रविवार, 22 जनवरी 2012

समाजशास्त्र


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syllabus of sociology
समाजशास्त्र मानव समाज का अध्ययन है. यह सामाजिक विज्ञान (सामान्य रूप से जिसका यह पर्यायवाची है) की एक शाखा है, जो मानवीय सामाजिक संरचना और गतिविधियों से संबंधित जानकारी को परिष्कृत करने और उनका विकास करने के लिए, अनुभवजन्य विवेचन[1][2] और विवेचनात्मक विश्लेषण[3] की विभिन्न पद्धतियों का उपयोग करता है, अक्सर जिसका ध्येय सामाजिक कल्याण के अनुसरण में ऐसे ज्ञान को लागू करना होता है. इसकी विषय वस्तु के विस्तार, आमने-सामने होने वाले संपर्क के सूक्ष्म स्तर से लेकर व्यापक तौर पर समाज के बृहद स्तर तक है.
समाजशास्त्र, पद्धति और विषय वस्तु, दोनों के मामले में एक विस्तृत विषय है. परम्परागत रूप से इसकी केन्द्रीयता सामाजिक स्तर-विन्यास (या "वर्ग"), सामाजिक संबंध, सामाजिक संपर्क, धर्म, संस्कृति और विचलन पर रही है, तथा इसके दृष्टिकोण में गुणात्मक और मात्रात्मक शोध तकनीक, दोनों का समावेश है. चूंकि अधिकांशतः मनुष्य जो कुछ भी करता है वह सामाजिक संरचना या सामाजिक गतिविधि की श्रेणी के अर्न्तगत सटीक बैठता है, समाजशास्त्र ने अपना ध्यान धीरे-धीरे अन्य विषयों जैसे, चिकित्सा, सैन्य और दंड संगठन, जन-संपर्क, और यहां तक कि वैज्ञानिक ज्ञान के निर्माण में सामाजिक गतिविधियों की भूमिका पर केन्द्रित किया है.सामाजिक वैज्ञानिक पद्धतियों की सीमा का भी व्यापक रूप से विस्तार हुआ है. 20वीं शताब्दी के मध्य के भाषाई और सांस्कृतिक परिवर्तनों ने तेज़ी से सामाज के अध्ययन में भाष्य विषयक और व्याख्यात्मक दृष्टिकोण को उत्पन्न किया.इसके विपरीत, हाल के दशकों ने नये गणितीय रूप से कठोर पद्धतियों का उदय देखा है, जैसे सामाजिक नेटवर्क विश्लेषण.

अनुक्रम

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[संपादित करें] आधार

[संपादित करें] इतिहास


ऑगुस्ट कॉम्ट
समाजशास्त्रीय तर्क इस शब्द की उत्पत्ति की तिथि उचित समय से पूर्व की बताते हैं.आर्थिक, राजनैतिक और सांस्कृतिक प्रणालीयों सहित समाजशास्त्र की उत्पत्ति, पश्चिमी ज्ञान और दर्शन के संयुक्त भण्डार में आद्य-समाजशास्त्रीय है.प्लेटो के समय से ही सामाजिक विश्लेषण किया जाना शुरू हो गया.यह कहा जा सकता है कि पहला समाजशास्त्री 14वीं सदी का उत्तर अफ्रीकी अरब विद्वान, इब्न खल्दून था, जिसकी मुक़द्दीमा , सामाजिक एकता और सामाजिक संघर्ष के सामाजिक-वैज्ञानिक सिद्धांतों को आगे लाने वाली पहली कृति थी.[4][5][6][7][8]
शब्द "sociologie " पहली बार 1780 में फ़्रांसीसी निबंधकार इमेनुअल जोसफ सीयस (1748-1836) द्वारा एक अप्रकाशित पांडुलिपि में गढ़ा गया.[9] यह बाद में ऑगस्ट कॉम्ट(1798-1857) द्वारा 1838 में स्थापित किया गया.[10] इससे पहले कॉम्ट ने "सामाजिक भौतिकी" शब्द का इस्तेमाल किया था, लेकिन बाद में वह दूसरों द्वारा अपनाया गया, विशेष रूप से बेल्जियम के सांख्यिकीविद् एडॉल्फ क्योटेलेट. कॉम्ट ने सामाजिक क्षेत्रों की वैज्ञानिक समझ के माध्यम से इतिहास, मनोविज्ञान, और अर्थशास्त्र को एकजुट करने का प्रयास किया.फ्रांसीसी क्रांति की व्याकुलता के शीघ्र बाद ही लिखते हुए, उन्होंने प्रस्थापित किया कि सामाजिक निश्चयात्मकता के माध्यम से सामाजिक बुराइयों को दूर किया जा सकता है, यह द कोर्स इन पोसिटिव फिलोसफी (1830-1842) और ए जनरल व्यू ऑफ़ पॉसिटिविस्म (1844) में उल्लिखित एक दर्शनशास्त्रीय दृष्टिकोण है. कॉम्ट को विश्वास था कि एक 'प्रत्यक्षवादी स्तर' मानवीय समझ के क्रम में, धार्मिक अटकलों और आध्यात्मिक चरणों के बाद अंतिम दौर को चिह्नित करेगा.यद्यपि कॉम्ट को अक्सर "समाजशास्त्र का पिता" माना जाता है,[11] तथापि यह विषय औपचारिक रूप से एक अन्य संरचनात्मक व्यावहारिक विचारक एमिल दुर्खीम( 1858-1917) द्वारा स्थापित किया गया था, जिसने प्रथम यूरोपीय अकादमिक विभाग की स्थापना की और आगे चलकर प्रत्यक्षवाद का विकास किया.तब से, सामाजिक ज्ञानवाद, कार्य पद्धतियां, और पूछताछ का दायरा, महत्त्वपूर्ण रूप से विस्तृत और अपसारित हुआ है.

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महत्वपूर्ण व्यक्ति ===

एमिल दुर्खीम
समाजशास्त्र का विकास 19वी सदी में उभरती आधुनिकता की चुनौतियों, जैसे औद्योगिकीकरण, शहरीकरण और वैज्ञानिक पुनर्गठन की शैक्षणिक अनुक्रिया, के रूप में हुआ.यूरोपीय महाद्वीप में इस विषय ने अपना प्रभुत्व जमाया, और वहीं ब्रिटिश मानव-शास्त्र ने सामान्यतया एक अलग पथ का अनुसरण किया.20वीं सदी के समाप्त होने तक, कई प्रमुख समाजशास्त्रियों ने एंग्लो अमेरिकन दुनिया में रह कर काम किया. शास्त्रीय सामाजिक सिद्धांतकारों में शामिल हैं एलेक्सिस डी टोकविले, विल्फ्रेडो परेटो, कार्ल मार्क्स, फ्रेडरिक एंगेल्स, लुडविग गम्प्लोविज़, फर्डिनेंड टोंनीज़, फ्लोरियन जेनिके, थोर्स्तेइन वेब्लेन, हरबर्ट स्पेन्सर, जॉर्ज सिमेल, जार्ज हर्बर्ट मीड,, चार्ल्स कूले, वर्नर सोम्बर्ट, मैक्स वेबर, एंटोनियो ग्राम्सी, गार्गी ल्यूकास, वाल्टर बेंजामिन, थियोडोर डब्ल्यू. एडोर्नो, मैक्स होर्खेइमेर, रॉबर्ट के. मेर्टोंन और टेल्कोट पार्सन्स.विभिन्न शैक्षणिक विषयों में अपनाए गए सिद्धांतों सहित उनकी कृतियां अर्थशास्त्र, न्यायशास्त्र, मनोविज्ञान और दर्शन को प्रभावित करती हैं.
20वीं सदी के उत्तरार्ध के और समकालीन व्यक्तियों में पियरे बौर्डिए सी.राइट मिल्स , उल्रीश बैक, हावर्ड एस. बेकर, जरगेन हैबरमास डैनियल बेल, पितिरिम सोरोकिन सेमोर मार्टिन लिप्सेट मॉइसे ओस्ट्रोगोर्स्की लुई अलतूसर, निकोस पौलान्त्ज़स, राल्फ मिलिबैंड, सिमोन डे बौवार, पीटर बर्गर, हर्बर्ट मार्कुस, मिशेल फूकाल्ट, अल्फ्रेड शुट्ज़, मार्सेल मौस, जॉर्ज रित्ज़र, गाइ देबोर्ड , जीन बौद्रिलार्ड, बार्नी ग्लासेर, एनसेल्म स्ट्रॉस, डोरोथी स्मिथ, इरविंग गोफमैन, गिल्बर्टो फ्रेयर, जूलिया क्रिस्तेवा, राल्फ डहरेनडोर्फ़, हर्बर्ट गन्स, माइकल बुरावॉय, निकलस लुह्मन, लूसी इरिगरे, अर्नेस्ट गेलनेर, रिचर्ड होगार्ट, स्टुअर्ट हॉल, रेमंड विलियम्स, फ्रेडरिक जेमसन, एंटोनियो नेग्री, अर्नेस्ट बर्गेस, गेर्हार्ड लेंस्की, रॉबर्ट बेलाह, पॉल गिलरॉय, जॉन रेक्स, जिग्मंट बॉमन, जुडिथ बटलर, टेरी ईगलटन, स्टीव फुलर, ब्रूनो लेटर , बैरी वेलमैन, जॉन थॉम्पसन, एडवर्ड सेड, हर्बर्ट ब्लुमेर, बेल हुक्स, मैनुअल कैसल्स, और एंथोनी गिडन्स .
प्रत्येक महत्त्वपूर्ण व्यक्ति एक विशेष सैद्धांतिक दृष्टिकोण और अनुस्थापन से सम्बद्ध है. दुर्खीम, मार्क्स और वेबर को आम तौर पर समाजशास्त्र के तीन प्रमुख संस्थापकों के रूप में उद्धृत किया जाता है; उनके कार्यों को क्रमशः प्रकार्यवाद, द्वंद सिद्धांत और गैर-प्रत्यक्षवाद के उपदेशों में आरोपित किया जा सकता है.सिमेलऔर पार्सन्स को कभी-कभार चौथे "प्रमुख व्यक्ति" के रूप में शिक्षा पाठ्यक्रम में शामिल किया जाता है.
Marx and Engels associated the emergence of modern society above all with the development of capitalism; for Durkheim it was connected in particular with industrialization and the new social division of labour which this brought about; for Weber it had to do with the emergence of a distinctive way of thinking, the rational calculation which he associated with the Protestant Ethic (more or less what Marx and Engels speak of in terms of those 'icy waves of egotistical calculation'). Together the works of these great classical sociologists suggest what Giddens has recently described as 'a multidimensional view of institutions of modernity' and which emphasizes not only capitalism and industrialism as key institutions of modernity, but also 'surveillance' (meaning 'control of information and social supervision') and 'military power' (control of the means of violence in the context of the industrialization of war).
John Harriss The Second Great Transformation? Capitalism at the End of the Twentieth Century 1992, [12]

