रविवार, 2 सितंबर 2012

भारत में कितने है शक्तिपीठ



भारत डिस्कवरी प्रस्तुति


यहां जाएं: भ्रमण, खोज

Icon-edit.gif इस लेख का पुनरीक्षण एवं सम्पादन होना आवश्यक है। आप इसमें सहायता कर सकते हैं। "सुझाव"
हिन्दू धर्म के पुराणों के अनुसार जहां-जहां सती के अंग के टुकड़े, धारण किए वस्त्र या आभूषण गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ अस्तित्व में आया। ये अत्यंत पावन तीर्थ कहलाये। ये तीर्थ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर फैले हुए हैं। देवी पुराण में 51 शक्तिपीठों का वर्णन है। हालांकि देवी भागवत में जहां 108 और देवी गीता में 72 शक्तिपीठों का ज़िक्र मिलता है, वहीं तन्त्रचूडामणि में 52 शक्तिपीठ बताए गए हैं। देवी पुराण में जरूर 51 शक्तिपीठों की ही चर्चा की गई है। इन 51 शक्तिपीठों में से कुछ विदेश में भी हैं और पूजा-अर्चना द्वारा प्रतिष्ठित हैं।
ज्ञातव्य है की इन 51 शक्तिपीठों में भारत-विभाजन के बाद 5 और भी कम हो गए और आज के भारत में 42 शक्ति पीठ रह गए है। 1 शक्तिपीठ पाकिस्तान में चला गया और 4 बांग्लादेश में। शेष 4 पीठो में 1 श्रीलंका में, 1 तिब्बत में तथा 2 नेपाल में है।

शक्तिपीठों के सन्दर्भ में कथा

देश-विदेश में स्थित इन 51 शक्तिपीठों के सन्दर्भ में जो कथा है, वह यह है कि राजा प्रजापति दक्षशिव से विवाह किया। एक बार मुनियों का एक समूह यज्ञ करवा रहा था। यज्ञ में सभी देवताओं को बुलाया गया था। जब राजा दक्ष आए तो सभी लोग खड़े हो गए लेकिन भगवान शिव खड़े नहीं हुए। भगवान शिव दक्ष के दामाद थे। यह देख कर राजा दक्ष बेहद क्रोधित हुए। दक्ष अपने दामाद शिव को हमेशा निरादर भाव से देखते थे। सती के पिता राजा प्रजापति दक्ष ने कनखल (हरिद्वार) में 'बृहस्पति सर्व / ब्रिहासनी' नामक यज्ञ का आयोजन किया था। उस यज्ञ में ब्रह्मा, विष्णु, इंद्र और अन्य देवी-देवताओं को आमंत्रित किया गया, लेकिन जान-बूझकर अपने जमाता और सती के पति भगवान शिव को इस यज्ञ में शामिल होने के लिए निमन्त्रण नहीं भेजा था। जिससे भगवान शिव इस यज्ञ में शामिल नहीं हुए। नारद जी से सती को पता चला कि उनके पिता के यहां यज्ञ हो रहा है लेकिन उन्हें निमंत्रित नहीं किया गया है। इसे जानकर वे क्रोधित हो उठीं। नारद ने उन्हें सलाह दी कि पितादक्ष ने भगवान शंकर के विषय में सती के सामने ही अपमानजनक बातें करने लगे। इस अपमान से पीड़ित हुई सती को यह सब बर्दाश्त नहीं हुआ और वहीं यज्ञ-अग्नि कुंड में कूदकर अपनी प्राणाहुति दे दी। भगवान शंकर को जब इस दुर्घटना का पता चला तो क्रोध से उनका तीसरा नेत्र खुल गया। सर्वत्र प्रलय-सा हाहाकार मच गया। भगवान शंकर के आदेश पर वीरभद्र ने दक्ष का सिर काट दिया और अन्य देवताओं को शिव निंदा सुनने की भी सज़ा दी और उनके गणों के उग्र कोप से भयभीत सारे देवता और ऋषिगण यज्ञस्थल से भाग गये। तब भगवान शिव ने सती के वियोग में यज्ञकुंड से सती के पार्थिव शरीर को निकाल कंधे पर उठा लिया और दुःखी हुए सम्पूर्ण भूमण्डल पर भ्रमण करने लगे। भगवती सती ने अन्तरिक्ष में शिव को दर्शन दिया और उनसे कहा कि जिस-जिस स्थान पर उनके शरीर के खण्ड विभक्त होकर गिरेंगे, वहाँ महाशक्तिपीठ का उदय होगा। सती का शव लेकर शिव पृथ्वी पर विचरण करते हुए तांडव नृत्य भी करने लगे, जिससे पृथ्वी पर प्रलय की स्थिति उत्पन्न होने लगी। पृथ्वी समेत तीनों लोकों को व्याकुल देखकर और देवों के अनुनय-विनय पर भगवान विष्णु सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को खण्ड-खण्ड कर धरती पर गिराते गए। जब-जब शिव नृत्य मुद्रा में पैर पटकते, विष्णु अपने चक्र से शरीर का कोई अंग काटकर उसके टुकड़े पृथ्वी पर गिरा देते। 'तंत्र-चूड़ामणि' के अनुसार इस प्रकार जहां-जहां सती के अंग के टुकड़े, धारण किए वस्त्र या आभूषण गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ अस्तित्व में आया। इस तरह कुल 51 स्थानों में माता की शक्तिपीठों का निर्माण हुआ। अगले जन्म में सती ने हिमवान राजा के घर पार्वती के रूप में जन्म लिया और घोर तपस्या कर शिव को पुन: पति रूप में प्राप्त किया। की पुत्री के रूप में माता जगदम्बिका ने सती के रूप में जन्म लिया था और भगवान के यहां जाने के लिए बुलावे की ज़रूरत नहीं होती है। जब सती अपने पिता के घर जाने लगीं तब भगवान शिव ने मना कर दिया। लेकिन सती पिता द्वारा न बुलाए जाने पर और शंकरजी के रोकने पर भी जिद्द कर यज्ञ में शामिल होने चली गई। यज्ञ-स्थल पर सती ने अपने पिता दक्ष से शंकर जी को आमंत्रित न करने का कारण पूछा और पिता से उग्र विरोध प्रकट किया। इस पर

