गुरुवार, 30 अक्तूबर 2014

रुहेलखण्ड - Rohilkhand / लोक संस्कृति







प्रस्तुति-- सजीली सहाय, समिधा, रेणु सिंह 
dei/ 282005
किसी क्षेत्र विशेष में निवास करने वाले लोगों के पारस्परिक धर्म त्योहार, पर्व , रीति ,रिवाज, मान्यताओं , कला आदि को लोक संस्कृति का नाम दिया जाता है। लोक संस्कृति किसी क्षेत्र विशेष को अन्य क्षेत्रों से स्वतन्त्र पहचान प्रदान करती है। वर्तमान में यदि हम हरियाणा, राजस्थान, केरल, तमिलनाड़� , उड़ीसा इत्यादि प्रान्तों का स्मरण करते हैं तो उनकी लोक संस्कृति के आधार पर ।
प्रस्तुत अध्ययन रुहेलखण्ड क्षेत्र की लोक संस्कृति के लिए उद्दिष्ट है तथा इसमें रुहेलखण्ड की समग्र संस्कृति, इतिहास पुरातत्व आदि को समावेश किया गया है।
रुहेलखण्ड के पर्व - त्योहार, मेले

भारत में व्रत - त्योहार, पवाç एवं मेलों का बहुत महत्व है। जितने पर्व त्योहार एवं उत्सव भारत में मनाये जाते हैं, उतने विश्व के किसी अन्य देश में नहीं होते हैं।
रुहेलखण्ड क्षेत्र में भी लगभग वह सभी पर्व त्योहार मनाये जाते हैं जो देश के अन्य भू - भाग में मनाये जाते हैं । हिन्दी मास के क्रमानुसार इस क्षेत्र में मनाये जाने वाले जानेवाले पर्व, उत्सव,मेलों का क्रमबद्ध अध्ययन निम्नलिखित है-
पर्व- त्योहार, मेले
हिन्दी-माह पर्व- त्योहार, मेले
आषाढ़ मास योगिनी एकादशी , गुरु पूर्णिमा
सावन मास शिव जी व्रत एवं मेले , नाग पंचमी रक्षा बंधन
भाद्रपद मास हरियाली तीज , अनन्त चतुर्दशी, श्री कृष्णजन्माष्टमी , हरतालिका तीज, गणेश चतुर्थी
आश्विन मास नवरात्र , दुर्गा अष्टमी, दशहरा (विजय दशमी) शरद पूर्णिमा
कार्तिक मास करवा चौथ, अहोई अष्टमी, धनतेरस,नरक चतुर्दशी ,दीपावली ,गोवर्धन पूजा, भैया दूज, कार्तिक पूर्णिमा , गंगा स्नान मेला
मार्गशीष मास भैरव जयन्ती , मार्गाशीष पूर्णिमा व्रत
पौष मास पूर्णिमा व्रत,स्नान व मेला, मकर संक्रान्ति
माघ मास सकट चौथ, मौनी अमावस्या, बसंत पंचमी, माघ पूर्णिमा मेला
फाल्गुन मास महाशिवरात्रि , व्रत व मेले,होलिका दहन
चैत्र मास बासोड़ा , नवरात्रे, रामनवमी
वैशाख मास वैशाखी पूर्णिमा मेला
ज्येष्ठ मास वट सावित्री पूजन , गंगा दशहरा मेलानिर्जला व्रत एकादशी
आषाढ़ मास के त्योहार / पर्व /मेले

1 ) योगिनी एकादशी - यह एकादशी आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष में मनायी जाती है। इस दिन लोग पूरे दिन का व्रत रखकर भगवान नारायण की मूर्ति को स्नान कराकर भोग लगाते हुए पुष्प , धूप , दीप से आरती करते हैं। गरीब ब्राह्मणों को दान भी किया जाता है। इस एकादशी के बारे में मान्यता है कि मनुष्य के सब पाप नष्ट हो जाते हैं तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है ।
2 ) गुरु पूर्णिमा - आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा अथवा व्यास पूर्णिमा कहते हैं । इस दिन लोग अपने गुरु के पास जाते हैं तथा उच्चासन पर बैठाकर माल्यापर्ण करते हैं तथा पुष्प ,फल, वस्र आदि गुरु को अर्पित करते हैं। यह गुरु - पूजन का दिन होता है जिसकी प्रथा प्राचीन काल से चली आ रही है।

श्रावण मास के त्योहार -- पर्व / मेले

1 ) शिव जी के सोमवार व्रत व मेले
श्रावण मास के प्रत्येक सोमवार को शिव जी के व्रत रखकर पूजा अर्चना की जाती है । प्रत्येक सोमवार को गणेश , शिव-पार्वती तथा नन्दी की पूजा की जाती है तथा शिव - मन्दिरों पर मेले लगते हैं । श्रावण का पूरा महीना हिन्दुओं के लिए पवित्र माह होता है।
2 ) नाग पंचमी

श्रावण की शुक्ल पंचमी को नाग पंचमी कहा जाता है। ज्योतिष व मान्यताओं के अनुसार पंचमी तिथि के स्वामी नाग हैं अत: सपं व नागों की पूजा पंचमी को होनी चाहिए । इसी मान्यता व परम्परा के अनुसार पूरे क्षेत्र में सर्पों के पीने के लिए कटोरी में दूध रखा जाता है तथा दीवार पर नागों का चित्र बनाकर उनकी पूजा की जाती है बाद में अर्पित जल को घर के चारों कोनों व दिशाओं में छींटा जाता है।

3 ) रक्षा बन्धन

यह त्योहार सावन माह की पूर्णिमा को सारे देश की ही भाँति यहाँ भी धूम - धाम से मनाया जाता है। यह पर्व भाई - बहन को स्नेह की डोर में बांधने वाला है । इस दिन बहन अपने भाई के हाथ में कलाई पर रक्षा बांधती है तथा मस्तिक पर टीका लगाती है । रक्षा बन्धन ( रक्षा + बन्धन) का अर्थ है -- अपनी रक्षा के लिए किसी को बाँध लेना । रक्षा बन्धन पर भाईयों को राखी बाँधने सम्बन्धी अनेक प्राचीन व मध्य कालीन कथाएं प्रचलित हैं। संक्षेप में, समस्त भारतवर्ष की भाँति रुहेलखण्ड क्षेत्र में भी यह पर्व धूमधाम से मनाया जाता है।
भाइयों को राखी बांधती बहनें

भाद्रपद मास के त्योहार व मेले

1 ) हरियाली तीज
यह तीज भादौं बदी तृतीया को खासतौर से उ० प्र० के बनारस व रुहेलखण्ड क्षेत्र में बड़े धूमधाम से मनायी जाती है। इसमें लड़कियां व
महिलायें झूला डालकर उसमें कजरी गीत गाती हुयी झूला झूलती हैं। कजरी गीत वर्षा ॠतु के विशेष राग गीत होते हैं। इस दिन घरों में पूड़ी , मिष्ठान , पकवान बनाये जाते हैं तथा वर्षा ॠतु के इस पर्व को उत्सव की तरह मनाया जाता है। यह स्रियों का पर्व होता है जो इस सम्पूर्ण क्षेत्र में धूमधाम से मनाया जाता है।
2 ) श्री कृष्ण जन्माष्टमी
भादौं मास की कृष्ण - अष्टमी को ' श्री कृष्ण जन्माष्टमी ' उत्सव मनाया जाता है। इसी दिन भगवान श्री कृष्ण का जन्म मथुरा में हुआ था। समस्त भारत की तरह रुहेलखण्ड क्षेत्र में भी यह त्योहार धूमधाम से मनाया जाता है। दिन भर लोग व्रत रखकर पूड़ी मिष्ठान पकवान,आदि बनवाते है तथा रात्रि को 12 बजे श्री कृष्ण की पूजा - अर्चना करके भोजन ग्रहण करते हैं । इस दिन घरों व मन्दिरों में झांकी सजायी जाती है तथा भजन - कीर्तन होते हैं तथा तीन दिन तक मन्दिरों में मेले लगते हैं जहाँ लोग सपरिवार झांकी देखने जाते हैं। जन्माष्टमी के दूसरे दिन " नन्द उत्सव " जाता है । धर्मशास्रों में कहा गया है कि जन्माष्टमी के दिन व्रत रखने से मनुष्य के सात जन्मों के पाप नष्ट हो जाते है तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है । प्रत्येक हिन्दू धर्मानुयायी इस पर्व को धूमधाम से मनाते हैं।
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पूजन
3 ) हरतालिका तीज