[संपादित करें] एक अकादमिक विषय के रूप में समाजशास्त्र का संस्थानिकरण


हसम में फर्डिनेंड टोंनी की आवक्ष मूर्ति
1890 में पहली बार इस विषय को इसके अपने नाम के तहत अमेरिका केकन्सास विश्वविद्यालय, लॉरेंस में पढ़ाया गया. इस पाठ्यक्रम को जिसका शीर्षक समाजशास्त्र के तत्व था, पहली बार फ्रैंक ब्लैकमर द्वारा पढ़ाया गया. अमेरिका में जारी रहने वाला यह सबसे पुराना समाजशास्त्र पाठ्यक्रम है. अमेरिका के प्रथम विकसित स्वतंत्र विश्वविद्यालय, कन्सास विश्वविद्यालय में 1891 में इतिहास और समाजशास्त्र विभाग की स्थापना की गयी.[13][14]शिकागो विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र विभाग की स्थापना 1892 में एल्बिओन डबल्यू. स्माल द्वारा की गयी, जिन्होंने 1895 में अमेरिकन जर्नल ऑफ़ सोशिऑलजी की स्थापना की.[15]
प्रथम यूरोपीय समाजशास्त्र विभाग की स्थापना 1895 में, L'Année Sociologique(1896) के संस्थापक एमिल दुर्खीम द्वारा बोर्डिऑक्स विश्वविद्यालय में की गयी.1904 में यूनाइटेड किंगडम में स्थापित होने वाला प्रथम समाजशास्त्र विभाग, लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनोमिक्स एंड पोलिटिकल साइन्स (ब्रिटिश जर्नल ऑफ़ सोशिऑलजी की जन्मभूमि) में हुआ.[16] 1919 में, जर्मनी में एक समाजशास्त्र विभाग की स्थापना लुडविग मैक्सीमीलियन्स यूनिवर्सिटी ऑफ़ म्यूनिख में मैक्स वेबर द्वारा और 1920 में पोलैंड में फ्लोरियन जेनेक द्वारा की गई.
समाजशास्त्र में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग 1893 में शुरू हुआ, जब रेने वोर्म्स ने स्थापना की , जो 1949 में स्थापित अपेक्षाकृत अधिक विशाल अंतर्राष्ट्रीय सामाजिक संघ(ISA) द्वारा प्रभावहीन कर दिया गया.[17] 1905 में, विश्व के सबसे विशाल पेशेवर समाजशास्त्रियों का संगठन, अमेरिकी सामाजिक संगठन की स्थापना हुई, और 1909 में फर्डिनेंड टोनीज़, जॉर्ज सिमेल और मैक्स वेबर सहित अन्य लोगों द्वारा Deutsche Gesellschaft für Soziologie (समाजशास्त्र के लिए जर्मन समिति ) की स्थापना हुई.

[संपादित करें] प्रत्यक्षवाद और गैर-प्रत्यक्षवाद

आरंभिक सिद्धांतकारों का समाजशास्त्र की ओर क्रमबद्ध दृष्टिकोण, इस विषय के साथ प्रकृति विज्ञान के समान ही व्यापक तौर पर व्यवहार करना था.किसी भी सामाजिक दावे या निष्कर्ष को एक निर्विवाद आधार प्रदान करने हेतु, और अपेक्षाकृत कम अनुभवजन्य क्षेत्रों से जैसे दर्शन से समाजशास्त्र को पृथक करने के लिए अनुभववाद और वैज्ञानिक विधि को महत्व देने की तलाश की गई. प्रत्यक्षवाद कहा जाने वाला यह दृष्टिकोण इस धारणा पर आधारित है कि केवल प्रामाणिक ज्ञान ही वैज्ञानिक ज्ञान है, और यह कि इस तरह का ज्ञान केवल कठोर वैज्ञानिक और मात्रात्मक पद्धतियों के माध्यम से, सिद्धांतों की सकारात्मक पुष्टि से आ सकता है. एमिल दुर्खीम सैद्धांतिक रूप से आधारित अनुभवजन्य अनुसंधान[18] के एक बड़े समर्थक थे, जो संरचनात्मक नियमों को दर्शाने के लिए "सामाजिक तथ्यों" के बीच संबंधो को तलाश रहे थे.उनकी स्थिति "एनोमी" को खारिज करने और सामाजिक सुधार के लिए सामाजिक निष्कर्षों में उनकी रूचि से अनुप्राणित होती थी.आज, दुर्खीम का विद्वता भरा प्रत्यक्षवाद का विवरण, अतिशयोक्ति और अति सरलीकरण के प्रति असुरक्षित हो सकता है: कॉम्ट ही एकमात्र ऐसा प्रमुख सामाजिक विचारक था जिसने दावा किया कि सामाजिक विभाग भी कुलीन विज्ञान के समान वैज्ञानिक विश्लेषण के अन्तर्गत आ सकता है, जबकि दुर्खीम ने अधिक विस्तार से मौलिक ज्ञानशास्त्रीय सीमाओं को स्वीकृति दी.[19][20]