शक्तिपीठों का विवरण

1. किरीट कात्यायनी

  • इस स्थान पर सती के 'किरीट (शिरोभूषण या मुकुट)' का निपात हुआ था।
  • कुछ विद्वान मुकुट का निपात कानपुर के मुक्तेश्वरी मंदिर में मानते हैं।
2. कात्यायनी पीठ वृन्दावन
यहाँ माता सती के 'केश' गिरे थे। यहाँ माता सती 'उमा' तथा भगवन शंकर 'भूतेश' के नाम से जाने जाते है। मथुरा-वृन्दावन के बीच 'भुतेशवर' नामक रेलवे स्टेशन के समीप 'भुतेशवर मंदिर' के प्रांगण में यह शक्तिपीठ स्थित है।
3. करवीर शक्तिपीठ
यहाँ माता सती के 'त्रिनेत्र' गिरे थे। यहाँ माता सती को 'महिषामर्दिनी' और भगवान शिव 'क्रोधीश' कहे जाते हैं। महाराष्ट्र के कोल्हापुर स्थित 'महालक्ष्मी' अथवा 'अम्बाईका मंदिर' ही यह शक्तिपीठ है।
4. श्री पर्वत शक्तिपीठ

  • कुछ विद्वान इसे लद्दाख (कश्मीर) में मानते हैं, तो कुछ असम के सिलहट से 4 कि.मी. दक्षिण-पश्चिम (नैऋत्यकोण) में जौनपुर में मानते हैं।
  • यहाँ सती के 'दक्षिण तल्प' (कनपटी) का निपात हुआ था।
5. काशी विशालाक्षी मंदिर (विशालाक्षी शक्तिपीठ)
यहाँ माता सती का 'कर्णमणि'[1] गिरी थी। यहाँ माता सती को 'विशालाक्षी' तथा भगवान शिव को 'काल भैरव' कहते है। उत्तर प्रदेश, वाराणसी में विश्वेश्वर के निकट मीरघाट पर विशालाक्षी का मंदिर ही शक्ति पीठ है।
6. गोदावरी तट शक्तिपीठ

  • गोदावरी तट शक्तिपीठ आन्ध्र प्रदेश देवालयों के लिए प्रख्यात है।
  • वहाँ शिव, विष्णु, गणेश तथा कार्तिकेय (सुब्रह्मण्यम) आदि की उपासना होती है तथा अनेक पीठ यहाँ पर हैं।
  • यहाँ पर सती के 'वामगण्ड'[2] का निपात हुआ था।
7. शुचींद्रम शक्तिपीठ
यहाँ माता सती के 'ऊर्ध्र्वदन्त'[3] गिरे थे। यहाँ माता सती को 'नारायणी' और भगवान शंकर को 'संहार' या 'संकूर' कहते है। तमिलनाडु में तीन महासागर के संगम-स्थल कन्याकुमारी से 13 किमी दूर 'शुचीन्द्रम' में स्याणु शिव का मंदिर है। उसी मंदिर में ये शक्तिपीठ है।
8. पंच सागर शक्तिपीठ

  • पंच सागर शक्तिपीठ में सती के 'अधोदन्त'[4] गिरे थे।
  • यहाँ सती 'वाराही' तथा शिव 'महारुद्र' हैं।
9. ज्वालामुखी शक्तिपीठ

  • हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जनपद के अंतर्गत ज्वालामुखी का मंदिर ही शक्ति पीठ है।
  • जो ज्वालामुखी रोड रेलवे स्टेशन से लगभग 21 किमी दूर बस मार्ग पर स्थित है।
  • यहाँ माता सती की 'जिह्वा' गिरी थी।
  • यहाँ माता सती 'सिद्धिदा' अम्बिका तथा भगवान शिव 'उन्मत्त' रूप में विराजित है।
  • मंदिर में आग के रूप में हर समय ज्वाला धधकती रहती है।
10. भैरवपर्वत शक्तिपीठ

  • सती के 'ऊर्ध्व ओष्ठ'[5] का निपात स्थल भैरव पर्वत है, किंतु इसकी स्थिति को लेकर विद्वानों में मतभेद है।
  • कुछ उज्जैन के निकट क्षिप्रा नदी तट स्थित भैरवपर्वत को, तो कुछ गुजरात के गिरनार पर्वत के सन्निकट भैरवपर्वत को वास्तविक शक्तिपीठ मानते हैं।
  • अत: दोनों स्थानों पर शक्तिपीठ की मान्यता है।
11. अट्टहास शक्तिपीठ

  • अट्टाहास शक्तिपीठ पश्चिम बंगाल के लाबपुर (लामपुर) रेलवे स्टेशन वर्धमान से लगभग 95 किलोमीटर आगे कटवा-अहमदपुर रेलवे लाइन पर है, जहाँ सती का 'नीचे का होठ'[6] गिरा था।
  • इसे अट्टहास शक्तिपीठ कहा जाता है, जो लामपुर स्टेशन से नजदीक ही थोड़ी दूर पर है।
12. जनस्थान शक्तिपीठ

  • मध्य रेलवे के मुम्बई-दिल्ली मुख्य रेल मार्ग पर नासिक रोड स्टेशन से लगभग 8 कि.मी. दूर पंचवटी नामक स्थान पर स्थित भद्रकाली मंदिर ही शक्तिपीठ है, जहाँ सती का 'चिबुक' भाग गिरा था।
  • यहाँ की शक्ति 'भ्रामरी' तथा शिव 'विकृताक्ष' हैं- 'चिबुके भ्रामरी देवी विकृताक्ष जनस्थले'।[7]
  • अत: यहाँ चिबुक ही शक्तिरूप में प्रकट हुआ। इस मंदिर में शिखर नहीं है। सिंहासन पर नवदुर्गाओं की मूर्तियाँ हैं, जिसके बीच में भद्रकाली की ऊँची मूर्ति है।
13. कश्मीर शक्तिपीठ
कश्मीर में अमरनाथ गुफ़ा के भीतर 'हिम' शक्तिपीठ है। यहाँ माता सती का 'कंठ' गिरा था। यहाँ सती 'महामाया' तथा शिव 'त्रिसंध्येश्वर' कहलाते है। श्रावण पूर्णिमा को अमरनाथ के दर्शन के साथ यह शक्तिपीठ भी दिखता है।
14. नन्दीपुर शक्तिपीठ

