गुरुवार, 9 जून 2022

लिच्छवी । शाक्य-गौतम क्षत्रिय वंश

 #क्षत्रियों में एक वंश पाया जाता है #लिच्छवी । शाक्य-गौतमों के बाद शायद यही क्षत्रियों का सबसे प्राचीन वंश है या यूं कह लीजिए दोनों एक ही वंश की दो भिन्न शाखाएं हैं। 

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       वैसाली गणराज्य के निर्माता होने के कारण क्षत्रियों के इस वंश को इतिहास में वैस/बैस नाम से भी जाना जाता है।


        नेपाल के अंशुवर्मन और सम्राट हर्षवर्धन वैस जैसी अनेकों विभूतियां इसी महान लिच्छवी कुल की देन हैं ।इन्हीं अनगिनत विभूतियों में से एक अमर शहीद राजा राव रामबख्श सिंह जी का आज बलिदान दिवस है। 

       लिच्छवी कुल-गौरव राजा राव रामबख्श सिंह डौंडियाखेड़ा रियासत के राजा थे 1857 में जब स्वतंत्रता का बिगुल बजा ।तो अवध-पूर्वांचल के सभी राजाओं/जमीदारों की भांति रणोन्मत्त राजा राव रामबख्श सिंह भी संग्राम में कूद पड़े। 

         हमारे यहाँ एक लोकश्रुति है कि यदि सकुशल जीवन जीना चाहते हैं। तो भूरे रंग की आंख वाले ठाकुर से कभी नहीं उलझना चाहिए ।कहते हैं कि ऐसी आंखों वाला ठाकुर शेर की मानिंद अत्यधिक रौद्र स्वभाव का होता है ।कब झपट्टा मारकर आपके जीवन का अंत कर दें कुछ पता नहीं चलता। 

       ब्रिटिश हुकूमत को नाकों चने चबवा देने वाले भूरी आंखों के राजा राव रामबख्श सिंह ने अपने रणकौशल से बताया कि कोई लोकश्रुति यूँ ही अकारण नहीं बन जाती।

        रायबरेली के राजा राणा बेनीमाधव सिंह वैस और डौंडियाखेड़ा के राजा राव रामबख्श सिंह वैस के नेतृत्व में लिच्छवियों ने कानपुर-लखनऊ मार्ग में ब्रिटिश सेनापतियों को कई युद्धों में पराजित किया ।

      इसके बाद राजा राव रामबख्श सिंह ने दिलेश्वर मंदिर के पीछे छिपे जनरल डिलाफ़स सहित 12 अंग्रेजों को जिंदा जला दिया।बौखलाई ब्रिटिश सेना ने जनरल हैवलॉक के नेतृत्व में जून 1857 और नवम्बर 1858 में उनके किले पर दो-दो बार तोपों से आक्रमण किया।

       तोपों के अनवरत प्रहार से राजा राव रामबख्श सिंह का किला तो नेस्ताबूत हो गया ।लेकिन हैवलॉक ये देखकर हैरान था कि रामबख्श सिंह चमत्कारिक रूप से किले से सुरक्षित निकल सेमरी पहुंच गए ।

      क्रोधोन्मत्त ब्रिटिश सेना सेमरी की ओर बढ़ गई। जहां उसे जामिनपुर, सिरियापुर, बजौरा के त्रिकोणीय क्षेत्र में लिच्छवियों की भयंकर मोर्चाबंदी का सामना करना पड़ा। 

     आधुनिक हथियारों एवं तोपों से युक्त ब्रिटिश सेना बेहद कठिन एवं लंबे चले इस युद्ध में संसाधनहीन लिच्छवियों को पराजित करने में तो सफल हो गई ।

     किंतु राजा राव रामबख्श सिंह एकबार फिर चमत्कारिक रूप से निकल बनारस पहुंच गए और वहां सन्यासी का वेश धारण कर पुनः सेना संगठित करने लगे ।

