मंगलवार, 2 दिसंबर 2014

मरती नदियाँ मिटते लोग


 

 

: बुंदेलखंड केन बेतवा नदी गठजोड़ परियोजना

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मरती नदियां मिटते लोग


राष्ट्रीय नदी विकास अभिकरण (एन0डब्लू0डी0ए0) द्वारा देश भर में प्रस्तावित तीस नदी गठजोड़ परियोजनओं में से सबसे पहले यू0पी0 एम0पी0 के बंदेलखंड क्षेत्र से केन बेतवा नदी गठजोड़ परियोजना पर अमलीकरण प्रस्तावित है। 19 अप्रैल 2011 को वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के पूर्व मुखिया जयराम रमेश ने केन बेतवा लिंक को एन0ओ0सी0 देने से मना कर दिया है। क्योंकि वे खुद ही इस लिंक के दायरे में आ रहे पन्ना टाइगर नेशनल रिजर्व पार्क के प्रभावित होने के खतरे को भाप चुके थे। बडी बात ये है कि वर्ष 2009 तक परियोजना के डी0पी0आर0 पर ही 22 करोड रू0 खर्च हो चुके है।
केन बेतवा लिंक परियोजना को आगे बढाने तथा विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तैयार करने के लिये परियोजना को हाथ में लेने हेतु म0प्र0 तथा उ0प्र0 राज्यों व केन्द्र सरकार के बीच इस पर 25 अगस्त 2005 को अंतिम रूप दिया गया। जिस पर म0प्र0 व उ0प्र0 के सी0एम0 बाबूलाल गौड़ व मुलायम सिंह यादव ने संयुक्त रूप से हस्ताक्षर किये थे। इस परियोजना के सामाजिक आर्थिक एवं कृषि आधारित मुद्दो पर सर्वेक्षण की जिम्मेदारी केन्द्र सरकार ने एन0डब्लू0डी0ए0 राष्ट्रीय नदी विकास अभिकरण, एन0सी0ए0इ0आर0 (नेशनल काउसिंल फार एप्लायड इकानामिक रिसर्च) को सौपी थी। यह सर्वेक्षण परियोजना के लिये पूर्व संभावित परिस्थितियों के प्रभाव के अध्ययन पर आधारित था। बांधो - नदियों एवं लोगो का दक्षिण एशिया नेटवर्क (सेन्ड्रप) में एक विश्लेष्णात्मक अध्ययन बुंदेलखंड के इस लिंक से होने वाले पर्यावरणीय हालातो के मद्दे नजर किया था। अध्ययन करने के बाद जो तथ्य निकल कर सामने आये उसकी रिपोर्ट पर सेन्ड्रप ने इसे भविष्यगामी जल त्रासदी एवं पानी का युद्ध करार दिया है।
बंदेलखंड के उ0प्र0 और म0प्र0 में प्रस्तावित केन बेतवा नदी गठजोड परियोजना प्रतिवेदन के आधार पर इस लिंक से प्रभावित होने वाले आदिवासी बाहुल्य छतरपुर जनपद के बिजावर तहसील से आने वाले किसनगढ क्षेत्र के दस गांव है। इस बात का खुलासा एन0सी0ए0ई0आर0 ने अपनी रिपोर्ट में किया है। जब कि सेन्ड्रप का अध्ययन इस लिंक से 19 गांव के विस्थापन की बात करता है। दोनो ही रिर्पोटों में प्रभावित गांव की कितनी जनसंख्या विस्थापित होगी इसकी पुख्ता जानकारी किसी ऐजेन्सी के पास नही है। राष्ट्रीय जल विकास अभिकरण ने बीते वर्ष इंडिया एलाइव टीम को आर0टी0आई0 में जो जानकारियां दी है उनके मुताबिक प्रभावित क्षेत्र में आने वाले जिन किसानों के नाम भूमि नही है और जो भूमि का उपयोग कर अपना आजीविका संवर्धन कर रहे है उन परिवारों को मुवावजा राशि नेशनल रिहैबलीटेशन एवं रिसिटिलमेंट पाॅलिसी 2007 व आई0आर0एम0पी0 2002 के बाबत अलग अलग दिया जाना है। इसमें भी बी0पी0एल0, लघु सीमांत किसान, मध्यम किसान के लिये गांव और जनसंख्या व भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार मुवावजे का प्राविधान रखा गया है एसा आर0टी0आई0 के जवाब मे लिखा है। गौरतलब है कि प्रस्तावित बांध परियोजना में 6 बांध में से एक ही गे्रटर गगंऊ बांध को ध्यान मे रखकर रिपोर्ट तैयार की गयी है। 