जलवायु परिवर्तन
  • Author,जॉर्जिना रैनर्ड, इरवन रिवॉल्ट, जेना तॉश्चिन्स्की
  • पदनाम,बीबीसी जलवायु संवाददाता और डेटा टीम

तापमान में रिकॉर्ड बढ़ोतरी, समुद्र की सतह के गर्म होने और अंटार्कटिक सागर में बर्फ पिघलने की एक के बाद एक घटनाओं को लेकर वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है. वैज्ञानिक कहते हैं कि इस तरह की घटनाओं में देखी जा रही तेज़ी और उनके होने का वक्त "अभूतपूर्व" है.

संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि पूरे यूरोप में चल रही भयंकर लू 'जानलेवा प्राकृतिक आपदा है' जो अभी और रिकॉर्ड तोड़ सकती है.

पाकिस्तान अभी बीते साल आई भीषण बाढ़ की तबाही से पूरी तरह उबर भी नहीं सका है और इस साल वो एक बार फिर मॉनसून की भारी बारिश का सामना कर रहा है.

बीते साल आई बाढ़ में पाकिस्तान में 1,500 से अधिक लोगों की जान गई थी जबकि हज़ारों हेक्टेयर खेती पानी में डूब गई थी. वहीं इस साल अब तक लाहौर में दो दर्जन लोगों की मौत हो चुकी है.

भारत का एक बड़ा हिस्सा इस साल ज़रूरत से अधिक बारिश की मार से जूझ रहा है. जहां देश का 40 फीसदी हिस्सा अधिक बारिश और बाढ़ की स्थिति की मार झेल रहा है देश का बड़ा हिस्सा अभी भी बारिश को तरस रहा है.

भारत में राजधानी दिल्ली समेत कई इलाक़ों में इस साल मॉनसून की बारिश ने बीते दशकों के सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं.

जलवायु परिवर्तन पर शहर प्रशासन के ड्राफ्ट एक्शन प्लान के अनुसार मौसम में बदलाव के कारण साल 2050 तक दिल्ली 2.75 लाख करोड़ का नुक़सान हो सकता है.

इस रिपोर्ट के अनुसार आने वाले सालों में शहर के सामने गर्म हवाओं, अधिक तापमान और हवा में नमी के कम होने जैसी चुनौतियों का सामना कर सकती है. इस रिपोर्ट को अभी सरकार की मंज़ूरी का इंतज़ार है.

वीडियो कैप्शन,

एशिया से यूरोप तक बदलते मौसम का कहर

बदलते मौसम की वजह

छोड़कर पॉडकास्ट आगे बढ़ें
छोटी उम्र बड़ी ज़िंदगी
छोटी उम्र बड़ी ज़िंदगी

उन चमकते सितारों की कहानी जिन्हें दुनिया अभी और देखना और सुनना चाहती थी.

दिनभर: पूरा दिन,पूरी ख़बर

समाप्त

जानकारों की मानें तो मौसम और समंदर में हो रही इन घटनाओं को सीधे तौर पर जलवायु परिवर्तन से जोड़ कर देखना मुश्किल है, क्योंकि ये सभी बातें बेहद जटिल हैं.

इसे लेकर कई अध्ययन किए जा रहे हैं, लेकिन वैज्ञानिकों का कहना है कि उन्हें डर है कि कई खौफनाक मंज़र दुनिया के सामने आने लगे हैं.

लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स में पर्यावरण जियोग्राफ़र डॉक्टर थोमस स्मिथ कहते हैं, "मुझे ऐसे किसी और दौर की जानकारी नहीं है जब जलवायु सिस्टम के सभी हिस्से रिकॉर्ड स्तर पर किसी न किसी आपदा से न जूझ रहे हों."

वहीं इंपीरियल कॉलेज लंदन में जलवायु विज्ञान पढ़ा रहे डॉक्टर पाओलो सेप्पी कहते हैं कि जीवाश्म से मिलने वाले ईंधन के कारण हो रही ग्लोबल वार्मिंग और एल नीनो (2018 से मौसम में हो रहे परिवर्तन की प्राकृतिक प्रक्रिया) के कारण ऐसा लगता है कि पृथ्वी "अब किसी अनजान क्षेत्र में आ गई है."

इस साल गर्मियों के दिनों में अब तक मौसम के चार रिकॉर्ड टूट चुके हैं - इस साल जुलाई में अब तक का सबसे अधिक गर्म दिन रहा, वैश्विक स्तर पर जून का महीना सबसे अधिक गर्म महीना रहा, समंदर में बेहद अधिक गर्म लू और अंटार्कटिक सागर में जम बर्फ में रिकॉर्ड कमी आई.

लेकिन मौसम में आ रहे इन बदलावों का हमारे लिए क्या संकेत हैं, धरती और मानव भविष्य को ये किस हद तक प्रभावित कर सकते हैं?

बाढ़

इमेज स्रोत,REUTERS/ADNAN ABIDI

रिकॉर्डतोड़ गर्मी

इस बार पूरी दुनिया में जुलाई महीने में अब तक का सबसे अधिक गर्म दिन रिकॉर्ड किया गया. इसने वैश्विक औसत तापमान का 2016 में बना रिकॉर्ड भी तोड़ दिया.

जलवायु पर निगरानी रखने वाली यूरोपीय संघ की एजेंसी कोपर्निकस के अनुसार इस साल 6 जुलाई को वैश्विक औसत तापमान 17.08 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचा.

धरती के गर्म होने के कारणों के पीछे जीवाश्म से मिलने वाले तेल, कोयला और गैस जैसे ईंधन के जलाने से पैदा होने वाला उत्सर्जन शामिल है.

इंपीरियल कॉलेज लंदन में जलवायु वैज्ञानिक डॉक्टर फ्रेडरिक ओटो कहती हैं कि ग्रीनहाउस गैसों के कारण गर्म होने वाली धरती के बारे में इस तरह का पूर्वानुमान पहले ही लगाया गया था.

डॉक्टर फ्रेडरिक कहती हैं, "इस ट्रेंड के बढ़ने के पीछे सौ फीसदी इंसान का ही हाथ है."

डॉक्टर थोमस स्मिथ कहते हैं "अगर मुझे किसी बात पर आश्चर्य है तो वो हम देख रहे हैं कि रिकॉर्ड जून के महीने में ही टूट गया है. अब तो साल भी पूरा नहीं हुआ. आम तौर पर वौश्विक स्तर पर एल-नीनो की प्रक्रिया का असर इसके शुरू होने के पांच छह महीनों तक दिखाई नहीं देता."

एल-नीनो जलवायु में उतार-चढ़ाव की प्राकृतिक तौर पर होने वाली दुनिया की सबसे ताकतवर प्रक्रिया है. उष्णकटिबंधीय प्रशांत में ये प्रक्रिया समुद्र की सतह पर मौजूद पानी को गर्म कर देती है, जिससे वायुमंडल में गर्म हवाएं चलने लगती हैं. आम तौर पर ये प्रक्रिया वैश्विक स्तर पर वातावरण का तापमान बढ़ा देती है.

वीडियो कैप्शन,

भारत में तबाही मचाने वाला पानी अब पाकिस्तान पहुंचा

औद्योगिकरण से पहले के दौर में जून के महीने के तापमान की तुलना में इस साल जून के महीने में औसत वैश्विक तापमान 1.47 डिग्री सेल्सियस अधिक रहा. औद्योगिकरण क़रीब 1800 के आसपास शुरू हुआ जिसके बाद से इंसान लगातार बड़ी मात्रा में ग्रीनहाउस गैसें वायुमंडल में छोड़ता रहा है.

क्या 2023 की गर्मियों में जो कुछ हुआ उसके बारे में दशक भर पहले पूर्वानुमान लगाया गया था?

इस सवाल के उत्तर में डॉक्टर स्मिथ कहते हैं कि जलवायु को लेकर पूर्वानुमान लगाने के लिए जो मॉडल हैं वो लंबे वक्त में ट्रेंड का आकलन करने में कारगर हैं लेकिन 10 साल में होने वाले बदलावों का पुख्ता तौर पर आकलन नहीं कर सकते.

वो कहते हैं, "1990 के मॉडल के अनुसार हम काफी हद तक वहीं हैं जहां पर आज हैं. लेकिन अगले 10 सालों में स्थिति वास्तव में कैसी होगी इसका सही-सही आकलन लगा पाना बेहद मुश्किल है."

वो कहते हैं, "बढ़ रहा तापमान कम होने लगेगा, ऐसा नहीं लगता."

प्रदूषण

गर्म होता समुद्र

समंदर के औसत वैश्विक तापमान ने मई, जून और जुलाई के महीनों में सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं. साल 2016 में समुद्र की सतह पर सबसे अधिक तापमान दर्ज किया गया था, इसके बाद इस साल तापमान रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचने वाला है.

लेकिन उत्तर अटलांटिक सागर में अत्यधिक गर्मी के कारण बढ़ रहा समुद्र का तापमान वैज्ञानिकों के लिए ख़ास चिंता का विषय बना हुआ है.

ब्रिस्टल यूनिवर्सिटी में पृथ्वी विज्ञान की प्रोफ़ेसर डेनिला श्मिड कहती हैं, "हमने पहले कभी अटलांटिक के इस हिस्से में गर्म लहरें नहीं देखी थीं. मैं इसकी उम्मीद नहीं कर रही थी."

जून के महीने में आयरलैंड के पश्चिमी तट पर तापमान औसत से 4 और 5 डिग्री सेल्सियस अधिक तक पहुंच गया. नेशनल ओशनिक और एटमॉसफ़ेरिक एडमिनिस्ट्रेशन ने इसे कैटगरी 5 की गर्म लू यानी "अत्यधिक से भी अधिक" गर्म हवाएं कहा.

हालांकि प्रोफ़ेसर डेनिला श्मिड कहती हैं कि बढ़ रहे तापमान की इस घटना को जलवायु परिवर्तन ने जोड़ना जटिल है लेकिन आप कह सकते हैं कि ये हो रहा है.