कार्ल मार्क्स
प्रत्यक्षवाद के विरोध में प्रतिक्रियाएं तब शुरू हुईं जब जर्मन दार्शनिक जॉर्ज फ्रेडरिक विल्हेम हेगेल ने दोनों अनुभववाद के खिलाफ आवाज उठाई, जिसे उसने गैर-विवेचनात्मक, और नियतिवाद के रूप में खारिज कर दिया, और जिसे उसने अति यंत्रवत के रूप में देखा.[21] कार्ल मार्क्स की पद्धति, न केवल हेगेल के प्रांतीय भाषावाद से ली गयी थी, बल्कि, भ्रमों को मिटाते हुए "तथ्यों" के अनुभवजन्य अधिग्रहण को पूर्ण करने की तलाश में, विवेचनात्मक विश्लेषण के पक्ष में प्रत्यक्षवाद का बहिष्कार भी है.[22] उसका मानना रहा कि अनुमानों को सिर्फ लिखने की बजाय उनकी समीक्षा होनी चाहिए. इसके बावजूद मार्क्स ने ऐतिहासिक भौतिकवाद के आर्थिक नियतिवाद पर आधारित साइंस ऑफ़ सोसाइटी प्रकाशित करने का प्रयास किया.[22]हेनरिक रिकेर्ट और विल्हेम डिल्थे सहित अन्य दार्शनिकों ने तर्क दिया कि प्राकृतिक दुनिया, मानव समाज के उन विशिष्ट पहलुओं (अर्थ, संकेत, और अन्य) के कारण सामाजिक संसारसामाजिक वास्तविकता से भिन्न है, जो मानव संस्कृति को अनुप्राणित करती है.
20वीं सदी के अंत में जर्मन समाजशास्त्रियों की पहली पीढ़ी ने औपचारिक तौर पर प्रक्रियात्मक गैर-प्रत्यक्षवाद को पेश किया, इस प्रस्ताव के साथ कि अनुसंधान को मानव संस्कृति के मानकों, मूल्यों, प्रतीकों, और सामाजिक प्रक्रियाओं पर व्यक्तिपरक दृष्टिकोण से केन्द्रित होना चाहिए.मैक्स वेबर ने तर्क दिया कि समाजशास्त्र की व्याख्या हल्के तौर पर एक 'विज्ञान' के रूप में की जा सकती है, क्योंकि यह खास कर जटिल सामाजिक घटना के आदर्श वर्ग अथवा काल्पनिक सरलीकरण के बीच - कारण-संबंधों को पहचानने में सक्षम है.[23] बहरहाल, प्राकृतिक वैज्ञानिकों द्वारा खोजे जाने वाले संबंधों के विपरीत एक गैर प्रत्यक्षवादी के रूप में, एक व्यक्ति संबंधों की तलाश करता है जो "अनैतिहासिक, अपरिवर्तनीय, अथवा सामान्य है".[24]फर्डिनेंड टोनीज़ ने मानवीय संगठनों के दो सामान्य प्रकारों के रूप में गेमाइनशाफ्ट और गेसेल्शाफ्ट(साहित्य, समुदाय और समाज ) को प्रस्तुत किया.टोंनीज़ ने अवधारणा और सामाजिक क्रिया की वास्तविकता के क्षेत्रों के बीच एक स्पष्ट रेखा खींची: पहले वाले के साथ हमें स्वतःसिद्ध और निगमनात्मक तरीके से व्यवहार करना चाहिए ('सैद्धान्तिक' समाजशास्त्र), जबकि दूसरे से प्रयोगसिद्ध और एक आगमनात्‍मक तरीके से ('व्यावहारिक' समाजशास्त्र).
Max Weber 1894.jpg
[Sociology is ] ... the science whose object is to interpret the meaning of social action and thereby give a causal explanation of the way in which the action proceeds and the effects which it produces. By 'action' in this definition is meant the human behaviour when and to the extent that the agent or agents see it as subjectively meaningful ... the meaning to which we refer may be either (a) the meaning actually intended either by an individual agent on a particular historical occasion or by a number of agents on an approximate average in a given set of cases, or (b) the meaning attributed to the agent or agents, as types, in a pure type constructed in the abstract. In neither case is the 'meaning' to be thought of as somehow objectively 'correct' or 'true' by some metaphysical criterion. This is the difference between the empirical sciences of action, such as sociology and history, and any kind of priori discipline, such as jurisprudence, logic, ethics, or aesthetics whose aim is to extract from their subject-matter 'correct' or 'valid' meaning.
Max Weber The Nature of Social Action 1922, [25]
वेबर और जॉर्ज सिमेल, दोनों, समाज विज्ञान के क्षेत्र में फस्टेहेन अभिगम (अथवा 'व्याख्यात्मक') के अगुआ रहे; एक व्यवस्थित प्रक्रिया, जिसमें एक बाहरी पर्यवेक्षक एक विशेष सांकृतिक समूह, अथवा स्वदेशी लोगो के साथ उनकी शर्तों पर और उनके अपने दृष्टिकोण के हिसाब से जुड़ने की कोशिश करता है.विशेष रूप से, सिमेल के कार्यों के माध्यम से, समाजशास्त्र ने प्रत्यक्ष डाटा संग्रह या भव्य, संरचनात्मक कानून की नियतिवाद प्रणाली से परे, प्रत्यक्ष स्वरूप प्राप्त किया.जीवन भर सामाजिक अकादमी से अपेक्षाकृत पृथक रहे, सिमेल ने कॉम्ट या दुर्खीम की अपेक्षा घटना-क्रिया-विज्ञान और अस्तित्ववादी लेखकों का स्मरण दिलाते हुए आधुनिकता का स्वभावगत विश्लेषण प्रस्तुत किया, जिन्होंने सामाजिक वैयक्तिकता के लिए संभावनाओं और स्वरूपों पर विशेष तौर पर ध्यान केन्द्रित किया.[26] उसका समाजशास्त्र अनुभूति की सीमा के नियो-कांटीयन आलोचना में व्यस्त रहा, जिसमें पूछा जाता है 'समाज क्या है?'जो कांट के सवाल 'प्रकृति क्या है?', का सीधा संकेत है.[27]
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The deepest problems of modern life flow from the attempt of the individual to maintain the independence and individuality of his existence against the soverign powers of society, against the weight of the historical heritage and the external culture and technique of life. The antagonism represents the most modern form of the conflict which primitive man must carry on with nature for his own bodily existence. The eighteenth century may have called for liberation from all the ties which grew up historically in politics, in religion, in morality and in economics in order to permit the original natural virtue of man, which is equal in everyone, to develop without inhibition; the nineteenth century may have sought to promote, in addition to man's freedom, his individuality (which is connected with the division of labor) and his achievements which make him unique and indispensable but which at the same time make him so much the more dependent on the complementary activity of others; Nietzsche may have seen the relentless struggle of the individual as the prerequisite for his full development, while socialism found the same thing in the suppression of all competition - but in each of these the same fundamental motive was at work, namely the resistance of the individual to being levelled, swallowed up in the social-technological mechanism.
Georg Simmel The Metropolis of Modern Life 1903, [28]