  • पश्चिम बंगाल के बोलपुर (शांति निकेतन) से 33 किमी दूर सैन्थिया रेलवे जंक्शन से अग्निकोण में, थोड़ी दूर रेलवे लाइन के निकट ही एक वटवृक्ष के नीचे देवी मन्दिर है, यह 51 शक्तिपीठों में से एक है।
  • यहाँ देवी के देह से 'कण्ठहार' गिरा था।
15. श्री शैल शक्तिपीठ

  • आंध्र प्रदेश की राजधानी हैदराबाद से 250 कि.मी. दूर कुर्नूल के पास 'श्री शैलम' है, जहाँ सती की 'ग्रीवा' का पतन हुआ था।
  • यहाँ की सती 'महालक्ष्मी' तथा शिव 'संवरानंद' अथवा 'ईश्वरानंद' हैं।
16. नलहाटी शक्तिपीठ

  • यहाँ सती की 'उदर नली' का पतन हुआ था।[8]
  • यहाँ की सती 'कालिका' तथा भैरव 'योगीश' हैं।
17. मिथिला शक्तिपीठ
यहाँ माता सती का 'वाम स्कन्ध' गिरा था। यहाँ सती 'उमा' या 'महादेवी' तथा शिव 'महोदर' कहलाते हैं। इस शक्तिपीठ का निश्चित स्थान बताना कुछ कठिन है। स्थान को लेकर कई मत-मतान्तर हैं। तीन स्थानों पर 'मिथिला शक्तिपीठ' को माना जाता है। एक जनकपुर (नेपाल) से 51 किमी दूर पूर्व दिशा में 'उच्चैठ' नामक स्थान पर 'वन दुर्गा' का मंदिर है। दूसरा बिहार के समस्तीपुर और सहरसा स्टेशन के पास 'उग्रतारा' का मंदिर है। तीसरा समस्तीपुर से पूर्व 61 किमी दूर सलौना रेलवे स्टेशन से 9 किमी दूर 'जयमंगला' देवी का मंदिर है। उक्त तीनों मंदिर को विद्वजन शक्तिपीठ मानते है।
18. रत्नावली शक्तिपीठ

  • रत्नावली शक्तिपीठ का निश्चित्त स्थान अज्ञात है, किंतु बंगाल पंजिका के अनुसार यह तमिलनाडु[9] में कहीं है। के मद्रास
  • यहाँ सती का 'दायाँ कन्धा' गिरा था।
19. अम्बाजी शक्तिपीठ

  • यहाँ माता सती का 'उदार' गिरा था। गुजरात, गुना गढ़ के गिरनार पर्वत के प्रथत शिखर पर माँ अम्बा जी का मंदिर ही शक्तिपीठ है।
  • यहाँ माता सती को 'चंद्रभागा' और भगवान शिव को 'वक्रतुण्ड' के नाम से जाना जाता है।
  • ऐसी भी मान्यता है कि गिरिनार पर्वत के निकट ही सती का उर्द्धवोष्ठ गिरा था, जहाँ की शक्ति अवन्ती तथा भैरव लंबकर्ण है।
20. जालंधर शक्तिपीठ (त्रिपुरमालिनी शक्तिपीठ)
यहाँ माता सती का 'बायां स्तन' गिरा था। यहाँ सती को 'त्रिपुरमालिनी' और शिव को 'भीषण' के रूप में जाना जाता है। यह शक्तिपीठ पंजाब के जालंधर में स्थित है।
21. रामागिरी शक्तिपीठ

  • रामगिरि शक्तिपीठ की स्थिति को लेकर मतांतर है।
  • कुछ मैहर, मध्य प्रदेश के 'शारदा मंदिर' को शक्तिपीठ मानते हैं, तो कुछ चित्रकूट के शारदा मंदिर को शक्तिपीठ मानते हैं। दोनों ही स्थान मध्य प्रदेश में हैं तथा तीर्थ हैं।
  • रामगिरि पर्वत चित्रकूट में है।
  • यहाँ देवी के 'दाएँ स्तन' का निपात हुआ था।
22. वैद्यनाथ का हार्द शक्तिपीठ

  • शिव तथा सती के ऐक्य का प्रतीक बिहार के गिरिडीह जनपद में स्थित वैद्यनाथ का 'हार्द' या 'ह्रदय पीठ' है और शिव का 'वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग' भी यहीं है।
  • यह स्थान चिताभूमि में है।
  • यहाँ सती का 'ह्रदय' गिरा था।
  • यहाँ की शक्ति 'जयदुर्गा' तथा शिव 'वैद्यनाथ' हैं।
23. वक्त्रेश्वर शक्तिपीठ

