एक
जनवरी क्या है ? कुछ लोग कहते हैं कि ईसा के जन्म से नया साल प्रारम्भ
हुआ; पर यह बात आज तक कोई नहीं समझा पाया कि यदि यही सत्य है, तो फिर नया
साल 25 दिसम्बर से क्यों नहीं होता; या फिर एक जनवरी को ईसा का जन्म क्यों
नहीं मनाया जाता ? और हां, वे 25 दिसम्बर को बड़ा दिन कहते हैं। जबकि भूगोल
बताता है कि 23 dec से दिन बढ़ने लगता है और सबसे बड़ा दिन 21 जून होता
है। सच तो यह है कि अंग्रेजी वर्ष अवैज्ञानिक ही नहीं, अनैतिहासिक भी है।
असल में पश्चिम में अधिकांशतः सर्दी रहती है, इसलिए उन्होंने अपनी कालरचना
सूर्य को केन्द्र मानकर की। दूसरी ओर अरब के रेगिस्तान प्रायः तपते ही रहते
हैं। इसलिए उनके जीवन में चन्द्रमा की शीतलता का अधिक महत्व है। यही उनके
कैलेंडर के साथ भी हुआ। इस कारण ये दोनों कैलेंडर अधूरे रह गये। पहले तो वे
साल में 10 महीने ही मानते थे। फिर पश्चिम ने भूल सुधार कर इनकी संख्या 12
कर ली; पर मुस्लिम कैलेंडर आज भी वहीं है। इसीलिए कभी ईद सर्दी में आती
है, तो कभी गर्मी या बरसात में। एक अजब बात और; उनका दिन रात के अंधेरे में
बारह बजे प्रारम्भ होता है। शायद ऐसे लोगों के लिए ही शास्त्रों में
निशाचर शब्द आया है। निशाचरी अपसंस्कृति के प्रभाव से ही सब ओर चरित्रहीनता
और अपराध बढ़ रहे हैं। जब वे 10 महीने का वर्ष मानते थे, तो सितम्बर (सप्त
अम्बर: सातवां महीना), अक्तूबर (अष्ट अम्बर: आठवां महीना), नवम्बर (नवम
अम्बर: नवां महीना) और दिसम्बर (दशम अम्बर: दसवां महीना) यह गणना सही थी।
भूल पता लगने पर उन्होंने प्रारम्भ में जनवरी और फरवरी जोड़ दिये; पर
सितम्बर से दिसम्बर वाले महीनों के नाम नहीं बदले। अब जरा उनके साल को भी
देखिये। किसी महीने में 28 दिन हैं, तो किसी में 31। कैलेंडर बनाते समय संत
आगस्ट के नाम पर एक महीना बनाकर उसमें 31 दिन कर दिये; पर यह एक दिन कहां
से लायें ? किस्मत की मारी फरवरी उनके सामने पड़ गयी। बस उसके 30 में से ही
एक दिन काट लिया गया। अब तत्कालीन शासक जूलियस सीजर ने कहा कि एक महीना
उनके नाम पर भी होना चाहिए। इतना ही नहीं, वह अगस्त से पहले और 31 दिन का
ही हो। इसलिए उनके नाम पर जुलाई बना दिया गया; पर फिर एक दिन वाली समस्या आ
गयी। गरीब फरवरी की गर्दन पर फिर छुरी चलाकर एक दिन काटा गया। वह बेचारी
आज भी अपने 28 दिनों के साथ जुलाई और अगस्त को कोस रही है। यह कार्य 532 ई0
में जूलियस सीजर के राज्य में हुआ था। अतः यह रोमन या जुलियन कैलेंडर
कहलाया। इसमें चार साल में एक बार 366 दिन वाले लीप वर्ष की व्यवस्था भी की
गयी; पर यह गणना भी पूरी तरह ठीक नहीं थी। इसमें एक साल को 365.25 दिन के
बराबर माना गया, जबकि यह सायन वर्ष (365.2422 दिन) से 11 मिनट, 13.9 सेकेंड
अधिक था। फलतः सन 1582 तक इस कैलेंडर में 10 अतिरिक्त दिन जमा हो गये। अतः
पोप ग्रेगोरी ने एक धर्मादेश जारी कर 4 अक्तूबर के बाद सीधे 15 तारीख
घोषित कर दी। लोग 4 अक्तूबर की रात को सोये थे; पर वे उठे तो उस दिन 15
अक्तूबर था। एक साथ दस दिन की यह नींद अजब थी। यदि कुंभकर्ण को पता लगता,
तो वह अपने इन लाखों नये अवतारों से मिलने जरूर आता; पर वहां तो लोग सड़कों
पर आकर शोर मचाने लगे। जिनके जन्मदिन या विवाह की वर्षगांठ इन दिनों में
पड़ती थी, वे चिल्लाकर अपने दिन वापस मांगने लगे। कुछ लोग भयभीत हो गये कि
कहीं उनकी आयु एक साल कम न मान ली जाये; पर कुछ दिन के शोर के बाद सब शांत
हो गये। इस व्यवस्था से बना कैलेंडर ‘ग्रेगोरी कैलेंडर’ कहलाया। सर्वप्रथम
इसे कैथोलिकों ने और 1700 ई0 में प्रोटेस्टेंट ईसाइयों ने अपनाया। 1873 में
जापान और 1911 में यह चीन में भी प्रचलित हो गया। भारत में अंग्रेजों ने
इसे जबरन चलवाया।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें