प्रस्तुति- दिनेश कुमार सिन्हा / अम्मी शरण
अफगानिस्तान में किसी महिला को साइकिल पर सवार देखना लोगों के लिए अजीब बात है. ट्रैकसूट, जर्सी और हेल्मेट में जब वे दस लड़कियां निकलती हैं तो टेढ़ी नजरें और भद्दी बातें उन्हें घेरे रहती हैं. लेकिन उनके हौसले बुलंद हैं.
अफगानिस्तान में कट्टरपंथ के साए में महिलाओं के खुले तौर तरीकों और आजाद
ख्याली के लिए कोई जगह नहीं. लेकिन महिलाओं और पुरुषों के बीच अंतर करने
वाली रूढ़िवादिता को इन दिनों अफगानिस्तान की दस महिलाओं की राष्ट्रीय
साइक्लिंग टीम चुनौती दे रही है. वे 2020 ओलंपिक में हिस्सा लेने के लिए
खुद को तैयार कर रही हैं. उनका एक और मकसद है, अफगानिस्तान में साइकिलों पर
और भी लड़कियों को सवार देखना.
राजनीति से नहीं लेना देना
टीम की सहायक कोच 26 वर्षीय मारिया सिद्दिकी कहती हैं, "हमारे लिए साइकिल आजादी की निशानी है." उनके मुताबिक साइकिल के जरिए वे किसी तरह की राजनीति का हिस्सा नहीं बनना चाहती है. उन्होंने कहा, "हम साइकिल इसलिए चलाते हैं क्योंकि हम चलाना चाहते हैं. अगर हमारे भाई साइकिल चला सकते हैं तो हम क्यों नहीं."
साइक्लिंग के लिए उपयुक्त ट्रैकसूट, जर्सी और हेल्मेट लगाकर जब मारिया और उनकी साथी ट्रोनिंग के लिए काबुल से पगमान की पहाड़ियों की तरफ बढ़ती हैं, तो तरह तरह की तीखी आवाजें कान में पड़ती हैं. कोई उन्हें वेश्या कहता है तो कोई घर वापस जाने की सलाह दोता है. इसी बीच कोई तीसरा कहता है कि वे घर की बदनामी कराने पर तुली हुई हैं.
नफरत भरी नजरों से लोग रास्ते भर उन्हें घूरते रहते हैं. लेकिन वे लोगों के तल्ख रवैये की परवाह नहीं करतीं, क्योंकि समाज का एक छोटा सा तबका ऐसा भी है जो उनका समर्थन करता है.
ख्वाबों के पंख
एक साइकिल सवार की मां ऊपर से नीचे तक काले रंग के हिजाब में लिपटी वहां लड़कियों का मनोबल बढ़ाने पहुंची हैं. अपने परिवार में वह अकेली हैं जो ताली बजाकर उनका हौसला बढ़ाती हैं. 20 साल की यूनिवर्सिटी छात्रा फिरोजा की मां मारिया रसूली कहती हैं, "मेरी बेटी मेरे सपने पूरे कर रही है. मेरे माता पिता ने मुझे कभी साइकिल नहीं चलाने दी. मैं अपनी बेटी के साथ वह नहीं होने दूंगी." उन्होंने बताया कि उन्होंने और उनके पति ने पड़ोसियों और रिश्तेदारों से यह बात छुपाकर रखी, क्योंकि "वे कभी नहीं समझेंगे."
अफगानिस्तान में अमेरिकी नेतृत्व में नाटो फौजों के आने के बाद से कट्टरपंथी तालिबानियों के प्रभाव को बहुत हद तक कम किया जा सका है. इसके बाद से महिलाओं ने कई अहम क्षेत्रों में जगह बनाई है, इनमें देश की राजनीति भी शामिल है. अफगानिस्तान में न्यायिक क्षेत्र में भी कई महिलाएं आगे आई हैं. पहली बार देश में उपराष्ट्रपति के पद की दावेदारी एक महिला उम्मीदवार ने भी की.
एसएफ/ओएसजे (एएफपी)
राजनीति से नहीं लेना देना
टीम की सहायक कोच 26 वर्षीय मारिया सिद्दिकी कहती हैं, "हमारे लिए साइकिल आजादी की निशानी है." उनके मुताबिक साइकिल के जरिए वे किसी तरह की राजनीति का हिस्सा नहीं बनना चाहती है. उन्होंने कहा, "हम साइकिल इसलिए चलाते हैं क्योंकि हम चलाना चाहते हैं. अगर हमारे भाई साइकिल चला सकते हैं तो हम क्यों नहीं."
साइक्लिंग के लिए उपयुक्त ट्रैकसूट, जर्सी और हेल्मेट लगाकर जब मारिया और उनकी साथी ट्रोनिंग के लिए काबुल से पगमान की पहाड़ियों की तरफ बढ़ती हैं, तो तरह तरह की तीखी आवाजें कान में पड़ती हैं. कोई उन्हें वेश्या कहता है तो कोई घर वापस जाने की सलाह दोता है. इसी बीच कोई तीसरा कहता है कि वे घर की बदनामी कराने पर तुली हुई हैं.
नफरत भरी नजरों से लोग रास्ते भर उन्हें घूरते रहते हैं. लेकिन वे लोगों के तल्ख रवैये की परवाह नहीं करतीं, क्योंकि समाज का एक छोटा सा तबका ऐसा भी है जो उनका समर्थन करता है.
ख्वाबों के पंख
एक साइकिल सवार की मां ऊपर से नीचे तक काले रंग के हिजाब में लिपटी वहां लड़कियों का मनोबल बढ़ाने पहुंची हैं. अपने परिवार में वह अकेली हैं जो ताली बजाकर उनका हौसला बढ़ाती हैं. 20 साल की यूनिवर्सिटी छात्रा फिरोजा की मां मारिया रसूली कहती हैं, "मेरी बेटी मेरे सपने पूरे कर रही है. मेरे माता पिता ने मुझे कभी साइकिल नहीं चलाने दी. मैं अपनी बेटी के साथ वह नहीं होने दूंगी." उन्होंने बताया कि उन्होंने और उनके पति ने पड़ोसियों और रिश्तेदारों से यह बात छुपाकर रखी, क्योंकि "वे कभी नहीं समझेंगे."
अफगानिस्तान में अमेरिकी नेतृत्व में नाटो फौजों के आने के बाद से कट्टरपंथी तालिबानियों के प्रभाव को बहुत हद तक कम किया जा सका है. इसके बाद से महिलाओं ने कई अहम क्षेत्रों में जगह बनाई है, इनमें देश की राजनीति भी शामिल है. अफगानिस्तान में न्यायिक क्षेत्र में भी कई महिलाएं आगे आई हैं. पहली बार देश में उपराष्ट्रपति के पद की दावेदारी एक महिला उम्मीदवार ने भी की.
एसएफ/ओएसजे (एएफपी)
- तारीख 30.06.2014
- कीवर्ड अफगानिस्तान, तालिबान, महिला, अधिकार, मानवाधिकार, सशक्तिकरण
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