गुरुवार, 13 सितंबर 2012

हिन्दी की बोलियों


The Indian constitution recognizes, for now, 18 official Indian languages. अब भारतीय संविधान के लिए पहचानता है, 18 आधिकारिक भारतीय भाषाओं. But, almost each of these 18 languages, include different dialects or variations. लेकिन, इन 18 भाषाओं में से प्रत्येक को लगभग अलग बोलियों या रूपों में शामिल हैं. Despite the different languages and dialects, most of the official languages speakers have developed a standard of speaking language which has become the accepted style of speaking for that language. विभिन्न भाषाओं और बोलियों के बावजूद, आधिकारिक भाषाओं के वक्ताओं के सबसे भाषा है जो उस भाषा के लिए बोलने का स्वीकृत शैली बन गया है बोल के एक मानक विकसित किया है. Sometimes, like in the case of Hindi, this language is completely different from some of its dialects. कभी कभी, जैसे हिंदी के मामले में, यह भाषा अपनी बोलियों के कुछ पूरी तरह से अलग है. Hindi has more than ten variations. हिन्दी से अधिक दस बदलाव किया है. Hindi spoken in Rajasthan is different from Hindi spoken in Bihar or Hindi of Himachal Pradesh. राजस्थान में बोली जाने वाली हिन्दी या हिमाचल प्रदेश के बिहार हिन्दी में बोली जाने वाली हिन्दी से अलग है. Sometimes the different variations of a language are considered as separate language with their own literature. कभी कभी एक भाषा के विभिन्न रूपों को अपने साहित्य के साथ अलग भाषा के रूप में माना जाता है.
One of the most important dialects is Khariboli (also Khadiboli or Khari dialect), which is spoken in Western Uttar Pradesh. सबसे महत्वपूर्ण बोलियों के Khariboli (भी Khadiboli या खारी बोली) है, जो पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बोली जाती है. Khariboli is the variation of Urdu/Hindi language that is used by the government and taught in schools. Khariboli उर्दू / हिंदी भाषा है कि सरकार द्वारा किया जाता है और स्कूलों में पढ़ाया की भिन्नता है. It was a rural language in its early days, but after 18th century, people started using it as the literary form of Urdu as its vocabulary contains a large amount of Persian and Arabic words. यह अपने शुरुआती दिनों में एक ग्रामीण की भाषा थी, लेकिन 18 वीं सदी के बाद, लोगों को यह उर्दू की साहित्यिक फार्म के रूप में प्रयोग शुरू कर दिया है के रूप में अपनी शब्दावली फारसी और अरबी शब्दों की एक बड़ी मात्रा में होता है. Almost all the significant modern Hindi literature has been produced in Khariboli. लगभग सभी महत्वपूर्ण आधुनिक हिन्दी साहित्य Khariboli में निर्मित किया गया.
Another dialect is Bambaiya Hindi(also Mumbaiyya),a slang form of Hindi/Urdu which is spoken primarily in Bombay (Mumbai). एक अन्य बोली Bambaiya (भी Mumbaiyya) हिन्दी, हिन्दी / उर्दू की एक बोली फार्म जो बॉम्बे (मुंबई) में मुख्य रूप से बोली जाती है. On the streets of Bombay, people from every part of India co-exist. मुंबई की सड़कों पर, भारत के हर हिस्से से लोगों को सह अस्तित्व. Their inter-mingling has created a language that has Hindi/Urdu as a base, but includes words and pronunciations from other languages such as English, Marathi and Gujarati, as well as languages from South India (as evident from the use of the word 'Tambi', which is Tamil).The colourful phrases in Bambaiya Hindi also convey what is known as a 'street sensibility' and a sense of disdain for courtesies. उनकी एक भाषा है कि एक आधार के रूप में हिन्दी / उर्दू बनाया है, लेकिन शब्दों और अंग्रेजी, मराठी और गुजराती के रूप में अन्य भाषाओं से उच्चारण, के रूप में के रूप में अच्छी तरह से दक्षिण भारत (शब्द 'के उपयोग से स्पष्ट भाषा अंतर mingling Tambi 'है, जो तमिल है). Bambaiya हिन्दी में रंगीन वाक्यांशों भी संप्रेषित करने के लिए क्या एक के रूप में जाना जाता है,' सड़क 'संवेदनशीलता और शिष्टाचारों के लिए तिरस्कार की भावना. Moreover, Bambaiya Hindi is not normally spoken by upper-middle class people. इसके अलावा, Bambaiya हिन्दी ऊपरी मध्यम वर्ग के लोगों द्वारा सामान्य रूप से बात नहीं की है. It is more associated with the marginal and/or poor young. यह अधिक सीमांत और / या गरीब युवा के साथ जुड़ा हुआ है. Incidentally, young, renegade and/or broody characters in Indian films often speak Bambaiyaa Hindi. संयोग से, युवा स्वपक्ष - त्यागी, और / या भारतीय फिल्मों में बच्चेवाली वर्ण अक्सर Bambaiyaa हिन्दी बोलते हैं.
A third important dialect is Brajbhasa, spoken in the region of Braj. एक तीसरा महत्वपूर्ण बोली Brajbhasa, ब्रज के क्षेत्र में बोली जाने वाली है. Brajbhasa was the language of choice of the Bhakti movement, or the neo-Vaishnavite religions, the central deity of which was Krishna. Brajbhasa भक्ति आंदोलन की पसंद की भाषा, या नव वैष्णव धर्म है, केंद्रीय देवता जो कृष्णा था. Therefore, most of the literature in this language pertains to Krishna composed in medieval times. इसलिए, इस भाषा में साहित्य के सबसे मध्ययुगीन काल में बना कृष्ण से संबंधित है.
Among the other variations of Hindi, we can inculde Kanauji,Bundeli, Bagheli, Chhattisgarhi (Lahariya or Khalwahi), Hariyanvi (Bangaru or Jatu), Bhaya, Chamari and Ghera Gowli. हिन्दी के अन्य रूपों के अलावा, हम कन्नौजी, Bundeli, बघेली, छत्तीसगढ़ी (Lahariya या Khalwahi), Hariyanvi (बंगारू या Jatu), Bhaya, Chamari और घेरा Gowli inculde कर सकते हैं.

बुधवार, 12 सितंबर 2012

हिन्दी के विवादास्पद वर्तनियाँ



विकिपीडिया

अनुक्रम

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[संपादित करें] वर्तनी की विविधता

देवनागरी लिपि में कालक्रम में अनेक परिवर्तन आये हैं। कुछ भाषा विज्ञानी जैसे सुनीति कुमार चाटुर्ज्‍या, डॉ. रघुवीर आदि मानते हैं कि हिन्दी भाषा का जन्म संस्कृत से हुआ है लेकिन इस बात को हिन्‍दी के कई बडे भाषाविज्ञानी नकार चुके हैं जिनमें रामविलास शर्माकिशोरीदास वाजपेयी[1]पारम्परिक देवनागरी वाले तथा दूसरे सरल आधुनिक हिन्दी वाले। इस विविधता के कुछ प्रकार हैं: का नाम उल्‍लेखनीय हैं। समय के साथ-साथ हिन्दी को सरल बनाने के उपाय किये गये। इसी क्रम में कई वर्तनियों हेतु कुछ विकल्प स्वीकार किये गये जिससे से हिन्दी में वर्तनी की विविधता हो गयी। इससे वर्तनियों के दो रुप प्रचलित हो गये - एक तो

[संपादित करें] पञ्चमाक्षर तथा अनुस्वार

पञ्चमाक्षरों में ङ् तथा ञ् के नीचे विभिन्न वर्ण लगते हैं जिस कारण इनकी संरचना बदल जाती है। इससे नये हिन्दी पाठक कई बार इनसे बनने वाले संयुक्ताक्षरों को समझ नहीं पाते। इसलिये सरलता हेतु यह व्यवस्था की गयी कि पञ्चमाक्षरों के स्थान पर अनुस्वार का प्रयोग भी स्वीकार किया जाय। उदाहरण के लिये - परम्परा एवं परंपरा।

[संपादित करें] हलन्त शब्द

कई शब्द जिनके उच्चारण के अनुसार अन्त में हलन्त आता था उन्हें आधुनिक हिन्दी में बिना हलन्त के भी लिखा जाने लगा। उदाहरण के लिये - स्वागतम् तथा स्वागतम।

[संपादित करें] ये तथा यी के स्थान पर ए तथा ई

आजकल विभिन्न शब्दों में ये तथा यी के स्थान पर ए तथा ई का प्रयोग भी किया जाता है। उदाहरण - गयी तथा गई, आयेगा तथा आएगा आदि। परन्तु संस्कृत से हिंदी में आने वाले शब्दों (स्थायी, व्यवसायी, दायित्व आदि) में 'य' के स्थान पर 'इ' या 'ई' का प्रयोग अमान्य है।

[संपादित करें] वर्तनी परम्परा

  • विकिपीडिया की परम्परा के अनुसार संस्कृत, धर्म तथा भारतीय संस्कृति आदि सम्बंधी लेखों में पारम्परिक शुद्ध वर्तनी का प्रयोग किया जाता है जबकि विज्ञान, गणित, तकनीक आदि सम्बंधी लेखों में सरलता हेतु आधुनिक हिन्दी वर्तनी का प्रयोग किया जा सकता है। पञ्चमाक्षरों में केवल ङ् तथा ञ् ही हैं जिनसे बने संयुक्ताक्षर सभी को सरलता से समझ नहीं आते, अन्य सभी पञ्चमाक्षरों से बने संयुक्ताक्षर आसानी से पढ़े एवं समझे जा सकते हैं। अतः सामान्य लेखों में केवल इन्हीं दो पञ्चमाक्षरों को कम प्रयोग किया जाता है।
  • लेख का शीर्षक/नाम (चाहे वह किसी भी विषय से सम्बंधित हो) शुद्ध उच्चारण तथा वर्तनी की दृष्टि से मूल पारम्परिक वर्तनी में रखा जाता है। खोज तथा पुनर्निर्देशन हेतु आधुनिक वर्तनी वाले नाम को पारम्परिक वर्तनी वाले शीर्षक पर पुनर्निर्देशित किया जाता है। उदाहरण के लिये पंडित को पण्डित पर पुनर्निर्देशित किया जाना चाहिये।
  • लेख शीर्षक की शुद्ध वर्तनी में यदि नुक्ता (़) है तो बिना नुक्ते वाली वर्तनी को नुक्ते वाली सही वर्तनी वाले शीर्षक पर पुनर्निर्देशित किया जाता है। उदाहरण के लिये शाहरुख खान को शाहरुख़ ख़ान पर।
  • इसके अतिरिक्त लेख के शुरु में विषय के नाम में बोल्ड में पहले पारम्परिक वर्तनी तथा फिर कोष्ठक में आधुनिक वर्तनी लिखी जाती है। उदाहरण: गङ्गा (गंगा) भारत की एक प्राचीन नदी है।
  • इसी प्रकार भाषा शैली में संस्कृति सम्बंधी लेखों में तत्सम शब्दावली तथा सामान्य लेखों में तद्भव शब्दावली का प्रयोग होता है।

[संपादित करें] कि और की

कि और की दोनों अलग अलग हैं। इनका प्रयोग भी अलग अलग स्थानों पर होता है। एक के स्थान पर दूसरे का प्रयोग ठीक नहीं समझा जाता है।
  • कि दो वाक्यों को जोड़ने का काम करता है जैसे- उसने कहा कि कल वह नहीं आएगा। वह इतना हँसा कि गिर गया। यह माना जाता है कि कॉफ़ी का पौधा सबसे पहले ६०० ईस्वी में इथियोपिया के कफ़ा प्रांत में खोजा गया था।
  • की संबंध बताने के काम आता है जैसे- राम की किताब, सर्दी की ऋतु, सम्मान की बात, वार्ता की कड़ी।

[संपादित करें] कीजिए या करें

सामान्य रूप से लिखित निर्देश के लिए करें, जाएँ, पढें, हटाएँ, सहेजें इत्यादि का प्रयोग होता है। कीजिए, जाइए, पढ़िए के प्रयोग व्यक्तिगत हैं और अधिकतर एकवचन के रूप में प्रयुक्त होते हैं।

[संपादित करें] ए और ये

आधुनिक हिंदी में दिखायें, हटायें आदि के स्थान पर दिखाएँ, हटाएँ आदि का प्रयोग होता है। यदि ये और ए एक साथ अंत में आएँ जैसे किये गए हैं तो पहले स्थान पर ये और दूसरे स्थान पर ए का प्रयोग होता है।

[संपादित करें] जैसे कि, जो कि

यह दोनों ही पद बातचीत में बहुत प्रयोग होते हैं और इन्हें सामान्य रूप से गलत नहीं समझा जाता है, लेकिन लिखते समय जैसे कि और जो कि दोनों ही गलत समझे जाते हैं। अतः जैसे और जो के बाद कि शब्द का प्रयोग ठीक नहीं है।

[संपादित करें] विराम चिन्ह

सभी विराम चिन्हों जैसे विराम, अर्ध विराम, प्रश्न वाचक चिह्न आदि के पहले खाली जगह छोड़ना गलत है। खाली जगह विराम चिन्हों के बाद छोड़नी चाहिए। जैसे - सबसे पहले सन् १८१५ में कुछ अंग्रेज़ यात्रियों का ध्यान असम में उगने वाली चाय की झाड़ियों पर गया जिससे स्थानीय क़बाइली लोग एक पेय बनाकर पीते थे । गलत है, और सबसे पहले सन् १८१५ में कुछ अंग्रेज़ यात्रियों का ध्यान असम में उगने वाली चाय की झाड़ियों पर गया जिससे स्थानीय क़बाइली लोग एक पेय बनाकर पीते थे। सही है।
हिन्दी में किसी भी विराम चिह्न यथा पूर्णविराम, प्रश्नचिह्न आदि से पहले रिक्त स्थान नहीं आता। आजकल कई मुद्रित पुस्तकों, पत्रिकाओं में ऐसा होने के कारण लोग ऐसा ही टंकित करने लगते हैं जो कि गलत है। किसी भी विराम चिन्ह से पहले रिक्त स्थान नहीं आना चाहिये।