यह भाद्र शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाने वाला पर्व - व्रत है । इसमें सुहागिन स्रियाँ अपने सुहाग की रक्षा के लिए भगवान शिव व पार्वती की मूर्ति बालू से बनाकर पूजन करती है तथा रात्रि में भक्ति गीत गाकर जागरण करती है। मान्यता है कि इस व्रत व पूजन को करने वाली स्रियाँ माँ पार्वती के समान सुखपूर्वक पति रमण करके शिवलोक को जाती है। यह व्रत इस क्षेत्र में ब्राह्मणों के परिवार में स्रियों द्वारा विशेष रुप से रखा जाता है।

4 ) गणेश चतुर्थी
भादौं मास के शुक्ल पक्ष की चौथ को गणेश चतुर्थी पर्व मनाया जाता है। इसमें प्रात: काल गणेश जी की मिट्टी की मूर्ति बनाकर श्री गणेश जी की पूजा की जाती है। पूजन में लड्डुओं का भोग लगाकर गणेश जी के 10 नामों का जप करते हैं।
वैसे तो यह पर्व पूरे भारत में मनाया जाता है परन्तु रुहेलखण्ड क्षेत्र में मुरादाबाद जिले चन्दौसी नामक नगर में यह पर्व अत्यन्त धूमधाम से मनाया जाता है तथा 15 दिन तक विशाल मेला लगता है। नगर में गणेश जी की विशाल शोभायात्रा निकाली जाती है तथा नगर मे 15 दिन तक उत्सव का वातावरण रहता है। "चन्दौसी का गणेश चतुर्थी का मेला " पूरे उत्तर भारत में प्रसिद्ध है। इस मेले में दूर - दूर से लोग यहाँ आते है तथा यहाँ प्रवास करते हैं।

5 ) अनन्त चर्तुदशी
भादौं मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाने वाला यह पर्व भगवान श्री नारायण को समर्पित है । इस क्षेत्र में यह पर्व ब्राह्मणों - क्षत्रियों में प्रमुख रुप से मनाया जाता है। इसमें प्रात: स्नान आदि से निवृत होकर चौकी के ऊपर मण्डप बनाकर उसमे अक्षत या कुश के 7 कणों से शेष भगवान की प्रतिमा स्थापित करते हैं तथा उसके समीप 14 गांठे लगाकर हल्दी से रंगे कच्चे धागे को रखते हैं । तदु परान्त पूजा - अर्चना करके 14 गाँठ लगे अनन्त को दायीं भुजा पर धारण करते हैं । मान्यता है कि इस दिन इस अनन्त को हाथ में बाँधने से अनन्त फल की प्राप्ति होती है तथा रक्षा होती है ।
आश्विन मास के पर्व -त्योहार , मेले
1 ) नवरात्रे (नव दुर्गा व्रत)

आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक यह व्रत
9 दिन तक मनाया जाता है। इसमें नौ दिन तक नौ देवियों की पूजा - अर्चना की जाती है। इसमें प्रथम दिन ( प्रतिपदा )प्रात: स्नानादि से निवृत होकर 9 दिनों तक व्रत के लिए संकल्प करके मिट्टी की वेदी बनाकर उसमें जौं बोते है तथा उसी स्थान पर घट (घडा/कलश)स्थापित करते हैं। घट के ऊपर कुल देवी की प्रतिमा स्थापित कर उसका पूजन करते हैं तथा दुर्गा सप्तशती का पाठ किया जाता है। रुहेलखण्ड क्षेत्र के बरेली नगर में वमनपुरी नामक मुहल्ले में इन नवरात्रों में रामलीला तथा मेले का आयोजन होता है।

दुर्गाष्टमी -- यह त्योहार आश्विन शुक्ल पक्ष अष्टमी को आता है इस दिन व्रत रखकर दुर्गादेवी की पूजा की जाती है । भगवती दुर्गा को चने , हलवे , खीर , पूड़ी , पुआ आदि का भोग लगाया जाता है । अधिकांश घरों में इस दिन हवन आदि भी होते हैं।

2 ) दशहरा ( विजयदशमी )
रामलीला मंचन
रावण दहन
हिन्दुओं का प्रसिद्ध पर्व दशहरा अश्विन शुक्ल पक्ष दशमी को मनाया जाता है। इसी दिन भगवान श्री राम ने रावण को मारकर उस पर विजय प्राप्त की थी। मुख्य रुप से यह क्षत्रिय व ब्राह्मणों का पर्व है परन्तु पूरे भारत में समस्त हिन्दू धर्मानुयायिओं द्वारा यह पर्व खूब धूमधाम से मनाया जाता है। इस दशमी से एक सप्ताह पूर्व ही सभी स्थानों पर रामलीला मेला प्रारम्भ हो जाता है जो दशहरा तक चलता है तथा रावण बध की लीला पर समाप्त होता है। प्रत्येक वर्ष रावण का पुतला भगवान श्री राम द्वारा जलाना वास्तव में बुराई पर अच्छाई का प्रतीत होता है। इस दिन क्षत्रिय लोग अपने अस्र - शस्रों की पूजा की जाती हैं। ब्राह्मणों द्वारा भगवान श्री राम की सपरिवार पूजा - अर्चना की जाती है। रुहेलखण्ड के समस्त क्षेत्र में यह पर्व बड़े उत्साह से मनाया जाता है तथा सभी नगरों में रामलीला का मंचन तथा मेलों का आयोजन होता है।विशेष रुप से पीलीभीत जनपद में वीसलपुर का दशहरा मेला दूर - दूर तक प्रसिद्ध है जो एक माह तक चलता है और दूर - दूर से दर्शक और दुकानदार यहाँ आते हैं। इसके अतिरिक्त सभी नगरों , कस्बों , मुहल्लों में दशहरा मेलों का आयोजन होता है।
3 ) शरद -पूर्णिमा

अश्विन शुक्ल पूर्णिमा को " शरद पूर्णिमा" कहा जाता है। इसे कौमुदी व्रत भी कहते हैं। रासोत्सव का यह दिन वास्तव में भगवान श्री कृष्ण द्वारा जगत की भलाई के लिए निश्चित किया गया है , ऐसी इस क्षेत्र में पारम्परिक मान्यता है। इस दिन मन्दिरों में विशेष सेवा पूजन किया जाता है तथा रात्रि में भगवान को खीर अथवा दूध से भोग लगाया जाता है।
कार्तिक माह के पर्व / त्योहार , मेले
1 ) करवा चौथ
यह पर्व कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष को चनद्रोदयव्यापिनी में होता है । यह भारतीय हिन्दू सुहागिन स्रियों का मुख्य त्योहार है। सौभाग्यवती सुहागिन स्रियां स्वपति के रक्षार्थ तथा लम्बी आयु की कामना व जीवनपर्यन्त सुहागिन रहने को निराहार व्रत रखती है। सायंकाल को शिव , चन्द्रमा , स्वामी कार्तिकेय आदि के चित्रों व सुहाग की वस्तुओं की पूजा की जाती है। बाद में चन्द्रमा निकलने पर चन्द्रदर्शन करने के बाद चन्द्र को अध्र्य देकर भोजन करती है। यह पर्व समस्त भारती की ही भाँति इस क्षेत्र में भी हिन्दू धर्मानुयायी स्रियों द्वारा प्रमुखता से मनाया जाता है।
2 ) अहोई अष्टमी

