जनता का रिपोर्टर
अनामी शरण बबल
गरमी का मौसम मुझे सामान्य तौर पर सबसे प्यारा लगता है। अप्रैल माह के आखिरी सप्ताह में मैं आगरा में था। यमुना तट से महज 150 मीटर दूर टीन से बने एक झोपडी में ही हम कई लोग ठहरे थे। चारो तरफ रेत ही रेत थे। दिन में आस पास का पारा 47-48 डिग्री सेल्सियस तक चला जाता तो रात में कंबल ओढ़कर भी बिस्तर में ठंड लगती थी। सुबह 111 बजे के बाद ही लगता मानो चारो तरफ आग लगी हो। हमलोगके खाना और नाश्ता पहुंचाने वाली गाडी तो रोजाना समय पर आती थी मगर चाय की व्यवस्था हमलोगो ने ही कर ली थी, और देर रात तक चाय कॉफी का मजा लिया जाता था। पीने वाला पानी भी इतना खौलता सा रहता था कि दिल्ली में आकर दर्जनों गिलास पानी पीकर भी प्यास बनी हुई ही थी। इस भीषण गरमी में मुझे हमेशा बीकानेर और भारत पाकिस्तान सीमा पर रेत में झुलसने की याद बार बराबर आती रही।
बात आज से 22 साल पहले 1994 की है। मुझे राष्ट्रीय सहारा अखबार से जुड़े चौथा ही महीना हुआ था कि मार्च माह के आखिरी सप्ताह में एक दिन दोपहर में किसी काम से अपने संपादक श्री राजीव सक्सेना के कमरे में घुसा ही था कि उन्होने तुरंत मुढे लपक लिया। अरे बबल मैं बस अभी तुमको बुलाने ही वाला था। कुर्सी से खड़े होकर कहा कि ये मेरे राजस्थान के दोस्त है हरिभाई । इनसे बात करो और मुझे बताओं कि क्या बीकानेर जाओगे। अपने आप को ज्यादा संजीदा और स्मार्ट दिखाने के लिए तुरंत ही कहा कि हां मैं बीकानेर जाउंगा । स्टोरी के बाबत मैं इनसे बात कर एक रूपरेखा बनाकर दिखाता हूं। उन्होने कहा कि ये लोग भी केवल तुम्हारे साथ जाएंगे मैं अकाउंट को बोलकर तुम्हारे नाम दस हजार मंगवा लेता हूं। फिर संपादक जी ने हरे भाई से पूछा कि दस हजार में काम हो जाएगा न ? इतनी रकम पर उन दोनो ने सहमति जता दी, तो शाम तक मेरे पास रूपए भी आ गए और किसी को फोन करके अगले दिन रात में बीकानेर के लिए खुलने वाली ट्रेन में तीन सीट आरक्षित भी करवा दिया।
मैं संपादक के कमरे में ही बैठकर उन दोनें से स्टोरी पर बात करने लगा। मामला भारत पाक सीमा पर तारबंदी से जुडा था कि शाम को फ्लड लाईट जलाने के लिए जीरो एरिया में भारतीय सैनिक जाकर बल्ब जलाता है और उसी दौरान पाक सीमा की तरफ से सामान की हेराफेरी अदला बदली और तस्करी के सामानों की सीमाएं बदल दी जाती है। उन्होने पास में ही एक साधू की समाधि का भी जिक्र किया जिसके भीतर से सुरंग के जरिए भारत और पाकिस्तान आने जाने का रास्ता है। हरे भाई ने बताया कि इस रास्ते रात में जमकर तस्करी होती है। मैंने सभी स्टोरी मे तो खूब दिलचस्पी ली, मगर इसको किया कैसे जाएगा इस पर वे कोई खास रास्ता नहीं सूझा पा रहे थे। तो खबर कैसे की जाए इसको लेकर दिक्कत बनी हुई थी कि बिना सबूत इतने संगीन इलाके की खबर दी किस तरह जाएगी। मगर तमाम समस्याओं को दूर करते हुए संपादक जी ने कहा कि तुम एकबार इनके साथ जहां जहां ले जाते हैं वहां का माहौल देखकर तो आओ बिना बहादुरी किए लौटना है भले ही कोई न्यूज खबर बने या न बने। अपने संपादक के इस प्रोत्साहन और भरोसे के बाद तो मेरा सीना और चौड़ा हो गया।
