्याय के अंकुर फूटने लगे। फिर #सौभाग्य से उन दिनो किशोरायु सुल्तान के गाँव रोहद मे प. लख्मीचंद के सांगो का कार्यक्रम शुरू था और एक दिन #बालक सुल्तान शाम को प. लख्मीचंद का सांग सुनकर अगले दिन जब सुबह खेतों की ओर उसी सांग की रचनाओं को ऊँची #आवाज मे गा रहे थे तो संयोगवश प. लख्मीचंद भी उसी तरफ सुबह सुबह घुमने निकले हुए थे। इसलिए जब प. लख्मीचंद ने बालक सुल्तान की मनमोहक आवाज सुनी तो #आकर्षण के कारण बालक सुल्तान के पास ही पहुँच गए और प. लख्मीचंद जी ने दोबारा से बालक सुल्तान से वही भजन सुनाने को कहा, जो सुल्तान उस समय गा रहे थे। फिर सुल्तान ने जब वही #भजन दोबारा   प. लख्मीचंद वाली #लयदारी में गाया तो उनकी लय और स्मरण शक्ति को देखकर प. लख्मीचंद #अचंभित रह गए। फिर प. लख्मीचंद जी ने उस बालक से परिचय पूछने लगे। फिर बालक सुल्तान द्वारा अपना #परिचय देने पर प. लख्मीचंद उसी समय सुल्तान के साथ उसके घर जाकर उनके पिता #जोखिराम से मिले और कहाँ कि आज से आपका ये लड़का मेरे सांगीत बेड़े मे शामिल करने हेतु मुझको सौंपदो। फिर सुल्तान के पिता जोखिराम जी ने कहा कि ये लड़का मेरा क्या, आपका ही है, जब चाहे इसे अपने साथ ले जाओ। उसके बाद प. लख्मीचंद जी ने बालक सुल्तान को उसी दिन से अपने बेड़े मे शामिल कर लिया, क्यूंकि उस समय प. लख्मीचंद जी बालक सुल्तान के #गाँव मे ही #सांग कर रहे थे। फिर उसी दिन से प. लख्मीचंद जी ने बालक सुल्तान को अपना शिष्य बना लिया और अपने बेड़े मे शामिल कर उसको पारंगत कर दिया। फिर प. लख्मीचंद जी ने गुरु मन्त्र के रूप मे सुल्तान से कहा कि बेटा आज से अपने गाँव की बहन-बेटी को सम्मान देना और साधू-संतो व गौओ एवं गुरुओं के प्रति पूर्ण रूप से समर्पित रहना। उसके बाद प. सुल्तान ने गुरु मंत्र द्वारा पूरी निष्ठां एवं श्रद्धा से गुरु की सेवा करके गायन-कला मे प्रवीण होकर ही अपनी इस सतत साधना और संगीत की आत्मीय पिपासा को पूरा किया। इस प्रकार फिर गुरु लख्मीचंद के सत्संग से शिष्य सुल्तान अपनी संगीत, #गायन, वादन और अभिनय कला मे बहुत जल्द ही पारंगत हो गए। इस प्रकार प. सुल्तान शुरू से आखीर तक हमेशा गुरु लख्मीचंद के संगीत-बेड़े में रहे और अपनी गायन-उर्जा से गुरु के सांगीत बेड़े को जीवनभर प्रकाशमय करते रहे। 

वैसे तो पंडित सुल्तान भी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उनके घनिष्ठ प्रेमीयों एवं कला के कायल जन साधारण ने पंडित सुल्तान के संबंध मे कितना ही उचित कहा है कि जो पंडित सुल्तान को एक साधारण सांगी समझते है, वे अल्पबुद्धि जीव ही है। वे केवल एक सशक्त सांगी ही नहीं, अपितु एक सर्वश्रेष्ठ गुरुभक्त के साथ-साथ प्रभावी कवि भी थे। वे एक बहुत ही साधारण व्यक्तित्व के साथ-साथ एक अदभुत साहित्य एवं संगीत कला के, इस हरियाणवी लोक-साहित्य मे बहुत बड़े सहयोगी भी है, जो इस आधुनिक युग के सांगियों व कवियों के लिए एक बहुत बड़ी मिशाल है। पंडित सुल्तान गोरे रंग के साथ-साथ एक मध्यम कद-काठी के धनी थे और दूसरी तरफ इनकी वेशभूषा धोती-कुर्ता व साफा सुहावनी होने के साथ इनकी प्रतिभा को और भी प्रभावशली बनाती थी। इनका सादा जीवन व रहन-सहन ही बेशकीमती आभूषण था, जो इतने प्रतिभावान होते हुए भी साधुवाद की तरह जरा-सा भी अहम भाव नहीं था। उनका यह साधुवाद चरित्र उनके सांग मंचन मे हमेशा ही झलकता था। उन्होंने कभी सांगो का लेखन तो नहीं किया परन्तु गुरु प्रभाव के कारण बहुत सी फुटकड़ रचनाएँ जरुर की, जिनकी संख्या 50 से 100 के आसपास है। अब साक्ष्य के तौर पर उन्ही रचनाओं मे से प. सुल्तान की कुछ साहित्यिक झलक निम्न है –


