शनिवार, 12 जून 2021

मानवाधिकार पर एक जरूरी किताब

 #अंतर्राष्ट्रीय_मानवाधिकार_दिवस के मौके पर एक जरूरी किताब 


🛑 #लहू_बोलता_भी_है_••••••••••


🔥 जंगे- आजादी-ए-हिन्द के मुस्लिम किरदार ~ सैय्यद शाहनवाज़ अहमद क़ादरी एवं कृष्ण कल्कि

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🔥 जंगे आज़ादी के इतिहास के साथ लगातार छेड़खानी की जाती रही है और अब तो समूचे इतिहास को ही तोड़ने मरोड़ने की कवायद तेजी पर है। क्या इस हकीकत को भी कभी मिटाया जा सकता है कि जंगे-आजादी मे हिन्दुस्तान का सारा आम अवाम शामिल था, वो हिन्दू हो मुसलमान, सिख हो या दूसरे अन्य लोग। आजादी का आन्दोलन किसी जाति, धर्म या खास वर्ग की बपौती नही रहा। हाँ इतिहास लेखन में एक खास तबके को लगातार नजरअंदाज करने की कोशिश की जाती रही है। उसी साजिश को बेनकाब करने के लिए सैय्यद शाहनवाज अहमद कादरी और कृष्ण कल्कि जैसे ईमानदार लेखकों ने 10-15 वर्षों की मेहनत के बाद जो खोज की है, वह इस किताब की शक्ल में एक जिंदा दस्तावेज है। अपने मुल्क की आजादी के असल इतिहास को जानने की जरूरत महसूस करने वाले हर शख्स को यह किताब जरूर पढ़ना चाहिए •••••।

● सर कटा दिया मगर ऐसा नही किया, 

हमने ज़मीरो- ज़र्फ़ का सौदा नही किया।


● इस किताब के शुरुआती पन्नों में #हिन्दी_के_खजान-ए-कुतुब_में_एक_बेशकीमती_इज़ाफ़ा शीर्षक से "पेश लफ़्ज" मे राज्य सभा के पूर्व सांसद #मौलाना_ओबैदुल्लाह_खान_आजमी उपरोक्त शेर के साथ कहते हैं कि ~ "यह किताब सन् 1857 से 1947 तक के जद्दोजहदे-आज़ादी-ए-हिन्द के सियासी ज़ायजे पर मुशतमिल है।••• "आज मुल्क का माहौल किसी से छुपा नहीं है। मुल्क की आजादी की जंग में जो फिरकापरस्त तंजीमें अंग्रेजों की मदद पेशो-पेश थीं, वह आज जब बरसरे- इक़तदार हुईं, तो उन्होंने मुल्क आजाद कराने वाले लाखों सरफ़रोश मुस्लिम मुजाहिद्दीन की कुर्बानियों को भुलाकर उनकी कुर्बानियों के औराक इतिहास को किताबों से हटाने की मुन्नज़म साजिशें शुरू कर दीं हैं और इस झूठ को सच मे बदलने के लिए मीडिया का सहारा लिया जा रहा है। मीडिया के जरिए मुसलमानों को मुल्क का गद्दार बताने की कोशिशें सरेआम की जा रहीं हैं। ऐसे माहौल का जवाब जुबानदराजी जुबानदराजी से नही दिया जा सकता है। इसका जवाब इस किताब में तहकीकात और हवालों के दस्तावेजी बुनियाद पर देते हुए क़ादरी साहब ने जंगे-आज़ादी के शहीदाने- वतन की एक ऐसी मीनार खड़ी कर दी है, जिसके मुकाबिल अब तक की पेश की गयी फेहरिस्तें बौनी साबित होंगी।