उस समय,सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ ) के प्रमुख थे हमारे जिले के सांसद सतेन्द्र बाबू उर्फ छोटे साहब के बेटे निखिल कुमार। अगले दिन दोपहर में मैं उनके दफ्त में जा पहुंचा। मैं ज्योंहि लिफ्ट से बाहर निकला तो देखा कि निखिल जी लिफ्ट में जाने के लिए दल बल के साथ खड़े थे। मैं तुरंत चिल्लाया निखिल भैय्या मैं अनामी औरंगाबाद बिहार से। औरंगाबाद सुनते ही लिफ्ट में घुसने जा रहे निखिल कुमार एकाएक रूक गए और हाथों से संकेत करके मुझे भी अपने साथ लिफ्ट में बुला लिया। मैं फौरन उनके साथ लिफ्ट में था।. कहो औरंगाबाद में कहां के हो और यहां किसलिए ? मैं हकलाते हुए अपना नाम और पेपर के नाम के साथ ही बताया कि सत्संगी लेन देव का रहने वाला हूं। मैने कहा कि हमे बीकानेर जाकर भारत पाक सीमा को देखना था । क्यों? उनकी गुर्राहट पर ध्यान दिए बगैर कहा कि बस्स भैय्या यूं ही। मेरी बात सुनते ही वे हंसने लगे अरे भाई घूमने जाना हगै तो पार्क में जाओं सिनेमा देखो सीमा को देखकर क्या करोगे चारो तरफ रेत ही रेत है और कुछ नहीं। तब तक मैं अपने अखबार का पत्र भी निकाल कर उनको थमा दिया जिसे देखे बगैर ही वापस करते हुए कहा कि अब तो मैं बाहर निकल गया हूं तुम सोमवार को आओ तो कुछ सोचता हूं। मैं आतुरता के साथ कहा कि सोमवार तक तो लौटना है। इस पर वे बौखला उठे कि बोर्डर देखना क्या मजाक है जो तुम अपनी मर्जी से चाह रहे हो। तबतक लिफ्ट नीचले तल पर आ गयी थी और वे सोमवार को फिर आने को कहकर लिफ्ट से बाहर हो गए। सबसे अंत में मैं भी लिफ्ट से बाहर निकल गया शाम को हमसब लोग अपने दफ्तर में ही । रहे और फिर रात में नयी दिल्ली रेलवे स्टेशन से गाडी पकड़कर सुबह सुबह बीकानेर में थे।
किस मोहल्ले में उनके रिश्तेदार रहते थे यह तो अब याद नहीं मगर वे एक साप्ताहिक अखबार निकालने के अलावा प्रेस से प्रिंटिंग का भी भी काम करते थे। चाय के साथ कमसे कम 10-12 पापड़ साथ में आया। मैं इतने पापड़ देखकर चौंक उठा। मेरे असमंजस को भांपकर हरे भाई ने कहा कि अनामी भाई पापड़ यहां का जीवन है जितना मिले खूब खाओ क्योंकि यहां के पापड़ का स्वाद फिर दोबारा आने पर ही मिलेगा। वाकई इतने लजीज पापड़ फिर दोबारा खाना नसीब नहीं हुआ। हमलोग जल्दी जल्दी तैयार होकर जिलाधिकारी (डीएम) के दफ्तर के लिए रवाना हुए। इस बार मेरे संग स्थानीय पेपर के मालिक संपादक भी साथ थे।कार्ड भेजने के बाद बुलावा आते ही हमलोग बीकानेर के डीएम दिलबागसिंह के कमरे के भीतर थे। ठीक उसी समय की रेडियो या वायरलेस मैसेज वे रिसीव कर रहे थे मगर हमलोग के अंदर आकर बैठते ही इस असमंजस में थे कि वे मैसेज ले या न ले। 30-40 सेकेण्ड की दुविधा को देखते हुए मैं खडा होकर बोला कि सर आप मैसेज तो लीजिए या तो कोई घुपैठिया मारा गया होगा या कोई पकड़ा गया होगा। इससे बड़ी तो और कोई खबर हो ही नहीं सकती है। मेरी बात सुनकर दिलबाग सिंह ने फिर आराम से मैसेज को रिसीव करके बताया कि एक पकडा और दो मारा गया है। तब हम सबलोग मिलकर जोरदार ठहाका लगाए। संयोग था कि डीएम भी हमलोगो से खुल गए और फौरन सत्कार के लिए कई चीजे मंगवाकर अगवानी की। मगर वे हर बार एक सवाल पर अटक जाते थे कि अनामी आपको यह कैसे पता लगा कि यही खबर हो सकती है। मैने सपाई मे कहा कि पिछले 15 दिन से बीकानेर और सीमा से जुड़ी खबरों को ही पढ़ पढ़ कर यह ज्ञानार्जन किया है कि यहां का पूरा चित्र क्या और कैसा है। बहुत देर तक बात होने के बाद भी वे सरकारी गाडी से सीमा दर्शन कराने पर सहमत नहीं हो सके। मेरे तमाम निवेदन के बाद या साथ में अधिकारियों को भी भेजने या गाडी के तेल का पूरा खर्चा उठाने के लिए भी कहने के बाद भी वे राजी नही हो सके। अंतत: मैने कहा कि आप जब नहीं भेजेंगे तो ठीक है मैं बीकानेर शहर तो घूम लूं। कई दिग्गज लेखक हैं उनसे तो मिल लूं। मगर मेरे लौटने का टिकट आपको कन्फर्म