यह त्योहार कार्तिक कृष्ण पक्ष अष्टमी को मनाया जाता है। इस दिन माँ अपनी सन्तानों की लम्बी आयु के लिये दिन भर व्रत रखकर सायंकाल में तारे निकलने के बाद दीवार पर अहोई बनाकर पूजा करती है। अहोई देवी के चित्र के साथ- साथ सेही और सेही के बच्चों के चित्र बनाकर भी पूजा की जाती है।

3 ) धनतेरस

यह त्योहार दीपावली के आने की सूचना देता है। यह पर्व कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रियोदशी को मनाया जाता है। इस दिन घर में लक्ष्मी का आवास मानते है। इसी दिन धनवन्तरी समुद्र से अमृत कलश लेकर प्रकट हुये थे , इसलिए धनतेरस को ' धनवन्तरी- जयंती ' भी कहते है। इस पर्व में सायं को लक्ष्मी , कुवेर व धनवन्तरी की पूजा की जाती है तथा घर में कोई नया बर्तन खरीद कर लाते हैं ; इसके पीछे मान्यता है कि इस दिन खरीदारी करने से घर में समृद्धि आती है।

4 )नरक चर्तुदशी

कार्तिक कृष्ण पक्ष की चर्तुदशी के दिन नरक चर्तुदशी मनाया जाता है । यह दीपावली से एक दिन पूर्व होता है। इस दिन नरक से मुक्ति पाने के लिए प्रात: काल शरीर में तेल लगाकर चिचड़ी पौधा सहित स्नान करते हैं तथा शाम को यमराज के लिए सरसों के तेल में जलाकर दीपदान करते है जो घर के द्वार के बाहर किया जाता है। मान्यता है कि इसी दिन भगवान श्री कृष्ण ने नरकासुर नामक दैत्य का वध किया था।

5 ) दीपावली
कार्तिक मास की अमावस्या के दिन दीपावली का पर्व मनाया जाता है। पूरे भारत की ही भाँति इस क्षेत्र में भी यह त्योहार प्रमुखता से मनाया जाता है। इस दिन भगवती महालक्ष्मी का उत्सव बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन लक्ष्मी जी के आगमन की खूब तैयारी की जाती है जैसे घर की सफाई , लिपाई करना, मिष्ठान - व्यंजन आदि बनाना । शाम को लक्ष्मी गणेश , श्री नारायण व अन्य देवों की पूजी - अर्चना करके व मिष्ठानों से भोग लगाकर पूरे घर में दिये जलाकर रोशनी की जाती है तथा उमंग में पटाखे तथा आतिशबाजी छोड़ी जाती है। लक्ष्मी जी के आगमन के लिए पूजा गृह में रात्रि भर एक दीपक से काजल बनाकर सभी स्री - पुरुष - बच्चे अपनी आँखों पर लगाते हैं। यह त्योहार बड़े उत्साह व उमंग से मनाया जाता है।
6 ) गोर्वधन पूजा (अन्नकूट)

दीपावली के अगले दिन कार्तिक शुक्ल की प्रतिपदा को अन्नकूट उत्सव मनाया जाता है,इसी दिन गोर्वधन पूजा भी की जाती है। इस दिन प्रात: काल स्रियां घर के आंगन में गोबर का अन्नकूट बनाकर भगवान श्री कृष्ण व गायों की पूजा करती है । यह पर्व रुहेलखण्ड के समीपवर्ती ब्रज क्षेत्र में प्रमुख रुप से धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन मन्दिरों में विविध प्रकार की खाद्य- सामग्रियों से भगवान का भोग लगाया जाता है।

