शनिवार, 3 मार्च 2012

महादेवी ने साहित्य में पुरुषों का वर्चस्व तोड़ा था



11सित
छायावाद की प्रमुख स्तंभ महादेवी वर्मा को हिंदी साहित्य में दुख और पीड़ा को बखूबी बयां करने के लिए ‘मीरा’ के तौर पर जाना जाता है जिन्होंने नारीवाद, समाज सुधार, सांस्कृतिक और राजनीतिक चेतना के पक्ष में कलम उठाई।
महादेवी के बारे में गीतकार धनंजय सिंह ने कहा कि वह समग्र मानवता में विश्वास करने वाली कवयित्री थीं जो जीवन की संपूर्णता में विश्वास रखती थीं। उन्होंने कहा कि महादेवी का परिवार गिलहरी से लेकर घोड़े तक फैला हुआ था और उन्होंने विभिन्न जीव-जंतु पाल रखे थे। हालांकि उनका निजी जीवन थोड़ा बिखरा हुआ था।
सिंह ने उनके रचना संसार के बारे में कहा कि वह नारी मुक्ति का ही आह्वान करने वाली कवयित्री नहीं थी, बल्कि निराला, जयशंकर प्रसाद, मैथली शरण गुप्त जैसे कवियों की मौजूदगी में अकेली महिला साहित्यकार थीं जो उनके समानांतर अपना स्थान बना रही थीं। यह एक चुनौती थी और उन्हें सिर्फ विरह की कवयित्री कहना गलत है।
हिंदी साहित्य में पीएचडी करने वाले सिंह ने कहा कि इतना ही नहीं महादेवी उस समय साहित्य रचना के साथ साथ नई भाषा भी गढ़ रही थीं। महादेवी न सिर्फ साहित्यकार थीं बल्कि उन्होंने स्वाधीनता संग्राम की लड़ाई में भी हिस्सा लिया। इसके साथ साथ वह शिक्षाविद भी रहीं।
महादेवी का जन्म संयुक्त प्रांत के फर्रूखाबाद में वकीलों के परिवार में हुआ लेकिन उनकी शिक्षा दीक्षा मध्य प्रदेश के जबलपुर में हुई। गोविन्द प्रसाद और हेमरानी की सबसे बड़ी पुत्री महादेवी का विवाह डा स्वरूप नारायण वर्मा के साथ हुआ। यह बाल विवाह था, क्योंकि उस समय इस कवयित्री की उम्र सिर्फ नौ साल ही थी। विवाह के बाद भी महादेवी अपने माता-पिता के साथ रहीं जबकि उनके पति लखनऊ में पढ़ाई पूरी करते रहे। इसी दौरान महादेवी ने भी अपनी उच्च शिक्षा इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हासिल की और 1929 में बीए की परीक्षा उत्तीर्ण की। उन्होंने संस्कृत में एमए की उपाधि हासिल की।
महादेवी की बागी प्रवृत्ति का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने बचपन में हुए अपने विवाह को स्वीकार करने से इंकार कर दिया, हालांकि 1920 के आसपास वह अपने पति के साथ रहने तमकोई गई, लेकिन पति की सहमति से कविता में अपनी अभिरूचि को पूरा करने के लिए इलाहाबाद चली गई। जीवन में महादेवी और उनके पति आमतौर पर अलग-अलग ही रहे और कभी-कभार ही उनकी मुलाकात होती थी।
1966 में पति के निधन के बाद वह हमेशा के लिए इलाहाबाद में बस गईं। उन्होंने प्रयाग महिला विद्यापीठ की स्थापना की, जिसकी शुरूआत लड़कियों को हिंदी माध्यम से सांस्कृतिक और साहित्यिक शिक्षा देने के लिए की गई थी। बाद में वह संस्थान की चांसलर बनीं। उनका निधन 11 सितंबर 1987 को हुआ, लेकिन इलाहाबाद की अशोक नगर कालोनी में उनका बंगला अब भी है, जो उनके दिवंगत सचिव पंडित गंगा प्रसाद पांडे के परिवार के पास है।
महादेवी वर्मा को छायावाद के चार प्रमुख स्तंभों में गिना जाता है। इसके अन्य प्रमुख कवियों में सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, जयशंकर प्रसाद और सुमित्रानंदन पंत हैं। महादेवी ने अपनी स्मृतियां ‘अतीत के चलचित्र’ और ‘स्मृति की रेखाएं’ में लिपिबद्ध की हैं। उनकी कविताओं में प्रियतम के प्रति विशिष्ट भाव दिखाई देता है और आलोचक आमतौर पर इस प्रेमी को भगवान के तौर पर देखते हैं। इन कविताओं में वह अपने प्रियतम की प्रतीक्षा करती दिखाई देती हैं।
महादेवी की गद्य रचनाएं भी कहीं से कम नहीं हैं। महादेवी साहित्य समग्र के संपादक ओंकार शरद ने उनके बारे में लिखा है, ‘महादेवी से निकटता की वजह से मैंने लक्ष्मीबाई और मीराबाई दोनों का रूप एक में देखा है।’
महादेवी की रूचि दुनियावी चीजों में नहीं थी और उन्हें पद्मभूषण से भी सम्मानित किया गया। उन्हें 1982 में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
आपको सभी मैनपुरी वासीयों की ओर से शत शत नमन |
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Posted by  on सितम्बर 11, 2009 in महादेवी वर्मा

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