[संपादित करें] समुच्चय बोधक और संबंध बोधक शब्दों का प्रयोग

संबंध बोधक तथा दो वाक्यों को जोड़ने वाले समुच्चय बोधक शब्द जैसे ने, की, से, में इत्यादि अगर संज्ञा के बाद आते हैं तो अलग लिखे जाते हैं और सर्वनाम के साथ आते हैं तो साथ में। उदाहरण के लिए-
अक्षरग्राम आधुनिक भारतीय स्थापत्य का अनुपम उदाहरण है। इसमें प्राचीन पारंपरिक शिल्प कोने पर्यटकों की सुविधा का ध्यान रखा है। हमने भी इसका लाभ उठाया, पूरी यात्रा में किसीको कोई कष्ट नहीं हुआ। केवल सुधा के पैरों में दर्द हुआ, जो उससे सहन नहीं हुआ। उसका दर्द बाँटने के लिए माँ थी। उसने, उसको गोद में उठा लिया। भी समान महत्त्व दिया गया है। संस्थापकों

[संपादित करें] है और हैं

है और हैं दोनों अलग अलग हैं। इनका प्रयोग भी अलग अलग स्थानों पर होता है। एक के स्थान पर दूसरे का प्रयोग ठीक नहीं समझा जाता है। है एक वचन है और हैं बहुवचन जैसे एक आदमी धूप में चला जा रहा है। बहुत से लोग प्रार्थना कर रहे हैं।

[संपादित करें] अनुस्वार तथा पञ्चमाक्षर

पञ्चमाक्षरों के नियम का सही ज्ञान न होने से बहुधा लोग इनके आधे अक्षरों की जगह अक्सर 'न्' का ही गलत प्रयोग करते हैं जैसे 'पण्डित' के स्थान पर 'पन्डित', 'विण्डोज़' के स्थान पर 'विन्डोज़', 'चञ्चल' के स्थान पर 'चन्चल' आदि। ये अधिकतर अशुद्धियाँ 'ञ्' तथा 'ण्' के स्थान पर 'न्' के प्रयोग की होती हैं।
नियम: वर्णमाला के हर व्यञ्जन वर्ग के पहले चार वर्णों के पहले उस वर्ग का पाँचवा वर्ण आधा (हलन्त) होकर लगता है। अर्थात कवर्ग (क, ख, ग, घ, ङ) के पहले चार वर्णों से पहले आधा (ञ्), टवर्ग (ट, ठ, ड, ढ, ण) के पहले चार वर्णों से पहले आधा (ण्), तवर्ग (त, थ, द, ध, न) के पहले चार वर्णों से पहले आधा (न्) तथा पवर्ग (प, फ, ब, भ, म) के पहले चार वर्णों से पहले आधा म (म्) आता है। उदाहरण: (ङ्), चवर्ग (च, छ, ज, झ, ञ) के पहले चार वर्णों से पहले आधा
  • कवर्ग - पङ्कज, गङ्गा
  • चवर्ग - कुञ्जी, चञ्चल
  • टवर्ग - विण्डोज़, प्रिण्टर
  • तवर्ग - कुन्ती, शान्ति
  • पवर्ग - परम्परा, सम्भव
आधुनिक हिन्दी में पञ्चमाक्षरों के स्थान पर सरलता एवं सुविधा हेतु केवल अनुस्वार का प्रयोग भी स्वीकार्य माना गया है। जैसे: पञ्कज - पंकज, शान्ति - शांति, परम्परा - परंपरा। परन्तु इसका अर्थ यह नहीं कि पुरानी पारम्परिक वर्तनियाँ गलत हैं, नयी अनुस्वार वाली वर्तनियों को उनका विकल्प स्वीकारा गया है, पुरानी वर्तनियाँ मूल रुप में अधिक शुद्ध हैं।
यद्यपि पञ्चमाक्षर के स्थान पर अनुस्वार का प्रयोग देवनागरी की सुन्दरता को कम करता है तथा शब्द का उच्चारण भी पूर्णतया शुद्ध नहीं रह पाता। इसके अतिरिक्त कम्प्यूटिंग सम्बंधी आन्तरिक प्रोसैसिंग के कार्यों यथा नैचुरल लैग्वेंज प्रोसैसिंग हेतु भी पञ्चमाक्षर का प्रयोग उपयुक्त है। परन्तु वर्तमान समय में विशेषकर पाठ्य पुस्तकों एवं प्रिण्ट मीडिया में सरलता हेतु अनुस्वार वाली वर्तनी ही प्रचलित हो गयी है। विशेषकर तथा ङ् का प्रयोग काफी कम हो गया है।
विकिपीडिया की परम्परा के अनुसार संस्कृत, धर्म तथा भारतीय संस्कृति सम्बंधी लेखों में पञ्चमाक्षरों का प्रयोग होना चाहिये जबकि विज्ञान, गणित, तकनीक आदि सम्बंधी लेखों में सरलता हेतु आधुनिक हिन्दी का प्रयोग किया जा सकता है। हाँ लेख के शीर्षक (नाम) को शुद्ध उच्चारण तथा वर्तनी की दृष्टि से पञ्चमाक्षर में रखा जाय, चाहे वह किसी भी विषय से सम्बंधित हो। खोज तथा पुनर्निर्देशन हेतु आधुनिक वर्तनी वाले नाम को पारम्परिक (शुद्ध) पञ्चमाक्षर वाले शीर्षक पर पुनर्निर्देशित कर देना चाहिये ताकि शुद्ध उच्चारण एवं वर्तनी रहे। उदाहरण के लिये पंडित को पण्डित पर पुनर्निर्देशित किया जाना चाहिये।

[संपादित करें] श्र और शृ

श्र तथा शृ भिन्न हैं। श्र में आधा और मिला हुआ है जैसे श्रम में। शृ में पूरे में की मात्रा लगी है जैसे शृंखला या शृंगार में। अधिकतर सामान्य लेखन तथा कम्प्यूटर/इण्टरनेट पर श्रृंखला या श्रृंगार जैसे अशुद्ध प्रयोग देखने में आते हैं। श्रृ लिखने पर देखा जा सकता है कि इसमें आधा श् +‍ र + ऋ की मात्रा है जो सही नहीं हैं क्योंकि शृंगार और शृंखला में र कहीं नहीं होता। यह अशुद्धि इसलिए होती है क्योंकि पारंपरिक लेखन में श के साथ ऋ जुड़ने पर जो आकार बनता था वह अधिकतर यूनिकोड फॉण्टों में प्रदर्शित नहीं होता। शृ, आदि श से बनने वाले संयुक्त वर्णों को संस्कृत २००३ नामक यूनिकोड फॉण्ट सही तरीके से प्रदर्शित करता है। वह आकार इस प्रकार का होता है (Sh ri.jpg) उसमें श में ऋ जोड़ने पर प्रश्न वाले श की तरह श आधा दिखाई देता है और नीचे ऋ की मात्रा जुड़ती है, इसमें अतिरिक्त आधा र नहीं होता।[2]
श्र = श् + र् + अ जबकि शृ = श् + ऋ
"श्रृ" लिखना गलत है, क्योंकि श्रृ = श् + र् + ऋ = श् + रृ
रृ का हिन्दी या संस्कृत में प्रयोग नहीं होता।[3]