7 ) भैया दूज
यह त्योहार कार्तिक शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाता है। यह पर्व भाई वहन के प्रेम का प्रतीक है। इस दिन बहनें अपने भाई को तिलक लगाकर , आरती उतारकर मिष्ठान खिलाती है तथा उनके दीर्घायु होने की कामना करती है तथा श्रद्धावान भाई बहनों के चरण - स्पर्श कर उनको वस्र , धन आदि अर्पित करते हैं।
8 ) कार्तिक पूर्णिमा
इसे ' त्रिपुरी पूर्णिमा ' भी कहते है। इस तिथि को भगवान श्री नारायण का मत्स्यावतार हुआ था। इस दिन गंगा स्नान तथा दान का महत्व है । रुहेलखण्ड क्षेत्र में इस दिन गंगा घाट कछला (जनपद वदायूँ ) , ढाई घाट ( जनपद शाहजहाँपुर ) तथा रामगंगा (चौवारी - बरेली ) में विशाल मेलों का आयोजन होता है।

मार्गशीर्ष (अगहन) के त्योहार एवं मेले

1 ) भैरव जयन्त

मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष अष्टमी के दिन भैरव जी का जन्म हुआ था। इस पर्व में दिनभर व्रत रखकर जल का अर्ध्व देकर भैरव जी का पूजन किया जाता है। रात्रि में जागरण कर शिव- पार्वती की तथा भैरव जी की पूजा जाती है क्योंकि भैरव जी को भगवान शिव का ही रुप माना जाता है।

2 ) मार्गशीर्ष पूर्णिमा व्रत

यह व्रत मार्गशीर्ष पूर्णिमा को रखा जाता है। सबसे पहले नियमपूर्वक व्रत रखकर भगवान श्री नारायण की उपासना की जाती है तथा वेदी बनाकर हवन किया जाता है। रात्रि में चन्द्रमा को अर्ध्व देकर पूजन किया जाता है।


पौष (पूष) माह के त्योहार एवं मेले

1 ) पौष पूर्णिमा स्नान

यह स्नान पौष की पूर्णिमा से प्रारम्भ होता है। इस स्नान के लिए रुहेलखण्ड क्षेत्र में गंगा घाट पर कछला (जिला - बदायूँ) तथा ढ़ाई घाट (जिला शाहजहाँपुर) एवं रामगंगा घाट चौबारी (जिला - बरेली) में विशाल मेले लगते हैं जो दो सप्ताह तक चलते है तथा अधिकांश ग्रामीण श्वाद्धालु यहाँ डेरा डालकर मेंले में रहते है तथा गंगा स्नान एवं मेले का आनन्द उठाते हैं।

2 ) मकर संक्रान्ति

पौष मास में जब सूर्य मकर राशि पर आता है जब इस पर्व को मनाया जाता है । अंग्रेजी तिथि के अनुसार प्रत्येक वर्ष
14 जनवरी को मनायी जाती है। इस दिन गंगा स्नान करके , तिल के मिष्ठान आदि को ब्राह्मणों व पूज्य व्यक्तियों को दान दिया जाता है। इस पर्व पर भी क्षेत्र में गंगा एवं रामगंगा घाटों पर बड़े मेले लगते है। दक्षिण भारत में इसी पर्व को पोंगल भी कहा जाता है।
माघ (माह) मास के पर्व -त्योहार , मेले

1 ) सकट चौथ

यह पर्व हिन्दू स्रियों द्वारा माघ कृष्ण पक्ष चर्तुथी को व्रत व पूजन द्वारा मनाया जाता है व चन्द्रमा की पूजा की जाती है। दिन भर व्रत रहने के बाद शाम को चन्द्र दर्शन के बाद चन्द्रमा , गौरी- शंकर व गणेश की दूव , तिल ,गुड़, मिष्ठान से भोग लगाकर पूजा की जाती है तथा सकट देव की कथा सुनी-सुनाई जाती है ।
यह पर्व पूरे क्षेत्र में उल्लास के साथ मनाया जाता है।