*कहै सुल्तान मौज कर घर मै, मन-तन की ले काढ सेठाणी,*

*भाईयाँ की सू समझ रही सै, तेरी पर्वत जितनी आड़ सेठाणी,*

*तेरे हंस-हंस करल्यु लाड सेठाणी, मेरा सोया निमत फेर तै जाग्या,*

*पिया जी की शान देखके, जणू सूखे धाना म्य पाणी आग्या,*

                -(सांग-सेठ ताराचंद)-


*बात कहूँगी वाहे शुरू आली, भक्ति पार होई ध्रुव आली,*

*कहै सुल्तान म्हारे गुरु आली तूं वाहे चाल राखिये रे बेटा,*

*मतन्या काल राखिये रे बेटा, सासू क ख्याल रखिये रे बेटा,* 

*बेटा सुणता जा*

                -(सांग-सेठ ताराचंद)-


*लख्मीचंद का दास मनै, सुल्तान ज्यान तै प्यारा सै,*

*झूली-गाई नहीं मनै दुःख, तेरी ओड़ का भारया सै,* 

*जिसकी मारी फिरै भटकती, वो चाल बाग म्य आरया सै,* 

                -(सांग-पद्मावत)-


उसके बाद फिर उन्होंने प. लख्मीचंद के बेड़े मे रहकर बहुत से सामाजिक कार्य किये, जैसे -जोहड़ खुदवाने, धर्मशाला बनवाने, #गौशाला बनवाने, #स्कुल बनवाने आदि हेतु अनगिनित चंदा इकठ्ठा करके उनको सम्पूर्ण करवाके उम्रभर अपने संरक्षण मे रखना और प. लख्मीचंद जी ने अपने सांगो द्वारा #उम्रभर जितना चंदा इकठ्ठा किया, उसमे सबसे बड़ा हाथ किसी का था तो वो था शिष्य सुल्तान का। इसके अलावा साधू-संतो की सेवा मे उम्रभर जुटे रहे, जैसे- अपने हाथों से उनके #कपडे धोना, उनकी #जटाओं को निर्मल करना और आश्रमों मे गौ माताओ के लिए #परिश्रम करना।           

फिर सन 1945 के बाद गुरु #लख्मीचंद के पंचतत्व मे विलीन होने के समय से स्वयं के स्वर्ग सिधारने तक, उन्होंने उसी गुरु बेड़े के साथ सन् 1945 ई0 से 12 जुलाई, 1969 तक ताउम्र पंडित लख्मीचंद के सांगो का ही मंचन किया। प. सुल्तान ने अपने गुरु लख्मीचंद जी के जिन-जिन सांगो का उम्रभर ज्यादातर मंचन किया, वे निम्न मे इस प्रकार है- पूर्णमल, पद्मावत, राजा नल, शाही लकड़हारा, मीरा बाई, सेठ ताराचंद, राजा हरिश्चंद्र, चापसिंह-सोमवती, फूलसिंह-नौटंकी आदि।


संदीप कौशिक

🌹साहिर लुधियानवी

💎मैं ज़िन्दगी का साथ निभाता चला गया ..जयदेव

💎कभी खुद पे कभी हालात पे.... हमदोनो

💎ना मुह छुपा के जियो ...हमराज़

💎नीले गगन के तले ...हमराज़

"💎अल्लाह तेरो नाम ईश्वर तेरो नाम" (हम दोनो 1961),

 संगीतकार जयदेव

 💎आगे भी जाने न तू जो भी बस यही एक पल है 

 💎मैं हर एक पल का शायर हूँ खय्याम

 💎पल दोपल का साथ हमारा  खय्याम

"💎चलो एक बार फिर से अजनबी बन जायें" (गुमराह 1963), संगीतकार रवि

"💎मन रे तु काहे न धीर धरे" (चित्रलेखा 1964), 💎संगीतकार रोशन

💎"मैं पल दो पल का शायर हूं" (कभी कभी 1976), संगीतकार खय्याम

"💎यह दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है" (प्यासा 1957), संगीतकार एस डी बर्मन

💎ईश्वर अल्लाह तेरे नाम" (नया रास्ता 1970), संगीतकार एन दत्ता


साहिर लुधियानवी ने कॉलेज के दिनों में ही अपनी शायरी से लोगों का दिल जीत लिया था। कॉलेज में उनकी दोस्ती अमृता प्रीतम से हुई। अपने शेरों से दिल जीतने वाले साहिर लुधियानवी ने अमृता के दिल में वो जगह बनाई जिसे फिर कभी कोई और नहीं ले सका ।

मशहूर शायर एवं गीतकार साहिर लुधियानवी किसी पहचान के मोहताज नहीं है। उन्होंने हिंदी सिनेमा में एक से बढ़कर एक नगमे लिखे। साहिर की नज्में कई फिल्मों में गुनगुनाई गई, जो आज भी लोगों के जेहन में हैं। 1971 में साहिर लुधियानवी को पद्मश्री से नवाजा गया। साहिर लुधियानवी का जन्म लुधियाना में हुआ था। उन्होंने साहिर नाम खुद रखा था जिसका मतलब होता है जादूगर और चूंकि वह लुधियाना के रहने वाले थे इसलिए लुधियानवी नाम रखा। इस तरह उनका नाम साहिर लुधियानवी हो गया। साहिर के पिता एक धनी व्यक्तिथे, लेकिन उनके जीवन में माता-पिता दोनों का प्यार नहीं लिखा था। माता-पिता के अलगाव के बाद वो अपनी मां के साथ रहने लगे। मां के जीवन के दुख और संघर्ष ने साहिर के जीवन पर एक गहरी छाप छोड़ी। उनकी पढ़ाई-लिखाई लुधियाना में ही हुई। स्कूल की पढ़ाई लुधियाना के खालसा हाई स्कूल से और आगे की पढ़ाई 1939 में गवर्नमेंट कॉलेज से हुई।

साहिर लुधियानवी ने कॉलेज के दिनों में ही अपनी शायरी से लोगों का दिल जीत लिया था। कॉलेज में उनकी दोस्ती अमृता प्रीतम से हुई। अपने शेरों से दिल जीतने वाले साहिर लुधियानवी ने अमृता के दिल में वो जगह बनाई जिसे फिर कभी कोई और नहीं ले सका। अमृता प्रीतम का नाम साहित्य के क्षेत्र में स्वर्णाक्षरों में अंकित है। साहिर के लिए उनकी बेइंतहां मोहब्बत जगजाहिर है। लेकिन उनका प्रेम असफल रहा। अमृता के घरवालों को ये रास नहीं आया क्योंकि साहिर मुसलिम थे। बाद में अमृता के पिता के कहने पर उन्हें कॉलेज से निकाल दिया गया। साहिर लुधियनावी आजीवन अविवाहित रहे।

शायरी की पहली किताब 

कॉलेज छोड़ने के बाद साहिर लाहौर आ गए। 1943 में उनकी शायरी की पहली किताब ‘#तल्खियां’ प्रकाशित हुई। इस किताब से वे बहुत मशहूर हुए। 1945 में वे प्रसिद्ध उर्दू पत्र ‘अदब-ए-लतीफ’ और ‘शाहकार’ के संपादक बने। बाद में वे द्वैमासिक पत्रिका ‘सवेरा’ के भी संपादक बने और इस पत्रिका में उनकी एक रचना को सरकार के विरुद्ध समझे जाने के कारण पाकिस्तान सरकार ने उनके खिलाफ वारंट जारी कर दिया। इसके बाद 1949 में वे दिल्ली आ गए। दिल्ली में कुछ दिन गुजारने के बाद मुंबई आ गए, जहां वे उर्दू पत्रिका ‘शाहराह’ और ‘प्रीतलड़ी’ के संपादक बने।


फिल्मी गीतों का सफर 

1949 में साहिर लुधियानवी ने फिल्म ‘आजादी की राह’ के लिए पहली बार गीत लिखें। हालांकि उन्हें फिल्म ‘नौजवान’, जिसके संगीतकार सचिनदेव बर्मन थे, के लिए लिखे गीतों से लोकप्रियता मिली। बाद में साहिर ने कई फिल्मों के लिए गीत लिखे। इनमें ‘💎हमराज’, ‘💎वक्त’, ‘💎धूल का फूल’, ‘💎दाग’, ‘💎बहू बेगम’, ‘💎आदमी और इंसान’, 💎‘धुंध’, ‘💎प्यासा’ 💎 कभी कभी 💎 काला पत्थर 💐 दा बर्निंग ट्रेन जैसी अनेक फिल्मों के यादगार गीत शामिल हैं। कहा जाता है कि हिंदी फिल्मों के लिए लिखे उनके गानों में उनका व्यक्तित्व झलकता है। साहिर पहले ऐसे गीतकार थे, जिन्हें अपने गानों के लिए रॉयल्टी मिलती थी।


सुधा ने दी साहिर के गीतों को आवाज 

साहिर लुधियानवी ने अपनी शायरी और गीतों के जरिए इश्क को एक मुकम्मल आयाम दिया, लेकिन वे इश्क में नाकामयाब रहे। #अमृताप्रीतम के अलावा #सुधामलहोत्रा का नाम भी साहिर के साथ जोड़ा गया। वे एक बेहतरीन गायिका थीं। साहिर के कहने पर सुधा ने उनके लिखे कई गीतों को अपनी आवाज दी, जिनमें से एक है ‘तुम मुझे भूल भी जाओ तो हक है तुम को, मेरी बात और है…।’


सम्मान 

1963 में उन्हें फिल्म ‘💥#ताजमहल’ के लिए सर्वश्रेष्ठ गीतकार का फिल्मफेयर पुरस्कार मिला। 1976 में उन्हें एक बार फिर फिल्म ‘💥#कभीकभी’ के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 8 मार्च 2013 को उनके सम्मान में एक डाक टिकट भी जारी किया गया। 


💎💎 #पुण्यतिथि 🌺🌺

शनिवार, 20 मार्च 2021

मशहूर कॉमेडियन आगा की आग

 आज 21 मार्च को पुराने ज़माने के मशहूर कोमेडियन मरहूम आगा के जन्मदिन पर सादर नमन करते हुए उनकी फिल्मों से रफ़ी साहब के गाये हुए सदाबहार नग़मों की सूची पेश है...

