बुधवार, 18 जनवरी 2012

वेब- पत्रकारिता और हिंदी



Thursday, August 27, 2009



वेब- पत्रकारिता का आशय
वेब पत्रकारिता को हम इंटरनेट पत्रकारिता, ऑनलाइन पत्रकारिता, सायबर पत्रकारिता आदि नाम से जानते हैं . जैसा कि वेब पत्रकारिता नाम से स्पष्ट है यह कंप्यूटर और इंटरनेट के सहारे संचालित ऐसी पत्रकारिता है जिसकी पहुँच किसी एक पाठक, एक गाँव, एक प्रखंड, एक प्रदेश, एक देश तक नहीं बल्कि समूचा विश्व है और जो डिजिटल तंरगों के माध्यम से प्रदर्शित होती है . प्रिंट मीडिया से यह इस रूप में भी भिन्न है क्योंकि इसके पाठकों की संख्या को परिसीमित नहीं किया जा सकता . इसकी उपलब्धता भी सार्वत्रिक है . इसके लिए मात्र इंटरनेट और कंप्यूटर, लैपटॉप, पॉमटॉप या अब मोबाईल की ही जरूरत होती है . इंटरनेट के ऐसा माध्यम से वेब-मीडिया सर्वव्यापकता को भी चरितार्थ करती है जिसमें ख़बरें दिन के चौबीसों घंटे और हफ़्ते के सातों दिन उपलब्ध रहती हैं . वेब पत्रकारिता की सबसे खासियत है उसका वेब यानी तंरगों पर घर होना . अर्थात् इसमें उपलब्ध किसी दैनिक, साप्ताहिक, मासिक पत्र-पत्रिका को सुरक्षित रखने के लिए किसी किसी आलमीरा या लायब्रेरी की जरूरत नहीं होती . समाचार पत्रों और टेलिविज़न की तुलना में इंटरनेट पत्रकारिता की उम्र बहुत कम है लेकिन उसका विस्तार तेज़ी से हुआ है . वाले दिनों में इसका विस्तार बेतार पत्रकारिता यानी वायरलेस पत्रकारिता में होगा जिसकी पहल कुछ मोबाइल कंपनियों द्वारा शुरू भी की जा चुकी है . वेब मीडिया या ऑनलाइन जर्नलिज्म परंपरागत पत्रकारिता से इन अर्थों में भिन्न है उसका सारा कारोबार ऑनलाइन यानी रियल टाइम होता है . ऑनलाइन पत्रकारिता में समय की भारी बचत होती है क्योंकि इसमें समाचार या पाठ्य सामग्री निरंतर अपडेट होती रहती है . इसमें एक साथ टेलिग्राफ़, टेलिविजन, टेलिटाइप और रेडियो आदि की तकनीकी दक्षता का उपयोग सम्भव होता है . आर्काइव में पुरानी चीजें यथा मुद्रण सामग्री, फिल्म, आडियो जमा होती रहती हैं जिसे जब कभी सुविधानुसार पढ़ा जा सकता है . ऑनलाइन पत्रकारिता में मल्टीमीडिया का प्रयोग होता है जिसमें, टैक्स्ट, ग्राफिक्स, ध्वनि, संगीत, गतिमान वीडियो, थ्री-डी एनीमेशन, रेडियो ब्रोडकास्टिंग, टीव्ही टेलीकास्टिंग प्रमुख हैं . और यह सब ऑनलाइन होता है, यहाँ तक कि पाठकीय प्रतिक्रिया भी . कहने का वेब मीडिया में मतलब प्रस्तुतिकरण और प्रतिक्रियात्मक गतिविधि एवं सब कुछ ऑनलाइन (एट ए टाइम) होता है . परंपरागत प्रिंट मीडिया एट ए टाइम संपूर्ण संदर्भ पाठकों को उपलब्ध नहीं करा सकता किन्तु ऑनलाइन पत्रकारिता में वह भी संभव है – मात्र एक हाइपरलिंक के द्वारा .




इंटरनेट पत्रकारिता के टूल्स
वेब पत्रकारिता प्रिंट और इलेक्ट्रानिक माध्यम की पत्रकारिता से भिन्न है . वेब पत्रकारिता के लिए लेखन की समस्त दक्षता के साथ-साथ कंप्यूटर और इंटरनेट की बुनियादी ज्ञान के अलावा कुछ आवश्यक सॉफ्टवेयरों के संचालन में प्रवीणता भी आवश्यक होता है जैसेः-




1. प्रिंटिग एवं पब्लिशिंग टूल्स - पेजमेकर, क्वार्क एक्सप्रेस, एमएमऑफिस आदि .
2. ग्राफिक टूल्स - कोरल ड्रा, एनिमेशन, फ्लैश, एडोब फोटोशॉप आदि .
3. सामग्री प्रबंधन टूल्स – एचटीएमएल, फ्रंटपेज, ड्रीमवीवर, जूमला, द्रुपल, लेन्या, मेम्बू, प्लोन, सिल्वा, स्लेस, ब्लॉग, पोडकॉस्ट, यू ट्यूब आदि.
4. मल्टीमीडिया टूल्स- विंडो मीडिया प्लेयर, रियल प्लेयर, आदि .
5. अन्य टूल्स- ई-मेलिंग, सर्च इंजन, आरएसएस फीड, विकि टेकनीक, मैसेन्जर, विडियो कांफ्रेसिंग, चेंटिंग, डिस्कशन फोरम .




वेब पत्रकारिता में सामग्री
भारत के इंटरनेट समाचार पत्र मुख्यतः अपने मुद्रित संस्करणों की सामग्री यथा लिखित सामग्री और फोटो ही उपयोग लाते हैं . ये समाचार पत्र एक्सक्लूसिव समाचार और फीचर की तैयारी इंटरनेट संस्करण के लिए बहुधा नहीं किया करते हैं . ऑनलाइन संस्करणों में मुद्रित संस्करणों के सभी समाचार, फीचर एवं फोटोग्राफ़ भी उपयोग नहीं किये जा रहे हैं . लगभग 60 प्रतिशत समाचार और दर्जन भर फोटोग्राफ़ के साथ प्रतिदिन का इंटरनेट संस्करण क्रियाशील बनाये रखने की प्रवृति भी देखने को मिल रही है .