2 ) बसंत पंचमी
यह त्योहार माघ शुक्ल पक्ष की पंचमी को उत्सव की तरह मनाया जाता है।वास्तव में यह पर्व ॠतुराज बसंत के आगमन की सूचना देता है । इसी दिन से होली गीत गाये जाने प्रारम्भ हो जाते हैं। गेहूँ तथा जौं की स्वर्णिम बालियाँ भगवान को अर्पित कर कानों पर लगायी जाती है । इस दिन देवी सरस्वती व श्री विष्णु की विशेष आराधना की जाती हैै तथा गाँवों में मेले लगते हैं।
सरस्वती पूजन एवं रंगोली
3 ) माघ पूर्णिमा

माघ पूर्णिमा का धार्मिक दृष्टि से बहुत महत्व है। यह पर्व स्नान पवाç का अन्तिम प्रतीक है तथा इस दिन स्नान आदि करके विष्णु पूजन तथा दान देने का विशेष फल मिलता है। रुहेलखण्ड क्षेत्र में कछला गंगा घाट (बदायूँ) ढाई घाट (शाहजहाँपुर) तथा रामगंगा घाट चौबारी (बरेली) पर बड़े गंगा मेले लगते है तथा यहाँ दूर-दूर से लोग आते हैं।


फाल्गुन मास के पर्व - त्योहार एवं मेले

1 ) महाशिवरात्रि
फाल्गुन कृष्ण पक्ष चर्तुदशी को भगवान शिव की महाशिवरात्रि का महोत्सव मनाया जाता है। इस दिन लोग पूरे दिन व्रत रखते हैं तथा शिव मन्दिरों में जाकर भगवान शिव व शिवलिंग को जल , दुग्ध , पुष्प अर्पित कर पूजा अर्चना करते हैं। पूजन विधान में वेलपत्र तथा धतूरा भी चढ़ाते है। इस क्षेत्र में यह त्योहार बड़े धूमधाम से मनाया जाता है तथा शिव मन्दिरों में श्रद्धालुओं की लम्बी कतारें व मेले लगते हैं। प्रमुख मेले पचोमी , अलखनाथ, धोपेश्वरनाथ,गुलड़ियो गौरीशंकर, बाबा विश्वनाथ मन्दिर (बरेली जनपद ) में लगते है।
2 ) होली
फाल्गुन मास की पूर्णिमा को धूमधाम से मनाये जानेवाले रंगों का यह त्योहार हिन्दुओं का बहुत बड़ा पर्व है। इस दिन सभी स्री - पुरुष ,बच्चे प्रात:काल होलिका दहन करके सपरिवार पूजा करते है तथा होली गीत गाते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में होली के गीत ढोल - बाजों के साथ गाये जाते हैं। होलिका दहन के बाद एक दूसरे से रंग - गुलाल , अवीर से होली खेलते हैं तथा एक दूसरे से गले मिलते हैं एवं बड़े -बुजुर्गों के पैर छूकर आशीर्वाद लेते हैं। दोपहर को स्नानादि से निवृत होकर नये कपड़े पहनते हैं तथा एक दूसरे के घर होली मिलने जाते है ।
इस दिन घरों में पूरी, खीर ,मिष्ठान्न व अनेक व्यंजन बनते हैं। शाम को होली मिलाप के मेले लगते है जहाँ पुरुष जाते है तथा सभी से गले मिलते हैं। समस्त भारत की भाँति इस रुहेलखण्ड क्षेत्र में भी होली का त्योहार बड़े धूमधाम व उल्लास से मनाया जाता है।
 
चैत्र (चैत) मस के पर्व ,मेले

1 ) धूलिका पर्व

चैत्र मास कृष्ण पक्ष प्रतिपदा को होली के बाद यह पर्व मनाया जाता है । इस दिन होलिका दहन की अवशिष्ट राख को सभी लोग श्रद्धापूर्वक मस्तक पर लगाते हैं।