*रफ़ी-आगा के सदाबहार नग़मे*

*संकलनकर्ता-संतोष कुमार मस्के*

*फ़िल्म-काली टोपी लाल रुमाल*

१)-

ओ काली टोपी वाले,तेरा नाम तो बता- *साथ आशा*

२)-

यारों का प्यार लिए,नख़रे हज़ार लिए- *साथ आशा*

३)-

गोरी ओढ़ के मलमल निकली हाये- *साथ लता*

४)-

लागी छूटे ना,अब तो सनम,चाहे जाए जियाँ,तेरी क़सम- *साथ लता*

५)-

दीवाना आदमी को बनाती है रोटियां,ख़ुद नाचती है सबको नचाती है रोटियां- *एकल*

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*फ़िल्म-इंसानियत*

६)-

जुल्म सहे ना,जुल्म करें ना,यही हमारा नारा है- *साथ लता*

७)-

मैं रावण लँका नरेश,मेरे दस दस शीश है- *साथ मन्नाडे*

८)-

मैं बंदर हूँ शहर का,तू बनमानुष जँगली- *एकल*

९)-

बोल जमूरे तेरा नाम,कभी लक्ष्मण कभी राम- *साथ सी रामचन्द्र*

१०)-

राजा बेटा बड़ा होके जाएगा स्कूल- *एकल*

११)-

अपनी छाया में भगवन बुला ले मुझे, मैं हूँ तेरा तू अपना बना ले मुझे- *एकल*

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*फ़िल्म-माया*

१२)-

सनम तू चल दिया रस्ता मेरे बिना,क्या मैं चल नहीं सकता रस्ता,तेरे बिना-  *एकल*

१३)-

जिंदगी है क्या,सुन मेरी जान- *एकल*

१४)-

कोई सोने के दिलवाला,कोई चाँदी सा मतवाला,शीशे सा है मन वाला मेरा दिल- *एकल*

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*फ़िल्म-बालम 1949*

१५)-

ठुकरा के हमे चल दिये,बेगाना समझ कर- *एकल*

१६)-

आता है जिंदगी में भला प्यार किस तरह- *साथ सुरैय्या*

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*फ़िल्म-नाँचे नागिन बाजे बिन*

१७)-

बीत गयी है आधी रात- *साथ लता*

१८)-

लेके सहारा तेरे प्यार का- *एकल*

१९)-

मैं हूँ गोरी नागन- *साथ लता*

२०)-

गोरी नागन बनके ना चला करे- *साथ सुमन कल्याणपुर*

२१)-

खड़ी रे खड़ी रे कब से देख राजा जानी- *साथ गीतादत्त*

२२)-

चले हो कहाँ सरकार- *साथ लता*

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*फ़िल्म-घराना*

२३)-

जय रघुनंदन जय सियाराम- *साथ आशा*

२४)-

ना देखो हो घूर घूर के जादूगर सैय्यां- *साथ आशा*

२५)-

हो गयी रे मैं तो अपने बलमा की हो गयी रे- *साथ आशा*

----- *संतोष कुमार मस्के-संकलन से* -----

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अभिनय के प्राण 👍 यानी प्राण

 अभिनय के प्राण  👍 


जब #प्राण ने #बॉबी फ़िल्म के लिए मात्र 1 रुपये ली फीस 💐💐

प्राण उसूलों वाले एक्‍टर थे। उनके लिए पर्दे पर चमकने से ज्‍यादा महत्‍व उनके जिंदगी के कायदे थे। यही कारण है कि प्राण ने एक्टर और डायरेक्टर #राजकपूर की फिल्म ‘बॉबी’ के लिए महज एक रुपये की फीस ली थी। दरअसल, राजकपूर ने अपनी सारी पूंजी फिल्म ‘#मेरा_नाम #जोकर’ पर लगा दी थी 

और वो फिल्म #बॉक्स_ऑफिस पर बुरी तरह से फ्लॉप हो गई थी। #आर्थिक दिक्‍कतों से जूझ रहे राजकपूर के लिए यह प्राण की दोस्‍ती थी, जो काम के आड़े नहीं आ सकती थी ..

प्राण ने खलनायकी को नया मुकाम दिया। जब वो पर्दे पर आते थे तो दर्शकों की आंखे बस उनपर ही टिक जाती थी।

प्राण (12 फ़रवरी 1920 - 12 जुलाई 2013) 

हिन्दी फ़िल्मों के एक प्रमुख चरित्र अभिनेता थे । इस भारतीय #अभिनेता ने हिन्दी सिनेमा में 1940 से 1990 के दशक तक दमदार खलनायक और नायक का अभिनय किया।

 उन्होंने 350 से अधिक फ़िल्मों में काम किया। उन्होंने खानदान (1942), और #हलाकू (1956) जैसी फ़िल्मों में मुख्य अभिनेता की भूमिका निभायी। उनका सर्वश्रेष्ठ अभिनय मधुमती (1958), जिस देश में गंगा बहती है (1960), उपकार (1967), शहीद (1965), आँसू बन गये फूल (1969), जॉनी मेरा नाम (1970), विक्टोरिया नम्बर २०३ (1972), बे-ईमान (1972), ज़ंजीर (1973), डॉन (1978) और दुनिया (1984) फ़िल्मों में माना जाता है।


प्राण ने अपने कैरियर के दौरान विभिन्न #पुरस्कार और #सम्मान अपने नाम किये। उन्होंने 1967, 1969 और 1972 में फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता पुरस्कार और 1997 में #फिल्मफेयर लाइफटाइम एचीवमेंट अवार्ड जीता। उन्हें सन् 2000 में स्टारडस्ट द्वारा 'मिलेनियम के #खलनायक' द्वारा पुरस्कृत किया गया। 2001 में भारत सरकार ने उन्हें #पद्म_भूषण से सम्मानित किया और भारतीय सिनेमा में योगदान के लिये 2013 में #दादा_साहब_फाल्के सम्मान से नवाजा गया।


#AND

#PRAN....💐💐

जन्मदिन पर विशेष 🌹

संजीव कुमार / खिलौना जानकर तुम...

 .अभिनय के जादूगर  संजीव कुमार


#संजीव_कुमार का महज 47 की #उम्र में साल 1984 में हार्ट अटैक से निधन हो गया था। संजीव कुमार को दो बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला। साल 1960 में आई फिल्म  '#हम_हिंदुस्तानी' संजीव कुमार की पहली #फिल्म थी। संजीव कुमार को हमेशा इस बात का डर रहता था कि वो जल्दी ही दुनिया को अलविदा कह देंगे इसके पीछे उनका एक #डर था जो उनके मन में बैठ गया था। 

दरअसल संजीव कुमार के घर सभी मर्दों ने 50 से कम उम्र में ही दुनिया को अलविदा कह दिया था ऐसे में संजीव कुमार को भी यही लगता था कि वो भी 50 से कम उम्र में ही दुनिया को #अलविदा कह देंगे। संजीव कुमार और #जया बच्चन की जोड़ी एक समय बहुत हिट रही। संजीव कुमार ही ऐसे एक्टर थे जिनके साथ जया ने पति से लेकर ससुर तक के रोल किए। जैसे फिल्म कोशिश में #पति का रोल, अनामिका में #प्रेमी का किरदार, शोले में #ससुर का रोल और सिलसिला में #भाई का रोल.

सूरत से बंबई आकर थिएटर के जरिए अपनी अदाकारी की पहचान बनाने वाले #हरिभाई #जरीवाला आज जिंदा होते तो 81 साल के होते। अपने करियर के बेहतरीन दौर में महज 47 साल की उम्र में टूटा दिल लेकर दुनिया से चले गए ...

 उनके निधन के आठ साल बाद तक फिल्म #निर्माता उनकी फिल्में रिलीज करते रहे। दुनिया भर में फैले भारतीय उन्हें आज भी #दमदार अदाकारी का #प्रतीक मानते हैं।”


💐💐

गुरुवार, 18 मार्च 2021

हर भूमिका मे माहिर राशिद खान

 चरित्र की पृष्ठभूमि चाहे ग्रामीण हो या शहरी, हास्य बोध से लबालब भरा उजला चरित्र हो या खलनायिकी के धुएँ के पीछे धुंधला सा दिखाई देता गहरे रंग का चरित्र हो, सहायक की भूमिका हो या एक मित्र की या एक दुश्मन की, शराफत की चाशनी में डूबा किरदार हो या बदमाशी की कड़वाहट ज़ुबान पर चढ़ाये रखने वाला किरदार हो, एक छोटे कद के दुबले पतले कलाकार ने नवकेतन फिल्म्स की फिल्मों और देव आनंद की बाहर की अन्य फिल्मों में देव साब का भरपूर साथ निभाया हिन्दी सिनेमा के पर्दे पर| देव साब की गजब की स्क्रीन प्रेजेंस के बावजूद तीखे नाक नक्श वाले कलाकार – राशिद खान, को दर्शकों ने हमेशा ही नोटिस किया होगा और वर्तमान दौर की दर्शकों की पीढ़ी भी जब जब देव आनंद की श्वेत श्याम फिल्में देखती होगी या देखेगी वह भी इस बात पर ध्यान जरूर देगी कि यह एक कलाकार देव साब की लगभग हर पुरानी फिल्म का हिस्सा है| बहुत से कलाकार का नाम भी खोजेंगे| 


राशिद खान नवकेतन फिल्म्स के इतने अहम हिस्सा बन गए थे और देव साब के नजदीकी साथी कि उनके देहांत पर देव साब ने अपनी उस वक्त बनाई जा रही फिल्म के शूटिंग रोक कर नवकेतन में अवकाश घोषित करके अपने साथी को श्रद्धांजलि दी थी| 


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बुधवार, 17 मार्च 2021

तलत महमूद-ग़ुलाम मोहब्बत के सदाबहार नग़मे*

 आज 17 मार्च को पुराने मशहूर संगीतकार मरहूम ग़ुलाम मोहम्मद साहब की पुण्यतिथि पर विनम्र अभिवादन करते हुये रफ़ी व लता के बाद तलत महमूद,सुरैय्या व सुमन कल्याणपुर के नग़मों की सूची पेशकी है../ -संतोष कुमार मस्के*

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*संकलनकर्ता-संतोष कुमार मस्के*

*फ़िल्म-मिर्ज़ा ग़ालिब*

१)-

दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है,आखिर इस दर्द की दुआं क्या है- *साथ मे सुरैय्या*

२)-

आह को चाहिए इक उम्र असर होने तक,कौन जीता है यहाँ पर सहर होने तक- *एकल*

३)-

फिर मुझे दीदा-ए-तर याद आया- *एकल*

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*फ़िल्म-लैला मजनूँ*

४)-

चल दिया कारवाँ,लूट गए तुम वहाँ,हम यहाँ- *एकल*

५)-

ओ आसमान वाले,तेरी दुनिया से जी घबरा गया- *साथ लता*

६)-

देख ली ऐ इश्क़ तेरी मेहरबानी- *साथ आशा*

७)-

बहारों की दुनिया पुकारे तू आजा- *साथ आशा*

८)-

भर दे झोली अल्ला नाम,बनेंगे तेरे बिगड़े काम- *साथ रफ़ी*

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*फ़िल्म-दिल-ए-नादाँ*

९)-

जिंदगी देने वाले सुन,तेरी दुनिया से जी भर गया,मैं अकेला यहाँ रह गया- *एकल*

१०)-

मोहब्बत की धुन बेकारों से पूछो- *साथ शमशाद व सुधा मल्होत्रा*

११)-

ये रात सुहानी रात नहीं,ऐ चाँद सितारों सो जाओ- *एकल*

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१२)-

किसी को बनाना,किसी को मिटाना- *शीशा* *एकल*

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*फ़िल्म-मालिक*

१३)-

जिंदगी की क़सम,हो चुके उनके हम- *एकल*

१४)-

मन धीरे-धीरे गाये रे,मालूम नहीं क्यों- *साथ सुरैय्या*

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*सुरैय्या के नग़मे*

१५)-

धड़कते दिल की तमन्ना हो मेरा प्यार हो तुम- *शमा* *एकल*

१६)-

आपसे प्यार हुआ जाता है- *शमा* *एकल*

१७)-

मेरे महबूब तुझे प्यार करूँ- *शमा* *साथ सुमन*

१८)-

रहिये ऐसी जगह चलकर जहाँ- *मिर्ज़ा ग़ालिब* *एकल*

१९)-

ये न थी हमारी के विसाल-ए-यार होता- *मिर्ज़ा ग़ालिब* *एकल*

२०)-

नुक़्ता ची है ग़मे दिल,के लुटाए न बने,क्या बने बात वहाँ, जहाँ के बात बनाये न बने- *मिर्ज़ा ग़ालिब* *एकल*

२१)-

हमने जाना कि तेरे बाद- *मिर्ज़ा ग़ालिब* *एकल*

२२)-

दिल की दुनिया उजड़ गयी और जाने वाले चले गए- *शायर* *एकल*

२३)-

हमे तुम भूल बैठे हो- *शायर* *एकल*

२४)-

क्या चीज़ है मोहब्बत,कोई मेरे दिल से पूछो- *शायर* *एकल*

२५)-

दुनिया के सितम का कोई,ओ क़िस्मत तेरी ही फुट गयी- *शायर* *एकल*

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*सुमन कल्याणपुर के नग़मे*

२६)-

दिल ग़म से जल रहा है पर धुआँ न हो- *शमा* *एकल*

२७)-

इंसाफ़ तेरा देखा,ऐ साक़ी-ए-मैखाना  *शमा* *एकल*

२८)-

यास के दर पे झुका जाता है सर,आज की रात- *शमा* *साथ रफ़ी*

२९)-

एक जुर्म करके हमने चाहा था मुस्कुराना- *शमा* *एकल*

३०)-

मेरे महबूब तुझे प्यार करूँ- *शमा* *एकल*

----- *संतोष कुमार मस्के-संकलन से* -----

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शनिवार, 13 मार्च 2021

नीरा आर्या की कहानी / प्रस्तुति - अम्मी शरण

 आजादी की एक झलक😭😭😭😭😭


इतनी यातनाएं दी गईं और नेहरू कहता है चरखा से आजादी मिली? नीरा आर्य की कहानी। जेल में जब मेरे स्तन काटे गए ! स्वाधीनता संग्राम की मार्मिक गाथा। एक बार अवश्य पढ़े, नीरा आर्य (१९०२ - १९९८) की संघर्ष पूर्ण जीवनी:


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नीरा आर्य का विवाह ब्रिटिश भारत में सीआईडी इंस्पेक्टर श्रीकांत जयरंजन दास के साथ हुआ था | नीरा ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जान बचाने के लिए अंग्रेजी सेना में अपने अफसर पति श्रीकांत जयरंजन दास की हत्या कर दी थी | 


नीरा ने अपनी एक आत्मकथा भी लिखी है | इस आत्म कथा का एक ह्रदयद्रावक अंश प्रस्तुत है -


5 मार्च 1902 को तत्कालीन संयुक्त प्रांत के खेकड़ा नगर में एक प्रतिष्ठित व्यापारी सेठ छज्जूमल के घर जन्मी नीरा आर्य आजाद हिन्द फौज में रानी झांसी रेजिमेंट की सिपाही थीं, जिन पर अंग्रेजी सरकार ने गुप्तचर होने का आरोप भी लगाया था। 


