प्रस्तुति- डा. ममता शऱण
भारत-चीन की तनातनी पर भूटान ख़ामोश क्यों?
By: दिलीप कुमार शर्मा - बीबीसी हिंदी के लिए
Updated: Friday, July 21, 2017, 18:22 [IST]
Subscribe to Oneindia Hindi
पिछले एक महीने से डोकलाम सीमा विवाद को लेकर भारत और चीन के बीच ठनी हुई
है. दोनों देशों के मीडिया में जहां तनाव वाली ख़बरें सामने आ रहीं हैं तो
वहीं भूटान में इस मसले पर खामोशी दिख रही है. जबकि डोकलाम का यह विवादित
मसला प्रत्यक्ष तौर पर चीन और भूटान के बीच है.
Expand
Expand
भूटान
Getty Images
भूटान
क्या भारत-चीन युद्ध के कगार पर खड़े हैं?
भारत-चीन भिड़े तो नतीजे कितने ख़तरनाक?
भारत के साथ भूटान की कुल 699 किलोमीटर लंबी अंतरराष्ट्रीय सीमा में असम के
साथ भूटान का 267 किलोमीटर बॉर्डर है. असम से एक मात्र सामड्रुप जोंगखार
शहर के ज़रिए ही भूटान के अंदर प्रवेश किया जा सकता है.
भूटान के दक्षिण-पूर्वी हिस्से में स्थित सामड्रुप जोंगखार शहर में सालों
से व्यापार कर रहे अधिकतर भारतीय नागरिकों का कहना है कि सीमा विवाद पर
भारत-चीन के बीच तनाव से जुड़ी ख़बर पर यहां कोई चर्चा नहीं करता.
इसलिए उन्हें ऐसा अहसास ही नहीं होता कि भारत और चीन के बीच कुछ चल रहा है.
यहां कोई असर नहीं
राजस्थान से आकर यहां बसे राकेश जालान ने बीबीसी से कहा, "भारत-चीन के बारे
में हमें यहां कुछ अहसास ही नहीं होता. कई बार टीवी की ख़बरों से ज़रूर यह
पता चलता है. लेकिन भारत और चीन विवाद को लेकर हमारे यहां किसी तरह की
चर्चा नहीं हैं."
"मेरे दादा जी करीब 50 साल पहले भूटान आए थे. उसके बाद पिताजी आए और हम
यहीं बस गए. यहां का माहौल हमेशा से काफ़ी शांतिपूर्ण है. काफ़ी दोस्ताना
स्वभाव के लोग हैं. ऐसे में हमें कभी यह अहसास ही नहीं होता कि हम भारत से
बाहर किसी दूसरे देश में रह रहें हैं.'
कपड़े की दुकान चलाने वाले राकेश कहते है कि भूटान सरकार यदि भारतीय
व्यापारियों के लिए मौजूदा क़ानून में और परिवर्तन लाए तो आगे हमें यहां
रहने में अधिक सुविधा मिलेगी.
सामड्रुप जोंगखार शहर में भारतीय व्यापारियों की करीब 30 से 35 दुकाने हैं.
इसके अलावा भूटान के सीमावर्ती फुन्त्शोलिंग, गेलेफू जैसे शहर में भी
भारतीय लोग सालों से व्यापार कर रहें हैं.
सुरेश अग्रवाल पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी शहर से हैं.
वो कहते है, "यहां लाइफ अच्छी चल रही है. किसी तरह की कोई समस्या नहीं है.
चीन के साथ विवाद को लेकर हमारे यहां किसी तरह का हल्ला नहीं है. न ही हमें
कोई डर हैं. यहां से छोड़कर जाने का सवाल ही नहीं उठता. मेरा जन्म यहीं
हुआ है और मरते दम तक हम यही रहेंगे."
भूटान में शांति
उत्तर प्रदेश के बलिया से तकरीबन 40 साल पहले यहां आकर बसे लल्लू प्रसाद
गुप्ता ने बीबीसी से कहा, "भारत और चीन के बीच तनातनी या फिर युद्ध के
ख़तरे जैसी किसी भी बात की हमें कोई ख़बर नहीं है. यहां इस तरह की कोई
चर्चा भी नहीं है. ऐसी बात दिल में कभी नहीं आती, क्योंकि हमारे इलाक़े
(भूटान) में काफ़ी शांति है और हम पूरी तरह सुरक्षित है."