[संपादित करें] बीसवीं सदी के विकास

20वीं सदी के प्रारंभिक वर्षों में समाजशास्त्र का विस्तार अमेरिका में हुआ जिसके तहत समाज के विकास से संबंधित स्थूल समाजशास्त्र, और मानव के दैनंदिन सामाजिक संपर्कों से संबंधित, सूक्ष्म समाजशास्त्र, दोनों का विकास शामिल है.जार्ज हर्बर्ट मीड, हर्बर्ट ब्लूमर और बाद में शिकागो स्कूल के व्यावहारिक सामाजिक मनोविज्ञान के आधार पर समाजशास्त्रियों ने प्रतीकात्मक परस्पारिकता विकसित की.[29] 1930 के दशक में, टेल्कोट पार्सन्स ने, चर्चा को व्यवस्था सिद्धांत और साइबरवाद के एक उच्च व्याख्यात्मक संदर्भ के अन्दर रखते हुए, सामाजिक व्यवस्था के अध्ययन को स्थूल और सूक्ष्म घटकों के संरचनात्मक और स्वैच्छिक पहलू के साथ एकीकृत करते हुए क्रिया सिद्धांत विकसित किया. ऑस्ट्रिया और तदनंतर अमेरिका में, अल्फ्रेड शुट्ज़ ने सामाजिक घटना-क्रिया-विज्ञान का विकास किया, जिसने बाद में सामाजिक निर्माणवाद के बारे में जानकारी दी. उसी अवधि के दौरान फ्रैंकफर्ट स्कूल के सदस्यों ने, सिद्धांत में - वेबर, फ्रायड और ग्रैम्स्की की अंतर्दृष्टि सहित मार्क्सवाद के ऐतिहासिक भौतिकवादी तत्वों को एकीकृत कर विवेचनात्मक सिद्धांत का विकास किया, यदि हमेशा नाम में ना रहा हो, तब भी अक्सर ज्ञान के केन्द्रीय सिद्धांतों से दूर होने के क्रम में पूंजीवादी आधुनिकता की विशेषता बताता है.
यूरोप में, विशेष रूप से आतंरिक युद्ध की अवधि के दौरान, अधिनायकवादी सरकारों द्वारा और पश्चिम में रूढ़िवादी विश्वविद्यालयों द्वारा भी प्रत्यक्ष राजनीतिक नियंत्रण के कारणों से समाजशास्त्र को कमज़ोर किया गया. आंशिक रूप से, इसका कारण था, उदार या वामपंथी विचारों की ओर अपने स्वयं के लक्ष्यों और परिहारों के माध्यम से इस विषय में प्रतीत होने वाली अंतर्निहित प्रवृत्ति.यह देखते हुए कि यह विषय संरचनात्मक क्रियावादियों द्वारा गठित किया गया था: जैविक सम्बद्धता और सामाजिक एकता से संबंधित यह अवलोकन कही न कहीं निराधार था (हालांकि यह पार्सन्स ही था जिसने दुर्खीमियन सिद्धांत को अमेरिकी दर्शकों से परिचय कराया, और अव्यक्त रूढ़िवादिता के लिए उसकी विवेचना की आलोचना, इरादे से कहीं ज़्यादा की गयी).[30] उस दौरान क्रिया सिद्धांत और अन्य व्यवस्था सिद्धांत अभिगमों के प्रभाव के कारण 20वीं शताब्दी के मध्य में U.S-अमेरिकी समाजशास्त्र के, अधिक वैज्ञानिक होने की एक सामान्य लेकिन असार्वभौमिक प्रवृति थी.
20वीं सदी के उत्तरार्ध में, सामाजिक अनुसंधान तेजी से सरकारों और उद्यमों द्वारा उपकरण के रूप में अपनाया जाने लगा.समाजशास्त्रियों ने नए प्रकार के मात्रात्मक और गुणात्मक शोध विधियों का विकास किया. 1960 के दशक में विभिन्न सामाजिक आंदोलनों के उदय के समानान्तर, विशेष रूप से ब्रिटेन में, सांस्कृतिक परिवर्तन ने सामाजिक संघर्ष (जैसे नव-मार्क्सवाद, नारीवाद की दूसरी लहर और जातीय सम्बन्ध) पर जोर देते विरोधी सिद्धांत का उदय देखा, जिसने क्रियावादी दृष्टिकोण का सामना किया. धर्म के समाजशास्त्र ने उस दशक में, धर्मनिरपेक्षीकरण लेखों, भूमंडलीकरण के साथ धर्म की अन्योन्य-क्रिया, और धार्मिक अभ्यास की परिभाषा पर नयी बहस के साथ पुनर्जागरण देखा.लेंस्की और यिन्गेर जैसे सिद्धान्तकारों ने धर्म की 'वृत्तिमूलक' परिभाषा की रचना की; इस बात की पड़ताल करते हुए कि धर्म क्या करता है, बजाय आम परिप्रेक्ष्य में कि, यह क्या है .इस प्रकार, विभिन्न नए सामाजिक संस्थानों और आंदोलनों को उनकी धार्मिक भूमिका के लिए निरीक्षित किया जा सकता है. ल्युकस और ग्राम्स्की की परम्परा में मार्क्सवादी सिद्धांतकारों ने उपभोक्तावाद का परीक्षण समरूपी शर्तों पर करना जारी रखा.
1960 और 1970 के दशक में तथाकथित उत्तर-सरंचनावादी और उत्तर-आधुनिकतावादी सिद्धांत ने, नीत्शे और घटना-क्रिया विज्ञानियों के साथ-साथ शास्त्रीय सामाजिक वैज्ञानिकों को आधारित करते हुए, सामाजिक जांच के सांचे पर काफी प्रभाव डाला. अक्सर, अंतरपाठ-सम्बन्ध, मिश्रण और व्यंग्य, द्वारा चिह्नित और सामान्य तौर पर सांस्कृतिक शैली 'उत्तर आधुनिकता' के रूप में समझे जाने वाले उत्तरआधुनिकता के सामाजिक विश्लेषण ने एक पृथक युग पेश किया जो सबंधित है (1) मेटानरेटिव्स[अधिवर्णन] के विघटन से (विशेष रूप से ल्योटार्ड के कार्यों में), और (2) वस्तु पूजा और पूंजीवादी समाज के उत्तरार्ध में खपत के साथ प्रतिबिंबित होती पहचान से (डेबोर्ड; बौड्रीलार्ड; जेम्सन).[31] उत्तर आधुनिकता का सम्बन्ध मानव इकाई की ज्ञानोदय धारणाओं की कुछ विचारकों द्वारा अस्वीकृति से भी जुड़ा हुआ है, जैसे मिशेल फूको, क्लाड लेवी-स्ट्रॉस और कुछ हद तक लुईस आल्तुसेर द्वारा मार्क्सवाद को गैर-मानवतावाद के साथ मिलाने का प्रयास. इन आन्दोलनों से जुड़े अधिकतर सिद्धांतकारों ने उत्तरआधुनिकता को किसी तरह की विवेचनात्मक पद्धति के बजाय एक ऐतिहासिक घटना के रूप में स्वीकार करने को महत्ता देते हुए, सक्रिय रूप से इस लेबल को नकार दिया.फिर भी, सचेत उत्तरआधुनिकता के अंश सामान्य रूप में सामाजिक और राजनीतिक विज्ञान में उभरते रहे.एंग्लो-सैक्सन दुनिया में काम कर रहे समाजशास्त्री, जैसे एन्थोनी गिडेंस और जिग्मंट बाऊमन, ने एक विशिष्ट "नए" स्वाभाविक युग का प्रस्ताव रखने के बजाय संचार, वैश्विकरण, और आधुनिकता के 'उच्च चरण' के मामले में अड़तिया पुनरावृति के सिद्धांतों पर ध्यान दिया.
प्रत्यक्षवादी परंपरा समाजशास्त्र में सर्वत्र है, विशेष रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका में.[32] इस विषय की दो सबसे व्यापक रूप से उद्धृत अमेरिकी पत्रिकाएं, अमेरिकन जर्नल ऑफ सोशिऑलोजी और अमेरिकन सोशिऑलोजिकल रिव्यू , मुख्य रूप से प्रत्यक्षवादी परंपरा में अनुसंधान प्रकाशित करती हैं, जिसमें ASR अधिक विविधता को दर्शाती है (दूसरी ओर ब्रिटिश जर्नल ऑफ़ सोशिऑलोजी मुख्यतया गैर-प्रत्यक्षवादी लेख प्रकाशित करती है).[32] बीसवीं सदी ने समाजशास्त्र में मात्रात्मक पद्धतियों के प्रयोग में सुधार देखा.अनुदैर्घ्य अध्ययन के विकास ने, जो कई वर्षों अथवा दशकों के दौरान एक ही जनसंख्या का अनुसरण करती है, शोधकर्ताओं को लंबी अवधि की घटनाओं के अध्ययन में सक्षम बनाया और कारण-कार्य-सिद्धान्त का निष्कर्ष निकालने के लिए शोधकर्ताओं की क्षमता में वृद्धि की.नए सर्वेक्षण तरीकों द्वारा उत्पन्न समुच्चय डाटा के आकार में वृद्धि का अनुगमन इस डाटा के विश्लेषण के लिए नई सांख्यिकीय तकनीकों के आविष्कार से हुआ.इस प्रकार के विश्लेषण आम तौर पर सांख्यिकी सॉफ्टवेयर संकुल जैसे SAS, Stata, या SPSS की सहायता से किए जाते हैं. सामाजिक नेटवर्क विश्लेषण, प्रत्यक्षवाद परंपरा में एक नए प्रतिमान का उदाहरण है. सामाजिक नेटवर्क विश्लेषण का प्रभाव कई सामाजिक उपभागों में व्याप्त है जैसे आर्थिक समाजशास्त्र (उदाहरण के लिए, जे. क्लाइड मिशेल, हैरिसन व्हाइट या मार्क ग्रानोवेटर का कार्य देखें), संगठनात्मक व्यवहार, ऐतिहासिक समाजशास्त्र, राजनीतिक समाजशास्त्र, अथवा शिक्षा का समाजशास्त्र.स्टेनली अरोनोवित्ज़ के अनुसार, संयुक्त राज्य अमेरिका में सी.राइट मिल्स की प्रवृत्ति और उनके पॉवर एलीट के अध्ययन में उनके मुताबिक अधिक स्वतंत्र अनुभवजन्य समाजशास्त्र का एक सूक्ष्म पुनुरुत्थान दिखाई देता है.[33]

[संपादित करें] ज्ञान मीमांसा और प्रकृति दर्शनशास्त्र

विषय का किस हद तक विज्ञान के रूप में चित्रण किया जा सकता है यह बुनियादी प्रकृति दर्शनशास्त्र और ज्ञान मीमांसा के प्रश्नों के सन्दर्भ में एक प्रमुख मुद्दा रहा है.सिद्धांत और अनुसंधान के आचरण में किस प्रकार आत्मीयता, निष्पक्षता, अंतर-आत्मीयता और व्यावहारिकता को एकीकृत करें और महत्व दें, इस बात पर विवाद उठते रहते हैं.हालांकि अनिवार्य रूप से 19वीं सदी के बाद से सभी प्रमुख सिद्धांतकारों ने स्वीकार किया है कि समाजशास्त्र, शब्द के पारंपरिक अर्थ में एक विज्ञान नहीं है, करणीय संबंधों को मजबूत करने की क्षमता ही विज्ञान परा-सिद्धांत में किये गए सामान मौलिक दार्शनिक विचार विमर्श का आह्वान करती है.कभी-कभी नए अनुभववाद की एक नस्ल के रूप में प्रत्यक्षवाद का हास्य चित्रण हुआ है, इस शब्द का कॉम्ते के समय से वियना सर्कल और उससे आगे के तार्किक वस्तुनिष्ठवाद के लिए अनुप्रयोगों का एक समृद्ध इतिहास है. एक ही तरीके से, प्रत्यक्षवाद कार्ल पॉपर द्वारा प्रस्तुत महत्वपूर्ण बुद्धिवादी गैर-न्यायवाद के सामने आया है, जो स्वयं थॉमस कुह्न के ज्ञान मीमांसा के प्रतिमान विचलन की अवधारणा के ज़रिए विवादित है. मध्य 20वीं शताब्दी के भाषाई और सांस्कृतिक बदलावों ने समाजशास्त्र में तेजी से अमूर्त दार्शनिक और व्याख्यात्मक सामग्री में वृद्धि, और साथ ही तथाकथित ज्ञान के सामाजिक अधिग्रहण पर "उत्तरआधुनिक" दृष्टिकोण को अंकित करता है. सामाजिक विज्ञान के दर्शन पर साहित्य के सिद्धांत में उल्लेखनीय आलोचना पीटर विंच के द आइडिया ऑफ़ सोशल साइन्स एंड इट्स रिलेशन टू फ़िलासफ़ी (1958) में पाया जाता है. हाल के वर्षों में विट्टजेनस्टीन और रिचर्ड रोर्टी जैसी हस्तियों के साथ अक्सर समाजशास्त्री भिड़ गए हैं, जैसे कि सामाजिक दर्शन अक्सर सामाजिक सिद्धांत का खंडन करता है.