ऑनलाइन समाचार पत्रों का ले आउट मुद्रित संस्करणों की तरह नहीं होता है जबकि मुद्रित संस्करणों की सामग्री 8 कॉलमों में होती हैं . ऑनलाइन पत्र की सामग्री कई रूपो में होती हैं . इसमें एक मुख्य पृष्ठ होता है जो कंप्यूटर के मॉनीटर में प्रदर्शित होता है जहाँ विविध खंडों में सामग्री के मुख्य शीर्षक हुआ करते हैं . इसके अलावा खास समाचारों और मुख्य विज्ञापनों को भी मुख्य पृष्ठ में रखा जाता है जिन्हें क्लिक करने पर उस समाचार, फोटो, फीचर, ध्वनि या दृश्य का लिंक किया हुआ पृष्ठ खुलता है और तब पाठक उसे विस्तृत रूप में पढ़, देख या सुन सकता है . समाचार सामग्री को वर्गीकृत करने वाले मुख्य शीर्षकों का समूह अधिकांशतः हर पृष्ठों में हुआ करते हैं . ये शीर्षक समाचारों की स्थानिकता, प्रकृति आदि के आधार पर हुआ करते हैं जैसे विश्व, देश, क्षेत्रीय, शहर . या फिर राजनीति, समाज, खेल, स्वास्थ्य, मनोरंजन, लोकरूचि, प्रौद्योगिकी आदि . ये सभी अन्य पृष्ठ या वेबसाइट से लिंक्ड रहते हैं . इस तरह से एक पाठक केवल अपनी इच्छानुसार ही संबंधित सामग्री का उपयोग कर सकता है . पाठक एक ई-मेल या संबंधित साइट में ही उपलब्ध प्रतिक्रिया देने की तकनीकी सुविधा का उपयोग कर सकता है . वांछित विज्ञापन के बारे में विस्तृत जानकारी भी पाठक उसी समय जान सकता है जबकि एक मुद्रित संस्करण में यह असंभव होता है . इस तरह से ऑनलाइन संस्करणों में ऑनलाइन शापिंग का भी रास्ता है . मुद्रित संस्करणों में पृष्ठों की संख्या नियत और सीमित हुआ करती है जबकि ऑनलाइन संस्करणों में लेखन सामग्री और ग्राफिक्स की सीमा नहीं हुआ करती . ऑनलाइन पत्रों की एक विशेषता है कि वहाँ उसके पाठकों की सख्या यानी रीड़रशीप उसी क्षण जानी जा सकती है .




वेब-पत्रकारिता का सामान्य वर्गीकरण
इंटरनेट अब दूरस्थ पाठकों के लिए समाचार प्राप्ति का सबसे खास माध्यम बन चुका है . इधर इंटरनेट आधारित पत्र-पत्रिकाओं की संख्या निरंतर बढ़ती जा रही है . इसमें दैनिक, साप्ताहिक, मासिक, त्रैमासिक सभी तरह की आवृत्तियों वाले समाचार पत्र और पत्रिकायें शामिल हैं . विषय वस्तु की दृष्टि से इन्हें हम समाचार प्रधान, शैक्षिक, राजनैतिक, आर्थिक आदि केंद्रित मान सकते हैं . यद्यपि इंटरनेट पर ऑनलाइन सुविधा के कारण स्थानीयता का कोई मतलब नहीं रहा है किन्तु समाचारों की महत्ता और प्रांसगिकता के आधार पर वर्गीकरण करें तो ऑनलाइन पत्रकारिता को भी हम स्थानीय, प्रादेशिक, राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय स्तर देख सकते हैं . जैसे भोपाल की www. Com को स्थानीय, नई दुनिया डॉट कॉम, या दैनिक छत्तीसगढ़ डॉट कॉम को प्रादेशिक, नवभारत टाइम्स डॉट कॉम को राष्ट्रीय और बीबीसी डॉट कॉम, डॉट काम को अंतरराष्ट्रीय स्तर की ऑनलाइन समाचार पत्र मान सकते हैं .
ऑनलाइन पत्रकारिता को सामग्री के आधार पर हम 3 तरह से देख सकते हैः-




1. ऐसे समाचार जिनके प्रिंट संस्करण की आंशिक सामग्री ही ऑनलाइन हो . इस श्रेणी में हम नई दुनिया, दैनिक भास्कर, नवभारत, हिंदुस्तान टाइम्स आदि को रख सकते हैं .




2. ऐसे समाचार पत्र जिनके प्रिंट और इंटरनेट संस्करण दोनों की सामग्रियों में काफी समान हो .




3. ऐसे समाचार जिनका इंटरनेट संस्करण प्रिंट संस्करण से भिन्न हो . इसका उदाहरण टाइम्स ऑफ़ इंडिया है . इस समाचार पत्र के इंटरनेट संस्करण में पृथक समाचार होते हैं जो एक ई-पेपर के माध्यम से ऑनलाइन होता है .




4. ऐसे पोर्टल या न्यूज साइट जो केवल इंटरनेट पर ही संचालित हैं . इनमें प्रभासाक्षी डॉट कॉम आदि को गिना सकते हैं .


वेब-पत्रकारिता का आदिकाल
दुनिया जिस तरह से प्रौद्योगिकी केंद्रित होती जा रही है और जिस तरह से विश्वमानव का रूझान साफ़ झलक रहा है उसे देखकर कहा जा सकता है कि भविष्य में उसकी दिनचर्चा को कंप्यूटर और इंटरनेट जीवन-साथी की तरह संचालित करेंगे, यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि सूचना और संचार प्रिय दुनिया भविष्य में इंटरनेट आधारित पत्रकारिता पर अधिक निर्भर और विश्वास करेगी . पश्चिमी देश के परिदृश्य यही सिद्ध करते हैं जहाँ प्रिंट मीडिया का स्थान धीरे-धीरे इलेक्ट्रानिक मीडिया ने ले लिया और अब वहाँ वेब-मीडिया या ऑनलाइन मीडिया का बोलबाला है . 1970 – 1980 के दशक में जब कंप्यूटर का व्यापक प्रयोग होने लगा तब समाचार पत्र के उत्पादन विधि में परिवर्तन आने लगा . तब यह किसे पता था कि यही कंप्यूटर एक दिन ऑनलाइन समाचार पत्र का जगह ले लेगा . 1980 में अमेरिका के न्यूयार्क टाइम्स, वॉल स्ट्रीट जनरल, डाव जोन्स ने अपने-अपने प्रिंट संस्करणों के साथ-साथ समाचारों का ऑनलाइन डेटाबेस रखना भी प्रारंभ किया . वेब-पत्रकारिता या ऑनलाइन पत्रकारिता को तब और गति मिली जब 1981 में टेंडी द्वारा लैटटॉप कंप्यूटर का विकास हुआ . इससे किसी एक जगह से ही समाचार संपादन, प्रेषण करने की समस्या जाती रही .




ऑनलाइन समाचार पत्रों के प्रचलन में क्रांतिकारी परिवर्तन आया 1983 में जब अमेरिका के Knight-Ridder newspaper group ने AT&T के साथ मिलकर लोगों की माँग पर प्रायोगिक तौर पर उनके कंप्यूटर और टेलिविजन पर समाचार उपलब्ध कराने लगे . 90 के दशक आते-आते संवाददाता कंप्यूटर, मोडेम, इंटरनेट या सैटेलाइट का प्रयोग कर विश्व से कहीं भी तत्क्षण समाचार भेजने और प्रकाशित करने में सक्षम हो गये . 1998 में विश्व के लगभग 50 मिलियन लोग 40,000 नेटवर्क के माध्यम प्रतिदिन इंटरनेट का उपयोग किया करते थे . उनमें एक बड़ी संख्या में लोग समाचार, समाचार पत्र, समाचार एजेंसी और पत्रिकाएं विश्व को जानने समझने के लिए इंटरनेट पर तलाशते थे . एकमात्र अमेरिका की टाइम मैग्जीन ही ऐसी थी जिसने 1994 में इंटरनेट पर पैर रखा . उसके बाद 450 पत्रिकाओं और समाचार पत्र प्रकाशनों ने इंटरनेट में स्वयं को प्रतिष्ठित किया . तब भी इंटरनेट पर कोई समाचार एंजेसी कार्यरत नहीं थी किन्तु एक अनुमान के अनुसार दिसम्बर 1998 के अंत तक 4700 मुद्रित समाचार पत्र इंटरनेट पर थे .