[संपादित करें] सन्दर्भ

  1. हिन्‍दी की उत्‍पत्ति उस संस्‍कृत भाषा से नहीं है, जो कि वेदों में, उपनिषदों में तथा वाल्‍मीकि या कालिदास आदि के काव्‍यग्रंथों में हमें उपलब्‍ध है - हिन्‍दी शब्‍दानुशासन।
  2. देवनागरी “श” का रहस्य
  3. श्रृ या शृ

[संपादित करें] इन्हें भी देखें



रविवार, 9 सितंबर 2012

अभिव्यक्ति और माध्यम / जनसंचार माध्यम और लेखन


जनसंचार माध्यम
.संचार:
 सूचनाओं, विचारों और भावनाओं का लिखित, मौखिक या दृश्य-श्रव्य माध्यमों के जरिये सफ़लता पूर्वक आदान-प्रदान करना या एक जगह से दूसरी जगह पहुँचना संचार है। इस प्रक्रिया को संपन्न करने में सहयोगी तरीके तथा उपकरण संचार के माध्यम कहलाते हैं।
.जनसंचार:
 प्रत्यक्ष संवाद के बजाय किसी तकनीकी या यान्त्रिक माध्यम के द्वारा समाज के एक विशाल वर्ग से संवाद कायम करना जनसंचार कहलाता है।
. जनसंचार के माध्यम:   अखबार, रेडियो, टीवी, इंटरनेट, सिनेमा आदि.
. जनसंचार की विशेषताएँ:
·       इसमें फ़ीडबैक तुरंत प्राप्त नहीं होता।
·       इसके संदेशों की प्रकृति सार्वजनिक होती है।
·       संचारक और प्राप्तकर्त्ता के बीच कोई सीधा संबंध नहीं होता।
·       जनसंचार के लिये एक औपाचारिक संगठन की आवश्यकता होती है।
·       इसमें ढ़ेर सारे द्वारपाल काम करते हैं।  
. जनसंचार के प्रमुख कार्य:
·       सूचना देना
·       शिक्षित करना
·       मनोरंजन करना
·       निगरानी करना
·       एजेंडा तय करना
·       विचार-विमर्श के लिये मंच उपलब्ध कराना
 प्रश्न-अभ्यास-
१. संचार किसे कहते हैं ?
२. संचार के भेद लिखिए ।
३. जनसंचार से क्या अभिप्राय है ?
४. संचार तथा जनसंचार में क्या अंतर है?
५.जनसंचार के प्रमुख माध्यमों के नाम लिखिए ।
६. जनसंचार की कौन-कौन सी विशेषताएँ हैं?
७. जनसंचार के प्रमुख कार्यों को लिखिए ।


पत्रकारिता के विविध आयाम

. पत्रकारिता:
 ऐसी सूचनाओं का संकलन एवं संपादन कर आम पाठकों तक पहुँचना, जिनमें अधिक से अधिक लोगों की रुचि हो तथा जो अधिक से अधिक लोगों को प्रभावित करती होंपत्रकारिता कहलाता है।
. समाचार: समाचार किसी भी ऐसी ताजा घटना, विचार या समस्या की रिपोर्ट है,जिसमें अधिक से अधिक लोगों की  रुचि हो और जिसका अधिक से अधिक लोगों पर प्रभाव पड़ता हो ।
. समाचार के तत्त्वपत्रकारिता की दृष्टि से किसी भी घटना, समस्या व विचार को समाचार का रूप धारण करने के लिए उसमें  निम्न तत्त्वों में से अधिकांश या सभी का होना आवश्यक होता है:   नवीनता, निकटता, प्रभाव, जनरुचि, संघर्ष, महत्त्वपूर्ण लोग, उपयोगी जानकारियाँ, अनोखापन आदि ।
 डेडलाइन- समाचार माध्यमों के लिए समाचारों को कवर करने के लिये निर्धारित समय-सीमा को डेडलाइन कहते हैं।
 . संपादन : प्रकाशन के लिए प्राप्त समाचार सामग्री से उसकी अशुद्धियों को दूर करके पठनीय  तथा प्रकाशन योग्य बनाना संपादन कहलाता  है।
१०. संपादकीय:संपादक द्वारा किसी प्रमुख घटना या समस्या पर लिखे गए विचारत्मक लेख को, जिसे संबंधित समाचारपत्र की राय भी कहा जाता है, संपादकीय कहते हैं।संपादकीय किसी एक व्यक्ति का विचार या राय न होकर समग्र पत्र-समूह की राय होता है, इसलिए संपादकीय में संपादक अथवा लेखक का नाम नहीं लिखा जाता ।
११: पत्रकारिता के प्रमुख प्रकार:
    () खोजी पत्रकारिता- जिसमें आम तौर पर सार्वजनिक महत्त्व के मामलों जैसे, भ्रष्टाचार, अनियमितताओं और गड़बड़ियों की गहराई से छानबीन कर सामने लाने की कोशिश की जाती है। स्टिंग ऑपरेशन खोजी पत्रकारिता का ही एक नया रूप है।
    () वाचडाग पत्रकारिता- लोकतंत्र में पत्रकारिता और समाचार मीडिया का मुख्य उत्तरदायित्व सरकार के कामकाज पर निगाह रखना है और कोई गड़बड़ी होने पर उसका परदाफ़ाश करना होता है, परंपरागत रूप से इसे वाचडाग पत्रकारिता कहते हैं।
    () एडवोकेसी पत्रकारिता- इसे पक्षधर पत्रकारिता भी कहते हैं। किसी खास मुद्दे या विचारधारा के पक्ष में जनमत बनाने के लिए लगातार अभियान चलाने वाली पत्रकारिता को एडवोकेसी पत्रकारिता कहते हैं।
  ()  पीतपत्रकारिता-पाठकों को लुभाने के लिये झूठी अफ़वाहों, आरोपों-प्रत्यारोपों, प्रेमसंबंधों आदि से संबंधि सनसनीखेज  समाचारों से संबंधित पत्रकारिता को पीतपत्रकारिता कहते हैं।
  ()   पेज थ्री पत्रकारिता- एसी पत्रकारिता जिसमें फ़ैशन, अमीरों की पार्टियों , महफ़िलों और जानेमाने लोगों के निजी जीवन  के बारे में बताया जाता है।
प्रश्न-अभ्यास:
. पत्रकारिता क्या है?
.पत्रकारिता के विकास में कौन-सा मूल भाव सक्रिय रहता है?
     संकेत: जिज्ञासा का
. समाचार किसे कहते हैं?
. कोई घटना समाचार कैसे बनती है?
. समाचार के तत्त्व लिखिए ।
. डेड लाइन किसे कहते हैं?
. संपादकीय क्या है?
. संपादकीय पृष्ठ से आप क्या समझते हैं?
. पत्रकारिता के किन्हीं दो भेदों के नाम लिखिए।
१०. वॉचडॉग पत्रकारिता क्या है?
११. पीतपत्रकारिता से आप क्या समझते हैं?
१२. पेज-थ्री पत्रकारिता किसे कहते हैं?