एंथनी गिडेंस
संरचना एवं साधन सामाजिक सिद्धांत में एक स्थायी बहस का मुद्दा है: "क्या सामाजिक संरचनाएं अथवा मानव साधन किसी व्यक्ति के व्यवहार का निर्धारण करता है?" इस संदर्भ में 'साधन', व्यक्तियों के स्वतंत्र रूप से कार्य करने और मुक्त चुनाव करने की क्षमता इंगित करता है, जबकि 'संरचना' व्यक्तियों की पसंद और कार्यों को सीमित अथवा प्रभावित करने वाले कारकों को निर्दिष्ट करती है (जैसे सामाजिक वर्ग, धर्म, लिंग, जातीयता इत्यादि). संरचना अथवा साधन की प्रधानता पर चर्चा, सामाजिक सत्ता-मीमांसा के मूल मर्म से संबंधित हैं ("सामाजिक दुनिया किससे बनी है?", "सामाजिक दुनिया में कारक क्या है, और प्रभाव क्या है?"). उत्तर आधुनिक कालीन आलोचकों का सामाजिक विज्ञान की व्यापक परियोजना के साथ मेल-मिलाप का एक प्रयास, खास कर ब्रिटेन में, विवेचनात्मक यथार्थवाद का विकास रहा है.राय भास्कर जैसे विवेचनात्मक यथार्थवादियों के लिए, पारंपरिक प्रत्यक्षवाद, विज्ञान को यानि कि खुद संरचना और साधन को ही संभव करने वाले, सत्तामूलक हालातों के समाधान में नाकामी की वजह से 'ज्ञान तर्कदोष' करता है. अत्यधिक संरचनात्मक या साधनपरक विचार के प्रति अविश्वास का एक और सामान्य परिणाम बहुआयामी सिद्धांत, विशेष रूप से टैलकॉट पार्सन्स का क्रिया सिद्धांत और एंथोनी गिड्डेन्स का संरचनात्मकता का सिद्धांत का विकास रहा है. अन्य साकल्यवादी सिद्धांतों में शामिल हैं, पियरे बौर्डियो की गठन की अवधारणा और अल्फ्रेड शुट्ज़ के काम में भी जीवन-प्रपंच का दृश्यप्रपंचवाद का विचार.
सामाजिक प्रत्यक्षवाद के परा-सैद्धांतिक आलोचनाओं के बावजूद, सांख्यिकीय मात्रात्मक तरीके बहुत ही ज़्यादा व्यवहार में रहते हैं.माइकल बुरावॉय ने सार्वजनिक समाजशास्त्र की तुलना, कठोर आचार-व्यवहार पर जोर देते हुए, शैक्षणिक या व्यावसायिक समाजशास्त्र के साथ की है, जो व्यापक रूप से अन्य सामाजिक/राजनैतिक वैज्ञानिकों और दार्शनिकों के बीच संलाप से संबंध रखता है.

[संपादित करें] समाजशास्त्र का कार्य-क्षेत्र और विषय

[संपादित करें] संस्कृति


1965 में हाईडेलबर्ग में, मैक्स होर्खेमर (सामने बाएं), थियोडोर एडोर्नो (सामने दाएं), और युरगेन हैबरमास (पीछे दाएं).
सांस्कृतिक समाजशास्त्र में शब्दों, कलाकृतियों और प्रतीको का विवेचनात्मक विश्लेषण शामिल है, जो सामाजिक जीवन के रूपों के साथ अन्योन्य क्रिया करता है, चाहे उप संस्कृति के अंतर्गत हो अथवा बड़े पैमाने पर समाजों के साथ.सिमेल के लिए, संस्कृति का तात्पर्य है "बाह्य साधनों के माध्यम से व्यक्तियों का संवर्धन करना, जो इतिहास के क्रम में वस्तुनिष्ठ बनाए गए हैं.[34]थियोडोर एडोर्नो और वाल्टर बेंजामिन जैसे फ्रैंकफर्ट स्कूल के सिद्धांतकारों के लिए स्वयं संस्कृति, एक ऐतिहासिक भौतिकतावादीविश्लेषण का प्रचलित विषय था. सांस्कृतिक शिक्षा के शिक्षण में सामाजिक जांच-पड़ताल के एक सामान्य विषय के रूप में, 1964 में इंग्लैंड के बर्मिन्घम विश्वविद्यालय में स्थापित एक अनुसंधान केंद्र, समकालीन सांस्कृतिक अध्ययन केंद्र(CCCS) में शुरू हुआ.रिचर्ड होगार्ट, स्टुअर्ट हॉल और रेमंड विलियम्स जैसे बर्मिंघम स्कूल के विद्वानों ने विगत नव-मार्क्सवादी सिद्धांत में परिलक्षित 'उत्पादक' और उपभोक्ताओं' के बीच निर्भीक विभाजन पर प्रश्न करते हुए, सांस्कृतिक ग्रंथों और जनोत्पादित उत्पादों का किस प्रकार इस्तेमाल होता है, इसकी पारस्परिकता पर जोर दिया. सांस्कृतिक शिक्षा, अपनी विषय-वस्तु को सांस्कृतिक प्रथाओं और सत्ता के साथ उनके संबंधों के संदर्भ में जांच करती है.उदाहरण के लिए, उप-संस्कृति का एक अध्ययन (जैसे लन्दन के कामगार वर्ग के गोरे युवा), युवाओं की सामाजिक प्रथाओं पर विचार करेगा, क्योंकि वे शासक वर्ग से संबंधित हैं.

[संपादित करें] अपराध और विचलन

'विचलन' क्रिया या व्यवहार का वर्णन करती है, जो सांस्कृतिक आदर्शों सहित औपचारिक रूप से लागू-नियमों (उदा.,जुर्म) तथा सामाजिक मानदंडों का अनौपचारिक उल्लंघन करती है.समाजशास्त्रियों को यह अध्ययन करने की ढील दी गई है कि कैसे ये मानदंड निर्मित हुए; कैसे वे समय के साथ बदलते हैं; और कैसे वे लागू होते हैं. विचलन के समाजशास्त्र में अनेक प्रमेय शामिल हैं, जो सामाजिक व्यवहार के उचित रूप से समझने में मदद देने के लिए, सामाजिक विचलन के अंतर्गत निहित प्रवृत्तियों और स्वरूप को सटीक तौर पर वर्णित करना चाहते हैं.विपथगामी व्यवहार को वर्णित करने वाले तीन स्पष्ट सामाजिक श्रेणियां हैं: संरचनात्मक क्रियावाद; प्रतीकात्मक अन्योन्यक्रियावाद; और विरोधी सिद्धांत

[संपादित करें] अर्थशास्त्र


मैक्स वेबर का द प्रोटेस्टेंट एथिक एंड द स्पिरिट ऑफ़ कैपिटलिस्म
आर्थिक समाजशास्त्र, आर्थिक दृश्य प्रपंच का समाजशास्त्रीय विश्लेषण है; समाज में आर्थिक संरचनाओं तथा संस्थाओं की भूमिका, तथा आर्थिक संरचनाओं और संस्थाओं के स्वरूप पर समाज का प्रभाव.पूंजीवाद और आधुनिकता के बीच संबंध एक प्रमुख मुद्दा है. मार्क्स के ऐतिहासिक भौतिकवाद ने यह दर्शाने की कोशिश की कि किस प्रकार आर्थिक बलों का समाज के ढांचे पर मौलिक प्रभाव है. मैक्स वेबर ने भी, हालांकि कुछ कम निर्धारक तौर पर, सामाजिक समझ के लिए आर्थिक प्रक्रियाओँ को महत्वपूर्ण माना.जॉर्ज सिमेल, विशेष रूप से अपने फ़िलासफ़ी ऑफ़ मनी में, आर्थिक समाजशास्त्र के प्रारंभिक विकास में महत्वपूर्ण रहे, जिस प्रकार एमिले दर्खिम अपनी द डिवीज़न ऑफ़ लेबर इन सोसाइटी जैसी रचनाओं से.आर्थिक समाजशास्त्र अक्सर सामाजिक-आर्थिकी का पर्याय होता है. तथापि, कई मामलों में, सामाजिक-अर्थशास्त्री, विशिष्ट आर्थिक परिवर्तनों के सामाजिक प्रभाव पर ध्यान केन्द्रित करते हैं, जैसे कि फैक्ट्री का बंद होना, बाज़ार में हेराफेरी, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार संधियों पर हस्ताक्षर, नए प्राकृतिक गैस विनियमन इत्यादि.(इन्हें भी देखें: औद्योगिक समाजशास्त्र)

[संपादित करें] पर्यावरण

पर्यावरण संबंधी समाजशास्त्र, सामाजिक-पर्यावरणीय पारस्परिक संबंधों का सामाजिक अध्ययन है, जो पर्यावरण संबंधी समस्याओं के सामाजिक कारकों, उन समस्याओं का समाज पर प्रभाव, तथा उनके समाधान के प्रयास पर ज़ोर देता है. इसके अलावा, सामाजिक प्रक्रियाओं पर यथेष्ट ध्यान दिया जाता है, जिनकी वजह से कतिपय परिवेशगत परिस्थितियां, सामाजिक तौर पर परिभाषित समस्याएं बन जाती हैं. (इन्हें भी देखें: आपदा का समाजशास्त्र)

[संपादित करें] शिक्षा

शिक्षा का समाजशास्त्र, शिक्षण संस्थानों द्वारा सामाजिक ढांचों, अनुभवों और अन्य परिणामों को निर्धारित करने के तौर-तरीक़ों का अध्ययन है. यह विशेष रूप से उच्च, अग्रणी, वयस्क, और सतत शिक्षा सहित आधुनिक औद्योगिक समाज की स्कूली शिक्षा प्रणाली से संबंधित है.[35]

[संपादित करें] परिवार और बचपन

परिवार का समाजशास्त्र, विभिन्न सैद्धांतिक दृष्टिकोणों के ज़रिए परिवार एकक, विशेष रूप से मूल परिवार और उसकी अपनी अलग लैंगिक भूमिकाओं के आधुनिक ऐतिहासिक उत्थान की जांच करता है. परिवार, प्रारंभिक और पूर्व-विश्वविद्यालयीन शैक्षिक पाठ्यक्रमों का एक लोकप्रिय विषय है.

