बुधवार, 17 जून 2020

लाओत्से ताओ तेह किंग का मोहक व्यक्तित्व




लाओत्से ‘‘ताओ तेह किंग’’ एक परिचय

भगवान बुद्ध के समकालीन लाओत्से का जन्म चीन के त्च्यु प्रदेश में ईसा पूर्व 605 में माना जाता है। वह एक सरकारी पुस्तकालय में लगभग 4 दशक तक ग्रन्थपाल रहे। कार्यनिवृत्त होने पर वह लिंगपो पर्वतों पर ध्यान चिन्तन करने निकल गये।

जब 33 वर्षीय कन्फ्यूशियस ने आदरणीय लाओत्से से मुलाकात की थी तब वे 87 वर्ष के थे। कन्फ्यूशियस पर उनके दर्शन का गहरा प्रभाव पड़ा।

उन्हंे आखिरी बार उस समय देखा गया जब वे एक यात्रा के दौरान क्वानयिन दर्रे से बाहर निकल रहे थे। वहां से निकलते वक्त नाके पर खड़े टोलटैक्स अधिकारी या द्वारपाल ने उनसे टैक्स मांगा, धन के अर्थ से परे उस महापुरुष ने उस व्यक्ति को अपने 644 बोध वचनों से समृद्ध किया

तेह का अर्थ सहज प्रकाश का प्रकट होने का मार्ग है। ताओ में जानबूझकर, सआयास कुछ करना पाप का मूल माना गया है। इसलिए लाओत्से ने इसे एक धर्म का नाम भी नहीं दिया गया।
लाओत्से पूछता है -
क्या फूल को अपने अंदर खुशबू भरनी या उसके लिए कोशिश करनी पड़ती है? वह सहज रूप में ही अपना जीवन बिताता है।
लोग कहते हैं कि वो सुगंध देता है लेकिन यह तो फूल का स्वभाव है, इसके लिए वह कर्ता नहीं।
लाओत्से कहते हैं यह ”गुण प्रकाश” का मार्ग है।
मनुष्य का सबसे बड़ा धन या साम्राज्य वासनाशून्य हो जाना है। इसके लिए श्रम की जरूरत ही कया है?
क्योंकि ‘कुछ करना चाहिए’ इस भावना को त्यागना है। कुछ होने की भावना से निवृत्ति ही सबसे बड़ा कर्म है

 *ताओवाद के सिद्धांत*

(1) शिक्षा के प्रसार का विरोध–

लाओत्से शिक्षित व्यक्ति को स्वार्थी मानता था और कहता था कि वे सामाजिक समस्या उत्पन्न करते हैँ । इसलिए अशिक्षित मनुष्य ही सुखी जीवन व्यतीत कर सकता है । उसका कहना था-“शिक्षा के प्रसार कै साथ मूर्खो की संख्या बढती हे । बुद्धिमान जन राज्य के संकट का करण बन जाते हैं ।” चीन में उसका दर्शन “अज्ञान” के नाम से प्रसिद्ध हे । चीन में सैंकडों अशिक्षित लोग उसके अनुयायी बन गये । कहा जाता हे कि जब कांफ्यूशियस कुछ सीखने की दृष्टि से लाओस्ते के मास पहुंचा तो उसने ने उनसे कहा था, “‘जाओ, अपना अहंकार, वासनाएं, भोगवृत्ति और महत्वाकांक्षाओं का परित्याग कर दो । ये तुम्हारे लिए हानिकारक हैं । बस मुझें यही कहना है ।”

(2) प्राकृतिक विचार-

लाओत्से प्रकृति को मानता था और उसकी पूजा करता था । लाओत्से का यह मानना था कि मनुष्य को प्रकृति के नियमों के अनुसार अपना जीवन व्यतीत करना चाहिए ताकि उसे सुख एवं शान्ति प्राप्त हो सके । वह जीवन की सादगी के लिए शहरी जीवन भी घृणास्पद समझता था । राज्य, समाज और कानून को महत्व नहीं देता था । लस्कोलो नैतिक, राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक विचारों में कन्ययूशियस का विरोधी था । उसकी सामाजिक उत्थान तथा सभ्यता के विकास में कोई दिलचस्पी नहीँ थी । वह मनुष्य को अपनी नैसर्गिक आदिम अवस्था में लौटने का उपदेश देता था ।

(3) प्रेम व दयापूर्ण व्यवहार पर बल

-लाओत्से ने अपने अनुयायियों को हमेशा प्रेम का पाठ पढाया और हमेशा दया की भावना रखने की शिक्षा दी । उतने कहा – “यदि तुम किसी से झगड़ा न करो तो संसार में किसी को भी तुमसे झगड़ा करने का साहस न होगा । यदि तुम्हें कोई चोट पहुंचाए तो उसका उत्तर दयालुता से दो । संसार में सबसे कोमल वस्तु सबसे कठोर वस्तु से टकरा कर उसे परास्त कर देती है ।” उसका का मानना या कि मनुष्य को आघात का बदला दयालुता से देना चाहिए ।

(4) शान्तिपूर्ण जीवन में विश्वास–

लाओत्से सदा शान्तिपूर्ण जीवन व्यतीत करने का पक्षधर रहा । उसकी रहस्यमय विचारधारा थी और वह भाग्य में विश्वास रखता था । उसकी इस विचारधारा के कारण चीन के विकास का मार्ग अवरूद्ध हो गया । वह शान्तिपूर्ण किसान जीवन का पक्षपाती या; जहाँ कम से कम आवश्यकताएं हों । उसका कहना धा कि मनुष्य की बढती हुई आवश्यकताएं उसके सुंदर जीवन का अत का देती हैं ।

लाओस्ते द्वारा प्रतिपादित ताओंवाद का चीन में काफी प्रचार हुआ । इसमें पुरोहित, मंदिर और मूर्तियां भी र्थी । वह युद्ध का विरोधी था । उसका मानना या कि युद्ध में निरपराध व्यक्ति अकारण ही मारे जाते हैं । लाओल्ले की नजर मेँ धन तया सम्पत्ति कोई खास महत्व नहीं रखते थे । अत: चीन के तमाम दरिद्र और अशिक्षित लोग उसके अनुयायी बन गये । एक अग्रेज सेनापति ने चीन में युद्ध के मैदान में वेठे-बैठे समस्त चीनी दर्शन पढ तिया था । उसने लिखा हे “मैं चीनी दर्शन से इतना डूबा हुआ धा कि मुझें तोपों की आवाज तक का पता नहीं चला ।” लाओत्से की मृत्यु के बाद उसे एक देवता मान तिया गया और उसकी शिक्षाओं में जादू-टोने का समन्वय कर दिया गया । प्रो. टर्नर के अनुसार लाओस्से की विचारधारा शहरी सभ्यता की अशान्ति के विरुद्ध किसान शिल्पकार प्रतिक्रिया की प्रतीक थी ।”

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