इन्हें नीरा ​नागिनी के नाम से भी जाना जाता है। इनके भाई बसंत कुमार भी आजाद हिन्द फौज में थे। इनके पिता सेठ छज्जूमल अपने समय के एक प्रतिष्ठित व्यापारी थे, जिनका व्यापार देशभर में फैला हुआ था। खासकर कलकत्ता में इनके पिताजी के व्यापार का मुख्य केंद्र था, इसलिए इनकी शिक्षा-दीक्षा कलकत्ता में ही हुई। 


नीरा नागिन और इनके भाई बसंत कुमार के जीवन पर कई लोक गायकों ने काव्य संग्रह एवं भजन भी लिखे | 1998 में इनका निधन हैदराबाद में हुआ।


नीरा आर्य का विवाह ब्रिटिश भारत में सीआईडी इंस्पेक्टर श्रीकांत जयरंजन दास के साथ हुआ था | 


नीरा ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जान बचाने के लिए अंग्रेजी सेना में अपने अफसर पति श्रीकांत जयरंजन दास की हत्या कर दी थी।


आजाद हिन्द फौज के समर्पण के बाद जब लाल किले में मुकदमा चला तो सभी बंदी सैनिकों को छोड़ दिया गया, लेकिन इन्हें पति की हत्या के आरोप में काले पानी की सजा हुई थी, जहां इन्हें घोर यातनाएं दी गई। 


आजादी के बाद इन्होंने फूल बेचकर जीवन यापन किया, लेकिन कोई भी सरकारी सहायता या पेंशन स्वीकार नहीं की।


नीरा ने अपनी एक आत्मकथा भी लिखी है | इस आत्म कथा का एक ह्रदयद्रावक अंश प्रस्तुत है - 

‘‘मैं जब कोलकाता जेल से अंडमान पहुंची, तो हमारे रहने का स्थान वे ही कोठरियाँ थीं, जिनमें अन्य महिला राजनैतिक अपराधी रही थी अथवा रहती थी।


 हमें रात के 10 बजे कोठरियों में बंद कर दिया गया और चटाई, कंबल आदि का नाम भी नहीं सुनाई पड़ा। मन में चिंता होती थी कि इस गहरे समुद्र में अज्ञात द्वीप में रहते स्वतंत्रता कैसे मिलेगी, जहाँ अभी तो ओढ़ने बिछाने का ध्यान छोड़ने की आवश्यकता आ पड़ी है?


 जैसे-तैसे जमीन पर ही लोट लगाई और नींद भी आ गई। लगभग 12 बजे एक पहरेदार दो कम्बल लेकर आया और बिना बोले-चाले ही ऊपर फेंककर चला गया। कंबलों का गिरना और नींद का टूटना भी एक साथ ही हुआ। बुरा तो लगा, परंतु कंबलों को पाकर संतोष भी आ ही गया। 


अब केवल वही एक लोहे के बंधन का कष्ट और रह-रहकर भारत माता से जुदा होने का ध्यान साथ में था।


‘‘सूर्य निकलते ही मुझको खिचड़ी मिली और लुहार भी आ गया। हाथ की सांकल काटते समय थोड़ा-सा चमड़ा भी काटा, परंतु पैरों में से आड़ी बेड़ी काटते समय, केवल दो-तीन बार हथौड़ी से पैरों की हड्डी को जाँचा कि कितनी पुष्ट है। 


मैंने एक बार दुःखी होकर कहा, ‘‘क्याअंधा है, जो पैर में मारता है?’’‘‘पैर क्या हम तो दिल में भी मार देंगे, क्या कर लोगी?’’ 


उसने मुझे कहा था।‘‘बंधन में हूँ तुम्हारे कर भी क्या सकती हूँ...’’ फिर मैंने उनके ऊपर थूक दिया था, ‘‘औरतों की इज्जत करना सीखो?’’


जेलर भी साथ थे, तो उसने कड़क आवाज में कहा, ‘‘तुम्हें छोड़ दिया जाएगा,यदि तुम बता दोगी कि तुम्हारे नेताजी सुभाष कहाँ हैं?’’


‘‘वे तो हवाई दुर्घटना में चल बसे,’’ मैंने जवाब दिया, ‘‘सारी दुनिया जानती है।’’


‘‘नेताजी जिंदा हैं....झूठ बोलती हो तुम कि वे हवाई दुर्घटना में मर गए?’’ जेलर ने कहा। 

‘‘हाँ नेताजी जिंदा हैं।’’


‘‘तो कहाँ हैं...।’’


‘‘मेरे दिल में जिंदा हैं वे।’’ 


जैसे ही मैंने कहा तो जेलर को गुस्सा आ गया था और बोले, ‘‘तो तुम्हारे दिल से हम नेताजी को निकाल देंगे।’’ और फिर उन्होंने मेरे आँचल पर ही हाथ डाल दिया और मेरी आँगी को फाड़ते हुए फिर लुहार की ओर संकेत किया...लुहार ने एक बड़ा सा जंबूड़ औजार जैसा फुलवारी में इधर-उधर बढ़ी हुई पत्तियाँ काटने के काम आता है, उस ब्रेस्ट रिपर को उठा लिया और मेरे दाएँ स्तन को उसमें दबाकर काटने चला था...लेकिन उसमें धार नहीं थी, ठूँठा था और उरोजों (स्तनों) को दबाकर असहनीय पीड़ा देते हुए दूसरी तरफ से जेलर ने मेरी गर्दन पकड़ते हुए कहा, ‘‘अगर फिर जबान लड़ाई तो तुम्हारे ये दोनों गुब्बारे छाती से अलग कर दिए जाएँगे...’’ 