[संपादित करें] लिंग और लिंग-भेद

लिंग और लिंग-भेद का समाजशास्त्रीय विश्लेषण, छोटे पैमाने पर पारस्परिक प्रतिक्रिया औरर व्यापक सामाजिक संरचना, दोनों स्तरों पर, विशिष्टतः सामर्थ्य और असमानता के संदर्भ में इन श्रेणियों का अवलोकन और आलोचना करता है. इस प्रकार के कार्य का ऐतिहासिक मर्म, नारीवाद सिद्धांत और पितृसत्ता के मामले से जुड़ा है: जो अधिकांश समाजों में यथाक्रम महिलाओं के दमन को स्पष्ट करता है.यद्यपि नारीवादी विचार को तीन 'लहरों', यथा (1)19वीं सदी के उत्तरार्ध में प्रारंभिक लोकतांत्रिक मताधिकार आंदोलन, (2)1960 की नारीवाद की दूसरी लहर और जटिल शैक्षणिक सिद्धांत का विकास, तथा (3) वर्तमान 'तीसरी लहर', जो सेक्स और लिंग के विषय में सभी सामान्यीकरणों से दूर होती प्रतीत होती है, एवं उत्तरआधुनिकता, गैर-मानवतावादी, पश्चमानवतावादी, समलैंगिक सिद्धांत से नज़दीक से जुड़ी हुई है. मार्क्सवादी नारीवाद और स्याह नारीवाद भी महत्वपूर्ण स्वरूप हैं. लिंग और लिंग-भेद के अध्ययन, समाजशास्त्र के अंतर्गत होने की बजाय, उसके साथ-साथ विकसित हुए हैं. हालांकि अधिकांश विश्वविद्यालयों के पास इस क्षेत्र में अध्ययन के लिए पृथक प्रक्रिया नहीं है, तथापि इसे सामान्य तौर पर सामाजिक विभागों में पढ़ाया जाता है.

[संपादित करें] इंटरनेट

इंटरनेट समाजशास्त्रियों के लिए विभिन्न तरीकों से रुचिकर है.इंटरनेट अनुसंधान के लिए एक उपकरण (उदाहरणार्थ, ऑनलाइन प्रश्नावली का संचालन), और चर्चा-मंच तथा एक शोध विषय के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है. व्यापक अर्थों में इंटरनेट के समाजशास्त्र में ऑनलाइन समुदायों (उदाहरणार्थ, समाचार समूह, सामाजिक नेटवर्किंग साइट) और आभासी दुनिया का विश्लेषण भी शामिल है.संगठनात्मक परिवर्तन इंटरनेट जैसी नई मीडिया से उत्प्रेरित होती हैं और तद्द्वारा विशाल स्तर पर सामाजिक बदलाव को प्रभावित करते हैं.यह एक औद्योगिक से एक सूचनात्मक समाज में बदलाव के लिए रूपरेखा तैयार करता है (देखें मैनुअल कैस्टेल्स तथा विशेष रूप से उनके "द इंटरनेट गैलेक्सी" में सदी के काया-पलट का वर्णन).ऑनलाइन समुदायों का सांख्यिकीय तौर पर अध्ययन नेटवर्क विश्लेषण के माध्यम से किया जा सकता है और साथ ही, आभासी मानव-जाति-वर्णन के माध्यम से उसकी गुणात्मक व्याख्या की जा सकती है.सामाजिक बदलाव का अध्ययन, सांख्यिकीय जनसांख्यिकी या ऑनलाइन मीडिया अध्ययनों में बदलते संदेशों और प्रतीकों की व्याख्या के माध्यम से किया जा सकता है.

[संपादित करें] ज्ञान

ज्ञान का समाजशास्त्र, मानवीय विचारों और सामाजिक संदर्भ के बीच संबंधों का, जिसमें उसका उदय हुआ है, और समाजों में प्रचलित विचारों के प्रभाव का अध्ययन करता है. यह शब्द पहली बार 1920 के दशक में व्यापक रूप से प्रयुक्त हुआ, जब कई जर्मन-भाषी सिद्धांतकारों ने बड़े पैमाने पर इस बारे में लिखा, इनमें सबसे उल्लेखनीय मैक्स शेलर, और कार्ल मैन्हेम हैं.20वीं सदी के मध्य के वर्षों में प्रकार्यवाद के प्रभुत्व के साथ, ज्ञान का समाजशास्त्र, समाजशास्त्रीय विचारों की मुख्यधारा की परिधि पर ही बना रहा. 1960 के दशक में इसे व्यापक रूप से पुनः परिकल्पित किया गया तथा पीटर एल.बर्गर एवं थामस लकमैन द्वारा द सोशल कंस्ट्रक्शन ऑफ़ रियाल्टी (1966) में विशेष तौर पर रोज़मर्रा की ज़िंदगी पर और भी निकट से लागू किया गया, तथा और यह अभी भी मानव समाज से गुणात्मक समझ के साथ निपटने वाले तरीकों के केंद्र में है (सामाजिक तौर पर निर्मित यथार्थ से तुलना करें).मिशेल फोकाल्ट के "पुरातात्विक" और "वंशावली" अध्ययन काफी समकालीन प्रभाव के हैं.

[संपादित करें] क़ानून और दंड

क़ानून का समाजशास्त्र, समाजशास्त्र की उप-शाखा और क़ानूनी शिक्षा के क्षेत्रांतर्गत अभिगम, दोनों को संदर्भित करता है. क़ानून का समाजशास्त्रीय अध्ययन विविधतापूर्ण है, जो समाज के अन्य पहलुओं जैसे कि क़ानूनी संस्थाएं, सिद्धांत और अन्य सामाजिक घटनाएं और इनके विपरीत प्रभावों का क़ानून के साथ पारस्परिक संपर्क का परीक्षण करता है. उसके अनुसंधान के कतिपय क्षेत्रों में क़ानूनी संस्थाओं के सामाजिक विकास, क़ानूनी मुद्दों के सामाजिक निर्माण और सामाजिक परिवर्तन के साथ क़ानून से संबंध शामिल हैं. क़ानून का समाजशास्त्र न्यायशास्त्र, क़ानून का आर्थिक विश्लेषण, अपराध विज्ञान जैसे अधिक विशिष्ट विषय क्षेत्रों के आर-पार जाता है.[36] क़ानून औपचारिक है और इसलिए 'मानक' के समान नहीं है.इसके विपरीत, विचलन का समाजशास्त्र, सामान्य से औपचारिक और अनौपचारिक दोनों विचलनों, यथा अपराध और विचलन के सांस्कृतिक रूपों, दोनों का परीक्षण करता है.

[संपादित करें] मीडिया

सांस्कृतिक अध्ययन के समान ही, मीडिया अध्ययन एक अलग विषय है, जो समाजशास्त्र और अन्य सामाजिक-विज्ञान तथा मानविकी, विशेष रूप से साहित्यिक आलोचना और विवेचनात्मक सिद्धांत का सम्मिलन चाहता है.हालांकि उत्पादन प्रक्रिया या सुरूचिपूर्ण स्वरूपों की आलोचना की छूट समाजशास्त्रियों को नहीं है, अर्थात् सामाजिक घटकों का विश्लेषण, जैसे कि वैचारिक प्रभाव और दर्शकों की प्रतिक्रिया, सामाजिक सिद्धांत और पद्धति से ही पनपे हैं. इस प्रकार 'मीडिया का समाजशास्त्र' स्वतः एक उप-विषय नहीं है, बल्कि मीडिया एक सामान्य और अक्सर अति-आवश्यक विषय है.

[संपादित करें] सैन्य

सैन्य समाजशास्त्र का लक्ष्य, सैन्य का एक संगठन के बजाय सामाजिक समूह के रूप में व्यवस्थित अध्ययन करना है.यह एक बहुत ही विशिष्ट उप-क्षेत्र है, जो सैनिकों से संबंधित मामलों की एक अलग समूह के रूप में, आजीविका और युद्ध में जीवित रहने से जुड़े साझा हितों पर आधारित, बाध्यकारी सामूहिक कार्यों की, नागरिक समाज के अंतर्गत अधिक निश्चित और परिमित उद्देश्यों और मूल्यों सहित जांच करता है. सैन्य समाजशास्त्र, नागरिक-सैन्य संबंधों और अन्य समूहों या सरकारी एजेंसियों के बीच पारस्परिक क्रियाओं से भी संबंधित है.इन्हें भी देखें: आतंकवाद का समाजशास्त्र. शामिल विषय हैं:
  1. सैन्य द्वारा धारित प्रबल धारणाएं,
  2. सेना के सदस्यों की लड़ने की इच्छा में परिवर्तन,
  3. सैन्य एकता,
  4. सैन्य वृत्ति-दक्षता,
  5. महिलाओं का वर्धित उपयोग,
  6. सैन्य औद्योगिक-शैक्षणिक परिसर,
  7. सैन्य की अनुसंधान निर्भरता, और
  8. सेना की संस्थागत और संगठनात्मक संरचना.[37]

[संपादित करें] राजनीतिक समाजशास्त्र


अग्रणी जर्मन समाजशास्त्री और महत्वपूर्ण विचारक, युर्गेन हैबरमास
राजनीतिक समाजशास्त्र, सत्ता और व्यक्तित्व के प्रतिच्छेदन, सामाजिक संरचना और राजनीति का अध्ययन है. यह अंतःविषय है, जहां राजनीति विज्ञान और समाजशास्त्र एक दूसरे के विपरीत रहते हैं.यहां विषय समाजों के राजनीतिक माहौल को समझने के लिए, सरकारी और आर्थिक संगठनों की प्रणाली के विश्लेषण हेतु, तुलनात्मक इतिहास का उपयोग करता है.इतिहास और सामाजिक आंकड़ों की तुलना और विश्लेषण के बाद, राजनीतिक रुझान और स्वरूप उभर कर सामने आते हैं.राजनीतिक समाजशास्त्र के संस्थापक मैक्स वेबर, मोइसे ऑस्ट्रोगोर्स्की और रॉबर्ट मिशेल्स थे.
समकालीन राजनीतिक समाजशास्त्र के अनुसंधान का ध्यान चार मुख्य क्षेत्रों में केंद्रित है:
  1. आधुनिक राष्ट्र का सामाजिक-राजनैतिक गठन.
  2. "किसका शासन है?" समूहों के बीच सामाजिक असमानता (वर्ग, जाति, लिंग, आदि) कैसे राजनीति को प्रभावित करती है.
  3. राजनीतिक सत्ता के औपचारिक संस्थानों के बाहर किस प्रकार सार्वजनिक हस्तियां, सामाजिक आंदोलन और प्रवृतियां राजनीति को प्रभावित करती हैं.
  4. सामाजिक समूहों (उदाहरणार्थ, परिवार, कार्यस्थल, नौकरशाही, मीडिया, आदि) के भीतर और परस्पर सत्ता संबंध

[संपादित करें] वर्ग एवं जातीय संबंध

वर्ग एवं जातीय संबंध समाजशास्त्र के क्षेत्र हैं, जो समाज के सभी स्तरों पर मानव जाति के बीच सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक संबंधो का अध्ययन करते हैं.यह जाति और नस्लवाद तथा विभिन्न समूहों के सदस्यों के बीच जटिल राजनीतिक पारस्परिक क्रियाओं के अध्ययन को आवृत करता है. राजनैतिक नीति के स्तर पर, इस मुद्दे की आम तौर पर चर्चा या तो समीकरणवाद या बहुसंस्कृतिवाद के संदर्भ में की जाती है. नस्लवाद-विरोधी और उत्तर-औपनिवेशिकता भी अभिन्न अवधारणाएं हैं. प्रमुख सिद्धांतकारों में पॉल गिलरॉय, स्टुअर्ट हॉल, जॉन रेक्स और तारिक मदूद शामिल हैं.

[संपादित करें] धर्म

धर्म का समाजशास्त्र, धार्मिक प्रथाओं, सामाजिक ढांचों, ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, विकास, सार्वभौमिक विषयों और समाज में धर्म की भूमिका से संबंधित है. सभी समाजों और पूरे अभिलिखित ऐतिहासिक काल में, धर्म की पुनरावर्ती भूमिका पर विशिष्ट ज़ोर दिया जाता रहा है.निर्णायक तौर पर धर्म के समाजशास्त्र में किसी विशिष्ट धर्म से जुड़े सच्चाई के दावों का मूल्यांकन शामिल नहीं है, यद्यपि कई विरोधी सिद्धांतों की तुलना के लिए, पीटर एल.बर्गर द्वारा वर्णित, अन्तर्निहित 'विधिक नास्तिकता' की आवश्यकता हो सकती है.धर्म के समाजशास्त्रियों ने धर्म पर समाज के प्रभाव और समाज पर धर्म के प्रभाव को, दूसरे शब्दों में उनके द्वंदात्मक संबंध को स्पष्ट करने का प्रयास किया है.यह कहा जा सकता है कि समाजशास्त्र विषय दुर्खिम के 1897 में किए गए कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट लोगों के आत्महत्या अध्ययन दरों में धर्म विश्लेषण से आरंभ हुआ.

[संपादित करें] वैज्ञानिक ज्ञान एवं संस्थाएं

विज्ञान के समाजशास्त्र में विज्ञान का अध्ययन, एक सामाजिक गतिविधि के रूप में शामिल है, विशेषतः जो "वैज्ञानिक गतिविधियों की सामाजिक संरचना और प्रक्रियाओं सहित, विज्ञान की सामाजिक परिस्थितियां और प्रभावों" से वास्ता रखता है.[38] सिद्धांतकारों में गेस्टन बेकेलार्ड, कार्ल पॉपर, पॉल फेयरबेंड, थॉमस कुन, मार्टिन कश, ब्रूनो लेटर, मिशेल फाउकाल्ट, एन्सेल्म स्ट्रॉस लूसी सचमैन, सैल रिस्टिवो, केरिन नॉर-सेटिना, रैनडॉल कॉलिन्स, बैरी बार्नेस, डेविड ब्लूर,हैरी कॉलिन्स और स्टीव फुलरशामिल हैं.

[संपादित करें] स्तर-विन्यास

सामाजिक स्तर-विन्यास, समाज में व्यक्तियों के सामाजिक वर्ग, जाति और विभाग की पदानुक्रमित व्यवस्था है.आधुनिक पश्चिमी समाज में स्तर-विन्यास, पारंपरिक रूप से सांस्कृतिक और आर्थिक वर्ग के तीन मुख्य स्तरों से संबंधित हैं : उच्च वर्ग, मध्यम वर्ग, और निम्न वर्ग, लेकिन हर एक वर्ग आगे जाकर और छोटे वर्गों में उप-विभाजित हो सकता है (उदाहरणार्थ, व्यावसायिक)[39].सामाजिक स्तर-विन्यास समाजशास्त्र में बिल्कुल भिन्न प्रकार से उल्लिखित है. संरचनात्मक क्रियावाद के समर्थकों का सुझाव है कि, सामाजिक स्तर-विन्यास अधिकांश राष्ट्र समाजों में मौजूद होने की वजह से, उनके अस्तित्व को स्थिर करने हेतु मदद देने में पदानुक्रम लाभकारी होना चाहिए. इसके विपरीत, विवादित सिद्धांतकारों ने विभजित समाज में संसाधनों के अभाव और सामाजिक गतिशीलता के अभाव की आलोचना की.कार्ल मार्क्स ने पूंजीवादी व्यवस्था में सामाजिक वर्गों को उनकी उत्पादकता के आधार पर विभाजित किया: पूंजीपति-वर्ग का ही दबदबा है, लेकिन यह स्वयं ही दरिद्रतम श्रमिक वर्ग को शामिल करता है, चूंकि कार्यकर्ता केवल अपनी श्रम शक्ति को बेच सकते हैं (ठोस भवन के ढांचे की नींव तैयार करते हुए). अन्य विचारक जैसे कि मैक्स वेबर ने मार्क्सवादी आर्थिक नियतत्ववाद की आलोचना की, और इस बात पर ध्यान दिया कि सामाजिक स्तर-विन्यास विशुद्ध रूप से आर्थिक असमानताओं पर निर्भर नहीं है, बल्कि स्थिति और शक्ति में भिन्नता पर भी निर्भर है.(उदाहरण के लिए पितृसत्ता पर). राल्फ़ दह्रेंदोर्फ़ जैसे सिद्धांतकारों ने आधुनिक पश्चिमी समाज में विशेष रूप से तकनीकी अथवा सेवा आधारित अर्थव्यवस्थाओं में एक शिक्षित कार्य बल की जरूरत के लिए एक विस्तृत मध्यम वर्ग की ओर झुकाव को उल्लिखित किया. भूमंडलीकरण से जुड़े दृष्टिकोण, जैसे कि निर्भरता सिद्धांत सुझाव देते हैं कि यह प्रभाव तीसरी दुनिया में कामगारों के बदलाव के कारण है.

[संपादित करें] शहरी और ग्रामीण स्थल

शहरी समाजशास्त्र में सामाजिक जीवन और महानगरीय क्षेत्र में मानवीय संबंधों का विश्लेषण भी शामिल है. यह एक मानक का अध्ययन है, जिसमें संरचनाओं, प्रक्रियायों, परिवर्तन और शहरी क्षेत्र की समस्याओं की जानकारी देने का प्रयास किया जाता है, और ऐसा कर आयोजना और नीति निर्माण के लिए शक्ति प्रदान की जाती है. समाजशास्त्र के अधिकांश क्षेत्रों की तरह, शहरी समाजशास्त्री सांख्यिकी विश्लेषण, निरीक्षण, सामाजिक सिद्धांत, साक्षात्कार, और अन्य तरीकों का उपयोग, कई विषयों जैसे पलायन, और जनसांख्यिकी प्रवृत्तियों, अर्थशास्त्र, गरीबी, वंशानुगत संबंध, आर्थिक रुझान इत्यादि के अध्ययन के लिए किया जाता है. औद्योगिक क्रांति के बाद जॉर्ज सिमेल जैसे सिद्धांतकारों ने द मेट्रोपोलिस एंड मेंटल लाइफ (1903) में शहरीकरण की प्रक्रिया और प्रभावित सामाजिक अलगाव और गुमनामी पर ध्यान केन्द्रित किया.1920 और 1930 के दशक में शिकागो स्कूल ने शहरी समाजशास्त्र में प्रतीकात्मक पारस्परिक सम्बद्धता को क्षेत्र में अनुसंधान की एक विधि के रूप में उपयोग में लाकर एक विशेष काम किया है. ग्रामीण समाजशास्त्र, इसके विपरीत, गैर सामाजिक जीवन महानगरीय क्षेत्रों के अध्ययन से जुड़े समाजशास्त्र का एक क्षेत्र है.

[संपादित करें] शोध विधियां

[संपादित करें] सिंहावलोकन


समाजशास्त्र में सामाजिक अन्योन्यक्रिया और उसके परिणामों का अध्ययन किया जाता है
सामाजिक शोध विधियों को दो व्यापक श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है:
  • गुणात्मक डिजाइन, मात्रात्मकता की बजाय व्यक्तिगत अनुभवों और विश्लेषण पर जोर देता है और सामाजिक घटना के प्रयोजन को समझने से जुड़ा हुआ है और अपेक्षाकृत चंद मामलों के मध्य कई लक्षणों के बीच संबंधों पर केन्द्रित है.
जबकि कई पहलुओं में काफी हद तक भिन्न होते हुए, गुणात्मक और मात्रात्मक, दोनों दृष्टिकोणों में सिद्धांत और आंकडों के बीच व्यवस्थित अन्योन्य-क्रिया शामिल है.विधि का चुनाव काफी हद तक इस बात पर निर्भर करता है कि शोधकर्ता क्या खोज रहा है.उदाहरण के लिए, एक पूरी आबादी के सांख्यिकीय सामान्यीकरण का खाका खींचने से जुड़ा शोधकर्ता, एक प्रतिनिधि नमूना जनसंख्या को एक सर्वेक्षण प्रश्नावली वितरित कर सकता है.इसके विपरीत, एक शोधकर्ता, जो किसी व्यक्ति के सामाजिक कार्यों के पूर्ण प्रसंग को समझना चाहता है, नृवंशविज्ञान आधारित प्रतिभागी अवलोकन या मुक्त साक्षात्कार चुन सकता है. आम तौर पर अध्ययन एक 'बहु-रणनीति' डिजाइन के हिस्से के रूप में मात्रात्मक और गुणात्मक विधियों को मिला देते हैं.उदाहरण के लिए, एक सांख्यिकीय स्वरूप या एक लक्षित नमूना हासिल करने के लिए मात्रात्मक अध्ययन किया जा सकता है, और फिर एक साधन की अपनी प्रतिक्रिया को निर्धारित करने के लिए गुणात्मक साक्षात्कार के साथ संयुक्त किया जा सकता है.
जैसा कि अधिकांश विषयों के मामलों में है, अक्सर समाजशास्त्री विशेष अनुसंधान तकनीकों के समर्थन शिविरों में विभाजित किये गए हैं. ये विवाद सामाजिक सिद्धांत के ऐतिहासिक कोर से संबंधित हैं (प्रत्यक्षवाद और गैर-प्रत्यक्षवाद, तथा संरचना और साधन).

[संपादित करें] पद्धतियों के प्रकार

शोध विधियों की निम्नलिखित सूची न तो अनन्य है और ना ही विस्तृत है :

'नोड्स' नामक, एक-एक व्यक्ति (या संगठनों) से बना एक सामाजिक नेटवर्क ढांचा, जो एक या एक से अधिक, विशेष प्रकार की पारस्परिक निर्भरता द्वारा जुड़ा होता है
  • अभिलेखीय अनुसंधान: कभी-कभी "ऐतिहासिक विधि" के रूप में संबोधित.यह शोध जानकारी के लिए विभिन्न ऐतिहासिक अभिलेखों का उपयोग करता है जैसे आत्मकथाएं, संस्मरण और समाचार विज्ञप्ति.
  • सामग्री विश्लेषण: साक्षात्कार और प्रश्नावली की सामग्री का विश्लेषण, व्यवस्थित अभिगम के उपयोग से किया जाता है. इस प्रकार की अनुसंधान प्रणाली का एक उदाहरण "प्रतिपादित सिद्धांत" के रूप में जाना जाता है. पुस्तकों और पत्र-पत्रिकाओं का भी विश्लेषण यह जानने के लिए किया जाता है कि लोग कैसे संवाद करते हैं और वे संदेश, जिनके बारे में लोग बातें करते हैं या लिखते हैं.
  • प्रयोगात्मक अनुसंधान: शोधकर्ता एक एकल सामाजिक प्रक्रिया या सामाजिक घटना को पृथक करता है और डाटा का उपयोग सामाजिक सिद्धांत की या तो पुष्टि अथवा निर्माण के लिए करता है. प्रतिभागियों ("विषय" के रूप में भी उद्धृत) को विभिन्न स्थितियों या "उपचार" के लिए बेतरतीब ढंग से नियत किया जाता है, और फिर समूहों के बीच विश्लेषण किया जाता है. यादृच्छिकता शोधकर्ता को यह सुनिश्चित कराती है कि यह व्यवहार समूह की भिन्नताओं पर प्रभाव डालता है न कि अन्य बाहरी कारकों पर.
  • सर्वेक्षण शोध: शोधकर्ता साक्षात्कार, प्रश्नावली, या एक विशेष आबादी का प्रतिनिधित्व करने के लिए चुने गए लोगों के एक समूह से (यादृच्छिक चयन सहित) समान पुनर्निवेश प्राप्त करता है. एक साक्षात्कार या प्रश्नावली से प्राप्त सर्वेक्षण वस्तुएं, खुले-अंत वाली अथवा बंद-अंत वाली हो सकती हैं.
  • जीवन इतिहास: यह व्यक्तिगत जीवन प्रक्षेप पथ का अध्ययन है. साक्षात्कार की एक श्रृंखला के माध्यम से, शोधकर्ता उनके जीवन के निर्णायक पलों या विभिन्न प्रभावों को परख सकते हैं.
  • अनुदैर्ध्य अध्ययन: यह एक विशिष्ट व्यक्ति या समूह का एक लंबी अवधि में किया गया व्यापक विश्लेषण है.
  • अवलोकन: इन्द्रियजन्य डाटा का उपयोग करते हुए, कोई व्यक्ति सामाजिक घटना या व्यवहार के बारे में जानकारी रिकॉर्ड करता है. अवलोकन तकनीक या तो प्रतिभागी अवलोकन अथवा गैर-प्रतिभागी अवलोकन हो सकती है. प्रतिभागी अवलोकन में, शोधकर्ता क्षेत्र में जाता है (जैसे एक समुदाय या काम की जगह पर), और उसे गहराई से समझने हेतु एक लम्बी अवधि के लिए क्षेत्र की गतिविधियों में भागीदारी करता है.इन तकनीकों के माध्यम से प्राप्त डाटा का मात्रात्मक या गुणात्मक तरीकों से विश्लेषण किया जा सकता है.

[संपादित करें] व्यावहारिक अनुप्रयोग

सामाजिक अनुसंधान, अर्थशास्त्रियों,राजनेतbalatkar|शिक्षाविदों, योजनाकारों, क़ानून निर्माताओं, प्रशासकों, विकासकों, धनाढ्य व्यवसायियों, प्रबंधकों, गैर-सरकारी संगठनों और लाभ निरपेक्ष संगठनों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, सार्वजनिक नीतियों के निर्माण तथा सामान्य रूप से सामाजिक मुद्दों को हल करने में रुचि रखने वाले लोगों को जानकारी देता है.
माइकल ब्रावो ने सार्वजनिक समाजशास्त्र, व्यावहारिक अनुप्रयोगों से स्पष्ट रूप से जुड़े पहलू, और अकादमिक समाजशास्त्र , जो पेशेवर और छात्रों के बीच सैद्धांतिक बहस के लिए मोटे तौर पर संबंधित है, के बीच अंतर को दर्शाया है.

[संपादित करें] समाजशास्त्र और अन्य सामाजिक विज्ञान

समाजशास्त्र विभिन्न विषयों के साथ अतिच्छादन करता है, जो समाज का अध्ययन करते हैं; "समाजशास्त्र" और "सामाजिक विज्ञान" अनौपचारिक रूप से पर्यायवाची हैं. नृविज्ञान, अर्थशास्त्र, दर्शनशास्त्र, राजनीति विज्ञान और मनोविज्ञान ने समाजशास्त्र को प्रभावित किया है और इससे प्रभावित भी हुए हैं; चूंकि ये क्षेत्र एक ही इतिहास और सामयिक रूचि को साझा करते हैं.
सामाजिक मनोविज्ञान का विशिष्ट क्षेत्र [40] सामाजिक और मनोवैज्ञानिक हितों के कई रास्तों से उभर कर आया है; यह क्षेत्र आगे चल कर सामाजिक या मनोवैज्ञानिक बल के आधार पर पहचाना गया है.विवेचनात्मक सिद्धांत, समाजशास्त्र और साहित्यिक सिद्धांतों की संसृति से प्रभावित है.
सामाजिक जैविकी, इस बात का अध्ययन है कि कैसे सामाजिक व्यवहार और संगठन, विकास और अन्य जैविक प्रक्रियाओं द्वारा प्रभावित हुए हैं. यह क्षेत्र समाजशास्त्र को अन्य कई विज्ञान से मिश्रित करता है जैसे नृविज्ञान, जीव विज्ञान, प्राणी शास्त्र व अन्य. सामाजिक जैविकी ने, समाजीकरण और पर्यावरणीय कारकों के बजाय जीन अभिव्यक्ति पर बहुत अधिक ध्यान देने के कारण, सामाजिक अकादमी के भीतर विवाद को उत्पन्न किया है ('प्रकृति अथवा पोषण' देखें).

[संपादित करें] यह भी देखें

साँचा:Sociology portal

[संपादित करें] संबंधित सिद्धांत, तरीके और जांच के क्षेत्र

[संपादित करें] पाद टिप्पणियां

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  10. समाजशास्त्र का एक शब्दकोष ,अनुच्छेद: कॉम्ट, अगस्टे
  11. गलती उद्घृत करें: <ref> का गलत प्रयोग; comte नाम के संदर्भ में जानकारी नहीं है।
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[संपादित करें] ग्रंथ सूची

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[संपादित करें] अतिरिक्त पठन

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