212 किमी0 लम्बी कंकरीट युक्त नहर इस लिंक के द्वारा केन नदी का पानी जो बुंदेलखंड के झांसी जिले के बरूआसागर अपस्ट्रीम मे म0प्र0 के टीकमगढ जिले में बेतवा नदी पर प्रस्तावित एक अन्य बांध में डाला जाना है। जानकार बताते है कि इस बांध के बायें किनारे पर 2 विद्युत परियोजना 30 व 20 मेगावाट की बनायी जानी है। इसके अलावा इस लिंक की कुल अनुमानित लागत वर्ष 1989-90 में 1.99 अरब रू0 आंकी गयी थी जब कि परियोजनापूर्ण प्राक्कलित लागत वर्ष 2008 के अनुसार 7,614.63 करोड रू0 अनुमानित की गयी है। परियोजना क्षेत्र में संरक्षित वन क्षेत्र पन्ना टाइगर नेशनल रिजर्व पार्क का दक्षिणी हिस्सा भी इस लिंक की सीमा में आता है। डूब क्षेत्र में आने वाले दस गांव में चार गांव पहले ही वन विभाग विस्थापित करा चुका है।
दीगर बात यह है कि अनुसूचित जाति व जनजाति की संख्या इन गांवों में 34.38 व 15.54 प्रतिशत सर्वाधिक है। उदाहरण के तौर पर गुघरी गांव में 91.84 प्रतिशत लोग अनुसूचित जनजाति से सम्बंध रखते है। स्थलीय आकृति के मद्देनजर दौधन (बांध स्थल), खरियानी (दौधन से पांच किमी0 दक्षिण), पलकोहा (दौधन से 4.5 किमी0 दक्षिण पश्चिम), सुकवाहा (पलकोहा से 6 किमी0 दक्षिण पश्चिम), भोरखुहा (दक्षिण पश्चिम) आदि क्षेत्र डूब क्षेत्र मे आते है।
केन बेतवा लिंक में विस्थापित होने वाले दस गांव में से ज्यादातर बराना और श्यामरी नदी की तलहटी में बसते है। विस्थापित होने वाले गांव में टीम ने साहपुरा, सुकवाहा, कूटी, बसुधा का दौरा किया। जब कि विस्थापित होने वाले दस गांवो में से साहपुरा, सुकवाहा, दौधन, वसुधा, पलकोहा, भोरकुआं, गुघरी , खरियानी, कूपी व मैनारी है। टीम ने जिन तीन गांवो का भ्रमण किया है वहां कि रहवासी अपनी मिट्टी को छोडकर नही जाना चाहते है। कूपी गांव के प्रधान मिथला कुरेड़िया बताती है कि मेरे गांव में 250 घर सोर आदीवासियों के है। सोर आदिवासी भले ही कृषि जमीन से संपन्न नही है। मगर फिर भी उनमे अपने पूर्वजो की संस्कृति से विस्थापित होने का डर है। मिथला कुरेडिया की आस पास के क्षेत्र मे फैली चाक (खडिया) की खदानें है। इसी गांव के राजू सोर ने बताया कि कूपी में 27 फुट पर पानी है। यदि इतनी गहराई पर पानी नही निकला तो पत्थर ही निकलता है। यहां सोर बिरादरी की श्रम शक्ति दिल्ली व फरीदाबाद पलायन कर चुकी है। इसी गांव के मनसुख अहीरवार बताते है कि 17 साल पहले वर्ष 1995 में भीषण बाढ में मेरी चार एकड़ कृषि भूमि तबाह हो गयी थी जिसका मुवावजा आज तक म0प्र0 सरकार ने नही दिया है। मनसुख का लडका सुर्रा दिल्ली में बीते पांच वर्षो से परिवार का पेट पालने के लिये मजदूरी करता