करवाना होगा। इसके लिए वे राजी हो गए। तो मैने भी कहा कि एकदम वादा रहा कि बीकानेर शहर छोडने से पहले आपकी चाय पीकर ही जाउंगा। मैं जब टिकट के लिए रूपये निकालने लगा तो उन्होने रोक दिया कि अभी नहीं पर आपका टिकट आपको देखकर कन्फर्म हो जाएगा तो रकम भी ले ली जाएगी। मैने कहा कि होलिका दहन ( जो अगले तीन दिन बाद था) की रात वाली ट्रेन का टिकट चाहिए। मैने कहा कि शादी के एक साल के बाद तो बीबी पहली बार दिल्ली आई है लिहाजा होली के दिन तो साथ ही रहना है। इस पर मुस्कुराते हुए डीएम ने कहा कि टिकट कन्फर्म हो जाएगा आप अपना काम निपटाओ।
मार्च माह के अंतिम सप्ताह में मुझे बीकानेर की गरमी असहनीय लग रही थी । मुझे लग रहा था मानो मैं गरम तवा पर चल रहा हूं। मैं गरमी से परेशान था जबकि स्थानीय लोगों को गरमी का खास अहसास नहीं था। डीएम के दफ्तर से बाहर निकले अभी तीन चार घंटे भी नहीं हुए थे कि लगने लगा कि हमलोगों की निगरानी की जा रही है। शाम होते होते साप्ताहिक पेपरके संपादक ने साफ कहा कि आपके बहाने मेरे घर और परिवार पर नजर रखी जा रही है। डीएम की इस वादा खिलाफी पर मैं चकित था। रात में उनके घर पर फोन करके खूब उलाहना दी। कमाल है यार अपनी पूरी जन्मकुण्डली देकर बताकर आया हूं तो मेरे पीछे इंटेलीजेंस लगा दी और बिना बताए कहीं से भी घूम आता तो किसी को पता भी नहीं चलता। मैने कहा कि आपसे वादा किया है न कि आपके घर पर होकर ही शहर छोडूंगा तो ई एलयूआई वालों को तो हटवाइए। बेचारा जिसके यहां रूका हूं उस पर तो रहम करे। बेशक मेरे को जेल में ठूंस दो पर प्लीज । मेरी शिकायत पर वे लगभग झेंप से गए और एक घंटे में निगरानी हटाने का वादा किया। साथ ही एकदम बेफ्रिक होकर रहने को कहा।
बीकानेर के सबसे मशहूर लेखक यादवेन्द्र शर्मा चंद्र का नंबर मेरे पास था। मैने उनको फोन किया तो जिस प्यार आत्मीयता और स्नेह के साथ रात में किसी भी समय आने को कहा। उनका यह प्यार कि यदि बबल सेठ यहां से मिले बगैर लौट गया तो फिर अगली दफा मेरे धर ठहरना होगा। इतने बड़े लेखक की यह विनम्रता देखकर मेरा मन रात में मिलने को आतुर हो गया। हमलोग बिना फोन किए पास में ही रहने वाले यादवेन्द्र जी के यहां पैदल चल पड़े। अपने घर के बाहर ही वे टहल रहे थे। देखते ही बोले बबल सेठ आ गया और हंसने लगे। जान न पहिचान और बिना मुलाकात के राह चलते नाम लेकर पुकार लेने मैं अचरज में था। रात में करीब दो घंटे तक हजारों बातें हुई और अंत में उन्होने कहा कि तुम एकदम मस्त हो बेटा। तब मैने अपनी समस्या बताई कि भारत पाक बोर्डर देखना है पर कोई जुगाड नहीं बैठ रहा है। मेरी बात सुन करवे हंस पड़े और हरेभाई को एक जगह पर जाकर कल सुबह बात करने की सलाह दी। साथ ही उन्होने मुझे दो तीन दिन तक दाढ़ी नहीं बनाने को कहा। उनसे बिदा लेते समय मैने पूछा कि आप सोते कब हो? तो वे मुस्कुराते हुए बोले कि कभी भी जब जरूरत महसूस हो । नींद को लेकर इनकी विचित्रता पर मैं अवाक सा था।
अगले दिन सुबह सुबह हरेभाई कहीं गए और दोपहर तक लौटे।आते ही बोले कि बोर्डर पर रोजाना मजदूरो को लेकर एक गाडी जाती है। जिन्हें वहां पर साफ सफाई के साथ साथ सैनिकों के बने टेंटो का भी रख रखाव करनी पड़ती है। सुबह जाने वाले सभी मजदूरों को बीकानेर शहर लौटते लौटते रात हो जाती है। दो दिन तक तो बोर्डर पर जाने का जुगाड नहीं लग सका, मगर इस बीच बाल दाढी बढाकर ओर बाल के कई जगह से कटवाकर बेढंगा बना डाला। मैले कुचैले फटे कपडे को ही अपना मुख्य ड्रेश बनाकर इधर उधर घूमता रहा। और अंत में दो सौ रूपईया की दिहाडी पर मैं मजदूर कमल बनकर भारत पाक सीमा के दर्शन के लिए निकल पडा। शहर के किन रास्तों से होकर हमारी गाडी रेत के सागर में घुस गयी यह तो पता ही नहीं चला मगर रेतो के बीच भी गाडी 20 किलोमीटर चली होगी। शहर सीमा क्षेत्र की दूरी लगभग 100 किलोमीटर की है जो दांए से बांए पूरे राजस्थान की सीमा खत्म होते ही पाक सीमा शुरू हो जाती है।