वह आगे कहते है, "यहां तो अब हमारी उम्र बीत चुकी है. जब मैं भूटान आया था
उस समय मेरी उम्र 18 साल थी और आज मैं 58 साल का हूं. अब यही पर जीना-मरना
है. हम चाहते हैं कि भूटान सरकार हमारे बारे में और थोड़ा सोचे. यहां के
लोग बहुत अच्छे हैं और हम एक-दूसरे को काफ़ी सम्मान देते है."
Expand
भूटान
Getty Images
भूटान
लल्लू प्रसाद गुप्ता के बड़े भाई करीब 55 साल पहले भूटान के सामड्रुप
जोंगखार शहर आए थे. यहां जनरल स्टोर की दुकान चलाने वाले गुप्ता भूटान
सरकार के मौजूदा क़ानून को थोड़ा कड़ा बताते हैं. वह यह भी कहते है कि
भूटान में क़ानून सबके लिए बराबर है. इसलिए वे काफ़ी सोच समझ कर और क़ानून
के दायरे में रहकर अपना व्यापार करते हैं.
मालिकाना हक़ नहीं
दरअसल भूटान में व्यापार कर रहें इन भारतीय लोगों को भले ही यहां बसे 50
साल से अधिक समय हो चुका हे लेकिन इनमें से किसी भी व्यापारी के पास घर या
दुकान का मालिकाना अधिकार नहीं है.
भूटान सरकार ने इन लोगों को दुकान और मकान दोनों ही एक साल के लिए लीज पर
दे रखा है और एक साल बाद फिर से नया लीज बनाना पड़ता है. लीज के अनुसार कोई
भी व्यापारी सरकार की अनुमति लिए बगैर किसी तरह का निर्माण कार्य नहीं कर
सकता.
इस संदर्भ में एक व्यापारी ने अपना नाम प्रकाशित नहीं करने की शर्त पर कहा
कि हमारा परिवार 1963 में यहां आया था. पहले यहां काफ़ी आजादी थी. लेकिन
हाल के कुछ वर्षो में भूटान सरकार ने नियमों को काफ़ी सख्त बना दिया हैं.
पहले परिवार के सभी लोगों को एक साल के लिए पहचान पत्र दिया जाता था.
लेकिन अब भूटान सरकार केवल व्यापार करने वाले यानी जिसके नाम पर दुकान होती
है उसको और उसकी पत्नी को ही आई-कार्ड जारी करती है. ऐसे में व्यापारी के
भाई-भतीजे या फिर अन्य रिश्तेदारों को आधिकारिक रूप से यहां रहने की अनुमति
नहीं दी जाती.
भूटान के इस इलाक़े में मीडिया की उपस्थिति कम ही देखने को मिली. हालांकि
एक-दो दुकानों पर भुटान का राष्ट्रीय अखबार कुएनसेल ज़रूर दिखाई दिया परंतु
उसके पहले पन्ने पर चीन के साथ सीमा विवाद से जुड़ी कोई ख़बर नहीं थी.
भूटान अब एक लोकतांत्रिक देश है लेकिन यहां आज भी राजतंत्र का प्रभाव
ज़्यादा दिखता है. लिहाजा वहां के लोग अपने देश के बारे मीडिया से खुलकर
बात नहीं करते.
राजा की तस्वीर
यहां हर दुकान के भीतर राजा की तस्वीर लगाना अनिवार्य है. वहीं शहर में
जगह-जगह तैनात रॉयल भूटान पुलिस के सिपाही अपनी नीली रंग की वर्दी पर यहां
के राजा की तस्वीर वाला बैज ज़रूर लगाते हैं.
पूर्वोत्तर राज्य असम की सीमा से सटा भूटान का सामड्रुप जोंगखार ज़िला 2003
में उस वक़्त सुर्खियों में आया था जब असम के अलगाववादी संगठन उल्फा के
खिलाफ रॉयल भूटान सेना ने 'ऑपरेशन आल क्लियर' अभियान चलाया था.
इस सैन्य अभियान में रॉयल भूटान सेना ने उल्फा के सारे कैंप नष्ट कर दिए थे
और सभी अलगाववादियों को देश से बाहर निकाल दिया था.
उस समय उल्फा के केंद्रीय कमांडर का मुख्यालय, सामड्रुप जोंगखार के
फुकापटोंग में हुआ करता था.
BBC Hindi
Read more at: http://hindi.oneindia.com/news/india/why-bhutan-is-silent-on-doklam-standoff-415925.html
Read more at: http://hindi.oneindia.com/news/india/why-bhutan-is-silent-on-doklam-standoff-415925.html
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें