रविवार, 23 अक्तूबर 2016

समाजवादी मुलायम का (असामाजिक) परिवार






 अनामी शरण बबल 

नेताजी के नाम से विख्यात मुलायम सिंह यादव उर्फ नेताजी के घर परिवार और पार्टी में कुछ भी सही नहीं हो रहा है। राजनीति के सबसे बड़े परिवार के लिए विख्यात नेताजी के लिए यही बड़ा परिवार सिरदर्द बन गया है। इनके खानदान और आस पास के 43 संबंधियों को कहीं न कहीं राजनीतिक रसूख हासिल है। सामने यूपी विधानसभा चुनाव की रणवेरी अभी बजी नहीं कि अपनी हैसियत के हिसाब से टिकट पाने के लिए सारे रिश्तेदार ही नेताजी के गले के फांस बन गए है। ज्यादातर लोग तो टिकट पाकर दारूलशफा लखनऊ के सपने देखने लगे हैं। यहां तक तो घर परिवार की बात संभल जाती, मगर इस बार सांसत में यूपी के सीएम अखिलेश यादव है। दोनों सगे भाई इस बार सीएम बनने के लिए बेताब है और वे किसी भी कीमत पर अपने भतीजे के अंदर रहने को राजी नहीं । अपनी गद्दा पर आए संकट को देखते हुए सीएम साहब भड़क गए और पर्दे के पीछे अपने पिताश्री के ही खिलाफ हो उठे है। इस मौके का लाभ और संवेदना बटोरने के लिए सीएम साहब पहली बार अपनी सौतेली मां और सौतेले भाई को लपेट कर अपने परिवार को ही निशाने पर ले डाला।  पिछले तीन माह से जारी इस परिवार युद्ध से साफ हो गया है कि अब सपा यानी नेताजी विधानसभा चुनाव से अपनी पार्टी समेत खुद को लगभग बाहर सा मान लिया है। लगता है कि पारिवारिक प्रेम और सौहार्द् को देखते हुए नेताजी ने जानबूझ कर खामोशी ओढ ली है, ताकि पारिवारिक कलह से सपा को हासिल नाकामी पर संतोष कर ले।
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कहीं यह बीजेपी के संग कोई डील तो नहीं


नोएडा और ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण का विवादास्पद अधिकारी यादव सिंह फिलहाल सीबीआईके पंजे में है। खरबों रूपए की हेराफेरी और धांधली में नेताजी और बहिन जी पूरी तरहदलदल में है। यादव सिंह का इतना आतंक है कि भय दिखाते ही बिहार चुनाव में गठित गठबंधन के मुखिया नेताजी एकाएक गठबंधन से बाहर हो गए। लगता है कि एक तरफ ब्लैकमेल झेल रहे नेताजी के सामने ही परिवार में महाभारत आरंभ हो गया है । जिसको थामने की बजाय नेताजी लंबा लटका रहे है,. और नेताजी की लंबी खामोशी से तो यही लग रहा है कि चुनाव शुरू होने से पहले ही परिवार की लाज रखने के लिए कही यह पूर्व निर्धारित ड्रामा तो नहीं है ?


कहीं महाभारत का यह फेमिली ड्रामा तो नहीं ?


समाजवादी पार्टी में मचे तूफान से सपा समर्थकों का हाल हलकान है । चुनावी सर्वेक्षणों में नेताजी पिछड़ रहे हैं इसके बावजूद जिस अंदाज में यह नाटक हो रहा है, उससे तो यही संदेश जाता दिख रहा है कि चुनाव से पहले सपा का यह महाभारत एक फेमिली ड्रामा भर है बस। जिसके अंत में सपा को उन सीटो पर कमल छाप अपने कमजोर उम्मीदवारों को मैदान में खड़ा करके जीतने का मौका देगी, मगर बहुमत तो कमल को ही पाना तय लग रहा है। बहिनजी भी खूब फड़फड़ा रही मगर कई मामलो से मुक्ति की डीलिंग ही ओम शांति ओम के लए ही हुआ है. हो सकता है कि बहिनजी का कमल से कोई तालमेल भी हो जे मगर इधर आप के केजरीवाल साहब भी बहिनजी से मिलकर यूपी में इंट्री खाता के लिए बेहाल है। फेमिली ड्रामा के बहाने सीएम साहब अपने पुराने ना पसंदो क भी बाहर का रास्ता दिखाने का नाटक कर रहे है ताकि लोगों को यह असली नाटक लगे।


और अमर प्रेम का क्या होगा

सचमुच इसे ही कहते हैं समय की मार । समय जब हलवान था तो समाजवादी पार्टी में हवा भी अमर सिंह के कहने पर चलती और थमती थी. इनकी तूती की अमर वाणी से सपा मुखिया को राजनीति में मुख्यधारा मिली और बॉलीवुड़ की रंगीनियों का दर्शन भी। अमरबेल की घनी होती छाया के खिलाफ जिसने आवाज बुलंद की उसको खामियाजा भुगतना पड़ा। मगर मुलायम राज में निस्तेज हो गए अमर बाबू एकाएक फिर सपाई होकर राज्यसभा में दाखिल हो गए। इस बार फिर लोग उनके खिलाफ प्रकट हो गए तो अब न अमर में पहले वाली तेजी है न मुलायम में लिहाजा परिवार विघटन के सारे आरोप इस बार अमर बाबू के खाते में है । सीएम अखिलेश तो सिरे से उनसे उखड़े है, अब देखना यही है कि अमर के बहाने यादव परिवार और पार्टी की यह महाभारत कब किस और किधर करवट लेता है। जिस पर दिल्ली की भी नजरें लगी है।



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