जिस दिन मैं भारत पाक सीमा पर था तो उस दिन मौज मस्ता वाला दिन था। होलिका दहन के काऱण सेना की तैनाती से लेकर इनकी सजगता तथा सावधानी पर भी पर्व का साया दिखता था। रेत के उपर ही होलिका दहन के लिए लकजी से लेकर कुर्सी मेज और पुराने सामानों का जमावड़ा लगा था। मैं गंदे कपड़ो में बेतरतीब ढंग के बाल और गरमी बेहाल सूखे हुए चेहरे को बारबार पोछता दूसरे मजदूरों के पीछे पीछे घूम रहा था। सीमा पर ही रहने वाल लेबर मैनेजर ने मुझे बुलाया। मैं उसके सामने जाकर खड़ा हो गया। अपना नाम कमल बिहारी बताया तो वह खुश हो गया। बिहार में कहां के हो तो मैने झूठ बोलने की बजाय सच और सही पता बताया सीतालाल गली देव औरंगाबाद बिहार 824202 धाराप्रवाह पता बताने पर उसने कहा कि तुम लेबर तो लग नहीं रहे हो। मैं थोडा नाटक करते हुए कहा कि आपने सही पहचाना मैं तो लेबर हू ही नही। एक आदमी के नाम लेकर पांच छह गंदी -गंदी गालियां निकाली और विलाप किया कि साला नौकरी दिलाने के लिए बुलाया था और खुदे लापता हो गया। अपने दुख को जरा और दयनीय बनाया कि कल बस स्टैणड पर रात में मेरा सामान ही किसी ने चुरा लिया। मेरे पास तो एक पईसा भी नहीं था। वहीं पर किसी ने एक दिन की दिहाडी करने की सलाह दी थी। उसने कहा था कि यहा पर रोजे 200 रूपैया मिलता है। दिल्ली तक तो रेल भाडा जेनरल क्लास में कमे है। मैने फिर उससे पूछा कि क्या आप भी बिहारी है? उसने पूरी सहानुभूति दिखाते हुए पानी पीने को कहा और बताया कि नालंदा का हूं। इस पर मैंने और खुशी जाहिर की और कुर्सी पर बैठे भोला भाई के लटके पांव पर हाथ लगाते हुए धीरे धीरे दबाना चालू कर दिया। अपनापन दर्शाते हुए कहा कि आप तो एकदमे घर के ही निकले भाई। और खुशामदी स्वर में कहा कि आप चौकी पर तो लेटो भाई मैं मसाज बहुत बढिया करता हूं । पूरे बदन का दर्द देखिएगा पल भर में निकाल देता हूं। चारा डाला मैने कहा कि घर में कोई कभी छठ देव मे करे ना तो केवल हमको बता दीजिएगा। देव में मेरा बहुत बडा मकान है सारी व्यवस्था हो जाएगी। मैने पूछा कि भईया आपका नाम का है? करीब 40 साल के इस लेबर मैनेजर ने अपना नाम भोला ( उनकी रक्षा सुरक्षा के लिए यह बदला हुआ नाम है) बताया। मेरे मे रुचि लेते हुए भोला भाई ने कहा कि तुम यहां नौकरी करोगे? रहने खाने पीने के अलावा छह हजार महीना दिलवा देंगे। तुम तो घरे के हो तुम रहोगे तो मैं भी बेफ्रिक होकर घर जा सकता हूं। मैने और भी रूचि लेते हुए पूछा और बीबी को कहां रखूंगा। इस पर वह हंसने लगा। बीबी के बारे में तो सोचो भी नहीं।