कातिल ने एहतियात से पोछे थे अपने हाथ,

उसको खबर न थी कि लहू बोलता भी है॥


📚 #यह_किताब_क्यों ~ लेखक #शाहनवाज_क़ादरी का बयान ••••


🔥 यह किताब लिखने की जरूरत इसलिए पड़ी कि अब अगर मुल्क की जंगे-आजादी की सच्चाई महफूज नहीं की गयी, तो आने वाली नस्लें हमे भी माफ नहीं करेंगी, क्योंकि मरकज़ी हुकूमत का निजाम नये हाथों में जाने के बाद से ही मुल्क की मीडिया के जरिए गैर- मामूली सवालों को देशभक्ति से जोड़कर एक खास तबके (मुसलमानों) को निशाना बनाया जा रहा है और दूसरी तरफ अकसरियती फिरके के नौजवानों के जेहन में नफरत का बीज बोया जा रहा है। इन हालात के असर सड़को पर दिखने भी लगे हैं ••••• ऐसे हालात में यह अंदाजा लगा लेना कोई मुश्किल नहीं है कि इसके पीछे जंगे-आजादी मे अपना सब कुछ कुर्बान कर देने वाले मुसलमानों की कुर्बानियों को तवारीख के सफों से मिटाकर कोई नयी फ्रब्रिकेटेड तवारीख लिखे जाने की तैयारी पूरी हो चुकी है। ••• मुझे यहाँ यह लिखने मे कोई शर्म नहीं महसूस हो रही है कि मुस्लिम राइटर भी इससे बरी नही हैं। ••••••••

♨️  मौजूदा दौर में जो लोग हुकूमत में हैं, उनकी इस मुल्क की आजादी के लिए चली सैकड़ों साल की जंग में कोई हिस्सेदारी नहीं है। इसके अलावा जो सियासी जमात करीब 70 साल में से अकेले 58 साल तक हुकूमत मे रही उसकी हिस्सेदारी व कुर्बानी तो है, लेकिन यह कहना भी सही नहीं है कि पूरी जंगे आजादी उसकी ही देन है। उसकी हिस्सेदारी सन 1885 के बाद शुरू होती है, जो सन 1945 तक आते-आते बहुमत की ताकत पर आंदोलन को जबरदस्ती हाईजैक कर लेती है और मुल्क आजाद होने के बाद इतिहास की किताबों में विरुदावली लिखवाई जाती है। 

● इसी मुल्क के कई सूबों में इमरजेंसी के दौरान साल या 2 साल की सजा पाए लोगों को ताउम्र गुजारा भत्ता दिया जा रहा है, लेकिन अफसोस कि सन 1857 के नायक बहादुर शाह जफर की तीसरी पीढ़ी कोलकाता व मुंबई की झोपड़पट्टी में आज भी जिंदगी गुजारने पर मजबूर है और उसकी फिक्र किसी को नहीं है। 

● •••••• दुनिया का नंगा सच है कि जिस किसी ने भी तवारीख मिटाने की कोशिश की वह खुद मिट गया, लेकिन तवारीख को किसी के भी छल कपट या जोर जुल्म से नहीं मिटाया जा सका ••••• इसलिए मैंने इस किताब में सिर्फ उन्हीं आंदोलनों पर रोशनी डाली है, जिसे या तो मुसलमानों ने चलाया या जिनमें उनकी बड़ी हिस्सेदारी रही है और सिर्फ आजादी के नजरअंदाज किए गए मुजाहिदों का ही जिक्र किया है।

