( असमिया लोक-कथा)
तेजीमाला की माँ का देहांत हुए बहुत समय बीत गया था। नदी के किनारे बने सुंदर घर में वह अपने पिता बसंत के साथ रहती थी। एक दिन उसके पिता एक गाँव में विवाह की दावत में गए। वहाँ से लौटे तो तेजीमाला की दूसरी माँ मिनती उनके साथ थी।
मिनती ने तेजीमाला को गोद में खींचकर ढेर-सा प्यार दिया। बसंत निश्चिंत हो गए कि मिनती उनकी बेटी का पूरा-पूरा ध्यान रखेगी। बसंत के बाहर जाते ही मिनती ने धम्म से तेजीमाला को गोद से पटक दिया और मुँह बनाकर बोली-
'दैया रे दैया! इतनी बड़ी होकर भी बाप से लाड़ लड़ाती है।'
तेजीमाला चुपचाप उठकर घर के काम-काज में लग गई। उसने समझ लिया कि मिनती उसे प्यार नहीं करती। फिर भी उसने पिता से कुछ नहीं कहा।
दिन बीतते गए। बसंत के बाहर जाते ही मिनती अपने असली रूप में आ जाती। एक दिन धान की कोठरी के पास काला साँप दिखाई पड़ा। देखते ही देखते साँप ओझल हो गया।
मिनती ने बहाने से तेजीमाला को सारा दिन धान की कोठरी के बाहर बिठाए रखा ताकि साँप निकले और उसे डस ले। परंतु तेजी का भाग्य अच्छा था। वह बच गई।
उसके पिता दूर स्थानों की यात्रा करके व्यवसाय करते थे। कई बार उन्हें महीनों घर से बाहर रहना पड़ता था। उनके सामने मिनती तेजी को बहुत प्यार से पुकारती।
'तेजी बिटिया, जरा इधर तो आना।'
जब बसंत नहीं होता तो सौतेली माँ अपनी कर्कश आवाज में पुकारती, 'अरी कलमुँही! कहाँ मर गई?'
तेजीमाला के घर के बाहर रंगीन पत्तियों वाला वृक्ष था। वह वहाँ बैठकर रोती रहती। एक दिन एक सुंदर युवक उनके घर आया। वह उसके पिता के मित्र का इकलौता बेटा था। उसने तेजीमाला के आगे विवाह का प्रस्ताव रखा। मिनती ओट से उनकी बातें सुन रही थी। वह झट से सामने आई और हाथ नचाकर बोली-
'क्यों री तेजीमाला, मक्खी की तरह क्या मँडरा रही है। चल करघे पर कपड़ा बुनने बैठ।'
बेचारा युवक अपना-सा मुँह लेकर लौट गया। अब मिनती को एक और चिंता सताने लगी। यदि तेजीमाला का विवाह होगा तो उसे बहुत-सा दहेज देना पड़ेगा।
क्यों न तेजी को जान से मार दिया जाए? न रहेगा बाँस, न बजेगी बाँसुरी।
बस यह विचार आते ही उसने तेजी को मारने की योजना बना ली। अगले दिन उसने तेजीमाला के खाने में जहरीला कीड़ा डाल दिया। तेजी ने खाना खाया परंतु उसे कुछ न हुआ।
सौतेली माता का गुस्सा साँतवें आसमान पर जा पहुँचा। उसने तेजीमाला को ढेंकी में धान डालने को कहा। बेचारी लड़की चुपचाप काम कराने लगी। मिनती ने जोर से मूसल का वार किया तो तेजी का हाथ कुचल गया। वह दर्द के मारे तिलमिला उठी। मिनती हँसकर बोली-
'इतनी-सी चोट से घबराते नहीं हैं, चल दूसरे हाथ से डाल।'
इस तरह उसने तेजीमाला का दूसरा हाथ भी कुचल दिया। फिर घबराकर कहने लगी, 'देख, शायद ढेंकी में कुछ चमक रहा है?'
ज्यों ही तेजीमाला सिर झुकाकर देखने लगी। माँ ने उसका सिर भी कुचल दिया। तेजी ने कुछ ही देर में तड़पकर दम तोड़ दिया। मिनती ने उसकी लाश, घर के बगीचे में गाड़ दी। कुछ दिन में वहाँ कड़बी मोटी मिर्च का पौधा उग आया।
एक राहगीर उसे तोड़ने लगा तो पौधे में से आवाज आई-
'मिनती माँ ने दुश्मनी निभाई, तेजीमाला ने जान गँवाई।' सौतेली माँ ने यह आवाज सुनी तो उसने वह पौधा ही उखाड़ दिया। जिस जगह पर उसे फेंका था, कुछ दिनों बाद वहाँ कद्दू की बेल लग गई।
वह पौधा भी बोलता था। मिनती ने डर के मारे आधी रात को बेल उखाड़ी और नदी में फेंक दी। वह पौधा नदी में जाकर कमल का फूल बन गया।
संयोगवश तेजी के पिता नाव से लौट रहे थे। कमल का फूल देखा तो सोचा कि तेजी के लिए ले चलें। ज्यों-ही फूल को हाथ लगाया तो उसमें आवाज आई-
'मिनती माँ ने दुश्मनी निभाई, तेजीमाला ने जान गँवाई।'
बसंत काँप उठे। घर पहुँचते ही पत्नी से पूछा, 'तेजीमाला कहाँ है?' मिनती ने झूठ बोला, 'वह मेरी माँ के घर गई है।'
बसंत ने कमल का फूल हाथ में लेकर कहा-
'मुझको सारा हाल बता जा
तेजी, असली रूप में आ जा'
पिता की प्यार-भरी आवाज सुनते ही तेजीमाला फूल में से बाहर आ गई। उसकी सारी बातें सुनकर बसंत ने मिनती को धक्के दे-देकर निकाल दिया।
(रचना भोला 'यामिनी')
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