भारत में वेब-पत्रकारिता का विकास
जहाँ तक भारत में वेब-पत्रकारिता का सवाल है उसे मात्र 10 वर्ष हुए हैं . ये 10 वर्ष कहने भर को है दरअसल भारती की वेब-पत्रकारिता अभी शिशु अवस्था में है और इसके पीछे दरअसल भारत इंटरनेट की उपलब्धता, तकनीकी ज्ञान और रूझान का अभाव, अंगरेज़ी की अनिवार्यता, नेट संस्करणों के प्रति पाठकों में संस्कार और रूचि का विकसित न होना तथा आम पाठकों की क्रय शक्ति भी है . भारत में इंटरनेट की सुविधा 1990 के मध्य में मिलने लगी . भारत में वेब-पत्रकारिता के चैन्नई का ‘द हिन्दू’ पहला भारतीय अख़बार है जिसका इंटरनेट संस्करण 1995 को जारी हुआ . इसके तीन साल के भीतर अर्थात् 1998 तक लगभग 48 समाचार पत्र ऑनलाइन हो चुके थे . ये समाचार पत्र केवल अंगरेज़ी में नहीं अपितु अन्य भारतीय भाषा जैसे हिंदी, मराठी, मलयालम, तमिल, गुजराती भाषा में थे . इस अनुक्रम में ब्लिट्ज, इंडिया टूडे, आउटलुक और द वीक भी इंटरनेट पर ऑनलाइन हो चुकी थीं . ऑनलाइन भारतीय समाचार पत्रों और पत्रिकाओं की पाठकीयता भारत से कहीं अधिक अमेरिका सहित अन्य देशों में है जहाँ भारतीय मूल के प्रवासी लोग रहते हैं या अस्थायी तौर पर रोजगार में संलग्न हैं .




एक शोध के अनुसार (किरण ठाकुर, पुणे विश्वविद्यालय के रिसर्च पेपर ‘भारत में इंटरनेट पत्रकारिता’ के अनुसार) दिसम्बर 1997 तक कुल पंजीकृत 4719 समाचार पत्रों के 1 प्रतिशत से कम ऑनलाइन भी हो चुके थे . भाषागत आधार पर ऑनलाइन पत्र-पत्रिकाओं की संख्या इस प्रकार थी –
भाषा वार कुल पंजीकृत और ऑनलाइन पत्रों की संख्या का विवरण




01. अंगरेज़ी - 338 -19


02 हिंदी -2118 - 05


03. मलयालम -209 - 05


04. गुजराती -99 - 04


05. बंगाली -93 - 03


06. कन्नड - 279 - 03


07. तेलुगु - 126 - 03


08 ऊर्दू -495 - 02


09. मराठी -283 - 01




इसका मतलब है कि शुरूआती दौर में अन्य भाषाओं यथा असमिया, मणिपुरी, पंजाबी, उडिया, संस्कृत, सिन्धी आदि भाषा के कोई भी ऑनलाइन संस्करण नहीं थे . आकाशवाणी ने 2 मई 1996 को ऑनलाइन सूचना सेवा का अपना प्रायोगिक संस्करण को अंतरजाल पर उतारा था . अब 2006 के अतिंम दिनों में हम देखते हैं कि देश के लगभग सभी प्रतिष्ठित समाचार पत्रों एवं टिलीविजन चैनलों के पास उनका अपना अंतरजाल संस्करण भी हैं जिसके माध्यम से वे पाठकों को ऑनलाइन समाचार उपलब्ध करा रहे हैं . एक उपलब्ध आंकडा के अनुसार वर्तमान में 14 ई-जीन, 85 न्यूज पेपर, 73 ऑनलाइन न्यूज, 92 पत्रिकाएं, 9 जनरल, 10 टीव्ही न्यूज एवं 8 न्यूज एजेंसी इंटरनेट पर सक्रिय हैं .




यदि हम हिंदी भाषा पर केंद्रित हो कर सोचें तो ऑनलाइन पत्र और पत्रकारिता की स्थिति दयनीय दिख सकती है और इस दयनीयता की जड़ में हिंदी आधारित इंटरनेट और वेब तकनीक ज्ञान, तंत्र व शिक्षा का विलम्ब से विकास रहा है .






- हिंदी की ऑनलाइन पत्रकारिता का वर्तमान परिदृश्य –






नेट पर हिंदी अखबार
नई सूचना प्रौद्योगिकी और वेब तकनीक को देश के बड़े अखबार वालों ने जल्दी अपनाया. आज हम देश-विदेश की कई हिंदी दैनिकों को घर बैठे पढ़ सकते हैं. इनमें
अमर उजाला, अमेरिका की आवाज़ (वायस औफ़ अमेरिका) आगरा न्यूज़ , आज,आज तक , इरान समाचार, उत्तराँचल टाइम्स, एक्सप्रेस न्यूज़, ख़ास ख़बर, जन समाचार(भारतीय व भारतीय ग्रामीण मुद्दों से सम्बन्धित समाचार पत्र), डियूश वेल्ल(जर्मन रेडियो द्वारा प्रसारित हिन्दी कार्यक्रम) पाञ्चजन्य, इंडिया टुडे, डेली हिन्दी मिलाप, द गुजरात, दैनिक जागरण , दैनिक जागरण ई-पेपर , दैनिक भास्कर , नई दुनिया - नव भारत अखबार, नवभारत टाइम्स, पंजाब केसरी, प्रभा साक्षी, प्रभात खबर, राजस्थान पत्रिका, राष्ट्रीय सहारा, रेडियो चाइना ऑन्लाइन, लोकतेज, ताप्तिलोक, प्रभासाक्षी, लोकवार्ता समाचार, विजय द्वार, वेबदुनिया, समाचार ब्यूरो,सरस्वती पत्र (कनाडा का हिन्दी समाचार)सहारा समय, सिफ़ी हिन्दी, सुमनसा ( कई स्रोतों से एकत्रित हिन्दी समाचारों के शीर्षक) हरिभूमि , ग्वालियर टाइम्स, दैनिक मध्यराज, राजमंगल आदि प्रमुख हैं . इस सूची में समाचार एजेंसियों को भी समादृत किया जा सकता है जिनमें प्रमुख है - यूनीवार्ता, पीटीआई भाषा,ई ऍम ऍस इण्डिया (समाचारपत्रों को बहुभाषीय समाचार सेवा प्रदान करने वाला स्थल), आरएनआई (छत्तीसगढ़ से सचांलित समाचार सेवा) आदि .