⛳ आज वंदेमातरम् पर इतराने वाली जिस संस्था को राष्ट्रभक्त होने का घमंड है, उसी संस्था के लोगों ने सन् 1925 से 1947 तक वंदेमातरम् का नारा क्यों नहीं लगाया ? क्या अंग्रेजों से संस्था को कोई डर था या अंग्रेजों की वफादारी इसकी वजह थी ? 15 अगस्त सन 1947 को जब देश राष्ट्रीय झंडे का सम्मान कर रहा था, तब इस संस्था के लोगों ने राष्ट्रीय झंडे को पैरों तले रौंद कर क्या आग के वाले नहीं किया था ? क्या इस राष्ट्र भक्त संस्था के लोगों के जरिए महात्मा गांधी का कत्ल नहीं किया गया ? नौजवान नस्ल को इन सवालों का जवाब राष्ट्र भक्ति का दावा करने वालों से पूछना चाहिए कि 100 साल तक चली जंगे आजादी में देश भक्तों का दावा करने वालों, उनके पुरखे या उनकी तंजीमों की क्या हिस्सेदारी रही है ? और अगर नहीं, तो राष्ट्रभक्ति का सर्टिफिकेट देने का काम तुरंत बंद कर देना चाहिए। अगर आज की युवा पीढ़ी ने ऐसा नहीं किया, तो इस देश की मिट्टी उन्हें भी माफ नहीं करेगी। मगर अफसोस कि उन्ही लोगों के जरिए नौजवान नस्ल को आज यह बताने की नाकाम साजिश हो रही है कि इस मुल्क हिंदुस्तान में मुसलमानों का कुछ भी नहीं है। ••••• ऐसे माहौल में यह बताने की सख्त जरूरत है कि मुल्क की आजादी में वह मुस्लिम मुजाहिदीन की कुर्बानियां ही थीं, जिन्होंने अंग्रेजों को सन 1857 के बाद भी किसी पल चैन से हुकूमत नहीं करने दिया। 

● आज जरूरत है कि मुल्क की आजादी के इतिहास को हर भाषा में छपवा कर नौजवान नस्ल और आने वाली नस्ल को आगाह व खबरदार किया जाए कि यह मुल्क सब का है, किसी एक धर्म, जाति, पार्टी का नहीं है। नई नस्ल को मालूम होना चाहिए कि मादरे वतन के लिए लाखों मुस्लिम मुजाहिदीन ने किस तरह अपनी जान की बाजी लगाई और आज का हिंदुस्तान उन्हीं सरफरोश मुजाहिदीन और शहीदों की विशाल कुर्बानियों का फल है। 

●● इस किताब के जरिए मेरी यह कोशिश है कि हमारा मुल्क कौमी एकजहती, भाई चारे, मेल मिलाप और मुल्क में रहने वालों के तमाम मजाहिब का एहतराम करते हुए आगे बढ़े और तरक्की करे, जिसके ख्वाब हमारे शहीदाने वतन ने देखे थे। 


● दुआ करो कि सलामत रहे मेरी हिम्मत, 

यह एक चिराग कई आंधियों पर भारी है॥

🔥 #मुस्लिम_हिस्सेदारी_को_नजरअंदाज_करने_की_जेहनियत शीर्षक में 

इस किताब को लिखने की मंशा बताते हुए लेखक #कृष्ण_कल्कि का "कहना यह है कि ~~~ "तवारीख का सच गवाह है और इस किताब का हर सफा इस बाबत सबूत भी पेश करता है कि जंगे आजादी के दौरान मुसलमानों ने शुरू से लेकर आखिर तक बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया था। उनकी तब की आबादी के लिहाज से उनकी यह हिस्सेदारी मुल्क की दीगर कौमों की बनिस्बत सबसे ज्यादा थी, लेकिन तवारीख की किसी भी किताब में न तो उनकी हिस्सेदारी को माकूल जगह दी गई और न जान पर खेल जाने वाले उनके मुजाहिदीन को ही वैसी तादाद में तवज्जो दी गई।