2 ) बासोड़ा

यह त्योहार होली के एक सप्ताह बाद चैत्र मास के कृष्ण पक्ष में सोमवार या गुरुवार को मनाया जाता है तथा शीतला माता की पूजा की जाती है । बासोड़ा में भोजन एक दिन पूर्व ही बनाकर रख दिया जाता है तथा बासोड़ा वाले दिन वही भोजन किया जाता है। क्षेत्र के सभी घरों में यह पर्व मनाया जाता है।

3 ) नवरात्रे (दुर्गा पूजन)

यह चैत्र मास के शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से लेकर रामनवमी तक (
9 दिन)दुर्गा पूजन के रुप में मनाया जाता है। इन 9 दिनों उपवास रखकर नौ देवियों तथा कन्याओं का पूजन किया जाता है तथा दुर्गा सप्तशती का पाठ करके दुर्गा पूजन किया जाता है। नवें दिन हवन आदि करके कन्या व ब्राह्मणों को भोजन कराकर दान दिया जाता है।

4 ) रामनवमी
मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम का जन्म चैत्र शुक्ल नवमी को हुआ था, इसलिए इस तिथि को रामनवमी के नाम से जाना जाता है । पूरे भारत में हिन्दू धर्मानुयायियों द्वारा यह दिन श्री राम जन्म महोत्सव के रुप में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। प्रात: काल पूजन में श्री राम को पंचामृत से स्नान कराके धूप, दीप, आदि के द्वारा पूजा की जाती है। दोपहर तक व्रत रखने के बाद रामचरित मानस का पाठ करने के बाद भगवान की आरती उतारी जाती है अनेक स्थानों पर इस दिन मेले भी लगते हैं।


वैशाख मास के पर्व - त्योहार , मेले

1 ) वैशाखी पूर्णिमा मेला

वैशाखी पूर्णिमा स्नान लाभ की दृष्टि से महत्वपूर्ण पर्व है । इस दिन गंगा जैसी पवित्र नदी में स्नान करने से सभी पाप नष्ट होते हैं, ऐसी मान्यता है। इस दिन यहाँ के गंगा घाटों (कछला , ढाई घाट , चौबारी) पर बड़े मेले लगते है।

2 ) सोमवती अमावस्या
यह स्रियों का प्रमुख व्रत है। जिस दिन अमावस्या को सोमवार हो उस दिन यह व्रत रखा जाता है तथा पीपल के वृक्ष की 108 बार परिक्रमा करते हुए पीपल तथा भगवान विष्णु की पूजा की जाती है।


ज्येष्ठ (जेठ) मास के पर्व - त्योहार , मेले

1 ) वट पूजन
ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या को यह पर्व मनाया जाता है। इस दिन सत्यवान , सावित्री, यमराज की पूजा की जाती है। मान्यता है कि व्रत रखकर वटवृक्ष की पूजा करने वाली स्रियों का सुहाग अचल होता है। सुहागिन स्रियों द्वारा यह व्रत - पर्व पूरे क्षेत्र में मनाया जाता है।
2 ) श्री गंगा दशहरा

ज्येष्ठ सुदी दशमी को गंगा दशहरा पर्व मनाया जाता है । इसी दिन नदियो में श्रेष्ठ गंगा जी भागीरथ द्वारा पृथ्वी पर लायी गयी थीं। गंगा स्नान करके , दान पुण्य करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है, ऐसी पारम्परिक मान्यता है। इस दिन भी इस क्षेत्र में गंगा घाटों पर स्नानदि श्रद्धालुओं की बड़ी भीड़ जुटती है तथा गंगा - मेलें का आयोजन होता है।

3 ) निर्जला एकादशी
इस व्रत में सुहागिन स्रियां पति की लम्बी आयु के लिए बिना जल पिये, बिना कुछ खाये-पिये व्रत रखती है । इस दिन गंगा स्नान तथा दान देने का भी विशेष महत्व है।

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