विभिन्न माध्यमों के लिए लेखन
  
 . प्रमुख जनसंचार माध्यम- प्रिंट, टी०वी०, रेडियो और इंटरनेट
     () प्रिंट माध्यम (मुद्रित माध्यम)-
·        जनसंचार के आधुनिक माध्यमों में सबसे पुराना माध्यम है ।
·        आधुनिक  छापाखाने का आविष्कार जर्मनी के गुटेनबर्ग ने किया।
·        भारत में पहला छापाखाना सन १५५६ में गोवा में खुला, इसे ईसाई मिशनरियों ने धर्म-प्रचार की पुस्तकें छापने के लिए खोला था
·        मुद्रित माध्यमों के अन्तर्गत अखबार, पत्रिकाएँ, पुस्तकें आदि आती हैं ।
   मुद्रित माध्यम की विशेषताएँ:
·         छपे हुए शब्दों में स्थायित्व होता है, इन्हें सुविधा अनुसार किसी भी प्रकार से पढा़ जा सकता है।
·         यह  माध्यम लिखित भाषा का विस्तार है।
·         यह चिंतन, विचार- विश्लेषण का माध्यम है।
    मुद्रित माध्यम की सीमाएँ 
·        निरक्षरों के लिए मुद्रित माध्यम किसी काम के नहीं होते।
·        ये तुरंत घटी घटनाओं को संचालित नहीं कर सकते।
·        इसमें स्पेस तथा शब्द सीमा का ध्यान रखना पड़ता है।
·        इसमें एक बार समाचार छप जाने के बाद अशुद्धि-सुधार नहीं किया जा सकता।
    मुद्रित माध्यमों में लेखन के लिए ध्यान रखने योग्य बातें:
·        भाषागत शुद्धता का ध्यान रखा जाना चाहिए।
·        प्रचलित भाषा का प्रयोग किया जाए।
·        समय, शब्द व स्थान की सीमा का ध्यान रखा जाना चाहिए।
·        लेखन में तारतम्यता एवं सहज प्रवाह होना चाहिए।
. रेडियो (आकाशवाणी) :
   रेडियो एक श्रव्य माध्यम है । इसमें शब्द एवं आवाज का मह्त्व होता है। रेडियो एक रेखीय माध्यम है। रेडियो समाचर की संरचना उल्टापिरामिड शैली पर आधारित होती है। उल्टापिरामिड शैली में समाचर को तीन भागों बाँटा जाता है-इंट्रो, बाँडी और समापन। इसमें तथ्यों को महत्त्व के  क्रम से  प्रस्तुत किया जाता है, सर्वप्रथम सबसे ज्यादा महत्त्वपूर्ण तथ्य को तथा उसके उपरांत महत्त्व की दृष्टि से घटते  क्रम में तथ्यों  को रखा जाता   है। 
रेडियो समाचार-लेखन के लिए बुनियादी बातें :
·        समाचार वाचन के लियेर तैयार की गई कापी साफ़-सुथरी ओ टाइप्ड कॉपी  हो ।
·         कापी को ट्रिपल स्पेस में टाइप किया जाना चाहिए।
·         पर्याप्त हाशिया छोडा़ जाना चाहिए।
·         अंकों को लिखने में सावधानी रखनी चाहिए।
·         संक्षिप्ताक्षरों के प्रयोग से बचा जाना चाहिए।
. टेलीविजन(दूरदर्शन) : जनसंचार का सबसे लोकप्रिय  व सशक्त माध्यम है। इसमें ध्वनियों के साथ-साथ दृश्यों का भी  समावेश होता है। इसके लिए  समाचार  लिखते समय इस बात का ध्यान रखा जाता है कि शब्द व पर्दे पर दिखने वाले दृश्य में समानता हो।
   टी०वी० खबरों के विभिन्न चरण :
   दूरदर्शन मे कोई भी सूचना निम्न चरणों या सोपानों को पार कर दर्शकों तक पहुँचती है -
    () फ़्लैश या ब्रेकिंग न्यूज () ड्राई एंकर () फ़ोन इन () एंकर-विजुअल () एंकर-बाइट () लाइव () एंकर-पैकेज
. इंटरनेट : संसार का सबसे नवीन व लोकप्रिय माध्यम है। इसमें जनसंचार के सभी माध्यमों के गुण समाहित हैं। यह जहाँ सूचना, मनोरंजन, ज्ञान और व्यक्तिगत एवं सार्वजनिक सवादों के आदान-प्रदान के लिए  श्रेष्ठ माध्यम है, वहीं अश्लीलता, दुष्प्रचार  व गंदगी फ़ैलाने का भी जरिया है ।
   इंटरनेट पत्रकारिता : इंटरनेट पर समाचारों का प्रकाशन या आदान-प्रदान इंटरनेट पत्रकारिता कहलाता है। इंटरनेट पत्रकारिता दो रूपों में होती है। प्रथम- समाचार संप्रेषण के लिए नेट का प्रयोग करना । दूसरा- रिपोर्टर अपने समाचार को ई-मेल  द्वारा अन्यत्र भेजने  व  समाचार को संकलित करने  तथा  उसकी सत्यता, विश्वसनीयता सिद्ध करने तथा उसकी सत्यता, विश्वसनीयता सिद्ध करने के लिए करता है।
   इंटरनेट पत्रकारिता का इतिहास:
   विश्व-स्तर पर इंटरनेट पत्रकारिता का विकास निम्नलिखित चरणों में हुआ-
    () प्रथम चरण------- १९८२ से १९९२
    () द्वितीय चरण------- १९९३ से २००१
    () तृतीय चरण------- २००२ से अब तक
 भारत में इंटरनेट पत्रकारिता का पहला चरण १९९३ से तथा दूसरा चरण  २००३ से शुरू माना जाता है। भारत में सच्चे अर्थों में वेब पत्रकारिता करने वाली साइटें रीडिफ़ डॉट कॉम, इंडिया इफ़ोलाइन सीफ़ी हैं । रीडिफ़ को भारत की पहली साइट कहा जाता है ।  वेब साइट पर विशुद्ध पत्रकारिता  शुरू करने का श्रेय  तहलका डॉट्कॉम को जाता है।
हिंदी में नेट पत्रकारिता वेब दुनिया के साथ शुरू हुई। यह हिन्दी का संपूर्ण पोर्टल है।  प्रभा साक्षी  नाम का अखबार  प्रिंट रूप में न होकर सिर्फ़ नेट पर ही उपलब्ध है। आज पत्रकारिता के लिहाज से हिन्दी की सर्व श्रेष्ठ साइट बीबीसी की है, जो इंटरनेट के मानदंडों के अनुसार चल रही है। हिन्दी वेब जगत में अनुभूति, अभिव्यक्ति, हिन्दी नेस्ट, सराय आदि साहित्यिक पत्रिकाएँ भी अच्छा काम कर रही हैं।  अभी हिन्दी वेब जगत की सबसे बडी़ समस्या मानक की बोर्ड तथा फ़ोंट  की है ।  डायनमिक फ़ौंट  के अभाव के कारण हिन्दी की ज्यादातर साइटें खुलती ही नहीं हैं ।