  • यहाँ का मुख्य मंदिर वक्त्रेश्वर शिव मंदिर है।
  • यहाँ पर सती का 'मन' गिरा था।
24. कन्याकुमारी शक्तिपीठ
यहाँ माता सती की 'पीठ' गिरी थी। माता सती को यहाँ 'शर्वाणी या नारायणी' तथा भगवान शिव को 'निमिष या स्थाणु' कहा जाता है। तमिलनाडु में तीन सागरों हिन्द महासागर, अरब सागर तथा बंगाल की खाड़ी के संगम स्थल पर कन्याकुमारी का मंदिर है। उस मंदिर में ही भद्रकाली का मंदिर शक्तिपीठ है।
25. बहुला शक्तिपीठ

  • पश्चिम बंगाल के हावड़ा से 145 किलोमीटर दूर पूर्वी रेलवे के नवद्वीप धाम से 41 कि.मी. दूर कटवा जंक्शन से पश्चिम की ओर केतुग्राम या केतु ब्रह्म गाँव में स्थित है-'बहुला शक्तिपीठ', जहाँ सती के 'वाम बाहु' का पतन हुआ था।
  • यहाँ की सती 'बहुला' तथा शिव 'भीरुक' हैं।
26. उज्जयिनी शक्तिपीठ
यहाँ माता सती की 'कुहनी' गिरी थी। यहाँ माता सती को 'माडल्यचंडिका' और भगवान शिव को 'मांगल्य कपिलाम्बर' कहा जाता है। मध्य प्रदेश के उज्जैन के पावन क्षिप्रा नदी के दोनों तटों पर / रुद्रसागर के निकट 'हरसिद्धि मंदिर' ही यह शक्तिपीठ है। यहाँ माता सती के कुहनी की पूजा होती है।
27. मणिवेदिका शक्तिपीठ

  • राजस्थान में अजमेर से 11 किलोमीटर दूर पुष्कर एक महत्त्वपूर्ण तीर्थ स्थान है।
  • पुष्कर सरोवर के एक ओर पर्वत की चोटी पर स्थित है- 'सावित्री मंदिर', जिसमें माँ की आभायुक्त, तेजस्वी प्रतिमा है तथा दूसरी ओर स्थित है 'गायत्री मंदिर' और यही शक्तिपीठ है।
  • जहाँ सती के 'मणिबंध'[10] का पतन हुआ था।
28. प्रयाग शक्तिपीठ
तीर्थराज प्रयाग में माता सती के हाथ की 'अँगुली' गिरी थी। यहाँ तीनों शक्तिपीठ की माता सती 'ललिता देवी' एवं भगवान शिव को 'भव' कहा जाता है। उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में स्थित है। लेकिन स्थानों को लेकर मतभेद इसे यहां अक्षयवट, मीरापुर और अलोपी स्थानों में गिरा माना जाता है। ललिता देवी के मंदिर को विद्वान शक्तिपीठ मानते है। शहर में एक और अलोपी माता ललिता देवी का मंदिर है। इसे भी शक्तिपीठ माना जाता है। निश्चित निष्कर्ष पर पहुँचना कठिन है।
29. विरजा शक्तिपीठ
उत्कल (उड़ीसा) में माता सती की 'नाभि' गिरी थी। यहाँ माता सती को 'विमला' तथा भगवान शिव को 'जगत' के नाम से जाना जाता है। उत्कल शक्तिपीठ उड़ीसा के पुरी और याजपुर में माना जाता है। पुरी में जगन्नाथ जी के मंदिर के प्रांगण में ही विमला देवी का मंदिर है। यही मंदिर शक्तिपीठ है।
30. कांची शक्तिपीठ
यहाँ माता सती का 'कंकाल' गिरा था। देवी यहाँ 'देवगर्मा' और भगवान शिव का 'रूद्र' रूप है। तमिलनाडु के कांचीपुरम में सप्तपुरियों में एक काशी है। वहाँ का काली मंदिर ही शक्तिपीठ है।
31. कालमाधव शक्तिपीठ

  • कालमाधव में सती के 'वाम नितम्ब' का निपात हुआ था।
  • यहाँ की सति 'काली' तथा शिव 'असितांग' हैं।
32. शोण शक्तिपीठ

  • मध्य प्रदेश के अमरकण्टक के नर्मदा मंदिर में सती के 'दक्षिणी नितम्ब' का निपात हुआ था और वहाँ के इसी मंदिर को शक्तिपीठ कहा जाता है।
  • यहाँ माता सती 'नर्मदा' या 'शोणाक्षी' और भगवान शिव 'भद्रसेन' कहलाते हैं।
33. कामाख्या शक्तिपीठ (कामरूप कामाख्या शक्तिपीठ कामगिरि)

  • यहाँ माता सती की 'योनी' गिरी थी।
  • असम के कामरूप जनपद में असम के प्रमुख नगर गुवाहाटी (गौहाटी) के पश्चिम भाग में नीलांचल पर्वत/कामगिरि पर्वत पर यह शक्तिपीठ 'कामाख्या' के नाम से सुविख्यात है।
  • यहाँ माता सती को 'कामाख्या' और भगवान शिव को 'उमानंद' कहते है।
  • जिनका मंदिर ब्रह्मपुत्र नदी के मध्य उमानंद द्वीप पर स्थित है।
34. जयंती शक्तिपीठ

  • भारत के पूर्वीय भाग में स्थित मेघालय एक पर्वतीय राज्य है और गारी, खासी, जयंतिया यहाँ की मुख्य पहाड़ियाँ हैं।
  • सम्पूर्ण मेघालय पर्वतों का प्रान्त है।
  • यहाँ की जयंतिया पहाड़ी पर ही 'जयंती शक्तिपीठ' है, जहाँ सती के 'वाम जंघ' का निपात हुआ था।
35. मगध शक्तिपीठ

  • पटना की बड़ी पटनेश्वरी देवी को ही शक्तिपीठ माना जाता है।
  • यह मंदिर पटना सिटी चौक से लगभग 5 कि.मी. पश्चिम में महाराज गंज (देवघर) में स्थित है।
36. त्रिस्तोता शक्तिपीठ

  • यहाँ के बोदा इलाके के शालवाड़ी गाँव में तीस्ता नदी के तट पर 'त्रिस्तोता शक्तिपीठ' है, जहाँ सती के 'वाम-चरण' का पतन हुआ था।
  • यहाँ की सती 'भ्रामरी' तथा शिव 'ईश्वर' हैं।
37. त्रिपुर सुन्दरी शक्तित्रिपुरी पीठ

  • त्रिपुरा में माता सती का 'दक्षिण पद' गिरा था।
  • यहाँ माता सती 'त्रिपुरासुन्दरी' तथा भगवन शिव 'त्रिपुरेश' कहे जाते हैं।
  • त्रिपुरा राज्य के राधा किशोरपुर ग्राम से 2 किमी दूर दक्षिण-पूर्व के कोण पर, पर्वत के ऊपर यह शक्तिपीठ स्थित है।
38. विभाष शक्तिपीठ
यहाँ माता सती का 'बायाँ टखना'[11] गिरा था। यहाँ माता सती 'कपालिनी' अर्थात 'भीमरूपा' और भगवन शिव 'सर्वानन्द' कपाली है। पश्चिम बंगाल के पासकुडा स्टेशन से 24 किमी दूर मिदनापुर में तमलूक स्टेशन है। वहाँ का काली मंदिर ही यह शक्तिपीठ है।
39. देवीकूप पीठ कुरुक्षेत्र शक्तिपीठ
यहाँ माता सती का 'दाहिना टखना' गिरा था। यहाँ माता सती को 'सावित्री' तथा भगवन शिव को 'स्याणु महादेव' कहा जाता है। हरियाणा राज्य के कुरुक्षेत्र नगर में 'द्वैपायन सरोवर' के पास कुरुक्षेत्र शक्तिपीठ स्थित है, जिसे 'श्रीदेवीकूप भद्रकाली पीठ' के नाम से जाना जाता है।
40. युगाद्या शक्तिपीठ (क्षीरग्राम शक्तिपीठ)