, नहीं तो तेरी बीबी होगी और ये साले सारे हरामखोर सैनिक मौज करेंगे। मैं कुछ ना समझने वाला भाव जताया तो वह खुल गया । साल में तीन बार 15-15 दिन के लिए घर जाने की छुट्टी मिलेगी। मैं मायूषी वाला भाव दिखाते हुए अपना चेहरा लटका लिया। तो भोला भाई मेरे पास आकर पूछा कब हुई है तेरी शादी। मैं थोडा शरमाने हुए कहा कि पिछले साल ही भईया पर अभी तक हमदूनो साथे कहां रहे है। ई होली में तो ऊ पहली बार आई है तो मैं साला यहां पर आकर फंसा हूं। भोला भाई ने दो टूक कहा कि बेटा बीबी का मोह तो छोडना होगा उसके लिए तो छुट्टी का ही इंतजार करना पड़ेगा। फिर वो मेरे करीब आकर बोले कि तू चिंता ना कर उसकी भी व्यवस्था करा देंगे। मेरे द्वारा एक टक देखने पर भाई मुझसे और प्यार जताने लगा कि यहां पर सिपाहियों के लिए महीने में लौंडिया लाई जाती है उससे तेरा भी काम चलेगा। बाकी तो जितनी नौकरानियां यहां पर जो काम करती है न किसी को सौ पचास ज्यादा दे देना या भाव मारने वाली के 100 -50 रूपे काट लेना तो सब तेरे को खुश रखेगी। डरते हुए मैने कहा कि कहीं सब मुझको ही न बदनाम कर दे। वे हंसने लगे अरे तेरे को निकाला देगा तो अपन की भी तो बदनामी होगी, कोई डरने की बात नहीं है। तब मैं भोला भाई के पैर दबाते हुए हंस पडा और कहा ओह भईया मैं सब समझ गया इसीलिए आपको भौजाई की याद नहीं आती है। मेरे यह कहने पर वो खुलकर हंसने लगा। मैं उसके पैरो को एकदम तरीके से मालिश करने और दबाने में लगा रहा। अरे तू यहीं आ जाओ तेरी नौकरी पक्की करा दूंगा। फिर दारू और घर के बहुत सारे सामान की कोई कमी नहीं रहेगी। उसकी बातें सुनकर मैं बहुत खुश होने का अभिनय किया और जल्द ही घर में बीबी को पहुंचाकर आने का पक्का वादा किया। मगर यह चिंता भी जताया कि वो तो भईया अभी अभी आई ही है घर ले जाएंगे तो वहीं ना नुकूर करेगी। भाई ने ज्ञानदान देते हुए कहा कि कह देना कि इसमें पैसा ज्यादा है। पहले जाकर देख तो लूं। भाई ने कहा कि तेरे को रखने में एक ही फायदा है कि जब तू घर जाएगा तो मैं भी कुछ सामान भेज सकता हूं। इस तरह मेरी मदद ही करोगे और घर से संबंध भी रहेगा। भोला भाई मेरी सेवा और सीधेपन से एकदम खुश हो रहा था। भोला भईया ने मुझे खाना खिलाया और 300 रूपए भी दिए कि इसको रख लो बीकानेर में पैसा देने में ज्यादा देर लगेगी तो तुम फूट लेना ताकि ज्यादा लोगों को तेरा चेहरा याद न रहे। इस पर मैने खुशामद की कि भईया एकाद सौ रूपईया और दे दो न कुछ बीबी के लिए भी सामान खरीद लेंगे। इस पर वो एक बैग दिया। जिसमें कुछ मिठाई एक टॉर्च समेत सैनिको के प्रयोग में आने वाला साबुन तौलिया गंजी अंडरवीयर समेत दाढी बनाने का किट आदि सामान था। जब तू आएगा तो दोनों भाई मिलकर रहेंगे और तुमको पक्का उस्ताद बना देंगे। मैने जोश में आकर कहा कि हां भईया जब हम यहां पर सब संभाल ही लेंगे तो तुम तो भाभी को लाकर बीकानेर में रख भी सकते हो। मेरी बात सुनते ही भोला भाई एकदम उछल पड़ा। मुझे बांहों में भरकर मुझे ही चूमने लगा। अरे वाह आज ही तेरी भौजाई को यह बताता हूं तो वह तो एकदमे पगला जाएगी। मैं भी जरा जोश और नादानी दिखाते हुए कहा कि तब तो भईया जब कभी भौजाई नालंदा जाएंगी तो मैं भी तो अपनी बीबी को लाकर यहां रख ही सकता हूं ना? इस पर वह खुश होकर बोला कि हां रख तो सकते हो पर बीबियों को शहर में लाकर रखने की खबर को छिपाकर ऱखना होगा। मैं फटाक से भोला भाई के पैर छूते हुए कहा कि आप जो कहोगे वहीं होगा भाई फिर मैं कौन सा बीबी को हमेशा रखूंगा ज्यादा तो आप ही रखेंगे न।मेरी बातो पर एकदम भरोसा करते हुए मुझे एक नंबर देते हुए भोला भाई ने कहा कि जब तू आने लगेगा न तो हमको पहले बताना हम यहां पर सब ठीक करके रखेंगे। और तुम एकाध माह में आ ही जाओ। मैने आशंका जाहिर की कि भईया कोई डर तो नहीं है न यहां पर सैनिकों के साथ रहन होगा। सुने कि ये ससूर साले बडी निर्दयी होते हैं। इस पर हंसते हुए भोला ने कहा कि नहीं रे उनको दारू और मांस समय पर चाहिए । उनसे लगातार मिलते रहो तो ये होते भी दयालू है। इनकी किसी बात को कभी काटना मत। बस यह ध्यान रखना। मैने डरने का अभिनय किया तो भोला भाई हंस पडा।