प्रश्न-अभ्यास:
.   जनसंचार किसे कहते हैं?
. जनसंचार के प्रमुख माध्यमों का उल्लेख कीजिए ।         
. जनसंचार का सबसे पुराना माध्यम कौन-सा है?
. मुद्रण का प्रारंभ सबसे पहले किस देश में हुआ ?
. आधुनिक छापाखाने का आविष्कार कहाँ, कब और किसने किया?
 . भारत मे पहला छापाखाना कब, कहाँ, किसने और किस उद्देश्य से खोला था?
. डेड लाइन क्या होती है?
. रेडियो किस प्रकार का माध्यम है?
. रेडियो के समाचार किस शैली में लिखे जाते हैं?
१०. समाचार-लेखन की सर्वाधिक लोकप्रिय शैली कौन-सी है?
१२. इंट्रो किसे कहते हैं?
१३. टेलीविजन, प्रिंट तथा रेडियो से किस प्रकार भिन्न है ?
१४. नेट साउण्ड किसे कहते हैं?
१५. इंटरनेट प्रयोक्ताओं की लगातार वृद्धि के क्या कारण हैं?
१५. इंटरनेट पत्रकारिता से आप क्या समझते हैं?
१६. इंटरनेट पत्रकारिता के विकासक्रम को लिखिए ।
१७. भारत में इंटरनेट पत्रकारिता का प्रारंभ कब से माना जाता है।
१८. भारत में सच्चे अर्थों में वेब पत्रकारिता करने वाली साइटों के नाम लिखिए ।
१९. इंटरनेट पर पत्रकारिता करने वाली भारत की पहली साइट कौ-सी है?
२०.  भारत में वेबसाइट पर विशुद्ध पत्रकारिता करने का श्रेय किस साइट को जाता है?
२१. उस अखबार का नाम लिखिए जो केवल नेट पर ही  उपलब्ध है?
२२. हिन्दी की सर्वश्रेष्ठ साइट कौन-सी है?
२३.  नेट पर हिन्दी की कौन-कौन सी साहित्यिक पत्रिकाएँ उपलब्ध हैं?
२४. हिन्दी वेब पत्रकारिता की समस्याओं को लिखिए

पत्रकारीय लेखन के विभिन्न रूप और लेखन प्रक्रिया

पत्रकारीय लेखन- समाचार माध्यमों मे काम करने वाले  पत्रकार अपने पाठकों  तथा श्रोताओं तक सूचनाएँ पहुँचाने के लिए लेखन के  विभिन्न रूपों का इस्तेमाल करते हैं, इसे ही पत्रकारीय लेखन कहते हैं। पत्रकरिता या पत्रकारीय लेखन के अन्तर्गत  सम्पादकीय, समाचार , आलेख, रिपोर्ट, फ़ीचर, स्तम्भ तथा कार्टून आदि आते हैं। पत्रकारीय लेखन का प्रमुख उद्देश्य है- सूचना देना, शिक्षित करना तथा मनोरंजन आदि करना। इसके कई प्रकार हैं यथा- खोज परक पत्रकारिता, वॉचडॉग पत्रकारिता और एड्वोकैसी पत्रकारिता आदि। पत्रकारीय लेखन का संबंध समसामयिक विषयों, विचारों व घटनाओं से है। पत्रकार को लिखते समय यह ध्यान रखना चाहिए वह सामान्य जनता के लिए लिख रहा है, इसलिए उसकी  भाषा सरल व रोचक होनी चाहिए। वाक्य छोटे व सहज हों। कठिन भाषा का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए। भाषा को प्रभावी बनाने के लिए  अनावश्यक विशेषणों, जार्गन्स(अरचलित शब्दावली) और क्लीशे (पिष्टोक्ति, दोहराव) का प्रयोग नहीं होना चहिए।
पत्रकार के प्रकार--- पत्रकार तीन प्रकार के होते हैं ।१.  पूर्ण कालिक २. अंशकालिक (स्ट्रिंगर) ३.  फ़्रीलांसर या स्वतंत्र पत्रकार
 समाचर लेखन-- समाचार उलटा पिरामिड शैली में लिखे जाते हैं, यह समाचार लेखन की सबसे उपयोगी और लोकप्रिय शैली है। इस शैली का विकास अमेरिका में गृह यद्ध के दौरान हुआ। इसमें महत्त्वपूर्ण घटना  का वर्णन पहले प्रस्तुत किया जाता है, उसके बाद महत्त्व की दृष्टि से घटते क्रम में घटनाओं को प्रस्तुत कर समाचार का अंत किया जाता है। समाचार में इंट्रो, बॉडी और समापन के क्रम में घटनाएँ  प्रस्तुत की जाती हैं ।
 समाचार के छ: ककार- समाचार लिखते समय मुख्य रूप से छ: प्रश्नों- क्या, कौन, कहाँ, कब , क्यों और कैसे का उत्तर देने की कोशिश की जाती है। इन्हें समाचार के छ: ककार कहा जाता है। प्रथम चार प्रश्नों के उत्तर इंट्रो में तथा अन्य दो के उत्तर समापन से पूर्व बॉडी वाले भाग में दिए जाते हैं ।
फ़ीचरफ़ीचर एक सुव्यवस्थित, सृजनात्मक और आत्मनिष्ठ लेखन है ।
फ़ीचर लेखन का उद्देश्य: फ़ीचर का उद्देश्य मुख्य रूप से पाठकों को सूचना देना, शिक्षित करना तथा उनका मनोरंजन करना होता है।