विश्व की प्रमुखतम आईटी कंपनियाँ भी भाषाई महत्ता के अर्थशास्त्र को भाँपते हुए अब लगातार हिंदी में समाचार पोर्टल का संचालन करने लगे हैं जैसे - याहू, गूगल हिंदी, एमएसएन, रीडिफ़.कॉम, आदि .


जहाँ तक सरकारी समाचार पोर्टल का प्रश्न है उसमें लगभग हिंदी भाषी राज्य सरकारों का एक-एक समाचार केंद्रित साइट संचालित हो रहा है . शासकीय विज्ञप्तियों, योजनाओं, समाचारों वाले इन साइटों का उपयोग भी संदर्भ की तरह किया जाने लगा है . इसमें नवोदित राज्य छत्तीसगढ, उत्तराखंड़, झारखंड भी सम्मिलित हो चुके हैं . यहाँ उन ऑनलाइन समाचार पत्रों जाल स्थलों को जिक्र भी समीचीन होगा जो केंद्र शासन के विभिन्न उपक्रमों द्वारा संचालित हैं . इस रूप में ऑल इंडिया रेडियो की वेबसाइट समाचार भारती, व ऑल इंडिया रेडियो, पत्र सूचना कार्यालय, डी.डी.न्यूजव विदेश मंत्रालय के साइट को देख सकते हैं .
हिंदी के ये ऑनलाइन समाचार पत्र केवल भारतीय महाद्वीप से ही संचालित नहीं होते बल्कि विदेशी ज़मीन से भी ये भारत, भारतवंशियों तथा वैश्विक समचारों से लगातार समूची दुनिया को अपडेट बनाये रखे हुए हैं . इस श्रेणी में प्रमुखतम वेब पोर्टल हैं – लंदन की बी.बी.सी. हिन्दी खबरें


ब्लॉग और ऑनलाइन पत्रकारिता की नई दिशा
इंटरनेट पर ब्लॉग तकनीक के विकास और हिंदी भाषा में काम करने सुविधा से ऑनलाइन पत्रकारिता के नये द्वार खुलते दिखाई दे रहे हैं . अभी उसका स्वरूप निजी लेखन तक सीमित है . यूँ तो ब्लॉग निजी लेखन (अच्छाईयों और बुराईयाँ के साथ भी) का साधन है तथापि जिस तरह से वहाँ पत्रकारिता से जुड़े व्यक्तित्वों और उसके आकांक्षियों का आगमन हो रहा है, एक शुभ संकेत है . हिंदी अंतरजाल को खंगालने से यह बात उभर कर आ रही है कि ब्लॉग स्वतंत्र पत्रकारिता का भी मंच और माध्यम हो सकता है . अंग्रेजी ब्लॉग का इतिहास बताता है कि उस भाषा के महत्वपूर्ण पत्रकार व्यक्तिगत (और सामूहिक तौर पर) पत्रकारिता के लिए ब्लॉग की ओर लगातार उन्मुख होते गये हैं, जा रहे हैं . एक तरह से हिंदी ब्लॉग वैकल्पिक पत्रकारिता का भी जरिया हो सकता है . हिंदी इंटरनेटिंग की दुनिया में इसके चिह्न दिखाई देने लगे हैं . इस संदर्भ में मध्यप्रदेश के उन दो पत्रकारों का प्रयास स्तुत्य है जो 2005 से राजपुत इंडिया (http://rajputaindia.spaces.live.com/)और चंबल की आवाज (http://chambal.spaces.live.com/) नामक समाचार पत्र (आंचलिक) नियमित प्रकाशित कर रहे हैं . इस संभावना को नहीं नकारा जा सकता कि भविष्य में सामुहिक बोध वाले पत्रकार इस सस्ती और विश्वसनीय तकनीक का फायदा उठाकर ऑनलाइन पत्रकारिता का सशक्त माध्यम अवश्य बनाना चाहेंगे. खास तौर पर यह इंटरनेट पर आंचलिक पत्रकारिता का कारगर दिव्य और रोचक प्रकल्प हो सकता है . (देखिए लेखक का शोध आलेख – वेब-पत्रकारिता, ब्लॉग और पत्रकार)




ई-मेल केवल औपचारिक पत्र प्रेषण का माध्यम नहीं हैं, वेबसाइट पर उपलब्ध समूह अनौपचारिक चर्चा-परिचर्चा का साधन नहीं, इन दोनों का योग नियमित समाचार प्रेषण या सीमित पत्रकारिता का भी साधन है. इस तकनीक युग्म से (भले ही सीमित क्षेत्र और संख्या में) सूचनात्मक पत्रकारिता का रोचक अनुप्रयोग भी होने लगा है . लगे हाथ मैं उदाहरण स्वरूप उस समूह का जिक्र करना चाहता हूँ जिसमें 97 लोग आपस में समाचारों के आदान-प्रदान के लिए सक्रिय हैं . गुगल समूह में पंजीकृत इस दल में अधिकांशतः ग्वालियर संभाग (मध्यप्रदेश) से जुड़े समाचार संप्रेषित होते हैं .




हिन्दी दुनिया की तीसरी सर्वाधिक बोली-समझी जाने वाली भाषा है. विश्व में लगभग 80 करोड़ लोग हिन्दी समझते हैं, 50 करोड़ लोग हिन्दी बोलते हैं और लगभग 35 करोड़ लोग हिन्दी लिख सकते हैं. उसके हिसाब से हिंदी में पत्रकारितोन्मुख ऑनलाइन पत्र-पत्रिकाओं की संख्या अत्यल्प है . इस तरह से वर्तमान में अंगरेज़ी की प्रभूता के कारण हिंदी में ऑनलाइन पत्रकारिता शिशु अवस्था पर है आने वाले दिनों में वेब पत्रकारिता में अंग्रेज़ी का प्रभुत्व बहुत दिन नहीं रहने वाला है . क्षेत्रीय और स्थानीय भाषा में बन रहे वेब पोर्टलों और वेबसाइटों का प्रभाव बहुत तेज़ी से बढ़ रहा है और इनका भविष्य उज्ज्वल दिखाई देता है .




पारंपरिक मीडिया और ऑनलाइन पत्रकारिता के बीच की दूरियाँ अब ज्यादा दिन नहीं रहने वाली हैं . डायनामिक फोंट के कारण अब किसी भी ऑनलाइन हिंदी समाचार पत्र को किसी भी कंप्यूटर से पढ़ा जा सकता है . इसके अलावा युनिकोड़ की उपलब्धता से फोंट की समस्या का हल एक तरह से निकाला जा चुका है .