● ऐसे मे यह किताब उनके लिए मशाल का काम करेगी, जिसकी रोशनी में वह जंगे आजादी की दीवार का वह बड़ा हिस्सा देख पायेंगे, जिस पर लिखी कुर्बानियों की इबारतों में उनके अजदाद का लहू भी शामिल है। वैसे तो यह किताब हर किसी के लिए है-  जो जंगे आजादी में सरफरोशी की हद तक शामिल रहे मुस्लिम किरदारों के बारे में जानना चाहे, ~~ लेकिन खासकर यह हर उस मुसलमान के लिए है, जो आजाद हिंदुस्तान में अपने वजूद और अपनी पहचान को बनाए- बचाए रखना चाहता हो~~। •••• यह किताब हर उस हिंदुस्तानी को आगाह करने के लिए भी खास है कि वह खुद देख सके कि सियासत- ज़दा ज़ेहनियत किस कदर सच को छुपाती या नजरअंदाज करती और कर सकती है ••••••।"

● #केप_टाउन ( दक्षिण अफ्रीका ) की #दल्लास_यूनिवर्सिटी के #मौलाना_अफरोज़_क़ादरी ने बड़े खुले लफ्जों मे कहा है कि ~ "तारीख के गलियारों का ज़रा एक फेरा लगाकर देखें, आप इस हकीकत को मानने पर मजबूर हो जाएँगे कि हिन्दुस्तान में फिरंगियों के खिलाफ पूरी दीदा- दिलेरी के साथ जिहाद का अगर फतवा दिया, तो मुसलमानों ने दिया और उस फतवे के बाद ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ जंगे-आजादी का आग़ाज किया, तो मुसलमानों ने किया; उनके खिलाफ असकरी जंग लड़ी, तो मुसलमानों ने लड़ी; तोपों के दहानों से बाँधकर उड़ाए गये, तो वे भी मुसलमान। फांसी के तख्तों पर ~ इन्कलाब- जिंदाबाद ~ का नारा बोलने वाले भी मुसलमान और बेचारगां जज़ीरे- अण्डमान को आबाद किया, तो वो भी मुसलमानों ने किया। •••••• एक मुहतात कोई 21000 उलमा- ए- इस्लाम और 5 लाख से ज्यादा मुस्लिम मुजाहिद्दीन ने अपनी कीमती जानों का नजराना पेश करके इस हिन्दुस्तान जन्नत- निशान को दौलते- आज़ादी से मालामाल किया था।••••• दुआ-गो हूँ कि क़ादरी साहब की यह किताब क़बूलियत और पज़ीराई हासिल करे••••।

●  #इतिहास_के_अन्याय_को_दुरुस्त_करना_समय_की_माँग" शीर्षक से प्रसिद्ध समाजवादी चिंतक #रघु_ठाकुर बताते हैं कि ~ " इतिहास मे जाति और धर्म के नाम पर काफी पक्षपात हुआ है। ••••• घोषित रूप से फ़िरकापरस्त जमातें तो पहचान ली जातीं हैं, परन्तु धर्मनिरपेक्षता का मुखौटा पहने छिपी हुई फ़िरकापरस्त ताकतें व लोग आमतौर पर पहचान मे नहीं आते।

● आंध्र प्रदेश के जाने-माने इतिहास लेखक #सैय्यद_नसीर_अहमद डंके की चोट पर कहते हैं कि ~ " मौजूदा दौर में वो लोग देशभक्ति की बात कर रहे हैं, जिनका जंगे-आजादी मे कहीं दूर दूर तक नामो-निशान तक नहीं था। क़ादरी साहब ने अपने रिसर्च के जरिए हवालों व वाक़यात की पुख्ता बुनियाद पर ऐसे नाम निहाद दावेदारों को बेनकाब करने का तवारीखी कारनामा अंजाम दिया है।•••••"

