रविवार, 31 जनवरी 2021

माघ माह की कथा

 माघ माह की कथा


प्रस्तुति - सृष्टि - दृष्टि


🌊 प्राचीन काल में नर्मदा तट पर शुभव्रत नामक

ब्राह्मण निवास करते थे। वे सभी वेद शास्त्रों के अच्छे

ज्ञाता थे। किंतु उनका स्वभाव धन संग्रह करने का

अधिक था।

🌊 उन्होंने धन तो बहुत एकत्रित किया।

वृद्घावस्था के दौरान उन्हें अनेक रोगों ने घेर लिया।

तब उन्हें ज्ञान हुआ कि मैंने पूरा जीवन धन कमाने में

लगा दिया अब परलोक सुधारना चाहिए। वह

परलोक सुधारने के लिए चिंतातुर हो गए।

🌊 अचानक उन्हें एक श्लोक याद आया जिसमें

माघ मास के स्नान की विशेषता बताई गई थी।

उन्होंने माघ स्नान का संकल्प लिया और माघे

निमग्ना: सलिले सुशीते विमुक्तपापास्त्रिदिवं

प्रयान्ति।

🌊 इसी श्लोक के आधार पर नर्मदा में स्नान करने

लगे। नौ दिनों तक प्रात: नर्मदा में जल स्नान किया

और दसवें दिन स्नान के बाद उन्होंने अपना शरीर

त्याग दिया।

🌊 शुभव्रत ने जीवन भर कोई अच्छा कार्य नहीं

किया था लेकिन माघ मास में स्नान करके

पश्चाताप करने से उनका मन निर्मल हो गया। माघ

मास के स्नान करने से उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति हुई। इस

तरह जीवन के अंतिम क्षणों में उनका कल्याण हो

गया।

क्या होता है कल्पवास

🌊 प्रयाग में हर वर्ष लगने वाले इस मेले को

कल्पवास भी कहा जाता है। वेद, मंत्र व यज्ञ आदि

कर्म ही कल्प कहे जाते है। पुराणों में माघ मास के

समय संगम के तट पर निवास को ही कल्पवास कहा

जाता है। संयम,अहिंसा व श्रद्धा ही कल्पवास का

मूल आधार होता है। यदि सकामभाव से माघ स्नान

किया जाय तो उससे मनोवांछित फल की सिद्धि

होती है और निष्काम भाव से स्नान आदि करने पर

वह मोक्ष देने वाला होता है ऐसा शास्त्रों में कहा

गया है

🌊 शास्त्रों में माघ माह के स्नान, दान, उपवास

और माधव पूजा का महत्व बताते हुए कहा गया है कि

इन दिनों में प्रयागराज में अनेक तीर्थों का समागम

होता है इसलिए जो प्रयाग या गंगा आदि अन्य

पवित्र नदियों में भी भक्तिभाव से स्नान करते है वह

तमाम पापों से मुक्त होकर स्वर्गलोक के अधिकारी

हो जाते है।

🌊 इस माह के महत्व पर तुलसीदास जी ने श्री

रामचरित्र मानस के बालखण्ड में लिखा है-माघ मकर

गति रवि जब होई, तीरथपतिहिं आव सब कोई !!

अर्थात माघ मास में जब सूर्य मकर राशि में आते हैं तब

सब लोग तीर्थों के राजा प्रयाग के पावन संगम तट

पर आते हैं देवता, दैत्य, किन्नर और मनुष्यों के समूह सब

आदरपूर्वक त्रिवेणी में स्नान करते हैं। वैसे तो प्राणी

इस माह में किसी भी तीर्थ, नदी और समुद्र में स्नान

कर दान -पुण्य करके कष्टों से मुक्ति पा सकता है

लेकिन प्रयागराज संगम में स्नान का फल मोक्ष देने

वाला है।

🌊 धर्मराज युधिष्ठिर ने महाभारत युद्ध के दौरान

मारे गए अपने रिश्तेदारों को सदगति दिलाने हेतु

मार्कण्डेय ऋषि के कहने पर कल्पवास किया था।

गौतमऋषि द्वारा शापित इंद्रदेव को भी माघ

स्नान के कारण श्राप से मुक्ति मिली थी। माघ के

धार्मिक अनुष्ठान के फलस्वरूप प्रतिष्ठानपुरी के

नरेश पुरुरवा को अपनी कुरूपता से मुक्ति मिली थी।

🌊 माघ मास में जो पवित्र नदियों में स्नान करता

है उसे एक विशेष प्रकार की सकारात्मक ऊर्जा

प्राप्त होती है, जिससे उसका शरीर निरोगी और

आध्यात्मिक शक्ति से संपन्न हो जाता है। माघ

स्नान से शरीर के पाप जलकर भस्म हो जाते है एवं इस

मास में पूजन-अर्चन व स्नान करने से भगवान नारायण

को प्राप्त किया जा सकता है। स्कन्द पुराण के

अनुसार इस मास में शीतल जल में डुबकी लगाने से

मनुष्य पाप मुक्त होकर स्वर्ग चले जाते है।

माघ माह के व्रत-त्यौहार

🌊 माघ माह के दौरान कृष्ण पक्ष में सकट चौथ

(गणेश चतुर्थी व्रत )षटतिला एकादशी,मौनी

अमावस्या आती है तो शुक्ल पक्ष में वरदतिलकुन्द-

विनायक चतुर्थी,वसंत पंचमी,शीतला षष्ठी,रथ-

अचला सप्तमी,जया एकादशी व्रत और माघी

पूर्णिमा जैसे पर्व आते है। मकर संक्रांति से ही देवों के

दिन शुरू होते है,उत्तरायण शुरू होता है। गंगापुत्र

भीष्म ने अपनी देह का त्याग उत्तरायण में किया

था।

सूर्य उपासना और दान-पुण्य

🌊 पदम् पुराण के अनुसार सभी पापों से मुक्ति और

भगवान जगदीश्वर की कृपा प्राप्त करने के लिए

प्रत्येक मनुष्य को माघ स्नान कर सूर्य मंत्र का

उच्चारण करते हुए सूर्य को अर्घ्य अवश्य प्रदान करना

चाहिए।भविष्य पुराण के अनुसार सूर्यनारायण का

पूजन करने वाला व्यक्ति प्रज्ञा, मेधा तथा सभी

समृद्धियों से संपन्न होता हुआ चिरंजीवी होता है।

🌊 यदि कोई व्यक्ति सूर्य की मानसिक आराधना

भी करता है तो वह समस्त व्याधियों से रहित होकर

सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करता है। व्यक्ति को अपने

कल्याण के लिए सूर्यदेव की पूजा अवश्य करनी

चाहिए। इस मास में तिल,गुड़ और कंबल के दान का

विशेष महत्त्व माना गया है। ऊनी वस्त्र, रजाई,जूता

एवं जो भी शीतनिवारक वस्तुएँ हैं उनका दान कर

माधवः प्रीयताम यह वाक्य कहना चाहिए।

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