है। उसका यह भी तर्क है कि मनरेगा में बुजुर्गो को काम क्यों नही मिलता ? गांव के प्रधान 100 रू0 की मजदूरी देते है जब कि 1 अप्रैल 2012 से 133 रू0 मजदूरी हो गयी है। हालात देखकर यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि कूपी के बासिंदे केन बेतवा नदी गठजोड़ परियोजना से बेहद आहत है। वसुधा गांव में ज्यादातर कांेदर जाति के आदीवासी रहते है। साहपुरा के रतीराम यादव का कहना है कि हमारे गांव के कुछ एक परिवारों को बाढ के समय 9000 रू0 मुवावजा मिला था। और पूर्व मुख्य मंत्री दिग्विजय सिंह ने बाढ प्रभावित क्षेत्रों का दौरा किया था लेकिन उसके बाद से इन गांवों में आज तक कोई नही आया। 
कूपी के जागरूक किसान संतोष राय की माने तो पलकोहा और खरियानी के विस्थापन से पन्ना टाइगर रिजर्व पार्क का विस्तार होना था जिस पर सरकार ने दस लाख रू0 प्रति एकड़ विस्थापित परिवारों को मुवावजा देने की बात कही थी। वसुधा गांव में करीब 400 लोग बसर करते है और यहां पर भी कोंदर जाति के आदिवासी रहते है। वसुधा गांव के मंगल कोंदर ने वार्ता के दौरान बताया कि हमारे तीस घर आदिवासियों के है और ग्राम पंचायत कूपी है। कूपी में साहपुरा, वसुधा, इमलीचैक, कूपी आते है। वसुधा के राजाराम कोंदर, जलमा यादव, चिरौंजी लाल, भगवती यादव जैसे तमाम अन्य परिवार लिंक से अपनी कृषि भूमि खोना नही चाहते है क्यों कि जमीन ही उनकी जिंदगी का सहारा है। इन गांव के बासिंदों का कहना है कि हमारी गुजर बसर जंगलो में खडे खैर (कत्था) के वृक्षो से हुआ करती थी। प्रशासन को जब जंगलों मे कत्थे की भट्टियां चलने की जानकारी हुयी तो उन्होने वन विभाग के सहारे वृक्षों को ही कटवा दिया। अब जब कि खैर के वृक्ष नही है तो लिंक प्रभावित क्षेत्र मे उजडे जंगलो पर वन विभाग का पहरा है। इसी गांव के राजाराम की 5 एकड़ कृषि भूमि बांध एरिया में अधीग्रहीत की गयी है। इमलीचैक निवासी ऊदल ने बताया कि केन बेतवा नदी गठजोड परियोजना में सुप्रीम कोर्ट के सहमति के पश्चात सुकवाहा गांव में सर्वे कार्य चल रहा है पन्ना टाइगर नेशनल रिजर्व पार्क से विस्थापित परिवारों को सरकार ने प्रति परिवार दस लाख और पांच एकड़ कृषि जमीन देने का वादा किया है । ऊदल का यह भी कहना है कि पन्ना टाइगर रिजर्व पार्क संरक्षित वन क्षेत्र है यदि लिंक बनता है तो यहां कि बायोडायवरसिटी के विलोपन का खतरा है। साथ ही प्रस्तावित केन वेतवा नदी गठजोड मे डाउनस्ट्रीम में स्थित केन घड़ियाल अभ्यारण्य भी पूरी तरह जमीदोज हो जायेगा। तथा जल जमाव, क्षारीयकरण, जल निकास व जैव विविधता से जो उथल पुथल होगी उससे न सिर्फ सैकडो वन्य जीवों पर संकट के बादल आयेगे बल्कि बंुदेलखंड पानी की जंग के दौर से गुजरेगा ऐसे आसार है।केन्द्र सरकार के आधे अधूरे अध्ययन रिपोर्टो पर आधारित केन बेतवा लिंक की जमीनी सच्चाई को जानकर यह लगता है कि - ‘‘नदियों को कल कल बहने दो, लोगो को जिंदा रहने दो’
By : - आशीष सागर

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