  • 'युगाद्या शक्तिपीठ' बंगाल के पूर्वी रेलवे के वर्धमान जंक्शन से 39 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में तथा कटवा से 21 किमी. दक्षिण-पश्चिम में महाकुमार-मंगलकोट थानांतर्गत क्षीरग्राम में स्थित है- युगाद्या शक्तिपीठ, जहाँ की अधिष्ठात्री देवी हैं- 'युगाद्या' तथा 'भैरव' हैं- क्षीर कण्टक।
  • तंत्र चूड़ामणि के अनुसार यहाँ माता सती के 'दाहिने चरण का अँगूठा' गिरा था।
41. विराट शक्तिपीठ (विराट का अम्बिका शक्तिपीठ)

  • यह शक्तिपीठ राजस्थान की राजधानी गुलाबी नगरी जयपुर से उत्तर में महाभारतकालीन विराट नगर के प्राचीन ध्वंसावशेष के निकट एक गुफा है, जिसे 'भीम की गुफा' कहते हैं।
  • यहीं के वैराट गाँव में शक्तिपीठ स्थित है, जहाँ सती के 'दायें पाँव की उँगलियाँ' गिरी थीं।
42. कालीघाट काली मंदिर (काली शक्तिपीठ)
यहाँ माता सती की 'शेष उँगलियाँ'[12] गिरी थी। यहाँ माता सती को 'कलिका' तथा भगवन शिव को 'नकुलेश' कहा जाता है। पश्चिम बंगाल, कलकत्ता के कालीघाट में काली माता का सुविख्यात मंदिर ही यह शक्तिपीठ है।
43. मानस शक्तिपीठ

  • यहाँ माता सती की 'दाहिनी हथेली' गिरी थी।
  • यहाँ माता सती को 'दाक्षायणी' तथा भगवन शिव को 'अमर' कहा जाता है।
  • यह शक्तिपीठ तिब्बत में मानसरोवर के तट पर स्थित है।
44. लंका शक्तिपीठ

  • श्रीलंका में, जहाँ सती का 'नूपुर' गिरा था।
  • उस स्थान का पता / स्थिति ज्ञात नहीं है।
45. गण्डकी शक्तिपीठ

  • नेपाल में गण्डकी नदी के उद्गमस्थल पर 'गण्डकी शक्तिपीठ' में सती के 'दक्षिणगण्ड'[13] का पतन हुआ था।
46. गुह्येश्वरी शक्तिपीठ

  • नेपाल में 'पशुपतिनाथ मंदिर' से थोड़ी दूर बागमती नदी की दूसरी ओर 'गुह्येश्वरी शक्तिपीठ' है।
  • यह नेपाल की अधिष्ठात्री देवी हैं।
  • मंदिर में एक छिद्र से निरंतर जल बहता रहता है।
  • यहाँ की शक्ति 'महामाया' और शिव 'कपाल' हैं।
47. हिंगलाज शक्तिपीठ

  • यहाँ माता सती का 'ब्रह्मरंध्र' गिरा था।
  • यहाँ माता सती को 'भैरवी/कोटटरी' तथा भगवन शिव को 'भीमलोचन' कहा जाता है।
  • यहाँ शक्तिपीठ पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रान्त के हिंगलाज में है।
  • हिंगलाज करांची से 144 किमी दूर उत्तर-पश्चिम दिशा में हिंगोस नदी के तट पर है।
  • यही एक गुफा के भीतर जाने पर माँ आदिशक्ति के ज्योति रूप के दर्शन होते है।
48. सुगंध शक्तिपीठ

  • बांग्लादेश के बरीसाल से 21 किलोमीटर उत्तर में शिकारपुर ग्राम में 'सुंगधा'[14] नदी के तट पर स्थित 'उग्रतारा देवी' का मंदिर ही शक्तिपीठ माना जाता है।
  • इस स्थान पर सती की 'नासिका'[15] का निपात हुआ था।
49. करतोयाघाट शक्तिपीठ

  • यहाँ माता सती का 'वाम तल्प' गिरा था।
  • यहाँ माता 'अपर्णा' तथा भगवन शिव 'वामन' रूप में स्थापित है।
  • यह स्थल बांग्लादेश में है।
  • बोगडा स्टेशन से 32 किमी दूर दक्षिण-पश्चिम कोण में भवानीपुर ग्राम के बेगड़ा में करतोया नदी के तट पर यह शक्तिपीठ स्थित है।
50. चट्टल शक्तिपीठ