उसने फिर चिमटानुमा हथियार मेरी नाक पर मारते हुए कहा, ‘‘शुक्र मानो महारानी विक्टोरिया का कि इसे आग से नहीं तपाया, आग से तपाया होता तो तुम्हारे दोनों स्तन पूरी तरह उखड़ जाते।’’ सलाम हैं ऐसे देश भक्त को। आजादी के बाद इन्होंने फूल बेचकर जीवन यापन किया, लेकिन कोई भी सरकारी सहायता या पेंशन स्वीकार नहीं की।


जय हिन्द, जय माँ भारती, वन्देमातरम !!!


पढ़ने के बाद ही रूह कांप जाती है जिन पर बीती होगी उसका दर्द वही जानते होंगे नमन हैं ऐसे क्रांतिवीरों को!

कुत्ते का न्याय:

 श्रीराम के शासन में न तो किसी को शारीरिक रोग होता था, न किसी की अकाल मृत्यु होती थी, न कोई स्त्री विधवा होती थे और न माता पिताओं को सन्तान का शोक सहना पड़ता था। सारा राज्य सब प्रकार से सुख-सम्पन्न था। इसलिये कोई व्यक्ति किसी प्रकार का विवाद लेकर राजदरबार में उपस्थित भी नहीं होता था। किन्तु एक दिन एक कुत्ता राजद्वार पर आकर बार-बार भौंकने लगा। उसे अभियोगी समझ राजदरबार में उपस्थित किया गया। पूछने पर कुत्ते ने बताया, “प्रभो! आपके राज्य में सर्वार्थसिद्ध नामक एक भिक्षुक है। उसने आज अकारण मुझ पर प्रहार करके मेरा मस्तक फाड़ दिया है। इसलिये मैं इसका न्याय चाहता हूँ।” 


कुत्ते की बात सुनकर उस भिक्षुक ब्राह्मण को बुलवाया गया। ब्राह्मण के आने पर राजा रामचन्द्र ने पूछा, “विप्रवर! क्या आपने इस कुत्ते के सिर पर घातक प्रहार किया था? यदि किया था तो इसका क्या कारण है? वैसे ब्राह्मण को अकारण क्रोध आना तो नहीं चाहिये।” 


महाराज की बात सुनकर सर्वार्थसिद्ध बोले, “प्रभो! यह सही है कि मैंने इस कुत्ते को डंडे से मारा था। उस समय मेरा मन क्रोध से भर गया था। बात यह थी कल मेरे भिक्षाटन का समय बीत चुका था, तो भी भूख के कारण मैं भिक्षा के लिये द्वार-द्वार पर भटक रहा था। उस समय यह कुत्ता बीच में आ खड़ा हुआ। मैं भूखा तो था ही, अतएव मुझे क्रोध आ गया और मैंने इसके सिर पर डंडा मार दिया। मैँ अपराधी हूँ, मुझे दण्ड दीजिये। आपसे दण्ड पाकर मुझे नरक यातना नहीं भोगनी पड़ेगी।” 


जब राजा राम ने सभसदों से उसे दण्ड देने के विषय में परामर्श किया तो उन्होंने कहा, “राजन्! ब्राह्मण दण्ड द्वारा अवध्य है। इसे शारीरिक दण्ड नहीं दिया जा सकता और यह इतना निर्धन है कि आर्थिक दण्ड का भार भी नहीं उठा सकेगा।” 


यह सुनकर कुत्ते ने कहा, “महाराज! यदि आप आज्ञा दें तो मैं इसके दण्ड के बारे में एक सुझाव दूँ। मेरे विचार से इसे महन्त बना दिया जाय। यदि आप इसे कालंजर के किसी मठ का मठाधीश बना दें तो यह दण्ड इसके लिये सबसे उचित होगा।” 


कुत्ते का सुझाव मानकर श्रीराम ने उसे मठाधीश बना दिया और वह हाथी पर बैठकर वहाँ से प्रसन्नतापूर्वक चला गया। 


उसके जाने के पश्चात् एक मन्त्री ने कहा, “प्रभो! यह तो उसके लिये उपहार हुआ, दण्ड नहीं।” 


मन्त्री की बात सुनकर श्रीराम ने कहा, “मन्त्रिवर! यह उपहार नहीं, दण्ड ही है। इसका रहस्य तुम नहीं समझ सके हो।” 


फिर कुत्ते से बोले, “श्वानराज! तुम इन्हें इस दण्ड का रहस्य बताओ।” 


राघव की बात सुनकर कुत्ता बोला, “रघुनन्दन! पिछले जन्म में मैं कालंजर के एक मठ का अधिपति था। वहाँ मैं सदैव शुभ कर्म किया करता था। फिर भी मुझे कुत्ते की योनि मिली। यह तो अत्यन्त क्रोधी है। इसका अन्त मुझसे भी अधिक खराब होगा। मठाधीश ब्राह्मणों और देवताओं के निमित्त दिये गये द्रव्य का उपभोग करता है, इसलिये वह पाप का भागी बनता है।” 


यह रहस्य बताकर कुत्ता वहाँ से चला गया।


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