फ़ीचर और समचार में अंतर:  समाचार में रिपोर्टर को अपने विचरों को डालने की स्वतंत्रता नहीं होती, जबकि फ़ीचर में लेखक को अपनी राय , दृष्टिकोण और भवनाओं को जाहिर करने का अवसर होता  है । समाचार उल्टा पिरामिड शैली में में लिखे जाते हैं, जबकि फ़ीचर लेखन की कोई सुनिश्चित शैली नहीं होती । फ़ीचर में समाचारों की तरह शब्दों की सीमा नहीं होती। आमतौर पर फ़ीचर, समाचार रिपोर्ट से बडे़ होते हैं । पत्र-पत्रिकाओं में प्राय: २५० से २००० शब्दों तक के फ़ीचर छपते हैं ।
विशेष रिपोर्ट: सामान्य समाचारों से अलग वे विशेष समाचार जो गहरी छान-बीन, विश्लेषण और व्याख्या के आधार पर प्रकाशित किये जाते हैं, विशेष रिपोर्ट कहलाते हैं ।
 विशेष रिपोर्ट के प्रकार:
(१) खोजी रिपोर्ट : इसमें अनुपल्ब्ध तथ्यों को गहरी छान-बीन  कर सार्वजनिक किया जाता है।
(२) इन्डेप्थ रिपोर्ट:  सार्वजानिक रूप से प्राप्त तथ्यों की गहरी छान-बीन कर उसके महत्त्वपूर्ण पक्षों को पाठकों के सामने लाया जाता है ।
(३) विश्लेषणात्मक रिपोर्ट : इसमें किसी घटना या समस्या का विवरण सूक्ष्मता के साथ विस्तार से दिया जाता है । रिपोर्ट अधिक विस्तृत होने पर कई दिनों तक किस्तों में प्रकाशित की जाती है ।
(४) विवरणात्मक रिपोर्ट : इसमें किसी घटना या समस्या को  विस्तार एवं बारीकी के साथ प्रस्तुत किया जाता है।
 विचारपरक लेखन : समाचार-पत्रों में समाचार एवं फ़ीचर के अतिरिक्त संपादकीय, लेख, पत्र, टिप्पणी, वरिष्ठ पत्रकारों व विशेषज्ञों के स्तम्भ छपते हैं । ये सभी विचारपरक लेखन के अन्तर्गत आते हैं ।
 संपादकीय : संपादक द्वारा किसी प्रमुख घटना या समस्या पर लिखे गए विचारत्मक लेख को, जिसे संबंधित समाचारपत्र की राय भी कहा जाता है, संपादकीय कहते हैं ।  संपादकीय किसी एक व्यक्ति का विचार या राय न होकर समग्र पत्र-समूह की राय होता है, इसलिए संपादकीय में संपादक अथवा लेखक का नाम नहीं लिखा जाता ।
स्तम्भ  लेखनएक प्रकार का विचारत्मक लेखन है । कुछ महत्त्वपूर्ण लेखक अपने खास वैचारिक रुझान एवं लेखन शैली   के लिए जाने जाते हैं । ऐसे लेखकों की लोकप्रियता को देखकर समाचरपत्र उन्हें अपने पत्र में नियमित स्तम्भ - लेखन की जिम्मेदारी प्रदान करते हैं । इस प्रकार किसी समाचार-पत्र  में किसी ऐसे लेखक द्वारा किया गया विशिष्ट एवम नियमित लेखन जो अपनी विशिष्ट शैली एवम वैचारिक रुझान के कारण समाज में ख्याति प्राप्त हो, स्तम्भ लेखन कहा जाता है । 
संपादक के नाम पत्र : समाचार पत्रों में  संपादकीय पृष्ठ पर तथा पत्रिकाओं की शुरुआत में संपादक के नाम आए पत्र प्रकाशित किए जाते हैं । यह प्रत्येक समाचारपत्र का नियमित स्तम्भ होता है । इसके माध्यम से समाचार-पत्र अपने पाठकों को जनसमस्याओं तथा मुद्दों पर अपने विचार एवम  राय व्यक्त करने का अवसर प्रदान करता है ।
साक्षात्कार/इंटरव्यू:  किसी पत्रकार के द्वारा अपने समाचारपत्र में प्रकाशित करने के लिए, किसी व्यक्ति विशेष से उसके विषय में अथवा किसी विषय या मुद्दे पर किया गया प्रश्नोत्तरात्मक संवाद  साक्षात्कार कहलाता है ।
प्रश्न-अभ्यास:
१. पत्रकारीय लेखन किसे कहते हैं?
२. पत्रकारीय लेखन के उद्देश्य लिखिए।
३. पत्रकार कितने प्रकार के होते हैं?
४. उल्टा पिरामिड शैली का विकास कब और क्यों हुआ?
५. समाचार के छ: ककार लिखिए ।
७. इंट्रो क्या है?
८. फ़ीचर किसे कहते हैं?
९. फ़ीचर किस शैली में लिखा जाता है?
१०. फ़ीचर व समाचार में क्या अंतर है?
११. विशेष रिपोर्ट से आप क्या समझते हैं?
१२. विशेष रिपोर्ट के भेद लिखिए।
१३. इन्डेप्थ रिपोर्ट किसे कहते हैं?
१४. विचारपरक लेखन क्या है ? तथा उसके अन्तर्गत किस प्रकार के लेख आते हैं?
१५.संपादकीय में लेखक का नाम क्यों नहीं लिखा जाता ?
१६. स्तम्भ लेखन क्या है ?
१७. साक्षात्कार से क्या अभिप्राय है?