छत्तीसगढ़ और सायबर पत्रकारिता
छत्तीसगढ़ पत्रकारिता की आदि-भूमि की तरह प्रतिबिंबित होता रहा है . यह वही धरती है जहाँ आज से ----- वर्ष पहले माधवराव सप्रे ने पेंड्रा जैसी छोटी-सी जगह से ‘छत्तीसगढ़ मित्र’ नामक अखबार की शुरूआत की थी . वह भी आधुनिक सुविधाओं के अभाव के बीच ट्रेडल मशीन के ज़माने में . कहने को छत्तीसगढ़ से भी प्रकाशित नवभारत, दैनिक भास्कर, और हरिभूमि जैसे बहुमान्य एवं बड़े अखबारों के अंतरजाल संस्करण काफी पहले से थे पर न वे समग्र थे, न उन्हें इंटरनेट पर अधिक पाठक पढ़ते-बांचते थे . इसके पीछे फोंट डाउनलोड़ करने की समस्या और शहरों-कस्बों में इंटरनेट की सुविधा का अभाव भी रहा है . वैसे नेट संस्करण वाले ये अखबार अब भी प्रतिदिन के कुछ ही समाचार(प्रिंट संस्करण में से) पाठकों को उपलब्ध कराते हैं . नेट संस्करणों की लोकप्रियता में वृद्धि नहीं होने में इनका अद्यतन नहीं रहना भी हो सकता है . यद्यपि ऑनलाइन पत्रकारिता में स्थान या भूगोल का कोई महत्व नहीं है तथापि इन्हें राज्य की ऑनलाइन पत्रकारिता में शुमार इसलिए भी नहीं किया जा सकता क्योंकि अन्यत्र से संचालित और नियंत्रित होते रहे हैं . इसी तरह एक साप्ताहिक अखबार डिसेन्ट भी अनियमित रूप से अतंरजाल पर दिखाई देती है जो राज्य का पहला ऑनलाइन समाचार पत्र है . छत्तीसगढ़ में नियमित रूप से वेब-पत्रकारिता का प्रारंभ यदि हम सृजन-सम्मान संस्था की सृजन-गाथा नामक मासिक पत्र से माने तो अतिशयोक्ति नहीं होगी, जो मई 2007 में पहला जन्म दिवस मनाने जा रही है और जिसके अभियान से छत्तीसगढ़ की 20 से अधिक महत्वपूर्ण कृतियाँ भी अब ऑनलाइन हैं . यद्यपि यह पूर्णतः साहित्यिक एवं सांस्कृतिक पत्र है तथापि वह अपनी सांस्कृतिक गतिविधियों की रिपोर्टिंग के लिए विश्व के कई देशों में जानी पहचानी जाने लगी है . अब छत्तीसगढ़ से प्रकाशित होने वाले दो अख़बार देशबन्धु और छत्तीसगढ़ (इतवारी अखबार सहित) भी आनलाइन हो चुके हैं, वैसे छत्तीसगढ़ के इन अखबारों को बाँचने के लिए कंप्यूटर में एक्रोब्रेट रीडर होना जरूरी है क्योंकि यहाँ पठनीय सामग्री पीडीएफ़ में रखी जाती हैं . इसके पहले समाचार एंजेसी राष्ट्रीय न्यूज सर्विस(www.rnsindia.org) ने भी अपना ऑनलाइन कारोबार छत्तीसगढ से प्रारंभ कर दिया है जो घर-बैठे छत्तीसगढ़ सहित देश-विदेश के समाचार सदस्यता शुल्क के साथ उपलब्ध करा रहा है . यहाँ इसी क्रम में सुश्री भूमिका द्विवेदी द्वारा संपादित मीडिया विमर्श(www.mediavimarsh.com) नामक वेबसाइट का उल्लेख करना जरूरी है जो पत्रकारिता के अंदरूनी पहलुओं गंभीर विमर्श करने वाली समूची दुनिया के लिए अंतरजाल पर एकमात्र हिंदी वेबजीन के रूप में समादृत होने लगी है . वैसे तो राज्य के एकमात्र पत्रकारिता विश्वविद्यालय के जाल स्थल में प्रतीकात्मक रूप से कुछ निजी गतिविधियों को भी दिखाया जा रहा है तथापि भविष्य में ऐसे महत्वपूर्ण संस्थान की अनुप्रेरणा से (भले ही अकादमिक रूप से ) प्रयोगात्मक समाचार साइट की अपेक्षा शायद वेब पत्रकारिता को कैरियर बनाने का सपना संजोने वाली भावी पीढ़ी कर रही होगी .




ऑनलाइन पत्रकारिता में क्रियाशील पत्रकार
अब देश के बड़े-बड़े पत्रकार प्रिंट माध्यम के साथ-साथ वेब-मीडिया में भी सक्रिय होते नज़र आने लगे हैं इनमें प्रसिध्द लेखक-पत्रकार खुशवंत सिंह, मशहूर संपादक व मानवाधिकारवादी कुलदीप नायर, पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण नेहरू, पूर्व सांसद व संपादक दीनानाथ मिश्र आदि को गिना सकते हैं जो प्रभासाक्षी में नियमित रूप से कॉलम लिखते हैं . विख्यात हिंदी कार्टूनिस्ट काक भी सतत् रूप से नज़र आते है . इधर जाने माने पत्रकार व नवनीत के संपादक विश्वनाथ सचदेव भी सृजनगाथा डॉट कॉम (जो रायपुर से प्रकाशित होती है) पर नियमित स्तंभ लिखने जा रहे हैं . इस सूची में मुंबई के प्रोफेशनल्स कमल शर्मा से नवोदित राज्य के जागरूक संपादक संजय द्विवेदी को भी जुड़ते देखा जा सकता है . जाने माने दक्षिणपंथी गोविन्दाचार्य जैसे विचारक भी इस मीडिया के प्रभाव से मुक्त नहीं है शायद यही कारण है कि मूल्य आधारित पत्रकारिता के लिए कटिबद्ध उनकी चर्चित पत्रिका भारतीय पक्ष (
www.bhartiyapaksha.com) भी पूर्णतः ऑनलाइन पत्रिका बन चुकी है . इतना ही नहीं उसी गोत्र की अन्य महत्वपूर्ण पत्रिकाएं यथा – लोकमंच से संबंद्ध पत्रकार – अभिताभ त्रिपाठी, शशिसिंह भी स्वयं को निरतंर ऑनलाइन उपस्थित किये हुए हैं . इधर छत्तीसगढ़ के पत्रकार एवं व्यंग्यकार गिरीश पंकज ‘बेताल कथा’ स्तम्भ के माध्यम से लगातार हस्तक्षेप कर रहे हैं . इसी क्रम में संजय द्विवेदी का कॉलम ‘मीडिया विमर्श’ भी काबिल-ए-तारीफ़ बनता जा रहा है . प्रख्यात पत्रकार ओम थानवी की लेखनी भी कल्पना नामक एक साइट में लगातार देखने को मिल रही है यह बात अलग है कि उनकी सक्रियता वेब मीडिया में उतनी नहीं है जितनी की प्रिंट मीडिया में . सुदूर एशिया से जीतेन्द्र चौधरी ऑनलाइन पत्रकारिता की लौ लगातार बनाये हुए हैं अपने ब्लॉग – मेरा पन्ना – नाम से . बालेन्दु शर्मा दधीच ऑनलाइन मीडिया और तकनालाजी के क्षेत्र का जाने-माने हस्ताक्षर हैं जिन्हें प्रभासाक्षी के अलावा वाह मीडिया नामक निजी ब्लॉग में सतत् सक्रिय और मार्गदर्शक रूप में देखा जा सकता है . यह समय की माँग और हिंदी को वैश्विक बनाने की स्वस्थ प्रतियोगिता दबाब ही है जो ऑनलाइन साहित्यिक पत्रकारिता भी अपनी पहचान बनाने लगी है . इस परिप्रेक्ष्य में हम राजेन्द्र अवस्थी, रवीन्द्र कालिया जैसे ख्यातनाम संपादकों को भी शुमार कर सकते हैं जो क्रमशः हंस एवं ज्ञानोदय (एवं सहकारी ब्लॉग लेखन भी) के ऑनलाइन संस्करण में समूचे विश्व में पढ़े जा रहे हैं . यहाँ हम उन पत्रकारों का उल्लेख स्थानाभाव के कारण नहीं कर पा रहे हैं जो किसी न किसी ऐसे ऑनलाइन समाचार पत्र से संबंद्ध है जिसका अपना प्रिंट संस्करण भी बाजार में ज्यादा कारगर रूप में उपलब्ध है .