      लेकिन इस देश का दुर्भाग्य कि चिरकाल से ही इस देश के लोगों से ही इस देश को दो स्वर मिले, कानपुर कैंट में अंग्रेजो को रसद पहुंचाने वाले चंदन लाल खत्री ने अक्टूबर में 1859 में राजा राव रामबख्श सिंह की अंग्रेजों से मुखबिरी कर दी ।

     इस विश्वासघात के कारण एक बार फिर युद्ध झेडने की तैयारी कर रहे राजा राव रामबख्श सिंह अपने सहयोगियों शिवरतन सिंह, चंद्रिका बख्श सिंह, जगमोहन सिंह, लाख सिंह, रामप्रसाद सिंह, यदुनाथ सिंह, बिहारी सिंह, राम सिंह, छेदी सिंह जैसे अपने तमाम साथियों समेत गिरफ्तार कर काशी से रायबरैली ले आये गए ।

      जहां 28 दिसम्बर 1859 के दिन सभी को फांसी दे दी गई। राजा राव रामबख्श सिंह ने फांसी के फंदे पर भी अंग्रेजों को हैरान किया ।

      उन्हें लगातार तीन बार फांसी दी गई ।लेकिन हर बार फांसी का फंदा टूट जाता ।जैसे वो अंग्रेजो के हाथों मरने को ही तैयार न थे ।फिर स्वयं अपने हाथों से ही फांसी का फंदा बनाया और इस देश पर कुर्बान हो गए।

     हम क्षत्रिय हैं ।इतिहास गवाह है कि हमारे लिए सर्वदा प्राणों का मोह त्याज्य रहा। हमें अफसोस है तो बस इसका कि सबाल्टर्न हिस्ट्री के नाम पर क्रिएट की गई वृंदावन लाल वर्मा की कपोल-कल्पना जिस झलकारी बाई का कभी कोई अस्तित्व ही नहीं रहा ।

      वोटों के लिए उसे इस देश के प्रधानमंत्री तक याद करते हैं। लेकिन जिन बलिदानियों ने इस देश पर अपना जीवन होम कर दिया। आज उनका कोई नाम लेवा तक नहीं ।

     क्योंकि हम ठाकुरों का कोई वोटबैंक नहीं ।इसलिए हमारी कुर्बानी भी आज बिल्कुल मायने नहीं रखती ।वो भी तब जब पूरी दुनिया में हमारे राजनेता/कवि डींगें मारते हों कि हमने दुनिया को पहला गणतंत्र दिया ।

     लेकिन सत्य ये है कि हम अपने देश में ही उस गणतंत्र के निर्माताओं को आदर देना तो छोड़िए ।उन्हें उनके बलिदान दिवस पर भी स्मरण नहीं करते। 

      राजा राव रामबख्श सिंह के बलिदान को इस देश की सरकारों ने भले ही कभी न याद किया हो ।लेकिन 2013 में जैसे ही एक साधु शोभन सरकार ने राजा राव रामबख्श सिंह के किले में लाखों टन सोना होने का दावा किया ।

      पूरा सरकारी तंत्र उनके किले की खुदाई के लिए पहुंच गया और उनका किला जो पहले ही जीर्ण-शीर्ण अवस्था में था ।सोना पाने के लोभ में सरकारों ने उसका भी उत्खनन कर किले को पूरी तरह से खंडहर में तब्दील कर दिया।

      तब से लेकर आज तक न उनके किले की कोई सुधि ली गई और न ही अमर शहीद राजा राव रामबख्श सिंह की। समझ नहीं आता कितने बलिदानों से इस देश का पेट भरेगा ।क्षत्रियों ने सब तो कुर्बान कर दिया अपना,खैर...


#अमर_शहीद_राजा_राव_रामबख्श सिंह जी को #बलिदान दिवस पर नमन...नमो बुद्धाय🙏💐


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- कॉपी 


तस्वीर- राजा साहब के डौंडियाखेड़ा किले में बने मंदिर की है।


#राजन्य_क्रॉनिकल्स_टीम

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