🔥  #जंगे_आज़ादी_के_गद्दारों_का_माकूल_जवाब ~ #लहू_बोलता_भी_है ~ शीर्षक में प्रो राजकुमार जैन की नजर बयान करती है कि ~ सवाल उठाया जा सकता है कि इन्होंने अपने पुरखों में मुसलमानों को ही क्यों चुना ? क्या  हिंदुओं और अन्य मजहबों के क्रांतिकारियों को ये अपना पुरखा नहीं मानते ? जिस तरह खूंखार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा जैसी जमाते मुसलमानों को वतन का गद्दार सिद्ध करने पर तुली हैं, तो कादरी क्या करते ? इसका जवाब देना इनकी मजबूरी थी। इन्होंने अपनी कलम से आजादी की जंग के गद्दारों को माकूल जवाब दिया है। आजादी के लिए लड़े गए जंग में महात्मा गाँधी के बाद खान अब्दुल गफ्फार खान की कुर्बानी के सामने कौन ठहर सकता है ? ••••• किताब में दिए इन 1233 इन्क्लाबियों पुरखों को ढूंढने और उनके कारनामों को जानने के लिए कितनी मुश्किलों का सामना कादरी भाई को करना पड़ा होगा, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है ? मुझे फख्र और पक्का यकीन है कि यह अपनी इस मुहिम को जारी रखते हुए इतिहास के गुमनाम शहीदों को खिराजे-अकीदत पेश करके समाजवादी रहवर अपने उस्ताद राज नारायण जी को सच्ची श्रद्धांजलि पेश करते रहेंगे।"

♨️ इस किताब में हजारों शहीदों का जिक्र हवालों के साथ दिया गया है और जंगे आजादी के हर उन पहलुओं पर रोशनी डाली गई है, जिसे आज की नौजवान नस्लें या तो जानतीं नहीं हैं या उन्हें वह दिखाया गया है, जो हकीकत से दूर है। नौजवान नस्लें इसे पढ़ें और नाम निहाद देशभक्ति का दावा करने वालों से पूछें कि जंगे आजादी की तवारीख में वो या उनकी जहनियत के पुरखे कहाँ थे ? और अगर नहीं थे, तो अब देशभक्ति का सार्टिफिकेट बांटने का काम बंद कर मुल्क में अमनो-अमान का माहौल पैदा करें। ( किताब का एक अंश )

● #कुर्बानियों_का_सिला~~~~~•

मुख़तलिफ जरायों और हवालों से जुटाए गये सबूतों के आधार पर किताब में बताया गया है कि ~ 

1~ सन 1857 से 1947 तक कुल 2 लाख 77 हजार मुसलमानों की गिरफ्तारी हुई थी। 

2 ~ सन 1857 की पहली जंगे-आजादी मे मुस्लिम मुजाहिद्दीन की सज़ा-ए-मौत और उम्र कैद की कुल तादाद तकरीबन 1 लाख थी।

3 ~ सन 1857 के दिसंबर तक दो जगहों पर अंग्रेजी फौज की गोलीबारी मे 2780 मुस्लिम मुजाहिद्दीन कैद थे।

● #जानें_और_खुद_फैसला_करें~~• 

"जिनकी कुर्बानियों की बदौलत हमारा मुल्क आजाद हुआ, हमारी सरकार उनके प्रति कितनी संवेदनशील है ~ जानें और खुद फैसला करें ~ 10 जून 2015 / 24 नवम्बर 2015 तथा 04 फरवरी 2016 को आर टी आई के जरिए भारत सरकार के गृह मंत्रालय से भारत के स्वतंत्रता संग्राम में सन 1857 से 1947 तक हिस्सा लेने वाले स्वतंत्रता सेनानियों की सूची माँगी गयी। गृह मंत्रालय का जवाब था कि ~ ऐसी कोई सूचना सरकारी अभिलेखों में नहीं है ( No such information is available in NZ sec )। बाद में संस्कृति मंत्रालय और मानव संसाधन विकास मंत्रालय से भी यही जवाब मिले। 

● इस तरह की तमाम हकीकत जानने के लिए इस किताब को जरूर पढें ~ ( अब उर्दू में भी ) कीमत केवल ₹ 600/ है। किताब पाने के लिए पता है ~ 36 कैन्ट रोड, कन्धारी लेन, लखनऊ 226001

+91 522 2627786 / 9415027807

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