युनिकोड़ ने बदला वेब-मीडिया का परिदृश्य
वेब मीडिया की लोकप्रियता-ग्राफ़ में गुणात्मक वृद्धि नहीं होने के पीछे अन्य कारणों के साथ फोंट की समस्य़ा भी रही है . शुरूआती दौर में इन अखबारों को पढ़ने के लिए यद्यपि हिंदी के पाठकों को अलग-अलग फ़ॉन्ट की आवश्यकता होती थी जिसे संबंधित अखबार के साइट से उस फ़ॉन्ट विशेष को चंद मिनटों में ही मुफ्त डाउनलोड़ और इंस्टाल करने की भी सुविधा दी जाती थी (गई है) . हिंदी फ़ॉन्ट की जटिल समस्या से हिंदी पाठकों को मुक्त करने के लिए शुरूआती समाधान के रूप में डायनामिक फ़ॉन्ट का भी प्रयोग किया जाता रहा है . डायनामिक फ़ॉन्ट ऐसा फ़ॉन्ट है जिसे उपयोगकर्ता द्वारा डाउनलोड करने की आवश्यकता नहीं होती बल्कि संबंधित जाल-स्थल पर उपयोगकर्ता के पहुँचने से फ़ॉन्ट स्वयंमेव उसके कंप्यूटर में डाउनलोड हो जाता है . यह दीगर बात है कि उपयोगकर्ता उस फ़ॉन्ट में वहाँ टाइप नहीं कर सकता . अब युनिकोड़ित फोंट के विकास से वेब मीडिया में फोंट डाउनलोड़ करने की समस्य़ा लगभग समाप्त हो चुकी है . बड़े वेब पोर्टलों के साथ-साथ सभी वेबसाइट अपनी-अपनी सामग्री युनिकोड़ित हिंदी फोंट में परोसने लगे हैं किन्तु अभी भी अनेक ऐसे साइट हैं जो समय के साथ कदम मिलाकर चलने को तैयार नहीं दिखाई देतीं . दिन प्रतिदिन गतिशील हो रही वेबमीडिया की पाठकीयता (वरिष्ठ पत्रकार संजय द्विवेदी के शब्दों में दर्शनीयता ही सही) को बनाये रखने के लिए पाठक को फोंट डाउनलोड़ करने के लिए अब विवश नहीं किया जा सकता . क्योंकि अब वह विकल्पहीनता का शिकार नहीं रहा . पीड़ीएफ़ में सामग्री उपलब्ध कराना फोंट की समस्या से निजात पाने का सर्वश्रेष्ठ विकल्प या साधन नहीं है . भाषायी ऑनलाइन पत्रकारिता वास्तविक हल तकनीकी विकास से संभव हुआ युनिकोड़ित फोंट ही है जो अब सर्वत्र उपलब्ध है.


हिंदी में तकनीक उपलब्ध
वेब-मीडिया खासकर हिंदी में पत्रकारिता के विकास में मुख्य बाधा हिंदी में तकनीक का अभाव रहा है पर वह भी लगभग अब हल की ओर है . विंडोज तथा लिनक्स जैसे ऑपरेटिंग सिस्टम का इंटरफेस भी हिंदी में बन चुका है . केन्द्रीय सूचना एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय, भारत सरकार की इकाई सीडॉक (सेंटर फॉर डवलपमेंट आफ़ एडवांस कंप्यूटिंग) द्वारा एक अरब से भी अधिक बहुभाषी भारतवासियों को एक सूत्र में पिरोने और परस्पर समीप लाने में अहम् भूमिका निभायी जाती रही है . भाषा तकनीक में विकसित उपकरणों को जनसामान्य तक पहुँचाने हेतु बकायदा
www.ildc.gov.in तथा www.ildc.in वेबसाइटों के द्वारा व्यवस्था की गई है जिसके द्वारा टू टाइप हिंदी फ़ॉन्ट(ड्रायवर सहित), ट्रू टाइप फॉन्ट के लिए बहुफॉन्ट की-बोर्ड इंजन, यूनिकोड समर्थित ओपन टाइप फॉन्ट, यूनिकोड समर्थित की-बोर्ड फॉन्ट, कोड परिवर्तक, वर्तनी संशोधक, भारतीय ओपन ऑफिस का हिन्दी भाषा संस्करण, मल्टी प्रोटोकॉल हिंदी मैसेंजर, कोलम्बा - हिन्दी में ई-मेल क्लायंट, हिंदी ओसीआर, अंग्रेजी-हिन्दी शब्दकोश, फायर- फॉक्स ब्राउजर, ट्रांसलिटरेशन, हिन्दी एवं अंग्रेजी के लिए आसान टंकण प्रशिक्षक, एकीकृत शब्द-संसाधक, वर्तनी संशोधक और हिंदी पाठ कॉर्पोरा जेसे महत्वपूर्ण उपकरण एवं सेवा मुफ़्त उपलब्ध करायी जा रही है . जहाँ मंत्रालय के वेबसाइट पर लाग आन करके सीडी मुफ़्त में बुलवाई जा सकती है वहाँ इन में से वांछित एप्लीकेशन या सॉफ्टवेयर डाउनलोड भी की जा सकती है .