भोला भाई के साथ गरम रेत में लू के थपोडे खाते हुए मैं बाहर निकला तो बताया कि ई जबसे फेंसिंग (तारबंदी) हुआ है न तब से लाईट जलाने के नाम पर दोनो तरफ के सैनिक साले दारू बदलने और सामान की हेराफेरी भी करते है। बात को न समझते हुए मैंने मूर्खो की तरह बात पर गौर ही नहीं किया। आप यहां कईसे पहुंचे भोला भाई? इस पर भाई ने कहा कि बनारस के एगो बाबू साहब के पास ठेका है मैं तो काम देखने आया था और पांच साल से यहीं पर हूं। मैने मजाकिया लहजे में कहा कि तब तो भईया दो चार दिन तो भौजाई बहुत लड़ती होंगी। इस पर हंसते हुए उन्होने कहा कि पहले नहीं रे जाने के दिन नजदीक आने पर रोज लडाई होती है। यही तो दिक्कत है रे कि नौकरी छोडू कि बीबी को अलग रखना ही ठीक लगता है। यहां पर कमाई भी ठीक हो जाती है। तू पहले आ तो सही मैं तुमको अपने छोटा भाई की तरह ही रखूंगा। मैने फिर आशंका प्रकट कि भईया सुने हैं कि ये साले होमोसेक्सुअल (समलैंगी) भी होते है। तो इनसे तो बचकर भी रहना होगा। इस पर भोला भाई खिलखिला उठा। अरे ज्यादातोरों का हिसाब फिट रहता है ईलाज के बहाने शहर में ये साले लौंडियाबाजी भी कर आते हैं। ये आपस में ही रगडने वाले एकदम बर्फीले इलाके में होते हैं। मैने कहा कि भईया मैं तो मांस मछली भी न खाता। यह सुनते ही भोला ने कहा कि खाने लगना और जाडा में तो बेटा दारू ही गरम रखेगा ठहाका मारते हुए बोला ने कहा कि साला ई सब नहीं खाएगा और पीएगा तो हंटर गरम नहीं होगा तब साली ये नौकरानियां भी जूते मारेंगी। पाक सैनिको को लालची कहते हुए भोला ने कहा कि उनको भारतीय सैनिकों इतना दारू मिलती नहीं है तो रोजामा भारत से ही दारू की भीख मांगते है। मैं चौंकने का नाटक करते हुए कहा कि साले दारू भी पीते है और हमला भी करते है। इस पर भोला हंसने लगा। सामान्य मौसम और माहौल में तो दोनों तरफ पहले से पता होता है कि आज कुछ करना है। साले पहले से ही मार कर या पकड कर लाते हैं और सीमा के अंदर डालकर मार देते या पकडा हुए को मीडिया पर दिखा देते है। मैने कहा कि भाई है वैसे बडी खतरनाक जगह जहां पर जान की कोई कीमत नहीं है। इस पर खुसामदी लहजे में भोला ने कहा कि यहां आकर सेट कर जाओ तो सब ठीक लगेगा। हम कौन से सिपाही है। हम तो इनके लिए सामान मुहैय्या कराने वाले है। वे घिग्घिया कर अपनी पसंद वाली चीज लाने के लिए खुशामद भी तो करते है। अंत में मैं राजी होने का एलान करते हुए कहा कि मेरे रहते तुम भईया एक माह रहोगे तभी काम करूंगा, और सब समझ भी लूंगा। इस पर भोला भाई खुश हो गया और दूसरे कमरे में जाकर फ्रीज से दो तीन मिठाई लाकर दिया। मैंने खाते हुए कहा कि भईया तुम नहीं मिलते और कोई दूसरा पकड़ लेता तो क्या करता? इस पर जोर से हंसते हुए भाई ने कहा कि अगले 15 दिन से पहले जाने ही नहीं देता, और काम करवाने के बाद ही पईसा देता। डरने वाली कोई बात नहीं है। सीमा के नाम पर मजदूर नहीं मिलते हैं। भोला भाई एकदम हमेशा मेरे ही साथ रहा और मैं भगवान को बारम्बार धन्यबाद दे रहा था कि हे मालिक यदि भोला भाई की जगह कोई और होता तो मेरा तो आज बैंड ही बज जाता। लौटते समय बस में मेरे सहित 26 मजदूर थे। बस खुलने से पहले भोला भाई मेरे पास आया और खाने के लिए कुछ नमकीन देते हुए सौ रूपए को एक नोट भी पाकेट मे डाल दिया। इस पर मैं गदगद होते हुए उसके पैर छू लिए और वह भी भावुक होकर होली की