विशेष लेखन: स्वरूप और प्रकार

विशेष लेखन किसी खास विषय पर  सामान्य लेखन से हट कर किया गया लेखन है । जिसमें  राजनीतिक, आर्थिक, अपराध, खेल, फ़िल्म,कृषि, कानून विज्ञान और अन्य किसी भी मत्त्वपूर्ण विषय से संबंधित विस्तृत सूचनाएँ प्रदान की जाती हैं ।
डेस्क : समाचारपत्र, पत्रिकाओं , टीवी और रेडियो चैनलों में अलग-अलग विषयों पर विशेष लेखन के लिए निर्धारित  स्थल को डेस्क कहते हैं। और उस विशेष डेस्क पर काम करने वाले पत्रकारों का भी अलग समूह होता है । यथा, व्यापार तथा  कारोबार के लिए अलग तथा खेल की  खबरों के लिए अलग डेस्क निर्धारित होता है ।
बीट : विभिन्न विषयों से जुडे़ समाचारों के लिए संवाददाताओं के बीच काम का विभाजन आम तौर पर उनकी दिलचस्पी और ज्ञान को ध्यान में रख कर किया जाता है। मीडिया की भाषा में इसे बीट कहते हैं ।
बीट रिपोर्टिंग तथा विशेषीकृत रिपोर्टिंग में अन्तर: बीट रिपोर्टिंग के लिए  संवाददाता में उस क्षेत्र के बारे में  जानकारी व दिलचस्पी का होना पर्याप्त है, साथ ही उसे  आम तौर पर अपनी बीट से जुडी़ सामान्य खबरें ही लिखनी होती हैं । किन्तु विशेषीकृत रिपोर्टिंग  में सामान्य समाचारों से आगे बढ़कर संबंधित विशेष क्षेत्र या विषय से जुडी़ घटनाओं, समस्याओं और मुद्दों  का बारीकी से विश्लेषण कर प्रस्तुतीकरण किया जाता है । बीट कवर करने वाले रिपोर्टर को संवाददाता तथा  विशेषीकृत रिपोर्टिंग करने वाले रिपोर्टर को विशेष संवाददाता कहा जाता है।
विशेष लेखन की भाषा-शैली: विशेष लेखन की भाषा-शैली सामान्य लेखन से अलग होती है। इसमें संवाददाता को संबंधित विषय की तकनीकी शब्दावली का ज्ञान होना आवश्यक होता है, साथ ही यह भी आवश्यक होता है कि वह पाठकों को उस शब्दावली से परिचित कराए जिससे पाठक रिपोर्ट को समझ सकें। विशेष लेखन की कोई निश्चित शैली नहीं होती ।
विशेष लेखन के क्षेत्र : विशेष लेखन के अनेक क्षेत्र होते हैं, यथा- अर्थ-व्यापार, खेल, विज्ञान-प्रौद्योगिकी, कृषि, विदेश, रक्षा, पर्यावरण शिक्षा, स्वास्थ्य, फ़िल्म-मनोरंजन, अपराध, कानून व सामाजिक मुद्दे आदि ।
प्रश्न-अभ्यास:
१. विशेष लेखन क्या है?
२. विशेष लेखन के क्षेत्र लिखिए।
४. डेस्क किसे कहते हैं?
५. बीट से आप क्या समझते हैं?
६.  बीट रिपोर्टिंग क्या है?
७. बीट रिपोर्टिंग तथा विशेषीकृत रिपोर्टिंग में क्या अंतर है?
८. विशेष संवाददाता किसे कहते हैं?
जन संचार मध्यम और  लेखन : मह्त्त्वपूर्ण पृष्टव्य अभ्यास प्रश्न:
१.विज्ञापन किसे कहते हैं ?
२. भारत में नियमित अपडेट साइटों के नाम बताइए।
३. दूरदर्शन पर प्रसारित समाचार किन-किन चरणों से होकर दर्शकों तक पहुँचते हैं?
४. मुद्रित माध्यम की सबसे बड़ी विशेषता क्या है?
५. कम्प्यूटर के लोकप्रिय होने का प्रमुख कारण बताइए।
६. इलेक्ट्रोनिक मीडिया क्या है?
७. पत्रकारिता के विकास में कौन-सा मूल्भाव सक्रिय रह्ता है?
८. समाचारपत्र में संपादक की भूमिका क्या होती है?
९. फ़ीचर में न्यूनतम व अधिकतम शब्दों की सीमा कितनी होनी चाहिए?
१०. फ़ीचर किस शैली में लिखा जाता है?
११. संपादन के किन्हीं दो सिद्धांतों को लिखिए।
१२. आडिएंस से आप क्या समझते हैं?
१३. कार्टून कोना क्या है?
१४. स्टिंग आपरेशन क्या है?
१५. ड्राई एंकर से क्या अभिप्राय है?
१६. ऑप-एड पृष्ठ किसे कहते हैं
१७. न्यूजपेग क्या है ?
१८. एफ़०एम० क्या है?
१९. अपडेटिंग से क्या अभिप्राय है?
२०. सीधा प्रसारण किसे कहते हैं?
आलेख/फ़ीचर/रिपोर्ट संबंधी प्रश्न-अभ्यास
१. निम्नलिखित विषयों पर आलेख लिखिए-
·       बढ़ती आबादी देश की बरबादी
·       सांप्रदायिक सद्भावना
·       कर्ज में डूबा किसान
·       आतंकवाद की समस्या
·       डॉक्टर हड़ताल पर मरीज परेशान
·       वर्तमान परीक्षा प्रणाली
२. निम्नलिखित विषयों पर फ़ीचर लिखिए:
·       चुनावी वायदे
·       महँगाई के बोझतले मजदूर
·       वाहनों की बढ़ती संख्या
·       वरिष्ठ नागरिकों के प्रति हमारा नजरिया
·       किसान का एक दिन
३. निम्नलिखित विषयों पर रिपोर्ट तैयार कीजिए-
·       पूजा-स्थलों पर दर्शनार्थियों की अनियंत्रित भीड़
·       देश की महँगी होती व्यावसायिक शिक्षा
·       मतदान केन्द्र का दृश्य
·       आए दिन होती सड़क दुर्घटनाएँ
·       आकस्मिक बाढ़ से हुई जनधन की क्षति
निबंध-लेखन
निबंध-लेखन एक कला है,। इससे लेखक के ज्ञान की परख होती है। इसे लेखक के ज्ञान की कसौटी कह सकते हैं। निबंध एक प्रकार की बंधनहीन स्वच्छंद रचना होती है, किंतु उसकी भाषा, विचार एवम अभिव्यक्ति में कसावट की अपेक्षा रखी जाती है। इसके लिए शब्दों तथा समय की कोई सीमा नहीं होती किंतु परीक्षा में समय एवं शब्द-सीमा दोनों का ही ध्यान रखना आवश्यक होता है। सामान्यत: ५ अंक का निबंध लगभग २५० शब्दों में तथा १० अंक का निबंध लगभग ३५० शब्दों में लिखा जाना चाहिए। दिए गए विषयों में से अपनी रुचि तथा विशेषज्ञता के आधार पर विषय का चुनाव करें।
निबंध लिखते समय ध्यान देने योग्य सामान्य बातें-
·       निबंध प्रस्तावना, विषय-विस्तार एवम उपसंहार के क्रम में लिखें।
·       विषय का क्रमबद्ध ब्यौर प्रस्तुत करें।
·       निबंध दिए गए विषय के अनुरूप होना चहिए।
·       निबंध का प्रारंभ किसी काव्यांश, सूक्ति अथवा उद्धरण से करने पर निबंध की रोचकता बढ़ जाती है
·       शुद्ध तथा रोचक विषयानुरूप भाषा का प्रयोग किया जाना चाहिए।
·       लेख साफ़-सुथरा, सुपाठ्य तथा सुन्दर हो।
 अभ्यास हेतु निबंध-
१. महानगरीय जीवन: अभिशाप या वरदान
२. आधुनिक शिक्षा पद्धति: गुण व दोष
३. विज्ञान-कला
४. बदलते जीवन मूल्य
५. नई शदी नया समाज
६. कामकाजी महिलाओं की समस्याएँ
७.राष्ट्र निर्माण में युवा पीढ़ी का योगदान
८. इंटरनेट की दुनियाँ
९. पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं
१०. लोक्ततंत्र में मीडिया की भूमिका
पत्र-लेखन
विचारों, भावों, संदेशों एवं सूचनाओं के संप्रेषण के लिए पत्र सहज, सरल तथा पारंपरिक माध्यम है। पत्र अनेक प्रकार के हो सकते हैं, पर प्राय: परीक्षाओं में शिकायती-पत्र, आवेदन-पत्र तथा संपादक के नाम पत्र पूछे जाते हैं। इन पत्रों को लिखते समय निम्न बातों का ध्यान रखा जाना चाहिए:
·     पत्र के स्वरूप (फ़ॉर्मेट) का ध्यान रखें ।
·     पत्र-  प्रेषक, दिनांक, प्रेषती, विषय, संबोधन, विषय-सामग्री, समापन, स्व-निर्देश व हस्ताक्षर के क्रम में लिखा जाना चाहिए।
·     भाषा शुद्ध, सरल, स्पष्ट, विषयानुरूप तथा प्रभावकारी होनी चाहिए।
अभ्यासार्थ प्रश्न:-
१.किसी दैनिक समाचार-पत्र के सम्पादक के नाम पत्र लिखिए जिसमें वृक्षों की कटाई रोकने के लिए सरकार का ध्यान आकर्षित किया गया हो।
२. हिंसा-प्रधान फ़िल्मों को देख कर बालवर्ग पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव का वर्णन करते हुए किसी दैनिक पत्र के संपादक के नाम पत्र लिखिए।
३. अनियमित डाक वितरण की शिकायत करते हुए पोस्टमास्टर को पत्र लिखिए।
४. लिपिक पद हेतु विद्यिलय के प्राचार्य को आवेदन-पत्र लिखिए।
५. अपने क्षेत्र में बिजली संकट से उत्पन्न कठिनाइयों का वर्णन करते हुए अधिशासी अभियन्ता विद्युत बोर्ड को पत्र लिखिए।