वेब-पत्रकारिता को अधिमान्यता
वेब-पत्रकारिता के प्रति आम पत्रकारों में रूझान की कमी के पीछे इसमें कार्यरत पत्रकारों को भारत सरकार व राज्य शासनों द्वारा मिलने वाली सुविधाएं एवं मान्यता का अभाव भी था जो अब दूर हो चुका है . अब वेब पत्रकार बाकायदा होंगें अधिमान्य पत्रकार, अनुभवी और लम्बी सेवा देने वालों को भी मिलेगी भारत सरकार की मान्यता . यहाँ मध्यप्रदेश शासन को खासतौर पर साधुवाद दिया जा सकता है जिसने भारत सरकार से कहीं पहले वेब पत्रकारिता को अधिमान्यता की श्रेणी में रख कर मिसाल कायम किया है . भारत सरकार भी अब वेब-पत्रकारिता को मान्यता देने वालों देशों में सम्मिलित हो चुका है . देश में वेब-पत्रकारिता को विकसित बनाने के लिए भारत सरकार के सूचना और प्रसारण मंत्रालय में इसके लिए पिछले वर्ष (यानी 12 सितम्बर 2006) आवश्यक संशोधन हो चुका है . अब वेब-पत्रकारिता को भी एक्रीडेशन या मान्यता मिल चुका है अर्थात् भारत सरकार द्वारा नियमों के संशोधन के बाद अपनी साधना में लगे वेब पत्रकारों को उनके कार्य में आसानी के साथ ही वह सभी सुविधायें मिलने लगेंगीं जो अन्य मीडिया के राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त पत्रकारों को मिला करतीं थीं ! इस नये संशोधन से वेब पत्रकारिता को एक जिम्मेवारी और शक्ति दोंनों का इकजाया सयोग मिलेगा और अब इण्टरनेट पर अनेक वरिष्ठ व अनुभवी पत्रकार स्वत: ही जगह बनाने का प्रयास करेगें, साथ ही अब उन नौजवानों के लिये भी प्रशस्ति व उल्लेखनीय कार्यों के लिये दरवाजे खुल गये हैं जो पत्रकारिता को कैरियर के रूप में अपनाना चाहते हैं ! सच्चे मायने में भारत उन विशेष देशों में शामिल हो गया है जो वेब पत्रकारों को प्रत्यायन प्रदान करते हैं. भारत सरकार द्वारा वेब पत्रकारों को निम्नांकित शर्तों के आधार पर अधिमान्यता प्रदान किया जा रहा है-


वार्षिक राजस्व के आधार पर अधिमान्य पत्रकारों के कोटा का विवरण


1. 20 लाख से 1 करोड या संपूर्ण वेबसाइट से 2.5 से 5 करोड़ कुल आय - 3 संवाददाता 1 कैमरामैंन


2. 1 करोड़ से 2.5 करोड़ या संपूर्ण वेबसाइट से 5 करोड़ से 7.5 करोड़ कुल आय - 6 संवाददाता 1 कैमरामैंन


3. 2.5 करोड़ से 5 करोड या संपूर्ण वेबसाइट से 7.5 करोड़ से 10 करोड़ कुल आय12 संवाददाता 4 कैमरामैन


4. 5 करोड़ से ऊपर या संपूर्ण वेबसाइट से 1 0 करोड़ या उससे अधिक कुल आय -15 संवाददाता 5 कैमरामैन




मध्यप्रदेश सरकार द्वारा सन् 17 मार्च 2001 से ही जिला, संभाग, राज्य तीनों स्तर पर वेब मीडिया के पत्रकारों को अधिमान्यता प्रदान जा रही है . इसे विडम्बना ही कहा जाना चाहिए कि छत्तीसगढ सहित अन्य सभी राज्यों की अधिमान्यता नीति में वेब पत्रकारिता और पत्रकार के लिए अब तक स्पष्ट प्रावधान नहीं बनाया जा सका है . यह दीगर बात है कि ऐसे राज्य के राजनैतिक आकाओं के इशारे पर अन्य राज्यों के मुख्यालयों से संचालित वेब पत्रकारों और वेबसाइटों को भरपूर विज्ञापन लूटा रहे हैं . भले ही ये राज्य आईटी आधारित नयी वैकासिक नीति का खूब ढिढोरा पीटे जा रहे हो पर ऑनलाइन पत्रकारिता के लिए वहाँ आवश्यक सहयोग संस्कृति विकसित होना अभी शेष है . इसी तारतम्य में एक वाकया का जिक्र (शासन और जनसंपर्क विभाग से क्षमा याचना सहित) करना अराजकता नहीं होगा . छत्तीसगढ राज्य के सर्वाधिक लोकप्रिय वेबसाइटो में से एक और ऑनलाइन पत्रकारिता की शुरूआती दौर की पत्र
www.srijangatha.com के एक कार्यक्रम में माननीय स्वास्थ्य मंत्री ने 5000 रुपयों की घोषणा कर दी किन्तु इस घोषणा के 8 माह बाद भी उस विज्ञापन के दर्शन नहीं हुए हैं . इतना ही नहीं वांछित अभ्यावेदन पर माननीय मुख्यमंत्री की आवश्यक अनुशंसात्मक टीप व जनसंपर्क प्रमुख की अनापत्ति के बावजूद 14 वर्षीय किशोर द्वारा संचालित इस साइट के लिए राजकीय प्रोत्साहन मिलना अब तक शेष है.


बढ़ रहें हैं नेट उपयोगकर्ता


- अभी इंटरनेट की पहुँच बहुत कम है . ऑनलाइन जगत में हिन्दी के पिछड़ने का प्रमुख कारण यह है कि इंटरनेट से जुड़े भारतीय अपने ऑनलाइन कामकाज में अंग्रेजी का प्रयोग करते रहे हैं. हालाँकि भारत में इंटरनेट से जुड़े लोगों की संख्या में तेजी से वृद्धि हो रही है और ‘
इंटरनेट विश्व सांख्यिकी’ के ताजा आँकड़े बताते हैं कि भारत में जून, 2006 तक 5 करोड़ 60 लाख इंटरनेट प्रयोक्ता हो चुके हैं और भारत अब अमरीका, चीन और जापान के बाद इंटरनेट से जुड़ी आबादी के मामले में चौथा स्थान हासिल कर चुका है. ब्रॉडबैंड इंटरनेट कनेक्शनों की संख्या भारत में 15 लाख हो चुकी है. भारत में अब हर दो कंप्यूटर प्रयोक्ताओं में से एक इंटरनेट से जुड़ चुका है. इंटरनेट पर हिन्दी के जालस्थलों और चिट्ठों की संख्या तेजी से बढ़ रही है और ‘जक्स्ट कंसल्ट’ द्वारा जुलाई, 2006 में जारी ऑनलाइन इंडिया के आँकड़ों से पता चलता है कि ऑनलाइन भारतीयों में से 60% अंग्रेजी पाठकों की तुलना में 42% पाठक गैर-अंग्रेजी भारतीय भाषाओं में और 17% पाठक हिन्दी में पढ़ना पसंद करते हैं. हालाँकि पाठकों का यह रुझान ज्यादातर जागरण, बी.बी.सी. हिन्दी और वेबदुनिया जैसे लोकप्रिय हिन्दी वेबसाइटों की तरफ़ ही है, जिन्हें रोजाना लाखों हिट्स मिलते हैं.