  • चट्टल में माता सती की 'दक्षिण बाहु'[16] गिरी थी।
  • यहाँ माता सती को 'भवानी' तथा भगवन शिव को 'चंद्रशेखर' कहा जाता है।
  • बंग्लादेश में चटगाँव से 38 किमी दूर सीताकुंड स्टेशन के पास चंद्रशेखर पर्वत पर भवानी मंदिर है।
  • यही 'भवानी मंदिर' शक्तिपीठ है।
51. यशोरेश्वरी शक्तिपीठ

  • यह शक्तिपीठ वर्तमान बांग्लादेश में खुलना ज़िले के जैसोर नामक नगर में स्थित है।
  • यहाँ सती की 'वाम'[17] का निपात हुआ था।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार

प्रारम्भिक



माध्यमिक



पूर्णता



शोध


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. कान की मणि
  2. बायाँ गाल
  3. ऊपर के दांत
  4. नीचे के दाँत
  5. ऊपरी होठ
  6. अधरोष्ठ
  7. तंत्र चूड़ामणि।
  8. मतांतर से शिरोनली का निपात
  9. वर्तमान चेन्नई
  10. (कलाइयों)
  11. एड़ी के ऊपर की हड्डी की गांठ
  12. दाएं पांव की अंगूठा छोड़ 4 अन्य अंगुलियां
  13. कपोल
  14. सुनंदा नदी
  15. नाक
  16. दाहिनी भुजा
  17. बायीं हथेली

संबंधित लेख



सुव्यवस्थित लेख


1 टिप्पणी:

  1. शंखोद्धार तीर्थ मे भगवती जगदंबा धरा नाम से विद्यमान है
    सत् युग में जब सती अपने पिता के यज्ञ मंडप में शिव का अपमान सहन नहीं कर सकी तो उसने अपने ही शरीर से योगाग्नि उत्पन्न कर अपने शरीर को जला डाला शिव सती के शरीर को लेकर त्रिभुवन में घूम रहे थे ! तब भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को खंडित कर शक्ति पीठों का निर्माण किया जहाँ जहाँ सती के अंग प्रत्यंग गिरे वहां वहां एक नया शक्ति पीठ बनता गया उसी श्रृंखला मे108शक्ती पीठों मे से 89 वां शक्ति पीठ शंखोद्धार तीर्थ मे भगवती जगदंबा के नुपूर गिरे तब यह स्थान शक्ति पीठ बना
    यही परद्वापर युग म भगवान श्री कृष्ण ने शंखासुर राक्षस को मार कर महर्षि सांदीपनि के पुत्र को लौटाया था
    महभारत युद्ध के पश्चात श्री कृष्ण के कहने पर पांडवो ने यही पर राजसूय यज्ञ कर यज्ञान्त स्नान किया था
    श्रापित यदुवंशियों के अस्थि कलश को यही विसर्जित कर बद्रिकाश्रम की अोर चले गए
    कलियुग मे अजमेर का रामा भील यहाँ शिकार खेल ने आया तब रामा और स्थानीय राजाओ मे युद्ध हुआ युद्ध करते करते रामा भील का सिर रामपुरा मेही गिरा और धडं शंखोद्धार तीर्थ मे आ कर गिरा इस घटना से देवी प्रसन्न हो गई और उसे प्रेतो का मुखिया घोषित कर दिया और तब से आज तक यह स्थान मालवा का हरिद्वार बना हुआ है
    प्रति वर्ष कार्तिक सुदी 11 से पूर्णिमा तक बहुत दूर दूर से श्रद्धालु यहाँ आकर अपने कष्टो से मुक्ति पाते है इस लुप्तप्रायः पीठ के पुनर्जागरण का संकल्प दक्षिणेश्वरी ज्योतिष योग साधना संस्था के ने लिया ओर उसी के सत् प्यास से ये तत्थ्य हमारे समक्ष प्रस्तुत हुए हैं अधिक से अधिक शेयर कर पीठ के प्रचार प्रसार में सहयोग प्रदान करे !
    किसी प्रकार के सहयोग हेतू संपर्क करे
    साभार
    श्री घनश्याम शर्मा
    आचार्य
    श्री घरा धाम शक्ति पीठ
    चचावदा पठरी त. गरोठ जि. मंदसौर
    चलवाक् 9755490285.
    9617436263
    8889138932

    जवाब देंहटाएं