वो समझाती हैं कि ये स्पष्ट है कि धरती गर्म हो रही है और वायुमंडल मे मौजूद गर्म हवा को समंदर सोख रहा है.

वो कहती हैं, "जलवायु परिवर्तन के हमारे मॉडल्स में प्राकृतिक परिवर्तनशीलता है और ऐसी घटनाएं सामने आ रही हैं जिनके बरे में पहले पूर्वानुमान नहीं लगाया गया था, कम से कम उनके अभी घटने का तो नहीं."

अंटार्कटिक की बर्फ

दुनिया की ज़रूरत का 50 फीसदी ऑक्सीजन समुद्र से ही मिलता है.

समुद्री इकोसिस्टम पर मौसम में आ रहे बदलाव के असर के बारे में कहती हैं, "जब हम गर्म लू की बात करते हैं तो लोग अक्सर सूख रहे पेड़ और पीली पड़ती घास के बारे में सोचते हैं."

"अटलांटिक सागर का तापमान जितना होना चाहि उससे 5 डिग्री सेल्सियस अधिक है. इसका मतलब है कि जीवों को अपना काम सामान्य रूप से करने के लिए अब 50 फीसदी अधिक खाद्य की ज़रूरत है."

वीडियो कैप्शन,

ये पूरा शहर एक साथ ऊपर कैसे उठ जाएगा?

अंटार्कटिक में जमी बर्फ में रिकॉर्ड कमी

जुलाई के महीने में अंटार्कटिक सागर में मौजूद बर्फ की चादर में रिकॉर्ड कमी आई है. 1981 से लेकर 2010 के औसत की तुलना में देखें तो अंटार्कटिक से यूके के आकार से 10 गुना बड़े हिस्से जितनी बर्फ अब तक पिघल चुकी है.

वैज्ञानिकों के अनुसार ये चेतावनी की घंटी है और जलवायु परिवर्तन से इसके सही लिंक के बारे में जानकारी जुटाने की वो कोशिश कर रहे हैं.

ब्रिटिश अंटार्कटिक सर्वे की डॉक्टर कैरोलीन होम्स का कहना है कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण अंटार्कटिक सागर की बर्फ पिघल सकती है, लेकिन मौजूदा स्थिति को देखें तो इलाक़े में मौसम में हो रहे बदलाव के कारण भी हो सकता है या फिर समुद्र की लहरों के कारण भी हो सकता है.

वो कहती हैं कि ये केवल एक रिकॉर्ड टूटने का मामला नहीं हैं बल्कि ये रिकॉर्ड लंबे वक्त के लिए टूट गया है.

वो कहती हैं, "ये ऐसा कुछ है जो हमने इस जुलाई से पहले नहीं देखा था. पहले भी बर्फ कम हुई थी लेकिन ये उससे भी 10 फीसदी तक कम हुई है, ये अपने आप में बड़ी बात है. ये इस बात का संकेत है कि हम असल में नहीं समझ रहे कि परिवर्तन कितनी तेज़ गति से हो रहा है."

बाढ़

इमेज स्रोत,SOHAIL SHAHZAD/EPA-EFE/REX/SHUTTERSTOCK

वैज्ञानिकों का मानना था कि ग्लोबल वार्मिंग का बड़ा असर कभी न कभी अंटार्कटिक में जमी बर्फ पर पड़ेगा. लेकिन डॉक्टर होम्स कहती हैं कि 2015 तक इसने दूसरे महासागरों में वैश्विक ट्रेंड को पीछे छेड़ दिया.

वो कहती हैं, "आप कह सकते हैं कि हम पहाड़ की चोटी से नीचे गिर रहे हैं, लेकिन हमें ये भी नहीं पता कि खाई असल में कितनी गहरी है."

"मुझे लगता है कि ये जिस तेज़ गति से हो रहा है वो हमारे लिए आश्चर्य की बात है. इसे किसी सूरत में बेहतर स्थिति नहीं कहा जा सकता लेकिन इस पर हम नज़र रख रहे हैं और हम कह सकते हैं कि ये सबसे बुरी स्थिति के क़रीब है."

वैज्ञानिक कहते हैं कि इस साल के आने वाले महीनों में और 2024 के शुरूआती वक्त में हम इस तरह की अधिक घटनाएं देख सकते हैं.

हालांकि डॉक्टर फ्रेडरिक ओटो कहती हैं कि जो कुछ हो रहा है उसे "जलवायु का पतन" या फिर "अनियंत्रित वॉर्मिंग" कह सकते हैं.

वो कहती हैं, "हम एक नए दौर में हैं लेकिन हम अभी भी कइयों के लिए एक सुरक्षित भविष्य सुनिश्चित कर सकते हैं."

(मार्क पॉइन्टिंग और बैकी डेल की अतिरिक्त रिपोर्टिंग के साथ)

वीडियो कैप्शन,

जल संकट को लेकर संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में सामने आई कई चौंकाने वाली बातें

(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुकट्विटरइंस्टाग्राम और यूट्यूब पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)