कंप्यूटर और लैपटॉप के दाम अभी आम आदमी की पहुँच से काफ़ी अधिक हैं पर वह निरंतर गिरावट की ओर है जो इंटरनेट जर्नलिज्म के मार्ग में आने वाली बाधा का एक हल भी है .




अधिकांश समाचार पोर्टल, समाचार समूह एवं तथा एम.एस.एन, याहू, गूगल जैसी इंटरनेट कंपनियाँ से संबद्ध होती जा रही हैं . भारत का रूझान बताता है कि जैसे-जैसे देश में इंटरनेट कनेक्शन तथा ब्राडबैंड़ तथा वायरलैस कनेक्शन की सुविधा और कंप्यूटर आधारित तकनीकी ज्ञान प्रवीणों की संख्या बढ़ती जा रही है वैसे-वैसे ऑनलाइन समाचार पत्र-पत्रिका की उपलब्धता और पाठकों की संख्या भी बढ़ती जा रही है . यह प्रभासाक्षी जैसी हिंदी के प्रमुख समाचार-विचार पोर्टल प्रभासाक्षी.कॉम पर होने वाले दैनिक हिट्स की संख्या से भी पता चलता है जो प्रतिदिन तीन लाख से अधिक हो गई है. दो जनवरी 2006 को इस पोर्टल पर तीन लाख एक हजार हिट दर्ज किए गए जो अब लगभग एक करोड़ हिट्स प्रतिमाह की दर जैसे ऐतिहासिक आंकड़ा पार को स्पर्श करने लगी है .




वेब मीडिया का सकारात्मक भविष्य
हिंदी की ऑनलाइन पत्रकारिता का विकास और भविष्य जिन बहुत सारी बातों पर निर्भर करता है उनमें इंटरनेट की पहुँच, बिजली की निरंतरता और सर्वव्यापकता, सॉफ्टवेयर केंद्रित तकनीकी ज्ञान और सुविधा . यूँ तो Windows XP के आ जाने से हिंदी सहित 9 भारतीय भाषाओं में काम करने की समस्या समाप्त प्रायः है तथापि रूढ़गत प्रवृति एवं क्रयशक्ति पतली होने के कारण अभी भी अधिकांश कंप्यूटर उपभोक्ता Window 98 से अपना पिंड नहीं छूड़ा पा रहे हैं जो हिंदी भाषा सहित प्रकारांतर से ऑनलाइन पत्रकारिता के लिए भी एक बड़ी बाधा है . जो भी हो निम्नांकित प्रयासों को इस दिशा में कारगर और उन्नत भविष्य का संकेत माना जा सकता है-




एडोब और माइक्रोसाफ्ट द्वारा टू टाइफ़ फोंट विकसित किया है जो मुफ़्त उपलब्ध है. माइक्रोसॉफ्ट द्वारा विकसित युनिकोड़ित फोंट मंगल से फोंट की समस्या लगभग हल चुकी है . स्पैलिंग चेक करने वाला सॉफ्टवेयर, शब्दकोश एवं थिसॉरस, आदि की उपलब्धता के लिए सी डैक, आईआईटी मुम्बई और मैसुर लगातार सक्रिय है जो भविष्य में उपलब्ध होने लगेगी . गूगल, एमसएन लाइव, याहू, और रेडिफ़ सहित गुरू, रफ्तार आदि के सर्च इंजन हिंदी में विकसित हो जाने से हिंदी खोजने की समस्या हलशुदा है . वेब आधारित कंपनियाँ जैसे दृष्टि, ताराहाथ, आईटीसी ई-चौपाल लगातार ग्राणीण क्षेत्रों में पृथक इंटरनेट सुविधा उपलब्ध कराने हेतु कटिबद्ध है . विकिपीडिया का हिंदी वर्जन भी हिंदी सहित हिंदी पत्रकारिता को गति देने लगी है. हाल ही में ग्रामीण क्षेत्रों में ब्रॉडबैंड सेवा की उपलब्धता बढ़ाने के लिए केंद्र शासन द्वारा जो सब्सड़ी योजना की घोषणा भी की गई है वह ग्रामीण क्षेत्रों में ऑनलाइन पत्रों के लिए कारगर सिद्ध होने वाला है . आईटी मंत्रालय भारत सरकार द्वारा मुफ्त वितरित सीड़ी से भी हिंदी सहित भारतीय भाषाओं में काम करने की सुविधा बढ़ रही है . विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा ई-गवर्नैंस और माध्यमिक स्तर से सूचना तकनीक केंद्रित पाठ्यक्रमों के सचांलन से भविष्य की दिशायें धवल दिखाई देती हैं . फ्रंटपेज आदि वेब-डिजायनिंग सॉफ्टवेयरों के मंहगे होने के कारण साधारण आय वाले पत्रकारों को वेबसाइट संचालन जरूर मँहगा पड़ रहा है किन्तु ओपर सोर्स के खुलते द्वार कुछ राहत नज़र आने लगा है . ज्ञातव्य हो कि जुमला ओपन सोर्स दुनिया का ऐसा मुफ्त सॉफ्टवेयर है जिस पर निर्मित पोर्टल या वेबसाइट अधिक रोचक और कारगर होने लगा है . इसी तरह कई ऐसे सॉफ्टवेयर ओपन सोर्सिंग से डाउनलोड किया जा सकता है ऑनलाइन पत्रकारिता के लिए आवश्यक या वांछित हैं . वेब डियाजनरों की बढ़ती संख्या को भी हम वेब मीडिया के लिए सकारात्मक मान सकते हैं . इसके अलावा भारत के कई विश्वविद्यालयों और शिक्षा प्रतिष्टानों में ऑनलाइन पत्रकारिता पाठ्यक्रमों का जिस गति से विकास हो रहा है उसे देखकर वेब मीडिया का भविष्य संतोषप्रद कहा जा सकता है

4 comments:

  1. PillandAug 29, 2009 12:50 AM
    Your report is very interesting indeed.
    I invite You to see my Italian-Estonian site http://www.pillandia.blogspot.com
    You'll find a rich collection of photos of political borders from all the world.
    Best wishes!
    Reply
  2. himanshuDec 29, 2009 07:50 AM
    आपका लेख बहुत मेहनत से लिखा गया है लेकिन आपके आलेख में bhadas4media.com, raviwar.com और tehelka.com का उल्लेख नहीं हुआ है. जबकि आज ये तीनों ही हिंदी वेब पोर्टल की दुनिया में सबसे मशहूर नाम हैं.
    Reply
  3. वेब पत्रकारिता और हिंदी इस विषय पर आपने जो लिखा है वह बहुत अच्छा है । मैने मेरा भि एक ब्लॉग बनाया है । भेंट दे ।ब्लॉग है- kalghugeganesh.blogspot.com
    धन्यवाद ।
    Reply
  4. KRISHNA KANT CHANDRADec 6, 2011 06:49 AM
    वेब पत्रकारिता के सन्दर्भ में ज्ञानवर्धक आलेख है |महत्वपूर्ण जानकारी प्रस्तुत करने के लिए आपको धन्यवाद |


    कृष्णकान्त चंद्रा
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