मुबारकबाद दी। रास्ते भर मैं भोला भाई की मासूमियत और आत्मीय स्वभाव को याद करता रहा। बीकानेर बस अड्डे के पास मेरे पहुंचने से पहले ही हरे भाई खडे दिख गए. बेताबी के साथ मुझसे मेरा हाल चाल पूछा। मैने भोला भाई नालंदा वाले की पूरी खबर के साथ ही खाने पीने और 400 रुपए देने की बात कही, तो हरे भाई मुझे बस अड्डे के एक शौचालय में ले जाकर कपड़े बदलवाए। बाहर आकर हम दोने ने चाय पी और वे दिल्ली पहुंचने पर फोन करने को कहा। मैं भी एक ऑटो करके फौरन डीएम कोठी पहुंचने के लिए आतुर हो उठा। करीब 15 मिनट के बाद ऑटो डीएम दिलबाग सिंह की कोठी के बाहर खडी थी। होलिका दहन भले नहीं हुए थे मगर शहर के चारो तरफ बम धमाको का शोर था। गेट पर दरबान को राष्ट्रीय सहारा वाला अपना कार्ड दे दिया। कार्ड लेकर भी वो ना नुकूर करने लगा। तब मैने जोर देकर कहा कि तुम जाकर तो दो मेरा टिकट भी यहीं पर हैं और दिलबाग सिंह को यह पता है। डीएम के नाम को मैं जरा रूखे सूखे अंदाज मे कहा तो इसका गेटकीपर पर अच्छा असर पडा और बिना कुछ कहे वह अंदर चला गया। मै अपना सामान नीचे रखकर उसके आने का इंतजार करने लगा। वह एक मिनट के अंदर आया और मेरे सामान को उठाकर साथ आने को कहा। उधर डीएम भी कमरे से बाहर निकल कर बाहर ही मेरा इंतजार कर रहे थे। खुशी का इजहार करते हुए मैने कहा कि आपको मैने कहा था न कि शहर छोडन से पहले आपसे मिलकर और आपकी कोठी से ही दिल्ली जाउंगा। मेरी बात सुनकर वे भावुक हो उठे और कहा कि आप यहां से होकर जाओगे इसका मुझे यकीन नहीं था। यह सुनते ही मैं घबराते हुए कहा कि यह क्या कर दिया महाराज । मेरे टिकट को रिजर्व कराने का भरोसा आपने दिया था। इस पर वे खिलखिला पडे अरे अनामी जी आपको भेजने की जिम्मेदारी मेरी रही। वे तीन चार जगह फोन करने लगे और अपने सहायक को चाय पानी लाने का आदेश देते हुए बताया कि आपका टिकट आ रहा है। हंसते हुए बताया कि नाम तो पहले ही भेजा हुआ था पर मैने ही कह रखा था कि जब तक मेरा फोन न आए टिकट बुक नहीं करना है। और इस पर हम दोनों ही एकसाथ मुस्कुरा पडे।
रात के खाने पर डीएम ने पूछा कि क्या कोई बात बनी। मैं इस पर हंस पडा। वे चौंके कि क्या हुआ। खाना रोककर मैने कहा कि मैं भारत पाक बोर्डर पर हो आया। वे एकदम असहज हो उठे। मैने कहा कि आपको मैने पहले ही दिन कहा था न कि शहर छोडूंगा तो आपके सामने ताकि आपको लगे कि मैं सही हूं। नहीं तो पता नहीं आप या आपकी पुलिस मेरे उपर क्या केस डाल दे। उन्होने उत्कंठा प्रकट की तो मैने हाथ जोड दी कि सर यह सब मेरा काम नहीं पर सीमा और वहां पर माहौल ठीक है। खाने के बाद मैं एक हजार रूपया निकाल कर ऱखने लगा तो उन्होने मना कर दिया। डीएम दिलबाग सिंह ने कहा कि मिठाई और टिकट मेरी तरफ से है। उन्होने भी मुझे गले लगाकर कहा कि मैं अनामी आपको कभी भूल नहीं पाउंगा। मेरे निवेदन पर वे मुझे बीकानेर रेलवे स्टेशन के बाहर तक आए और अपने सहायको से कहकर मुझे एसी थ्री में जाकर बैठा दिया। और रास्ते भर डीएम मेरे दिमाग मे छाए रहे। और ठीक होली के दिन मैं अपनी शादी की पहली होली पर अपने घऱ पर अपनी पत्नी के साथ रहा। बाद में संपादर श्री राजीव सक्सेना जी को मैने वहां की पूरी जानकारी दी तो एक दो लाईट न्यूज बनाने के लिए कहकर उन्होने मेरी हिम्मत और साहस की दाद दी। उधर मैंने भोला भाई को दो बार फोन करके थोडी देर में आने की जानकारी दी तो वब बहुत निराश हुआ। उसने मुझे बार बार अपनी पत्नी की दुहाई दी कि तुप बस जल्दी से आ जाओ यार मैं तेरे लिए कुछ और उपाय करता हूं। मगर बीबी को छोड़ने या नौकरी को छोडने के सवाल पर मैने अपने संपादक श्री सक्सेना जी को बताया कि एक नौकरी हाथ में लेकर आया हूं। बीबी के नाम पर बीबी को रखते हुए मैने नौकरी दारू मांस और छोकरी के मनभावन भोलाभाई वाले ऑफर को ही छोड़ना ठीक लगा। जिसस् भोला भाई अपनी बीबी सहित बहुत निराश हुआ होगा।
