रविवार, 3 अक्तूबर 2021

भारत में आने से पहले इंग्लैंड



 18 वीं शताब्दी ईस्वी में जब इंग्लैंड के लोग भारत आए तब इंग्लैंड का कुल क्षेत्रफल 1 लाख 25000 वर्ग किलोमीटर था यानी लगभग 50000 वर्ग मील।(वस्तुतः मूल इंग्लैंड का क्षेत्रफल तो 80000 वर्ग किलोमीटर ही था।)

और उसकी जनसंख्या उस समय थी लगभग 90 लाख।वस्तुतः18 वीं के आरम्भ में तो केवल52 लाख थे।1790 में90 लाख हुए ।


 उस समय जो भारत में मराठा राज्य था उसकी 1760 ईस्वी में कुल जनसंख्या 18 करोड़ थी और क्षेत्रफल था 2500000 *(25लाख)वर्ग किलोमीटर अथवा 970000 वर्ग मील।।

उस समय भारत का कुल क्षेत्रफल था लगभग 6500000 (65लाख) वर्ग किलोमीटर या 2500000 वर्ग मील और जनसंख्या थी लगभग 36 करोड।यह अफगानिस्तान से म्यामार तक फैले भारत की बात है।


मुस्लिम राज्यों का कुल सबको मिलाकर 14लाख वर्गकिलो मीटर क्षेत्रफल ही था। 


यानी मराठा साम्राज्य इंग्लैंड से 20 गुना बड़ा था

।उसकी जनसंख्या भी20 गुणी अधिक थी इंग्लैंड से।

मुस्लिम राज्यों से मराठा साम्राज्य लगभग2 गुना बड़ा था।लगभग।


भारत का क्षेत्रफल इंग्लैंड से50 गुणा अधिक था और जनसंख्या 40 गुणी अधिक।राजपूत राजाओं का इलाका 5 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैला हुआ था और जनसंख्या थी साढ़े तीन करोड़।यानी राजपूत राजाओं का क्षेत्र इंग्लैंड से 4गुणा अधिक था।

वीरता में राजपूतों और मराठों से अंग्रेजों की कोई तुलना ही नहीं रही कभी।

ऐसे में जो अभागे लोग भारत को अंग्रेजों का गुलाम रहा बताते हैं, वे कितनी हीन चेतना के हैं, स्वयं जान लीजिए।

वे तो याचना करते आए थे, वंचना करते भगा दिए गए।

भारत को हराने की न कभी उनकी हैसियत थी, न लालसा।

झूठी विनय से दया पाई।कमीनगी से लात खाई।

जो लोग कभी भी न वीर रहे, न सत्यनिष्ठ, न आत्मगौरव सम्पन्न, न पूर्वजों के शौर्य से परिचित,

ऐसे आत्महीन हिन्दू ही भारत को अंग्रेजों का गुलाम बताते हैं।

✍🏻प्रो रामेश्वर मिश्र पंकज


पुरानी पोस्ट : कॉपी पेस्ट कर रहा हूँ, एक मित्र की वाल से। 


ईस्ट इंडिया कंपनी 1600 AD में मात्र 70,000 पौंड में बनाई गई एक व्यापारिक संस्था थी ( रोमेश दत्त)। 


जब ये यूरोपीय ईसाई जलदस्यु (Pirate या Buccaneers लिखा इनको विल दुरान्त ने - कितना अच्छा और सम्मानीय लगता है न, ठीक वैसे ही जैसे हमारे इतिहासकार सरेआम डाका हत्या बलात्कार लूट और विनाश को Emperealism या उपनिवेशवाद लिखते हैं!) 