अलबत्ता करीब 10 साल के बाद तब सहारा में ही काम कर रहे इंद्रजीत तंवर राजस्थानव में एकाएक दिलबाग सिंह से कहीं किसी खास मौके पर टकरा गए। सहारा सुनते ही उन्होने मेरा हाल कुशल पूछा और बहुत सारी बाते की। जब तंवर दिल्ली लौटे तो सबके सामने कहा कि बबल भाई दिलबाग सिंह तो आपका एकदम मुरीद हैं यार । इस पर मेरे मन में दिलबाग सिंह के प्रति सम्मान बढ गया कि सचमुच वे अभी तक मुझे भूल नहीं पाए है । हालांकि इस घटना के हुए 22 साल हो गए फिर भी मेरा मन कभी कभी करता है कि मैं राजस्थान सरकार के सीनियर पीआरओ और अपना लंगोटी यार सीताराम मीणा या भरत लाल मीणा को फोन करके दिलबाग सिंह का नंबर लेकर बात करूं या एक चक्कर लगाकर उनसे मिल ही आउं। पर यह अभी तक नहीं हो सका।
अनामी शरण बबल
Nalin Chauhan धरती
धोरा री के हिम्मत भरे संस्मरण को सलाम। ऐसे किस्सों को जोड़कर एक किताब
बना दीजिये। मेरे जैसे आपके चाहने वाले व्यक्तियों को काफी कुछ सीखने को
मिलेगा। मुझे आपके मेरे प्रति स्नेह-भरोसे पर गर्व है।
Like · Reply · 1 · 7 May at 19:50
Shishir Soni memory sharp hai....shabdon ki bunawat jandar hai
Like · Reply · 1 · 7 May at 20:16
Dreem Thakur बहुत सुन्दर सर जी।
Unlike · Reply · 1 · 7 May at 21:54
Pratibha Sinha Baat
bahut hi purani hai per likha yu hai jaise kal ki hi baat hai ..apki
memory ...apki bahaduri ...nd kam ke prati jo lagan hai.....usse
salam...iss story ko kaphi interesting banaya hai ..ye bhi art hai
...iske liye 1000 likes
Unlike · Reply · 3 · 7 May at 22:49
Anami Sharan Babal Sant Sharan ko Jo reply hai wo apke comments ka h plz usi ko dekhe sryyy & salam
Like · Reply · 1 · 7 May at 23:25
Pratibha Sinha No problem
Like · Reply · 7 May at 23:37
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Sant Sinha Nice to read gajab
Like · Reply · 1 · 7 May at 23:01
Anami Sharan Babal Dhanyabad aapko story pasand aayi.yahi.mere kam or kuchh alag karne ki himmat ko bal deta h aap reader hi sahi Mayne me takt hai ki.hmrsa naya krne ko.man chahta h salam
Like · Reply · 2 · 7 May at 23:23
Sanjay Sinha really memorable and inspiring also
Unlike · Reply · 3 · 7 May at 23:39
Yogesh Bhatt परत दर परत---टाइटल ।बहुत खूब---बबल ।
Like · Reply · 8 May at 08:47
Anami Sharan Babal Bas yogesh ji ye report ho gyi.nhi tousibat ko to Gale laga hi liya tha bhola bhaie mere lie God bans
Like · Reply · 10 May at 21:31
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Amit Sahay आपके साहस& धैर्यभरे कार्य को मेरे तरफ से प्रणाम, काम के प्रति इतनी लगन. . . वाह
Unlike · Reply · 1 · 10 May at 13:19
Anami Sharan Babal Kya kre Amit aap v jab meri trh waha rhte to wahi krte Jo Maine kiya bcoz a journalist NVR dafeat BT I lk ur comments
Like · Reply · 10 May at 21:31
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