विश्व के गैरईसाइयों की जऱ जोरू जमीन पर कब्जा करने के लिए 16वीं शताब्दी में बाहर निकले तो इनके प्रतियोगी अन्य यूरोपीय ईसाई दस्यु मैदान में थे ----- डच स्पेनिश, पुर्तगीज, फ्रेंच ------ सबमें एक ही चीज कॉमन थी ---

डकैती के लिए ये अपने यूरोपीय ईसाई भाइयों की उतनी ही क्रूरता से लूटते और कत्ल करते थे----

जितनी क्रूरता से उन गैरईसाइयों का, जिनको लूटने ये निकले थे। 


खैर ---- 

मुख्य धारा में आइये। 

कंपनी ने जिन अनैतिक सेमी लिटरेट और अनपढ़ यूरोपीय ईसाइयो को नौकरी पर रखा उनमे दो शर्ते होती थीं कि वेतन कम होगा .....

लेकिन #प्राइवेट_बिज़नेस की छूट होगी।


अब देखिए ये भी कितना रहस्यमयी शब्द है प्राइवेट बिज़नेस ---- अर्थात् सरकारी पद के सदुपयोग से गैर ईसाइयों के लूट की छूट।


(खैर आज भी यह प्रैक्टिस जारी है लेकिन अब आदत लग गयी है तो मुंशी और पटवारी से लेकर सांसद तक निरपेक्ष भाव से सबको लूट रहे हैं!)


अब इस प्राइवेट बिज़नेस का एक उदाहरण देखिये -----

इस लूट का सम्पूर्ण आँकड़ा आज तक नही मिला है। 


एक और बात जो भी इस कंपनी के इन्वेस्टर थे वे ब्रिटेन से बाहर कदम नहीं रखते थे ------ 

वे दस्यु संरक्षक डायरेक्टर जैसे सम्मानित शब्द से जाने जाते थे। 


तो प्राइवेट बिज़नेस का स्वरूप यह होगा कि सैलरी कम से कम रहेगी, 

.... बाकी जो लूट सको वह माल तुम्हारा। 

प्रदोष अइछ लिखते हैं कि इस पालिसी के कारण - Few became rich, few became richer and few became stinking rich. जिनको आज की भाषा में Filthy rich कहकर गौरवान्वित किया जाता है।


उन दस्युओं में एक दस्यु का उदाहरण यहाँ है। 

मनी ड्रेन के कई तरीकों में एक यह भी था जिसके कारण हजारो साल के भारत के वैभव का स्रोत रहा #कृषि_शिल्प_और_वाणिज्य का विनाश हुआ, 

जिसकी पैदाइश आज संविधान में SC/ST और ओबीसी कहलाता है। 


रोबर्ट क्लाइव का बाप उसको टेलर बनाना चाहता था ...

परंतु वह टेलरिंग भी न सीख पाया ....

तो उसके बाप ने 500 पौंड कंपनी के डायरेक्टर्स को #सिक्योरिटी_मनी जमाकर उसको क्लर्क की नौकरी दिलवाया। 

भारत आने पर उसको प्रमोट कर सिपाही बना दिया गया। 


1742 में वह भारत आया था। उस समय बोम्बे के गवर्नर की सालाना सैलरी 300 पौंड थी। 

70,000 पौंड की टोटल लागत से निर्मित इस कंपनी का क्लाइव जैसा मामूली प्यादा जब 10 साल बाद 1752 में इंग्लैंड वापस जाता है तो उसकी जेब मे 40,000 पौंड होते हैं। 

ये है प्राइवेट बिज़नेस का मॉडल जो उन्होंने शुरू किया था ---- जो आज भी जारी है। 


इंग्लैंड जाकर वह सम्मानित ब्रिटॉन बन जाता है। 

ये है गोरी नैतिकता ---- और यही वह #चरित्र है जो  कालांतर में #मैकाले #भारतीयों में #पैदा करना चाहता था।


वह #सफल रहा। 

सभी एडुकेटेड भारतीयों को लख लख बधाइयाँ।


उसी चरित्र का दर्शन आज पोलिटिकल माफिया और मीडिया माफिया के गठजोड़ के रूप में विकसित हुआ है।

✍🏻डॉ त्रिभुवन सिंह

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